भयी पहाट आब्, पाखरू किलबिलासे
टवकारा देसे सब ला, उठो उठोजी कसे
अशी भयी पहाट, किलबिल पाखरुको
मंग हंबरनो सुरु से, कोठामा बासरुको
माय उठसे पयले, बटकी भानी बजसे
अंधुक उजाडोमा, बर्तन भांडा धोवसे
फुकसे चुलो माय, मोठो धगाडा होसे
टुरुपोटु की चिंता, सयपाक वा करसे
करस्यानी शेण पुंजा, सडा पानी करसे
डोस्कापर शिदोरी, धरस्यानी खेत जासे
नवी पहाट जिंदगीकी, आवसे रोज रोज
आशाक् उमीद संग, करसे वा कामकाज
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डॉ. शेखराम परसराम येळेकर नागपूर २/८/२०२०
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