Saturday, June 27, 2020

श्रधा/अंधश्रधा y c choudhari 003


        एक गाव आम्ही बिह्याला गया होता .चांगलो समाज जुड़ेव होतो.थाटमाटलं बिह्या भयेव.काही बराती आपापलं साधनलं आपलं गाव गया .जिनकं जवड़ साधन नोहोतो वय रातमा रुक्या होता. सकारी सब चाय नास्ता करश्यानी बरात रवाना करनकं तय्यारीमा लग्या होता.
ओतमाच एक बाई चिलाई ना जोर जोरलं रोवन लगी पोटला हात थरश्यान बस गयी.सब बराती घबराय गया.ओन बाईला बिचारीन त कोनिकी नजर लगी अशी कव्हन लगी .डाँक्टरला बुलावो क़ोनी कव्हत मांत्रिकला बुलावो .आमरं गावमा एक चांगलो नजर उतरावनेवालो सेओको काम फेल होय नही सक कव्हन लग्या .सबकं संमतीलं ओला बुलायकन आनीन .ओनं बाबाजीनं आपली तंद्री देखीस ,बाहेरको लगीसे कव्हन लगेव. आयकश्यानी सब थक्क भय गया .ओकसाठी एक टोटका करनोपड़े कव्हन लगेव.वा बाई जमिनपर लोर गयी ना गड़बळ्या मारनलगी. ऊ मांत्रिकबाबाजी
आपलं तयारीमला लगेव
एकपाव कणिक को बाहुला बनाईस ,आर्धो गंगार पानी ,ना ओनबाहुलाला बाईकं आंगपरलं पाच बार उतारश्यान गंगारकं पानीमा ठेईस .ओकपर एक गोल मड़का झाकीस .मग ओकपर तनिस पेटाईस काही टाईममा .भुड़ुक भुड़ुक असोआवाज आवन लगेव .मांत्रिक बाईला बिचारं आता पोट दुखनो  कसो से .देखो कसो आवाज करसे.बाई उठकर बस गयी चांगलो लगसे कव्हन लगी.सब झन अचंबित भय गया  वा बाई मस्त हासन ना बोलन लगी.मांत्रिकबाबाजीकी वाहवा करन  लग्या. 
        योव टोटका आमला पटेव नही .आम्ही मांत्रिक
संग हुजत करन लग्या .योव आवाज बिना बाहुला लक भी आय सकसे पर बाबाजी माननंला तय्यार नोहोतो .मंग पुन्हा तसोच बिना बाहुलाकी .प्रर्क्रीया .क-या थोड़ टाईममा तसोच भुड़ुक भुड़ुक आवाज आवन लगेव .मांत्रिक बाबाजी खजीलं भय गयोव. अखिन ओन बाईको पोट दुखनो सुरू भयोव .मग डाँक्टरला बुलाईन, गँसकं 
गोलीलं आराम भयोव.मांत्रिक बाबाजी वहालंखजील होयश्यानी 
चली गयेव.

(वैज्ञानिक कारन-तनिस जरे पासुन बाहुलापरं झाकेव मड़कामाकी हवा  पानीमालं
बाहेर निकलत होती मुहुन भुड़ुक भुड़ुक  असो आवाज आवत होतो.)

कहानीको शिक-मांत्रिक पर विस्वास नोको ठेवो .डाँक्टरकी दवा करो.

वाय सी चौधरी
गोंदिया

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