जंगललका घेरेव होतो,
एक नहानसो गाव
हिवर् झाडीमा शोभत होतो,
मोर् मामाजी को गाव
मोवु को मोवरान होतो
लग प्रसन्नताको भाव
नहानपनपासूनच बेस लग्
मोर् मामाजी को गाव
खाबडखुबड को रस्ता होतो
गाडदान वको नाव
अस् रस्तापरच शोभत होतो
मोर् मामाजी को गाव
गाव क् जवरच परसोडी
बहुत दूर लग् बडेगाव
मालुटोला धरकन तीन होता
मोर् मामाजी का गाव
परीक्षा भयी शाळाला सुट्टी
भुलत होता अभ्यास को नाव
याद मोला आवत रव
मोर् मामाजी को गाव
मामाजी आननला आवत
मोर् मनमा खुशी को भाव
रेहकालक जात रवबीन
मोर् मामाजी को गाव
बहुत घन त् पैदलच गया
तरी दुखत नोहता पाव
माया ममताको सागर लग्
मोर् मामाजी को गाव
भास्याजी आया कवत होता
मोला भेटत रव बहुत भाव
मनुन मोला साजरो लग्
मोर् मामाजी को गाव
रेहकालक उतरनक् बादमा
मामीजी धोव् मोरा पाव
मानपान को भंडार होतो
मोर् मामाजी को गाव
खेल खेलजन दिवसभर
रव् हाशी खुशीको भाव
मनुन मोला साजरो लग्
मोर् मामाजी को गाव
बेरा होत होती जेवनकी
आयतोच भेटत रव् ठाव
मान सन्मान को भंडार होतो
मोर् मामाजीको गाव
आब् गाव से, पर मामा नाहात
तरी से आपलो पन को भाव
मामाजी बिना सुनो लगसे
मोर् मामाजी को गाव
***
✍ *डॉ. शेखराम परसरामजी येळेकर नागपूर* १२/४/२०२०
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