Friday, October 9, 2020

क्षत्रिय पोवार(पंवार) राजवंश : आमरो गौरवशाली इतिहास

 क्षत्रिय पोवार(पंवार) राजवंश : आमरो गौरवशाली इतिहास


या कहानी एक असो वंश की आय जेन वंशमा महान, महान राजा जनम्या। येन  महान वंश को नाव से परमार वंश. येन वंश की प्रसिद्धि येतरी से की येन वंश को राजाइनला आमी देवतातुल्य मान सेजन। पौराणिक कथाइनमा येन महान वंश की उत्पत्ति को वर्णन मिल से। गुरु वशिष्ठ न येन धरतीला असुरोको अत्याचार लका बचावन साती आबू पर्वत पर एक यज्ञ करीन। यज्ञमा लका चार महान क्षत्रिय वंश को जन्म भयेव। चार वंश मा राजा परमार होता जेन येन धरतीला पापमुक्त करिस। इनको विस्तार राजपूताना पासून मालवावरी होत गयेव। 

राजा सियाग, राजा उपेंद्र, राजा मूंजदेव, राजा भोज देव, राजा उदयादित्य, राजा लक्ष्मणदेव, राजा जगदेव पंवार, राजा नरवर्मनदेव असा महान राजा भया येन वंश मा। जिनको शासनकाल मा पृथ्वी पर सुख शांति येतरी होती की "पृथ्वी की शोभा सिर्फ पोवार लक से" असो कहेव जात होतो। येन वंश की ख्याति दुरदुर वरी होती। येन वंश न जेतरो जनकल्याण को कार्य करिस ओतरोच  आपलो वंश को मान बढ़ायकर सनातनी धर्म को पुनरुत्थान करीस। राजा विक्रमादित्य का वंशज राजा भोजदेव न चारही धाम का जेतरा भी मंदिर सेती उनको जीर्णोद्धार करीस। राजा विक्रमादित्य को शासन येन धरती को सर्वश्रेष्ठ शासन कहेव जासे। राजा विक्रमादित्य न्याय की मूर्ति होता। 

विक्रमादित्य को शासन पूरो एशिया मा फैलेव होतो । इनको शासन को प्रभाव अाफ्रीका ना  यूरोपवरी होतो। वय न्यायप्रिय राजा  होता। विक्रमादित्य आपलो बत्तीस पुतली को सिहासन पर बस कर न्याय करत होता। अना पृथ्वी पर को अन्याय, दुख ,पाप को नाश करिन । असाच उनका वंशज राजा भोज,राजा मुंज, येतरा शक्तिशाली राजा होता की उनको सारखा दूसरा राजा भयाच नही।उनको जनकल्याण को कार्यकी छाप अज भी चोय रही से। मोठा मोठा तरा ,सड़क मंदिर पाठशाला असा लोक कल्याण का कार्य करिन।अज भी उनका वंशज देश को कोना कोना मा सेती।

अठरावी सदीमा छत्तीस कुल का पोवार, आमरा पूर्वज मालवा लक आयकर नगरधन मा बस्या। अना मराठा संग उनको युद्ध मा भागीदारी करीन।शोधकर्ता कसेत की कटक को युद्ध आमरो पूर्वजइनको नेतृत्व मा लढ़ेव गयेव। वय मोठो मोठो किल्ला का किलेदार होता। मराठा शासन मा वैनगंगा को क्षेत्र आमरो पूर्वजइनला भेटस्वरूप मिलेव होतो।

   गोंदिया,भंडारा ,सिवनी, बालाघाट येन चार जिला मा छत्तीस कुल का पोवार बस गया। उनंन वैनगंगा को पावन धरती ला आपलो खून पसीना लक पावन अना उपजाऊ कर देइन। इनकी बोली पोवारी से। उतन का राजपूताना का संस्कार ना इतन का मराठा का संस्कार,दुही क्षत्रिय संस्कार को मेल अजको आमरो पोवार भाईइनमा दिससे। आमरा पोवार दूरलकच ओरखु आवसेत। वय आपलो मेहनत , लगन साती ओरख्या जासेत। अज खेती संग शिक्षा को कार्य लक आपली उन्नती करीन, अना वंश को नाव बढ़ाइन । अना गर्व लका कसेती ,आमी राजा भोज को वंश का आजन।आमी मालवा लका इतन आया, नगरधनल वैनगंगा को क्षेत्र मा बसकर क्षत्रिय वंश को नाव बढ़ाया।

लेख : श्री ऋषि बिसेन, 
विशेष सहयोग : सौ छाया सुरेंद्र पारधी 


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