Wednesday, June 3, 2020

हिरा chhaya surendra pardhi 002


बोध (प्रेरणा)
लेख

जीवन मा हरेक पल मा आमी काही ना काही काही सिकत रव सेजन.सिकन की प्रक्रिया निरंतर चालू रवसे. आपलो आसपास असी बहुत सी गोष्टी रवसेत जेकोपासून काही ना काही बोध मिलसे.

एक दिवस रस्ता लका जात होती एक माणूस नाली म पडेव होतो.आसपास लोग जमा होता,बात करत होता, की "बटा रोजच दारू पिवसे," ना पडसे.नाली मा पडणे वालो भी आपलोला बोध देसे की मी पियेव ना पडेवं ,तुमि नोको पिओ.

झाड पासून नम्रता सिको ,जब झाड फल लक लद जासे ऊ झुक जासे. तसोच ज्ञानी माणूस नम्रता लक लदेव रवसे.

एक लहानसी माकडी जारवा बनावसे.. जब वरी वोको जारवा नहीं बन तब वरी वा निरंतर जारवा बिनंसे...ओकोपासून बोध मिलसे की आपून भी मेहनत निरंतर करे पाहिजे सफलता जरूर मिले.

✍️सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

                             हिरा
                       ***********

    एक बार की बात आय,ठंडी का दिवस होता मुन राजा न आपलो दरबार बाहर तपन मा लगाइतीस, वोत्तोमाच एक व्यापारी आयेव ना कवन बसेव,की "राजा साहब मोरो जावेड दूय वस्तु सेती एकदम सारखी,एक अनमोल हीरा आय, ना एक कांच को टुकड़ा, दुही मा लक असली हीरा ओरख्यात त अनमोल हीरा तुमरो,,नहीं त तुमला हीरा की कीमत मोला देनो पड़े". राजा बिचार मा पडेव,दरबार मा उपस्थित सब न कोशिश करीन पर कोनी सही सांग नहीं सिख्या,.
तब एक अंधरा बुड़गा बाबाजी दरबार मा आया ,ना हात लगायकर असली हीरा पहचानीस,राजा न जब बिचारिस की हीरा कसकस ओरख्यात , त बाबाजी न सांगिस, जो येत्तो तपन मा भी ठंडो होतो ऊ हीरा आय.जो गरम होतो ऊ कांच.

सीख: कठिन परिस्थिति मा भी माणुस न आपलो आपा नहीं खोए पहिजे .गुनी माणुस हर परिस्थिति को सामना शांतता लक करसे. तबच ऊ हिरा सरखो अनमोल बनसे.

✍️सौ. छाया सुरेन्द्र पारधी

No comments:

Post a Comment

कृष्ण अना गोपी

मी बी राधा बन जाऊ बंसी बजय्या, रास रचय्या गोकुलको कन्हैया लाडको नटखट नंदलाल देखो माखनचोर नाव से यको!!१!! मधुर तोरो बंसीकी तान भू...