पोवार इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष द्वारा दि.०१.०९.२०२० मंगलवार ला आयोजित
पोवारी
बोधकथा भाग १३
क्रमांक |
रचना |
रचनाकार
को नाव |
1 |
कोनीलक
नोकों जरो |
श्री प्रा.डॉ.हरगोविंद
टेंभरे |
2 |
बबलीको बिया |
श्री गुलाब रमेश बिसेन |
3 |
देश सेवा
/ राष्ट्र सेवा |
श्री मुकुंद
दिगंबर रहांगडाले |
4 |
फिजूलखर्ची |
श्री सी. एच. पटले |
5 |
बिश्वास
घात |
श्री डी
पी राहांगडाले |
6 |
प्रयास |
सौ छाया सुरेंद्र पारधी |
7 |
कथनी व
करनी एक सारखी पायजे |
श्री मुन्नालाल
रहांगडाले |
8 |
श्रीपत की श्रद्धा |
श्री वाय सी चौधरी |
9 |
अनुभव |
सौ.वर्षा
पटले रहांगडाले |
10 |
तेनालीरामन अना लाल मोर |
सौ.बिंदु बिसेन |
11 | नापास घोड्या |
डॉ. शेखराम
परसराम येळेकर |
12 |
पैकन |
डॉ. प्रल्हाद रघुनाथ हरिणखेडे |
13 |
जमीन का
पैसा |
श्रीचिरंजीव
बिसेन |
1.कोनीलक नोकों जरो
***********
एक गण की बात आय स्वामी
विवेकानंद जी को आश्रम मा एक व्यक्ति आयव अना कसे स्वामीजी मि आपरो जीवन लक बहुत दुखी
सेव जी मि बहुत मेहनत लक बाचूसू अना अभ्यास खूब करूसू पर सफलता नही भेट रही से प्रभु
स्वामीजी न वोको कन देख स्यानी केसेत इतन आवो
एक काम करो येन कुतरा ला जरा फिरॉय कन आनो ? व्यक्ति ला बहुत
अचंभा भयव वू स्वामी जी कन बहुत अचंभित नजर लक देखन लगयव अना कुतरा ला फिरावन साठी
जान लग्यव बहुत डाव को बाद स्वामीजी जवर कुतरा ला फिरयकन आयव स्वमीजी कसे कहे कुतरा
बहुत थक गयव अना तुमरो चेहरा जरा खुश दिस रही से व्यक्ति कसे स्वामीजी मि त आपरो सिधो
साधो रस्ता लक जात होतो पर येव कुतरा कही को कही कोनी मानुस ला भूके त कही दूसरों कुतरा
संग लड़ाई उनको मग धावत जात होतो अना वापिस मोरो जवर आय जात होतो मनमाना इटकात होतो
आमी ना आवन जान साठी वोतरीच रस्ता को उपयोग पर कुतरा काही ज्यादा थक गयव स्वमीजी जरा
हास्या कसेती तुमरो परेशानी को उत्तर यवच आय तुमरी मंजिल तुमरो आस पास से पर तुमी मंजिल
जवर जान को बाटा गलत रस्ता पर फिरेव लक अना गलत लोक इनको संगत धर लेसेव मनुन तुमला
सफलता नही भेट रही से l
बोध:
सही दिशा मा मेहनत करो आन सही व्यकि को मार्गदर्शन धरो अना दुसरो लक नोकों जरो तबच
तुमी सफल होवो l
✍प्रा.डॉ.हरगोविंद
टेंभरे
***********************************************************
2. बबलीको बिया
********************
सगुणाक् बढाईखोर स्वभावलक जुळेव बिया टुटेलक बबली पूरीच टुट गयी. वैवाहिक
जीवनका देख्या सपना चकनाचूर भया. बबलीक् टुटे बियाकी चर्चा पुर् रिस्तेदारीमा रंगन
बसी. सुखदेवलात् कहीं तोंड देखावनकी जागाच नही रही. सुखदेव ज्याहान जाय वहान वोला बबलीक्
टुटे बियाकी आपबितीच सांगनो लग्. काही लोक वोला धीर देत त् काही वोको मजाक उळावत.
"
तोर् बायकोला सांग भाऊ अदिक लंबी चौळी बात् हानन !"
"
माणूसन् चादर देखस्यानच पाय पसरावन् !"
"
बारावी सिके टुरीला कोणी डिवटीवालो मांगे काजी. सिखीपळी टुरीत् घरघर पळीसेत."
लोकयीनका पलासा सुखदेव , सगुणा अना बबलीला रोजक्
रोज परेस्यान करत होता.
सगुणा बाईला आपली चूकका परीणाम आपल् बेटीला भोगनो लग रही से. येव येन्
बेरा साजरोच समजमा आय गयेव. एक रोज रातवा जेवनक् बेरा सगुणाबाई आपल् बबलीला कवन बसी
, " बेटी , मोर् गलत स्वभावलक
अज तोला अना पुर् परिवारला परिणाम भोगनो लग रही से. मी मोरंकारण भयेव येन् गलतीकी माफी
मांगुसु." बबली चूपचाप जेवतच होती. वोन्
काहीच प्रतिक्रिया नही देयीस.
"अवो
, सरप जायेपर ढोसरला मारस्यार का फायदा !"
सुखदेव
कवन बसेव. बबली जेवता जेवताच फूटफूटस्यान रोवन बसी.
बबलीको अवतार सुखदेवला देखेव नोहतो जात. कोणतोच मायबापला आपल् टुरीकी
खुशीच प्यारी रवसे. पर भयी गलती सुधारणला कोणतीच संधी नोहती. बबलीला रयरयस्यान बी.
एस. सी. को बिचार सतावत होतो. काही करे वोकमनमालक वू बिचार जातच नोहतो. एकरोज सकारी
सकारी सोयस्यान उठी. तोंड धोयस्यान गॅसपर सबसाती चाय ठेयीस. सुखदेव अना सगुणाबी तोंड
धोयस्यान चायकी बाढ देखत सपरीपर बस्या. चायला उकळी आयी. बबलीन् चायमा दूध सोळीस अना
चाय गारता गारता वा सुखदेवला कवन बसी , "बाबुजी ,
मी बी. एस. सी. करून." बबलीक् येन् बोलनोलक सुखदेव अना सगुणा वोला
देखतच रहेव. "बेटी , एकसाल भयेव तुन् शाळा सोळस्यान. आता
जमे तोला अभ्यास करनो ?"
"
बाबुजी , काहीबी होय जाय पर मी अभ्यास करून अना बी. एस. सी.
पुरी करखन देखावून." बबली अलगच निर्धारलक बोलन बसी. वोक् डोरामा सुखदेवला अलगच
चमक दिसी.
उनारोक् सुट्टिक् बाद बबलीन् काॅलेजमा जायस्यान कागजपत्रकी पूर्तता
करस्यान बी. एस. सी. ला प्रवेश लेयीस. एक सालक् अंतरलक काॅलेजमा जायेलक बबलीला अभ्यासको काहीच नोहतो उमजत. पर वा मेहनत करत होती.
नही समजेव भाग प्राध्यापकयीनला अना आपल् सखीनला बिचार होती. रोज दिवसभर काॅलेज अना
राती अभ्यास असो वोको दिनक्रम चालु होतो. आपल् बबलीला दुबारा शाळा सिकता देख , आपली भयी गलती सुधारनकी याच साजरी संधी से. असो समजकर वा बबलीला अभ्यासला पूरो
समय देन बसी. एखादबार सुखदेवन् बबलीला हाकाबी मारीसत् सगुणाबाईच कव् ,
" का काम से ? मोला सांगो. बबली आब् अभ्यास
कर रहीसे."
देखता देखता बबलीको एक साल पूरो भयेव. बबली दुसर् श्रेणीमा पास भयी.
सुखदेव अना सगुणाबाईला श्रेणीदून वोको पास होनोच बहुत होतो. एकरोज बबलीसंग् बिया टुटेव
टुरा डिवटीपर जात होतो. वोतरोमा वोन् बबलीला काॅलेजमा जाता देखीस. बबलीला काॅलेजमा
जाता देख वोला अचंबाच लगन बसेव. वोन् तुरंत माहातीला फोन लगायस्यान बिचारीस तब् बबली
बी. एस. सी. क् दुसर् सालमा सिक रहीसे या खबर वोला मिली. बिया टुटेपासून वूबी कुवारोच
होतो. बिया टुटेपर वोन् दुय च्यार टुरी देखुस पर वोला पसंद नही पळी.
एकरोज सुखदेव आंगणमा पळेव मुरूमको डुंगा बगरावत होतो. "सुखदेव भाऊ, रामरामजी." आवाज आयकस्यान सुखदेव रस्ताकन देखन बसेव. वोला पुरानो माहाती
घरकनच आवतो दिसेव. "राम रामजी , आवो." माहाती गाळी
डहेलमा लगायस्यान सपरीपर आयेव. अना खुर्चीपर बसेव. पावना आया मुहुन बबलीन् पिवनको पाणी
आणिस. पाणी देयस्यान बबली अभ्यास करन घरमा गयी. घळीभरमा सगुणाबाई चाय धरस्यान मोठांग्
आयी. " भाऊ , बबलीको बिया नही करो का ?" चाय पिवता पिवता माहाती बिचारन बसेव.
"आबत् वा बी. एस. सी. कर रहीसेजी." " नही , टुरा डिवटीवालो से." "काहानकोजी
?" सुखदेव बिचारन बसेव. " वू गयेबारको टुरा. वूनकोच
मोला फोन आयेतो." माहातीकी बात आयकस्यान सगुणाबाई मनक मनमा बहुत खुश भयी. पर एकबार
जीभ जलेव आदमी महीबी फूक फूकस्यान पिवसे. सगुणाबाई चूपचाप खाली कप धरस्यान लायनांग्
चली गयी.
"मी का सांगुजी. बबलीलाच बिचारो बाबा वा का कसेत्." असो कवत
सुखदेव बबलीला बुलावन बसेव. आपल् बाबुजीको आवाज आयकस्यान वा मोठांग् आयी. बबलीला देख
माहाती बिचारन बसेव , " बेटा , बियाको बार्यामा तोरो का बाचार से ?" " काही
नही बाबाजी. काॅलेज पूरो होयेपर देखून." " नही , गयेबेरक्
टुराको इतल्ला आयीसे मुहुन कयेव." माहातीक् बातलक बबलीलाबी खुशी भयी. वोला वू
टुरा पसंदच होतो. पर वोको काॅलेज पूरो करनको निर्धार पक्को होतो. वा कवन बसी ,
" बाबाजी , मी बियाला तयार सेव. पर मोरी बी.
एस. सी. पुरी होतवरी वूनला रूकनो लगे." माहाती समज गयेव.
तीन सालक परीश्रमलक बबलीन् बी. एस. सी. पयल् श्रेणीमा पास भयी. सुखदेव
अना सगुणाला बहुत आनंद भयेव. बबली पास होनकी खबर लगता बराबर माहाती धावतच आयेव. वोन्
बबलीकी अनुमती लेयस्यान टुरी देखनसाती दुबारा टुराला धरस्यान आयेव. बबलीला टुरा अना
टुराला बबली पसंदच होती. आलुपोवा खायस्यान होयेपर बिया पक्को भयेव. बियाकी तारीख निकली.
सुखदेव बिसन्यान् धुमधामलक बबलीको बिया करीस. साजरो जवाई मिलेलक सगुणाबाई मनक् मनमा
बबलीका आभार मानन बसी.
✍लेखक
- गुलाब रमेश बिसेन ,
मु. सितेपार , ता. तिरोडा ,
जि. गोंदिया ४४१९११
मो. नं. 9404235191
***********************************************************
3. देश सेवा / राष्ट्र सेवा
***********************
बहुत दिवस पहिले की बात आय, माडगी नाव को एक गाव मा सुमित नाव
को एक टुरा रवत होतो, सुमित हर दिवस स्कूल
मा जात होतो ना सुट्टी होयेपर आप लो घर की शेरी चरावनला लिजात होतो,
एक दिवस की बात आय सुमित शेरी चरावत होतो, वाहापर रेल्वे पटरी होती. उ सहजच पटरी ला निहारत होतो
तब वोला एक जाग लका पटरी की लाइन टूटी दिसी ,तब मोबाइल को
जमानो नोहतो महनुन उ स्टेसन मास्टर ला साग सकत नोहतो, वनच बेरा
पर वाहालक एक रेलगाड़ी जानार होती रेल्वे की सिटी बजी होती गाड़ी थोडोसोच
दूर होती ,सुमित ला एक युक्ति सूची वोन आपलो आगमाको पाढरो शर्ट ला काढ़शानी आपलो हात को बोट ला गोटा लक ठेच शान शर्ट ला लाल करीस अना शर्ट
ला काडि लक लटकायकर पटरी जवड उभो भयव अना गाड़ी ला थांबावन बसेव थोडोसो दूर पहिले रेल्वे
चालक ला, लाल कपड़ा दिसेव अना वोला समझ मा आयेव की सामने काही
गड़बड़ से रेल्वे चालक न गाड़ी थाबा ईस आना खाल्या उतरेव देखी स त रेल्वे पटरी टूटी
होती वन सुमित ला शबास्की देयीस अना असोप्रकारे
सुमित को सूझ बूझ लक अना देशप्रेम को भावना लका हजारों लोकइन की जान बची,
बाद
मा सुमित ला सरकार कर लक पुरस्कार भी भेटेव,
(सिख
: सुजबुझ लका अना हुशारी लका लेयेव फैसला लका
बिघडता काम भी बनजासेत)
✍मुकुंद
दिगंबर रहांगडाले दत्त वाडी नागपूर.
७७९८०८३२८१
***********************************************************
4. फिजूलखर्ची
*******************
मोठो अजी को एकच् टूरा.... मह्णूनस्यान अति लाड-प्यार... तसोच मोठी
आई न् बी असो तुर्रा देखाईस का मोरो एकच् लाड को सोन्या से... सोन्या ला कोनीच् बात
की तकलीफ नहीं होय पाहिजे? लहानपन मा दुनिया भर का " खिलौना"
एक चार- पाच दिवस खेलसे... मंग दसरो मांग से... असा करता करता एक ड्रेम भर खिलौना...
तसोच कपड़ा लता मा भी.. महांगो लक महांगो लहान सो झग्गा-पैंट - शर्ट- स्वेटर किस्म
किस्म का डिजाइनदार.. लोनकोच् काम!
तसोच टूरा त् लहानसो बालिसभर ... पाय मा पहिनन का चप्पल जूता एक पेक्षा
एक क्वालिटी बनगत का... चप्पल जूता को पिंजरा मिनी दुकानच् दिसनो मा दिस!.. तसोच ईसकूल
मा लगनारो साहित्य पाटी-पेनसिंल-खोड रबर - रंगीन चित्र कला की पेंसिल - वही एक पर एक
लेन कोच् काम। अर्धोच साहित्य त् गवडनो माच चली जाय।...
तसोच किटी पिटी पार्टी मा मोठी आई न् सोनूल्या ला असो चटकाय देईस..
इज्जा पिज्जा, आईस क्रिम. वान वान का चाकलेट... किंगरजाय लहान सी
गोली, चालीस की बोली...
आब मोठो मुश्किल लक आठ नव बरस को भयी रहे... मोठो अजी की ओन बेरा कमाई
बी छप्परफाड के होती। जमीन जायदाद बिक्री को काम... जेला इंग्रजी मा रियल स्टेट बिजनेस
कव्हसेत। मोठो अजी त् कसो गिराईक पर फांसा टाक् एकच गन मा 10-12 लाख रू असोच् दबाय
देत् होतो। मोठो अजी को कारोबार मोठो अजीच् जाने! केतरो लोकईन ला टोपी पहिनाईस....
घर मा लक्ष्मी देव की मोठी कृपा... असी अनाप सनाप कमाई ला खर्च करनो
मा मोठी आई बी कमी नव्हती!.. शापिंग, जेवरजुटा, साड़ी पर साड़ी, देवधामी को दर्शन को सैर सपाटा।....
किराया को त् घर, पर सांज समान को डेकोरेटर..बिजली
बील मा भी काही कमी नहीं.. बिना काम मा भी पंखा बल्फ चालूच।
तसोच मोठो आई का भी चप्पल जूताईन की काहीच कमी नहीं। फैशनेबल नैशनेबल
को त् पूरच् आय गयो होतो। मोठो अजी न् त 2018-2019 मा चांगलो च् फांसा टाकस्यान आवनो
वालोबरस 2020-2021-2022 साठी कुबेर को धन अना सुसज्जित बंगला मा रहव्हन को सपना बनाईस।...
परन्तु अनजान कोरोना वायरस न्
सब नियोजित कारोबार पर पानी फेर देईस, बैंक बैलेंस
निल बट्टे सन्नाटा। धंधा पानी भयो एकाएक चौपट.... मोठो अजी न धरीस गावकन आवनो की बाट...
कारोबारी मा उधारी को पैसा अदा करनो मा सोनो नानो बिकाय गयो। किराया को घर खाली कर....
जसा गाव सोडस्यान शहेर मा गया, तसाच् वापस आया। मोठो अजी को हिस्सा मा चार ऐकड जागा से। येन साल स्वतः धान
पेरस्यान खेती करीन् अना आपरो खान को जुगाड़ करीसेन। आखीर मा मातृभूमि च् काम मा आयी।
फिजूलखर्ची अखर गयी। समय सांगता नही आव, कब समय करवट बदल देसे।
मोरो माय को अना मोरो मोठी माय को जिनगी मा 36 को आकडा... आता वोय लोक 63 होन साठी देख रही सेन। मोठो अजी, अना मोठी आयी आता नातो गोतो लक बी तोंड छिपाया रहीसेन।
चार
चक्का की गाड़ी भर साबूत दिस रही से। परन्तु पेट्रोल भरन् की लायकी नही रहवयलक कोठा
मा ठेयदेईसेन।
तात्पर्य
ः फिजूलखर्ची करनो शान की बात नोको समझो। एक ना एक दिवस फजिती... फजिती..
✍सी.
एच. पटले गोपाल नगर नागपूर ।मो. 7588748606
***********************************************************
5. बिश्वास घात
****************
एक खळकी नावको
गाव होतो गावमा चंगु ना मंगु नावका दुय संगी रवत होता. उनकमा गहरी मिञता होती. कहीभी
जानको रव्ह त दुयही जन संगमाच जात
होता. ओय कोणतोही चांगलो
काम करत नोहता. उनला फुकटको खानकी आदत
पळी होती. उनको काम चोरी डकेती करनोना ओकमा
आपल परिवार को पोट भरणो असो होतो. रातमा चोरी ना दिवस् सिनाजोरी असो काही चलत
होतो.
एक दिवस गावक टोलापर सावकारक घर चोरी करनको मनमा बिचार आयेव. वोनच रातमा रातक
बारा बजेक आसपास दुहीजन घरलका निकलन को ठराय शानी आपापल घर गया.घर जायशान चंगु बिचार
करण बसेव, का चोरीको माल दुही जन बाटेलका जरा जराच भेटसे. अज सावकार क घर चोरी करनको
से,बहुत सारो माल भेटे.
मी कधी मंगु ला मार देऊन त पुरो माल मोलाच भेटे, मणुन ओन जानक बेरा एक लहानसो बिचवा आपल बनियानमा छुपायशान धरीस.ऊत मंगु भी
चंगु सारखोच बिचार करत होतो.
ओन बुंदीका
लाळु बनाईस ना ओक मा जहर मिलायशानी एक थैलीमा धरीस. रातक बारा बजे चोरी करनला दुहीजन
टोला पर सावकार घर गया, सावकार परिवार सहीत जेण खोलीमा सोया होता
ओको किवाळ बाहेरलका बंद करीन ना बाकी दुसर कमरा ठेयव सोनोका,चांदिका
सपाई बिसरो( दागीना),नगदी रक्कम लेकर फरार भया. गावक ना टोलाक
बिचमा एक झाळ क खाल्या चोरीको माल बाटन साठी बस्या,ओतरमा चंगु
न बिचवा काहाळीस ना मंगुला मार देईस.
कसे आता पुरो चोरीको माल मोलाच होय मणुन खुश भयेव तब ओला मंगु
जवर की थैली दिसी.
थैली खोलशान देखीस त ओला लाळु
दिस्या,कसे पयले लाळु
खाऊन असो बिचार करशान पटापट पाचसय लाळु खाईस.जहरका लाळु खायेलका ऊ ओनच ठिकाणमा
मरणागती गयेव.एकमेकको बीश्वास घात करेलका दुहिको नाश भयेव.
सिख
:- कोणीकोच बीश्वास मा बीश्वास घात नही करे पाहिजे.
✍डी
पी राहांगडाले
गोंदिया
९०२१८९६५४०
6. प्रयास
***********
एक तरा मा मनमानी भेपका ( मेंढक) रवत होता। तरा
को बीच मा एक लोहा को खम्बा वहांन को राजा न लगवायी होतिस । एक दिवस तरा का मेंढका खेलत होता । खेलता खेलता उनको मन मा बिचार
आयेव,"आपून येन खंबा पर चढ़न की रेस (शर्त) लगाया त", जो भी येन खंभा पर चढ़ जाये,
वोला प्रतियोगिता को विजेता मानेव जाये।
रेस को दिवस निश्चित भयेव। काहि दिवस माच रेस को दिवस भी आय
गयेव । प्रतियोगिता मा भाग लेनसाती बहुत सा
मेढ़का जमा भया। जवर को तरा का मेंडका
रेस मा हिस्सा लेनला पहुंच्या।,,,,,
प्रतियोगिता देखन साती भी बहुत सा मेंढ़क वहां जमा भया ।
रेस चालू भई। चारही अांग सब मेंड़का चिल्ल्यान बस्या
। सब लोहा को मोठो खम्भा ला देखकर कवन बस्या , “येन खंबा पर चढ़नो नामुमकिन से।", " येकोपरा कोनी नहीं चढ़ सीक"।
सब मेंढक कोशिस करण लग्या । पर खंबा चिकनो होतो।
मुन कोनिच चढ़ नहीं सिकत होतो। थोड़ोसो वर्त्या जाएकर सब घसरत होता। बहुतसा हार मानकर
हात पर हात धरकर बस गया ।रेस देखन आया मेंढका जोर लक चिल्लात होता। येव असंभव से ,कोनी नहीं चढ़ सीक। असो आयकर बहुत सो मेंढका न कोशिश करणों सोड़ देंइन।
अन आब गर्दी
को सात देन बस्या। पर उंकोमाच एक लहानसो मेंढका लगातार कोशिश करन को कारण खम्भा पर पंहुचेव,। कय बेरा वु पड़ेव,
घसरेव पर हार नहीं मानीस तब वोला सफलता मिली।
सब न ओला बिचारीन ,कोनी सफल नहीं भया,तू कसो सफल भयेस , पर ओन काई सांगिसच नहीं।
तब ओकॊ जवरको बुडगो मेंडका न सांगीस," येव बहिरो से। तुमि सब नहीं चढ़ सिकत असो चिल्लात होतात तब येला लगेव,
*चढ़ सिकसेस,चढ़ चढ़।
सीख:
दुनिया मा पाय झिकलनेवाला बहुत रवसेत, पर बार बार सचचो प्रयास
,मेहनत अन लगन लका असाध्य काम भी साध्य होसेत।।
✍सौ
छाया सुरेंद्र पारधी
7. कथनी व करनी एक सारखी पायजे
************************************
समाज म्हणजे समान संस्कृती, एक समान खान पान,रहन-सहन,बोलचाल
रवसे. समाज साठी जन,जल,जमीन जंगल,
जरूर से.
समाज मा सब प्रकारका लोग रव सेती.अवश्या, नवश्या, हवशा, गवशा, समाज कारणी, राजकारणी इत्यादी.
समाज कारण करनो सोपो से,अवघड भी से.समाज कारण करन साठी खुद को, वैयक्तिक जीवन
,साधो, शुद्ध, पवित्र
रव्हनो जरूरी से.समाज जीवन मा तसोच वैयक्तिक जीवन मा विचार आचार सारखो समान रव्हनो
जरूरी से. समाज ला ज्ञान सांगने वाले को,चरित्र, विचार सारखो नही रहे त्,वोक प्रवचन,ज्ञान, विचार को समाज
पर प्रभाव नही पड़.
एक बारामा एक उदाहरण याद आवसे.आमर गावमा पटील
को टुरा बीमार भयेव. वू टुरा बोहुत च भेली खात होतो.गावक बइद जवळ लिजाइस. बइद न,तपासणी करेव क बाद मा तीन हप्ता क् बादमा आवन ला सांगीस, न् टुराला भेली न खान को सला देइस. टुरा न बयीद की बात मानीस,व रोगमुक्त भयेव.
पटील न् बयीद ला कहीस "भेली न खान की बात तीन हप्ता पयले काहे नही
सांग्यात? वोन टाईम ला रोग को निदान अलग होतो?"
वैद्यराज न कहीस " तीन सप्ताह पुर्व, देखेव, तबच् समज मा आय गयेव होतो, भेली खानो बंद करनो, रोग खतम करनको एक मात्र उपाय से"
ओनऽऽटाइम ला मी असो कव्हन की हिम्मत नही
कर सकेव.;कारण मोरीच आदत भेली खान की होती. तीन सप्ताह पासून
वा आदत मी सोड़ देयेव.आदत सूट गयी असो मोरो विश्वास भयेव;तबच
तुमर टुरा ला भेली न खानको उपदेश देयेव.
सार
:समाज काम करन साठी विचार व व्यवहार (कथनी व करनी) मा
समानता रहे पायजे.
तबच
समाज कार्य सफलता लक् होये.
✍मुन्नालाल
रहांगडाले ओंकार नगर मानेवाडा रिंग रोड
9422136857/9172150832.
***********************************************************
8. श्रीपत
की श्रद्धा
******************
श्रीपत आपलं गावमा धार्मिक मुहुन प्रसिध्द होतो. कोनिन
काहि सांगिनतं मानत होतो.गावमा कोनतोच धार्मिक कार्य रव्ह.श्रीपत वहा हजेरी लगावत होतो.
येंदा कोरोनाकं महामारीलं सार्वजनिक गणेश उत्सव
नही मनावनको असो ठहरेव.श्रीपत न बिचार करीस येंदा मी घरच गणेश मडावु पर खंड
नहि पाड़ू मुहुन आपलं तैयारीमा लगेव .
गावकचं कारागीर जवळकी मातीकी सुंदर
मुर्ती लेयेके अंनिस. चांगली सजावट करीस. रोज
सकाळ संध्याकाळं ""तू सुखकर्ता तू द:खहर्ता ....ना ""जय गणेश देवा...या
आरती करत होतो.ना गणेशाला चमचालं दुध पिवावत होतो. कभी तिनं -चार चमचा दुध गणेश पिवत होतो.गणेश भगवानकं सोंडला दुधको चमचा लगावत होतो.दुध
गणेश पिवसे मुहुन खुश होत होतो.दुध पिवावनकी प्रक्रीया बढत गयी ना पाचव दिवस गणेश भगवानकी
सोंड तुटश्यान खाल्या पळ गयी .श्रीपत घबराय गयोव. लवर लवर कापन लगेव.अपशकुन भयोव. काही
भगवानको कोप होय.मुहुन धावतच पाटिलकं बाळामा
गयोव सब कहानी सांगिस. पटिल समज गयोव .ओला समजाईस.अरे मातीकी मुर्तीकी दुधलं
सोंड ओली भयी ना तुट गयी. तोरं गलतीलं सोंड टुटी
आता
ओको विसर्जन करले.श्रीपतनं गणेश भगवान को पाच दिवसमा विसर्जन कर लेईस.ना दंड को धारेने
फोळीस .ना गलतीकी माफी मागिस.
शीख-भगवानकी
मुर्ती दुध पीव नहीं. धार्मिक माणुस श्रद्धावान रव्हसेत.मुहुन विस्वास ठेवसेती.
✍ वाय सी चौधरी
गोंदिया.
***********************************************************
9. अनुभव
***************
एक बहुत मोठो
जंगल होतो।उन्हारो का दिवस होता। पुरो जंगल का तरी, नदी ,नाला,बोळी अटाय गया होता।जीतन देखो उतन झाड तपन लका मुरझाय
गया होता।पुरो जंगल को हीवरोपणा नष्ट भय गये होतो।पूरो जंगलमा तपन न आपलो साम्राज्य
फैलाय देई होतीस।जंगल का प्राणी भूक तहान लका बेजार भय गया होता।उनला समजतच नोहोतो
का करे पायजे,जेको लका जंगलमा पाणी को जुगाळ जम जाये।यन बात परा
चर्चा करनसाठी जंगल का पुरा प्राणी जमा भया होता।
जंगल को राजा बाघ मोठो गोटा परा बसेव होतो।वोको सामने
जंगल को कोल्ह्या बसेव होतो।सोन्या ससा,हरीण बहिण,हत्ती भाऊ,बंदर भाऊ सबजन सभा मा उपस्थित होता।सबकी हालत
तहान, भूकलका खराब भय गयी होती।काही समजत नोहोतो का करे पायजे।जंगल
को राजा महाराज बाघ कवन बसेव"मोरो जंगल का सब सदस्य इनला मी विनती करूसु की आपापली
राय सांगो,काही तरी मार्ग सांगो जेकोलका यन समस्या को हल नीकले।"
सब प्राणी आपला आपला बिचार सांगन
बस्या।सभा मा गोंधळ चालू भयेव।पर एक बुढो बंदर एकदम शांत बसके सब आयकत होतो।ऊ बंदर
काहीच बोलत नोहोतो।वोकोपरा महाराज बाघ की नजर होतीच।बाघ कवन बसेव,"बंदर भाऊ तुम्ही यन जंगल मा सबसे बुजुर्ग सेव अना तुमीच उगामुगा बस्या सेव।आमला
काही तरी उपाय सांगो।आमरो दून तुमी न जादा उन्हारो पावसाळो देख्या सेव।" बंदर
बोलन बसेव,मी सांगो तसो करो का,सब प्राणी
एकसाथ मा हव कयीन "आमरो जंगल मा जंगल को सीवधुरो जवळ एक जुनो तरा से पर पालापाचोळा
अना मातीलका ऊ बुजाय गयी से". "तुमला बहुत मेहनत करनो
पळे,तरा ला डबल खंदनो पळे तबच पाणी भेटे"
सब प्राणी एकसाथ उभा भय गया
अना कवन बस्या,"तुमी आमला वा जागा सांगो ,उपासी अना तहान लका बेजार त भयच गया सेजन आता आमरी तहान भगावनसाठी जरासी मेहनत
बी करलेबीन।"
सब प्राणी चलन बस्या बंदर पुळ पुळ अना बाकी प्राणी मंम मंग।तरा जवळ
पोहोचेव परा बंदर को मार्गदर्शन मा सबन जुनो बुजेव वालो तराला खंदनो चालू करीन।काम
बडो जोरलका चलत होतो।पुरो जंगल का प्राणी आपलो आपलो काम मन लगायके करत होता।जेला जेव
काम देयेव गयो होतो उ काम मन लगायके करत होता।कोनी माती खंद कोनी बाहेर लीजायके फेक।असो
करता करता सबला जुनो तरा की पायरी दिसन बसी।अना झील्यान बी लग गयी।पुरो तरा की माती
तरा को आस पास फेकीन त मस्त पार बी बन गयी।तरामा पाणी बी जमा होन बसेव।
बंदर सामने आयेव अना सबको काम की तारीफ करीस।खंद गंद के तरा को पाणी डवला भय
गयेव होतो।बंदर कवन बसेव ,"आता सबजन घडीभर तरा को पार परा
बस जाव ,पयले तरा को पाणी शांत रव्हन देव छन्नायेव परा सब आपापली
तहान बुझावो"। पाणी देखके सब बहुत खुश भय गया होता।घडीभर बसेव परा बंदर न पार
परा झाड लगावन सांगीस।
सबन
बंदर को कवनो मानीन अना पार परा मस्त सावली देनेवाला झाड लगाईन।अना आपली आपली तहान
पाणी छन्नो भयेव परा भगाईन। सबन बुजूर्ग बंदर को आभार मानीन।
बोधः-बुढो
व्यक्ती को अनुभव बहुत रव्हसे।म्हणून बुढा बडबड करसे म्हणून उनको बात परा दुर्लक्ष
करे नही पायजे।
✍सौ.वर्षा
पटले रहांगडाले
बिरसी आमगांव
***********************************************************
10. तेनालीरामन अना लाल मोर
********************************
एक रोज की बात आय की राजा कृष्णदेवराय को दरबार मा एक लालची पंडित न
राजा को समक्ष लाल वान की विचित्र मोर पेश करिश। तब राजा न कहिस की मी न अज वरि असो लाल विचित्र मोर कभीच नहीं देखी सेव।
तबच दरबार का सप्पा दरबारी गिन भी असोच कहवन लगया। तब लालची पंडित न राजा लक कहिस की
यो नायब पक्षी उपहार मा स्वीकार कर लेव, त राजा न पंडित ला मोर
को दाम पूछिस.
पंडित कहवन लगयो राजा साहेब यो विचित्र मोर
मोरा सेवक हिन् ला मध्यदेश को जंगल मा खोज करयो पर मिली से।...
असो पंडित को कह्यो पर तेनालीरामन न बिचार करिस की जंगल मा एतरो नाजुक,नायब पक्षी ला त दूसरा जनावर भी मार
सिकत होता।
इ त राजा पंडित लक पूछ सेत की यो नायब पक्षी
लाई मि तुम्हाला केतरो इनाम देऊ सांगो। त पंडित कसे की येन लाल मोर लाई मी न १०० सोनो को सिक्का खर्ची
सेव, त तुम्ही एक सौ एक सिक्का मोला दे देव। त ब तेनालीरामन
न राजा ला कहिस की पंडित ला १०१ सिक्का देन को पाहिले तुम्ही मोला थोड़ो रोज की मोहलत
देव त मि असा नायाब लाल मोर ढूढ़ कन आनु। त राजा न तेनालीरामन न पंद्रह रोज को समय दे
देईस।
तेनालीरामन मध्यदेश नहीं गयो, वोना आपरी सूझ-बुझ
लक आपरा भेदी गिनला गांव मा पंडित को मोर ला लाल रोंगन करन वाला कारीगर ला धुंडन लायी
धाडिस न उनला बुलायकर कहिस की मि तुमाला सजा नहीं देऊ, पर तुम्ही
अखिन दस मोर गिनला लाल रोंगन करके देव।
तेनालीरामन न पंद्रह रोज को बाद मा राजा जवर दस लाल रंग का तसाच सुन्दर
मोर लीजाईस। त राजा खुस भय गयो न तेनालीरामन ला एक हजार एक सोनो को सिक्का देन लायी
आपरा सेवक ला सांगिस। तबच तेनालीरामन न कहिस की महाराज लाल मोर गिनकी रकम एतरी मोठी
नहाय। त राजा न चकित होयकर पूछिस की इनकी रकम केतरि से। तबा तेनालीरामन न कहिस की इनला
लाल रोंगन करन साती लाल रंग, एक मटका पानी न कारीगर
साती एक सोनो को सिक्का कीमत से. तब राजा लालची पंडित लक बहुत नाराज भया न वोला सजा
देवन की बात कहिस। एको पर तेनालीरामन न कहिस
की एकोमा चतुर पंडित की काई गलती नहाय, प्रसिद्ध होवन की चाह
को कारण तुम्ही न योव आसानी लक मान लियात की एक लाल मोर भी होय सिक से।
लगत बेरा लक असो धन बेकार की समाइन पर खर्च होय रही से एको लक साजरो से की
तुमरी प्रजा समृद्ध होय. न येन कारीगर ला काई इनाम देवो जाय अखिन पंडित ला माफ़ी दे
देव। तब राजा ल भी आपरी गलती को अहसास भयो न वोना पंडित ल भी समझाईस देयकर माफ़ी देय
देईस.
✍बिंदु
बिसेन
नागपुर
***********************************************************
11. नापास घोड्या
*************************
रामु काकाको बंड्या ९वी मा नापास भयेव. नववीमा नापास होनेवालो यव एकटोच
टुरा होतो. बंड्या तसो बंडच होतो. नववीवरी वोला काही कवननकी कोनकी हिम्मत नोहती. बंड्या
की दादागिरी बहुत चलत होती. आठवीवरी कोनीच नापास भया नोहता. बंड्या नववीमा नापास भयोव
या खबर इतन-उतन फैल गयी. रामुको बंड्या नापास भयेव, रामुको बंड्या नापास भयेव सब जन धडी धडीपर, बेहरपर ना
दुध डेअरीपर खुले आम बातचीत करन बस्या. यन कारणलका बंड्या टुरुपोटुक् संगमा रवत नोहतो,
एकटो एकटोच रवत होतो. वकी दादागिरी पुरी खतम भयी होती. बंड्या कोनीलाच
काही कवत नोहतो. पहले पहले बंड्यापर काहीच असर नही पडेव पन सब टुरु पोटु वला नापास
घोड्या, नापास घोड्या मनुन चिडावत होता. यन कारणलका बंड्या मनमाने
चिडत होतो. बंड्या चोयेव मनजे दुरलका कोनीबी नापास घोड्या रे, मनुन चिडावत होता. बंड्याक् मनपरा बहुत असर भयोव, आब्
गावमाच नही रवनको असो बिचार बंड्यान् करीस.
बंड्यान् आपल् मायलाच सांगीस (बाकी कोनीलाच
नही सांगीस) ना आपल् मामाजीक् गाव् गयेव.
बंड्याको मामभाई सोनु हुशार होतो वु नववीमा गयेव होतो. बंड्यान मामाजीला
कयीस का उनारोक् सुट्टीभर तुमरच गाव रहु. मी नापास भयी सेव. मामाजी मोला साजरो नही
लग्. मी साेनु संग बहुत अभ्यास करु. भास्याकी अभ्यासक् बाऱ्यामा रुची देखस्यान मामाजी
खुश भया. तसा वका मामाजी समझदार होता. गुरुजी बी
होता. मामाजीन् कहीस का, देखो भास्याजी तुमी
साजरो अभ्यास करो, काही समस्या रहे त् मोला सांगो. बंड्यान् मामाजीला
९वी की नवनीत की गाईड लेयकन आननला सांगीस, मामाजीन् दुसरच दिवस
गाईड आनकन देईन. बंड्या अना सोनू एकाग्रता लका अभ्यास करन बस्या. नही समजेवत् गाईड
मालक देखत होता.
अडीच महिनामा रात को दिवस करस्यानी
दुय जनन् नववीको पुरो अभ्यास कर टाकीन. शाळा सुरु भयी बंड्या पाच सय दिवस शाळामा गयोवच
नही, पन मामाजीन समजायीस त बंडु मानेव. मामाजीला बंडू (बंड्या)
पर पुरो भरोसा होतो. मामाजीन् बंडुला सांगीस का भास्या तुमरसारखो जीद्दी टुरा मी नही
देखेव. असोच साजरो अभ्यास करो. तुमरो पहिलो नहीत् दुसरो नंबर आय सिकसे. बंड्या शाळामा गयोव वला टुरु नापास घोड्या मनुन
चिडावत होता, पन आब बंड्या उगोमुगोच रवत होतो. आपल् अभ्यास मा
तल्लीन रवत होतो. शाळाला सुट्टी भयी का कोनी चिडायत मनुन सबदुन पहिलेच घर जानला निकलत
होतो. बंड्या घर बी जास्त बोलत नोहतो. बंड्याक मामाजीन् सबला सांग देई होतीस का बंडू
ला काहीच कवनको नही.
बंड्या गुरुजीसंग बी जास्त
बोलत नोहतो. गुरुजीनबी बंड्याला टार्गेट बनायी होतीन पन वु काहीच कवत नोहतो. काही गुरुजीत्
कवत का यन् साल् बी बंड्या नववीमाच रहे. बंड्या
मनपर लेत नोहतो. एक महिना भयेव. पहिली घटक चाचणी भयी. परीक्षा का पेपर तपासकन टुरुइनला
देखनसाती भेट्या. सब जन दात मा उंगली दाबकन चुपचाप रह्या. सब पेपर मा बंड्याला सबदुन
ज्यादा मार्क भेट्या होता. सबकी बोलतीच बंद भयी होती. दुसर् घटक चाचणी मा बी बंड्या
अव्वल च रहेव.
सबजन
आब बंड्या ला बंडूभाऊ कवन बस्या. नववी ना दसवीक् परीक्षा मा बंडूको पहिलोच नंबर आयेव
होतो. बंडूला नापास घोड्या कवनेवाला काही जनत् दसवीमा खुदच नापास घोड्या भया होता.
✍डॉ.
शेखराम परसराम येळेकर १/९/२०२०
**********************************************************
12. पैकन
*****************
पाड्डीबांध
निवासी लगभग २६ साल को पैकन, हर साल वाणी अवंदा भी नवत्री मा
आठवी बार सुसरो को गावं गयव. पैकन पुरो गावठी,
अनपढ, अना एक नंबर को भूलक्कड़, पुराणो विचार को अना कमदिमाख- अडबैल्याच कय लेव. वकी बायको सकू बी तशीच सेम
टू सेम. दिवसबुळता सुसरो को घरं पोहोचेव म्हणून सासूनं अर्जेंटमा स्वादिष्ट खिचळी बनाईस
अना वोकोपर कार्हवळ गाय को घिव. पैकन नं जीवन मा एवढी स्वादिष्ट खिचळी पायली बार खाईस.
वला तं यनं मेन्यू को नाव बी मालूम नोहोतो कारण वका अती गरिब माय बाप वको बचपन माच
मर गया तं वला मावशी नं पालीस. अना दवनिवाड़ा को एक महाजननं आपली कम अकल हेकनी टूरी
तीन कुळौकी जमीन वालो पैकन ला देइस. सासू नं जवाई ला खिचळी आवळी का मून विचारिस तं
यन हो कईस. घरं सकुला खिचळी बनावनला सांगू असो पक्को विचार पैकननं करीस अना भुलक्कळ
आदत को कारण वन्ं खिचळी को मन मा जाप सुरू ठेइस. पर सकाळी उठक्यारी बिसर गयव. जेवणखान
को बाद मा आपलो गावं जानसाठी निकलेव तं एकगन सासू ला विचारिस तं सासू नं सांगिस खिचळी.
यव मनमा जपन लगेव 'खिचळी खिचळी.....' सुसरो
ला रामराम कवन को बरा अनखी बिसरेव. खळबंधा तरा को पोटमालं पैदल चलता चलता खुप आठवण
करीस तबं बळो मुस्किललं याद आयी 'खाचळी'. आता सुरू भयव खाचळी को जप.
एक टुरा खेत
मा तोर अना कठान परकी चिळीया मनजे पक्षी भगावत होतो. वनं पैकन को खाचळी सब्द आयकिस
अना वको पर बफरेव, "नालायक, तोला समजं
नई मी भगावूसू अना तू उलटो खायचिळी कसेस"? बह्या पैकननं
बिचारिस, "मंग मी का कहू?" तं
टुरानं सांगिस ऊळ चिळी कव तसो पैकन को जप सुरू भयव - ऊळ चिळी ऊळ चिळी.
पुळ्हो तरा मा भारत्या ढिवर फासा मंडायकन पक्षी (चिळी) धरत होतो. ओनं
पैकनको ऊळचिळी सब्द आयकिस ना उबी वको पर खेकायेव, "तुले समजे नाई? मी चिळी धरून रायलू ना तू त्याइले उळ
मनतंस?" "मंग मी का मनू तं गा?" पैकन. भारत्या बोलेव, "रोजचे दोन च्यार रोजचे दोन
च्यार असा मन." अना तसो पैकन को जप सुरू भयेव-
रोजचे दोन च्यार रोजचे दोन च्यार. गाव को सिव मा एक मयत की बरात तरा
कन आवत होती. काही जननं पैकनका सब्द आयकीन अना सापकू पटीलनं त्ं वला दुय चार लगाईन.
सापकू पटील गुस्सा लक, "बेसरम, रोज दुय चार मरनला सांगंसेस?" मार खायक्यान पैकनको
गुस्सा टिकोरी पर चढेव. पक्वान को नाव भुल गयेव.
घरं पोहोचनो
परा बायको को मंगं तगादा, "अवं सकू, राती तोरो माय नं बनाई होतिस वा बनाव." सकू को प्रश्न, "का वं?" "वाच वो ज्या बनाई होतिस, भात, दार, घिव अना...."
"अच्छा, दारभात?" सकू. पैकननं
खुप प्रयत्न करीस पर सकू ला नवरा का बनाव सांगंसे, काई समजतच
नोहोतो. बार बार या निसती खबर लेय रईसे ना बनाव्ं नई मनून पैकनको पारा अधिक चढेव. तसो
वोनं सकूला खुप मारिस.
एकच आळो,
पर दूसरो घर मा रवने वाली भिवरा बुळगी ला नई देखक्यार भयव मनून वा धाई,
अना सकूला दूर करीस. गुस्सा मा लाल भिवरा बुळगी पैकनपर खेकानी,
"कुत्रा बद्ध्या, भुलजो तू, ना मारजो येला? सिकेस नई तं रयेस अनारी. वकोमा यनं टूरीकी
का चुक? बेसरम, मार मारकन यनं टूरी की दानखिचळी
कर डाकेस?" पैकन को कान पर जसो 'दानखिचळी'
सब्द पळेव तस्सोच वू मनमा खुस होयकन चिल्लायेव, "अवो वाच भिवरा माय, वाचतं बनाव कसू येला परा या बनाव्ंच
नई.
" भिवरा बुळगी, "का बनवनला कसेस
रे बयताळ्या?" पैकन, "वाच वो,
आबं तूनं यकि मीनं का बनायेव कईस?" "दानखिचळी?" "हो, खिचळी,
बहोत बेरा को आठवत होतो परा काई याद नई आवंत होती."
भिवरा बुळगी ला यनं अनपढ टुरा को सामने नाइलाज लका दात चबायकन चुप रवन
को सिवा काई चारो नोहोतो.
सिख:
आपलो गलती की सजा दूसरो ला नही देये पायजे
✍डॉ.
प्रल्हाद रघुनाथ हरिणखेडे
उलवे, नवी मुंबई
मो. 9869993907
***********************************************************
13. जमीन का पैसा
****************************
कांताबाई का
दुय टुरा होता. राजेश ना दिनेश. दुही भाई इंजिनिअर होता. राजेश मुंबई मा ना दिनेश बैंगलोर
मा. वोक् पति की मृत्यु पांच साल पहले च भय गई होती. दुही टुरा आपल् परिवार सहित ड्युटी
पर रव्हत होता. कांताबाई एकटीच गाव मा रव्हत होती. टुरा वोला चल कव्हत पर वा जात नोहोती.
जमीन अधिया देय देत होती. कामवाली बाई होती वा घर की साफ सफाई, बर्तन ना कपडा करत होती. लहान टुरा दिनेश साल मा दुय तीन बेरा गाव आयस्यार
देखभाल करस्यार जात होतो पर मोठो टुरा काही काही बहाणा करके दुय दुय साल नही आवत होतो.
कांताबाई ला वोकी बहुत याद आवत होती.
एक बार दिनेश न् राजेश ला फोन करीस
की माय न् दुय एकर जागा बीस लाख मा बीक देईस. राजेश न् या बात आपल् पत्नी ला सांगीस.
पत्नी क् मन मा पैसा को लालच आय गयेव. वोन् राजेश ला तुरत् गाव जानसाती तयार करीस.
राजेश न तत्काल मा गाडी को रिझर्वेशन करीस. अना वु दुय दिवस बाद परिवार सहित गाव आयेव.
राती जेवण क् बेरा राजेश न् जमीन की
चर्चा काहाळीस. जमीन कोणला ना कायला बिकीस मून मायला खबर लेईस. माय न् कहीस वोन् जमीन
क् भरोस लका त् मोरो पूरो खर्च चलसे मी वोला कायला बिकू. राजेश कव्हन लगेव मंग दिनेश
न मोला कायला सांगीस की माय न जमीन बिकीस मून.माय कव्हन बसी तू दुय साल पासून आयो नोहोतोस.
मोला सबकी याद आय गई होती. साध् फोन न तू आयो नही रवतोस. मून मीन् दिनेश ला जमीन बिकन
की बात सांगनला सांगेव होतो. माय की बात आयकस्यार राजेश ना वोक् घरवाली को चेहरा देखन
लायक होतो.
बोध - येन जमानो मा रिश्ता नाता दून पैसा मोठो भय
गयी से.
✍️ चिरंजीव
बिसेन
परमात्मा एक नगर, गोंदिया
***********************************************************
पोवार इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष द्वारा दि.०१.०९.२०२० मंगलवार ला
आयोजित पोवारी बोधकथा भाग १३ वो को निकाल.
पायलो क्रमांक
श्री. सी. एच. पटले
श्री. गुलाब बिसेन
प्रा.डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे
सौ. बिंदु बिसेन
दुसरो क्रमांक
प्रा.डॉ. शेखराम येळेकर
श्री. डी.पी. रहांगडाले
सौ.छाया सुरेंद्र पारधी
श्री.मुकुंद रहांगडाले
तिसरो क्रमांक
श्री. वाय. सी. चौधरी
श्री. चिरंजीव बिसेन
सौ. वर्षा रहांगडाले
आदरणीय सब लेखक /कवि/कवियत्री/इतिहास विचारक व सन्मानित सदस्य
सबला सादर प्रणाम पोवारी साहित्य निर्माण साठी आपरी ज्ञान संजीवनी लेखनी लक अप्रतिम
बोधकथा का दर्शन करायात जी सबला बहुत बहुत बधाई सबको अभिनंदन l
आयोजक/परीक्षक
प्रा.डॉ.हरगोविंद टेंभरे
मो.९६७३१७८४२४
***********************************************************
No comments:
Post a Comment