Tuesday, July 21, 2020

सांगू का एक बात chhaya pardhi 04




        सांगू का एक बात

भाऊ एक बात सांगु का तुमला?? नहीं भी कहो तरीबी सांगच देसू ना. पर कोनीला सांगो  नोको , आपस की बात आय….. हं... त मी का कवत होती…..गुड्डी का बाबूजी का कसेत मोला,. 
    "गुड्डी की आई काल धडाधडा पाणी आयेव् त परा धरबिन सकार पासून..तू बी चली जाजो परा लगावन,कोरोना लका तोला भी छुट्टी से त ना मोला भी, मिबी आऊन,"
 आता भाऊ बिचारच आयेव ,बीस साल पासून कभी परा नहीं लगायेव,स्कूल ना घरं….आता हो त कय देयेव। सारो सकार की उठी भाऊ,झाड बोहोर, सयपाक पाणी करेव, सिदोरी बनायेव ,ना इनको गाडिपरा गई खेतमा। बण्यार मोरो मंग मंगच आईं। अना हासि मज्याक करण बसी। पान सुपारी खायके बांधीमा उतरी,आता मी भी खोच खाच करेव ना उतरी बांधिमा,,,,आता बन्यार को सामने मी जरासी डगरच पाथ धरेव.

     मोठो हाऊस लक थोड़ासो दूर पाथ गई ना भाऊ कंबर दुखण बसी, आता काई खांबला लगावन की हिम्मत होत नोहती ,एक पाथ पाडेव ना घरं आई.
     वोत्तोमाच गुड्डी का बाबूजी भी आया,मी बिचारेव,"का भयेव त जी , जलदिच आयात ना," त कवन बस्या," का सांगू ,अर्धी बांधी ला पेंडी भरेव ना बटा असो दुखनो भरेव , त घर आयेव्.
    मी कयेव,मोरी भी गती तसीच भई जी,मून मी बी घरं आई,पर चिंता नोको,अज दुय तास काम कऱ्या सकारी चार तास करबिन, आदत पड जाये त सब बराबर होये…..वय भी कवन बस्या,.......
" सही बात कहेस, जाय तुरसी को पाना टाक ,ना मस्त चाय आनं , सकारी अदिक जाबिन परा बांधी पर"
    "करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान रसरी आवत जात ते, सिल पर पड़त निसान"

सिख: एकबार को प्रयास मा आमी सफल होबि असो नहाय,ओकोसाठी आमला निरंतर प्रयास करनो पडे.

तसोच आमरो समूह को भी से, बाल्यावस्था मा लका रांगणला सिकेव ना आब चलनला, त सब मीलके आधार देव ,की समूह बढिया धाये, फले फुले
सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

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