Wednesday, March 24, 2021

जातो पर की ओवी

             जातो परकी ओवी
                       
 असो एक माळी गा निर्गुण निराकार
बाग लगाईस सुंदर,जो बाळा जो जो रे.//१//

रोप लगाव सुंदर,खाल्या शेंडा वर बुळ 
कलश पर sदेवुळ,जो बाळा जो जो रे.//२//

साळेतीन हातको खेत,वरत्या धर नांगर 
बैल जुपीस च्यार, जो बाळा जो जो रे.//३//

एकवीस स्वर्ग पर बीहीर,सर्वांग पाझर
माळीन सत्रावी सुंदर,जो बाळा जो जो रे.//४//

चौदावी को मुळ,वाफा सेत बाहातर 
एकविस आळा सुंदर,जो बाळा जो जो रे //५//

त्रीगुण  त्रीकुटी, चवथी जाण गा तुर्या
सबदुन वरत्या माया,जो बाळा जो जो रे //६//

ओन्ज्या उलटी गंगा,पाणी आळोपरा 
सेती त्रि देव मोरा,जो बाळा जो जो रे  //७//

सात गा चकर सप्त सागर को फेरा
माला फिर मनी तेरा, जो बाळा जो जो रे //८//

एक नारी बतीस पुऱुष,एकमाच संसार
पाच तत्व को शरीर,जो बाळा जो जो रे //९//

सबमा से भगवान,माया को पसारो
कर्म चांगला करो, जो बाळा जो जो रे  //१०//
            
डी पी राहांगडाले 
      गोंदिया


जातो पर की ओवी

     सासुरवास

जातो फिर से गरगर,पिठ पळसे भरभरा
बाई दससे तांदुर, रोटी खाय भाऊराया।।

काजक सांगु  तुमला बाई ,माय घरकी बढाई
माय घरंक माळीपरा,चंद्र सुर्य की लळाई।।

सासु करसे सासुरवास, घरधनी  नही आयक
सकार पासुन काम,करुसु पुरो   संयपाक।।

पहाट पासुन दरन दरो,झाडु मारो शेन फेको
भाडाकुंडा साफ करो, सासुका पलासा आयको।।

पहाटला कोंबडा़ बाग देसे,सासुबाई ला बाग लिजासे,
आनो राया सोळायकन,ओकी शाक बनावबिन।।
(असो राग व्यक्त करसेती)
""जय राजा भोज,जय माँ गड़काली""
वाय सी चौधरी
गोंदिया



ओवी
गाउसु बाई मी ओवी गा गाउसु
मुठ मुठ चाउर मी वाहूसु गा वाहूसु

अन को दाना येव कन कन पिसुसु 
जातो मोरो येव गा मी यव देखुसु

पिसेव पिठ फिजाउसु गा बाई फिजाउसु
हात लका रोटी मी बनाउसु गा बाई बनाउसु

सकार को नास्ता मा खासे गा बाई वु खासे
नाथ मोरो खासे रोटी गा ना खेत जासे

दिन रात मेहनत लका अन पिकावसे गा पिकावसे
तब जायस्यानी जातो मा पिठ दरसे गा बाई दरसे

~ विरेंद्र कटरे
जातापरकि ओवी

जातो परकि ओवी
मनला देसे सुकून
जातोबि देसे संगीत
जातोलकाच पिठ ना चून।।

ज्ञानेश्वरकि ओवी
तसिच ओवी आत्याकि
कस्ट कमि ओवी करसे
याद आवसे जाताकि।।

भुरुकाल् दरत होती 
कनिक वहानी सांडत होती
माय ओवी गात होती
घरमा् आनंद भरत ती।।

जातो गयोव ओवी गयि
चक्की आयि कविता भयि
फिरून आयोव जातो ओवी
इतिहास कि यादच आयि।।

जातोबि एक यंत्रच होतो
ओवी काव्यप्रकार
विकास भयोव दोनो तंत्रको
जुनो यंत्रकि जयजयकार।।

प्रेमलकाच फिरवू जातो
लिकू ओवी एकतरी
प्रेम  करु इतिहासपरा
मानवकि से महिमा न्यारी।।

पालिकचंद बिसने


 जातो पर की ओवी

पयली मोरी ओवी ग,  मोरो माता पिताला
विठ्ठलरुकमाई जोडा जसो, सोभसे पंढरीला

दूसरी मोरी ओवी ग मोरो भाई भोवजाईला
लक्ष्मीनारायण जोड़ा जसो, शोभसे वैकुंठला

तिसरी मोरी ओवी ग मोरो कुकू को धनीला
सावित्री को सत जसो, सत्यवान को जीवला

चवथी मोरी ओवी ग, मोरो सासू सुसरोला
पुण्यवान को घर आयी नमन उनको चरनला

पाचवी मोरी ओवी ग , पंढरिको पांडुरंगला
अखाडी ला वारी करू, भेटन जाऊ श्रीरंगला

सहावी मोरी ओवी ग, तुलसी वृन्दावनला
पुण्य कमाओ कन्यादान को, बिह्या लगायश्यान

                        - सोनू भगत
   
जातो परकी ओवी

पहिली मोरी ओवी सें गढकालिकाला सुमरन
आमरी कुलदैवत तू देजो लवकर दर्शन

दुसरी मोरी ओवी सें चक्रवर्ती राजभोजला
पूजसे हर पोवारजन तोला नित्य रोजला

तिसरी मोरी ओवी सें  धार नगरीला
पोवारी उगमस्थान वू  पुण्यस्वर्ग धरतीला

चौथी मोरी ओवी से आपलो जन्म दाताला
शतशत नमन करुसू आपलो मातापिताला

पाचवी मोरी ओवी सें आपलो गुरुजनला
वसा धरके उनको विद्यार्जन करून जगला

सहावी मोरी ओवी सें माय तू हर कणकण मा
माता गडकालीका की मूर्ती बसीसें मोरो मनमा

सातवी मोरी ओवी सें बाई मी दळण दळूसू
माता गढ़कालिका की ओटी नारळलक भरुसू

आठवी मोरी ओवी सें येनं जगत जननीला
आयकर सहाय्य कर मोला दळण दळणला

                                       शारदा चौधरी
                                           भंडारा
 जातो पर की ओवी 

भूमीसार प्रहरला 
जातो पर दरूसू 
केसर किरण वालो 
सूरज मी देखूसू//
मुठ मुठ दाना धीरुलक 
जातो मा टाकूसू 
गोठामाकी गाय हेडतो 
मुरली मी देखूसू //
खाली पोट जातो को 
दंडा मी फीरावूसू 
मदतीला धावणारो 
विठ्ठल मी देखूसू//
जलदी च् पीठला 
आबं मी फीजावूसू 
पसिना ला पोछतो 
बालकृष्ण मी देखूसू//
संसार पार करनला 
मेहनत रोज करूसू 
आनंदीत बेटा बेटी 
घरदार मी देखूसू//

वंदना कटरे 'राम-कमल '

ओवी
पहिली मोरी से                            
माँ गडकालि देवीला
विक्रम राजाभोज भयोव
चलबि उनक् मार्गला।।१।।

दुसरी मोरी ओवी से              
सरोसती माताला
गजानन परसन् होये
जतन भोजक् शाळाला।।२।।

तिसरी मोरी ओवी से।       
प्रणाम वीर पुरसयला
विरांगना पतिव्रता                     
उनक् त्याग सेवाला।।३।।

चौथो मोरो नमन से
राजाभोजको शौर्यला
मुघल गंगैय हैराण भया
भारतमाँक् शक्तीला।।४।।

पाचवो मोरो नमन से 
पोवार संघ शक्तीला
परिवार समजो समाजला ना्
जोळो बिकऱ्या पोवारला।।५।।

सहावो मोरो नमन से
संस्कृती रक्षक पोवारला
नेंगदस्तूर जतन करो
संघ शक्तीसे वक् मुळमा्।।६।

सातवोमोरो नमन से
सोनूभाऊक् तळमळला
मोठा साहित्यिक भेट्या यहानि
नमन ज्ञान कि गंगाला।।७।।

पालिकचंद बिसने सिंदीपार (लाखनी)


  जातो पर की ओवी

दरण बाई मी दरण दरुसू
पोट भर अन्न साठी रक्त अटावसू

जाता बाई जाता मोरो गोटा को जाता
पोट कोनशीब संग दुजा भाव को नाता

एक एक दाना बाई जाता करसे बारीक
खानको पोट एक पण बोट नहात सरीक

फिरसे बाई फिरसे मोरो जाता फिरसे
एक एक दाना पिकावन धनी मोरो राबसे

तुटी बाई तुटी मोरी कमर तुटी
पंढरी को राणा,कब पावन करजो कुठी

दाना बाई दाना नवो धान को दाना
सुटेव प्राण आता धाव गा पंढरी को राणा


शेषराव येळेकर
दि. २१/०३/२१


जातो परकी ओवी

पयली मोरी ओवी गा।
गढकालीका को चरणमा।।
विद्यादान देईन मोला।
रहु ऋणी सदा उपकारमा।।

दुसरी मोरी ओवी गा।
राजा भोज ला वंदन।।
पोवार समाज ला करीन।
उनच नंदनवन।।

तीसरी मोरी ओवी गा।
आई को गर्भमा।।
नव दिवस,नव महिना।
सोहम मंत्र जपनोमा।।

चौथी मोरी ओवी गा।
होती मी अज्ञान।।
मोला दुनीया देखाईन।
मोरो आई बाबुजीनं।।

पाचवी ओरी ओवी गा।
होती मी सज्ञान ।।
वर देखके मांगणी करीन।
मोरो पतीदेवनं।।

सातवी मोरी ओवी गा।
विश्व को देवताला।।
पतिशिवाय देव नही।
सांगुसु मी सबला।।

सौ.वर्षा पटले रहांगडाले
गोंदिया


 जातो पर की ओवी

पयली  मोरी  ओवी ग, वाग्देवी  माता ला  ।
कृपा ओकी राजाभोज ला, नमन उनको चरण ला ।।1।।

दुसरी मोरी ओवी ग, गडकाली माता ला ।
देईस शक्ती पोवारवंश ला, नमन उनको चरण ला ।।2।।

तिसरी मोरी ओवी ग, गायत्री माता ला ।
देसे सद्बुध्दी सबला, नमन उनको चरण ला ।।3।।

चौथी मोरी ओवी ग, राजा भोजदेव ला  ।
श्रद्धास्थान पोवार ला, नमन उनको चरण ला ।।4।।

पाचवी मोरी ओवी ग, मोरो गुरुदेव ला ।
सन्मार्ग देखावन ला, नमन उनको चरण ला ।।5।।

सहावी मोरी ओवी ग, मोरो अजी माय ला ।
शिस्त ना प्रेम देनला, नमन उनको चरण ला ।।6।।

सातवी मोरी ओवी ग, मोरो गुरुजन ला ।
शिक्षा देसेत सबला, नमन उनको चरण ला ।।7।।

आठवी मोरी ओवी ग, मोरो संगी साथी ला ।
जिंदगी मा विश्वास देनला, नमन उनको गुण ला ।।8।।

नववी मोरी ओवी ग, पोवार लेखक, कवी ला ।
पोवारी साहित्य लिखनला, नमन उनको लेखनी ला ।।9।।

 इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया (बडेगांव)
       मो. 9422832941
         दि. 21 मार्च 2021

                                                                          पहिली मोरी ओवी बाई मातापिता को चरणला
सेवा करो तुमि उनकी बाई धावरे बा विठ्ठला।

दूसरी मोरी ओवी बाई, पूजनीय गुरूजनला
दूर करिन अज्ञान ला ,धावरे बा विठ्ठाला।।

तिसरी मोरी ओवी बाई, पंढरी को पांडुरंगला
जनी संग दरण दरीस ,धावरे बा विठ्ठला।।

चवथी मोरी ओवी बाई, राम लक्षुमनला
आज्ञाकारी भाई बनो धावरे बा विठ्ठला।।

पाचवी मोरी ओवी बाई अंजनी को सुतला
लंकादहन करिस वोन धावरे बा विठ्ठला।।

सहावि मोरी ओवी बाई तुलसी वृन्दावनला
दिओ लगाओ रोज बाई धावरे बा विठ्ठला।।

सातवी मोरी ओवी बाई गढ़कालिका माताला
कुलदेवी आय आमरी धावरे बा विठ्ठला।।

आठवी मोरी ओवी बाई राजा विक्रमादित्यला
न्यायप्रिय राजा बाई धावरे बा विठ्ठला।।

नववी मोरी ओवी बाई आमरो राजा भोजला
ग्रंथ लिखिन चौऱ्यांसी  धावरे बा विठ्ठला।।

दहावी मोरी ओवी बाई निसर्ग माताला
झाड़ लगाओ आता बाई धावरे बा विठ्ठला।।
      सौ.छाया सुरेंद्र पारधी

Monday, March 15, 2021

पातर रोटी काव्यस्पर्धा ५४

 पातर रोटी

मरी माय,झेंडु बाम
असो नवरा को प्यार
सबको तोंडमा एकच नाव
जसा हात सेती चार

नशीब मोरा
चूल मा लगी आग
पातर रोटी बनावसू
नहीत नवरा ओके आग

कंबर को कचूंबर
सबको बडेव खून
खलबता मा कुटनेवाली
मी भरेव घरकी बहु/सुन

कारा मणी संग डोरला
मी बिनपगारी बहु
झड्या बाल का बनसेत पैसा
निचोळणे वाला रुप बहू

सरपर पदर 
मान मर्यादा
शिकावत नहीं तरी
पहलो गुरू, माँ शारदा

विडंबना विडंबना
जीवन जगसू जपत हरी नाम
दबेव वाणी संग चलू
बस यही से काम

शेषराव येळेकर
दि. १४/०३/२१


 पातर रोटी
  

पोवारी को खास पक्वान 
इतिहास जमा होय रहीसे, 
नाव वोको पातर रोटी 
तोंडला पानी आय रहीसे. 

गहूको नेहेन कणीक ला 
बहुत मेहनत लका गुथकर, 
चिकी आयेव क् बाद मा 
लोया हात लका फैलायकर. 

कागज वानी पतली बन रोटी 
वोला माती क् फूटेव भदाळपर, 
पकायकर बनायेव जाय रोटी 
मंद मंद आचपर सेककर. 

दूध-साखर मा घीव की धार
भरपूर मात्रा मा डाककर, 
खाये जात होती शौकल् 
स्वाद बखान बखान कर. 

आता पातर रोटी भय गयी 
पोवार समाज माल् लुप्त, 
फास्ट फूड क् जमानो मा 
मोठ् होटल मा बनसेत फक्त. 

                      - चिरंजीव बिसेन
                                   गोंदिया

पातर रोटी (मांड रोटी)(चाल-चांदणं चांदणं)
                          
रोटी त sssरोटी पातर रोटी
बसी रांधनला रांधनला मायबेटी।। धृ।।

पातर रोटी को मोठो से मान
पोवारी जातीकी आय वा शान
रोटी खानकी साद लगी मोठी।। १।।

गहुकी कणिक पिसाओना
पाणीलक ओला फिजाओना
तेलको मोहोन,नरम बनावनसाठी।। २।।

घळा भोळशांन कड्‌डु बनाओ 
चुलो  पर ठेवो ईस्तो लगाओ
चुलो फुकतानी गरमी भई मोठी।। ३।।

फिजी कणिक का लोया बनाओ
दुही   हातपरा ओला  फैलाओ
कडुडु परा ठेवो शिजनसाठी।। ४।।

रोटी बनावनो ज्या बाई जानसे
ओकी  रोटी  हातपरा  तानसे
नेणत बाई क हातपरा फाटी।। ५।।

आंबाको रस नहीत साखरको पाणी
ओक संग लगसेती अमृत वाणी
जरासो नोन गा टाको चव साठी ।। ६।। 

आता पातर रोटी नामशेष होय
नवतीला रोटी कब बनावता आय
शिकाओ टुरीला रोटी बनावन साठी।। ७।।
                  
डी पी राहांगडाले 
     गोंदिया

मांडोरोटी
(अष्टाक्षरी काव्यलेखन)

मांडो  रोटी   पयलेकी
होती  पोवारी की शान !
पाहुणचार साती ओको
होतो  समाज  मा मान !!1!!

मामाजी  आवत जब
भेटन  आमरो   गाव !
माय  आमरी   परस् 
मांडोरोटी को वु ठाव !!2!!

माय चुर कणिक ला
आपट आपट स्यानी !
कर  एकजीव  घोल
पतलो   रबर  वानी !!3!!

मंडाव हांडी  पालथी
आच वालो  चुलोपर !
घोलका लहान लोया
फिराव  वा   हातपर !!4!!

कागद  वानी  पतली
मंग  हांडी  पर  टाक्!
जल्दी काहळ् काहेकी
जरे  मुन   रव्ह  धाक्!!5!!

आंबारस,   दुध  घीव 
अना साखर को पानी !
मांडो रोटी संग  खात
लग  वा   अमृतवानी !!6!!

 इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया (वडेगांव)
       मो. 9422832941
         दि. 14 मार्च 2021

 पातर रोटी 

कोणी कसेत पातर 
कोणी कसेत या मांडा 
गहु कणिक महिन 
भिजावन साती भांडा//

तेल मोहन करसे 
मुलायम न् नरम 
फिजी कणिक लोयाकी 
रोटी कागदी गरम//

चुलोपरा ठेव कड्डू 
अंगारकी धग वोला 
दुही हातपरा फैलं 
रोटी बनावनी कला//

आई-माई तपसेत 
माया पिरमकी धार 
रोटी पातर सिजसे 
कला होसे या साकार//

आंबा रस, दुध घीव 
स्वाद आणसे रोटीला 
आयो पुरानो पक्वान
नवो पणको भेटीला//


वंदना कटरे "राम-कमल "
गोंदिया

पातर रोटी
 सबमा तालेवर पाहुणचार

पोवारी को संस्कृती मा 
आवभगत की सचोटी
सबमा तालेवर पाहुणचार
रस अना पातर रोटी ||१||

मांडा रोटी पच्या रोटी
असा भी एका नाव
जेला भेटं येको पाहुणचार
वोको मोठा भाव ||२||

आमरो पेढी को पयले होती
पातर रोटी की शान
आता वोतरी मेहनत को
नही बनं पकवान ||३||

गावमाको चुल्हो पर लक
आयी शहरमा रोड पर
रुमाली अना चादर रोटी
मिलंसे हर मोड पर ||४||

कनिकला छान करके नेहेन
दबाय दबाय चुरत
चिकी आयेव पर रबरवानी
दिसं लोयाकी सुरत ||५||

लोया फिरावत पसरावतो
दाबत हातलका
मांडा रोटी दिसं पतली
पच्या वानी बाका ||६||

चुल्हो परा उलटो भदाड
बनं सेकन को तावा
इस्तो को आचपरा देती
दुय तीन परतावा ||७||

स्वादमा चार चांद लगत जब
पडं घिव की बोटी
सबमा तालेवर पाहुणचार
रस अना पातर रोटी ||८||

डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७

पातर रोटी 

कलाकारी

रोटी मा रोटी पातर रोटी
बिह्यामा  देती मोटी मोटी।।

गहूकी कणीक वस्त्रागार
कासोक भाणीमा  गोलाकार।।

मड़काको रव्ह तवा गोल
हायमा फिर रोटीको घोल।।

दुर हातकी या कलाकारी
सेकत मड़कापरा खरी।।

दुध ,गुरोनी , घिवकी धार
दोना मा खाज आम्ही

अशी होती आम्हरी संस्कृती
बदलेव जमानो नहीं बनावती।।

फास्ट फुड को यो  आयोव
माडारोटी लुप्त दोसा भयोवा।।

वाय सी चौधरी
गोंदिया


पातर रोटी

मी आव पातर रोटी
कागज सी पतली
रूप मोरो गोल गोल
जसी कुकू की टिकली

गहूं को कनिक ला
बार बार छानेव जासे
कणिक भिजायश्यान
फेटेलका चिकी आवसे

पूजा पाठ चुल्हो की
बुळगी माय करसे
कड्डो मा भुरकी काळी
धुक धुक कर जरसे

बनाया जासेत मंग लोया
हातको हातपर फिरावसेत
कागदसी पतली गोलगोल
कड्डो पर पसरावसेत

गुरो पानी आंबा को रस 
सब खासेत सपासप
आब बनावन की बदली तऱ्हा
तुम्ही भी खायश्यान देखो रपारप

सौ छाया सुरेंद्र पारधी


पातररोटी 

एक जमानो होतो वू भी यादगार
समय संग याद बित जासेती
डिजिटल नव्हतो, जमानो संसार
पल पल वय दिन याद आवसेती

मोरो समय मा नही देखेव पातररोटी
लेकिन आजी मोरी सांग असी रव्हत होती
हांडी पर बनावन की पद्धत होती
कागज सारखी पतरी होती, जाडी रव्हत नोहती

यन् जमानो की पातर रोटी देखेव मी
बिह्या, मंगलकार्य मा हवा मा देखेव मी
उडाय उडाय स्यानी बनावसेती 
शायद याद रहे पातररोटी, सोचेव मी

पातररोटी हांडी पर बनसे
शायद मोरो सोच मा फरक से
आजी को हात की पातररोटी 
अना मंगलकार्य की रोटी अलग से

उमर को अनुभव थोडो कम से
परिक्षक जी, रोटी को वर्णन कम से
लिख लेयेव थोडो बहूत वोको पर
पातररोटी भी भुली बिसरी याद से...

                    - सोनू भगत

Thursday, March 4, 2021

नारेन, नारियल ०१



श्रीकाव्य

टनक नारेन
पुजसेजन
भगवानला प्रथम सदा
आम्ही चढावसेजन

पुष्पमाला,उदबत्ती
भक्तीभाव
प्रसन्नता उमलसे लेसे
मनको ठाव

श्रावनमा रास
आपुलकीकी
सण साजरा करन
गरज नारेनकी

टनकता वरत्या
श्रीफळला
मुलायमता अंदर भरीसे
अंतरमनमा संगला

सुरुवात शुभकार्य
गणेशसंगमा
सदा मान भेटसे
नारेन डोलमा

वर्षा पटले रहांगडाले
बिरसी आमगांव
जि. गोंदिया

नारेन

गणपती मस्तिस्क
       महादेव
  न् करिस अलग
     झाड बनेव 

   होतो मस्तिस्क
        वोको
समुद्र किनारपर पडेव 
    बिज सारखो

        बिज भयोव 
             अना
     नारेन झाड बनेव
        श्रिफल सना

        देव फल
          भयो
     वू आता पुजा
      स्थानी आयो

       मंगल कार्य 
         सबमा
   वोको रव्हसे स्थान
     पवित्र स्थानमा

          - सोनू भगत 


             नारेन (नारीयल )
                 !! श्रीकाव्य!!
                           
नारेन,नहीत 
नारीयल 
सब लगाओ ओको 
ठंडोगार तेल 

पुजाक आरतीको
तानाबाना
सुनी सुनी दिससे
नारेनक बिना

त्रीनेत्र शंकरका
अनवाणी 
डोस्कापरा बूच,अन्दर
रव्हसे पाणी

माणुसक डोस्‌कापरा
केस
पाणीकी खाल्याव-या लगसे
जशी रेस

नारीयलक अन्दरको 
खोबरा
माणूसक खोपळीमा रव्हसेत
कसेत ढोबरा

नारीयलको महत्व
भारी
सबजन करो पुजाकी
आता तयारी 
        
डी पी राहांगडाले
     गोंदिया

काव्य प्रकार:- श्रीकाव्य 

नारेन

       बाहेरलक रव्हसे
            मजबूत 
    अंदरलक नरम गोड
        खानला साबूत 

         नारेनको डोल
           हवनसाठी 
     अख्खो नारेन रव्हसे
        देव पुजनसाठी 

            तिन डोरा
             नारेनका 
       जसा लगाया सेती 
        शिव भगवानका

        शालसंग श्रीफल 
              देसेती
  सौभाग्यको सुचक म्हणुन 
        सत्कार करसेती

       पिवनला नारेनको
                पानी
      अना खोबरा कच्चो 
         रव्हसे बहुगुनी

 इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया (बडेगांव)


श्रीकाव्य
कल्पवृक्ष

गगनचुंबी झाड़
     नारेनको
उचोपर झोका फारसे
   श्रीफल बलीदेनको

मानवकी मुंडी
   ज्ञानेंद्रिये
दिससेती तसाच वय
   मुखना चक्षु हे

नारेन कल्पवृक्ष
    उपयोगी
अन्न वस्त्र निवारा
  योवसे बहुगुणी

खोबरा खोबरातेल
    डोस्काला
बुचकी बनावो दोरी
  बांधनं जोड़ाला

आजोबा लगावसेती
      नाती
दस सालमा फल
   खासेती

डोलकी चटणी
   दोसासंग
करंजीको सातु बनावो
    खावो सबकंसंग

जय राजा भोज,जय माँ गड़काली
वाय सी चौधरी
गोंदिया

विषय:- नारेन (नारियल)
           !! श्रीकाव्य!!

नारेन बहुपयोगी
'रियल'
वको पानी स्वास्थ्यप्रद
बाकी 'ना'रियल ||१||

अख्खो नारेनको
रूप
नार अना नारीको
डोई स्वरूप ||२||

पुजामा स्थान
पवित्र
समुद्र तलपर झाड
रमनिय चित्र ||३||

कवटीवानी कवच
कठीन
जटा, तीन डोरा
जसो त्रिलोचन ||४||

शुभकार्यमा श्रीफल
पक्वान
कलश, सत्कार, नजरबंदी
होम हवन ||५||

जरावन, झाडू
तेल
गद्दी, दोरी बनावो
तनाको ढोल ||६||

आंगनमा नारेन 
जेको
समुद्र तटकी रीत
रिस्ता पक्को ||७||

गगनचुंबी झाड
कल्पवृक्ष
सर्वव्यापी तीन लोकमा
सदैव प्रत्यक्ष ||८||

डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७

श्रीकाव्य
  नारेन

प्रभुकी रचना
अनमोल
अंदर पाणी भरेव  
नारेन डोल

नारियल टणक
बुचदार
खानला खोबरा सें
मोठो चवदार

भगवान शिवजीका
त्रिनेत्र
नारेनमा तीन गोल
सेत सचित्र

 महादेवला अतिप्रिय
श्रीफळ
सौभाग्यको शुभ प्रतीक
आय नारळ

शुभ काममा
फोडंसेती
देवला अग्र भाग
पयले चढावंसेती

खोबरा चटणी
मस्त
इडली दोसा संग 
करसेज फस्त

नारीयल पाणी
गुणवर्धक
त्वचा केस साती
सौंदर्य साधक

         शारदा चौधरी
            भंडारा

Tuesday, March 2, 2021

अष्टाक्षरी काव्यप्रकार विषय "माय" ००१

अष्टाक्षरी काव्य स्पर्धा क्र. १ ता. २६/२/२०२१ विषय :- माय

किमान १६: कमाल २४


  1. डी पी राहांगडाले

उत्तेजनार्थ/ सहभाग

माय मोरी साधीभोळी 

 गुण गाऊ चार ओळी

भाव भक्ती की  मुरत

ओकी  छानसी  सुरत


गुरु  पहेलो  वा आय

मोरी  सुंदर सी  माय

ओक ओटामा आराम

सेवा करो सोळो काम


वाच बगीचा की माली

ओक बिना कोण वाली

ओका  उपकार  केता 

नही गिनती मा लेता


माय नदीकी से धार

नही भुलु उपकार 

वाच प्रेमको  सागर

माय दयाको आगर


नव महिना की नाळ

नही तुटनकी माळ

सेवा करो सब ओकी

कुंजी आय जिवनकी

         **

डी पी राहांगडाले

     गोंदिया








  1. सोनू भगत 

प्रथम 

गर्भ जब समायेव 

दर्द मायला भयेवं

झजकोरी वोकी आत्मा

जन्मला कान्हा आयेव


भगवान कहू, माय

तोरो बिन असहाय

नाथ आमी, उपकारी

कसो देऊ अभीप्राय


माय बिन विश्व नही

जग कसो जाने माया

तोरो जान पडे वोला

जब निंघे तोरो साया


जन्मदात्री से देवकी

जग देखाईस मोला

यशोदाला माय मोरी

अष्टाक्षरी वाहू तोला


          - सोनू भगत
















  1. सौ छाया सुरेंद्र पारधी

तृतीय 

माय सरिता सरिता

वरनु महिमा केत्ती

पाझरसे प्रेम पान्हा

माया आभार जेतरी


माय मोरी साधी भोळी

ओला प्रेम की झालर

ओकी जरतरी साड़ी

कंच हिवरो कलर


मोरी माय से आधार

माया ममता की खान

प्रेम को आय सागर

घरं की रुबाबी शान


माय मोरी रुकमाई

शब्दशब्द ओकी माया

धोऊ चरण कमल

मोक्ष प्राप्त येन काया


✍️✍️सौ छाया सुरेंद्र पारधी

 





















  1. इंजि. गोवर्धन बिसेन

तृतीय 

बोट धर बालपण् ,

मोला तुन चलाईस ।

जब पळु खाल्या तब,

प्रेमलका उठाईस ॥1॥

  

सांगशान कथा तुन, 

रस्ता मोला देखाईस ।

सज्जनता का चांगला, 

पाठ मोला सिखाईस ॥2॥


कभी गरो लगाव त,

मोला कभी वा डटाव ।

हातलका मायाको वा, 

मोरी थकान मिटाव ॥3॥


होऊ निराश मी तब, 

माय मोरी आशा रव्ह ।

मोरो उज्वल भाग्य की, 

मोठी अभिलाषा रव्ह ॥4॥


मोरो सफलतामा से, 

लक्ष्मीमाय को आशिष ।

याद आवसे तब मी, 

झुकाऊसु मोरो शिस॥5॥

 

छोटो तोंडलका कसो, 

करु तोरो गुणगान ।

माय तोरो ममता मा, 

फिको लग भगवान ॥6॥

  

✍ इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया (बडेगांव)

दिनांक : 26 फेब्रुवारी 2021.






  1. शारदा चौधरी

द्वितीय 


जन्मदात्री माय मोरी

प्रेम की पुज्य मुरत

मन मंदिर मा मोरो

सजी सें वोकी सुरत   


माय से पयलो गुरु

माया संस्कार की खान

कोणी नहाय जगमा

माय को वानी महान


पिवाईस तुनं दूध

मोला अमृत समान

हर गुन्हा होसे माफ

बच्चा सें जीव का  प्राण


धुंडू सु मी पुण्यफल

जेनं वोनं तीरथ मा

खरो भगवान तं सें

माऊली को सीरत मा


मन रोवंसें यादमा

तोरो माय बारबार

फेड नही सकू तोरा

जन्मभर उपकार


मन करसे बिनती

हर अंत श्वास तक

पुन्हा लेऊन जनम 

तोरो चं मी कुश लक


        --- शारदा चौधरी,  भंडारा

 

 

 

 

 

 

6. डॉ. प्रल्हाद हरीणखेडे "प्रहरी"

🌷 मायलाच दंडवत 🌷

प्रथम/ द्वितीय/ तृतीय/ उत्तेजनार्थ/ सहभाग

वकी का वर्णू महिमा

जेनं जन्मिस ईश्वर

मायरूप समावन

कम पडंसे बादर ||१||

 

देसे जनम जीवन

करं पालन पोसन

सेवा मायकी करके

मिले मोक्ष को साधन ||२||

 

वरदान ईश्वरको

स्वर्ग धरतोरी परा

सदा दुआ देनेवाली

माय ममता को झरा ||३||

 

माय छप्पर को आडो

देसे आश्रय सबला

झुंझुरका पासनाकी

जुपी रवंसे रातला ||४||

 

माय समान दैवत

नही दुजो अवगत

हर जनममा मोरो

मायलाच दंडवत ||५||

मोरी माय अशिक्षित

मोरो विश्वविद्यालय

वको त्याग लका भयी

जिंदगानी सुखमय ||६||

डॉ. प्रल्हाद हरीणखेडे "प्रहरी"

उलवे, नवी मुंबई

मो. ९८६९९९३९०७

  1. कौशिक चाैधरी 

उत्तेजनार्थ/ सहभाग

गर्भ आपलो ठेयस्यान

जन्म देयेस माय।

तोरोशिवाय पहलो भगवान

दुनिया मा मोरो कोणी नहाय।


डोरा उघडता बरोबर

आस भयी तोरी

मी तोरो टुरा न

तु माय भयीस मोरी।


अतंरमनमा माय

बसीसे सुरत तोरी

याद यायव पर मी

 नयन मुंदूंसू मोरी।


आपलो संस्कार लक

तुन बांधेंस सिदोरी मोरी

काही भी संकट आया त

फक्त याद से तोरी पूरी।


मन लक प्रेमळ, धीर लक गंभीर 

शिकवणूक होती तोरी

तु नाहास माय आता

फक्त याद से मोरोेजवळ तोरी।


आता फक्त याद से मोरोजवळ तोरी माय , याद से मोरोजवळ तोरी.......

----- कौशिक चाैधरी


  1. सौ.वर्षा पटले रहांगडाले

द्वितीय 

बडी साजरी गोजीरी

जसी सुवर्ण की खान

मोरी माय से कष्टाळू

श्रम कर रातदिन


झाडलोट सकाळकी

सडा सारवन कर

ढार पाणी तुरसीला

चवूकचांदन पुर


राबराब सेती हात

घडीभर ना इसामा

सदा घाई से कामकी

रव्ह पाणी गा डोरामा


माया  कर घरपरा

सदा घरसाठी झुर

अपमान भेट सदा

मान पान होतो दुर


मोरी माय सुसंस्कृत

ज्ञान देईस आमला

सुखी संसार को मंत्र

 सदा शिकाईस मोला


✍सौ.वर्षा पटले रहांगडाले

बिरसी आमगांव

जि. गोंदिया

कृष्ण अना गोपी

मी बी राधा बन जाऊ बंसी बजय्या, रास रचय्या गोकुलको कन्हैया लाडको नटखट नंदलाल देखो माखनचोर नाव से यको!!१!! मधुर तोरो बंसीकी तान भू...