एक गावमा एक पंडीत आपल परीवार सहीत रवत होतो. ऊ रोज भगवान की पूजा करत होतो. एक दिवस भगवान प्रसन्न भयेव. पंडीतन भगवान जवर खूप लारो धन मांगीस. भगवान न ओला तथास्तू कहिस। अना सांगिस की सकारिस उठश्यान अांग पाय धोवजो अना मुंडन करजो। ओको बादमा एक डंडा धरश्यान लपाएकर बसजो। मंग सकारी जो तुमरो घर पहले आए ओला डंडा मार देजो त ऊ सोनो को मूर्ति मा बदल जाए। सोनो बिकजो ना धनवान होजो .दूसरों
दिवस सकारी उठेव, आंग पाय धोइस अना भाली ला बुलायश्यान मुंडन करिस। अना डंडा धरश्यान बसेव।भाली न बिचार करिस, पंडित न पहले आंग पाय धोईस ना मंग मुंडन करिस , काई तरी घोर से मणृन भाली बी झाड़ को आडप लूकायश्यान देखन बसेव।
घड़ी भर मा पंडित घर एक भिकारी आयेव,ओला पंडित न डंडा मारिस त ऊ भीकारी सोनो की मूर्ति बन गएव। येव देखश्यानी भाली ला बड़ो अचरच भयेव ओला लालच सुटी। दूसरों दिवस ओन भी पंडित सारखोच भिखारी ला डंडा मारिस त ऊ भिखारी मर गयेव । भाली ला फासी की सजा भई.
सिख: लालच लक होसे दूर्गती. लालच बुरी बला से.
जेको कर्म को फल ओलाच भेट्से.
✍️डी पी राहांगडाले
गोदिंया
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