संस्कार
विकास
(तर्ज-अभंगकी)
मानव नरदेह, एकबेरा भेटसे
कार्य करो थोर, जिवनमा।
राजाभोज सरीका ,होवो चक्रवर्ती
पोवारकी किर्ती ,जगभर।।१।।
टुरा- टुरीला देवं, चांगला संस्कार
उनको भविष्य, सुखीहोय।
शिक्षण शिकावो,ऊच्च दर्जाको
समाजमा मान ,कुटूंबको।।२।।
डॉक्टर मास्तर, भया ईंजिनीअर
मारो गरूड़ झेप ,कलेक्टर।
शिक्षण चांगलो,आदर्श आपलो
ठेवो सबसाठी, समाजमा।।3।।
नौकरी साठीसब, सोड़िन घरदार
घर संसार कर ,लक्षठेवो।
मायना बापकी ,करो तुम्ही से्वा
श्रावन बाळ जसी ,किर्तीहोय।।४।।
समाजमा सुंदर, शिकी टुरी सेती
दुसरं जातीकी ,आनोनोको।।
जमानोकी रीत ,बदल गयीसे
दुसरोकं घरं ,जानलगी।।५।।
दुसरं जातीमा ,नोको करो बिह्या
परीवारकी नाक , कापोनोको।
घर संसारला, स्वर्ग करो आता
धन्य सासु-बहु, मायबेटी।।६।।
सुकार्यकी किर्ती, चौबाजु पसरसे
प्रसिद्धी मिळसे, जिवनमा।
थोरकं सरीका,जरा कार्यकरो
प्रसिद्धी मिड़ावो ,समाजमा।।७।।
आपला संस्कार ,दुसरा चलेती
उद्धार करेती ,कुटुंबको।
संधिको फायदा, लेव सुसंस्कार
समाजको विकास, तब होय।।८।।
वाय सी चौधरी
से .नि.मुख्याध्यापक
गोंदिया
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