येव कंचन काया माटी से, अवगुन की येव धाम से
भव तरन को नाम ज्योतिर्मय,जय जय सीताराम से ।।
राम चरन को पड़्यो भर ले
गोटा ले नारी भयी अहल्या
राम ला पुत्र रुप मा पायके
धन्य धन्य हुयि माय कौशल्या ।।
एक नाम से जग मा सुंदर , बाकी सकल अनाम से
भव तरन को नाम ज्योतिर्मय,जय जय सीताराम से ।।
सीताराम की भयी किरपा जब
जटायु को भाग जग गईन
मृग मारिच ला मिली सतगति
ओको सकल पाप कट गईन ।।
जपो नाम तुम्हीं सीताराम को, येव सबले पावन काम से
भव तरन को नाम ज्योतिर्मय, जय जय सीताराम से ।।
मन मन्दिर साकेत बनाव जी
बसाव जी मूरत सीता राम
जग को तारणहार नाम येव
बन्हें तुम्हरो बिग्ड़्यो काम ।।
सीताराम,भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, युग -युग को परिणाम से
भव तरन को नाम ज्योतिर्मय,जय- जय सीताराम से ।।
राम जसो रखो शुध्द आचरण
माता सिया जसी मर्यादा
मान बड्हे तबच कुल को
समाज मा मान मिल्हे जादा ।।
विक्रम,देव ,भोज पूजिन सब , मोरो बारम्बार प्रनाम से
भव तरन को नाम ज्योतिर्मय,जय- जय सीताराम से ।।
रचनाकार- पंकज टेम्भरे 'जुगनू'
बालाघाट,मध्य प्रदेश
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