खुर्ची
चार पाय दुय हात खुर्ची मोरी प्यारी
बाप दादा की आठवन या बहूत हे न्यारी
खुर्ची लाकूड की विद्युत रोधक
शरीर उर्जा बचावने वाली साधक
खुर्ची पर बसता कंबर रवसे सिधी ताट
सुखदायक, आरामदायक ठेवसे पाठ
यन खुर्ची पर बसता बहूत मिलसे आराम
काम करनो मा तरतरी निंद होसे हराम
लाकूड की खुर्ची तोरा बहू उपकार
सबला आराम देनेवाली तू निराकार
शेषराव वासुदेव येलेकर
दि१५/०२/२१
लाकूड की खुर्ची
लाकुड को बनेव येको ठाचा
रव्हत होती बडी मजबुत
नव्हती ओतरी नरम
लेकिन बसन साती होती साबूत
घर घर की होती शान
रव्हत होती लानांग मोठांग
पावनाईन साती होती सोफा
परमानंट होती यकी याद की गाठ
देखेव फोटू मा यला मीन्
याद आयेव चवधरी नाना को घर
जाऊ लानपन मा पेपर बाचन
राजा घायी पाय ठेवु बसु ओको पर
खिल्ला पाटी की बनी रव्ह खुरची
बसु ओको पर त् हल् जितन उतन
कभी कभी वहान खिल्ला निकल उपर
उठू खुरची पर लक त् पँट फाट टरकन
विरेंद्र (भिमु) कटरे
लकडा की कुर्ची
का सांगू भाऊ पहले
मोरो बहुत होतो थाट,
बैठक क् कमरा मा मी
दादाजी की देखत होती बाट.
दादाजी रोज मोरपरच
आयकर होता बसत,
सबपर नजर ठेवत ना
काम होता समझावत.
अजी ना काकाजी
बेंचपर होता बसत,
टुरू पोटू बसनसाती
चटई आनकर बिछावत.
पर आता दिवान ना सोफा
आय गई से बैठक मा,
मोरी हकालपट्टी भय गई
बेकार समझकर आंगन मा.
बडो बुरो लगसे आपली
अशी हालत देखकर,
रोवन की इच्छा होसे
पुराना दिन याद करकर.
पर आता आपलो दुखडा
सांगेवल् का फायदा,
चढतो सुरज बी ढल जासे
येवच जगको से कायदा.
- चिरंजीव बिसेन
गोंदिया.
खुरची/ खुर्ची
मोरो आईकि से देवा कंबर लचकी
फदीसा होसे सेनलक सरावनकी।
देवा दे ना मोला जादू की खुरची
जादू लक लगाय देऊ मी फरची।।
बाबूजी मोरा खेतमा दिनभर राबसेत
घामचरचरा थक्या खेतलक आवसेत।
जादूको खुरचीपरा बाबूजीला बसावतो
दिनभर को थकवा खिनभरमा जातो।।
जादू को खुरचीला अगर पंख रवता
मस्त मामाजिको गाव उड़कर जाता।
मामा मामी देखता मोला डोरा फाड़कर
माय अजीला लिजातो मी मेला देखन।।
इस्कुलमा सब खुरची देखकर होता दंग
बसनसाती उबड़ा उताना होता सब मंग।
गुरुजी भी भाव देता जसो राजकुमार
नहीं देता मोला कभी छडी को मार।।
असी मोरी खुरची रवती बडी गुणवान
चार पाय ओका बडा रवता दमदार।
दुय हाथलक करती सबको सुखीसंसार
खुशी बाटतो सबला होतो सबको कल्याण।।
सौ. छाया सुरेंद्र पारधी
सिहोरा
खुर्ची
दादाजी की खुर्ची होती बडी मस्त
चार पाय अन् दुय हात|
याच येकी वोळखअन् ऐकी ताकत|
सब घर मा एकच खुर्ची
बसत होता सब ब हिन - भाई आरी - पारी|
बदल ग ये व जमाना, बदल गयी खुर्ची|
सब घर मा चार - चार प्लास्टिक की खुर्ची|
भूल गया आम्ही वय आपला संस्कार,
आरी - पारी बसन का संस्कार|
बाट्टनो भूल गया दुःख - सुख आम्ही,
खुर्ची पर बसत होता त
अशो लगत होतो दादा जी को शहारा से|
जब ढे उ हात खुर्ची पर त
अशो लग दादाजी को हात मा हात से|
आता एक खुर्ची रय गी सत्ता को बजारमा
खीचा - खाची रय गई सत्ता को बजारमा|
पर मोरो दादाजी की खुर्ची होती अनोखी समर्पण,त्याग ,दुसरो की खुशी शिकवत होती|
चंद्रकुमार शरणागत बीरशी
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हिरो होंडा
खुरची/ कुरची
मोरो मास्तर नाना की या खुरची
शान होती पाटन कवेलु को घर की
नव्हती मोरो घरमा या खुरची
लेकिन शान होती मोरो नाना घरकी
हात तुटेव त् रिपेयर होय जात होती
पाय तुटेव पर इट पर भी उभी रव्हत होती
घर घर मा राज करत होती
बसन जाऊ त् शाहीपन दर्शावत होती
बालपन मा सिढी सारखो चंघत होतो
होती वा बडी बजनदार भारी
बसेव ओको पर त् लग घोडा स्वारी
बहूत काम की होती खुरची आमरी
आता सोफ़ा सेट को जमानो आयेव
लकड़ा को जाग स्टील को भयेव
देखारो मोठो टिकाऊपणा गयेव
असली माल गयेव कमसल आयेवं
देखु वोला मी आता, नही दिस कही
आता सोफा, प्लास्टिक की दुनिया रही
गाव भी आता भया मुक्त खुरची पायी
याद वा तब की आता फोटोमाच् रही
- सोनू भगत
खुर्ची
चार पायकी खुर्ची दिससे छान
आएव बीह्याई त ओकोच मान
जसा सुखी संसारका चार काम
धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष, परमधाम
खुर्ची परा बसो त एकदम ताठ
मंग नही दुखनकी तुमरी पाठ
खुर्ची पर बसो,आरामच आराम
दुय सेत हात उनको मोठो काम
हात ठेवो सिद्धा नही लग नस
खुर्ची कसे घळीभर मोर संग बस
खुर्ची पर बसो ना मान टिकाओ
शांति लका बसो ,आराम पाओ
वजन देख बसो नही लळखळे
जास्त वजन होए पटन्यारी मुळे
एक पाय मुळेव त भयीं लंगळी
बसनेवालोकी खिचनबसी तंगळी
एकमेककी तंगळी नोको खिचो
मिलकर चलो जादा नोको सोचो
सलोखालक रहोनोको खीचो टांग
समयला ओळखो ओकीचसे मांग
डी पी राहांगडाले
गोंदिया
[2/16, 6:31 AM] सौ छाया पारधी: चित्रकाव्य
दिनांक- 15.2.2021
नेता की खुर्ची
सब क्षेत्र मा अज,
से वा बहुत खास।
ओला मिळावन साठी,
सबला लगी से आस ॥
ओकोसाठी अज लोक,
झगड सेती खुप ।
कोनला रहे माहीत,
कसो रहे ओको रुप ॥
ओकोसाठी मानुष अज,
देसे खुप आश्वासन।
वा मिळताच मानुष कसो,
जासे सब बिसरशान ॥
वा जेको जवळ जासे,
ओकीच रवसे मजा।
ओको जीवपर मानुष,
अज होय जासे राजा ॥
वा रवत वरी सबला,
लग जासे मिर्ची ।
वा म्हणजे कोन त,
आय नेता की खुर्ची ।।
*- इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया (बडेगांव)*
कुरसी
दि. १५.०२.२०२१ (सोम्मार)
सिंहासन बत्तीसी
खूरची कहो या कुरसी
आय घरबार की शान
देवता पासना मानुस वरी
येकी किरती महान ||१||
मोठांग नहानांग ओसरी परा
लग्या लकडा का आसन
शोभं राज दरबार जसो
चलं घर को प्रशासन ||२||
आरामखुर्ची अथवा सादी
हर घर को रुबाब
मंग वा बदली सोफामा
खुरची बन गयी ख्वाब ||३||
बदलेव जमानोमा आया
चेयर मा बदलाव
प्लास्टिक फायबर लोहा टीन
नाना आकार अना भाव ||४||
थक हार कर घर आवो
बसो करो आराम
व्हीलचेअर पारना खुरची
चैन देन को काम ||५||
खुरची पर बसनो रव्हं
आसन प्राणायाम
धरती को इस्पर्श बिना
मिलं पूरो आराम ||६||
गुरू श्रोता राजा वरिष्ठ
पुढारी आफिसर
इनकी कुरसी माननीय
देवताइन की सर ||७||
एक दुय अना तीन चार
कुरसी गिनती बताय
एक टेका दुय हात अना
तीन पाटी चार पाय ||८||
चार पाय की खुरची
बैठक पेंदा पर
मृत्यू बाद सकोली समान
चार को खांदापर ||९||
निर्जीव खुरची रुबाबदार
दिसं से सजीव सरीख
घमंडी लालची ना बनो
देसे सबला सिख ||१०||
खुरची बनाये अभिमानी
लालची हवामा उडाय
या दूरदर्शी कर्मशील
वंदनीय भोजराय ||११||
आखरी मा सूनलो मोरी
बात एक एत्तीसी
कुरसी वंदनीय भोज की
सिंहासन बत्तीसी ||१२||
डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
खुर्ची
दुय हात चार पाय बिचमा बैठक साजरी
मोठागं दिससे खुर्ची शोभस्यारी
दादाजी रवत या पाहुणा पई
खुर्चीपर बसंसेत आयकर सप्पाई
येनं खुर्चीला सें मान चं भारी
लहान मोठोमा येकी लालच भरी
एक दिन शाळांमा गदरिंग लेईन
गोल बिचमा सारी खुर्ची ठेईन
संगीत बंद होयेपर बसजं बारीबारी
दिल खुश भयेव बक्षीस जितस्यारी
वर्गमा सें लाकूड की टेबलखुर्ची
वोकोपर बसं सेत आमरा गुरुजी
खुर्चीपर बसके देसेंत जानकारी
खुर्ची टेबल को नातो मोठो भारी
एक दिन सोचन बसेव मी घडीभर
कसो बस सकून जमीनपासून उचोपर
खुर्ची कवन बसी सें मोरी तयारी।
बसेव वोको गोदमा ईच्छा भयी पुरी
मोठो होयकर मी आदर्श गुरुजी बनून
खुर्चीपर बसके देशको भविष्य घडावून
नवनिर्मिती का गुण रहेत मोरोमा जरी
ठेऊन पुरानी चीज मी संभालस्यारी
शारदा चौधरी
भंडारा
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