Monday, July 20, 2020

मुसर D.P.Rahangdale 02


          मुसर
( हरबा नावको एक कुणबी होतो, वू मोठो भाविक 
होतो, ओक बायको को नाव होतो सुंदरी वा बऴि 
कनका डाईन होती, एक दिवस ऊनक घर एक 
साधु बाबा आयेव  तब.................................)
हरबा' :- आवो माहाराज जी, बसो. बहुत दिवस 
           भया  तुमरा दर्शन भयाच नही. अरे कांहा
            गयीस रे  माहाराज आया सेती. पाय 
            धोवन पाणी आण. 
(पायपाणी भयेव,आसन देईस ना लाहानांग गयेव)
हरबा :- अरे बहुत दिवस मा माहाराज आयी से 
           काही  तरण पुरण बनाय ले कसु.
सुंदरी :- कायको माहाराज, उन्हाळो का दिवस 
           सेती.यतर  गर्मीमा चुलो कोन पेटाए कसु,
           पर तुमी  कसेव त दुकान परलक काही    
           मालमसाला  ना सामान आनदेव कसु.
हरबा :- ठिक से, दे झोरा दुकान पर जासु.
   (हरबा दुकान पर जासे, सुंदरी मोठांग जायशान )
सुंदरी :- तुमी कायला आयात माहाराज,आमर 
           घरको मुराट्‌या ढिवर घर मुसर आनन गयी   
           से,आमर  घर कोणी आया त उनला मुसर
          लक मारसे ना उनकी मालमता हिसकसे.
साभु :- वायह्‌याद से, मी पराय जासु बाबा.
सुंदरी :- वए गली करलका आयेती, तुमी लाहांनाग
           लका पराय जाव तुमरो जान बचजाए.
(साधु माहाराज परासे हरबा सामान लेकर आवसे )
हरबा :- अरे या सामान धर, ना काही बनाए ले 
           कसु पर माहाराज काहां गयेव दिस नहीना.
सुंदरी :- काय को माहाराज आय. मोला मुसर च   
           मांग.नाहाय कहेव त  पराय गयेव.
हरबा :-देयदेन को होतो जसो खराट्‌या माहाराज 
          ला   खराटा, गाडगे बाबाला गाडगा,तसो 
          एव  मुसर्‌या महाराज होए.
सुंदरी :-  तुमला गरज रहे त लेयदेवना मुसर. 
हरबा :-  दे ऊ मुसर लेयदेसु.
(मुसर माहाराज ला देखायशान जोरलक कसे, 
माहाराज मुसर धरो, मुसर ला देखशानी माहाराज भलतोच समजसे ना सुटमुंडा करसे.)

डी पी राहांगडाले
    गोंदिया

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