Sunday, May 2, 2021

तुलसी (तुरसी) तुळस 62

 

पोवारी इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष द्वारा आयोजित 
पोवारी काव्य स्पर्धा क्र. ६२   तारीख :-२/५/२०२१
                    तुरसी
                
कालनेमी  दैत्य न संतान  साती ।
माय लक्ष्मी की आराधना करीस।।
राक्षस कुलमा ओन जन्म लेईस।
ना लक्ष्मीजी न वृंदा नाव धरीस।। १।।

शिवजीक फेके गयेव तेज लका।
समुद्र मा जालन्दर पैईदा भएव.।।
करीस बीह्या ओन  वृंदा संग ना,।
देव ईन संग युध्द करनला गएव.।। २।।

पतिव्रता होती जालंदर की वृंदा।
त विष्णुन सतीत्व करीस हरण ।।
वृंदा न श्राप देईस  विष्णुजी ला।
जब भए गयेव जालंदर को मरण।। ३।

वृंदा जालंदर संग भयगयी सती।
ओणच जागापर निकलेव पौंदा।।
अमर भयगयी तुलसी नाव लक।
पतिव्रता,सत्यवती, सती  वृंदा ।। ४।।

घरघर लगाओ तुलसी ब्रींदाबन।
ओन्ज्या भगवानको रवसे  वास।।
खासी,कोकला,दमा ना बुखार  ।
तुलसी रस,बीमारीको करसे नास।। ५।।

जीवनदायीनी गुणकारी तुलसी।
जेक गरौमा रहे तुलसीकी माळ।।
शुध्द होसे तनमन,सब बिचार  ।
कदापी जवर नही  आव काळ।। ६।।
              
डी पी राहांगडाले 
      गोंदिया .


तुरसी वृंदावन

विठू माउली देखू येन डोळा
तोरी पंढरी आनंदको सोहळा
चंद्रभागा तिर भक्त को मेळा
मायमाउली सिंगार कर सोळा

दिंडी अभंगमा वारकरी दंग
रिंगण लगीसे भक्तिको रंग
आत्मआनंदी सज्जनको संग
तुरसी डोस्का पर आनंद तरंग

तू निर्गुण निराकार पांडुरंग
ब्रह्मचैतन्य आदी अंत तू देवा
तुरसी की माला तोरो गरोमा 
तूच भक्तीको अनमोल ठेवा

भरेव सोहळा, भक्तिकों माप
देह नाम्याकी पायरी, मन वृंदावन
आत्मा तुरसी मंजुळा लगे मन
तोरो चरणोमा अर्पण मोरो तन

सौ छाया पारधी



    तुरसी
 (अष्टाक्षरी काव्यलेखन)

जालंधर    दैत्य    संग
देव    करसेती     युद्ध |
वृंदा पत्नी आय ओकी
पतिवर्ता   अना   शुद्ध ||१||

रुप    जालंधर    लेय
विष्णू जासे ओको घर |
पतिवर्ता    होसे   नष्ट
मर    जासे   जालंधर ||२||

देसे  श्राप विष्णूजीला
होय  जाय  तू पाषाण |
देख   विष्णूला  पत्थर
सृष्टि  भयी  या बेजान ||३||

देव   गया    वृंदापास
ओला  करीन  बिनती |
कर   विष्णू  श्रापमुक्त
वृंदा  चली  गयी  सती ||४||

ओको  राखमालं  वहां
झाड़    वापेव    बरसी |
शालीग्राम विष्णू ओको
नाव     ठेवसे    तुरसी ||५||

बिना    तुरसी   प्रसाद
नही    करुन     ग्रहण |
होये  तोरो  संग  बिह्या
विष्णू    देसे    वरदान ||६||

(बरसी = एक सालमा)

   इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया
          मो. ९४२२८३२९४१
            दि. २ मई २०२१
तुरसी

अष्टाक्षरी काव्यलेखन

बिंद्राबन की तुरसी
अज नाराज भयीसे
माय बिना आंगनमा
बडी झुरमुराइसे

सकाळकी झाडलोट
अना सयपाक घाई
तरी आंग धोयेपरा
पाणी ढार मोरी माई

सडा चवुक सकाळी
खंड कभी पडेव ना
माय रहेपरा घर
कभी दिवो चुकेव ना

शुद्ध आक्सीजन दाती
बिंद्राबन मा विराज
सुख शांती सम्रूद्धी को
मोरो घर आये साज

सौ.वर्षा पटले रहांगडाले
गोंदिया


तुरसी
  

असुर जालंदर की पत्नी वृंदा 
होती बहुत पतिव्रता ना सुंदर, 
देवता संग लढाई मा जालंदर
भारी पडन लगेव देवता ईन पर. 

विष्णु न जालंधर को रूप धरकर 
छल करीस जालंदर पत्नी वृंदा संग, 
जालंदर ला लगी खबर वु भयेव विचलित 
विष्णु न् वोको वध करीस मिलकर शंकर संग. 

येन छल साती वृंदा न विष्णुला देईस शाप
पाषाण रूप भय गयेव विष्णु भगवान, 
विष्णु न वृंदाला देईस तुलसी को रूप 
अना आपल् सिरपर धारण करन् को वरदान. 

तब पासून वृंदा बन गयी पवित्र तुलसी, 
वोक् निवास को नाव भयेव वृंदावन, 
जग मा पूज्य होयकर हर आंगन मा विराजसे 
औषधी गुणयुक्त से जगमा पावसे सम्मान. 

                      - चिरंजीव बिसेन
                                  गोंदिया
 

तुरसी--


माय तुरसी तुरसी 
तोरो बिंजरामा बन 
हर घरको मायला 
करं पतित पावन ||१||
तोरी हिरवी मंजुरा 
सोभं विष्णू पदपरा 
भाग्यवान तू त्रिलोकी 
मंग कसी जरजरा ||२||
पंढरीमा वारकरी 
गरा तुरसीको हार 
कारो वायुला जारके 
पाजं शासवत धार ||३||
आयुर्बेदी गुण गंगा 
घर आंगनकी काशी 
तोरो ऋणमा बंधीसे 
सुख श्रमश्रीकी राशी ||४||
रूप जरी से नहान 
पर कार्यमा अमर 
आमरण देजो शक्ती 
जिकू सत्यको समर ||५||

वंदना कटरे   "राम-कमल "

काव्य प्रकार अभंग
पवित्र झाड

सबमा पवित्र,तुरसी को झाड़
कोनतोही काड़,आवनही।।

गुणकारी वृक्ष, आयुर्वेद शास्त्र
खाशीको अस्त्र,काढ़ापिवो।।

आॅक्सिजन देसे, दिनरात्री योव
जिव जगदेव,प्राणीजन।।

झाड़ना मानव,नाड़गा जुड़ीसे
तबच कड़ीसे,महिमा या।।

जालंदर पती,वृदा महासती
कृष्ण रूप भक्ती, शालीग्राम।

वेद ना पुराण,सांगसे बखान
तब योव ज्ञान,मिड़जासे।।

‌लगावो तुरसी,घर वृंदावन
भारतीय ज्ञान, संस्कृती या।।

संध्याकाळी घर ,दिवो की याजोती
प्राण वायु साती, तुरसीला।।

 तुरसी की हार, धार्मिकता शान
जनमा यो मान,संतजन।।

""जय राजा भोज जय माँ गड़काली""
वाय सी चौधरी
गोंदिया


तुलसी

आंगनमा तुलसी
रोके ईडापिडा की चाल
मन ला आत्मालक जोडे
गरामा तुलसी की माल

सब रोग की दवा
वा आय तुलसी
भरभरायकन आक्सिजन देसे
नही होन दे शरीर आलसी

प्राण म्हणजे जीवन
ओको साठा तुलसी जवर
पुरो पृथ्वीपर
माय तुलसी को कव्हर

दिवस रहे या रात
देसे आक्सिजन
उठ बाई दिवा लगाव
प्रसन्न होये तोरो मन

शेषराव येळेकर
दि.०२/०५/२१

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