एक बार की बात आय ,एक केकडा समुद्र को किनारो किनारों चलत जात होतो. बिचं बिच मा जरासो ऊभो रहश्यान मंग पलटकर आपलो पाय को निशाण देखकर बडो खुश होत होतो.
घडीभर चलकर अदिक उभो रहकर मंग पलटकर आपलो पाय की सुंदर डिझाईन देखकर खुश भयेव वोत्तोमाचं समुद्र की जोर की लहर आई ना केकडा को पाय की सुंदर डिझाईन मिटकाय गई…….
केकडा ला लहर पर लगित गुस्सा आई ना वोन कहीस, " हे लहर मी तोला साजरो दोस्त मानत होतो ना तून मोरो पाय की सुंदर डिझाईन मिटकायेस, मोरी खुशी तोला देखी नहीं गई.".....
येको पर लहर न कहीस,,," वय देख उतन पाय को निशाण देखकर् ढीवर केकड़ा धर रहया सेती, वय तोला भी धर लेयेती मुन मी तोरो पाय का निशान मिटकायेव". येव आयकर केकड़ा ला पश्चाताप भयेव.
सच बात से की आपुंन सामने वालो को बात ला आपलो सोच को अनुसार गलत समझ लेसेजन पर सिक्का का दूय बाजू रवसेत ।
सीख : मन मा बदी (वैर) आननको को बाटा आमीन सोच समझकर निष्कर्ष कहाडे पाईजे।
✍️सौ. छाया सुरेंद्र पारधी
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