राजा भोजदेव एक बार आपलो दरबार मा् बस्या होता. तब एक साधु महात्मा हरिद्वार लक दरबार मा आयेव्. राजा भोज देव न बड़ों आदर सत्कार करीन. आदर सत्कार लक साधु बडो प्रसन्न भयेव्. अन् राजाला कवन लगेव "राजन,तुमरो सेवा लक मी बहुत प्रसन्न सेव्, काहि भी वरदान मांगो" राजा बिचार करीस "महात्मन ,धनधान्य लक मी सम्पन्न सेव,सब से मोरो जवड,देनोच रहे त ज्ञान की दुय गोष्टी सांग देव" महात्मन खुश भय् गया ज्ञान किं बात बोल्या, पहली बात - "सोयात त खोयात, जाग्यात त् पायात्* "
दूसरी बात -. " "अतिथि देवो भव्"
महात्मा आशीर्वाद देयकर चलो गयेव.
राजा भोजदेव बड़ा ही प्रजावत्सल होता एक दिवस वय प्रजा की खुशहाली जानन साठी अर्ध रात्रि को समय मा भेस बदलकर निकल पड़या. फिरता फिरता उनला एक आवाज आई एक बूढ़ी स्त्री बड़ को झाड़ खाल्या जोर -जोर लक रोवत होती. राजा भोज शिपाई को भेष मा ओन स्त्री जवड़ गया अन् रोवन को कारण बिचारिंन. बहुत बिचारेपर ओन सांगिस,"राजा भोज ला सकारी येन ढोलिमा जो नागराज रवसे ,ओको दंश लक राजा की मृत्यु होए"येत्तो आयकश्यान राजा भोज वहां लक आपलो माहाल मा वापस आया. तब साधु की बात याद आयी,"अतिथि देवो भवं"
आता राजा न् साक्षात आपलो काल को स्वागत करण साठी सेवकला आज्ञा देईस की महाल पासुंन त् ओनं बड़ को झाड़ वरी रस्ता फूल लक सजाओ अन दूध भी ठेवो. सेवक न् आज्ञा को पालन करीन. रात्रि को समय मा कारो नागराज आप लो ढोली मा लक निकलेव्, राजा को प्राण हरण, राजा को महल मा पोहचेव .नागराजला राजा न जसो देखिस, तसो दंडवत प्रणाम करिस. नागराज आदर तिथ्य लक प्रसन्न भयेव् अन राजा भोज ला वर देइस की " हे राजन,तू हर प्राणी की भाषा समझ सकजो "असो कहकर नाग राज निकल गएव.
असो होता आमरा महान प्रतापी प्रजा वत्सल अतिथि को सम्मान करने वाला।जय राजा भोज
बोध:अतिथी देवो भव। घर आयेव अतिथी चाहे दुश्मन काहे नहीं रव उनको सन्मान करनो मंजे भगवान को सन्मान आय.
✍️ सौ छाया सुरेंद्र पारधी
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