Sunday, May 24, 2020

पोवारी बोली अना मी : एक पुनरावलोकन

>> मी फरवरी 2013 मा रिटायर भयेव् अना कोनतोच शहर मा स्थायी नही होयस्यार आपलो जन्मगाव/खेडेगाव बोरकन्हार मा पुनर्स्थायी होन् साठी मार्च 2013 पासना आमरो गावमा रव्हन् ला आयेव् सपरिवार। 

>> च्यालीस-पैंतालीस साल शिक्षण अना नवकरी को कारन लका बाहेर-बाहेर रव्हेव् होतो मुनस्यारी बचपनकी पोवारी बोली ठीक लका बोलता आवत् नोहोती। अटक-अटकस्यारी बोलत होतो.

>> पर आमरो घर् गावमा एक नवकर होतो, वोको नाव देवाजी रहांगडाले। येन् देवाजीला पोवारी को सिवाय दुसरी कोनतीच भास्या बोलता आवतच् नोहोती। वोकोसंग् पोवारी मा बोलता बोलता मी धीरू धीरू पहलेवानीच धाराप्रवाह पोवारी बोलन् लगेव्। 

>> मी झाडीबोली को चळवळ मा 1979-80 पासना कार्यरत सेव्. झाडीबोली साहित्य मंडळ को संस्थापक/आजीव सभासद भी सेव्. तसोच महाराष्ट्र मा बोली जानेवाली सप्पाई बोलीईनको एक अखिल महाराष्ट्र बोली साहित्य महामंडळ को भी मी संस्थापक/आजीव सभासद सेव्. 

>> येको कारणलका मी पोवारी बोली की एक लहानशी पोस्ट 2014 -15 मा फेसबुक परा सहजच टाक देयेव्. 

>> अना मोला आश्चर्य का धक्का-पर-धक्काच बसन् लग्या. 
करीब हजारेक बिन-पोवार अना काही पोवार लोकईनन् येन् पोवारी बोली ला सिरफ लाईकच नही करीन, मोला अनखी पोस्ट टाकन साठी प्रोत्साहीत भी करीन. बड़ी मिठी, लयदार बोली लग् से मूनस्यारी बिन-पोवार लोकईनन् बड़ी तारीफ करीन. मी त् दंग रह्य् गयेव् येव् रिस्पान्स देखस्यानी! 

>> अना असो मंग मी धीरू-धीरू पोवारी बोली चळवळ संग् जुळ गयेव्.  

>> अजको येन् पोवारी बोली को पुनरुत्थान देखस्यानी एक बोली-अभ्यासक मूनस्यारी मोला बोहुत बोहुत खुशी होय् रही से. मोला भी सबन् आपलो संग् जोड़ लेईन येकोसाठी मी सबको आभारी सेव्.

@ॲड.लखनसिंह कटरे  
बोरकन्हार, जि.गोंदिया 
(20.05.2020)

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