या कहानी आय मोरो मावसी की पहिले को जमानो मा कम उमर माच टुरा- टुरी इनका बिया होती। उनला तब समजत भी नव्हतो का घर गृहस्थी कसी संभाल्यो जासे, परिवार का होसे। तरी उनको बीया कर देंत होता। अन वय खुशीलक जिंदगी बितावती। अन आपरो जीवन पार पाड़ती। तसीच मोरो मावसी की भी जिंदगी बीती।
पंधरा साल को उमर मा मोरो मावसी को बीया भयो कसेत। सासू होती, सुसरो नवतो, दुुय भासरा होता एक ननद होती है। सासू अच्छी होती कसेती, सब तुमसर मा किराया लक रवत होता। पर मोरो मावसी का भासरा मोठा खराब, बेवड्या। ना मोवस्या भी तसोच होतो। वोन जमानों मा एक साइकील सुदरावन को दुकान होतो अन एक चाय की टपरी होती।साइकील को दुकान दुय भाई चलावत होता अन मोरो मोवस्या चाय की टपरी चलाव। पर तीनयी भाई बेवड़ा रवनो को कारन उनन साइकील को दुकान को सामान दारू पीवनसाठी बिक-बिकके सारों दुकान डुबाय डाकिन।
मंग बची चाय की टपरी वा पहिले पासुन मोरो मोवस्या को हात मा होती। आता भयो असो का मोरो मोवस्या को दुई भाई इनकी बायका असी होतीन का नवराला भगवान मानती, बडी आज्ञाकारी। नवरा को सामने बोलत भी नवतीन अन नवरा काही गलत कर त रोकत भी नवतीन। असो करता करता दुई भाई जवर काहीच नहीं बच्यो होतो, बची होतीत मोरो मोवस्या की टपरी। पर इनको मा मोरी मावसी जरा हुशारच होती, वा हमेशा मोरो मोवस्या ला गलत कामसाथी रोकत होती, अन चाय को टपरी पर खुद जात होती, येको कारन मोरो मोवस्या की टपरी बची रही। मोरो मोवस्या दिन भर की कमाई दारू मा उड़ावसे कयके खुद मोवस्या संग चाय को टपरी पर जात होती, अन दिन भर संग रवत होती। दिन भर को कमाई मा लक काहीं पैसा बचावत होती अन आपरो टुरू पोटु को लिखाई पढ़ाई कना ध्यान देत होती।
मोरो मावसी ला दूय टुरा न एक टुरी से। असो करता करता उनको बीया ला पंधरा साल बित गया, पर मोरो मोवस्या की दारू सुट नको। मोरो मोवस्या की दारू सोड़ावन लाई मोरो मावसी न खूब प्रयतन करीस, खुब दुःख झेलीस, मार खाईस । कभी कभी त मोरो मोवस्या रस्ता लक गलंड्या गडू सरखो गलंडत गलंडत चल त मोरी मावसी धर पकड़कर घरतक आन असी बहुत सारी तकलीफ मोरो मावसी न सहीस पर हिम्मत नहीं हारिस। अन आपरो टूरू-पोटू इनला अच्छा संस्कार देयिस, उनको बिया करिस, अन उनकी घर गृहस्थी बसायिस। अज तुमसर मा उनको दुय मजली खुद को घर से, चाय की अन डेली नीड्स की खुद की दुकान से।नहान बेटा अन मावसी-मोवस्या दुकान चलावसेत , मोठो बेटा गैस गोदाम मा बाबू से, मिल्ट्री वालो जवाई से। एक बहु टीचर से अन एक घर गृहणी से। अज उनको परिवार एक सूखी परिवार से।
येतो तकलीफ मा मोरो मावसी न दिवस निकलीस , आपरो बेटा बेटी ला लिखाय- पढाय कर कहीं तरी अच्छो करन को काबिल बनाईस। अगर मोरी मावसी मोवस्या को हव मा हव मिलावती अन हिम्मत हारती त गाव सोडके आज यीतउत भटकनो पड़तो।
असी से मोरो मावसी की कहानी। या कहानी एक सत्य घटना आय एक बार मोरो मावसी संग बस्या होता त बात बात मा मोरो मावसी न आपबीती सांगी होतीस येको पर मीन या कहानी लिखी सेव।
येको बोध असो से -
परिस्थिति को डटके सामना करो (कसी भी परिस्थिति रव बुद्धि लक अन हिम्मत लक काम करो जरूर यश मिलसे)
-कु.कल्याणी पटले
दिघोरी ,नागपुर
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