परीराणी
परीराणी काल मोरो सपना मा आई
पंखपरा बसके मी आकाश मा गई
पंख होता परीका नाजूक अना सुंदर
टुनकन ऊडी मारके मी बसी उनको अंदर।।
आकाश की सैर करके मन भयेव प्रशन्न
पीपरमेंट की गोली देखके जीव भयेव सुन्न।।
सुंदर असो बगीचा मा परीन उतराईस
मीठा मीठा फल ताजा फल खानला देईस।।
रंगरंगका फुल होता,सुंदर असो झाडपर
डोरा फाळके देखत रही फुलकरा घडीभर।।
ताजी हवा,ताजो पाणी नोहोतो वहा प्रदूषण
एकदम मोहक ,ताजोतवानो तेजमय गुरूदर्शन।।
मनभरेव तरी चीत काही दावत नोहोतो
सौंदर्य परिलोक को बडो मनभावन होतो।।
खुब खेलेव परिसंगमा,लंगडी अना टीकटीक रंग
शांतीप्रिय, आल्हाददायक ,सुहानो होतो ढंग।।
पाणी पळेव चेहरापर मोरो तसी जाग आई
इश्कुल की टाईम भयी,उठ आता बोंबलत होती आई।।
उठके देखेव घडीमा त बज्या होता अकरा
समज गयी मी तब फक्त सपना होता मोरा।।
सौ.वर्षा पटले रहांगडाले
बिरसी (आमगांव)
जि.गोंदिया
दिं.२४/०९/२०२०
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