Sunday, April 5, 2020

काव्यस्पर्धा क्र.4 "आंदन"

काव्यस्पर्धा क्र.४
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                विषय- आंदन
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पुरानो जमानो पासून टुरीला
बिह्या मा देयो जासे आंदन,
पहले भर जात होतो आंदनल्
बिह्या को मांडो ना आंगन.

मामा,मावशी,फूपा बिह्या,
जुडेवपासून करत जोड़ तोड़,
भासी, बेटी,भजी ला बिहृया मा
का देहे पायजे आंदन.

लगीन क् बादमा गोत गोवत
होतो नवरदेव को भाई,
आंदन देनो सुरू करत,
सब रिश्तेदार ना आई-माई.

आंदन क बेरा गावत
मस्त पोवारी गाना,
एक एक झन आयकर
देत बर्तन नहीं त नाना.

आंदन क बेरा का गाना
१)रामू पूछ सीता ला,
    तोरच का मामान कायको दायजो देईस.
मोरच का मामान गुंड दायजो देईस.
गुंड सरीखो दायजो पायेव
सोयरो संतोषी भयेय,असो जवाई
पिरमबाज,मनमा खुशाल भयेव.
२)छोटी बाई पूछ से आपल भाटवाला,
   जीजाजी कायको आंदन लेयातजी.
चऊक चांदन टमान आंदन,
या सारी देया बाई कन्यादान.

आता क जमानों मा
बर्तन ना गाना भया बंद,
पैसा लिखायस्यार सब
लोक मनावसेत आनंद.

               रचना- चिरंजीव बिसेन
        परमात्मा एक नगर, गोंदिया
                       दि.०५/०४/२०

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