काव्यस्पर्धा क्रं ०४
विषय-आंदन (दहेज)
दुष्काळ की मार से लगातार मोरो खेतमा
टुरी को आंदनसाठी ,पैसा नाहात मोरो हातमा।।
कोमल,सुकुमार से मोरी सोनी टुरी की काया
घरमा खेल कुदसे शोभा बढावसे अना करसे माया
उमर बढ रही पर वोकी कण कण लका
म्हणून रूची नही लग मोला नोन मिरची रोटीमा ।।१।।
टुरी को आंदनसाठी पैसा,नाहात मोरो हातमा......
हरसाल को दुष्काळ पूरी खेती उजाड देसे
सावकर,बँक को कर्जखाल्या कंबर टुट जासे
कराप लोन को बोझोबी से डोस्कीपर मोरो
आता रातरात झोप नही आव मोला यन डोरामा।।२।।
टुरी को आंदनसाठी ,पैसा नाहात मोरो हातमा........
बेटी मोरी रूपवंती अना बडी से इमानदार
गरीब सेजन आम्ही म्हणून मांगत नही तालेवार
का फक्त सेव कागज परा नर नारी समानता
सांगुसु तुमला भेदभाव नोको ठेवो पोवारी जातमा ।।३।।
टुरी को आंदनसाठी ,पैसा नाहात मोरो हातमा.....
हमेशा टुरीच कायला पूरो त्याग जीवनमा करसे
बाप को घर सोळके टुरीलाच कायला जानो पळसे
कभी माय,कभी बायको त कभी बहीन बनसे
आता तरी भेदभाव नोको ठेवो टुरा अना टुरीमा।।४।।
टुरी को आंदनसाठी पैसा,नाहात मोरो हातमा......
जमानो बडो बदल गयी से यन कारी रातमा
ध्यान देव जी समाज बंधु आता मोरो बातमा
समय जाये तब देरी होय जाये यन जगमा
बदलाव जरूरी से काही धरेव नाहाय भेदभावमा।।५।।
टुरी को आंदनसाठी पैसा,नाहात मोरो हातमा....
- वर्षा पटले राहांगडाले
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