Sunday, July 25, 2021

नदी चलीसे ठुमकत ७२


पोवारी इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष द्वारा आयोजित काव्य स्पर्धा क्र. 72

              नदबाई चली ठुमकत
               
 नदी बहे वाकळी तिकळी
चल बिचल से ओकी धार
कभी  दुसरं नदी  मा मिल 
कभी   सात  समुंदर  पार 

नाव   अलगलग नदीका 
सब  अलगलग  ठिकाण 
कही बळी नुकसान देही
कंही   ठरज़ासे  वरदान 

कही कसेती गंगा यमुना  
कही सरस्वती,  गोदावरी
तापी,  ब्रम्हपुत्रा,  वैनगंगा 
कृष्णा,सिंधू,नर्मदा, कावेरी 

सुखी नदी,आटज़ासे पानी
बाट   बरसात  की देखसे
पानी   पळेव,  आएव पुर
भयीं खुशी मोठी इटकासे 

शांत मधुर स्वर गुंज़से
जब वरदायी ठरज़ासे
कभी विकराल रुप धर 
मंग सत्यानाश कर देसे 

नदी आमरी जिवन दायी
ओका केता सेती उपकार
साफ सुतरी ठेवौ नदीला 
भेटे पर्यावरण , आधार.
          
डी पी राहांगडाले 
     गोंदिया

नदबाई चली ठुमकत

हिमालय बेटी नखरेल
नदबाई चली ठुमकत
साजनला भेटणकी आस
नार अलबेली मटकत

बाल्यावस्था लहानशी धार
बाट मिलसे लेसे आकार
जसी नहान टुरी चंचल
नहीं मनमा कोणी विकार

मोठी भई संथ ओकी चाल
कर संभाळ दुही किनार
जसी टूरी भईसे संज्ञान
लाज ओकी जसो परिवार

रमकत चली पतीद्वार
देख पलट पिताको घर
मिल गई सागरमा नार
माहेरकी आस बाई धर

कसी जाऊ पिताजीको घर
आसू बोवती याद करके
भई विलीन मी संसारमा
जाऊ प्रेमका मोती धरके

सौ छाया सुरेंद्र पारधी


विषय -नदी चली ठुमकत

नदी माय


उचा उचा आती रे पहाड
नदिबाई को उगम घर |
कुद-कुदकर आव नद
शांतरूप बहताना धर ||

शांत स्वभावमा बहकर
बरसाव मायाका सुमन |
विकराल रूप धरकर
नष्ट करसे जनजीवन ||

आय नदबाई माय मोरी
बुझावसे सबकी तहान |
धन -धान्य पिकावनसाठी
किसानला होसे वरदान ||

तीन नदिको होय संगम
कह त्रिवेणी संगम जग |
देखकर कवत मानव
नदी चली ठुमकत मग ||

नदी कहुका सरिता कहू
अविरत बहत रवसे |
रुक नही कही नदीबाई
काम बहनो आय कवसे ||

जल होतोरे वोको निर्मल
केर -कचरा नदिमा टाक |
मानवनं करीस दूषित
अन् भयेव जीवन खाक ||

सौ.उषाताई रहांगडाले

नंदबाई चली ठुमकत/नदी चली ठुमकत

आस

ठुमकत ठुमकत चली,
नदीपर भरनला पाणी
साडी़ को पदर तालपर
नंदबाई की याच कहानी।।१।।

चाल देखोत जशी मोरनी 
छुम छुम धुन पायल की
गीत मधुर नाद  धरनी
अशी सुंदर  कथा नदीकी।।२।।

 नागमोडी बहसे बनमा
दुधवानी रम्य हे झरना 
खड़ खड़ यो नाद कानमा
गुंज गीत ध्वनी या  हवामा।।३।।

वन पहाड़ या चिरदेसे
 आस मिलनकी वा धरके
इच्छा सफल  मनकी होसे 
समुद्रमा जासे वा मिलके।।४।।

 नंदबाई या नदी सारखी
भाव अलग नजर कही
जासे कुंभ धरके सकारी
लगसे दर्याकी  प्रिया सही।।५।।

""जय राजा भोज, जय माँ गड़काली""
वाय सी चौधरी
गोंदिया


नंदबाई 

उच्चो उच्चो पहाड, डोंगर 
चोवसेती हिरवा हिरवा 
नंदबाई को जनम स्थान 
भयो पुंजापाती को कारवा ||

खळखळ बवं जलधार 
बाट नागमोडी वळणकी 
आया केतातरी शीला टीला 
पर आस ठेव कर्तव्यकी ||

गाठ बांधीसेस हिरदामा 
पाठ संयमको जगनकी 
ऋतु ऋतु को बदलसंग 
कर कोशिश सुख देनकी ||

वोको मंजुळ मंजुर नांद 
जसो मुरलीका सातस्वर 
फुलं खेतबाडी, किनारबी 
देय आसराको खुलो द्वार ||

प्रदुषीत भयी वोकी काया 
मुन केती भयीसे नाराज 
दुखदर्द सयकन भयी 
सागरीय सौभाग्यको साज ||

वंदना कटरे  "राम-कमल "


विषयःनदी बाई चली ठुमकत
(दशाक्षरी काव्य)

नदी बाई चली ठुमकत,
सबको तृष्णारा बुझावत
पहाड कपारीन मालका 
बडो  सुंदर नृत्य करत

शुद्ध, पवित्र, जलमय से
पावन से वोकी जलधारा 
रत्नाकरला मिलन साठी 
थंडी करदे से तप्त धरा

पांदन पांदी,खाळखुबळ
रस्ता सुलभ पार करसे
धरतीपर हर प्राणीला 
नदीमाय जागृत ठेवसे

ना भेदभाव,ना अहंभाव
सबकी ममतामय माता
ऋषी,मुनी सदा गावसेत 
पावन नदीमाय की गाथा

नागीन जसी चाल चलसे
हरघडी संघर्ष करसे
कठीण परीश्रम करके 
सदा मार्गक्रमन करसे

सौ.वर्षा पटले रहांंगडाले
गोंदिया


 नदबाई चली ठुमकत

(दशाक्षरी काव्य) 

निकलसे पहाड परल
मिलनला जासे सागरला, 
ठुमकत वाकडी तिकडी 
समावत पोटमा पाणीला. 

कई प्रदेश,कई शहर गाव 
मंघ सोडत बढत जासे, 
कई ताल, कई सरोवर 
आपलोमा मिलावत जासे. 

उन्हारोमा तट क् अंदर 
रह्य जासे सिमटी सिमटी, 
बारीशमा लेसे रौद्र रूप 
तट सोडकर उल्टी पुल्टी. 

भारतमा माता को रूपमा 
जासे पुजेव नदीइनला, 
सबदून पवित्र समज्यो 
जासे जान्हवी भागिरथीला. 

. . . . . . . . . . . चिरंजीव बिसेन
. . . . . . . . . . . . . . . . गोंदिया


नदी चली ठमकत

पर्वत पुत्री
चटक मटक रुप से
नागमोडी चाल
निर्मल स्वरुप से

शुभ्र वस्त्र
नागिण की चाल रे
बाजू किनारा
करा भूरा बाल रे

काटा गोटा
लक्ष्य तोरो अभय से
माती को सिना चिरे
तू हमदम अजय से

विशाल रुपकी
सब साईक गुण से
सागर महासागर
बननको जुनून से

ठूमकत ठुमकत
निराली तोरी अदा से
तू जीवनदायी
तोरो नाव सदा से

शेषराव वासुदेव येळेकर
मु. सिंदीपार
दि.२५/७/२१

नदी चली ठुमकत

पहाड़की सरिता बेटी 
चली ठुमकत ठुमकत 
काटा कचरा संग धरत
निरंतर चली बहत ||१||

शांत रूप जीवनदायी
रौद्र रूप महाविनाशी
सतत चलनकी सिख
देसे नदबाई जशी||२||

पूजनीय नदी मैया 
गंगाजल अति पावन
निर्मल शुभ्र पानी
सबला देसे जीवन||३||

अतिवृष्टिको परिणाम
आवसे नदीला पूर
विध्वंसकारी रुप येव
गावसे विनाशको सुर||४||

कठिन रस्ता पार करत
ठुमकत चली नदिबाई  
भूली सुध बुध आपली
लगी पिया मिलनकी घाई||५||

स्वप्नाली दुर्गेश ठाकरे


नंदबाई चली ठुमकत/नदी चली ठुमकत


अगर मोरो बस मा रवतो 
नदी ला उठायके घरं आणतो 
आपलो घर को सामने ठेयके  
रोज ओकोमा आंघोळ करतो 

नदी आमरी से लहान सुली 
वाकडी तिकडी धार 
उन्हालो मा टोंगराभर पाणी
कर लेसेज आम्ही पार 

जब जब शहर अमीर भय गया 
नदी भयि गरीब
मशरीं मेंडका तहान गया 
फूट गया उनका नशीब 

जसो आयेव आषाढ महिना 
नदीला आयेव पूर
मन मर्जी ल चलत जासे
बहुत दूर बहुत दूर 

नदी सागर ला भेटसे 
कभी नही आवं बाहेर 
मुनच कसेत बुळगा बाळगा 
नदीला नाहाय माहेर

देवराज भुरकन पारधी 
 मो. ९५४५०६८०९०
मु. वडद 
ता. २५-०७-२०२१

विषय: नदीबाई चली ठुमकत
शिर्षक: सहनशक्तीकी महतारी

आळीमोळी चलंसे मस्तीमा
जसी सडक, सरपघायी
जसो बोव्हतो ठंडो बरफ
पानी आसल जीवनदायी ||१||

निसर्गको रूपलक सजी
चली मटकात मटकात
नदीबाई चली ठुमकत
भटकत कहीं इटकात ||२||

धबधबा बनके पड़ंसे
तबं नदी जासे बोंबलत
कहीं चट्टान कहीं पुलिया
हर जागा चली सम्हलत ||३||

रूप उगमको बालपना
मंग धरं रूप जवानीको
व्यवहार लेवान देवान
सत्य रूप माय भवानीको ||४||

बुढापाको शांत रूप मुख
होसे संगम अनंतसीन
नोन मिलावन नोनलाच
भई समुद्रमा ब्रम्हलीन ||५||

नदी निकली शुन्यमालक
सहनशक्तीकी महतारी
सब रंगला एक करके
जीवनका नव रसधारी ||६||

डॉ. प्रल्हाद हरीणखेडे "प्रहरी"
डोंगरगाव/ उलवे, नवी मुंबई 
मो. ९८६९९९३९०७

  नदी
  हे प्रेत वाहिनी गंगा

एक संग सब प्रेत बोली नदी संग
    सबकूछ बढिया - बढिया!
समाय ले आम्हलाअपली निर्जल
    धारामा बहता - बहता
कोणी नाय रामराज्य मा आम्हरो
       हे प्रेत - वाहिनी गंगा!
 खतम भई सब शमशान भूमी
   खतम जात - पात की दुरी
   थक गया सबका का खांदा
      तू ही आम्हरो सहारा
कर दे  माफ!आम्हारा पाप,लोभ,                 
          घमंड, राग, गुस्सां
    हे प्रेत- वाहिनी गंगा !
आम्हरा  पाप धोवता - धोवता
     भय गई तू मैली - मैली
दिव्य,भव्य,पावन, निर्मल,सुंदरता           
     कम करेनेवला आम्ही दोषी
     कर दे आम्हारा गुन्हा माफ
       हे प्रेत - वाहिनी गंगा!

  कोरोना काल बनकर आयेव
मानव साठी,तूभीअच्छुती नही
  काहे सरकार सोयी  - सोयी
    दफण कर ले आम्हला 
      हे प्रेत वाहिनी - गंगा! 

चंद्रकुमार शरणागत
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  (हिरो होंडा)
नदीबाई ठुमकत चली

हिमालय सें उगमस्थान
दरीखोरी बनबन खेली
जीवनदायिनी मोक्षदाती
नदीबाई ठुमकत चली

जनहित को भाव धरके
भूमीपर भगीरथी आई
स्वर्ग धरतीको बिचमाच
शिवजीको जटामा समाई

कही उथळ ना कही खोल
कभी बोहसे या कलकल
देखावंसे रूप भयानक
कभी निळसर संथ जल

नागमोडी सुंदर वळण
जशी चंचल नवती नार
चली सागर संग मिलन
करकन सोलह सिंगार

तृप्त करसे सबकी आत्मा
जलजीव की आश्रयदाता
सीचकर पानी लक खेती
खुशहाली देसें नदीमाता

              शारदा चौधरी 
                  भंडारा
नदी

उत्तराखंड को पहाडमालक 
गंगा उगम भई ।
भगीरथ को तपश्चर्या लक 
गंगोत्री लक आई ।

बहत-बहत गंगा माई 
वाकडी तीकडी भई ।
हरिद्वार ला पोहचकर 
गंगा तीर्थक्षेत्र बन गई ।

गंगा आई उफानपर 
समले सभल नई ।
शंकरजी को जटामा 
गंगा समाय गई ।

जंहा-जंहा गंगा गई 
भक्त वंहा-वंहा गया ।
शंकर की स्थापना करखन 
भक्त पावन भया ।

गंगा मायको झुर-झुर पाणी 
आसल झरा वानी ।
गोड लग असो काही ।
मिठो अमृत वानी ।

सौ, ऊषा बाई रमेशजी पटले नागपूर ।

       नदी बाई चली ठुमकत

   शंकरजी को जठामालका
   भयी कसेत  मोरो उगम
    पहाड ,पवॅत ,डोंगरमा
   तर्रा,बोडी,नालाको संगम......

   नदी को तिरी भुजंग वास
   खडखड-ठुमकत नदी
   नदीबाई सरसर चली     
   वाकडी-तिकडी दूर वदी/खाई........

    तिन नदी को होसे उगम
    तीर्थ मंडलामा हो पावन
    त्रिवेणी गंगामा को संगम
    बुझावसे तृष्णाकी तहान.....

   नदि किनारी कृष्ण- बजाव
   बासरी लका  मन मोहित
   राधाचली आव गोपीसंग
   कृष्ण-राधासंगमा प्रित......

     माहेर मोरो आय वळद
     बोदलबोडी आय सासर
      बिचमा भेटसे वाघनदी
      नावबसू,कहाकी खासर....

     सौ:-ओमलता परिहार/पटले

Thursday, July 22, 2021

सिदोरी ७१




 प-हा

पडसे पहिलो पाणी
सावचेत भय्या किसान
खारीला टाकीन साल्फेट सोंडा
काडीलका मोजसेत कोंडा....

पहिले नांगरला जुपत 
हल्लया अना् गो-हा
आता लगावबिन पातलका
गावखारीपर प-हा.....

दत्तारपट्टालका मचावसेत चिखल
मलमली भयी खांडीपर  सावा
पार-कोंटालका बांधी मोठी
खार डोलसे बिहरसे हवा.....

झिमुर-झिमुर पडसे पाणी
बन्हार लगावत जागा हेक्टर
बांधीमा पाणी  जासे उडरा 
आता दिनभर फिरसे टेक्टर......

उत्तम खेती भरपूर धान
 मोंगाड फुटेव लगी खांडला धार
रातदिन खेतमा किसानकी नजर
 युरीया -इक्को खेतीमा मार......

 
 

    सौ:- ओमलता परिहा/पटले


 शिदोरी

स्वंयपाकघर अना किसानीला
जोडे माय की शिदोरी
नव युग की हॉटेलमा की
एक कहाणी अधूरी

घाम गाडता गाडता
पोटमा चलती हलचल
बायको को हात की शिदोरी मा
माय ममता को आचल

तोंडको स्वादला
नोवती पोटला किंमत
खूदको मोटापन देखावनकी
ईतन होय रहीसे हिंमत

खेतको शिदोरी ला
अमृत की चव
मौज मा बस्या सेती
आधुनिक सोमरसी देव

हृदय का भाव भूलकन
कचरा घरमा घर
पल पल को सुख साठी रोव
आमरो आधुनिक देव को सर

शेषराव वासुदेव येळेकर
मु. सिंदीपार जिल्हा भंडारा


 शिदोरी


राजाराम क् खेतमा 
लगावनो सुरू से परा, 
उनकी बहू धरकर 
जासे शिदोरी डोईपरा. 

शिदोरी मा रव्हसे भात
दार, साग अना अचार, 
सब मिलकर खासेती 
मालक, नौकर, बन्ह्यार. 

सकार पासून करसेत 
सब मिल जुलकर काम, 
खेती को काम मेहनती 
बहावनो पडसे खूब घाम. 

काम करनो क् बादमा 
लगसे सबला बहुत भुख, 
भूख लगेव पर शिदोरी 
खानोमा मिलसे बडो सुख. 

जीवनमा सुख मिलनसाती
बांधो सत्कर्म की शिदोरी, 
तबच तुमला मिले भाऊ 
भरपूर सुखरूपी शिदोरी. 

भुख मिटावन की शिदोरी 
या रव्ह सुख मिलावनकी, 
संगमा ठेवनो से जरूरी 
जब तयारी रहे कही जानकी. 

. . . . . . . . . . . - चिरंजीव बिसेन
. . . . . . . . . . . . . . . . .  गोंदिया
[
      कर्मकी या सिदोरी

तनला देसे जगन ऊर्जा
मनला मिड़ जासे शांती 
वा आय अन्न की सिदोरी
पोट की भुक होसे समाप्ती।।१।।

कामगार यो घाम गाड़से
दिनरात वू कष्ट करते
पोटसाठी जिवन जगसे
तब अन्न को घास मिळसे।।२।।

काहीको जगनो खानसाठी
काहि खासेती जगनसाठी
रोगी काया नहि परिपाठी
लगसे जगनो कोनसाठी।।३।।

जब कहीका चांगला कर्म
तब जगनोमा दिसते अर्थ
काहि जन्म्या गया व्यर्थ
योव का आय जिवन अर्थ।।४।।

कमावो नावाची या सिदोरी
मरनक बाद भी से किर्ती
 सेवा कर्म करो या सिदोरी
समाजमा अमर या मुर्ती।।५।।

""जय राजा भोज, जय माँ गड़काली""
वाय सी चौधरी 
गोंदिया

शिदोरी


बचपन मा माय देसें सुसंस्कार
बाप देसे वोला सुंदर आकार
इनला संस्कृती सत्कर्म की बांधो दोरी
 याच आय जीवनभर की शिदोरी

मानव जनम सें दुर्लभ अति
संस्कार जपकर ठेवो सन्मती
सद्गुण की तुम्ही बांधो गठोरी
याच आय जीवनभर की शिदोरी

रास्ता मा भेटेत कोणी गरजवंत
मदत करो उनला सहृदय अनंत
कृत्य करो नोको तुम्ही अघोरी
याच आय जीवनभर की शिदोरी

माय बाप को तुम्ही करो मान
जपो उनला जीव का प्राण
समजो परलोक की रस्ता सुधरी
याच आय जीवनभर की शिदोरी

पाणी पिवावंन को सें अति धर्म
येवच आय मोठो पुण्यकर्म
मरे को बाद मा होसे जग थोरी
याच आय जीवनभर की शिदोरी


                                  शारदा चौधरी
                                          भंडारा

Monday, July 12, 2021

झुंजूरका :७०






पोवार इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष समूह द्वारा आयोजित काव्यस्पर्धा
झुंजूरका
(वर्ण संख्या - १६, यती - ८)

नाश करके अंधारो, आवं चवथो प्रहर |
ब्रह्म मुहूर्तकी बेरा, झुंजूरका मनोहर ||धृ||

योगी मुनी साधुसंत, जागसेती झुंजूरका |
सुरुवात करसेत, दिनचर्या ध्यानलका ||
पुजापाठ आराधना, भक्तीमय होयकर ||१|| ब्रह्म...

कोंबड़ाकी कुकडूकू, गुंज सकाळी सकाळी |
उठावसे सबलाच, जसो गायके भुपाळी ||
पाखरुकी किलबिल, झनकारं कानपर ||२|| ब्रह्म...

भुमस्यारी आंगनमा, होसे सड़ा सरावन |
मालकीन शिदोरीला, देसे ओला बांधकन ||
मंग चारोपाणी कर, जासे खेतं हलधर ||३|| ब्रह्म...

पहाटला उठकर, करे विद्यार्थी अभ्यास |
पक्की होसे याददास्त, भरं मनमा उल्हास ||
होसे सफल जीवन, ओको मंजील सुकर ||४|| ब्रह्म...

फिरो सकाळी सकाळी, पैदलच सबजन |
करो योग प्राणायाम, भेटे शुद्ध ऑक्सिजन ||
होये निरोगी शरीर, स्फूर्ती रहे दिनभर ||५|| ब्रह्म...

जुना फुलं पड़सेती, झुंजूरका तुटकर |
दिसं बेला झाड़पर, नवो फुलको बहर ||
सुर्य चैतन्य सृष्टीमा, देसे लाली भरकर ||६|| ब्रह्म...

इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया
      मो. ९४२२८३२९४१
       दि. २६ जुलाई २०२१
झुंजुरका

झुंजुरका झुंजुरका
खुली मोरी निंद
सरस्वती जीभ पर
मुख मा नाम गोविंद

शरीर शुद्ध करकन
आनंदमयी योग
मनमा ऊर्जा भरकन
त्यागेव निष्काम भोग

कोयल की कूहू कुहू
आवत होती दूर
दवबिंदू मा चमक
परिसर मा आनंदी सूर

तुलसी बिंद्राबन ला चढेव
तांबा को लोटभत पाणी
माय की भक्ती की
असी रीत पुरानी

मंदिर मा काकड आरती
नाचत होता वारकरी
झुजुरका बनावसे
सुसंस्कार का धुरकरी

सूर्यदेव को पहले जागो
अनधारोमा टाको आलस
तब मॉं भारतीको मंदिर को
बनाय सको गगनभेदी कलस

शेषराव वासुदेव येळेकर
मु.सिंदीपार जिल्हा भंडारा
दि. 11/07/21

  झुंजूरका

टूटेव सपना उघड्या डोरा
मोहक प्रसन्न झुंझुरका बेरा
बादरमा चमकं शुकीर तारा
धीरू धीरू बोवं थंडो वारा

कोंबडा बाग दे रय रयकर
मंदिरमा काकड आरतीको सूर
टाळ मृदंगकी धून वोकोपर
कानमा गुंजसेत स्वर मधुर

हंबरं सेती गाय ना ढोरं
शेणपुंजा उचलंसे कास्तकार
चूल्हो की राख निकालके 
सळा टाकसे भाग्यवंत नार
 
निळो अभारमा स्वर्णिम लकेर
लाल तांबूस रंग उधळकर
आवनको तयारीमा सें भास्कर
किलबिल संगीत बजंसे चौफेर

झुंजूरका फिरसेत लोग उठकर
बनेती तंदुरुस्त योग करकर
रवसें ताजगी पुरो दिनभर
झुंजूरकाको हवाको बहूमोल असर

                             शारदा चौधरी 
                                 भंडारा
झुंझुरका 

जो जो उठसेती झुंझुरकाला
उनका नशीब खुलसे सारा
जो जो रवसेती बाजपरा
उनका बजसेती बारा।।

प्राणवायु झुंझुरकाको
आळस भगावसे मनको
खराब हवा जासे बाहर
नयि शक्ती शरीरको।।

झुंझुरकाकी ताजी हवा
कसेत 'सौ रपयाकी दवा'
मेंदु होसे टवटवा
उठे वलाच भेटे मेवा।।

उठो विद्यार्थी ,शेतकरी
आब् झुंझुरका भयि
करो कष्ट कसो कंबर
घात परीक्षाकी आयि।।

उठो उठो पोवार भाऊ
गफलतमा् नोको रऊ
करो उत्कर्ष आपापलो
झुंझुरकालाच कर्म सुरू!।।

पालिकचंद बिसने
सिंदीपार (लाखनी)


झुंजुरका


झुंजुरका उठकर 
फिरनला जाव, 
वापस आयकर 
लेव प्रभुको नाव. 

तबियत तुमरी रहे 
एकदम फीट अच्छी, 
गलत बात नाहाय 
बात आय सच्ची. 

झुंजुरका रव्हसे 
हवा एकदम शुद्ध, 
अनुभव करके 
देखो तुमी खुद. 

पक्षी उठ जासेत 
झुंजुरका पासुन, 
कायला खाटपर 
रहे पायजे आपुन. 

जल्दी उठेवल् होयेत 
तुमरा पूरा काम, 
दौडधुप कम होये 
मनला मिले आराम. 

झुंजुरका उठकर 
देखो पूर्वकी लाली, 
भर जाहे तुमर् 
मन मा खुशहाली. 

. . . . . . . . . . . . - चिरंजीव बिसेन 
. . . . . . . . . . . . . . . .  गोंदिया
 
झुंजुरका 

काळ सरेव सरेव 
भयी आब् झुंजुरका 
नही कोणीला मालुम 
गया कहान तारका ||

रवी आयीसे ना घरं 
कसो रांगत रांगत 
घडी भरमा सांगसे 
कर कर्तव्य जागत ||

नवो दिन नवी दिशा 
सोच ठेवब् सकारी 
लेबं चैतन्य अहेर 
अना बनू उपकारी ||

सारो सृजन सृष्टीकी 
झुंजुरका से दवाई 
योग तंदुरूस्ती साती 
प्राणवायू से सवाई ||

झुंजुरका समयाला 
ठेवं सत्कर्मी उद्देश 
भेटे सत्वर ध्यानमा 
सत्य, अहिंसक देश ||

वंदना कटरे  "राम-कमल "

झुंजुरका 

झुंजुरका -झुंजुरका 
लग शीतल वारा 
मन मोरो मोहसे 
देखकर शहारा ।१।

झुंजुरका -झुंजुरका 
तन मन डोलसे 
सुगंध फुलईनकी 
मन ला लुभावसे ।२।

झुंजुरका -झुंजुरका 
मन प्रफुल्लित रव्हसे 
काम धंदा की 
हलकाई रव्हसे ।३।

झुंजुरका -झुंजुरका 
मन भजन गावसे 
भक्ति भाव की 
लगन लगसे ।४।

झुंजुरका -झुंजुरका 
कोंबडा आर आवसे 
सब मानव जीवनला 
वु जगावसे ।५।

झुंजुरका -झुंजुरका 
जब इंसान जागसे 
जीवन वोको पुरो 
सक्षम रव्हसे ।५।

सौ. ऊषा बाई रमेशजी पटले नागपूर 
फोन नंबर ७७४१०००९२३ 

झुंजुरका 

झुंजूरका झुंजुरका बाई
बडो गजबच भयेव
गावको बबल्या नांगर धरके
गावखारी को खेतमा चोयेव

कभी ना काल नोहोती चाल
बबल्या खूप सबको डोरामा
कोनीकोच तीन तेरा मा
मुरदंग बजावो गावको डेरामा

गावभर फेरी चहाडी चुगली
पुंडलीक पेहरसे उची ढेटी
घरमा जायके देखो त तुम्ही
बापको पच्याला बारा गाठी

तीरीप डोरापर आयेवपरा उठं
आखरपर बसके गोष्टी हाकं
माय बुळगी थकी हारी
पतलो तावापर रोटी सेकं

हातभर ककडी का
 नव हात बीजा
बबल्या मार बापको 
उसनो पर मजा

माय मंडाव डोस्कापर हात
अना कव् केवीलवानी
साद करेव मोठी मीन
अना पोट आयेव ढाड्या याहानी

पर अज आयी अक्कल
बबल्या ला बडी आमरो
खेतम दिसेव झुंजुरका
धरके बईल को कासरो

सौ. वर्षा पटले रहांंगडाले
बिरसी

Saturday, July 10, 2021

साहित्यिक श्री यादोराव चौधरी



 पोवारी इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष व्दारा आयोजित
मोरो जिवन परीचय
नाव -यादोराव चिंधुलाल चौधरी
मुळ गाव-डव्वा (पळसगाव)
जन्म तारीख 16/10/1958
श्री समर्थ हायस्कूल दांडेगाव याहाल मुख्याध्यापक पदलं सेवा निवृत्ती दिनांक 31/10/2016
शौक्षणिक माहिती-वर्ग 1ते वर्ग 7 जि .प. पुर्व माध्यामिक शाळा डव्वा .वर्ग 8ते वर्ग 10वी आदिवासी शिव विद्यालय डव्वा,11वी सोसायटी ज्युनिअर कॉलेज साकोली. 12 ना बि. एससी.( जिव)डी.बी.सायन्स काॅलेज गोंदिया याहाल सन1982मा भयोव..लोकमान्य विद्यालय मुंडीपार मा मास्तर भयोव.
सन1985ला पी पी कॉलेज गोंदिया ल बी .एड . करेव
.श्री समर्थ हायस्कूल दांडेगाव मा मास्तर भयोव.
अॅडीशनल बी ए मराठी वाङमय.एम .ए. प्रथम वर्ष
संगीत विशारद (तबला)गायन ,वादन को छंद.
पोवारी मा कविता लेखन
गीत गंगा काव्य संग्रह.-प्रकाशित
बिह्या का गाना को संग्रह-प्रकाशित
पोवारी बोलीमा नाटक-
काकाजी मोरी आयको,समज,नवरान लेयीस, व्यथा, जागृती.
विनोदी संवाद लेखन -
आब जासू. बाचता नही आव,खाजो.
निबंध लेखन .अलक लेखन,असा विविध प्रकारका लेख लिखान करनोमा आया सेती.मराठी मा नक्षत्र काव्य.
गित भिमायण (डॉ बाबासाहेब आंबेडकर) को जिवनपट.एड्स गीतमाला
सामाजिक कार्य राजा भोज कार्यक्रम आयोजन करनो.
शिक्षाक क्षेत्रमा परिक्षक ना 20 सालवरी समिक्षक को कार्य. शिक्षक परिषद  गोरेगाव तालुका सचिव .
पारिवारीक.. माहिती दुयटुरा इंजिनिअर पुनामा कार्यारत सेंती .बहू भी इंजिनिअर सेती.
अर्धांगिनी जि .प. गोंदिया मा शिक्षिका से.
कला क्षेत्रमा -बेरुलक कलाकृती तयार करणो
ना लाखुड़ की शिल्प तयार करनो.असो मोरो जिवनपट से.  धन्यवाद जी
""जय राजा भोज जय माँ गड़काली""
वाय सी चौधरी
गोंदिया

अज का साहित्यिक कवी:-श्री यादोराव चिंधुलाल चौधरी

लोहा को परिस
नागंर ला हरिस
यादोरावजी खरा
चौधरी परिवार का वारिस

गुण कला का प्रतिनिधि
मन सुमती का संगी
अनंत कला कौशल्य
पूरो जीवन गुणरंगी

कुशलता का हात
बुद्धी वरद वाग्देवी
पोवारी धरोहर
एक नव तेजस्वी कवी

ऋषि तुल्य जीवन
शिक्षाविद महादानी
ज्ञानी कला उपासक
सृजनशील जवानी

समाज शिक्षक
सबका मार्गदर्शक
पोवार इतिहास का
सदा तूमी अग्रशिर्षक

शेषराव वासुदेव येळेकर
मु. सिंदीपार
दि.०८/०७/२१


आदरणीय साहित्यिक:- श्री यादोराव चिंघुलाल चौधरी

यादवराव गुरुजी को
गाव वू डव्वा
गुरुजी को तपलका
पुणीत वहान् हवा

संगीत विशारद
गायन,वादन को छंद
उनकी प्रतिभा की
हवा बहसे शितल मंद

माय बोली की सेवा
बिह्या का गाना
नाटक,कथा,निबंध,पत्र
जतन करिन गाना पुराना

अष्टपैलू व्यक्तिमत्व
बहुआयामी कला
लाकूड पर कारागिरी
जीवन अलबेला

महान कवि,लेखक
सेती कुशल शिल्पकार
घर मा ज्ञान की गंगा
हसतो खेलतो परिवार

मा वाग्देवी को वरदान
पोवारीका धुरकरी
सदा प्रतिभा का रंग बिखारे
तुम्हरी या पिचकारी

शेषराव येळेकर
मु. सिंदीपार
दि. ०८/०७/२१

अज का साहित्यिक कवी:-
श्री यादोराव चिंधुलाल चौधरी

पोवारी बोली इनकी शान
आमरो समूहको सेत मान
संगीत विशारद वय शिक्षक
यादोराव चौधरी उनको नाम

कलागुण आंग सेती सप्तरंग
काष्टशिल्प कौशल्य करसे दंग
सुखी संसार का चार सेती अंग
अर्धांगिनी उनकी सदा रवसे संग

तबला वादक भजनको छंद
काव्य संग्रह उनको गीतगंगा
पोवारी बोलीमा प्रसिद्ध नाटक
मराठी कविताकी बोवसे गंगा

वाणी मधुर सादो रवनोमान
शिक्षिका भार्या संभाळसे कमान
अभियंता दुही टूरा जीवको आधार
बहुला भी मान बेटी को समान

पोवारीको उत्थान, इनको लक्ष
नाव पर सवार भया सब दक्ष
गढकालीको आशीर्वाद रहे सदा
गाठो उत्कर्षका ठेवो सामने अक्ष

सौ छाया सुरेंद्र पारधी

साहित्यिक - श्री. यादोराव चिंधुलाल चौधरी

साहित्यिक , कलागुनी
सेवानिवृत्त मुख्याध्यापक
चौधरी काकाजी सेती
मोठा समाजसेवक||

विद्याविभूषित काकाजी
गायन वादन का छंदप्रेमी
विद्यादान को कार्यमा  
नही करीन देनला कमी ||

 पोवारीको उत्थान साठी
पोवारिमा नाटक बनाईन
विनोदी संवाद लेखनलक
सबला काकाजीन हसाईन ||

बेरुकी बनी कलाकृतीन
सबको मनला मोहीस
रसिकवान काकाजी
कलागुनमा सेती रहीस ||

माता गडकालिको हाथ
सदा  उनकोपर रहो
पोवारीको विकासका धुरकरी
असाच बन्या तुम्ही रहो ||

सौ उषाताई रहांगडाले

अज का साहित्यिक

श्री यादोराव चिंधुलाल चौधरी


चिंधुलालजी चौधरी का सुपुत्र 
चौधरी यादोराव गुरूजी महान, 
गायन, वादन, शिल्पकला आवसे 
करसेती पोवारी कविता लिखान. 

परसगाव डव्वा उनको गाव 
मॅट्रिकवोरी गाव मा शिक्षण, 
उच्च शिक्षण बी.एस्सी. बी.एड. 
लेईन उनन् गोंदिया ठिकाण. 

गीतगंगा पहली पोवारी किताब 
प्रसिद्ध करीन पचीस साल पूर्व, 
पोवारी साती उनको योगदान 
ना सहयोग रव्हसे अपूर्व. 

काष्ठ शिल्प की सुंदर कला
बिह्या का गाना, नाटक लेखन, 
हर कला मा सेती वोय पारंगत
अलक, विनोदी संवाद लेखन. 

पवारी साहित्य मंडल का 
गोंदिया जिल्हा प्रभारी, 
कार्यला तुमर् नमन से 
बडभाऊ यादोराव चौधरी. 

. . . . . . . . . . - चिरंजीव बिसेन
. . . . . . . . . . . . . . . . गोंदिया

आदरणीय साहित्यिक:- श्री यादोराव चिंघुलाल चौधरी

यादवराव गुरुजी को
गाव वू डव्वा
गुरुजी को तपलका
पुणीत वहान् हवा

संगीत विशारद
गायन,वादन को छंद
उनकी प्रतिभा की
हवा बहसे शितल मंद

माय बोली की सेवा
बिह्या का गाना
नाटक,कथा,निबंध,पत्र
जतन करिन गाना पुराना

अष्टपैलू व्यक्तिमत्व
बहुआयामी कला
लाकूड पर कारागिरी
जीवन अलबेला

महान कवि,लेखक
सेती कुशल शिल्पकार
घर मा ज्ञान की गंगा
हसतो खेलतो परिवार

मा वाग्देवी को वरदान
पोवारीका धुरकरी
सदा प्रतिभा का रंग बिखारे
तुम्हरी या पिचकारी

शेषराव येळेकर
मु. सिंदीपार


अजका साहित्यिक ः
श्री. यादोराव चिंधुलाल चौधरी

अभंग

बाप चिंधुलाल।नाव यादोराव।
डव्वा आय गाव।गुरूजीको।।

पद की निव्रूत्ती।गाव दांडेगाव।
कमाईन नाव।शिक्षाक्षेत्र।।

शिल्पकार मोठा।मोठा ग्यानी ध्यानी।
जीवन से मानी।बहुगुणी।।

विनोदी लेखन।पोवारी नाटक।
लिखाण माफक।संग्रहीत।।

मायबोली सेवा।घडे अविरत।
आये मंग सत।पोवारीमा।।

प्रतिभा का धनी।सुज्ञ अर्धांगिनी।
लिखुसु जिवनी।काकाजीकी।।

गायन वादन।कविता लेखन।
वाचन मनन।छंद सेत।।

सौ.वर्षा पटले रहांंगडाले
गोंदिया

कृष्ण अना गोपी

मी बी राधा बन जाऊ बंसी बजय्या, रास रचय्या गोकुलको कन्हैया लाडको नटखट नंदलाल देखो माखनचोर नाव से यको!!१!! मधुर तोरो बंसीकी तान भू...