भय गई सकार ,
मीट गयव अंधकार,
सूरज न कर देइस देखो ,
लालिमा की बौछार।
सकार की या मधुर बेला,
पाखरुहीनको जसो लगी से मेला।
हिवरी धरती पर से ओस की चादर,
आई माई हिटी सेत धर कर घाघर।
सकार सुकार बजसेत मन्दिर की घँटी,
धावत धावत जासेत सोनू - बन्टी।
पहाट को दव(ठंडी)लगसे बडो मजेदार,
असी होसे मोरो गांव की सकार।
✍️स्वाति कटरे तुरकर
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