Friday, April 9, 2021

श्री लखनसिंगजी कटरेे


अँड. लखनसिंह कटरे.

गोंदिया जिल्हो तालुको आमगाव
जन्मगाव  बोरकन्हार।
वर्ग एकमा जिल्हा प्रमुख
क्षेत्र होतो सहकार।।

साहित्य गणितपरा प्रेम होतो
हुशार होता इस्कुलमा्
चमकतच रह्या तारोघाई
आजबि सेती माउलमा्।।

थाट पोवारी बाज केसरी
गांधीवादी उनको मन
लेख, कविता ,अविरत लिकसेत
समिक्षक कसेती सारा जन।।

 कवितासंग्रह सय भया 
कथासंग्रह एक।                         
माय पोवारी झाडीसाठी
लेसेत सबकि भेट।।

पोवार समाजका आदर्श सेती
प्रेरणा लेबिन सप्पाइ
उनकोसारखोच वाचन लेखन
करबिन आब् घाइ।।

धन्य भयोव बोरकन्हार
धन्य भयोव परिवार
संस्कृती मंडलका सदस्यबि वय
धन्य धन्य पोवार।।


पालिकचंद बिसने 
सिंदीपार (लाखनी)

 ब्रम्हनिष्ठ वरिष्ठ साहित्यकार
आदरणीय श्री लखनसींगजी 

बोरक्हार गांव।पुन्यभूमी पवित्र।।
जन्मेव ब्रम्हपुत्र।लखनसींग,,,,,।।

नित्य ब्रम्हज्ञान।सदा प्रखरप्रज्ञा ।।
नित्य गुरूआज्ञा।ह्रुदयमा,,,,,,,,।।

झाडीपट्टी बोली। साहित्यकी धारा।
लगेव जयकारा । माहा राष्ट्र,,,,,,।।

सेती जानकार। राजभाषा हिन्दी।।
आकाश बुलंदी।लखनजी,,,,,,,,।।

पोवारी भाषा का।जेष्ठ साहित्यिक।
समाज कौतिक।लखनजी,,,,,,,,।।

आदर्श पुरुष ।स्वभाव सात्त्विक।।
सत्य ना विवेक। निष्ठावान,,,,,,,।।

डोंगरल् ऊच्चो।समाज मा मान् ।।
मोरो स्वाभिमान। लखनजी,,,,,,।।

शुद्ध आचरन् । सेती कर्मयोगी।।
बनगया जोगी । समाजका,,,,,,।।

जानसे का कोनी। कसा अपराधी।।
जाऊ आता आधी।चरनोमा ,,,,,,,।।

लखनलाल जी । उदारवादी  गुरु।।
नमन मी करु । गुरुराया,,,,,,,,,।।

              !!!कवी!!!
श्री हिरदीलाल नेतरामजी ठाकरे
पोवार समाज एकता मंच परिवार

कटरेजी

 देखेव नही कोनी महर्षी जीवनमां
या मोडपरा कटरेजी भेट्या पथमां

अभ्यास चिंतन मंथन रत चिरंतर
खंडन मंडन मां हरायात धुरंधर

संदर्भ सप्रमाण शाश्वत अधिष्ठान 
उभार्यात नवानवा जीवन प्रतिष्ठान

जो प्रकाशित साहित्य प्रसवार्चन
नेमकवानी मन जीवन को सृजन

पोवारी झाडी संस्कृती को पुनरूत्थान
जीवन उत्तरार्ध को नवा अनुसंधान

ज्ञानमय जीवन सत्य की खोज
नहीं कोनतो धारा प्रवाह को बोज

नवागत सृजनकारला मार्गदर्शन 
मार्मिक मंथन हेरसेव पथदर्शन..

सत्यवचन प्रत्यक्ष रचना को सर्जन
निराला साहित्यऋषी करू मी अर्चन

चीर प्रवास साहित्य जगत मां नीत
गाव जिला प्रांत देश संग नव प्रीत

शाश्वत प्रशासन को कर्यात संवर्धन 
पेल्यात सामान्यहित साठी वु गोवर्धन....

शाश्वत जीवन साकार कर रह्या निर्मळ
पथदर्शक सिद्ध सेव् जसो शुद्ध जल.....

रहो निरामय सतेज जीवनभर
देनं दिशा असंख्य नवपथकर....


रणदीप बिसने
सिंदीपार

       

श्री:-लखनसिंह कटरे

महाकाय वटवृक्ष
छाया से गरद
माहामाया गडकालीका
माँ वाग्देवी को वरद

सेवाव्रती वटवृक्ष
अपराधी से नाव
भू मा का अनंत उपकार
देत जासेत छाव

अॅड लखनसिंह कटरे
गाव बोरकन्हार
महाराष्ट्र को माती का
सेत साहित्य का कनार

झाडीबोली का ऋषी
जीवन से योगी
वाचन लेखन आवड मोठी
भागिरथी वैरागी

तपोवन को भूमि मा
मा पोवारी,मराठी को तप
चीर प्रवास साहित्य जगत को
सत्य भाव को निरंतर जप

कडू गोड अनुभव का
एक मोठी चट्टान
सुख दुःख का वारा सोसे
कर्मयोगी को वरदान

पोवारों का शान
मा पोवारी का सृजनहार
संस्थापक, संचालक
करसेत नवा नवा शृंगार

तलावोंको जिल्हामा
साहित्य का समुद्र
झाडीबोली का २७ आयोजन
मिटी बोलीभाषा की काळी रात्र

गुरु,प्रशासक, महर्षी
प्रवास चालू निरंतर
वटवृक्ष को छाव मा
अज्ञान होये छूमंतर

आठ मराठी, एक हिंदी
पोवारी मा एक किताब
अकरा पुस्तक,अनेक लेख
जय हो साहित्य का नवाब

प्रमेय,जाणिवेतले कर्कदंश
शब्दार्थाचे आधार निष्फळ, कवितासंग्रह
एकोणिसावा अध्याय
गाजेव कथासंग्रह

लेक नि विवेक ( संकीर्ण संग्रह)
आखिर बचता तो अंधेरा ही है
पोवारी साहित्य मंजूषा,इति.दृष्टीगत नहीं
दिर्घ कविता को हिंदी मा अनुवाद है

अक्षरयात्रा,थिंक महाराष्ट्र
महा.टाईम्स,प्रतिष्ठान,खेळ
माँ पोवारी का कविता लेख
जमाईन महाराष्ट्र भरमा मेळ

इतिहास आढळत नाही
ईनकी दिर्घ कविता
सरकते आहे वाळू
या आवनेवाली सरिता

आय रही से धारा
औरस चौरस लेख संग्रह
अवरुद्धलेल्या रुंद वाटा
सुंदर कविता संग्रह

दिर्घ निरंतर प्रवासी
साहित्य सृजन अभिलाषी
समाज शिक्षक ' *अपराधी*'
सेवा धर्मी अभ्यासी

जय जय माँ भारती
तोरो पुत्र महान
हर जन्म मा गुरु रुप मा भेटे
दे मा यन शेशू ला वरदान


शेषराव वासुदेव येळेकर
सिंदीपार
दि. ०८/०४/२१


आदरणीय कटरे सर
ग्रंथप्रिय व्यक्तीत्व
कर्तव्य कठोर स्वभाव उनको
शब्द शब्दमा् सत्व।।

घरमा् से पुस्तकालय
केत्ताक मासिकका वाचक!
उनक् पुस्तकक् शीर्षकमा से
गहन तत्वचिंतक।।

इतिहास आढळत नाही कि
भइ बउ चर्चा।
एकोणिसावो अध्याय, प्रमेय
मौनला फुटसे वाचा।।

'आखिर बचता तो अंधेरा ही है'
'आदिम प्रकाशचित्रे' न्यारो
'जाणिवेतले कर्कदंश ' वय
उद्बोधक साहित्य सारो।।

कीर्ती अमर साहित्यलक्
कदर बेहन् होये
वाचन लेखन चिंतन संगसंग
उनकि प्रेरणा भाय्।।

पालिकचंद बिसने


ऋण साहित्यिक गण को

ज्येष्ठ साहित्यिक . लखनसिंह कटरे मंजे मराठी, पोवारी, झाडीबोली, हिंदी साहित्य क्षेत्रका अजातशत्रू व्यक्तिमत्व. येनं व्यक्तिमत्वनं आपलं प्रतिभाकं जोरपर साहित्य क्षेत्रमा आपलो खुदकी असी एक अलग पहचान बनायीसेन. आपलं निजी जीवनमा एकपर एक संकट झेलस्यानबी अज पहाळ सरीको अडिग रवनेवालो साहित्यीक आपलं पोवार समाजसाती भूषण सेती.

अॅड. लखनसिंह कटरेजी इनकी कविता लिखनकं शैलीका साहित्य क्षेत्रमा अनगीनत दिवाना सेती. उनकी कविता हर बाचकला खुदको अर्थ देनको स्वातंत्र्य देसेती. बाचक आपलं क्षमता अनुसार कविताको अर्थ हेळसे. येनं कारणलका उनकी एकच कविता हर बाचककं अंगलका अलग अलग अर्थानुवर्ती होसे.

आ. कटरेजी मराठी साहित्य जगतमा एक आदरणीय साहित्यिक सेती. वय जसा मराठीमा रमसेत. तसाच वय हिंदीमाबी मूक्त विहार करंसेती. झाडीबोलीकं संगच मायबोली पोवारीको उनला अधिकच लळा लगीसे. उनकं मार्गदर्शनमा अज साहित्यिक प्रेरणा लेयस्यान पोवारी साहित्यकं सृजनमा लग्या सेती. झाडीबोली साहित्य संमेलनका अध्यक्षपद, झाडीबोली साहित्य संमेलनको यशस्वी आयोजन, पोवारी साहित्य संमेलनको आयोजन असो संघटनात्मकं उनकं कार्यकी अलग छाप पळी से. उनकं हातलका साहित्यको सर्जन असोच होत रहो या मनोकामना......गुलाब बिसेन


 ऋण साहित्यिक गण को

समाज का सेव ,प्रेरणास्त्रोत तुम्ही,
महामाया गढकालिका को, वरदान,
लखनसिंह कटरे से,नाव उनको,
मन मा बसी से,पुस्तक को ग्यान।।

भूत भविष्य की, होसे पहचान,
सत्य की रेखा,चमकसे,
हिंदी,मराठी, पोवारी मायबोली,
अनेक भाषा मा, ग्यान देसे।।

कविता ,कथा संग्रह,सेत प्रसिद्ध,
चित्र, काव्य को ग्यान होसे,
लेखनी से,तुमरी अद्धभुत,
मन को भावला,मान देसे।।

साहित्य की सेव ,पहचान तुम्हीं,
अनेक काव्यसंग्रह,सेत प्रसिद्ध,
बनो सब, प्रतिभाशाली,
असी तुमरी लेखनी,करसे व्यक्त।।

 कु.कल्याणी पटले
 दिघोरी,नागपुर

              ऋण साहित्यिक को
आदरणीय ॲड. लखनसिहजी कटरे पर अष्टाक्षरी काव्य
       लख लख भरी खणी

सदोदित लेखणी ज्या
लेखनकी धार धरे
साहित्यका जाणकार
लखनसिंह कटरे ||१||

तज्ञ तूमरी लेखणी
लख लख भरी 'खणी'
खन खन अगाजंसे
शेष मुकुटको मणी ||२||

खुद सरसोती माय
जिभपर बिराजंसे
शब्द शब्दमा अमृत
गंगा ज्ञानकी बव्हंसे ||३||

धर्म अध्यात्म विज्ञान
रूढी रीती परंपरा
मूर्त रूप विश्लेषण 
ज्ञान विवेकको झरा ||४||

अविरत बाचनको
छंद तुमला भलता
कलमकी शाई भरं 
बोली भाषाका खलता ||५||

भूत वर्तमान भावी
विचारको समीक्षण
गद्य पद्य विडंबन
सत्य को रेखा चित्रण ||६||

विदर्भको साहित्यकी
होये पायजे पैचान
वोको साती सबकूछ
तीव्र मनमा तहान ||७||

झाडीबोली परंपरा
हिंदी मराठी पोवारी
डझनभरकी पुंजी
तरी लेखन से जारी ||८||

लिपी बिना पोवारी ज्या
बोली मिठी अना शुद्ध
मंशा तुमरी पवित्र
करो बोली लीपिबद्ध ||९||

तुम्ही आलराऊंडर
उच्च विद्याविभूषित
जसो बोली जतनला
अवतरी से प्रेषित ||१०||

कई क्षेत्र पारंगत
कई पद विभूषित
गझेटेड ऑफिसर
कई माती परिचित ||११||

ज्येष्ठ तज्ञ साहित्यिक 
कई सत्कार सन्मान
तरी पाय जमीनमा
नहीं तिरको गुमान ||१२||

घर रोजीको कर्तव्य
संग मित्र रिस्तेदार
समन्वय साधक्यारी
तेज कलमकी धार ||१३||

झेलकन एकहाती
कट क्रूर प्रकृतीको
बन ध्यानयोगी साध्य
संवर्धन संस्कृतिको ||१४||

कट टरेव हारेव
तूमी तं कुशलक्षेम
धन्य तुमरी तपस्या
धन्य वू निर्व्याज प्रेम ||१५||

एक लक्ष्यमा अडिग
दीर्घ कर्मकी परिधी
नम्र ऐटदार सिंह 
कहलावं "अपराधी" ||१६||

नहीं मती मोरी सिद्ध
केत्तो करू गुणगान
पामर मी नासमझ
करो मोला क्षमा दान ||१७||

डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
श्रणी साहित्य गण का आम्रो

तुम्ही सेव अम्हरो
 समाज को साहित्य ला वरदान,
कहु कसी करु कसो तुम्हरो उपकार को बखान,
आदर सहीत चरण वंदन करु स्वीकारो अम्हरो प्रणाम,
वोन गांव की माटी ला से वंदन जहा जन्म भयो आदरणीय जी
तुम्हरो ,
वोन माय ला नमन करु जेका सेव तुम्ही लाल 

कसी व्यक्त करु मन की दसा   कौन सो शब्द जोड कर बोलु 
बस दुही कर जोड करू सु शत शत चरण वंदन नमस्कार,

 मोरो राम राम आदरणीय लखन जी कटरे 
साहित्य का तुम्ही सिपे सालार
विद्या बिसेन 


आमरण आमी ऋणी 

स्वाभिमानी ज्ञानवंत 
सरोसती कृपावंत 
सद् विवेकी धारमा 
वैचारिक आसमंत//

लेखनीको धारपरा 
साहित्यकी सृजनता 
शब्द पल्लवी सुगंध 
चैतन्यकी फलश्रृता//

हिंदी,मराठी,पोवारी 
झाडीबोली शब्द लता 
साहित्यिक प्रांगनमा 
कलाकृती सांग गीता//

कर्म, कर्तव्य का धनी 
साहित्यका महामुनी 
दंडवत चरणमा 
आमरण आमी ऋणी//

वंदना कटरे "राम-कमल "
[

           ऋण साहित्यिक गण को

श्री.लखनसिंह कटरे (अपराधी)

साहित्य का भगिरथ
मोरो झाडी का कवी
कला सृजन तपस्वी
सकारात्मक उर्जा का रवी

सेवाव्रती अपराधी
अहंकार को तोडन बंध
साहित्य सृजन, समाजसेवा
निर्मल,निरामय बहतो गंध

शेषराव येळेकर
दि. ०८/०४/२१
साहित्यिक श्री लखनसिंहजी कटरे इनको हिंदी लेख मै, मेरा गुस्सा और बदलाव को पोवारी अनुवाद 

               मी, मोरो गुस्सा अना बदलाव ...!

     मोरो बिह्या को पयले मी, लखनसिंह बहुतच गुस्सेबाज, terror, अना शीघ्रकोपी होतो. मोरा अजी (बाबूजी), माय, भाऊ-बहिन, रिश्तेदार, नौकर-चाकर, दोस्त-संगी, गाव का लोक, सपाईजन मोरो येन स्वभाव को कारण मोरोपासुन हमेशा कतरात होता.

       जब मोरो बिह्या जुळेव तब मोरो पक्को संगी कमलसिंह पटले को गाव-पुतण्या मोरो होनेवालो स्यागील खापा को तिलकसिंह पारधी इनको घरच रव्हत होतो, ओन कमलसिंह को तोंडलक मोरो यव "परीचय" आयककन होतो. ओन खापा मा तिलकभाऊ अना लक्ष्मीदिदी ला मोरो यव "परीचय" देईस अना लक्ष्मीदिदी न् मोरो यव "परीचय" मोरी होनेवाली पत्नी उषा ला देईस अना संभालकर बर्ताव करनसाती सल्ला देईस. येन प्रकारलक मोरी पयचान होत रही अना येकोमा कायी अतिशयोक्ति भी नोहोती.

         जून 1982 मा मोरो बिह्या भयेव. मी बिलकुल बेरापर मांडो मा पोहच गयेव. संगमाच इंद्रादिदी को बिह्या भी होनेवालो होतो, उनको नवरदेव रविन्द्रभाऊ, जेव थोडो टाईम लगावत होता, उनलाबी लवकरच बिह्या को मांडो मा आवनो पडेव. आखिर बेरापरच बिह्या लग्या. दुसरो दिवस सकारीच मी कारलक सौ.उषा को संग (करोली भी संग होती) वापस जात होता. उषा ला उंदोको कारणलक झोप लग गयी अना ओको मस्तक झोपमाच मोरो खांदापर टिक गयेव. मोरोसाती यव एक अद्भुत, अद्वितीय अना एकदम नविन/अनबुझ अनुभव होतो.  अचानक मोला मोरो स्वभाव मा बदलाव महसूस होन लगेव. येन वाक्यमा अंशमात्र भी अतिशयोक्ती या झुठोपन नाहाय. 

     धीरु धीरु मोरो स्वभाव मा बदलाव आवन लगेव. एक टुरी ज्या आपलो माय-बाप, परिवार की लाडकी रव्हसे, अचानक एक दिवस "आपलो सबकुछ" त्यागकर/सोड़कर एक बिलकुल नवो माहौल अना परिसर मा आय जासे. तब ओको "थोडोसो साथी" सिर्फ ओको पतीच रव्हसे. सासु-सुसरा, देवर-नणंद, दुसरा परिवार का सदस्य ओकोसाती एकदम "पराया" रव्हसेत, येन व्यावहारिक सत्य ला कई-बार वर-पक्ष समझ नही सक. गंभीरतालक सोचनो पर या सब परिस्थिती अना नवरी की मानसिक स्थिती समझनो मा आमी सफल होय सकसेजन. जेव व्यक्ती अना परिवार येन स्वाभाविक, natural वस्तुस्थिती ला समझ अना झेल नहीं सक, उनला "बिह्या" करन को अधिकारच नहीं रव्ह, या मोरी postulate (मान्यता) से. असो व्यक्ति अना परिवार न् बिना बिह्याकोच आपलो मनमर्जी लक आपलो जीवन बितायेव पाहिजे, उनला कोनी टुरी अना ओको परिवार ला संकट मा टाकनको अना उनको जीवन बर्बाद करनको काही अधिकार नाहाय. यव #BitterReality (कटु-सत्य) से; येकोसाती टोचे जरूर!!

       बिह्या को बाद टुरा या टुरी को आपलो माय-बाप को प्रति प्रेम अना आपलोपन कमी नही होय, पण उनको प्राथम्य-क्रम मात्र अवश्य बदल जासे अना बदले भी पाहिजे. बिह्या को बाद टुरा ला आपलो पत्नी को प्रति अना टुरी ला आपलो पती को प्रति प्राथमिकता देयेवच पाहिजे, नहीं त् ओन टुरा/टुरी न् बिह्या नहीं करेव पाहिजे, येन बिह्या सारखो पवित्र दस्तुर ला बदनाम करनको उनला अधिकार नही रव्ह/नही रहेव पाहिजे. जिनन भी मानसशास्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनितीशास्त्र (उदा.Every thing personal is political), मानुस को जीवशास्त्र आदि को जरासो भी अभ्यास नहीं करीसेन, वय अज्ञानवश येन निसर्ग-सत्य ला समझनो मा स्वयं मा असमर्थच रव्हसेत, यव दुर्भाग्यवश अना मुर्खतावश #BitterReality (कटु-सत्य) च आय. 

      त् मी मुख्य विषय लक भटक गयेव का? जी नही! मी मुख्य विषय परच सेव. जसो मीन् येको पयले लिखीसेव, जून 1982 को बाद मी धीरुधीरु मोरो अत्यधिक गुस्सेबाज स्वभाव मा बदलाव आनन को प्रयास मा जुट गयेव. What is constant in the world is only "CHANGE". येन निसर्ग सत्य ला अपनायशान मी आपलो स्वभाव ला बदलनको प्रयास करत रहेव. डिसेंबर 1983 मा मोरो पयली टुरी को आगमन भयेव, मी अनखी तेजी लक बदलन लगेव. सप्टेंबर 1985 मा मोरो दुसरो टुरा को आगमन भयेव, मी अनखी भी तेजी लक बदलने लगेव. आता मोरा सब प्राथम्य-क्रम पत्नी-टुरा-टुरी भय गया, जेव पुरो तरिकालक Natural होतो/से! पण मोरा माय-बाप, भाऊ-बहिन, आदि परिवारको सदस्यको प्रति मोरो कर्तव्य अना आपलोपन/प्रेम कम नही भयेव, यदि असो भयेव रव्हतो त् मी मानुस कव्हनलाईक नहीं रव्हतो! परंतु उनको प्राथम्य-क्रम आता बिलकुल Natural तरीका लक बदल गयेव, जेव मोरो द्विदल-बहुदल-कर्तव्य ला अनखी अधिक दृढ करत गयेव. 

      येन संदर्भ मा एक बात अवश्य कहुन/दोहरावून की, "बागवान" या "नटसम्राट" मा संतान परच जेव पुरो "दोष" थोपनो की जबरदस्ती(!) करी गयी से, वा सत्य नाहाय, परंतु सत्य को एक पहलू मात्र से. आपलो जीवन जगन को बाद भी यदि मी आपलो संतान ला आपली Property (धन-संपती) मानकर उनको जीवन मा अनावश्यक दखलअंदाजी अना मनमानी(!) करन लगून, तरी भी संतानलाच दोषी मानन को वर्तमान प्रचलन भविष्य मा भयानक/भयावह रूप लेय सकसे, यला भूलेव नहीं पाहिजे!

           समय अना परिस्थिती तथा वास्तविक वस्तुस्थिती को साथ जेव व्यक्ती, माय-बाप, भाऊ-बहिन, पती-पत्नी, देवर-नणंद, या कोनी भी परिवारको सदस्य आपलो अंदर बदलाव स्वीकार नही कर सक, आपलो स्वभाव तथा बिचारमा बदलाव नहीं आन सक, वु निसर्ग को व्याख्या को हिसाबलक "मानुस" नही होयकर "जानवर" मात्र रयजासे! वु जानवर की व्याख्या ला चरितार्थ करन लगसे!
     I know it is very very Bitter, but it is very very True also. And hence I called it as #BitterReality. (मोला मालूम से की यव बहुत कटु से, पण यव सत्य भी से. अना येकोसाती येला कटु-सत्य कसेत.)
@लखनसिंह कटरे, बोरकन्हार(झाडीपट्टी)-441902.
 पोवारी अनुवाद:- इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया 
 मो. 9422832941

 ऋण साहित्यिक गण को

गोंदिया जिल्हा तालुकाआमगाव
वहा सें बोरकन्हार गाव
मोहन कमलाको संसारमा फुलेव
कुसुम वोको लखनसिंह नाव
हो जी जी रं जी जी जी

रूप राजबिंडा बुद्धिमा चतुर
भर होतो साहित्य गणितपर
प्रथम श्रेणी जिल्हाप्रमुख पदपर
आरूढ भया क्षेत्र पणन सहकार
मोठो आदर्शवादी उषाबाईको भ्रतार
हो जी जी रं जी जी जी

काव्य कथासंग्रह का रचनाकार
चलसे बडी तेज लेखणी की धार 
झाडीबोली साहित्य संमेलनकार
वाचन ग्रहण वृत्ती सें भयंकर
उनला सें सरस्वती को वरद वर
हो जी जी रं जी जी जी

विद्याविभूषित सृजनकार
अभ्यासक ना समीक्षक धुरंधर
अपराधी नाव धारण कर करं 
करंसेती  उपदेश मार्गदर्शनपर
पोवार समाजका आभूषण थोर
 सें धन्य धन्य कटरे परिवार 
हो जी जी रं जी जी जी
                       शारदा चौधरी
                            भंडारा

No comments:

Post a Comment

कृष्ण अना गोपी

मी बी राधा बन जाऊ बंसी बजय्या, रास रचय्या गोकुलको कन्हैया लाडको नटखट नंदलाल देखो माखनचोर नाव से यको!!१!! मधुर तोरो बंसीकी तान भू...