Monday, July 6, 2020

भगत कुर एंव जगदेव पंवार


       ३० कुलिन पोवार समाज जो बालाघाट, शिवनी, भंडारा, गोंदिया मे बहूत बडी संख्या मे है। जहां एक कुर है *भगत* जिसका उल्लेख भाट की पोथियो मे मिला है। भाट एक विशेष कार्यक्षेत्र के होते है जिनका कार्य किसी एक जाती की वंशावलीया पिढी दर पिढी लिखना होता है। पोवार समाज के अंतिम भाट बाबूलाल भाट थे, उनके पोथियो के अध्ययन के बाद पता चला की *भगत* कुर महायोद्धा जगदेव पंवार से बनी है। भाट भगतो के बारे मे लिखता है... "जैदेव ने देवी को शिश चढाया, देवी ने उसे जिवित कर भगत नाम दिया"
        रासमाला ग्रंथ मे जगदेव द्वारा सिद्धराज जयसिंह की आयु बढाने के लिए देवी चामुंडा को अपना सिर अपने हातो से काट कर चढाने की कथा दी गई है। उसने अपने साथ पत्नी तथा अपने दो पुत्रो के सिर चामुंडा को अर्पन कर ४८ वर्ष की आयु सिद्धराज की बढाई। देवी ने जगदेव की स्वामिभक्ती से प्रसन्न होकर सभी को पुनर्जिवित कर दिया था। यह वही प्रसंग है जहां देवी ने जगदेव को "भगत" नाम दिया।
         कलचुरी शासक लक्ष्मीकर्ण, चालुक्य शासक भीम, एंव सोमेश्वर ने १०४७ मे तिनो ने मिलकर राजा भोज को परास्त कर धार को जित लिया था। राजा भोज के मृत्यु (१०५५) पश्च्यात उनके पुत्र जयसिंह ने धार को पुन: जित लिया और पंवार वंश का शासन स्थापित किया। कुछ समय पश्च्यात धार को चालुक्य राजा भीम ने जित लिया और अपना अधिपत्य वहां स्थापित किया। जयसिंह के बाद उदयादित्य ने धार को मुक्त कर मालवा को अपने अधिन किया और अपना शासन स्थापित किया। उदयादित्य के तिन पुत्र थे प्रथम पुत्र लक्ष्मनदेव, नरवर्मनदेव, एंव जगदेव। अपनी राज्य के विस्तार एंव सुरक्षा के लिए लक्ष्मनदेव को विदर्भ भेजा और राष्ट्रकुट राजा पष्टम को परास्त कर लक्ष्मनदेव ने विदर्भ जित लिया एंव उदयादित्य ने उसे विदर्भ का सुबेदार बनाया और नंदिवर्धन (नगरधन, रामटेक समिप) उपराजधानी शासन करने दिया। 
          छोटे भाई जगदेव विमाता के अन्याय से तंग आकर धार छोड पाटन नरेश शिद्धराज के दरबार मे नौकरी करने लगा। बाद मे उसे शासन करने के लिए राजा ने ५ गाव दिये। अपने बल और साहस के दम पर उसने अपना राज्य स्थापित किया एंव विदर्भ के (चांदा) गढचांदूर को अपनी राजधानी बनाया। यहां जगदेव द्वारा अनेक मंदिर बनाये गये है। गढचिरोली एंव चंद्रपुर मे आज भी प्राचिन मुर्तिया एंव मंदिर पाये जाते है जो जगदेव कालिन है। महायोद्धा जगदेव पंवार देवी का परम भक्त था, उसने कंकाली देवी को शिश अर्पन किया था एंव देवी ने उसको जिवित कर भगत नाम दिया था तब से भगत कुर/सरनेम का उदय हूआ। बाद मे उनके वंशज भगत कहलाये।
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                        - सोनू भगत
         powarihistory.blogspot.com
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