बैलबंडी
. दि:१६/०५/२०२१
वार:इतवार
बैल म्हणजे आपला कास्तकार का एक मिञ /संगी आत.
एक शेतकरी खेतीपर आधारीत रवसे .वोकोसाठी मग बैलबंडी की जरूरत रवसे .
त मी गाळोला का का सामान रवसे वा सांगूसू.
१)आस्कुड
२)खिल्ली
३)दाबखुटा
४)गुडधा
५)गाडो की टोंडी
६)१२ खांब
७)६ पुठ्ठा
८)२ धुरा
९)लोखंडी बेठ
१०)उलट
११)धुरखिल्ली
१२)मंझारा (मोठोवाला)
१३)पावटणी ६
१४)हरणी (लंबीवाली)
१५)जुवाडी
१६)बारती
१७)शिवर २
१८)जोता
१९)उभारी १४/१६ लगसेत
२०)माच कमची वाली संंकलन
२१)डूलूप(आस्कुड पर को झाकन)
22) भोवरी /चाक २
असो बनावसेत गाळो. आतात बाबा जमान बदल गयव .हर कामला टेक्टर लका का करसेती .चुरणी भी धान मशिनलकाच करसेत .सब कास्तकार आळशी भयगया सब आयतो -आयतो देखसेत .पहेले घंटो को काम आता मिनत लका करसेत. पहीलेको जमानोमा मयत की काळीला गाळो जुपत ,आता सिधो टेक्टरलका लिजासेत .धिरू-धीरू गाळो की चलन मुरासे. समोर को युग/जमानोमा डोळाकला बैलगाडी दिसनको नही.
सौ:ओमलता के पटले
बैलबंडी
पेट्रोल नयी,डीज़ल नयी
ना हवा,ना लग मातिको तेल
एक माणूस दुय् बईल
असो आमरो गाड़ो को खेल।
कोनी कवत बैलगाड़ो
कोनी कवत बैलबंडी
काम आव कभी भी
रात रव का रव थंडी।
रस्ता नहीं पायजे टापटिप
नही पायजे डांबररोड
गाडो काढणसाठी चलसे
लहानसी बी मोड़।
खिल्ली ,आस्कुड,पावटनी
दाबखुटा अना गुडधा
भाग आती ये सब बंडीका
खर्च नोहोतो ज्यादा।
जुवाडी,शिवर,भोवरी
उभारी,पावटणी अना जोता
कास्तकारला काम पड गाड़ोको
कहींच आवता जाता।
खात कचरा धान डुवरणसाती
करत बंडीको वापर
मस्त पारोनि करज आम्ही
बंडीपरा बसकर।
स्वप्नाली दुर्गेश ठाकरे
बैलबंडी
पुरानो जमानो की शान,
आय बंडी कास्तकार की |
दुनिया मा नहाय गाळी ,
बैल बंडी सारकी ||
बंडीला बैल की जोडी,
दिवा मा जसी बाती |
बंड्या अन् बबली,
दुयजन गाणा गाती ||
बंडीलक पयले जाती ,
यन गाव वन गाव |
नही लग खर्च ,
मजा बहुत आव ||
कास्तकार का संगी ,
बैल ला संग बंडी |
डु वरस्यान धान ,
बिकनला जाती मंडी ||
बंडी की किमया मोठी ,
भोवरीला खिल्ली ठोकी |
वंगण लगावसेती ,
झीज नही होय वोकी ||
डोरामा आवसे पानी ,
बंडी की कसी कहाणी |
आस्कुड,उभारी, दाबखुटा ,
नही रया पावटणी ||
उषाताई रहांगडाले (बिसेन)
बैलबंडी(बंडी/गाळो)
कास्तकार की आनबान शान
जेक आंगनमा उभी बैल बंडी
ओलाच सबजन कसेती गाळो
लाकळी रव्ह या रव्ह लोखंडी।। १।।
गाळोला दुय चाक गोलगोल
बुदला,खांब,पुठ्ठा लक बन्या
बुदलाला रव्हसेत 2आवना
पुठ्ठा खिल्ली लका से तन्या।। २।।
सामने धुरखीली,मंघ उलट
लम्बा लम्बा सेती दुय धुरा
सय पावटनी,ना एक हरणी
बीचमा रव्हसे एक मंझारा।। ३।।
लोखंडी आस्कुळ लाकळी डोंग
दुय पीहनी,ना दुय सितारा
दुय खिल्ली,ना एक दाबखुटा
मंझारा मा सेती चार कनंगरा।। ४।।
दुय शिवर,जोता ना जुपना
सोळा उभारी,एक जुवाळी
खात फेको,या चुरनो करो
गाळौमा आनो काळीकुळी।। ५।।
आता गाळो सब बीसर गया
बैल पालन को त्रास आवसे
ट्रॅक्टर लका सब काम होसे
गाळो बीचारो कोंनटोमा रोवसे.।। ६।।
डी पी राहांगडाले
गोंदिया
बैलबंडी, गाळो
खात की बंडी
आयो तीज सन
बंडी खेत जान |
धुरा फोड़ कर
तयार करीस दान ||१||
बंडी तयार करीस
खात कचरा भरीस |
बांधीमा उपसन
संग पावड़ा धरीस ||२||
भोवरी माखकन
पाणी पिवायकन |
मंग बंडीलाच
बईल जुपीस वन ||३||
आमी लहानपन
संग खेत जान |
वको बंडीपर
बस्या सब जन ||४||
बंडी खेत गयी
खात फेकन लाई |
मस्त खेत जाय
सबला मज्या आयी ||५||
घर वापस आया
बंडीकी लगी माया |
आमी थकवा लका
रात भर सोया ||६||
(वन, वको कास्तकार
साती वापरेव गयीसे)
इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया
मो. ९४२२८३२९४१
पती पत्नी
पती पत्नी गाळो का दूय चाक
फिरसे जीवन सुखदुःख समान
आस्कुड घर का बुजरूक मान
संयम को दाबखुटा देसे समाधान
खिल्ली बचत की भविष्य आधार
बारा खांब देखो भरेवं परिवार
नातो रिश्ता जसो पुठ्ठा भरदार
प्रेम लक माखो जीवन बहारदार
दया करुणा का बैल बनेत सारथी
दुय फूल जीवन मा आनेती भरती
जोता आशाका जीवन सार्थक करेती
प्रेम बांधकर ठेये जसी बांधसेत बारती
मोहमाया को हरनी मा नोकों फसो
जुवाळीको भारला बोझ समजो नोकों
सोळा गुण उभारी, आधार जिवणको
लहानसो घर, माच बिंधेव से प्रेमको
असो सुंदर गाळो बन जाये जीवनको
आस्कुळ पत्नी वोको पती डूलूप आय
एक करे कज्या, दुजो चूप रह जाय
जीवन को मानव तू सार समझ जाय
सौ छाया सुरेंद्र पारधी
सिहोरा
बैलबंडी
किसान को मालवाहक बैलबंडी
धान आनसे खेतलक् खंडो खंडी
ओझा वाहसेत किसान संग दुय बैईल
घरको रस्ता नहाय कठीण कासरा ठेव सईल
बारा पाटी सय पुठ्ठा ,दुय धुरा पर
चौदा उभारी खेतकी लक्ष्मी पहूचावसेत घर
दुय भोवरी आस्कुड पर उपर परसा का डुलूप
किसान को लक्ष्मी ला कभी नही लग कुलूप
दुय शिवार खोसकन सामने जोता संग जुवाडी
लोहा को पट्टा चढायकन भोवरी चढसे पहाडी
बंडी को बिचमा शानलक आडवी हरणी
बैल भोवरी को बिचमा भरसे पाणी
बैईल ला यसन अना भोवरी आसकूडपर खिल्ली
बैईल बंडी ला चलावनकी किसान जवर किल्ली
अन्नदाता की शान आय बैलबंडी
टॅक्टर मशिन को जमानो मा तुटी यकी गोडी
शेषराव वासुदेव येळेकर
मु. सिंदीपार जिल्हा भंडारा
गाडो (बैलबंडी)
किसानी क् काममा सदा आवसे काम
बैलबंडी किसान क् जीवन को आधार,
खेत मा फेकनसाती उरकुडा को खात
या जानको रव्ह सामान साती बजार.
ख-यान मा डुलावनसाती धानका बोझा
या खेतल् आणन की रव्ह धान की तणीस,
बैलबंडी रव्हसे हमेशा जानला तैयार
कभी नही कर् आलस ना नही काहाळ किस.
गाडो से किसान को सच्चो साथी
संगमा वोकी का-या भु-या की बैलजोडी,
उनक् भरोसल् करसे मोठ् मोठा काम
संसार मा बनी रव्हसे वोक् अमीट गोडी.
धान की रास, जलाऊ लकडी आणनला
धान क् मोळाकी करनला चुरनी,
बजार मा बिकनला खेती का धान
गाडो बीना नोहोतो किसान को साथी कोनी.
पर आता गाडो की जरूरत भय गई कम
ट्रेक्टर, मॅटाडोर सरीखा आय गया साधन,
गाव मा गाडो क् अस्तित्व भय गई से खतम
या बुडगा आदमी वानी भय गई से पड्यावधन.
- चिरंजीव बिसेन
गोंदिया
बैलबंडी
काव्यप्रकार अभंग
साधन
बैलगाडी योव, खेतीको साधन
किसानको धन, गायी भसी।।
घरकाच गोरा,जोडी़ भाई भाई
बंडीकी खिचाई ,करसेती।।
चुरनीला बंडी,धान खंडी खंडी
बिकनला मंडी, लिजासेती।।
धुराहे आधार,भार ओकपर
पाउटनी को भार ,सहसेती।।
आघात सहनो, डुलुपको काम
दाबखुटा ठाम, मंजारामा।।
कनांगरा चार,देसेती आधार
डुलुप जागापर, ठेवसेती।।
बदलेल काळ, बदलेव गाळो
वेल्डींगलं जोळो,सबभाग।।
कनागरा गया,गया दाबखुटा
गया सब पुठ्ठा,पिंजनीभी।।
संसार को गाळो,असोच चलसे
सुख दुःख लेसे जगनोमा।।
चाकवानी पाय, जीवन चलसे
मानव जगसे , सुखमय ।।
जय राजा भोज, जय माँ गड़काली
वाय सी चौधरी
गोंदिया
बैलबंडी
बैल जुपीस बंडीला
सजाईस गाळो सुंदर
धनी चलेव खेतमा
लगसे अस्सल कास्तकार
जुवाडीला कसीस बारती
अना टाकीस शिवर
तुतारी कासरा हातमा
जोतां बैल को मानपर
जिंदगीको रथवानी गाळोला
दुय भोवरी को आधार
डुलुप दाबकुटालक जोडके
आसकूड संभालसे भार
सय ऋतू वानी पुठ्ठा
बीचमा सय पाटीको भर
बारामास सम उभारी
हरणी बंडी को मंज्यार
पुरो बंडी को डोलारा
सें दुय लंबो धुरापर
भोवरीला खिल्लीको अटकाव
बिच मंझारा कंनगरा चार
बहू कामकी या बंडी
जरूरती सें जीवनभर
खेती कास्तकार बीचको दुआ
ठेवबं अस्तित्व जपकर
शारदा चौधरी
भंडारा
बैलबंडी
संसार को गाळो (प्रकार- अभंग)
मायाको संसार| करनोसे पार|
गाळोच आधार| आदमिला||१||
सत्यकाच चाक| अपनावो सदा|
नित्य करो वादा| ओंगनका||२||
काम अना लोभ| ये बैल तुफानी|
करेत किसानी| मर्जीलका||३||
हातमा आपलो| संभालो कासरा|
सबला आसरा| देत जावो||४||
सदगुणी धुरा| वापरमा ठेवो|
जुवाडीला देवो| मीठा बोल||५||
गाडोला लगावो| कर्मकी हरनी|
संग पावटनी| बंधूताकी||६||
सयंमकी खिल्ली| टाको आस्कुडमा|
जोर उभारीमा| समताको||७||
संसारको गाळो| परानला बसे|
नितीमत्ता कसे| चऱ्हाटमा||८||
महेंद्रकुमार ईश्वरलाल पटले(ऋतुराज)
बैलबंडी
बैलबंडी ला जोतन
जुवाडीको अट्टाहास
संयमीत तालपरा
बैल खांदाकीच् आस ||१||
जीवशीव की भोवरी
सप्पा समालसे भार
कारो लगावू वंगण
नही झिजको असार ||२||
रहे कसोच् रसता
तरी नहाय फिकीर
ध्येय पूरो करनकी
बस्स!!गाठसे लकीर ||३||
कारो मायको पुंजामा
सेण लिजानको मान
लक्ष्मी आवसे घरमा
बंडी सौजन्यकी शान ||४||
यातायाती च् साधन
सदाचारी येकी रीत
येनं मनको कुपीमा
"बंडी "सांगसे गुपीत ||५||
वंदना कटरे "राम-कमल "
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