मामा क् गांव छुट्टी मा
जात होता लहानपण् ,
अभ्यास वभ्यास काही नहीं
नुसतो खाण् ना खेलण्.
उन्हारो मा स्कूलला
रव्हत होती छुट्टी,
पढ़ाई की फिकर नहीं
मारन् भेंट पुरी बुट्टी.
लुका झापी,तीर कमान,
कवेलू को गाड़ो रव्ह खेलनला,
पाड का आंबा,माच का आंबा
रस,रोटी,सेवई भेट खानला.
पापड़ बनावत चार पायलीका,
आंगनमा ठेवत वारनसाती
आमी रव्हज् पाहारापर
कावरा भगावन साती.
सब सोवत आंगणमा
गर्मील् बचन साती,
राजा रानी की कहानी सांगत,
मन बहलावन साती.
आता तसो काही
माहौल नहीं रहेव,
नवो जमानों मा मामाको
गांव दूर भय गयेव.
आता छुट्टी मा भी
टुरू पोटू इनला नाहाय फुरसत,
कई प्रकार का कोर्स, टी.वी.,
मोबाईल गुन् मामा भयेव रुखसत.
रचना- चिरंजीव बिसेन
गोंदिया
दि.१२/४/२०
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