दशहरा / विजयादशमी
`दश’ को अर्थ से दस अना हरा मंजे हार गयेव, पराजित भयेव । आश्विन शुक्ल दशमीकी तिथिपर दशहरा मनाव सेती । दसरा को पयले नव दिवस नवरात्री मा दस दिशा देवी माता की शक्ति लक आवेशित होसेती । दशमीकी तिथिपर सब दिशा देवी माता को नियंत्रण मा रवसेती।मंजे दस दिशाओं पर विजय प्राप्त होसे । मुन येला `दशहरा’ कसेती । दशमी को दिन विजयप्राप्ति होनको कारण येन दिनला `विजयादशमी’ भी कवसेती । विजयादशमी साढेतीन मुहूर्त मा लक एक से । येन दिन कोनतो भी कर्म शुभफलदायी होसे।
दसरा को इतिहास
भगवान श्रीराम का पूर्वज अयोध्या को राजा रघुन विश्वजीत यज्ञ करीस । सब संपत्ति दान करके वय एक पर्णकुटी मा रवन लग्या । वहां कौत्स नावको एक ब्राह्मणपुत्र आयेव । उननं राजा रघुला सांगीस कि, ओला अापलो गुरुला गुरुदक्षिणा देन साती १४ करोड स्वर्ण मुद्राओंकी आवश्यकता से । तब राजा रघु न कुबेरपर आक्रमण करन की तैयारी करिस । कुबेर राजा रघु को शरण मा आया अना उनं अश्मंतक मंजे कोविदार मंजे कचनार अर्थात ऑरकिड ट्री (Orchid Tree) मंजे शमी को वृक्षपर स्वर्णमुद्राकी वर्षा करीस । वाहन लक कौत्सन केवल १४ करोड स्वर्णमुद्रा धरीस । जे स्वर्णमुद्रा कौत्सन नहीं धरिस, वय राजा रघुन बांट देईस । तब पासून दसरा को दिन एकदूसरे ला सोनो को रूप मा शमी का पान देनकी प्रथा से।
त्रेतायुग मा प्रभु श्रीरामन दसरा को दिन बलशाली रावण को वध करिस, सीतामाताला असुरों को बंधन मा लक मुक्त करितिस । प्रभु श्रीराम न दसरा को दिनच रावण को वध करितीस । द्वापारयुग मा अज्ञातवास समाप्त होयेपर, पांडव न शक्तिपूजन कर शमी को झाड़ को पोखर मा ठेया आपला शस्त्र पुन: कहाड़ीन, वू भी दसरा को दिवस होतो।
विजयादशमी को महत्त्व
विजयादशमीको दिन सरस्वतीतत्त्व प्रथम सगुण अवस्था प्राप्त कर, बादमा सुप्तावस्थामा जासे मंजे अप्रगट अवस्था धारण कर से । मुन दशमीको दिवस सरस्वतीको पूजन अन विसर्जन करसेती ।
पोवार समाज ना दसरा
आमी छत्तीस कुलीन क्षत्रीय पोवार धार लक आयकर वैनगंगा माय को कोऱ्या मा बस गया। आमरी एक विशिष्ट संस्कृती से। दसरा को दिवस पासून आंगणमा सडा रांगोळी टाकसेती। सकारी उठकर सडा रांगोळी ना ओकोपर दस इंद्रिय का प्रतीक सेन का बडा बनावसेती। ओको परा घरका लग्यां दोडका, झुणकी, करुला का फुल लगावसेती। महातनि बेरा घर का लोखंड का सब सामान, गाडी अना घर का पीढो चौकी धोवसेती। संध्याकारी सडा रांगोळी करके दरवाजा पर आंबा को पान की तोरण बांधसेती। मयरी अन कोचई को पाना की बड़ी बनावसेती।
पूजा साती चवरी जवर मयरी की हांडी ठेवसेत। ओको पर केरा को पान ला बाघ को दोरी लक बांधसेती। ओको पर कोचई को पाना की पांच बड़ी मंडावसेती। टिकास, पावडा साबर,इरा, पावसी ना अन्य लोखंड को सामान की पूजा काम्या शेंदुर ला तेल मा खालश्यानी सब सामान ला लगायकरा पूजा करसेती। मयरी को हांडी ला पांच टिकली चंदन ,कुकू, हरदी की लगावसेत। कापुर, अगरबत्ती लगायकर पांच घन परी लक मयरी काहड़सेती। पीठ का दस दिवा बनायकर आंगणमा को शेन को बड़ा की पूजा करी जासे। बादमा एकमेकला शमी का पाना सोनों को प्रतीक मा देयकर सबकी मंगल कामना करके पाय लगसेती। सब घरमा जेवन करसेती। यहां पयले एक बात को विशेष ध्यान ठेयेव जात होतो की कोनी सितारों पानी बाहर नहीं फेकत होता । चूरू लेनको बाद सब सितारों पानी गड्ढा करकर घरमाच गड्ढा मा टाकत होता। पोवार समाज की एक विशेषता से की मयरी दूसरों समाज मा दसरा को दिवस नहीं बनावती, अना शेन का दस बड़ा भी!!!
✍️सौ छाया सुरेंद्र पारधी
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