Monday, July 13, 2020

कसी बनी मामाजी mahendrakumar patle 01


   कसी बनी मामाजी

(शुक्रवारको आमगाव बैल बजारलक आयेवको बादमा तीन बिहाईको जेवणको पंगतपरको संवाद..... 
स्थान:- चतुरजीको टुराकी ससराल )

रामाजी:- अज कयी दिवसको बाद कटारकी श्याक खायके असी आत्मा तृप्त भयी.

गोमाजी:- बरोबर कह्यात बिहाई, अज त् खानोमा मज्या आय गयी. 

चतुरजी:- मोरो बहूको हातमा जादुच से बिहाई, मोला त् इनको हातकी श्याक खायके मोरो मायकी याद आय जासे.

रामाजी:- कायी बी सांगो बिहाई, पर असी झक्कास श्याक तुमरी टुरी भी नही बनाव्. 

गोमाजी:- बिहाई तुमरी भी त् टुरी भी तसीच से जी, कभी श्याक खारी बनाय देसे, त् कभी अलोनी.

चतुरजी:- बिहाई खोट त् तुमरोमाच से जी. कभी बजारलक कायी चांगली भाजी आनो नही, ना बहू इनला खोट देसेव.

गोमाजी:- खरी कह्यात बिहाई, ये रामाभाऊ त् बजार सरेव परच बजार करनला जासेत; ना आनसेत दुय रूपयाका चार किलो भेदरा.

रामाजी:- येती बढाई सांगो नोको बिहाई, तुम्ही त् शुड्डू  का पैसा बच्याच त् आनसेव बजार, नही त् दुकानदारको सडेव पडेवच सही.

चतुरजी:- तुम्ही दुही बिहाई ना,  एक नंबरका पैसा का चोचल्या सेव.

रामाजी:- जान देयेव बिहाई, तसी आमरीच टुरी शहानी से. म्हुन तुम्ही येतरी मोठी मोठी बात् सांगसेव.

बहूबाई:- त् सांगो, "कसी बनी मामाजी पिकेव कटार की श्याक......?"

सब बिहाई:- बडी मिठी, बडी मिठी.
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महेंद्रकुमार ईश्वरलाल पटले (ऋतुराज)
ता. १३/०७/२०२०

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