Thursday, June 3, 2021

अहंकार ६५


अहंकार

नको करू मानव
अहंकार रे खुदपर
काया से मातीमोल
जाय नही धरकर 

मी अन बस मी
काहे करसे मानव
मी को अहंकारलक
डुबसे आपलो जीवन
 
जीवन पथ से
बडो कठीण रे
जप तू अहंकार
नहित गडे काटा रे

मोरो कोणीसिन
अड नही काई
कोनिकी नहाय परवा
मोरो मीच सब काई

समझले तू बातला
अहंकारी को सर
एक ना एक दिवस
झुकसे सच समोर

अहंकार का पहलू दुय्
एकलक झुकसे सर
एकलक उठसे सर
आस सचकी तू धर

सौ.उषाताई रहांगडाले

अहंकार

प्रेम कि बोली अना नम्रता
आती स्वाभाविक अलंकार
पतन होसे मनुष्य को अगर
भयेव ज़रा भी अहंकार।

काहीं काल को अहंकार
करसे ज्ञानी को भी विनाश
रिश्ता नाता मा भी आवसे
अभिमानलक खटास।

अंत विवेकको होसे
जब अपनाया येव अवगुण
घमंड भयेव तब नहीं समझती
मानवता अना सद्गुण।

प्रतिभा अना पैसाको 
नको करो अभिमान
सदुपयोग करो वित्त विद्या को
बनो महान अना किर्तिवान।

"मि"सब दून श्रेष्ट सेव
या भावना जेको मनमा
एकटोच रह जाए
उ व्यक्ति आपलो जिवनमा।
 
" मी" बलशालि येन घमंड लका
भयेतो रावन को भी विध्वंश
महाग्यानि रहकर भी दशानन
बचाय नहीं सकेव आपलो वंश।

त्याग करो "अहंकार"को
करो दया ना परोपकार
मदत करो जरूरतमंदकी
बाटत चलो ख़ुशी अना प्यार।

स्वप्नाली दुर्गेश ठाकरे


 अहंकार
  

अहंकार आदमी को 
सबसे मोठो दुश्मन, 
सबला आपल् जवर ठेवन् 
पर अहंकाराला दूर गाडन्. 

अहंकार लका मोठा मोठा 
साम्राज्य भय गया नष्ट, 
अहंकारल् आदमी की
बुद्धि होय जासे भ्रष्ट. 

येव काम मी कर सिकुसू 
या आय काबिलियत, 
पर मीच् कर सिकुसू 
या अहंकार की नियत. 

रावण, कंस, दुर्योधन को 
अहंकार नच करीस घात, 
मनला बस मा ठेवो 
करो अहंकार पर मात. 

आपल् शक्तिपर ठेवो 
हमेशा अतूट विश्वास, 
पर आपल् कमी को बी 
रव्हन् देव आभास. 

राम कृष्णला होतो 
आपल् शक्तिपर विश्वास, 
आपल् कार्यल् संसार मा 
बन गया सबसे खास. 

                      - चिरंजीव बिसेन
                                  गोंदिया


विषय:- अहंकार

सबदून अनमोल
मोरो अहंकार
राजा भोज को वंशज
बार बार एक पुकार

धाकड को सिनो
शेर की दहाड
देवू मुछ पर ताव
भागे कवै गिधाड

माँ गड़काली कुलदेवी
खून क्षत्रिय 
भूजा देसे ललकार
नहाय मनमा भय

अहंकार से मोला
मोरो पोवारी भाषा को
जन जन की मुख मा सजे
असी अभिलाषा को

अहंकार मोरो
स्वाभिमान परिपूर्ण
समाज साठी जगू
तब जीवन होये पूर्ण


शेषराव येळेकर
सिंदीपार जिल्हा भंडारा


                   अहंकार
                
काम,क्रोध,मद,मत्सर,
लोभ,माया सय बैरी आती
बैरी जास्तच बढेलका
होसे अहंकार की उत्पत्ती।। १।।

अहंकार का अनेक रुप
कोनीला सुंदरता को अहंकार
कोनीला धनदौलत को
कोनी मोजण बस्या उपकार।। २।।

रावण होतो बुध्दीमान
होती ओकोजवर सोनोकी लंका 
अहंकार लक नाश भएव
जब चोरकर लेगीस सीतामाता।। ३।।

कंस ना दुर्योधन तसाच म-या
जब अहंकार ना घेरीस उनला 
नास भयगयेव उनको
शांती नही भेटी उनक मनला।। ४।।

दुय दिवस की जीन्दगानी 
सब् झूट से मोहमाया 
बोली भाषा शुध्द ठेवो 
बसमा ठेवो मनको धावा ।। ५।।

अहंकार ला बेसन टाकोको 
शुध्द ठेवो आचारबिचार
सुखी होयजाए जिवन ना
नैया होय्जाए भवसागर पार.।। ६।।
           

डी पी राहांगडाले 
   गोंदिया 


                        
 छोडो अहंकार
(षडाक्षरी)

अहंकार सदा
आव "मीच" कसे
होयके अंधरा
डोरा मीचकंसे ||१|

लुभाय सबला
प्रशंसा चाव्हंसे
उठ नहीं सको
असोच पाडंसे ||२||

सबमा मी श्रेष्ठ
अहंकार वृत्ती
जासे मती अना
होसे अधोगती ||३||

भूल पड जासे
इंसानियतकी
पडंसे आदत
बुरी नियतकी ||४||

खुद परीवार
समाजको नाश
अहंकार होसे
गरोमाको पाश ||५||

छोडो अहंकार
कमावो प्रतिभा
आये जीवनला
सुंदरशी शोभा ||६||

डॉ. प्रल्हाद हरीणखेडे "प्रहरी"
डोंगरगाव/ उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७


मातीमाच जगनो सें
मातीमाच सें मरण
मिथ्या अहंकार करके मानव
अंतमा पछतान की धन

अहंम भाव तं खोटो
भ्रम आय मनको
होसे माणुसकी खतम
पतन विवेक ज्ञान को

माणुसला डुबावंसें अहंकार
अति मीपण कि सफलता
अहंकार बिगाडसे रिश्ता 
सें पाप दुःख को निर्माता

छोड संपत्ती सत्ता को मोह
नही काम आवं अंतसमय मा
नोको करू जीवन मातीमोल
गर्व का घर भया खाली जगमा

अहंकार पर कोमलता भारी
बनो करुणामय उपकारी
रहो सबजन मिलजुलकर 
दुबारा नही मिलं या जिंदगी प्यारी

                              शारदा चौधरी 
                                   भंडारा



.   अभंग
      विनास

नोको देऊ देवा, योव अहंकार
जीवन उद्धार,होय? मग।।

अहंकारी होतो, लंकाको रावण
भयव हनन, अहंकार।‌।

वेद शास्त्र देसे, येकीया गवाही
गर्व की वाहवाही, होऊनही।।

हिरन्यकश्यप,मीच कव्ह देव
विष्णुच भयोव,नरसिंह।।

अहंकारी वृत्ती,विनास करसे
विनाश आनसे,जीवनमा।।

मी मी को उच्चार,संबंच करुसु
सबला पालुसु, अहंकार।।

नही चलं काही,रावका रंकंही
भया हे सपाही,गतीहिन।।

नहि कोनी मोठो,संबंच समान
नहीं अपमान, जीवनमा।।

समाज की सेवा, दिनरात करो
जीवन उद्धरो,समाजमा।।

नावगा लौकीक, प्रेम लं भेटसे
तन अमरहोसे, सेवाकरो।‌।


वाय सी चौधरी
गोंदिया

धन को, रूप को, गुन को 
कायको का आय अहंकार,
एन भरम मा नोको जिओ,
एवत आय मोठो विकार.

काजक आय या माया,
मेहनत की बस छाया.
येन जगत मा आइन,
कई-कई बहादुर राया.
येव इंधारो आय मन को, 
कई सेत एका परकार.

गत देखो  रावण- कंस की,
अगाज़ होती इनको दंश की.
समय की बलिहारी त देखो,
गति बिलायी इनको वंश की.
डखरत होतींन टोंड जिनका,
उनको लच उठी चित्कार.

काही करे वहम नहीं मर्,
मगज को भरम नहीं मर्.
हामी त कई बार मरया,
काही करें अहम नहीं मर्.
बेमउत मारनो से येला त,
बस नाम जपो ओंकार.

तुमेश पटले "सारथी"
केशलेवाड़ा (बालाघाट)

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