परंपरा
आसाडी पोर्णिमा कं येन पावन पर्वपर
अखाडी त्योहारकी धुम रव्हसे घर।।
कुसुम सुकूड़ा भज्या बुल्याको सुगंध
सबकचं घर आवसे खमंग.मंद मंद।।
नविन बिह्यावाली बहु सुसरो घर आवसे।
पुजाकी आरती मातामाय जवळ लिजासे।।
गावका बुजरूक रव्हसे बश्या धड़ीपर।
गावमाकं बहुको निरीक्षन करसेती आयपर।।
परंपरा या आम्हरी सबदुन निराली से।
समाजकं आदर्शकी सबला शिख देसे।।
अखाडीको पाहुनचार चखसे तब पाणी आवसे।
किसान आपला घोड़ा फन पठ्ठा खेतमा लीजासे।।
खेतमा चलसे रोवना गितकं धुनपर।
सालभरको योव सन आनंद देसे आयपर।
गुरुपुजा पाठीपुजा सबला आदर्श शिकावसे।
गुरु भक्ति गुरुशिस्य परंपराको ज्ञान मिड़से।।
अशी याआपली संस्कृती चालु ठेवबिन।
पोवारकी या परंपरा नव पिढीला शिकावबिन।।
वाय सी चौधरी
गोंदिया
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