Thursday, September 10, 2020

पोवारी बोधकथा भाग क्र-१४

 

                       पोवार इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष व्दारा आयोजित उपक्रम

पोवारी बोधकथा भाग  क्र-१४


क्रमांक

रचना

रचनाकार को नाव

1.        

पोवारी बोधकथा - नियती

श्री गुलाब रमेश बिसेन

2.        

संघर्ष देसे समान अवसर

प्रा.डॉ.हरगोविंद टेंभरे

3.        

दुय दोस्त की कहानी

सौ. लता पटले

4.        

भाग्य

सौ छाया सुरेंद्र पारधी

5.        

पैसा का झाड़

श्री वाय सी चौधरी

6.        

सुपात्र

श्री चिरंजीव बिसेन

7.        

  पारस व लोखंड

  प्रा.मुन्नालाल रहांगडाले

8.        

मास्टर जी की सफलता

सौ बिंदु बिसेन

9.        

   पारख अच्छो की

   डॉ. प्रल्हाद रघुनाथ हरिणखेडे

10.    

जवरको काम तवरच

डॉ. शेखराम परसराम येळेकर







1.  नियती

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"हलो बाबुजी , पुळंक् मयनामा सुट्टिपर आवून. कालच मंजुर भयी सुट्टी. ठेवूसु आता." असो कवत श्रीकांतन् फोन ठेयीस. श्रीकांतला मिलिट्रीमा लगस्यान बारा साल भयाता. अदिक च्यार पाच साल डिवटी करस्यान पेन्शन आवनको वोको बिचार होतो. घर् माय - बाप , एक टुरा , एक टुरी अना घरवाली सविता असो परीवार होतो. सविता एम. ए. बी. एड. भयीती. पर संस्थामा डोनेशन अव्वाको सव्वा मांगेलक वोन् घरच रवनो पसंद करीस. घरकी कास्तकारी श्रीकांतका अजी ठेका बटयी देयस्यान करत होता. अजी मिलिट्रीमालक पेन्शन आया रयेलक वूनकीबी पेन्शन मिलत होतीच. घरमा कोणतच बातकी कमी नोहती.

एक रोज संध्याकाळक् बेरा श्रीकांतका बेटा बेटी शाळाको अभ्यास करत होता. सविता सयपाक खोलीमा सयपाक रांधत होती. श्रीकांतकी आई कापूसकी बाती बनावत होती. अना अजी कम आवाजपर टिवीकी बातनी देखत होता. एतरोमा टिवीपर जम्मु कश्मीरमा आतंकवादी हमला भयेवकी बातमी दिसन बसी. श्रीकांतको अजीका दस बारा साल जम्मू कश्मीरमाच गयेलक वय ध्यान देयस्यान बातमी देखत होता. देखता देखता वूनला अचानक श्रीकांतकी फोटो टिवीपर दिसी. तसो श्रीकांतको अजी कावरोबावरो होयस्यान टिवी देखन बसेव. अना टिवी देखता देखताच वय खुर्चीपरलक जमिनपर पळ्या.

अजीला अचानक खुर्चीपरलक पळता देख घरका सबजन धाया. का भयेव कोणलाच पता नोहतो. असोमाच अचानक सविताको फोन बजेव. नवो नंबर देख वोन् फोन कापिस पर फोन दुबारा बजन बसेव. वोन् फोन उचलिस तब् समोरलक एक आदमी हिंदीमा बोलता बोलता कवन बसेव , " हम हवालदार श्रीकांतके आॅफिससे बोल रहे है । हवालदार श्रीकांत आतंकवादीयोंके साथ हुए मुठभेळमे दो आतंकवादीयोंको मारकर शहिद हुए है ।" सविताकत् पायखाल्याकी बारूच सरकी. वोक् पायमा जीवच नही रहेव. वोको हातमाको फोन खाल्या पळेव अना वोकसंगच सविताबी खाल्या पळी. आपल् मम्मीला खाल्या पळी देख श्रीकांतका बेटा बेटीबी जोरजोरलक रोवन बस्या.

श्रीकांतक् घरमा भयेव येन् गळबळलक कुटुंबका अना मोहल्लाका मरदमाना धायस्यान आया. एकन् गावमाक् डाक्टरला बुलाईस. तबवरी श्रीकांत शहीद भयेवकी बातमी पुर् गावमा फैली. गावका पुरा लोक श्रीकांतक् घरकीन धाव लेन बस्या. रिस्तेदारयीनला खबर मिलताच रिस्तेदारबी एक एक जमन बस्या. पुर् गावमा सन्नाटा फैलेव. श्रीकांतको घरमात् रोवणोशिवाय दुसरो आवाजच नोहतो. पूरो गाव शोकसागरमा बुळेव.

तिसर् रोज सकारीच श्रीकांतको पार्थिव शरीर घर् आयेव. श्रीकांतपर पुर् शासकीय सन्मानलक अंतिम संस्कार करनोमा आयेव. येन् बेरा भयेव शोक सभामा श्रीकांतक् यादलक सबजन फुटफुटक रोवत होता. मोठा बुजरूक श्रीकांतक् अजीला धीर देत होता. सवितात् बयी सारखीच ठाकत होती. पंधरा रोज वोक् टोंडमालक एक अक्षरबी नही फुटेव. श्रीकांतका टुरा टुरीत् सविताक् कोर्‍याच सोळनला तयार नोहता. सविताकी असी हालत देख सविताकी मावशी कवन बसी , "बेटी नियतीको लिखेव विधान आपल् हातमा नही रव्. आता आपल् बेटा बेटीनला संभालनसातीतरी तोला बोलनो पळे. हिम्मत बांधनो पळे."

सवितान् एक नजर आपल् बेटा बेटीकन फिराईस. दुयी रातदिन रोयरोयस्यान बिमार पळेसारका भय गयाता. सवितान् सबक् समजायेपर हिम्मत बांधिस. मयना दुय मयनामा दुखमालक बाहर आवत सविता आपल् सासु सुसरो अना बेटा बेटीकन ध्यान देन बसी. थोळ् रोजमा श्रीकांतकी पेन्शनबी चालु भयी. पर वोन् पेन्शनपर बेटा बेटीको शिक्षण अना घर संभालनो संभव नोहतो.

 

सविता उच्च शिक्षित होती. "आपलो शिक्षणला उपयोगमा आणिसत् अापल् बेटाबेटीला कोणतोच बातकी कमी नही रवनकी." असो बिचार करत वोन् नहानमोठी डिवटी करनको निर्धार करीस. एकरोज वोला वनविभागमा भर्ती निकलेकी खबर लगी. वोकमा वीरपत्नीकी जागा होती. वीरपत्नीक् कोटामालक फारम भरस्यान वा अभ्यासला लगी. आपल् बेटा बेटीनक् अभ्यासक् संगच वाबी अभ्यास करन बसी. वोक् अभ्यासमा वोका सासु सुसरोबी मदत करन बसेव. आपलु बहु नवरा गयेवको दुख बिसरायस्यान अभ्यास करनला लगी. येन् बातको वूनला अभिमान होतो. वय आपल् बहुमाच आपल् बेटाला देखन बस्या.

तीन च्यार मयनाक् अभ्यासक् बाद सवितान् वनविभागकी परीक्षा देयीस. येन् परीक्षामा वीरपत्नीक् कोटालक सविताकी नियुक्ती भयी. निकालक् तुरंत बाद सविता वनविभागमा चपराशी मुहुन भर्ती भयी. आता डिवटीपर लगेपासून गावमाकी अना रिस्तेदारीकी बायका सविताला नाव ठेवन बसी ," याबी कायी डिवटी आय का बाई !"

" जंगलमा बाईको जानो सोभसे का गा !"

"जंगलमा कायी कम जादा भयेव त् !"

"बाघला राखसे बाई सविता."

एक ना दुय. जेला जंगलबी मालुम नाहाय वू सविताला नाव ठेवन बसेव. पर सविता हिम्मतवान होती. जवानीमा नवरा जायेको दुख पचावनेवाली बाई असो बिन अर्थक् बोलनोला भीक देणारच नोहती.

जंगल खातीकी डिवटी करता करता वोला खाताक् अंतर्गत परीक्षा देयस्यान उच्च पदपर जाता आवसे. येको वोला पता चलेव. वोक् संगका दुय च्यार जन परीक्षा देयस्यान साहेब बन्या. मंग वोनबी जंगल खातामा अधिकारी बननको ठानीस. वोकी डिवटी जंगलजवरक् आफिसमा होती. सविताकन लिखापळीको काम होतो. लिखापळीको काम करस्यान समय बचजाय. असो मिलेव खाली समयमा वा अभ्यास करन बसी. घरबी वोको अभ्यास चालुच रव्. दुय सालक् मेहनतलक वोन् परीक्षा देयीस अना वोकी जंगल खातामा अधिकारी मुहुन निवड भयी. एक जंगल खाताकी चपराशी मेहनतक् भरोसापर अधिकारी बनी. सविता आता पूरो जंगल संभालन बसी. जंगलखाताक् हर योजनाको लाभ गावगावक् जनतावरी पोवचावनको वोन् बिळा उचलीस. गावगावका जंगल खाताक् जमिनपरका अतिक्रमण हटाईस. सरकारी योजनालक लोकयीनला रोजगार , गॅस सुविधा , सामाजिक वनिकरनक् माध्यमलक जंगल बढावनको काम करीस. सवितान् आपल् बेधडक कामलक जनतामा आपलो अलग नाव बनाईस.

वोला नाव ठेवनेवाला आता आपला काम करनला रिस्तेदारी सांगनकन काम करनला आवन बस्या. वोक् बेधडक काम अना मेहनतलक जंगल खातामा  " जंगलकी बाघीन " मुहुन वोकी पहचान बनी. नियनतीन् देयेव झटकाला आपल् हिंमतक् बलबुतापर सवितान् नियतीलाच झटका देयीस.

गुलाब रमेश बिसेन ,

मु. सितेपार , ता. तिरोडा , जि. गोंदिया ४४१९११

मो. नं. 9404235191

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2.  संघर्ष देसे समान अवसर

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एक दिवस गुरुजी कसे की जिंदगी सबला मौका देसे बस आपरो पर से की संघर्ष मय जिवन को कसो उपयोग करे पायजे अज देखो गुरुजी न तीन गंज अनिस एक मा आलु, एक मा  चाय पत्ती, अना एक मा घुया उबालन साठी ठेय देयीस सब विद्यार्थी बहुत ध्यान लक देखत होता पर कोनीला समझ नही आवत होतो सब गंज मा गरम् गरम् उबाल आवन लगी घड़ी भरमा गंज खाल्या उतार कन गुरुजी कसे देखो का फ़रक दिससे सांगो कोनिला काहीच समझ नही आवत होतो गुरुजी कसे देखो पयले आलू बहुत कड्डडो होतो आता नरम पड़ गयव, घुया बी कड्डों होतो पर उबल कन वु चिकनो भय गयव,अना चाय पत्ती उबल कन पानी को रंग बदल देयीस बस या बात आमरो सब पर लागू होसे की अगर समान परिस्थिति संघर्ष की रही तब भी बदलाव संभव से प्रयास निरन्तर करत रहे पायजे l

बोध: संघर्ष बहुत काही प्रेरणा देसे l

प्रा.डॉ.हरगोविंद टेंभरे

मु.पो.दासगाँव ता.जि.गोंदिया, मो.९६७३१७८४२४

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3.  दुय दोस्त की कहानी

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        शांत बाई अन विमला बाई एकच गांव मा रवत होतीन. शांत बाई घर रव अन विमला बाई ड्युटी कर मुन विमला बाई को नवरा घर को काम मा मदत कर. शांत बाई घर खेती होतीत शांत बाई खेती को काम कर अन घर रव, शांत बाई को नवरा घर को काम मा कभीच शांत बाई की मद़त करत नवतो.

          शांत बाई को नवरा अन विमला बाई को नवरा एकच गांव मा रवनो को कारन दुही अच्छा दोस्त होता, त कभी कभी दुही एक-मेक घर आवत जात होता. विमला बाई को नवराला घर को काम करता देखकर शांत बाई को नवरा बडो अचंबीत होत होतो . यो कसो आय बायको को काम करत रवसे येला सरम भी नहीं लग का असो सोचत रव , अन विमला को नवरा ला कभी-कभी कायका बायकों का काम करसेस बे!............ बायल्याच सेस तु..........

          तब विमला को नवरा ला बुरों लग पर दुही ड्युटी मा होन को कारन वोला घर को काम करनोच पड अन शांत बाई को नवरा को एकदम उल्टो होतो वू कभी शांत बाई ला घर को काम मा मदत करत नवतो . अन हमेशा बायको ला दबाव मा ठेव तब यो सब देखके विमला को नवरा ला बडो बुरों लग. पर वू काहीं कर भी त नवतो सिकत.वोला लग मी काहीं कहु त मोरो दोस्ती मा फुट पड जाये .

         पर एक दिन दुही दोस्त चबूतरा पर बस्या होता तब बात बात पर लका शांत बाई को नवरा कसे, काबे यार तु भोवजी का काम कर सेस, तोला भौवजी काम करन लगावसे त काहीं कवस भी नहीं. तब विमला बाई को नवराला लग्यो येला थोडोसो ग्यान देयेच पाहीजे तब विमला को नवरा कसे "का भयो" आम्ही दुही ड्युटी कर सेज, वोला टाइम भी नहीं भेट, वा दस बजे जासे त दिन बुड़ता छय बजे आवसे मंग घर का काम कोन करे, त थोड़ी सी मदत करूसु . घर संभालन की जिम्मेदारी एकटी बायको की नहीं रव. शांत भोवजी भी सकार पासुन रात तक काम कर से, खेत मा भी जासे त बीचार कर दिन भर मा काम करके तु थक सेस त भोवजी नहीं थकत रहे का.............?

             तु यको बार मा जरूर सोचजोस त तोला समजमा आय जाये . शांत भोवजी ला दबाव मा ठेवन को बाटा समझन की कोशीश कर असो कहीस अन विमला बाई को नवरा घर चली गयो, पर ये सब बात शांत बाई को नवरा को दिमाग पर असर कर गयीन. अन अज पासुन शांत बाई को नवरा अच्छो लक रवन लग्यो अन काम मा भी मदत करन लग्यो.

              हर स्त्री घर परिवार ला संभालके बहार को भी काम करसे पर पुरुष नहीं कर सीक तरी पुरुष हमेशा दबावन की कोशिश करसे येन बात ला हर पुरुष न समजन लाच होना.

बोध- हमेशा कसेत संगत को असर हमेशा गलत होसे पर कभी कभी संगत को असर अच्छो भी होसे.

सौ. लता पटले

दिघोरी, नागपुर

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4.  भाग्य

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         एक घन कि बात आय। माता पारबती अना भगवान शंकर धरती को भ्रमणला निकल्या।रमत गमत हासी मज्याक करत फिरत होता. वोत्तोमाच माता पार्वती न देखीस ,एक गरीब हिरामन नाव को माणूस आपलो दैवला दोस देत होतो," हे भगवान मिनच कोणतो पाप करी रहू की मोला येत्तो गरीब करेस,मोरो भाग्यच लिखनला भूल गयेस.".             

  वोको गराहनो आयकश्यान माता पारबतीला दया आई अना वा भगवान शंकरला कवन बसी….

पार्वती : " स्वामी, बिचारो केत्तो गरीब माणूस से ,तुमि वोकी काई मदत करो काई धन देव ओला, कायला वोला येत्तो गरीब बनायात".

शिवजी:. " मी ओला गरीब नहीं बनायेव अना मी वोला देय भी देऊन त वू सुखी रहे असो नहाय,,,, मी वोला बुद्धी ,हातपाय सब साबुत देयकर धरती पर पठायेव आता उच इंको उपयोग नहीं कर त का करू.

पारबती: " नहीं , नहीं स्वामी तुमला त वोला मदत करनोच पडे.

पाराबती माता जिद पर अड गई गाल फुगाय देइस ….आब स्त्री हाठ ना बाल हट मोठो खराब होसे. शिवजी ला माननोच पडेव. दुसरो दिस भगवान शंकर ना माता पार्वती अदिक धरती पर गया ,ना वोन गरीब माणुस को रस्ता मा सोनो, हीरो लक भरी एक गठोड़ी टाक देइन।

   आता हीरामन रोज सरीखो मंदिर मा जान लगेव, रस्ता मा ओला का भयेव त मालुम नहीं ओको मनमा बीचार आयेव,,,,, अंधरा लोक कसा चलत रहेत भईलो। अन वु डोरा बंद करके चलन बसेव। रस्ता मा सोनो को पोटली पर दरखड़ायेव। ना कवन बसेव सही मा अंधरा लोक बिचारा कस कस चलत रहेत।।अन पोटली ओरांड कर चली जासे।

भगवान शंकर कसेती,,,माणुस ला समय दून पहले ना भाग्य दून जादा कोनिला नहीं मिल।। पर मेहनत लक सब सिद्ध होसे.

 

✍️सौ छाया सुरेंद्र पारधी

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5.  पैसा का झाड़

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      श्रीपती खेडा़ मा रव्हनेवालो. खेतीको काम करश्यानी आपली जिनगानी करत होतो.कभी दुष्काळ पड़ेव त रोजगार हमी कं काम पर जात होतो. वहा दिवानजी को काम करत  होतो. झाड़ कसो लगावन या कला शिक गयोव होतो.गावखारी ना जंगलकं जवळकं खेतीमा तोरा नहीं होय. गावकं जवळ लोक खासेती ना जंगलकं जवळ बंदरा खासेती. मुहुन श्रीपती न जंगल जवळकं पाच एकर प्लाटमा बांधीकं धुरापर पाच पाच फुटपर. जंगलमा झाड़खाल्या वाफ्या बिस- बिस ,पचिस-पचिस सागुनका झाड़ लगावनको सपाटा लगायीस. दुय तिनं सालमा श्रीपतीकं खेतमा दुय -तिन हजार झाड़की सागुनबाळी तयार भयगयी. दस सालमा झाड़ तिनफुट गोलाईका भया .पाच सौ को एक झाड़  येन भावलं ,अर्ध खेतिका झाड़ बिकश्यानी आपली आर्थिक स्थिती मजबुत करसे.

     श्रीपती आपलं गावमा प्रगतीशिल कास्तकार मुहुन ओळखेव जासे. आजुबाजुका कास्तकार श्रीपती को खेत देखश्यानी.सागुनका झाड़ आपलं खेतमा लगावसेत. श्रीपती सबको प्रेरनादायी से.अज ठाटलं आपलो जिवन जग सही से.

शीख-दुसरोका चांगला कार्य देखश्यानी आपली प्रगती करता आवसे.

""जय राजा भोज""

✍️वाय सी चौधरी

गोंदिया

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6.  सुपात्र

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              संत ज्ञानेश्वर न् भगवान की उपासना करके अनेक प्रकार की शक्ती प्राप्त करी होतीस. उनकी देखा देखी एक बाई बी भगवान की उपासना करन् लगी. काही दिवस उपासना करेव क् बाद मा वोला काही फायदा नही भयेव. तब वा ज्ञानेश्वर महाराज जवर आई ना कव्हन लगी भगवान बी पक्षपाती से. मोला  तीन महिना पासून उपासना करू सू तबी काही फायदा नही भयेव.

            ज्ञानेश्वर महाराज  बोल्या भगवान सबपर कृपा नही करत. जेको मा पात्रता निर्माण होसे. जेव सुपात्र रव्हसे वोको पर कृपा करसेती.

           वा बाई कव्हन लगी येव त् पक्षपात से. भगवान सब पर कृपा करे पाहिजे. ज्ञानेश्वर महाराज वोंधावर चुप रह्या. वा बाई बी आपल् घर चली गई.

                दुसर् दिवस संत ज्ञानेश्वर न् मोहल्ला क् एक आदमी ला वोन् बाई घर पठाईस अना वोला वोका जेवर मांगकर आनन ला सांगीस. वु आदमी गयेव ना वोन् बाईला जेवर मांगन लगेव. वोन् बाई न् वोला वापस पठाय देईस. जेवर नही देईस.

               थोड् देर क् बाद ज्ञानेश्वर महाराज वोन् बाई घर गया. ना वोला एक दिवस साती जेवर मांगन लग्या. तब वोन् बाई न् जेवर की पेटी आनस्यार देय देईस. तब ज्ञानेश्वर महाराज कव्हन लग्या, थोडो देर पहले जेव आदमी आयेव होतो वोला जेवर काहे नही देयात.

                वा बाई कव्हन लगी कि वोन् आदमी पर वोला विश्वास नोहोतो. तब महाराज न कहीन तुमी साधा जेवर भलतीच आदमीला नही देव, त् भगवान आपली अनमोल कृपा सबलाच कसो देय देहे. भगवान आपली कृपा सुपात्र लोकईन लाच देसे.

 बोध - भगवान की कृपा प्राप्त करन साती बी पात्रता लगसे.

✍️ चिरंजीव बिसेन

गोंदिया

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7.   पारस व लोखंड

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         पारस व लोखंड की कहानी  आमर बाचन मा आयी से.पारस स्पर्श भयव परा, लोखंड को रुप बदलशारी सोनो होय जासे;तसोच माणुस क जीवन मा भी होसे, गलत मार्ग पर गयेव माणुस भी,चांगल माणुस क् सहवास, संगत लका चांगलो होय जासे.

            अशी बहुत सी कहानी हिंदु धरम् मा सेती. बोध कथा, बोध लेन साठी आती, सद्गगुण लका सद्गुण आव सेती.

            जुनो जमानो की बात आय.मगध (आबको बिहार) राज्य की बात आय. मगध देश की जनता दडपणाखाली रवत होती. दिवस बुळेव परा घरमाच रवत होती.  ओला कारण भी होतो.जंगल मा अंगुली माल नावको खुंखार, डाकू रवत होतो. जंगल मा लका जो भी प्रवासी जात, उनक जवर को सामान,पैसा अडका,लुटत होतो.वोकी हत्या करशारी, अंगुली काट शारी, अंगुली की माला बनायशारी, गरोमा को हार बनायी होतीस, म्हणून ओको नाव अंगुली माल पडेव होतो.

      एक दिवस की बात आयतथागत भगवान गौतम बुद्ध वोन गांव मा आया.गाव वाल हिनन भगवान गौतम बुद्ध की चांगली खातीरदारी, स्वागत करीन.पर गाव का लोग मोकळा-मोकळा नोहोता, मनमा दडपण होतो.तथागत न् दडपण को कारण, गाव वालो हिनला खबर लेइन, गाव वालो हिन अंगुली माल की दर्दभरी, जुलूम, अत्याचार की कहानी सांगीन.

         भगवान गौतम बुद्ध न अंगुली माल ला भेटन साठी जंगल मा जान को निर्णय लेइन.गाव वालो हिनन समजाइन, भगवान गौतम बुद्ध शांत स्वभाव का होता.जंगल मा लका जान लग्या. डाकू न आवाज देयीस,रूक जाव,   पर भगवान आयक शारी भी, न आयकेव सारखो करीन. पुढ पुढ जात होता. डाकू न  जोरलका आवाज देयीस , भगवान रूक गया व पलटकर दैखीन त्,सामने खुंखार ,कारो-कारो, लंबा-लंबा नख, केश,हाथ मा तलवार भी होती.

        भगवान न कहीस-"मी त रूक गयेव, तू कब रुकने वालो सेस.

       अंगुली माल ला यव अनुभव नवीन होतो. अजवरी प्रवासी, ओक सामने, थरथरत होता, जीवकी भीक मागत होता,पर भगवान गौतम बुद्ध शात, स्थिर होता.अंगुली माल कसे "हे सन्यासी तोला मोरो भेव नही लगेव"  मोरो गरोकी माला, अंगुली काट शारी बनायी गयी से,येती मी हत्या करी सेव.

       भगवान गौतम बुद्ध न् कहीन  - तोरो भेव करशारी का फायदो, भेवच करन को रहे त तोर दून जो ताकत वर रहे, वोको भेव लगे.

      डाकू ने कहीस "हे सन्यासी मी केतो ताकतवर सेव,एक गण मा दस-दस की हत्या करसू.

         बुद्ध न कहीस, "सचमुच मा ताकत वार रहो त, झाड की दस पती तोडशारी आनो,"  अंगुली माल न् दस पती तोडशारी आणीस, ना कसे तुम्ही कहो त् मी  झाड़ उपड़शारी आण देसू.

      बुद्ध बोल्या झाड़ उपडन की जरुरत नाहाय. खरोच, तुम्ही ताकतवर रहो त् ये तोड़या पान झाड़ ला पयले जसा होता,तसाच जोड़ देव. अंगुली माल कसे, तुट्या पान झाड़ ला नही जुडत. तूट गया त् तूट गया.

      बुद्ध बोल्या "जे पान तुम्ही जोड़ नही सिको, वय पान तोड़न का तुमला अधिकार कोण देइस?

           जब एक माणूस को डोस्की जोड़न की ताकत नाहाय, त् डोस्की काटन को भी अधिकार नाहाय. बुद्ध की बात मा मन रमेव, तल्लीन भयेव,आत्मबोध भरेव,व आपल दून भी ताकतवर भी सेती, हृदय परिवर्तन भयेव.

        बुद्ध चरण पर मस्तक ठेयीस, माफी मांगीस, भटकेव ला  खरो मार्ग भेटेव.बुद्ध न् अंगुली माल ला आपलो शिष्य बनायीस. पुढ चलशारी वू मोठो साधू भयेव.

   सीख  संगत गुण परिवर्तन ला कारणी भूत होसे.

 

✍️ प्रा.मुन्नालाल रहांगडाले

133,प्रसारक ओंकार नगर मानेवाडा रिंग रोड नागपूर

9172150832, 9422136957

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8.   बोधकथा : मास्टर जी की सफलता

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एक मास्टर जी होता न उनकी पदस्थापना आदिवासी क्षेत्र को नहान सो गांव मा होती. मास्टर जी सादा स्वभाव का अन मेहनती होता. उनला रामायण, भजन मण्डली मा गावन न समाज मा उठन - बसन को शौक होतो.

उनका तीन बेटा होतीन जब उनको मोठो बेटा पांचवी कक्षा मा गयो तब वरी मास्टर जी न आपरा  मण्डली, भजन गावन को शौक करीन. आता गुरुजी ला आपरा बेटा गिन की पड़ाई की फिकर जादा होन लगी त मास्टर जी न आपरा सब शौक ला भूलाय के तिनही बेटा की पढ़ाई पर ध्यान देंन लगया.

इत गाव मा त पांचवी कक्षा तक च स्कूल होतो,कक्षा छठी लक दूसरो गाव जावनो पड़त होतो. त ब काँहाका गाड़ी - रिक्शा..........न काँहाकी चप्पल..........

 बच्चा गिनला बीगुर चप्पल का च पैदल - पैदल स्कूल जावनो पड़त होतो. न बारिश मा नाला, जंगल,कोई-कोई रोज त जंगली जनावर को भी भय होत होतो.

गांव मा गिल्ली डंडा, कंचा, डीप, छिया छायी जसा जूना खेल को संग क्रिकेट न वॉलीवाल खेलत होता. वोय मोठा होत गईन न पढाई को क्षेत्र मा तरक्की करत गईन. मास्टर जी को सपन होतो की उनका बेटा भी उनको जसा बनहेत. वोनो जमानो मा मोठी नौकरी डॉक्टर, इंजीनियर न मोठो सरकारी अफसर बनन की उनको जवर जास्ती मालूमात नो होती.

समय बीतत गयो न वोय आपरा आपरा पढाई को क्षेत्र मा बढ़त गयीन. दुई बेटा इंजीनियर अना एक बेटा डाक्टरी की पढ़ाई पूरी करिन. वोको बाद वोय आपरी पढ़ाई ला जारी राखिन न प्रतिस्पर्धा परीक्षा देत गईन. आखिरकार आपरी मेहनत न माय बाप अना भगवान को आर्शीवाद लक मोठो बेटा मोठो इंजीनियर न दूय बेटा भारत सरकार मा मोठा लोक सेवक बनीन. माता पिता को त्याग न व्यवस्थित दिनचर्या लक उनका तिन्ही बेटा आपरा आपरा क्षेत्र मा लगत सफलता अर्जित करीन.

ग्रामीण परिवेश न नवीन संसाधन गिन की कमी कोनी सफलता मा बाधक नहीं होय सिक. बढ़नवाला हर माहोल मा पढ़ लिख कर मोठी मोठी सफलता पाय सिक सेत.

✍️बिंदु बिसेन

बालाघाट

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9.   पारख अच्छो की

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गोंदिया जवर दासगाव को MCA, MBA सिकेव प्रदीप सय महिना पासना बुटीबोरी MIDC मा विको कंपनी मा विक्री विभाग्मा मैनेजर पद पर काम करं. हुशार प्रदीप को स्वभाव सोज्ज्वळ, मनमिळाऊ. लहान-मोठा, गरिब-अमीर, स्त्री-पुरूष सबला आदरलका बोलं. घरका संस्कारच तसा खुप चांगला होता वोकोपर. सिदोसादो जीवन उच्च विचार. मनून वोला कभी आपलो मैनेजरकिको घमंड नोहोतो.

आपलो दुय सहायक गडी संगं रोज की आवाक-जावक, नफा-तोटा वगेरे को हिसाब ठेवनो, गोदामको माल की तपासणी करनो, माल सप्लाय को इंतजाम करनो इत्यादि काम वोको नित्यक्रममा होता. एक दिवस एतरो जादा काम होतो का गोदामकी तपासणी करन की रय गई. मनून वोनं आखरी मा करण की सोचिस.

संध्याकाळी सय बजे ऑफिसला सुट्टी भई. सब आपापलो घरं चली गया. काममा व्यस्त प्रदीप आपलो सहायक गडीला रोकनको भुल गयव. मंग एकटोच गोदाममा गयव. गोदामको दरवाजो उघडकन अंदर गयव तसो दरवाजो बंद भयव. दरवाजो अंदर बाहर लका बिना चाबी को नई खुलत होतो. अना प्रदीपनं गलतीलक चाबी दरवाजोको बाहेरच ऑटोमटिक कुलूपला लटकायके ठेय देई होतिस. जबं काम करके प्रदीप दरवाजो खोलनला गयेव तब्ं वोला समझमा आयेव का वू अंदर बंद भय गई से अना चाबी बाहेर से. वोनं जोरजोर लका सबको नाव पुकारिस पर बाहेर अगाज जात नोहोतो अना वाचमन को अलावा सब आपापलो घरं चली गया होता.

रात्री १०.३० बजे अचानक दरवाजो खुलेव. गोदामको गंधलका लगभग बेहोश प्रदीपको जीव मा जीव आयेव.  वाचमनला दरवाजो पर देखकर वोला अचंभा भयेव. वाचमननं प्रदीपला बाहेर ऑफिसमा लिजाइस. पाणी अना ताजी हवा लका प्रदीपला सामान्य लगन लगेव.

वोनं वाचमनला पुछिस, "तोला कसो समजेव की मी गोदाममा फसी सेव?" वाचमननं उत्तर देइस, " साहेब, ऑफिसको एन्ं विंगमा ६९ कर्मचारी सेत. उनमा सिर्फ तुमीच आवता-जाता मोला गुड मॉर्निंग अना गुड इवनींग कसेव. दररोज मोला तूमरी हाय, हलोबाय याद रवंसे. पर आज मी ऑफिस सुटेव पर 'बाय' सब्द मोरो कानपर नही पडेव. मी सोचेव साहेब काम करत रहेत नहीतं ओवर टाईम  करत रहेत. मंग काई अगाज नही आयेवलका मी इत्ं तुमला देखनला आयेव. तं मिन्ं गोदाम को दरवाजोला चाबी देखेव. मोला सक भयेव काही तरी गडबड़ से. दरवाजो खोलेव तं तुमी यहा अंदर!"

प्रदीप को मन भर गयेव. वाचमनला कईस, "एन्ं जमानोमा कोणीला कोणीकी पडी नई रवं. सब स्वार्थी लोक रवं सेत. मंग तोला का पडीसे मोरी एतरी चिंता?"

वाचमन, "नही साहेब, तुमी दुसरोला आदर देवो तं तुमला आदर भेटे. अच्छो की पारख मोला बी करनो आवंसे. तुमी दुसरोला मदत करो तं भगवान तूमरी मदत जरूर करे. कसेत ना 'Goodness always pays'. अच्छाई को फल अच्छोच मिलंसे." प्रदीप, "तोला लाख लाख धन्यवाद. चल गूड़ नाईट."

वाचमननं प्रदीपला अभिवादन करीस अना ऑफ़िस बंद करिस. प्रदीप घरको रस्तापर आपलो हौंडा सिटी कारमा वाचमनला धन्यवाद करत जात होतो.

 

बोध: अच्छो को फल अच्छोच मिलंसे

✍️डॉ. प्रल्हाद रघुनाथ हरिणखेडे

उलवे, नवी मुंबई

मो. 9869993907


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10.              जवरको काम तवरच

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 शेखरक् खोलीक् बाजुवाल् खोलीमा धनेश रवत देतो. धनेश डी.एड. करत होतो. अभ्यासमा बहुतच कामचोर होतो. अज नही सकारी करु असेच करत होतो. दुय दिवसमा अभ्यास कर सकुसु असो वको फाजील विश्वास होतो. शालेय मूल्यमापनक पेपरसाती तीन दिवस सुट्टी होती मनुन वन् यन् पेपरको अभ्यासच नही करी होतीस. तसो यव आखरीकोच पेपर होतो. एक दिवस संगी संग बातचितमा गयेव. दुसरो दिवस असोच टाईमपासमा गयोव.   

रातभर अभ्यास करु मनुन वु दिवसभर सोयेव. आब बची रात. धनेशन मस्त जेवण करीस ना बढीया अभ्यास करनला बसेव. कायी कायी संकल्पना वला समजतच नोहती मनुन रट्टा मारनकी कोशिश करत होतो. पन वला अभ्यास आंगभर होत होतो. निंदा नही आयी पायजे मनुन वु एक तास क्  अंतरालमा २०-२० दंडबैठक मारत होतो ना मंग अभ्यासला लगत होतो असो धनेशको कार्यक्रम सुरु होतो. यन् कार्यक्रममा वला मंग कब नींद लगी पताच नही चलेव. ठंडीका दिवस होता, १० बजेको पेपर होतो तरी सवा दस बजेवरी वु शेखरला चोयेवच नही. शेखरनबी वला अज बेस्ट आॅफ लक नही कही होतीस मनुन वु धनेश क् खोलीमा गयेव.

धनेश रातभर दंडबैठक मारमारकन थकेव होतो मनुन वन् थकानलका वला साडे दस बजेवरी चेवच नही आयेव. शेखरन् दरवाजा की कडी बजायकन कयीस का धनेस गुरुजी, पेपरला नही जाव का जीधनेश तडफडाकन उठेव, पेपर १० बजेकोच पन १०.३० बज्या होता. धनेशन् शर्टपॅंड पयनीस ना परात परात परीक्षा हॉलमा पोहचेव. पेपरसाती धनेश एकघंटा उशिरा पोहचेव, मनुन पर्यवेक्षक गुरुजी धनेश ला एक घंटा उशीर मनुन परीक्षा खोलीमा प्रवेश देत नोहता. धनेशन् खोटोनाचो सांगीस, रोवन बसेव त मंग वला पेपर देनसाती परवानगी देईन पन वला काहीच लिखता आवत नोहतो. यको परिणाम मनजे धनेश यन पेपरमा नापास भयेव होतो.

शिख:- जवरको काम तवरच करे पायजे.

 

                                      डॉ. शेखराम परसराम येळेकर

नागपूर ८/९/२०२०

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