पातर रोटी
मरी माय,झेंडु बाम
असो नवरा को प्यार
सबको तोंडमा एकच नाव
जसा हात सेती चार
नशीब मोरा
चूल मा लगी आग
पातर रोटी बनावसू
नहीत नवरा ओके आग
कंबर को कचूंबर
सबको बडेव खून
खलबता मा कुटनेवाली
मी भरेव घरकी बहु/सुन
कारा मणी संग डोरला
मी बिनपगारी बहु
झड्या बाल का बनसेत पैसा
निचोळणे वाला रुप बहू
सरपर पदर
मान मर्यादा
शिकावत नहीं तरी
पहलो गुरू, माँ शारदा
विडंबना विडंबना
जीवन जगसू जपत हरी नाम
दबेव वाणी संग चलू
बस यही से काम
शेषराव येळेकर
दि. १४/०३/२१
पातर रोटी
पोवारी को खास पक्वान
इतिहास जमा होय रहीसे,
नाव वोको पातर रोटी
तोंडला पानी आय रहीसे.
गहूको नेहेन कणीक ला
बहुत मेहनत लका गुथकर,
चिकी आयेव क् बाद मा
लोया हात लका फैलायकर.
कागज वानी पतली बन रोटी
वोला माती क् फूटेव भदाळपर,
पकायकर बनायेव जाय रोटी
मंद मंद आचपर सेककर.
दूध-साखर मा घीव की धार
भरपूर मात्रा मा डाककर,
खाये जात होती शौकल्
स्वाद बखान बखान कर.
आता पातर रोटी भय गयी
पोवार समाज माल् लुप्त,
फास्ट फूड क् जमानो मा
मोठ् होटल मा बनसेत फक्त.
- चिरंजीव बिसेन
गोंदिया
पातर रोटी (मांड रोटी)(चाल-चांदणं चांदणं)
रोटी त sssरोटी पातर रोटी
बसी रांधनला रांधनला मायबेटी।। धृ।।
पातर रोटी को मोठो से मान
पोवारी जातीकी आय वा शान
रोटी खानकी साद लगी मोठी।। १।।
गहुकी कणिक पिसाओना
पाणीलक ओला फिजाओना
तेलको मोहोन,नरम बनावनसाठी।। २।।
घळा भोळशांन कड्डु बनाओ
चुलो पर ठेवो ईस्तो लगाओ
चुलो फुकतानी गरमी भई मोठी।। ३।।
फिजी कणिक का लोया बनाओ
दुही हातपरा ओला फैलाओ
कडुडु परा ठेवो शिजनसाठी।। ४।।
रोटी बनावनो ज्या बाई जानसे
ओकी रोटी हातपरा तानसे
नेणत बाई क हातपरा फाटी।। ५।।
आंबाको रस नहीत साखरको पाणी
ओक संग लगसेती अमृत वाणी
जरासो नोन गा टाको चव साठी ।। ६।।
आता पातर रोटी नामशेष होय
नवतीला रोटी कब बनावता आय
शिकाओ टुरीला रोटी बनावन साठी।। ७।।
डी पी राहांगडाले
गोंदिया
मांडोरोटी
(अष्टाक्षरी काव्यलेखन)
मांडो रोटी पयलेकी
होती पोवारी की शान !
पाहुणचार साती ओको
होतो समाज मा मान !!1!!
मामाजी आवत जब
भेटन आमरो गाव !
माय आमरी परस्
मांडोरोटी को वु ठाव !!2!!
माय चुर कणिक ला
आपट आपट स्यानी !
कर एकजीव घोल
पतलो रबर वानी !!3!!
मंडाव हांडी पालथी
आच वालो चुलोपर !
घोलका लहान लोया
फिराव वा हातपर !!4!!
कागद वानी पतली
मंग हांडी पर टाक्!
जल्दी काहळ् काहेकी
जरे मुन रव्ह धाक्!!5!!
आंबारस, दुध घीव
अना साखर को पानी !
मांडो रोटी संग खात
लग वा अमृतवानी !!6!!
इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया (वडेगांव)
मो. 9422832941
दि. 14 मार्च 2021
पातर रोटी
कोणी कसेत पातर
कोणी कसेत या मांडा
गहु कणिक महिन
भिजावन साती भांडा//
तेल मोहन करसे
मुलायम न् नरम
फिजी कणिक लोयाकी
रोटी कागदी गरम//
चुलोपरा ठेव कड्डू
अंगारकी धग वोला
दुही हातपरा फैलं
रोटी बनावनी कला//
आई-माई तपसेत
माया पिरमकी धार
रोटी पातर सिजसे
कला होसे या साकार//
आंबा रस, दुध घीव
स्वाद आणसे रोटीला
आयो पुरानो पक्वान
नवो पणको भेटीला//
वंदना कटरे "राम-कमल "
गोंदिया
पातर रोटी
सबमा तालेवर पाहुणचार
पोवारी को संस्कृती मा
आवभगत की सचोटी
सबमा तालेवर पाहुणचार
रस अना पातर रोटी ||१||
मांडा रोटी पच्या रोटी
असा भी एका नाव
जेला भेटं येको पाहुणचार
वोको मोठा भाव ||२||
आमरो पेढी को पयले होती
पातर रोटी की शान
आता वोतरी मेहनत को
नही बनं पकवान ||३||
गावमाको चुल्हो पर लक
आयी शहरमा रोड पर
रुमाली अना चादर रोटी
मिलंसे हर मोड पर ||४||
कनिकला छान करके नेहेन
दबाय दबाय चुरत
चिकी आयेव पर रबरवानी
दिसं लोयाकी सुरत ||५||
लोया फिरावत पसरावतो
दाबत हातलका
मांडा रोटी दिसं पतली
पच्या वानी बाका ||६||
चुल्हो परा उलटो भदाड
बनं सेकन को तावा
इस्तो को आचपरा देती
दुय तीन परतावा ||७||
स्वादमा चार चांद लगत जब
पडं घिव की बोटी
सबमा तालेवर पाहुणचार
रस अना पातर रोटी ||८||
डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
पातर रोटी
कलाकारी
रोटी मा रोटी पातर रोटी
बिह्यामा देती मोटी मोटी।।
गहूकी कणीक वस्त्रागार
कासोक भाणीमा गोलाकार।।
मड़काको रव्ह तवा गोल
हायमा फिर रोटीको घोल।।
दुर हातकी या कलाकारी
सेकत मड़कापरा खरी।।
दुध ,गुरोनी , घिवकी धार
दोना मा खाज आम्ही
अशी होती आम्हरी संस्कृती
बदलेव जमानो नहीं बनावती।।
फास्ट फुड को यो आयोव
माडारोटी लुप्त दोसा भयोवा।।
वाय सी चौधरी
गोंदिया
पातर रोटी
मी आव पातर रोटी
कागज सी पतली
रूप मोरो गोल गोल
जसी कुकू की टिकली
गहूं को कनिक ला
बार बार छानेव जासे
कणिक भिजायश्यान
फेटेलका चिकी आवसे
पूजा पाठ चुल्हो की
बुळगी माय करसे
कड्डो मा भुरकी काळी
धुक धुक कर जरसे
बनाया जासेत मंग लोया
हातको हातपर फिरावसेत
कागदसी पतली गोलगोल
कड्डो पर पसरावसेत
गुरो पानी आंबा को रस
सब खासेत सपासप
आब बनावन की बदली तऱ्हा
तुम्ही भी खायश्यान देखो रपारप
सौ छाया सुरेंद्र पारधी
पातररोटी
एक जमानो होतो वू भी यादगार
समय संग याद बित जासेती
डिजिटल नव्हतो, जमानो संसार
पल पल वय दिन याद आवसेती
मोरो समय मा नही देखेव पातररोटी
लेकिन आजी मोरी सांग असी रव्हत होती
हांडी पर बनावन की पद्धत होती
कागज सारखी पतरी होती, जाडी रव्हत नोहती
यन् जमानो की पातर रोटी देखेव मी
बिह्या, मंगलकार्य मा हवा मा देखेव मी
उडाय उडाय स्यानी बनावसेती
शायद याद रहे पातररोटी, सोचेव मी
पातररोटी हांडी पर बनसे
शायद मोरो सोच मा फरक से
आजी को हात की पातररोटी
अना मंगलकार्य की रोटी अलग से
उमर को अनुभव थोडो कम से
परिक्षक जी, रोटी को वर्णन कम से
लिख लेयेव थोडो बहूत वोको पर
पातररोटी भी भुली बिसरी याद से...
- सोनू भगत
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