पोवार इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष द्वारा आयोजित स्पर्धेसाठी
जांभूर
मिरुग को आयोव पाणी
जांभूर पिकी कारी कारी
रस भरकन भुगी
जसी कडईमा सुवारी
उचो भूरो मोठो झाड
जाडा जूडा सेत पान
होऱ्या ट्याव ट्याव करे
कसो गरजेव रान
झोका पर झोका
जांभूर लटक्या सेत टपोरा
मन ललचाय मोरो
केवढो भरु आता झोरा
रस भरी गोड जांभूर
जीभ भयी कारी कारी
मिठो दिलपर चढेव
गाना गावू मी पोवारी
शेषराव वासुदेव येळेकर
सिंदीपार
जांभूर /जांभूळ
जांभूर को झाड होसे बडो गुणकारी...
मोठो-मोठो फांदी को ओलांबी ला फरसेत कारी-कारी....
जांभूर को झाड छाया देसे विस्तीणॅ...
मिरूग को नक्षत्र मा आवसे पाणी...
जांभूर पिकसे लूदलूदी अना् कारी -कारी...
मोठो-मोठो झाड , ओका जाडसर पान...
बनावसेत जांभूर को काळीलका सोफा अना् दिवान...
रसभरी जांभूर काळी, गरीबी को आत अंगूर कारी-कारी...
शादी-बिह्यामा बारा डेरी को मांडोपर झाकसेती पाना की डारी -डारी...
आयेव मिरूग को ज्यादा पाणी,
सडा/सळा पडसेत जांभूर कारी-कारी...
साल मा एक बार तरी खान जांभूर ,
पोटका विकार मरसेत ,दूर होसे रोग-राई."..
सौ: ओमलता परिहार / पटले
जांभूर
जांभुर को वू झाड
फरीसे लटालट
चलो दूही जाबिनना
धनी खेतं पटापट
बांधीकी या बाट
सेती काटागोटा मोट्यान
गडेव पायला काटा
जसो खुपससे बान
रोवू नोको कसेव मोला
काटा पायमा धसेव
करो काही झाडफुक
तुमि बसेव बसेव
भाराटीको येव काटा
अलगद निकलेव
जांभुर को येव झाड
कसो जांभरो पिकेव
येंगो झाडपर आब
खांदी हलावो सरसर
बेचून जांभरी ओटामा
खायेत मोरा चिमणी पाखरं
दुय जांभरी खाऊन
जिब होये कारी कारी
सांगून नातीनतरूला
गडेव काटा की कहाणी
सौ छाया सुरेंद्र पारधी
जांभूर
चल, चल सखी
जांभुर तोडन जाबी
तोडता, तोडता जांभूर
खात बी जाबी
मिरुगमा आयेव पाणी
जांभुर पिकी कारी
उचो, उचो झाडला
लट,लट फरी
कारी, कारी जांभूर
दिससे मोठी बाकी
गोड ,गोड लगी
खानला मोठी चोकी
हवा आयेव जोरसे
जांभुर को पडेव सडा
सबला भेटे जांभूर
नको करो झगडा
कारी, कारी जांभूर
बडी गुणकारी
दूर करसे या
पोट की विकारी
झाड देसे सावली
फळ अन् पान
माणूस रहो पाखरू
सबला भेटसे खान
सौ उषाताई रहांगडाले
जांभुर
कारी कारी पिकी जांभुर
तोंडला आवसेती पानी,
अखाड लगता मिलसेती
खानला नोको करो आनाकानी.
पांढरो पांढरो चिकन बुड
चढताना पाय घसरसेती,
ओलांबीपर नोको जाव्
खांदी वोकी कडक सेती.
औषधी गुणयुक्त से जांभुर
मधुमेह पर बहुत उपयोगी,
गुठली बी ओकी कामकी
औषध बनावनो मा भागी.
कारा कारा गुच्छा वोका
दिससेती कार् अंगुर वानी,
नमक क् पानी मा डुबायके
खावो उनला अंगुर वानी.
बिह्या क् मंडप साती
लगसेती जांभुर की डार,
पुरातन कालपासून येको
उपयोग करसेती पोवार.
- चिरंजीव बिसेन
गोंदिया
जांभूर
लगावो झाड देहाती
(दशाक्षरी काव्य)
शान लहरासे जांभूरकी
शोभत खेतबाळी सिवार
बार मिरुगमा लुदलुदो
बिखरेव रंगीत सिंगार ||१||
ओलांबीपर डोलत झोका
हिवरी गदराई अंगार
रसदार कारी खाटी मिठी
बदबद हतरं से डार ||२||
डारी डेरी बीह्यामा मांडोला
जांभूर जीव जंतूको डेरा
मयाल फर्निचर दवाई
खाल्या ठंडी सावलीको घेरा ||३||
छाल बिजी जडी पाना रस
जंतूनाशक बहुपयोगी
गरीबकी अंगुर ठेवं से
जमीन हवा जीव निरोगी ||४||
"जीवनमित्र" जीवनदायी
लालन पालनको भुकेला
सगो सोयरो खरो संगाती
सिरिप "देनो" मालुम जेला ||५||
टिके झाड तं टिके जीवन
लगावो असा झाड देहाती
झाडकी हानिकारक सिद्ध
कच्ची बिदेसी संकर जाती ||६||
डॉ. प्रल्हाद हरीणखेडे "प्रहरी"
डोंगरगाव/ उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
जांभुर/जांभुळ
तराकी पार,जांभुर को झाळ
लटालट फरीसेत जांभुर
मोठोजात से ओको बुळ
ना खांदा गयासेत दुरदुर ।। १।।
जांभुर को फळ मोठोगुणी
मधुमेह पर गुणकारी
पचन संस्था स्वच्छ करनसाती
जांभूर से बहु उपकारी।। २।।
ग्यास्टो रहो या इन्फेक्शन
दूर भी करसे अल्सर
जुलाब भी अगर भय गएव
बीजी को पीवाओ पावडर।। ३।।
जांभूळ को झाळ मोठो मजबूत
बिहीरको बनाओ चौकट
बीह्यामा डेर लग जांभूळ की
ना मांडोपर डारीको थाटमाट।। ४।।
झाळपर पक्षी की चलबिचल
किलबिल उनकी रव्ह सुरू
माणुसला छाया ना फळ भी देसे
जांभुर क झाळला नमन करू.।। ५।।
डी पी राहांगडाले गोंदिया
जांभुर
(काव्य प्रकार अभंग)
निसर्ग की कीमया
गुलाब -जांभुर, सारखी दिससे
मन ललचासे,खानसाठी।।
तोंडमा धरता ,मिठी गा अमृत
तोंड जिभ होत,निळी निळी।।
मधुमेह रोग,बिजी गुनकारी
उठता सकारी, पाणी पी्वो।।
तनाको गिलास, पाणी गुण देसे
बिहिर चौकट,पाणी सुद्ध।।
पवित्र योवृक्ष,बिह्यामा मंडप
थंडी हवा गप, रोगमुक्त।।
अतेष्टी कं बेरा,जाभुर की डार
पुर्वज आभार,मानसेती।।
सालमा एकच,फसल जांभूर
सबला अंगुर, मिड़सेती।।
मृगको पाणीलं, झाड़ बोरससे
रदरदा पड़से,झाड़खाल्या।।
पशुपक्षी साठी, निसर्ग की माया
जांभुळ कि छाया ,सबसाठी।।
बदलेव काळ,कटगया झाड़
आॅक्सिजन बड़, देखोजरा।।
लगावो खेतमा,झाड़गा जांभूर
दवा भरपुर , पीढी साठी।।
वाय सी चौधरी
गोंदिया
जांभूर को झाड़
(अष्टाक्षरी काव्यलेखन)
होतो खेतमा आमरो
झाड़ जांभूरको एक |
घर करके रव्हत
वहां पाखरु अनेक ||१||
डारीपर चोच घासं
कारो कावरा तोरामा |
मज्या आवं सिमनीको
चिवचिव को बारामा ||२||
कारी टपोर जांभूर
डारी डारीला फरती |
टप टप सड़ा पड़
मोठा लहान बेचती ||३||
बरसात को पयले
ओको डारीला छाटती |
घाव टंग्या को पडता
पाना पाना भी रोवती ||४||
नही तकरार कभी
ओन झाड़नं करीस |
ओको डारीनं अखीन
नवी पालवी धरीस ||५||
असो झाड़ जांभूरको
मोला सिकावं जगनो |
सेंडा तुटं डारी तुटं
उभो शान लं रवनो ||६||
इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया
मो. ९४२२८३२९४१
दि. २३ मई २०२१
जांभूर
धुरोपर उभो जांभुर को झाड
लगीसेत जांभरं लटालट मार
लटक्या सेती झोका का झोका
जीव ललचासें उनला देखस्यार
झाड को बुंधा गोल भुरसट
पत्ता भी जाडा चमकदार
हिरवा सफेद रंगका फुल
शिवार मा महकं सेत मार
पडेव आता मिरुग को पानी
जांभुर पिकी बडी रसदार
वरतलक दिससे कारो रंग
अंदर जांभळो गर चवदार
टपोरी जांभुर खायके देखो
लगसे तुरट अना गोडसर
फांदीपर बसकर खासेंती
होऱ्या मिटठू मटकायकर
बिहामा मांडोपर झाकन
कामी पडसें जांभुर की डार
इमारती सें लाकूड येको
औषधी गुण सेत बेसुमार
पुरखंइनकी या संपत्ती
ठेवबं धनी आपुन जपकर
पुढ्को पिढीला सुखकी छाया
देयेती ये झाड तरुवर
शारदा चौधरी
भंडारा
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