Friday, September 4, 2020

पोवारी निबंधलेखन स्पर्धा क्रं ०१

 

पोवार इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष द्वारा आयोजित

निबंधलेखन स्पर्धा क्रं ०१

माय की महती(माय संस्कार की शिदोरी)

 

क्रमांक

रचना

रचनाकार को नाव

1.       

माय संस्कार की शिदोरी

श्री गुलाब रमेश बिसेन

2.       

माय

सौ छाया सुरेंद्र पारधी

3.       

माय संस्कार की शिदोरी

प्रा.डॉ.हरगोविंद चिखलु टेंभरे

4.       

मायःसंस्कार की शिदोरी

रणदीप कंठीलाल बिसने

5.       

माय की महती

श्री डी पी राहांगडाले

6.       

माय की सिख

श्री सी. एच. पटले

7.       

माय की महत्ती

सौ शारदा चौधरी

8.       

माय की महती

डॉ.शेखराम परसराम येळेकर

9.       

माय की महती (माय संस्कार की सिदोरी)

              सौ.वर्षा पटले रहांगडाले     

10.   

माय की महती (माय संस्कार की शिदोरी)

प्रा.मुन्नालाल रहांगडाले

11.   

माय की महती(माय संस्कार की शिदोरी)

प्रा. डॉ. प्रल्हाद रघुनाथ हरीणखेडे

12.   

माय की महती

पालिकचंद बिसने











1.  माय संस्कार की शिदोरी

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जसो मातीक् गर्भमालक बीज अंकुरायस्यान बाहेर आवसे. अना मातीक् भरोसोलक जगसे अना मोठो होसे. तसीच माणूसकी निर्मिती होसे वा मायक् गर्भमा ! याहानलकाच चालु होसे संस्कारकी पेरणी. असो कये जासे का , माय मंजे पयलो गुरू. येव गुरूच आपलोला चलनला सिकावसे. मंग् वू दुय पायपर चलनो रये नही त् जिवनक् रस्तापर चलनो रये. मायका संस्कारच व्यक्तीला सफलताकी कुंजी मिलाय देसेत. एकानबार रागलका माय मारबी देसे. पर मार देयेपर प्रेमलका कोर्यामा लेयस्यान लोभ करनेवाली वा मायच रवसे.

चलता चलता पायमा काटा गळेपर , "अवो मायवो !" आपल् आपच तोंडमालक आवसे. येको मंग् मायकी ममता रवसे. बुखारपानीलक बिमार पळे टुराला रातभर मांडीपर झोपायस्यान धरनेवाली माय कबी मांडी दुखी नही कव् का पाय दुख्या नही कव्. सहनशिलताको सागर मायमा समायेव रवसे. मायक् ममतामा जसो लोणी सारको नरमपणा रवसे तसोच गोटादून कळकपणाबी रवसे. येको बहुतच साजरो प्रसंग साने गुरूजीन् आपल्  शामची आई येन् कितिबमा लिखीसेन.

एकघन शामक् आईन् शामला फुल बेचस्यान आननको किम सांगीतीस. देवपूजाला रोज फूल लगत. गावका सब टुरूपोटु एकच जागका फूल आनत. वोकलक शामला कयुबार फूलच नोहता मिलत. वोकलक एकबार शामन् फूलकी कलीच तोळस्यान आणिस अना पाणीमा ठेयीस. पाणीमा काहीबेरामा कलीका फूल बन्या. वय धरस्यान शाम आईकन गयेव. फूल पाणीलक फिज्या देख आई समज गयी. वा कवन बसी , " अरे शाम , तोला येतरी कायकीरे घाई ? अरे , कलीला झाळपर फुलन देन्." असी आई ममतामय रवसे.

शामला पोवनला शिकावनको होतो. पर वू बिहिरपय पोवनला जानक् बेरा घरमा लुकायजाय. तब् शामक् आईन् हातमा काळी धरस्यान वोला खिचत घरक् बायरा काहाळीस अना बिहिरपर पोवनला पठायीस. असी लेकरूयीनसाती कठोरबी होसे आईकी ममता. मायक् ममताको सागर आपल् लेकरूसाती कबिच नही आट्. खुद उपाशी रयशान बच्चाला भरपेट चरावणारी मायच रवसे.

अशी मायकी ममता अना मायका संस्कार जिवणमा सरत नही. माय आपल् बच्चाला कबी लाळ त् कबी फटकार देसे. येकोमग् आपलो बच्चा जादा लाळलक बिगळेबी नही पायजे. आपल् मायापासून टुटेबी नही पायजे. येव हेतू रवसे. येन् दुनियामा सपाई बच्चाईनला सारक् मायालक पालनेवाली मायच रवसे. सबला सारकी माया लगावनेवाली माय सदा श्रेष्ठ से. असो मायला शतस: वंदन. आखरीमा येतरोच कहुन....

हासके लुकावसे

दुःख आपलो मन का

आमला कहा मालुम

घालमेल आईको मन की

गुलाब रमेश बिसेन,

मु.सितेपार, ता.तिरोडा,  जि.गोंदिया  ४४१९११, मो.नं. 9404235191

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2.  माय

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         माय विश्व जननी से। माय बिना येन संसार की कल्पना भी नहीं कर सकजन। माय शब्द उच्चारता डोरा को सामने ज्या सोज्वळ ,मायाळू,त्याग मूर्ती दिससे वा आय माय। त्याग समर्पण की मूर्ति आय माय। जगमा साधु संत जेकी महती गाइसेन जेको महतीला शब्द को बंधन मा बांधता नहीं आव असी आय माय।माय जीवन को पयलो गुरु आय

        माय से माया को आगर, ओको चरनोमा सुख को सागर

      माय नव महीना आपलो उदर मा ठेवसे मरण कळा सहष्यानी जन्म देसे।माय ना बेटा को बिचमा प्रेम की डोर जन्म को पहले बन जासे। संस्कार की शिदोरी जन्मभर साती बांध देसे वा आय माय। जेला आपली संतान जगमा सुंदर दिससे वा आय माय। कवि यशवंत अाई की महती एक लाइन मा व्यक्त  करीसेन, स्वामी तिनही जगको माय बिना भिखारी  माय बिना सब संसार अधुरो से। "शाम पाय गंदा होयेत मुन येतरो चिंता करसेस तसो मनला भी ठेव" असो सांगणेवाली साने गुरुजी को मायला बिसरकन कसो चले। माता जिजाऊ जेकॊ संस्कार खाल्या शिवाजी महाराज तयार भया। जीनं हिंदवी स्वराज्य की स्थापना करीन ,छत्रपति बन्या।

         माय की ममता देखनो से हिरकनी ला याद करो ज्या दही दूध बिकनला राज्य मा गई थी बिकता बिकता ओला समय को पता नहीं चलेव ना राज्य का दरवाजा बंद भया। घर ओको दूध पीतो बच्चा होतो आपलो बेटा को प्रेम साती वा ऊंचो बुरूज उतरकर गई।

    तोरो आंचल मा स्वर्ग को आनंद से माय, चरणों मा तोरो स्वर्ग को द्वार से माय

ईश्वर हर जागा पर हर कोनी संग रह नहीं सक मुन मायको रूप मा हर घर रवसे। माय को चरण मा स्वर्ग से मुन ओकी सेवा करो।

सौ छाया सुरेंद्र पारधी

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3.  माय संस्कार की सिदोरी

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माय एक असो शब्द से जेको महत्व को गुणगान जेतरो बी करो वोतरो कमच से माय की ममता प्यार लाड़ दुलार बहुत अदभुत अप्रतिम से विश्व मा सिर्फ माय की ममता बहुत प्यारी से जब तक संसार माय से तब तक एक आदर्श समाज परिवार निर्माण मा महत्वपूर्ण भूमिका निभावसे l परिवार मा माय-बाप की छत्रछाया से तब तक परिवार एक आपरो आदर्श स्थापित कर से लहान लक मोठो करत वरी आपरी अगर कोनी वास्तविक संस्कार सिदोरी आय माय लक प्राप्त गुण जो समाज मा व्यक्ति ला महान बनावसेत आपरा बेटा-बेटी कतरा बी मोठा होय जायेत पर माय साठी मोरो बबलू येव शब्द पायले आवसे गलती करेव पर फटकार अना वोतरोच दुलार एक अलगच भाव रहवसे संस्कार को स्कूल की पयली गुरु मायच आय जसो पोवार समाज की मायबोली पोवारी आय जो आपरी माय जसो आपरो परिवार ला संस्कृति संस्कार संग जोड़से तसी आमरी माय बी आमला संस्कारवान बनावसे लहन पन मा एक शिक्षक को रूप मा सही गलत की जानकारी धर्म संस्कृति को मार्ग पर सही पथ प्रदर्शक को काम करसे सामाजिक जीवन माय आपरो अनुभव अना मातृत्व को आधार पर आपरो परिवार की एकता ला सदेव संगठित ठेवसे माय को धरती पर ईश्वर को रुप मा साक्षात दर्शन सेत येको लाईक सबन माय को महत्व समझ कन आपरो जीवन सार्थक बनावन को प्रयास करे पायजे काहेकि जीवन मा सब प्रेम छन भंगुर से पर मातृत्व प्रेम अंनत से येको लयीक माय मोरी संस्कार की सिदोरी या से सबदुन प्यारी l

प्रा.डॉ.हरगोविंद चिखलु टेंभरे

मु.पो.दासगाँव ता.जि.गोंदिया

मो.९६७३१७८४२४

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4.  मायः संस्कार की शिदोरी

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माय,असो येव अक्षरसमूह आय जेको उच्चारण करेव् करेवच हृदयमां ममताकी लहर उमड् पडसे.माय येवं शब्दच असी जादू से का बहिरोला बी सुनाय देसे,अंधरो ला दिखाय पडसे,मुकोला स्वर फुटसे.

माय की महती जेन् जेन् साहित्य मां विदित से.असा सप्पाई साहित्य संदर्भ को अवलोकन करेपरा एक बात केंद्रिभूत दिखाई पडसे वु म्हनजे माय ला दुसरो पर्याय नाहाय......!

प्रभू श्रीरामचंद्रजी नं तं संपूर्ण संसार ला मायभूमी को महिमा सांगीन एक वाक्यलका "जननी जन्मभूमीश्च स्वर्गादपि गरियसी"...! जेंज्या माय को वास रवसे असी मायभूमी स्वर्गदूनबी श्रेष्ठ से.म्हनजे माय को दर्जा सृष्टी मां सर्वश्रेष्ठ रव्हसे.

माय- व्यक्ती को पयलो गुरू.गर्भ मां को अरभक् पासून तं मरेवरी माय आपलो लेकरू ला जपसे,मार्ग दिखावसे,चुकेपरा सुधारन की संधी देसे,संकटकाल मां पल्लु मां आसरा देसे अना समय आयेपरा लेकरूसाटी खोटो बी बोलनसाटी आपलो सत्व दांव परा लगावसे.येतरो त्याग येनं समुचो संसार मां कहान दिससे....?

माय ममता को सागर से.माय कं पदमार्ग परा टुरू चलसे.माय की हर बात  लेकरूला ब्रह्मवाक्य लगसे.माय की भाषा हृदय की भाषा रवसे.हृदयलका जो जो व्यवहार संसारमां चलसेत वन् व्यवहार मां सात्त्विकता रव्हसे.अना जहान् सात्विकता रवसे वंज्या संवाद-संप्रेषण प्रभावी होसे.

शिक्षण प्रक्रिया मां "प्रभावी संप्रेषण"साटी जो जो तत्व नमूद सेती वको मां शीर्षस्थ असो "हृदयस्थ संवाद" रवनो जरूरी से असो येव् संवाद माय जलमपासूनच करसे.मुहूनच माय को हरशब्द लेकरूसाटी प्रमाण रवसे.

टुरी बिह्या होयेपरा ससुराल मां जासे पर माय की सकार अना रात टुरी कं सुखी संसारसाटी दुवा मांगत रवसे.येतरी माया ममता येन् संसार मां कोन देय् सिकसे....?

माय को कारीज माय को लेकरूच रवसे.लेकरू कं सुख संपन्नतासाटी माय जीव को रान अना रकत् को पानी करसे.लेकरू कं भविष्य साटी माय सदैव तत्पर रवसे.

माय येव् पात्र सिरफ् मनुष्य जीवनसाटीच नही महनीय रवसे तं संपूर्ण सजीवसृष्टी कं माय जात साटी लागू पडसे.

चिमणी आपलं पिल्लुसाटी वन् वन् भटकस्यार चारो आनसे अना चोच मां चराय देसे.गाय, वासरूला जलम् देयस्यार दरद् मां  आराम नही करं,अपितु जब् वरी वासरू की खूर नहीं साफ होये,जारवो आंगपरको नही निकलं तबं वरी चाटत रवसे.केतरी बी दूर चरानसाटी जाये पर महातनीबेराला बराबर हंबरत हंबरत घर को रस्ता धरसे.येतरी अतुल्य ममता की धारा सिरफ् मायच कर सिकसे...!

माय येव् सजीवसृष्टीकी एक स्वतंत्र जात से.संपूर्ण सृष्टी मां असीम त्याग की मूर्ती केवल माय से.

"माय असी जात,माया को नही अंत

केतरा भया संत,मायमहती लिजाईस दिगंत....!!

 

असी या माय तीनही लोकमां अजरामर से.वकी तुलना कोनसंगाच नही होय् सीक.

 

रणदीप कंठीलाल बिसने

मु.सिंदीपार (नागपूर)

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5.  माय की महती (माय संसार की शिदोरी)

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माय मणजे काहायममता की मुरत, दयाको सागर,

माय आमला नव महिना पोटमा धरसे,ओन नव महीना मा ओला केतरा दुख सहन करणो पळसे मायलाच माहीत. माय गर्भ मा हातक फोळा वाणी आमरो जतन  करसे, जनम  देय  परभी  टुरा  टुरी कसाच रव्हत. अंधरा रव्ह नही पांगळा रव्ह,उनकमा माय भेदभाव  नही  कर. आपल  हातलक  एखाद गलती भयी तरी माय टुराटुरी कोच पक्ष लेसे चाहे ओक साठी ओला झगळा करनो पळे तरी.  मायक बिना सारो  जग सुनो सुनो लगसे मणुनच कसेती "माय माय हाक मारुन फीरजावुन दुनिया सारी" "स्वामी तीनही जगको माय बिना भिकारी"

माय आमला लहानो को मोठो करसे लाळ प्यार मा कमी नही कर.चांगलो संस्कार देसे, लाहानपण पासुनच ओला बोलनला शिकावसे.पयलो गुरु मायच आय.जिजाऊ मातान शिवबाला चांगला संस्कार देईस ओन चांगल शिकवन लकाच हिंदवी राज की स्थापना करीस माय उत्तरा अभीमन्यू ला पोटमाच  चक्रयुव्ह भेदनको कला अवगत कराई होतीस.मणुनच बाप पयले मायको नाव लेसेती,जसो-सिताराम,  उमाशंकर, राधाकृष्ण.

मायका आमरपर केतरा उपकार सेती.सात जनमा ही नही भुल सकजन.वा आमर साठी कभी उपासी तापासी रवसे पर आपल घास माको घास टुराला चरावसे.मणुन सबमा मायको स्थान सबदुन उचो से.

 

 

माय तोरं मूर्ती वाणी यण जगमा मूर्ती नही।

अनमोल जनम देईस तोरा उपकार भुलु नही।।

नव महीना तुन दुख झेलेस ना धरेस पोटमा।

रखरखत तपनमा भी कष्ट करीस तू खेतमा।।

तुच गुरु तुच माई तुच आस मोरी सबकाही।

अनमोल जनम देईस तोरा उपकार भुलनको नही।।

                    ॐॐॐॐॐ

 

डी पी राहांगडाले

गोंदिया

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6.  माय की महिमा (माय-संस्कार की शिदोरी)

शिर्षक : माय की सिख

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सबलक् पहिले मि येन निंबध लिखन को पहिले "माय" को चरण मा माथा टेकूसूं। अना वंदन करू सू...येन निंबध मा काही अनजान कारन लक चूक होये त् माय ला माफी मांगू सू।

माय जन्मदाती आय, सारो संसार माय को महिमा लक् परिचित से!

माय को महिमा को बारे मा लिखनो मज्जे स्वतः ला तिर मात्र भी संवेदना को व्याकुलता मा, भावावेश मा संभालो आय। याद स्मरण मात्र लक डोरा मा गंगा-जमुना बहवन लग् सेत। असो माय को उपकार जग प्रसिद्ध से।

माय की महिमा मोठी अपरंपार।

बच्चा को दुःख सुख की तारनहार।।

"माय" शब्द पर लिखनसाती की हजार पेज की किताब अधुरी पडेती। परन्तु यो एक साहित्य अल्प परिचय महिमा को भाग मह्णूनस्यान संक्षेप मा लिखनो मा आय रही से।....

"माय" यो शब्द पूरो ब्रह्मांड मा सर्वश्रेष्टता प्राप्त से। जब पासून ब्रम्हा विष्णु महेश सृष्टि कर्ता को माध्यम लक मानव जन्म अवतरण भयो तब पासून माय को महत्व महान से, ...

माय क् अवतरण जग मा महान

कोनी नहीं सानी जग मा माय वानी।।

माय केवल जननी अना मांसपिन्ड को  पुतला च् नहीं! आदिम काल पासून त् जब तलक  आसमान मा चांद सूरज रहेत तब तलक येन धरती पर मानविय विकास पथ पर पुरूष वर्ग को मार्गदर्शक आय।

माय हर घर परिवार मा बच्चा की प्रथम गुरू आय। माय को संस्कार पर बच्चा को जीवन निर्भर से। जसो मुर्तीकार को सांचा मा माटी भरी जासे तसो मुर्ती को प्रकार बनसे। सांचा कृष्ण को त् मुर्ती कृष्ण की, सांचा राम को त् मुर्ती राम की....

माय को ममता, प्यार, शांति, संतोष, सहचारिणी, आनंद वत्सल, असा अनेक गुण को खजीना च् आय। इतिहास मा अनेक उदाहरण जग प्रसिद्ध सेत।

जसो जिजामाता न् शिवाजी घडाईस.. असा अनेक विर पुत्र माय की देन जग प्रसिद्ध से...

माय त्याग, बलिदान की अभूतपूर्व शक्ति दायिनी से, माय का विर पुत्र देश को रक्षण साठी हर घडी भारत देश को सिमा पर डट्या रव्हसेत। माय उपासी रहस्यान बच्चा ला सांगो पान करनो मा काही कसर नहीं ठेव।

स्वतः मोरो स्वः माय को माध्यम लक् "मोरो माय की सिख" को लिखान बया करू सूं।

मि मोरो जन्म गांव लक चालिसा बरस पहिले आयो। अना नागपूर माच रव्हन् लग्यो। एक प्रसंग की बात। माय ला नागपूर देखावनो आन्यो ।वोन जमानो मा महाराज बाग अना अजाब बंगला देखने को काबिल होता। वोन जमानो मा बिजली लक उजाडो पाडन को जरिया नोहोतो। दिवालगिरी को उजाडो लक अंधारो बेरा काम करनो मा आवत होतो।

तब मि एक खोली मा लक दूसरो खोली मा दिवालगिरी को दिवो धरकन जात होतो। वोन बेरा दिवालगिरी धरन को ढंग मोरो माय ला नहीं जच्योत् पटकन मोला कहिस बेटा " हलाय जाहये त् पलाय जाहये" येन मोरो माय को शब्द न् मोला जिंदगी मा कसो ढंग लक जीवन जगन् असो  दिवालगिरी को दिवो पर लका मोला ख्याल मा आयो। यो जीवन भी दिवालगिरी को दिवो वानी आय। कब, कहां कोनसो बेरा हवा को झोका आये अना यो जीवन पलाय जाहये? येको नेम नाहाय! येन दूय शब्द ला धरकन आपरो जीवन बिताया रहीसेंव। जब मोला जीवन मा अंधारो समझसे तब मि माय ला स्मरण करू सू। अना खतरा लक बच जासू। असो मोरो माय का अनमोल शब्द जीवन ज्योति को रूप मा समझू सू। बेरा बेस पर आपरो बचाव भी करू सू।

 

माय की महिमा से जग मा न्यारी

देवी स्वरूप से,   माय. आमरी ।।

 

"माय" ला करू बारंबार नमन

माय की सदैव छाया रहे चमन।।

सी. एच. पटले

गोपाल नगर नागपूर मो. 7588748606

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7.  माय की महत्ती

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"स्वामी तिन्ही जग को माय बिना भिकारी" येनं स्वामी विवेकानंद को सुंदर ओळ मा लक माय की महानता दिससे. माय मंजे ममता,आत्मा अना ईश्वर को मिलाप आय.आपलो जीवन की सुरवातच माय पासून होसे.बचपन मा लाड-प्यार लक लालन-पालन करनेवाली,चिमणी कावरा को घास आय कयकर एक-एक घास चराय देनेवाली अन्नपूर्णा देवी मंजे माय. संतान बिमार पडेपर रात-रात भर जागकर सेवा करणारी डॉक्टर नर्स मंजे माय.

कसेत का माय भगवान को दुसरो रूप आय.भगवान तं येनं धरतीपर आय नही सकं मुन वोनं माय ला येनं जग मा धाडीस.

माय मंजे मंदिर को करस

माय मंजे आंगण मा की तुरस

          माय संतान पर गुस्सा बी करसें पर वोको भलो साती. पर पल भर मा वा वोला जवर करसें. माणूस केतरो बी मोठो होय जाये पर माय को सामने वू लहानच रवसें.थकहार के आये पर माय को कलेजा ला लगस्यानी वोकी सब चिंता मिट जासेती."माय मंजे संतवानी माय मंजे वाळवंट को थंडो पाणी.बायको को कवनोपर माय को कलेजा काहाडस्यानी टुरा ला ठेस लगं सें तबं माय को कलेजा मा लक आवाज आवसें "बेटा तोला लगेव तं नही" येव रवसें माय को मन.

           सावली देनसाती माय मोरी जनमभर रही तपनमा

           बोल आशीर्वाद का लेकरुसाती मी देव देखुसु वोकोमा

 माय की महत्ती आय मुन जिजाऊ नं शिवबाला घडीस. सती अनुसया नं तीन देवता इनला लेकरू बनायकर दूध पिवाईस अना दत्तात्रय जनम भयेव. औलाद ला संस्कार देनेवाली माय चं सें.माय नं कई वीर-थोर रत्न ला जनम देई सेस.मुन कसेती "जेको हात मा पारणा की दोरी वा जग ला उद्गारी".

                      माय मोरी गुरू सखी सें मार्गदर्शक

                    माय मोरी मोरो साती सब काही सें

                    वोको मा देव को दुसरो रूपंच जणू

                        संकट मा पाठशीण मोरो उभी रवसें

आपलो भूक लक व्याकुल रोवतो तानुल्या साती हिरकणी अंधारो, जखम की पर्वा करता रायगड को बुरुज उतर गयी. या आय माय की ममता.खुद कष्ट मा रयकर संतान ला सुख देसे.

                       माय सारखो तीर्थ जग मा नही चोवं

                       चरण धोयकर तीर्थ तू जीवनभर पीवं

शारदा चौधरी

भंडारा

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8.  माय की महती

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माय टुरा जन्म देसे. खुद उपाशी रयकन टुरा ला चरावसे वा माय आय. टुरा अगर नही खात रहे त् बहुत दिमाख लगायकन माय टुराला चरायकनच दम लेसे. माय यव बालक को पहिलो गुरु आय. टुरा बहुत जीद करते वा पुरी करनकी कोशिस माय करत रवसे. एक संत महात्मा न् कही सेस का अगर हर मायन् ठयराय टाकीसका मी आपल टुराला सच्चाई क् रस्तापर चलनला शिकाऊ ना बहुत साजरा संस्कार देऊ त् दुनिया की पुरी समस्या हल होय जाये. नहानपनी अजी मारनला धाव् त् अजीको घुस्सा शांत करनेवाली मायच होती. मायक्   कोऱ्यामा बहुत सुरक्षितता महसुस होत होती. माय क् कोऱ्यामा लुकायकन मी कहानसेव असो खेलनमा ज्या मज्या रव वा कोणतच खेलमा नाहाय. काटा गळेव त् मायव्, ठेस लगी त्, मायव् तोंडमालका सहजच निकलसे. मायक् सामने संसारका पुरा सुख बेकार सेत.

मोर् जीवनक् पहिल् गुरुला मोरो नमन

डॉ.शेखराम परसराम येळेकर नागपूर //२०२०

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7. माय की महती

(संस्कार की शिदोरी माय)

हर व्यक्ती को जीवन मा महत्तपूर्ण भूमिका अगर कोनीके रव्हसे म्हणजे वा फक्त माय.. माय (आई) माय येन शब्द माच माया लुकीसे.माय यव शब्द जेतरो लहान से ,सोपो से पर वोकी महती शब्द मा सांगनो कठीण से.यव पूरो संसारच माय यन  शब्द मा समाई से.

    आपलो जवळ केतरी बी धनसंपत्ती रहे,पैसा रहे पर अगर माय नही रहे संसार मा व्यक्ती सबमा गरीब से.आपलो डोस्का पर लका ममता लका हात फीरावने वाली मायच नही रहे आपलोला हिम्मत, प्रेरना काहीच नही मिल सक.पुरो जीवनच व्यर्थ.

     येन संसार ला देखावने वाली आपली  मायच रव्हसे.आपलो उदर मालका येन संसार मा आननेवाली आपली मायच रव्हसे.माय आपलो पहिलो गुरू रव्हसे.साक्षात आपलो साठी ईश्वरी वरदानच.आपलो आयुष्य की सबसे महत्तपूर्ण अना प्रभावशाली व्यक्तीमत्व म्हणजे आपली माय.

      संसार मा आवनकी आपली धडपड आपलो मायला जसी मालूम रव्हसे तसी कोनीलाच नही रव्ह.आपलो उदर मा नव महिना नव दिवस अर्भक ला ठेवसे.बहुत यातना सहन करसे पर आपलो जन्म होयेव परा सबसे खुश मायच रव्हसे.  आपलो चेहरा देखेवपर माय आपला सारा दुख दरद भूल जासे.

     "संस्कार की शिदोरी

ममता की मूरत रव्हसे

लेकरूइनसाठीच माय

आपलो जीवन व्यतीत करसे"

   एकदम सही से माय की सर कोनीलाच करता नही आवं.माम सारखी प्रेमळ फक्त मायच रव्हसे.लेकरूला दरद भयेव परा माय को डोरामालका आसु पडसेत.कोणतोच दुख मा माय आपलो कलेजा को तुकडाला नही देख सक.

     माय अशी व्यक्ती रव्हसे जेको जवळ संस्कार की पुरी शिदोरीच रव्हसे.आपलो लेकरू परा चांगला संस्कार करन साठी माय कोणतीच कसर नही सोड.जेतरो लाड करसे वोतरच गलती होयेव परा मार बी देसे.पर लेकरूला मारेव परा आपलो मनकोमनमा खूब रोवसे.माय सजा बी देसे पर ज्या सजा वा लेकरूला देसे वा सजा खूद बी चूपचाप भोगसे.

     माय की महिमाच निराली से

     माय ला कोनी समज नही सकेव

     अंथाग सागर सारखी माय को मनकी

     गहराई रव्हसे.......

      याय यन दुय शब्द माच पुरो ब्रम्हांड को दर्शन होय जासे....

सौ.वर्षा पटले रहांगडाले

बिरसी (आमगांव)

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9.  माय की महती (माय संस्कार की सिदोरी)

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माय दुय अक्षर, मायला पर्याय वाची शबद् भी सेती. माय, आई,मम्मी, मामॅ,माँ,मदर भी कव सेती;पर माय शब्द की बराबरी दुसरा शब्द नहीं कर सकत्.मायकी महता, महानता, शब्द मा लिख भी नही सकजन,

बदलत जमानो मान लका, मदर्स डे मइ महिनामा दुसर इतवार ला साजरो कर सेती. या आमरी संस्कृती नोहोय.

बहिण-भाऊ ला जनम देनेवाली, नऊ महिनावरी पोटमा सांभाळ करने वाली,जनम देयेक बादमा,तीन सालवरी खांदा पर, जनम भर आपल हृदय मा पिरम ठेवणे वाली आपली माय आय. माय म्हणजे पयलो मित्र आय,चांगलो मित्र आय,मरतवरी मित्रच आय.

जेक हात मा,पारना डोरी, वा, जग को उद्धार करी मायको उपकार कोणी भी कभीभी खंडाय नही सिकजन. मायको करजा को उतराइ येन जनम मा नही,कयी जनममा भी नही होय सिकजन.

तोडरमल नवरत्न पैकी एक आय. आपल माय ला कहीस अज मोला तोरो करजा खंडन को से" माय कहीस करजा नही खंड सिकस, तोडरमल न् कहीस सांग " केतो सोनो,चांदी रूपया होना" बेटा, मोरो करजा सोने, चांदी ,रुपया लका नही खंडे. तोरी इच्छाच से रात भर साठी, मोर कमरामा सोय जाय. 

तोडरमल न् बिचार करीस,रात भर की बात से,सोय गयेव. झोप आवन लगी, मायन आवाज देयीस-बेटा एक गिलास पाणी दे,तोडरमल उठेव, मोठ पिरम लका पानी देयीस, मायन जरा सो पानी पीयीस, बाकी को पाणी तोडरमल ,सोवन जागा परा संडाय देयीस. सोवन की जागा ओली भय गयी, तोडरमल ओल जागापर सोयेव, घडीभर मा डोरा लगन लग्या.ओतमाच मायन पाणी मांगीस; तोडरमल झल्लाय गयेव. प्रेम लका नही गुस्सा मा पानी आणीस, मायला देयीस.

 जरासो पाणी पीयीस;ना पाणी तोडरमल सोवन जागापरा संडायीस. तोडरमल को गुस्सा सातव आसमान पर चढ गयेव, चुलो मा गयेव तोरो करजा, मी चलेव आता,मायन बुलाइस; कान धरीस, ना गालपर एक चाटा मारीस,ना  कव्हन लगी, तू एक दिवस मा थक गयेस, मी तोरो लहान पण पासून,हगला-मुतला करेव,सोवत नोहोतोस त्, रात-रात जागत होती, छाती परा धरश्यारी सोवत होती, तकलीफ भयी, पर तोरोपर गुस्सा नही भयी,तोला फेकेव भी नही,

     बेटा, माय बाप ,करज की, करजफेड, नही होय सिक.

     कुटुंब म्हणजे भावी जीवनक शिक्षण की पाठशाला आय.संस्कार, संस्कृती, आदर सत्कार,साठी पयलो गुरू म्हणजे माय,संस्कार केंद्र आय.

     लहान पण मा टरा न् लहान लहान गलती करीस, वा गलती दुरूस्त करन की जवाबदारी माय की से. लहान गलती  दुरूस्त नही करीस त्,वा गलती बारबार करेव लका,वा मोठो रूप लेसे.

      एक गण की बात आय,एक टुरा ,इसकुल मा लका,पेनसील चोरशारी आणीस,वा पेंसील मायला देखायीस, .माय काहीच नही कहीस.टुरा की आदत बदलत गयी, वू मोठो पण मा अट्टल चोर भयेव. बकरा की माय कबवरी खैर मनाये,एक दिवस कसाइ हात मा जासेच तसोच भयेव चोरी मा पकडेव गयेव.वोला फासी की शिक्षा भयी. जेलन अंतिम इच्छा खबर लेइन. कैदी कसे " मोला मायला भेटन की अंतिम इच्छा से" ओकी मायला भेटन साठी आण सेती, कैदी आपल माय जवळ गयेव.आपल मायक् कानला जोर लका चाबीस. अरेरे, का कर सेस? कैदी कहीस, मी जब पेंसील चोरेव, तब मोरो कान ला, मायन् मुड्डा देयी रवतीस, त् मी चोरच बनेव नही रव्हतो.लहान लहान चुक दुरुस्त करनको संस्कार देन की जवाबदारी भी मायकी से.

      माय- बापकी  महता, भगवान गणेश जी माय-बापला प्रदक्षिणा म्हणजे पृथ्वी प्रदक्षिणा आय,आपल आचरण लका सांगीस.

    गौळण हिरकणी की कहानी मायक ममता को ज्वलंत उदाहरण आय.माय एकच.जीनकी माय से , वय भाग्यवान आती. जे मायजवळ रव्ह सेती, भाग्य,नशीब किस्मत उनको साथ नही छोड़.

          माय म्हणजे माया को ,ममत्व को आभामंडप आय.

प्रा.मुन्नालाल रहांगडाले

 ओंकार नगर मानेवाडा रिंग रोड नागपूर

9422136957/9172150832

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10.माय की महती (माय संस्कार की शिदोरी)

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विश्व अनंत से अना वकी रचना कोनं करी रहेस या बात कल्पनामा बसनो मुश्किल लगंसे. मंग आमी विश्व को निर्माताला ईश्वर कसेजन अना वला सर्वतोपरी मानक्यारी वकी पूजा करं सेजन. आपलो जीवन बी तसोच से. शरीररूपी विश्व को निर्माता कोण? तं वा मनजे माय. मनून माय मनजे ईश्वर. मंग वा कोणतोबी जीव की रवं. ईश्वर सारो चराचर मा विविधता, सुंदरता, समता इत्यादिलक सजेव जीवन को निर्माण करं से. अना वको बादमा सबसे महत्त्वको मनजे वको पर संस्कार घडावंनो. ये संस्कार जीवनको सुरुवात पासून अंतवरी होत रवंसेत. चांगला संस्कारलं जीवन चांगलो बनंसे. या मायरूपी ईश्वर बी आपलोको लेकरूको गर्भ पासून संस्कार देत रवंसे. वकोसाठी वा का का सहन करंसे वलाच मालुम. आमी सिर्फ वकी कल्पना कर सिक्ं सेजन. मायमाता लगित रूपमा अवतरीत होसे; बेटी, माय, बहू, बहिण, फुपा, मावसी इत्यादि. मनून जीवनमा मायको स्थान सर्वतोपरी अना अनन्यसाधारण से.

माय सहनशक्ती की पराकाष्ठा आय. माय सुख, शांती अना ममता को सागर आय. माय मनजे 'ओम', माय मनजे ईश्वर. माय वानी माया कोणी नई कर सकं. मनून जनमपासूनच लेकरूको लगाव मायकन ज्यादा रवंसे. माय को महती पर लगित साहित्य भेटे. खुद देवी देवता बी मायसाठी तरस्या. या बात 'स्वामी तिन्ही जगाचा आईविना भिकारी' यनं वाक्यलक स्पष्ट होसे. चाहे केतरोबी धनदौलत रहे, पर जेको डोईपर हात फिरावनेवाली माय नाहाय, वला कसो लगत रहे? यव जीवन को सबदून मोठो घाव नोहोय का?

जन्मको बाद बालक को तोंडलक अना संकट किंवा दु: को बेरा आदमी को तोंडलक पहिलो सब्द 'माय' हिटं से. असी या मायरूपी ईश्वर, जीवन को पहिलो गुरू. समुद्र की स्याई, जंगलकी कलम अना धरती को कागद बी कर लेऊ, तरी मायरूपी गुरू की महती लिखनो असंभव से.

आपलो लेकरूको कल्याण अना भलोसाठी माय राग करंसे, पर वकी भावना ममताभरी रवंसे. आमरो रक्षणसाठी वा दुनियाकी कोणतीबी ताकद अना संकटसिन आपलो जीवकी पर्वा करता चार हात करनसाठी सदा तयार रवंसे.

मायको संस्कारलक आपलो जीवन को सर्वांगीण विकास अना ज्ञानकी प्राप्ती होसे. मायका संस्कार अना निरपेक्ष ममताको कारणच जगमा आमरो अस्तित्व से. मायच आपली निर्माती, पालनकर्ती अना उद्धारकर्ती आय. मनून माय मणजे ब्रम्हा, विष्णू अना महेश तिन्ही को रूप आय. वा देवी को रूप आय. संस्कार, सम्हार अना संहार कर्ती आय मनजे मायच ईश्वर आय. वाच बोलनला, चलनला, धावनला, खानला, पिवनला, बाचनला, लिखनला सिकाव्ंसे. आपलो चांगलो संस्कार देयकन जीवनको दृष्टिकोन निर्माण करंसे. वा भुतदया अना माणुस मनून जगनो सिकाव्ंसे. जसजसो माणुस मोठो होसे तसतसो मायका संस्कार आमरो जीवन घडावंसेत. माय कभी कृती, व्यवहार, संयम तं कभी धाकदपट तं कभी फटकार लगयक्यान उपदेश देसे.

माय, च्यार वर्ग सिकी रहे, उच्चशिक्षित  रहे नई तं अनपढ रहे, पर वको सिक्षं सर्वश्रेष्ठ शिक्षण आय. वको अनौपचारीक, कौशल्यपूर्ण, अनुभवयुक्त शिक्षण की बराबरी औपचारिक शिक्षण नई कर सिक्ं चाहे केतरा बी पैसा मोजलेव. माय मनजे एक स्वतंत्र विद्यापीठ्च आय. विश्वको असो एकमेव विश्वविद्यालय आय जो आमरो जीवनमा स्वच्छंद, सुविधा नुसार, पर जीवनको हर परिस्थितीला तंतोतंत शिक्षण देसे. यनं विद्यापीठ्को पाठयक्रममा विद्यार्थीसाठी 'नही' यव सब्द नाहाय. यनं विद्यापीठकी बराबरी आजकी गावभरकी विद्यापीठबी नई कर सकत असो कव्हनो अतिसयोक्ती नोहोय. असो मोरो माय को जीवन सुंदर, शांत, स्वावलंबी, सात्त्विक, सोज्ज्वळ, स्वच्छ, आनंदी, हसमुख अना निर्मल. दुनियाका सप्पा गूण एक जागा जमा होनको भाव मनजे मोरी माय.

मोरी माय सिकी नइ पर खेतीका पूरा काम, घरं देळ खंडी जितरब (धनढोर) को सेनपून्जा, सैपाक, धुणीभांडी, घरसफाई अना तरिही आपलो सप्पाई लेकरूंको योग्य सम्भाळ. बापरे! कहांलं आयी या ताकद ना हिम्मत! नही, मायच यनं हिम्मत को सागर. वोन्ंच मोरो अजीला शुन्य को सेंभर बनावनोमा मदत करीस अना आमला करोडो बनावनो लायक बनाईस. आज ८० को पल्ला गाठनेवाली मोरी माय तोंडलक फक्त 'माय' सब्द आयककन खुदला ठणठणित ठेवंसे.

आपून मध्यम वर्गका किसान मनून, लेकरूंला नोकरी लगे ना लगे, सब जन सब काममा निपुण रयत पायजे मनून जीवनका हर काम सिकावनेवाली मोरी माय बड़ो धैर्यलक घर, खेत, व्यवसाय अना शिक्षणका हर पैलु आमाला समझाईस. पहाटोला उठक्यान जनावर को सेनपुंजा, पाणीसाठा पासून तं दुध दुहनो, दही, घिव बनावनो सिकाइस, ओसरी सरावनो, चुल्हो ढिगावनो, पोतनो, बर्तन कपडा धोवनो अना माती लिपनो असा लगित काम मायन्ं सिकाइस. ये सब काम जीननं करिसेन वय सफलताको उचाईपर जरूर सेती कारण वा वन्ं जमानो की गरज होती. मोरी माय आपलो नातू नतराइनला उनको जमानोको हिसाबलक संस्कार देसे कारण आबं की गरज अलग से. असी नविन पिढी संगंबी रमनेवाली मोरी माय आपलो नातुनतराइनला आपलो कोर्या मा धरंसे तं धरती पर स्वर्ग अवतरीत होनको आभास होसे.

मायकी महती लिखनला कय जीवन लगेत असी मोरी अशिक्षित महान माय रामायण, महाभारत, गीता, ज्ञानेश्वरी सारखा ग्रंथ नइ बाच सकी पर वय ग्रंथ जगी. वको हरेक कृती, विचार अना संस्कारमा आम्ही सारा देवी देवता, ग्रंथ, वेद पुराण इत्यादि देख्या, बाच्या अना सिक्या; मनूनच हर अडचणला मात करत स्वत:की प्रगती कर पाया. मायन्ं आपली संस्कृती नइ सोडीस. शेजारधर्म, अतिथी सत्कार, सन त्योहार, रिश्तेदारी, भूतदया, परोपकार, धर्म, असा अनेक संस्कार वको कृतिमा आजबी झलकं सेत.

नविन जमानोकी माय आता 'मम्मी' बन गईसे. डिवटी अना घर सम्हाल्ंसे. असी माय बी महानच. पर यनं आधुनिक इलेक्ट्रॉनीकको,  इंटरनेट ना सोशल मीडिया को जमानोको जालमा आजकी नविन पिढी फसकर आपलो मायकी महती बिसर जाये यको भेव सतावंसे. आता वास्तविक जीवनमा माय को महत्त्व फक्त सेल्फ़ी पुरतो राय गई से. बहुदा, मायला ऑनलाइन सुभेच्छा देनेवाली पिढी मायाकी महती अना वका संस्कार कोण्ं स्वरूपमा देखत रहे?

माय सिकी रवं नइ तं नोको रवं, पर अळचणमा वको सरिखो मार्गदर्शक कोणी नइ. मानव जीवनला मागता मिलनेवालो सबमा मोठो अना श्रेष्ठ दान मनजे माय. विधाता की कृपा को वरदान मनजे माय. जेको कारण मोरो अस्तित्व से, असी मोरी माय आपलो लेकरूला गरो लगायकन, वका गरोभोवती का हात्ंइनला नेकलेस समजनेवाली मायला कोटी कोटी प्रणाम. आवनेवाली पिढीला मोरो एकच कव्हनोसे

"बेटा, जवर रव नइ दुहुर जाय

पर भुलू नोको आपली माय

पर भुलू नोको आपली माय"

 

प्रा. डॉ. प्रल्हाद रघुनाथ हरीणखेडे

उलवे, नवी मुंबई

मो. 9869993907/9307718485

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10.              मायकी महती

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      एक कवी .मु.शिंदे कसे

     माय म्हणजे गाय*

     लंगडोको पाय

     दुधपरकि साय

माय सरबि नयि ना उरबि नयि"

माय म्हणजे धरतीपरको जितोजागतो देव से.सारी सृष्टी मायपराच टिकी से.टुरीटुरीक् विकासमा मायबापको पुरोच हात रवसे.लहान टुराटुरइनला माय भगवानवानीच चोवसे."मी आपलं मायजवर नाव सांगु हं!!मोला गारी नोको देउस!!यव वाक्य सबलाच परिचित से.माय एक हक्कको न्यायालय से.जहानि फिस नयि लग्.माय यव शब्द मनमा् आवतानीच मनकि पुरी गंधगी साफ होय जासे.माय (आई)यव शब्दकि बराबरी करनोवालो दुनियामा शब्द नयि भेटनको.यव शब्द पवित्रता,त्याग,सेवा,ममता,समर्पण असा केताक् मुल्यलका भरी से.मोरो देसमा् मायकि किंमत आजबि कम नयि भयि से.सारं विश्वमा् नैतिक मुल्यसाठी भारत को कोनी मुकाबला नयि कर सक्.अना् मुहूनबि भारत महान से.अना् वको कारण आमरी माय से.देवकीको कानो,यशोदाको कानो,कौशल्याको राम ,जिजाईको शिवबा,शकुंतलाको भरत,असा केताक् मायक् संस्कारलका महान भया .मोरो भारतको इतिहास भरी पडेव से.

   आज वर्तमानमाबि सिंधूताई सपकाळ, सुधामुर्ती,मंदा आमटे,राणी बंग,वू वारसा चलायरयि सेत .हरूहरु समय गयेव. गुलामीको काल आयोव.यन् समयमाबि आमरी मायन् देश धरमसाठि पुत्र देइस .वकोच फल आमी चाखरया सेजन.

  माय कोणकिच रव् वला नोको दुखावो,वला अडाणी नोको समजो .वा एक शाळाच से .सहनशीलताकि देवताच से.आमरी संस्कृती, कुटुंब संस्था देखस्यान विदेशका विद्वान चक्राय जासेत.परिवारकी निंव मायपराच टिकि से.विदेशमा् या माय तुमला नयि दिखनकी वहानि ममी दिखे.आब् आमरंइतनबि ममी आयि से. तबपासुनच परीवार तुट रया सेत.मायका वय गुण ममी मा् नयि दिसत.तरिपण ममीन् मायका् गुण आत्मसात करे पायजे.                              

       बाप तसो बेटो,ना् माय तशी बेटी असो मुहूनच कसेती.

सबलाच दुय माय रवसेत एक जन्मदेनेवालि अना् दुसरी जन्मभुमी.

दुइ मायसाठी जिव देनेवाला टुराटुरीइनकी आजबि कमी नाहाय.पर् खेदलका कवनो पडसे .आज मायकी गती होय रयि सेत.घर् कुत्रा,पोपटला जागा रवसे पर् मायसाठी  वृद्धाश्रम कसेत.असो नोको करो.बहुन् सासुला समजे पायजे.कर्तव्य पयले अधिकार बादमा् आसेत.पर आब् समाजमा् विचित्र चित्र देखनला भेटसे.असो नयि होये पायजे दोष सबमा्च रवसेत कमज्यादा पर् माय माय से .वा मंग  कोनकिच रव्.

     एक मा आपल् टुराला कसे, बेटा कोनतच दिशामा् जाय पर् एक ध्यानमा् ठेव सबलाच माय रवसे.मी असो वर्ताव करु तं वक् मायला कसो लगे असो विचार कर मंग पुढं जाजो. या बात सबक् खोपडीमा् जब् आय् तब् सारो पाक भारत ,चिन भारत को विवाद मिट जाये.धरतीपर स्वर्ग आये.

  चलो आमी सबक् मायला नमन करबिन अना् त्याग सेवालक मायकि

भक्ती करबिन.मंग आमला कायकिच कमि नयि रये.

पालिकचंद बिसने

सिंदिपार(लाखनी)

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कृष्ण अना गोपी

मी बी राधा बन जाऊ बंसी बजय्या, रास रचय्या गोकुलको कन्हैया लाडको नटखट नंदलाल देखो माखनचोर नाव से यको!!१!! मधुर तोरो बंसीकी तान भू...