सूर्य नारायण।उगलसे आग्।।
आता तरी जाग्।मानव तु,,,,।।
झाड़ तु काटेस्।बनेस् खुदगर्ज।।
मानवको फर्ज ।भुल् जासे,,,,,।।
मुका पशू पक्षी।काहा रे जायेती।।
कसा बचायेती। परिवार,,,,,,,।।।
आपलोला दुःख।आवसे सांगता।।
मुका ला बोलता।आव् नही,,,,,,।।
आपलो समान।समजो सबला।।
देखो समस्याला। सबकीच,,,,,।।
बच्चा साती देखो।मनमा झुरसे।।
सावली गा देसे। झाड़ पाना,,,,,।।
जंगल का झाड़।प्राणी को रक्षन।।
मानव तु जान्।प्राणी दुःख,,,,,,,।।
बचेती रे झाड़।बचे गा वनराज।।
लगावों गा रोज। एक झाड़,,,,,,।।
सांगसे गा रक्षा।करो काही दया।।
देहे माहामाया।सुख शांति,,,,,,।।
!!!!कवी!!!
कु रक्षा हिरदीलालजी ठाकरे
पोवार समाज एकता मंच परिवार
पृथ्वी
पृथ्वी आक्षाद्दित होती झाड लका
पृथ्वी को कोना कोना मा होती हरियाली
बाद मा जनमेव मनष्य नाव को प्राणी
वोको बाद मा श्रृष्टि की दशाच बदली
विकास को नाव पर तोडिस जंगल
मनुष्य न् नही करिस बिचार
तोडत् गयेव वु हिवरा हिवरा झाड
ग्लोबल वार्मिंग लका तापमान को भयो संचार
मानुस पायी प्रदुषन बढन लगेव धरती पर
फाटन लगेव ओझोन को स्तर
निलरहित किरन करन लगी तांडव
बिचार आयेव, आता कसो लगे अस्तर?
कागद, फर्निचर साती काटिन मोठा झाड
टकली असी भयी आमरी धरती
विकास यव् नव्होय, आय विनाश
मनुष्य को पाप लका बदली पृथ्वी की आकृती
हात करो आता पुढो मोरो बंधुओ
कविता रचन् की नाहाती आमला
एक कदम बढावनो सृष्टि को समृद्धी कन
बचाओ या सृष्टि, देव स्वच्छ वातावरन भविष्यला
विरेंद्र कटरे
प्रदूषण
देखो कसा बहुगुणी सब तरुवर
कटकर बिछ गया सेती धरतीपर।
भास्कर ओकसे आगगोला भयंकर
झुरमुराय गया पशुपक्षी अना नर।।
नदी रोकिस अना काटीस जंगल
बनाइस ऊंची ऊंची मोठी इमारत।
जहरीलो धुंगा निंगेव कारखानाको
फाट गई सुरक्षा की ओझोन परत।।
अतिनील किरण पहुची धरतीपर
त्वचा कॅन्सरको धोको बहुत बढेव।
गरमी लक सब करसेत त्राहिमाम
धरती को तापमान को पारा चढेव।।
देखो कसी माय की ममता निर्मळ
पिल्लु को बचावन साती जीवन।
पाना धरीस चोंचमा,साऊली करन
आब तरी दया मनमा देजो आवन।।
जन्मदिवसको अवसर पर हरसाल
लगावबिन, जगावबिन एक झाळ।
धरती होये समृद्ध हिरवी हिरवीगार
तबच रहे स्वस्थ नवो पिढीको काळ।।
सौ छाया सुरेंद्र पारधी
प्रकृति को विनाश
जंगल भय गई से साफ
कही बी नाहाय सावली,
बच्चाईन ला सावलीसाती
तोंड मा पान धरकर माऊली.
आदमी काट रही से झाड
वोला नाहाय भविष्य की चिंता,
झाड् इनकी करके कत्तल
रच रही से आपलीच चिता.
कट गया सेत सब झाड
उजाड भय गई से जंगल,
जंगल उजाड करस्यारी
नही होनको कभी मंगल.
मुहून जंगल तोड ला रोकनो ना
नवा झाड लगावनो से जरूरी,
नही त् भविष्य बहुत बिकट से
समझो निसर्ग की चेतावनी भारी.
सूरज की गर्मी होय जाहे असह्य
पिवनला नही मिलन को पानी,
यदि आदमी नही सुधरेव अना
करत् रहेव आपलीच मनमानी.
- चिरंजीव बिसेन
गोंदिया
पर्यावरण
घनदाट जंगल होतो, हीरवो हीरवो रान
जेला देखकर हरपत होती भुक तहान
सावलीमा आराम करत होता पशु पक्षी
आंबा की अमराई ना मोहुको मोह-यान //१//
चार,ना चारोळी टेंभरुन भी भेटत होता
शरीर ला पौष्टिक होता,चव न्यारी न्यारी
मोठ चवलक खानला भेट मस्त रानमेवा
आक्सीजन भेट ना बरसात पळ भारी //२//
पर माणुस क डोस्काला का भएवत
जंगल काटीस ना लगाईस कारखाना
उजाळ कर देईस जंगल, धरती सारी
आपलो बिंध से भलतोच तानाबाना //३//
बरसात मा आता बारीस आव नही
उन्हारो की तपन भी तपसे भरमार
अलगलग रंग की आवसेत बीमारी
ना जीवन सबको होसे मोठो बेजार //४//
मनून एक झाळ काटोत दस लगाओ
पर्यावरण राखण मदतभी होय मोठी
सुखी रहे जिवन,जगाओ देश प्रेम
झाळ जगाओ,पर्यावरण रक्षण साठी //५//
डी पी राहांगडाले
गोंदिया
टंगोलीको घाव
(अष्टाक्षरी काव्यलेखन)
नष्ट भयेव जंगल
खाय टंगोलीको घाव ।
मुर्ख मानुसला येन
आता देवच बचाव ।।1।।
भयी धरती गरम
ओक दिनकर आग ।
मर रह्या पशुप्राणी
देखो प्रकृतिको राग ।।2।।
पक्षी पान धर चोच
देसे पिलाला वु छाव ।
देखो मायको वात्सल्य
खुद लगायके दाव ।।3।।
बुध्दिमान मानुस की
आय विकृत करनी ।
मुका पशुपक्षी ईन्ला
आयी नसीब भरनी ।।4।।
झाड लगाओ सप्पाई
करो प्रकृति श्रृंगार ।
सांग गोवर्धन सब
करो जीवन उध्दार ।।5।।
इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया
मो. 9422832941
दि. 11 एप्रील 2021
धरती
माय आमरी धरती
वका् पुत्र जीव सारा
सप्पाइ झाड वस्त्रवका्
आब फाटसेत टराटरा।।
सुर्यकि आग झाडच झेलसेत
देसेत प्राणवायू सावली
आधार पशुपक्षीइनला
झाडयलकाच 'हरयाली'।।
धरतीमायको पुत्र मानव
से सबदुन श्रेष्ठ
वुच वस्त्रहरन करसे
बनेव आब भ्रष्ट।।
कसे मी विकासपुरुष
काइकाइ झाड फालतुका
फायदाकाच झाड ठेऊ खेतमा्
बाकिका् बिनकामका।।
एकतर्फो विकास भयोव पुत्रको
रोवसे माय धरती।
कसा होयेत हाल सबका
मिट्टिमा् मिल जाय् कीर्ती।।
बच्याकुच्या पुत्र मोरा
आयको मोरी बात
बचाओ सारा पेडपौधायला
नइत् होये घात।।
पालिकचंद बिसने
पक्षिनी
देखो गहिवर दाटेव पक्षिनिला
दुही नेत्रमा गंगा जमुना की धारा।
मरेव पड़ीसे सामने दिलको टुकड़ा
सूर्य नारायण करसे आगको मारा।।
नहीं सावली दिस कही यहांन
मोरो मैना ला लिजाऊ कहान।
मृतदेह सामने पड़ीसे नाहान
लीजाऊ इनला, कोनसो जहान।।
पानी नहीं, नही झाड़की सावली
तहानलका जीव जानकी से पारी।
स्वार्थ साती आमरो घर लूटिन
असोच रयेव त प्रलय आये भारी।।
कसो दुश्मन भयेव येव मनुष्य
रोज करसे झाड़ इनकी कत्तल।
धरतिको हिरवो सिंगार साजरो
हिसककर हाससे खूब बेक्कल।।
जसी पशू पक्षी की भई बेदस्या
झाड काटके नोको करू अवदस्या।
लगावो झाड ,करो धरणीला हिरवी
रहेती पशू पक्षी सावलिमा येको बस्या।।
- सोनू भगत
ऱ्हास प्रक्रूतीको
डोरा मा आसु चोच मा पान
कसी भगाऊ बेटा तोरी तहान
प्रक्रूतीको ऱ्हास करन लगीसे
माणुस समजसे खुदला महान
मरणयातना निसर्ग की
का? मरन जवळ आयेव मनु को
तप्त झळ सहन नही होय
येव प्रकोप आय दिनु को
अगणित खोळ बांडा
दिस रह्यासेत जीतन उतन
असोच चलत रहे त मंग
जीवन को कसो होये जतन?
निरबिना तळपके देह टाकेस भू पर बेटा
नश्वर आत्मा तोरी कहा गयी छोडकर
देख मोरो दुःख मानवबंधु आता तरी
कदम तोरा ठेव जरा संभलकर
सौ.वर्षा पटले रहांगडाले
बिरसी (आमगांव)
जि.गोंदिया
सड़ाक्षरी काव्य
जैवविविधता
संजीव या सृष्टी,
प्राणी झाड़ झुड़
नवलाई छान
धरती को गुड़।।
झाड़ देसे वायु
प्राणी ला जीवन
जगनला सब
योव संजीवन।।
काहे काट सेव
जग्या मोठा झाड़
मिड़ेत का सांगो
पिक्या आंबा पाड़।।
जगावो झाड़ला
प्राणवायू मिडे़
झाड़ संग जगो
तब नाड़ जुड़े।।
जन्म क पासुन
उपयोगी अस्त्र
बनसेती सखा
घर अन्न वस्त्र।।
सृष्टी को नियम
निसर्ग यो देव
जैवविविधता
वृक्ष मानो देव।।
""जय राजा भोज जय माँ गड़काली""
वाय सी चौधरी
गोंदिया
नहीं फेड सीकज उपकार
धरती आमरी माय से,
वोकी संतान आम्ही,
प्रकृति को सौन्दर्यला,
मिलकर करिया सेजन कमी।।
नष्ट करिया जंगल,
से स्वार्थ वोकोमा,
प्राणी जात ला दुःख देया,
सोचो ज़रा मनमा।।
पंछी भया बेघर,
नहीं मील छाया,
विकास को अंधाधुंध मा,
इंसान न बदलीस धरती की काया।।
जंगल झाडी तोडीस,
ना देईस कोई जीव ला माया,
प्रदुषण बढ़ावनो मा रही,
इंसान की मोठी काया।।
उपकार नहीं फेडसीक,
मनुष्य धरती माय को,
प्रकृति को सौन्दर्य ला,
दुबारा निखरके आनन को।।
कु.कल्याणी पटले
दिघोरी,नागपुर
तरुसंवर्धन
हे मानव प्राणी झाड काटके
दुखाऊस नोको मोरो मनला
तोरो हत्यार को वार लक
अगणित घाव पडसेत तनला
ओकंसे आग ग्रीष्ममा रविराज
अवनी को जल रहिसे चोला
उभो हर हाल मी ऋषीसम
देसू शीतल छाया फल तोला
प्राणवायू दाता सहचर मी
रोकू धरा धूप वृष्टीला
धरती करसे सिंगार मोरो
नवचैतन्य भेटसे सृष्टीला
वृक्षतोड लक बेघर वू पक्षी
धरणीपर लगेव लुढकनला
करंसे माता पिल्लुपर पर्णछाया
लग्या नयननिर बवनला
सोड कुबुद्धी कर तरूसंवर्धन
समतोल राखुसू पर्यावरणला
बहुगुणी दाता कल्पतरू मी
आधार संसारकर्म करनला
शारदा चौधरी
भंडारा
दिनांक: ११.०४.२०२१
जीवन डाली डाली
हिवरा हिवरा झाड
सृष्टीको वरदान
जीवजंतू को आधार
निसर्गकी जान ||१||
झाड आय बादर
हर जीवनकी छत
रोटी कपडा घर होये
पुरी सप्पा जरुरत ||२||
झाडकी छाया माया
जासो मायको आंचल
खुद भुकी रयके देसे
हर बच्चाला अन जल ||३||
नोको काटो झाडला
हर जीव को मकान रे
आये अकाली मरण भी
धरती बने स्मशान रे ||४||
झाड लगावो जहां वहां
पसरावो हरयाली
महके सृष्टी भरे घर
जीवन डाली डाली ||५||
डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
घाव (शेलकाव्य)
नोको करु वज्राघात
वज्राघात टंगोलीको
नोको करु इंतजाम
इंतजाम सकोलीको
कलेजापर रे घाव
घाव तू केता करजो
जसी गा तोरी करणी
करणी सम भरजो
बोळकी भयी धरती
धरती बने बंजर
भोगो गलत कर्मको
कर्मको यव मंजर
तोरी करणीकी सजा
सजा आमलाच कशी
तू रोवजो एकदिन
एकदिन भिजे उशी
तोरो पापलका अज
अज पडी यहा गाज
सावली केती धरु मी
मी भयी बेबस आज
महेंद्रकुमार ईश्वरलाल पटले(ऋतुराज)
ता. ११/०४/२०२०
मानव की तीन गरज
अन्न,वस्त्र, निवारा
पण खरी गरज मानव की
प्राणवायू को बहतो वारा
झाड झुडूप वनराई
निसर्ग की संतान
वितभर को पोट को
लाकूड तोड्या सैतान
हवा, पाणी,शितलता
झाडं को वरदान
पशू पक्षी जीव जंतू को
घर जंगल रान
कागद, निवारा ,जलावू
ना ना प्रकार का काम
देनो पेक्षा लेनो जमसे
नहीं मानव करणी मा राम
जंगल काटकन मानवन्
मारिस पायपर कुऱ्हाड
नैसर्गिक आपदा को संकट
गिरेव दुःख को पहाड
झाड सखा मित्र
झाड आय जीवन
जंगल बचावो,झाड लगावो
जपो निसर्ग धन
शेषराव येळेकर
दि ११/०४/२१
मोरो डोरामा कंकर
मोरो साज शृंगार को
कसो भयेव रे अंत
काहे मानु मी मानवा
तोला सच्चो साधुसंत ||
केता सजीव खेलती
मोरो येन् मांडीपरा
झाड झडुला तोडके
काहे करेस जर्जरा ||
रान हिरवो बंजर
गया बरसाती ढग
तोरो कर्म को प्रताप
रवी ओकसे ना आग ||
माया अना वात्सल्य की
पक्षी देखाव् प्रचिती
'माय 'मानसेव मोला
मंग काहे उचापती ||
गयी साओली की रया
चारी आंग से संगर
तोरो स्वार्थ लक् भर्या
मोरो डोरामा कंकर ||
वंदना कटरे "राम-कमल "
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