अखाऴी
बरसात क पहले पहेलोच सण अखाऴीको आयेव। मणुनच कसेती अजपासुन अखाऴ लग गयेव।।
पहले क जमानोमा अखाऴीला होतो मोठो भाव।
नवरी टूरी,पहले चरऴ, गऊर,मंग अखाऴीकी आव।।
घरमा सब खुश,बनाईन भजिया,बुडया,ना सुवारी।
बोहुसंग मातामाय जवऴ पुजा करत होती नारी।।
भानीमा धरशान सुवारी अकराबारा घर वाऴीन।
नविन टुराबोहु क जिंदगीको बावशाच धाऴीन।।
अखाऴीक दिवसच व्यास न महाभारत लीखीस।
वाल्या बनेव वाल्मीक ज़सो भगवान ला देखीस।।
येनच दिवस एकलव्य न गुरु दक्षिणा देईस।
अंगुठा काटशान अर्पण करीस गुरुको मान ठेईस।।
अखाऴी क दिवसच सब गुरुकी पूजा करसेती।
मणुन कोणी गुरु पुजा,कोणी व्यास पुजा कसेती।।
सब गुरुला नमन करशान करो आत्म कल्याण।
तनमनधन अर्पण करो बऴे शान, मान, सन्मान।।
डी. पी. राहांगडाले
गोंदिया
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