Tuesday, December 29, 2020

चना काव्य स्पर्धा १७

चना

एक एक घेंगरा मा
दुय दुय दाना
खेत मा फलिसे
हिरवो हिरवो चना

चना को झाड़ पर
चढू बार बार
फांदिपर बसकर
संभालू आपलो भार

खिसाभर घेंगरा
मचर मचर खाऊ
कोयल सारखो
कुहू कुहू गाऊ

हिरवो मिटू बनकर
मनचाहा खाऊ
चना को पानपर को
खारट पानी पीऊ

वरी वरी घेंगरा मा
मन मोरो बसे
हिरवो मिटू बनकर
दिल मोरो हसे

शेषराव येळेकर


     हंगाम

कनारमा चना पिड़ी से
 हुडाकं लाईक भयी से।।

घेंगरा तोड़ो खिसा भरो
रस्तालं खावो पोट भरो।।

हिरवं सब फांदिपरा
टरटरा फ-या घेंगरा ।।

मिट्टू बनो चना सोलो
खावोना मिठी बोली बोलो।।

हंगाममा सब मिळसे 
खायलं आत्मा तृप्त होसे।।

""जय राजा भोज जय माँ गड़काली""
वाय सी चौधरी
गोंदिया

                बाल काव्य स्पर्धा क्र. 17
तारीख :-21/12/2020       रोज :-सोमवार 
                   चना 
                          
गावखारी की दुय मोठी बांधी ओन्ज्या चना पे-या
खुवाळको पाणी पळेव ओकलक लटालट फ-या

खांदन खांदी  घेंगरा ना एकेकमा दुयदुय दाना
पळगयी ओद ना लगी तपन  पिळ गयेव्‌ चना

कभी लगसे मिठ्‌ठु बनकर चनाक रंगमा रंगजावु
सुंदरसी चोच लका घेंगरा फोळफोळकर खाऊ

हिरवो हिरवो  चना खानला लगसे खुप मस्त
दस रूपियाकी जुळी घळीभरमा भयीं फस्त

चना खाओ सेहत बनाओ भलाचंगा बनजाओ
असो घेंगरा  मोठो गुणी मिल बाटकर  खाओ
                       
डी पी राहांगडाले
     गोंदिया

चना को झाड

देखो येव झाड मजेदार
जहा चंघसेत माणसं महान
चना उभो खट्ट रवसे खेतमा
संगी साथी ओका लहान

पगडी ओकी फुल गुलाबी 
दिनभर तपनमा झुरत रवसे
देखो भयेव घाम चराचरो
खारटपणा ओकोमा आवसे

फुलेव गुलाबी पगडी बांधकर
नवरदेवकी जसी बारात सजी 
नाचसेत सब हवा को तालपर
जवरच उचकती उम्बई गहू की

मिट्टू होऱ्या  ढुकढूक देखत
बिन बुलाया ये बराती आती
नजर से घरमालककी उनपर
गोफन लक सुटसे गजकुंडी

हिरवा हिरवा घेंगरा लग्या
चुडू मुडू दुयदुय दाना बस्या
चोर को भेव लका सबजन
हिरवो हिरवो पाना मा लप्या

आब सब चना भया बुढ्ढा 
दाढी मिशी सकट पिक्या
जेतरा चनाको झाडपर चढ्या
सब सरसर खाल्या उतऱ्या

सौ छाया सुरेंद्र पारधी

        चना को झाड

चना पेरीस पटील नं गावखारी पर
नांगरला हरी ना दुय बैल जुंपकर

चनाला आया कोवरा लुसलूसा डीरा
वोकी भाजी बनाईस मायनं सकाळबेरा
बारीक लंबूटा पान सेत हिरवटसर
गुलाबी फुल को सुंदर आयीसें बहर

लट्टालोंब डारीपूट फरी सें चना
एक एक घेंगरा मा दुय दुय दाना
कास्तकार की देखरेख सें वोकोपर
पाखरू खेदाडंसें गोफण फिरायरकर

मन ललचायेव मोरो चना देखस्यांना
मी ना बंटी नं उपडकर आण्या चना
खेतवालो बोंबलत रहेव दिवसभर
हुड्डा भुज्या ना आमी खाया पोटभर

लाडू बनावंसे माय चना को दार का
सेहतसाती भिज्या चना खासु रोजका
शेव घेंगरी लगसेत स्वादिष्ट रुचकर
चुन भी खासु मी सारप सारप कर

काहे कसेत चंघू नोको चनाको झाडपर
हात पाय जासेत चंघने वालोका मुडकर
गुरुजी नं अर्थ सांगीस मोला समजायकर 
चढनं नही जीवनमा कभी खोटो स्तुतीपर


                                   शारदा चौधरी
                                       भंडारा


दि. २१.१२.२०२० (सोम्मार)
 चना/हरभरा

(चाल: नील गगन मे उड़ते बादल...)

चार डोबमा पे-या हरभरा आयेव टोंघरा टोंघरा ॥
लटूराय गया फांदनफांदी टंबूल पिड्या घेंगरा ॥
धान कटेव पर ओली जमीनमा नांगरणी चरचरा
लटूराय गया फांदनफांदी टंबूल पिड्या घेंगरा ॥धृ॥

काहीमा एक काहीमा दुय दाणा जसो बेनिमा नगिना
डोरामा भ-या पिळ्या घेंगरा ललचाय गयीसे रसना
जाडो तनाको हर डुफ्फाला दस बारा डाठरा ॥१॥

फुलपराच निंबोळी निमपत्ता को अर्क फवा-या
प्रतिबंध इल्ली बुरसीको फिफली किडा निस्त-या
बुजगावनो संग गोफनलका हो-याको मिटेव खतरा ॥२॥

हावरी चिज से हिरवो हरभरा उंदीर चोर अना मिठ्ठू
रातदिवसकी जागली करके पूरी फ़सल मी पिटू
चना जुडी खानला बजारमा लोक भया बावरा ॥३॥

चनाको हिवरो डिराकी भाजी आरण वा तुरपोळी
डुंगा डुंगा लक सुद्दी बिकासे पोताभर गाठोळी
चनाकी खारी जैविक खत उपजाऊ बनाये धरा ॥४॥

हिवरो टरटरो हरभराको दिसतल्ं से हुड्डा
सातकाम छोड़के खानला धाया बाल जवान बुढ्ढा
बाधक नही रेचक से चनाको नही कोई खतरा ॥५॥

चनादालकी भाजी अना पिसके बने पुरनरोटी
बेसनको चून भज्या घेंगरी चकली अना चटपटी
कोचईकी बडीमाको मसाला अना चवदार फरा ॥६॥

चनाको छोला चना फुटाणा चना गरम पापडी
परा सरेव पर कळ्हन चनाको बेसन की पाटोळी
नवमीला गड़कालिकाला अर्पण चना मुरमुरा ॥७॥

डॉ. प्रल्हाद रघुनाथ हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई 
मो. ९८६९९९३९०७

No comments:

Post a Comment

कृष्ण अना गोपी

मी बी राधा बन जाऊ बंसी बजय्या, रास रचय्या गोकुलको कन्हैया लाडको नटखट नंदलाल देखो माखनचोर नाव से यको!!१!! मधुर तोरो बंसीकी तान भू...