Thursday, April 8, 2021

श्रावण बाळ 57






श्रावण बाळ

अंध माता पिताकि
करिस सेवा भक्ती
श्रावणबाळ नाव वको
वु आदर्शकि मुर्ती।।

काशीतिर्थला नेत होतो
कावळमा उनला
जंगल होतो भयान
तरी बिवत नोहोतो रातला।।

बाळ होतो श्रद्धावान
मातृपितृ भक्त
कर्तव्यलाच धर्म कव्
त्याग सेवाच फक्त।।

तहान लगी मायबापला               
गयोव पाणीसाठी।
दशरथ राजाबि आयोव होतो
शिकारकरणसाठी।।

बुडबुड आवाज गयोव दशरथला
सोडिस बाण लगेव श्रावणला
पछतायोव दशरथ पिठे मस्तकला
श्रावण कसे देवो पाणी मातापिताला।।

आजबि से आदर्श श्रावण 
लेबि गुण वका
ईश्वरबि मंग प्रसन्न होय
बिना पुजापाठलका।।

पालिकचंद बिसने
सिंदिपार (लाखनी)

पोवारी इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष द्वारा आयोजित
 काव्य स्पर्धा  क्र. ५७
 तारीख :- ४/४/२०२१                 
रोज :- इतवार
   श्रावण बाळ (चाल-मेरे मन डोले)
                        
शशांतनु पिता, ज्ञानेश्वरी माता। बेटा श्रावण कुमार रे,
माय बाप क चरण मा  //धृ //

रात दिन उनकी सेवा कर, मानकर भगवान
आज्ञाकारी बेटा श्रावण,का करु ओको बखान
तिरथ करावन मायबापला, भयगयेव तयार रे //१//

दुय सेनोळी की कावळ बनाईस,बांधीस गाठण गाठी
ओन्ज्या बसाईस मायबाप ला,तीरथ करावंन साठी 
खांदपर कावळ,चले तिरथला तपन भरमार रे//२//

फिरतफिरत तिरथ करावत, चलेव श्रावण बाळ
मायबापला तहान लगी, जसो आयगयेव काळ
कावळ ठेईस झाळ खाल्या,चले तराक पार रे //३//

झारी बुळाईस पाणी मा, वा आवाज बुळबुळ कर
टपेव होतो राजा दशरथ, तब  ओन चलाईस तीर
हायबाप करशान तळफळ बाळ श्रावण कुमार रे //४//

सांगीस हकीगत दशरथ राजाला सोळ देईस प्राण 
मालुम भएव मायबापला त्यागीन उननभी ज्यान
मातृ पितृ की सेवा करशांन भयेव वु अमर रे  //५//

 माता पिता की सेवा करो भेट जाए गा  मेवा
नहीत बादमा पस्तानो पळे मंग करो देवा देवा
नोको दुराओ मायबाप ला सुखी होय संसार रे //६//
                       
डी पी राहांगडाले 
      गोंदिया


 श्रावन बाळ

ले बांधकन कावळ चलेव श्रावन बाळ
माँ बाप की सेवा करे,ना जपे कोनती माळ

अंधा होता माय बाप श्रावन बाळ बनेव दृष्टी
तिर्थ यात्रा मा सांगसे माय बाप ला सृष्टी

तहान लगी गरा सुखेव बेटा पाणी पाज
बाळ श्रावन निकलेव पाणी ला न करता आवाज

बुळ बुळ करे घागर धारन करत होती पाणी
काळ को तिर निकलेव संपी जीवन कहाणी

पाप भयोव दशरथ हात, पाणी पाजन बनेव बाळ
अंध माय बाप समज गया नोहे आपलो श्रावन बाळ

दशरथ वानी सांगता सत्य,माय बापन् सोडीन प्राण
श्रावन बाळ सारखो पुत्र भेटे असो दशरथ मांगे दान

हिंदू संस्कृती से संस्कारी शिक्षक
जो यन संस्कृतीला अपनाये वू बने रक्षक

शेषराव येळेकर
दि ०४/०४/२१
श्रावन बाळ

याद आवसे अज भी वा रात
गणपती उत्सव को आयोजन
राती लगी होती वहां फिलम
आतुर होतो श्रावण बाळ साती मन

राती लगी श्रावण बाळ की फिलम
मोहल्ला भर का देखन आया सब जन
लगी वा चित्रपट होती बहूत सुंदर 
देखता देखता आंसु टपकावत होता नयन

देखेव मी वु पुर्ण चित्रपट 
श्रवाण बाळ हृदय बसेव
झझकोर कर ठेयिस मोरो मण
मात पिता सेवा का होसे मी जानेव

यव कलयुग आय, यहान कोनी श्रावन नहाय
देखेव मी वृद्धाश्रम, भऱ्या पड्या होता
जिनको साती जिवण को रान करिन
वयच् आता वृद्धाश्रम मा रोवत होता।

 विरेंद्र कटरे

श्रवण बाळ

 संतान होय त अशी होय
श्रवण कुमार जशी होय||

जेकी चमक चंद्र - सूर्य जशी होय
अंध माता - पिता की सेवा देखकर
भगवान परशुराम भी नतमस्तक होय
संतान होय त अशी होय
श्रावण कुमार जशी होय||१

प्रवाशी होय त असो होय
माता - पिता की भक्ती देखकर
नाव को चालक मलाह भी
आपलो ला धन्य समझ
संतान होय त अशी होय
श्रावण कुमार जशी होय||२

मन मा संतान को चित्र होय
त अशो होय
आप लो कंधा पर माय बाप ला
कावळ मा काशी को यात्रा को चित्र होय
संतान होय त अशी होय
श्रवण कुमार जशी होय||३

मुर्तिव हो त अशो होय
श्रावण कुमार जसो होय
प्रजा को राजा ला भी
पच्छ तावा होय
संतान होय त अशी होय
श्रावण कुमार जशी होय||४

 चंद्रकुमार शरणागत

      
श्रावण बाल

तीर घुसेव सातामा 
तळफळं वू श्रावण 
मोठो पाप भूपती को 
जरी नवतो रावण//

जबं डोरा देखं सत्य 
नृप दशरथ दुखी 
विधी लिखित घटना 
कसो कोण होय सुखी//

मातृ-पितृ भक्त पुत्र 
सांगं अंतिम कहानी 
कंठ सोक्या माय बाप 
सेती झाडखाल्या रानी//

देखं तालाब जवर 
झारी भरेव सुजली 
जात होतो त् वापीस 
आयी भेटनं या 'कली '//

यात्रा, तिरथ कासीला 
लिजानकी रही ईच्छा 
पाणी पिलावं उनला 
करो पूरी या सदिच्छा//

याद करके मायला 
प्राण सोडसे श्रावण 
धन्य करतव्य भक्ती 
माय भारती पावन//

वंदना कटरे "राम-कमल "
 

 श्रावन बाळ
 काव्य प्रकार  --अभंग

         सेवा
श्रावन बाळकी,मातृपितृ सेवा
नोहोय देखावा संसार मा॥

आपला देव,माय बाप आती 
सेवा दिन राती, करोसब।

बुळगा व्यक्तीला,नाहि रव्ह शक्ती
देवकीच भक्ती, करसेती।।

श्रावनकी सेवा,संसार मा मान्य
धरतीपर अन्य, एक भयो।।

बनो असो बाळ,लेयत सकळ
बदलेव काळ,व‌द्धाश्रम।।

डोराका हे आसू ,हेच सांगसेती
सुख दुःख सेंती , जीवन मा।।

दशरध राजा, चार पुत्र को बाप
ख़रो भयो श्राप,वधकोच।।

काशीकी यात्रा,. अधुरीच रही
श्रावन की भयी,मृत्यु वहा।।

करो सेवा आता,  जगमा अमर
पुंडलिक  कर ,पितृसेवा।।


वाय सी चौधरी
गोंदिया
श्रावण बाळ

आदर्श वान वु बेटा
नाव होतो श्रावण बाळ
वोको करू मी गुणगान
तिन्ही लोकं मा होतो आदर्शवाण !१!

सेवा कर माता पिता की
देख श्यान ईर्षा करत भगवान
पुरी कर हर इच्छा माता पिता की
सुख लेत  होतो स्वर्ग समान !२!

अंध माता पिता की इच्छा
करण की होती पुरी
बनाई के टोपला की कावळ
निकल पळेव काशी दर्शन साठी !३!

धन्य रे वु  बेटा जाय पाणी आननला
लग से छाती  मा महाराजा को तीर
अंत समय मा बी दिसत माता पिता
होता वोयच वोका परमेश्वर !४!

नही देईस श्राप राजाला 
कइस पाणी पीवाय दे माता पिता ला
राजा कोबी डोरा मा आवत आसु
नमन कर राजा पितृभक्तिला!५!

भयव श्रावण बाळ अजरामर
करके सेवाभक्ती मायबाप की
आजही से योजना श्रावण बाळ
मिलसे अनाथ वृद्ध इनला आधार!६!

समाज बंधु बी मोरा आदर्श
श्रावण बाळ को जप सेती
सेवा माय बाप की मनोभाव
अंत समय वरी कर सेती !७!

 अजयकुमार लीलाधर बिसेन




श्रावण बाळ
  

श्रावण बाळ माता पिता ला, 
बसायकर कावडमा, चलेव तीर्थयात्राला. 

लगी तहान पानी नोहोतो जवर, 
कावड मडायकर झाडखाल्या, चलेव पानी आननला. 

झारी डुबाईस पानीमा, बुड बुड
भयेव आवाज, रात को समय 
राजा दशरथ समझेव प्राणी आय. 

सोडीस शब्दभेदी बाण, लगेव छातीवर, 
जोरल् किंचाळके पडेव श्रावणबाळ. 

राजाला ला धक्का बसेव, समझेव धोको भयेव, 
धावत गयेव जवर, अंतिम अवस्था श्रावणकी. 

सांगीस आपली कहानी, माय बाप की अवस्था 
ना सोडीस श्रावणन् आपलो प्राण. 
राजा दशरथ गयेव पानी धरस्यार, 
माय बाप दुही अंधरा, आवाजल् पहिचानीन् श्रावण नोहोय. 

देईन राजाला श्राप, आमर् वानी तुबी 
पुत्र वियोग मा तडपकर मरजो, सोडीन आपला प्राण. 

श्राप फलीभूत भयेव, दशरथ राजा, 
पुत्रवियोग मा स्वर्गवासी भयेव, कर्म की गति महान से 
कर्मफल अज नही त् कल जरूर मिलसे. 


                      - चिरंजीव बिसेन
                                   गोंदिया 


श्रावण बाळ मृत्यू प्रसंग
       (अष्टाक्षरी काव्यलेखन)

बाण   आयेव  आयेव
ओको  बनशान काळ ।
टाह  फोळ 'माय माय'
रोव  श्रावण  वु  बाळ ।।1।।

आयी  राजाला आयकू
ओकी करुण वा वाणी ।
जाय   जवळ,   भयेव 
ओको हृदय को पाणी ।।2।।

देख श्रावण बाळ ला 
शोकाकुल     दशरथ ।
बोल, तोला मारनला 
पापी  सेत मोरा हाथ ।।3।।

मंग    मरता     मरता
कसे राजाला  वु बाळ ।
माय बाप   बुड्ढा सेती
बस्या   बनमा  जवळ ।।4।।

होतो  लिजात  उनला
काशी  धरके  कावळ ।
तीर्थ यात्रा जात होता
वारी   करन   निर्मळ ।।5।।

पाणी आणन आयेतो
झारी   धर     तरापर ।
ओतरोमा  तोरो बाण
छेद  गयो    छातीपर ।।6।।

बाट     देखत   रहेती 
प्यासा वय प॔छीवाणी ।
सेत   अंधरा,   उनला
तुमी पिवावोना पाणी ।।7।।

सांगो नोको  दुर्घटना
जावो वांहा बन बाळ ।
मोरो  बादमा  उनको
करो  तुमीच सांभाळ ।।8।।

धरो झारी, आता जासु
ओको आखरीको बोल ।
पंछी   पिंजरा  सोडीस 
प्राणज्योत  गयी खोल ।।9।।

बाळ    भयेव   अमर
कर  माय  बाप  सेवा ।
करो ओको सम भक्ती
भेटे  आशिर्वाद   मेवा ।।10।।

 इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया
       मो. 9422832941
         दि. 04 एप्रील 2021

   श्रावण बाळ
                        
शांतनु को पोट 
बाळ श्रावण जन्मेव
माता ज्ञानेश्वरी को 
संस्कार मा पलेव

बाळ होतो आज्ञाकारी, 
सेवा मा सदा तत्पर
रातदिन कर सेवा
देख मायबाप मा ईश्वर

मातापिता दुहि अंध
करावजो काशी की वारी
कसो लिजाऊ काशीला
बिचार पडेव वोला भारी

करीस दुय ओळगाकी कावड
देख मायबाप की आवळ
बसाईस माय अना बापला
चलेव तीरथला श्रावण बाळ

तहान लगी ऊनला वाहान
झारी धरके श्रावण गयेव
बुड बुड झारी को आवाज
छातिमा अनामिक बाण धसेव

माय माय की आर्त देइस् हाक
तब दशरथ आयेव्, फेकिस बाण
मोरो बान न लेईस निष्पाप जान
संभाळजो कयकर, सोडिस पऱ्यान

हकीकत जानकर सब
विलाप मा डूब्या वृद्ध
मस्तक पिट पिट रोवती
भया राजा पर वय क्रुद्ध

देईन राजाला उनन श्राप
नाहाय श्रावण आमरो
अग्नी देनला आमला
तसो नाश होये तुमरो

तोरो चीता ला अग्नी देनला
प्रिय पुत्र नहीं रवणको जवर
दुहिन त्यागिन आपलो पंच प्राण
चल्या दूहि स्वर्ग को मार्ग पर

सौ छाया सुरेंद्र पारधी
             श्रावण बाळ
(चाल- मनी धीर धरी शोक आवरी जननी। भेटेन नऊ महिन्यांनी)

तीर आयेव रे आयेव देखो बनके काळ
लगेव छातीमा मूर्च्छित भयेव श्रावणबाळ।।

ज्ञानेश्वरी शांतनु पुत्र।जन्मदाता का अंधनेत्र
ईच्छा उनकी तीर्थक्षेत्र।सेवाभावी वृत्ती पवित्र
          श्रावण बाळ आज्ञाकारी
          मायबापला बसायस्यारी
           निकालीस पैदल वारी
खांदपर धरिस कावळ।मूर्च्छित भयेव श्रावणबाळ

जनकला लगी तहान।खाल्या कावड ठेयस्यान
गयेव पाणी आणन।शरयू नदी काठकन
         पाणीमा डुबाईस झारी
       बुळबुळ स्वरआयकस्यारी
       शर मारीस दशरथनं भारी
लगेव श्रावनला भई तळफळ।मूर्च्छित भयेव
श्रावणबाळ

समजेव मी कोणी हरीण। मुन मारेव बाण
राजा बसेव कवन।माफ कर मोला श्रवण
         तहान्या सेती बापमाय
         जल्दी तू पाणी लिजाय
          तहान दे उनकी बुझाय
कयके देसे प्राण सोळ।मूर्च्छित भयेव श्रावणबाळ

सब हकीकत आयकस्यान।राजाला श्राप देयकन पुत्रवियोगमा सोडजो प्राण।सोडीन मायबापनं जान

              मातापिताच आत भगवान
               करो उनकी सेवासम्मान
               चरणमा उनको स्वर्गस्थान
धन्यधन्य तू लडिवाळ।मूर्च्छित भयेव श्रावणबाळ


                               शारदा चौधरी 
                                     भंडारा

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मी बी राधा बन जाऊ बंसी बजय्या, रास रचय्या गोकुलको कन्हैया लाडको नटखट नंदलाल देखो माखनचोर नाव से यको!!१!! मधुर तोरो बंसीकी तान भू...