Monday, July 27, 2020

राखी y c Chaudhary 20



             राखी
              बंधन
( काव्य को प्रकार अभंग)

पुनवा राखीकी, लहर खुशीकी
आनंद जनमा  ,मावनही।।
लहान पनमा, खुशी या मनमा
बांधन हातमा, मोठीराखी।।

शारदा छापकी, मोठं गजराकी
मनगट भर ,शोभादिस।।
राखी होयपर,शोभं पुस्तक पर
विद्याकी या देवी,सरस्वती।

आता बजारमा, दुकानकी शोभा
रंगी बेरंगी राखी, दिससेती।।
यालेवूका वालेवू,खुश होय  भाऊ
महागच लेवू ,डिजीटल।।

अशी रित आता,बदल देखता
खुशिको महिना ,आयगयोव।।
प्रेमको बंधन,धागाच बांधनं
काहेला लेसेव, किमतीया।।

ध्यानमा ठेवनं ,पुरानो कथनं
द्रोपदीकी लाज,बजाईस।।
एकेक धागाकी,एक एक साड़ी
चिरहरन बेरा, पुराईस ।।

अशी राखो लाज, तब होसे काज
प्रित बहिन भाईकी,अजरामर।।
जेला  बाहिन नही,ओला बांधो राखी
प्रेमकी प्रचिती, तब होय।।

येन जमानोमा, राखीया झाड़ला 
 बनको  रक्षन,करसेती।
पर्यावरन शुद्ध, हवा होय शुद्ध
कार्य रचनाबद्ध,करो आता।।

चांगली शिकवन,देवो सुसंस्कार
परंपरा आपली ,जपोआता।।
धागा योव राखीको ,बंधुभाव को
सब रहो सुखी, याचराखी।।

जय राजा भोज,जय गड़काली
जय पोवार, जय पोवारी बोली।।

वाय सी चौधरी
गोंदिया

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