Sunday, May 16, 2021

विठ्ठल रखुमाई ६१



 




 पोवार इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष द्वारा आयोजित   काव्य स्पर्धा क्र. ६१            तारीख :-९/०५/२०२१ 
                    विठोबा-रुखमाई
                    **************
संत को माहेर आय पंढरपुर ।
बाप विठोबा, रुखमाई माय ।।
आषाळी,कार्तिक एकादसी ।
संत की वारी पैदल च जाय ।। १।।

भक्त  पुंडलीक ला दे दर्शन ।
जनाबाई संग दरण  दरीस  ।।
रविदास  संग ढोर ओळीस ।
एकनाथ  घर  पानी भरीस ।। २।।

चोखामेळा ना  गो-या  कुंभार।
मीराबाई भक्तीमा पागल भयीं।।
सकुबाई घर खंबाला बांधीन  ।
सावंता क भक्तीला वाण नही।। ३।।

संत तुकाराम की बातच न्यारी।
जेण विठोबा की भक्ती करीस।।
निवृत्ती,ग्यानदेव,सोपान काका।
मुक्ताईन माहेरको रस्ता धरीस।। ४।।

आषाळी,कार्तिक एकादशीला।
भरसे यात्रा ना संत को मेला  ।।
तनमनलका भक्ती करसेती  ।
ताल,मृदंग को होसे झमेला  ।। ५।।

पंढरपूर सारखो भक्ती मेला ।
जगमा कोनज्याच दिस नही।।
 बारबार मस्तक ठेवू चरनमा ।
मायबाप मोरा विठोबा रुखमाई।। ६।।
             *******
डी पी राहांगडाले 
       गोंदिया
[5/10, 11:11 AM] सौ छाया सुरेंद्र पारधी: *पोवार इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष समुह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पोवारी काव्यस्पर्धा* : *६२*
*विषय:- विठोबा रुकमाई*

संतोंकी भरसे जतरा
पंढरपूर की नवलाई
बाट भक्त की देखसेत
मोरा विठोबा रुकमाई

एक ईंटपर विठोबा
संग वकी रुकमाई
खर् भक्तला ढुंडसेत
मोरा विठोबा रुकमाई

भक्त दर्शनला आवसे
देव दर्शनकी घाई
मंग मनमा हाससेत
मोरा विठोबा रुकमाई

सुख दुख आये जाये
चिंता करन की नही
सुख दुखका साथी सेत
मोरा विठोबा रुकमाई
मोरा विठोबा रुकमाई
********
*डॉ. शेखराम परसरामजी येळेकर* नागपूर ९/५/२०२१
[5/10, 11:11 AM] सौ छाया सुरेंद्र पारधी: पोवार इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष द्वारा आयोजित काव्य स्पर्धा

*विठ्ठल रखुमाई*

विठ्ठल रखुमाईकी सुरूप जोडी
युग युगांतर उभा सेती पंढरपुरी
जीव शिव की जोडी उभी इटपरी
माता रूकमाई की साडी भरजरी

नरहरी सोनार निस्सीम शिवभक्त
कळस नही देखत विठ्ठल मंदिरको
आयेव् एक भक्त विट्ठू माऊलीको
बनावजो नरहरी करदुळा विठ्ठलको

दुविधामा फसेव सोनार भाबळो
विठ्ठल मुख देखनकी नहाय आस
पट्टी डोराला बांधीस , लेसे माप 
महादेव साक्षात,असो भयेव भास

पट्टी डोराकी काहाडके दिस विठ्ठल
भयेव असो वोको संग बार बार
मंग करदुळ पुरगयेव कमरला
ना परब्रम्ह को भएव साक्षातकार
 
अनंत काळापासून  उभा से ती
सावरो रुप दुही मोरा मायबाप
तनमनलक  दर्शन उनको लेवुन 
मीलजाय शांति ना हरजाय ताप

असो सुंदर माहेर से पंढरपूर 
लगसे आषाळी एकादसी मेला
नतमस्तक होवुन ओक चरनमा
होय संत जनकी  भेट पंढरीला

सौ छाया सुरेंद्र पारधी
सीहोरा

विठोबा रुकमाई

पुंडलिक ला वरदे हरी विठ्ठल ज्ञानदेव तुकाराम महाराज कि जय ||

कोणी कसेत टाळकरी |
कोणी कसेत नामधारी ||
पण आम्ही तं आजण विठ्ठल का वारकरी ||१||

आमरो काम मा भी विठ्ठल |
आमरो नाव मा भी विठ्ठल ||
आमी रोज च देखसेज रखुमाई विठ्ठल ||२||

सावलो रूप से 
मूर्ती साजरी से |
अठ्ठावीस युग पासून
इटपर उभोसे ||
आमरो मन मा सदा भेटणं कि आस लगीसे ||३||

तुळसी माळ सदा गळोमा शोभसे |
मस्तक पर चंदन को टीका सजिसे ||
पिवळो पितांबर लक आसमान सजिसे ||४||

संसारिक बंधन लक वारी नहीं कर सकू |
माफ कारजो विठ्ठल मोला माफी मांगूसू ||
जब भी आये आशीर्वाद तोरो दर्शन ला जरूर आऊ ||५||

सदा तोरो नाव रहो मोरो मुख मा |
तोरो कृपा लक रहू सदा सुख मा ||
सदा तोरो गुण गावनं कि शब्दधारा सोड मोरो मुख मा ||६||

देवराज भुरकन पारधी 
मुळगाव - वडद, हालमुक्काम (नागपूर )

 विठ्ठल - रूखमाई
    
                 
" पुंडलिक ला वरदे हरी विठ्ठल ज्ञानदेव तुकाराम महाराज की जय " !!
 संत को माय -बाष पंढरपूर
बाप विठ्ठल -माय रूखमाबाई!
एक इटपर उभा विठ्ठल-रूखमाबाई,!!
खरी भक्त आय पूंडलिक साठी !!
  

एसी पंढरी -पंढरी विठ्ठूराय नगरी!
भोवताल विवरको मध्य पंढरीको हुडा!!
गस्त फिर चौकन, ताड मृदंग को धनी!
एसो स्थळ नाहाय  तुकयाला विठ्ठल भेटे!!

तुळसी माळ से गळोमा शोभसे!
मस्तक पर चंदन को टिका!!
पिवळो पितांबरल का आसमान सजिसे!

विठ्ठला तुरोबिन नाहाय आधार!
नवमहीना ठेहीस गभाॅमा!!
कागदलका लिहीस सस्त लिहीस चुकेव मोरो करार!
सिताराम गुन्हेगार , श्रमा करोनीया  अपराधी कोन करी भवपार!! 


       सौ :ओमलता  के पटले

असो सुंदर माहेर से पंढरपूर!
लगसे आषाठी  एकादसी ला मेला!!
भक्त दशॅनला घाई!
संगमा रवसेती  विठ्ठल -रूखमामाई!! 
चंद्भाग को तिरी..

 विठ्ठल रुकमाई

बाप मोरो पांडुरंग
माय मोरी रखुमाई
नव महिना नव दिस
उदरमा ठेईस बाई

स्पर्श होतो वोको पयलो
शिकवन होती पयलीच
दुःख वोका कसी बिसरु
टोरी वोकी मी पयलीच

उपकार सेती मायका
बाप की भेटी छत्रछाया
ऋणी रहु जनमभर
भेटी मोला संस्कारमाया

कल्पतरू वानी माय
वटवृक्ष जसी सावली
धन्य भयेव मोरो जीवन
असा मोरा विठु माऊली

माय मोला अदीक
लहान होन देना वो
तोरो सेवलका मोरा
डोरा पोसन देना वो

बाबुजी मोला अदिक
लहान होन देव ना
आठवणीको बालपण मा
खांदापर खेलन देव ना

वर्षा पटले रहांगडाले
गोंदिया


विठ्ठल माऊली
           
            

 विठ्ठला का अशो गुन्हा भ्यव
मोरो महाराष्ट्र कोरोना मा डूबेव||

  नाम देव संत भयव् मोटो
आम्हला आपलो चरण मा
जागा दे विठ्ठला पंढरीनाथा!
विठ्ठला का अशो गुन्हा भयव्
मोरो महाराष्ट्र कोरोना मा डूबेव||

येणं शरीर को धडधड नारो श्वास
काह जाय रही से देवा! विठ्ठला
 पंढरीनाथा|
विठ्ठला का असो गुन्हा भयव्
 मोरो महाराष्ट्र कोरोना मा डूबेव||

पूर्ण जग पर तोरो च ताबा
मोला पाहिजे मोरो देश मुक्कत
 कोरोना विठ्ठला पंढरीनाथा| 
  विठ्ठला का असो गुन्हा भयव्
मोरो महाराष्ट्र कोरोना मा डूबेव||

 केतो रोकु आपलो आपला
सब जन सेती बंद आप - आपलो
घर मा आवन दे आंग धोवन चंद्र
 भागा विठ्ठला पंढरीनाथा|
 विठ्ठला का असो गुन्हा भयव
मोरो महाराष्ट्र कोरोना मा डूबेव||

सब को मन मा से पंढरी
कर दे माफ सब की गल्ती
विनती से सब की विठ्ठला
 पंढरीनाथा|
विठ्ठल का असो गुन्हा भयव्
मोरो महाराष्ट्र कोरोना मा डूबेव

चंद्रकुमार शरणागत
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        हीरो होंडा


विठोबा रुखमाई

विठोबा रुखमाई
जय हरी विठोबा रुखमाई
चंद्रभागा को तीरी
उभी से मोरी आई

भक्त पुंडलिक
धरे माय बाप चरण
जनाबाई संग
विठू दरसे दरण

भक्त वत्सल मोरो
विठोबा रुखमाई
तुकोबा गाथा
पोवसेती इंद्राई

माय बाप मोरा
विठोबा रुखमाई
व्यस्या भई संत
कान्होपात्रा बाई

भवसागर पार करे
विठोबा रुखमाई
दिन दुबळा की
मोरी पंढरपूर की माई

माहेर पंढरपूर
विठोबा रुखमाई
दुःख दर्द हर
मोरी कल्पतरु आई

शेषराव येळेकर


विठ्ठल रुकमाई


पंढरपुर विठ्ठल् रुखमाई को घर।
वारकरी को माहेरघर।
भक्त पुंडलिक ला देइस दर्शन।
कृपा कर आपली मोरोपर।

पैदल चलकर आवसेत वारकरी।
देव् मोरो विठ्ठल माउली।
पंढरपूर स्थान प्रसिध्द भयिसे।
पंढरी की सूरत सावली।

कंबर पर हात उभो ईट पर।
रुक्मिणी को साथ देवा।
वारकरी को तिर्थस्थान् पंढरपूर।
करू मी भेट लगसे हेवा।

पांडुरंग ,कृष्ण तुच श्रीहरी।
भक्त् पुंडलिक कि तोला बाट।
अठ्ठाविस् युग भया ईट परी।
पिवळो पितांबर झळक ललाट।

नित्य चार बजे होसे आरती।
हरिदास रचित"अनुपम नगर पंढरपुर।
नैवैद्य चढसि तोला रोज़।
प्रसाद मा लोनी,गडीसाखर।

स्वप्नाली दुर्गेश ठाकरे


विठोबा रुक्मनी
     (अष्टाक्षरी काव्य)

देख  कृष्णको  गोदमा
राधा  बसीसे   शानमा |
तब  गुस्सामा  रुक्मनी
गयी   दिंडीर    बनमा ||१||

कृष्ण   वला  मनावन
जासे  गोपको  भेषमा |
तब   चिळशान  सांग
जान   वापस   देशमा ||२||

कृष्ण गयो  वापसीमा
भक्त   पुंडलिक   घर |
वहां  वु   मायबापकी
मनसोक्त   सेवा   कर ||३||

तब  पासुन  श्रीकृष्ण
उभो    वको   ईटपर |
बाट   देख   भक्तकी
हात   ठेय    कटीपर ||४||

उभो    ईटपर    मुन
नाव  पड़ेव   विठोबा |
पंढरीमा    कायमको
बस गयो वु कान्होबा ||५||

मुन  विठोबा  जवळ
नही रव्ह वा रुक्मनी |
संग रव्हन  कृष्णको
राधा याच राही बनी ||६||

रुक्मनीको  से  मंदिर
दुर    दिंडीर    बनमा |
बस आषाढी कार्तिकी
मुर्ती   आवसे  संगमा ||७||


   इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया
          मो. ९४२२८३२९४१
            दि. ९ मई २०२१

विठोबा रुकमाई
प्रकार अभंग
ज्ञानकी गंगा

विठोबा रुखमाई,पंढरपुरमा
भक्तक काज मा,धावसेती।।

पुंडलिक कर, सेवा माय बाप
पांडुरंग उभो, विटपर।।

संतकी महिमा,संत जानसेती
सुखी रव्हसेती,जीवनमा।।

रुखमा अर्धांगी ,विठ्ठल माऊली
कृपा की सावुली,शोभतसे।।

ज्ञानदेव तुका,गर्जसे पंढरी
कीर्तन गजरी,नामजप।।

ज्ञानरुपी गंगा, चंद्रभागा तिर
प्रेम को सु निर ,बहतसे।।

कार्तिक वारीला, भक्त महापुर
नामको गजर, पांडुरंग।।

तुरसी की माला,बंधन भक्ती को
प्रतीक शक्ती को,गरोहार।।

नवविधा भक्ती ,जीवन उद्धार
विठ्ठल आधार, नामजप।।

विठोबाकी कृपा, जेकपर होये
 जीवनमा होये, समाधानी।‌


वाय सी चौधरी
गोंदिया

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