जातो
मोरो घर की मोठी खोली मा,
मंडयो रव्ह से गोटा को जातो,
घर की आई-माई संग्
जुड़यो से येको मोठोच् नातो।।
लकड़ी की खूटी गड़ी से एकांगन,
बन्यो से छेद येको मंझार,
खाल्या की तरी न आपरो डोई पर
धरी सेस ऊपर को संपूर्ण भार,
एन् जातो पर टिकयो से घर अन् संसार..
आव सेत् शेजार की बहू अन् बेटी,
धर धर कर टुकना मा चाऊर अन् दार,
वय गाव सेत गाना दरन को बेरा,
जातो लक झर् से पीठ् की धार,
एन् जातो पर टिकयो से घर अन् संसार...
बीतयो जमानो की बात भयो जातो,
पर आब् बी से येको महत्त्व बरकरार,
बेटी को बीहा की हरद दरन साती,
ढूंढ् से माय जातो वारो को द्वार,
एन् जातो पर टिकयो से घर अन् संसार..
- ज्योत्सना पटले " कौमुदी "
(मुंबई)
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