Sunday, February 28, 2021

बेगरचार

विषय: बेगरचार 


जब दादू चलाव घर 

सब संगमा रव्ह परिवार

आत्या, काका सब होता

तुटेव सब, भयेव बेगरचार


काका ला भेटेव जुनो घर

बाबुजी पडेव हिस्सा को मालक

आत्या ला आयो साडी, खाजो

माउली न् भाई साती सोडिस हक


दुय बांधी गावखीरी की

दादू को हिस्सा मा आयी

जब मय्यत भयी वोकी 

तब हिस्सा साती बाट देखी गयी


बेगरचार न् घर फोडिस

तोडिस रिस्ता नाता

भाई भाई दुश्मन भया 

खाईन उनन् गोता


हिस्सा को धन को लालच

न् तोडिस घर की एकता

बेगरचार अटल सत्य से

लेकिन नोको तोडो खुन का नाता


~ विरेंद्र कटरे, चंदिगढ


विषय - बेगरचार


संस्कृती को बेगरचार

एक बेगरचा र अशो भी

सिखाय गये व आपली

हिंदी संस्कृती की परंपरा

धन - दोलत काही नहीं रहो

रहो से भाई - भाई को प्यार

मोटो को सन्मान,अन् लहान ला प्यार

बाप - माय को आदेश

सर्व परी शिख्या गये व

अशो एक बेगरचार!

धन - दो लत कही नहीं रहो

 रहो से ती संस्कार!

हर घर मा पूजा हो से श्री राम की

दि खावा रह गयी से श्री राम को

हर घर मा भाई भाई बन गया वैरी

एक एक इंच जमीन साठी बन गया

 सगा भाई भाई आपस मा बन गया वैरी!

 का हान गया आम्हरा आदर्श

का हान गयी आमहरी संस्कृती

सब लालच न मि टा य देयिस

आम्ह री संस्कुर्ती,अन् आदर्श

कोर्ट बन गये व आम्ह रो विधाता

धरा का धराऱ्या रह गया आमहरा

संस्कार, आदर्श

 अशो भी एक बेगर चार!


✍️ चंद्रकुमार शरणागत बिर्शी

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        (हिरो होंडा)

२८-०२-२१



आम्ही दुय राजा रानी अना आयरा दुय पीटुक

अलग रव्हनो को से बडो साजरो सुख


दिवसभर काम अना टोमना का बोल

झेल झेल के थकी अना पुरो भयेव झोल


नंनंद बाई आमरी ना काम की ना काज की

बोट भर ककडी का हातभर बीजा सांगनकी


जेवन बसेव परा सासु डोरा फाळके देखसे

लेकरू की पीर पीर सदा कानपरा आवसे


मोठा मोठा गंज अना मोठा मोठा चुला

सयपाक रांध रांधके हातमा आया सेती चुला


जीठानी बाई आमरी बडी से तोरावाली

कामधंदा ठेयके इश्कुल मा लगायके जासे लाली


सुसरो सदा नवरा ला उचकावसे भडकावसे

कही जानला जानत घडी घडी फोन करसे


भासरो ला नही रव्ह फुरसत घडी की

फोनपरा मश्गूल रव्हसे फीकर ना पैसा कवळी की


रोज रोज को जाचला त्रस्त होयके टाकेव कानपर बात

नवरा ला कयेव आता खाबीन अलग भात


बडो मीनतवारी करके नवरा जरासो मानेव

लगेव हात मीन बी बेगरचार आपलो करेव


चार दिवस हासी खुशी कसा गया पता नही चलेव

अलग होयके मीन शांती को सुस्कारा सोळेव


आपुनच राजा अना आपुनच होता प्रजा

ना काम की कट कट अलग मस्त आव मजा


चार दिवस अलग होयके बडो अच्छो लगेव

मनमा सोचेव बहुत दिवस  घरको सेमानो तापेव 


काई दिवस बाद हाळ्या कोरोनाला झोमाळा झोमेव

घरमाको किरानोला शनी गीरासन बसेव


लेकरूबी दिवस भर हल्ला मचावत होता

काई करू तरी हाळ्या चुपचाप बसत नोहोता


आता याद आयी सुसरो दिवसभर लेकरू संभालत होतो

चिल्लर चुल्लर खर्च भासरो संभालत होतो


जीठानी बी घरका बारीकसुरीक काम करके जाय

पाहुना पयी आता त नंनद मदत करत जाय


चार दिवस को बेगरचार मंग चांदनी दिसन बसी

राजा रानी को संसार परा अंधरी मासी बसी


दिमाग माल बेगरचार को भूत निकल गयेव

सकाळीच उठके मीन 'अवो'चलो आपलो घर जाबीन कयेव


✍वर्षा पटले रहांगडाले

बिरसी आमगांव

जि. गोंदिया


                          बेगरचार 

                           ******

जीत ऊत बेगरचार करन भयीं दाटी

जशी काही बापबेटाकी मायाच तुटी

एकच घरकी आता  होय फाटाफुटी

माय कसे बोहु काहे अशीकशी रुठी


एकठण टुरा ना बीह्या करेव सुखमा

बोहु आयी घर, नाव ओको रूखमा

करीस शिकायत नहीरवजन एकमा 

मी  नही रहू  कसे सासु क धाकमा


बोहु की आयकीस ना भयेव बेजार

बापला कसे आता करदेव बेगरचार

बाप क डोराला फुटी आसुकी धार

अंतकरण फाटेव ना भएव तारतार


मायबाप आमरा आती दयाका सागर

उपकार च नही फेळनका जिवनभर

सम मा संपती को मनमा बिचार धर

मायबाप काहां जायेती, बिचार कर


जन्म देईन ना पालनपोषण भी करीन  

हातक फोळावानी तोरो जतन करीन 

लहानोको मोठो करीन,जग देखाईन

दुय का चार हात भी तोरा  करदेईन


जब तुमी होवो एकदुय टुराका बाप

नही पळनकी का उनपर तुमरी छाप

घर फोळशान मायबाप नोको  तोळो

बेगरचार बुरीबला,नातो नोको जोळो

                     ******

डी पी राहांगडाले 

      गोंदिया


पोवारी इतिहास साहित्य एवं उत्कर्ष व्दारा आयोजित राष्ट्रीय पोवारी काव्य स्पर्धा 

काव्य स्पर्धा क्र-५२


विषय- बेगरचार(बटवारा)

प्रकार -नक्कल(दंडार)

   

मोरी आयकोना


बेगरचार करबिन ना राया

येकसाठी झुरसे काया।।धृ।।


आजवरी आम्हीं सबको क-या

शिक्षण बिह्यामा पैसा भ-या

खंबुरा घरकं काममा सा-या

सब  कमायी गयी वाया।।१।।


आपली बबली बिह्याकी भयी

बचावो आपली कमाई कायी

आयको मोरी मी सांगुसू सयी

हे कोनिक काम नहीं आया।।२।।


मोठा तुम्ही तुम्हाला का?देयती

चांगली जमीन  हिसामा लेयेती

माय बाप तुम्हरं करं ठेहेती

उनला नाही कोनिकी माया।।३।।


काम करनला हेवा करसेती

आयतो पर रायतो हे खासेती

काही कवनत गुस्सा करसेती

आम्ही फुकट को नहीं काया।।४।।


    मोरी आयकना

लहानको मोटो उनन करीन

गरीबिलं जिंदगी सवारीन

घर दार कष्टलं उभो करीन

यन उमरमा देवो साया।।५।।


माय बापकी सेवानही करती

वृद्धाश्रम मा उनला ठेवसेती

कुनावकी समाज गाये किर्ती

पल पल तळपे उनकी काया।।६।।


अशी करनी शहानो कोन कहे

उपाशी मायबाप बदनामी होये

प्रापर्टी ओकी उ का? उपाशी रहे

चांगला संस्कार चली गया।।७।।


""जय राजा भोज, जय माँ गड़काली"""

वाय सी चौधरी

गोंदिया


विषय - बेगरचार

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लहानआंग क् खटपट क् कारण

दुय भाई इनमा भयेव बेगरचार, 

लहानपण पासून संग रह्या पर 

आता नही रहेव उनमा प्यार. 


घरक् हिस्सापासून बाडी, आंगन, 

धानधन्सी सब अर्धो अर्धो धर लेईन, 

जेवर जाटापासून बर्तन भांडा 

कपडा-लत्ता अर्धा अर्धा बाट लेईन. 


असल कमसल करता करता 

खेती की जमीन बी बट गयी, 

रोड ला लगी जमीन अना 

ओलित की बी बराबर भय गयी. 


एक-एक बहिनको दुही भाई करेत साडी, आननो लिजानो तय भयेव,

मायबाप ला ठेवनसाती भाई इनमा

कोणतोबी एकमत नही भयेव. 


एक मायला एक बापला ठेवो 

पंचायत मा फैसला भयेव, 

जेन् चार टुरू पोटू पालीस गरीबीमा 

वु बाप सबला जड भयेव. 


माय करन् लगसे घरको काम मून 

दुही मायला ठेवनला तैयार भया, 

बापक् डोरा मा आसू, सोचसे - 

मोर् हातल् कोणता पाप भया. 



                      - चिरंजीव बिसेन

                                  गोंदिया


विषय -बेगरचार


संयुक्त परिवार एक इस्कुल

जमे तबवरी रहेच पायजे

आजा आजीको अनुभव

नातुला भेटे देये पायजे।।


सबका बिया होतवरी 

रवो एकमाच

करो काम मोठमोठा

फायदो होये सबलाच।।


विभक्त परिवार भयि गरज

रवो कहानबि

सन तिवारला एक रवो

करो खानपानबि।।


विभक्त रवनो से बात हिम्मतकि

नितीलक कमावो धन

पर् मायबापकि सेवासाठी

नोको कवो अडचण।।


करो बेगरचार होवो अलग

पर् मायबापको ठेवो मान

पोवारी संस्कृती अमर ठेवो

बनो श्रवणजसो पुण्यवान।।


पालिकचंद बिसने सिंदीपार (लाखनी)


विषय: बटवारा


बटवारा नहाय अच्छी चीज भाऊ,

सबको मनला ठेस पहुचसे,

घर का व्यक्ति पड़सेत एकटा,

दुःखी मन यो सबला कवसे।।


होसेत दुर एक दूसरो लक,

हकीकत सपना बन जासे,

सबकी भावना चुर-चुर कर,

बटवारा को सागर मा बह जासेत।।


एकता ला ठुकराय कर ,

बटवारा जो कर से,

मानव जीवन का सेत वय हतियारा,

दुःखी मन यो सबला कवसे।।


बटवारा को टाइम पर ,

बदल जासेती पुरा रिश्ता,

नहीं रव कोई आपरो,

टूट जासेती गहरा रिश्ता।।


      कु. कल्याणी पटले

       दिघोरी, नागपुर



विषय: बेगरचार


लिखुसु शब्द मी, वास्तविकता का

भरेव घर होतो, आजा मुखिया होतो

जब बेगरचार भयोव आमरो घर को

साल भर को होतो मी, जब होश नव्हतो


जब होश आयेव तब दुनिया जानेव

आजा मोरो, बाप को हिस्सा मा आयेव

होतो लहान त् कहानी सांग दादा

दादा को सब्द मा परिवार मी जानेव


कहानी वा भरेव घर मा की 

बाबुजी, अजी, अना मोठा बाबुजी

असा होता पितातुल्य तिन भाई

प्रमुख को रुपमा दादा उनको अजी


दुध को धंदा होतो घर मा

जोड होती तिन भाईंकी

सायकल लका जाती तिरोडा

धरत जनसेवा ट्रेन सकारकी


गाव को दुध नागपुर लिजाती 

हजारो लिटर दुध को व्यापार होतो

वन बेरा आमरो दुध को साम्राज्य होतो

भाई को जोड सामने तिवारी भी झुकत होतो


पच्चिस साल वरी दुध को आमरो साम्राज्य होतो

भाई को जोड लका बाप भी सिना तानत होतो

दुय एकर की खेती बावन एकर भयी 

धनाड्य होतो परिवार, लेकिन अहम नवतो


आयो वू साल उन्निस सौ पंच्यान्नव 

जब तिन भाई को भयोव बेगरचार

मजबुत साम्राज्य आता बट गयेव

बापु मोरो पंधरा एकर को रहेव कास्तकार


बावन एकर खेती जमाईस आजा न् 

पंधरा पंधरा एकर मा आयी सबको हिस्सामा

धिरु धिरु सब भाई कोमाय गया 

बस हिस्सामा आयी भुमी रही सामा


कास्तकारीच भयोव बापु को व्यावसाय

नांगर चलायस्यानी पालिस आमला वोन

विरासत मा आमला काही नही भेटेव

जब करुसु याद वय स्वर्णिम दिन


बेगरचार न् करिस सबकी शक्ती हिन

संदेश मोरो नोको करो बेगरचार

भाई भाई को जोड मा से वा शक्ती

लिख लेयेव दुय शब्द मन मा आयो बिचार


✍🏻- सोनू भगत


विषय:- बेगरचार


भाई भाई मा भय गयेव अज बेगरचार ।

माय उनकी दुखी भयी करशान बिचार ।।


अजी उनको मरेवत् मायला होती आस ।

दुयी टुरा रहेत संग मा ओको पास पास ।।


बहु बहु को झगडा लक तुटी उनकी जोडी ।

भाई भाई तंग भया आयेक उनकी खोडी  ।।


एकही बहु तयार नही सासुला ठेवन जवर ।

सोच सोच शान माय ला आवनबसी भोवर ।।


राम लक्ष्मण सारखा भाई कामत साठी झगडत ।

भयी मारापिटी उनकोमा त चलन लग्या लंगडत ।।


मायको हिस्सामा आयी कामत लहानको ढोडी ।

मोठोला सायबन मिली बहु निकली घर फोडी  ।।


लहान टुरु पोटु खेलनसाठी मायसंग खुप तरसत ।

जाती खेलन माय जवळ तब बहु उनपर बरसत ।।


असो देख बेगरचार माय भयी खुब लाचार ।

आता कसो होये जगनो माय कर बिचार ।।


भाई भाई मा भय गयेव अज बेगरचार ।

माय उनकी दुखी भयी करशान बिचार ।।


✍ इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया (बडेगांव)

दिनांक : 28 फेब्रुवारी 2021.


विषय - बेगरचार


होता सब भरेव घरमा

 तब होतो सुखी संसार ,

मालूम नहीं नजर कोनकि लगी 

भयेव घरमा बेगरचार ।।


होता सब भरेव घरमा 

आपसमा होतो प्यार ,

दिस मस्त घर रुबाबदर 

जसो माता रानी को दरबार।।


होता नोकर चाकर 

भरेव घरमा भरपूर ,

होतो मस्त लाड़ प्यार 

भरेव घरमा भरपूर ।।


होती खुट परा दूय च्यार जोड़ी 

अना गाई भशी कोटा भर ,

डोरा लक नहीं दिस आता 

गाय को दूध की धार ।।


से घरमा येतरी जाय जाद

सपाई देयेती का आमरो कर ,

अशी कवत होती मगाशी 

आमरो लाहानश्या की माय ।।


नाेको देवो मोला चिमुटभर 

पर नोको करो बेगरचार ,

आपस मा बनायके  ठेवों 

तुम्ही भाई भाई को प्यार ।।


✍️ बंटी चौधरी अर्जुनी


बटवारा


बचपनमा खेल्या कुद्या एकमा भाईभाई

बिह्या होयेपर बटवारा की नौबत आई

टूटतो घर देखकर माय मनमा रोई

बापको सपनको घरोंदा तुटनकी बेरा आई


रोज को घीसघीस लक चुल्हा बी बट्या

माया पिरत भरोसा का धागा बी तुट्या

लहानांगं होन बसी बाचाबाची लडाई

देवरानी जिठानी की काही पटच नही


बरतन कपडा लत्ता बट्या बिस्तर 

बटेव बिसरो जमीन आंगण घर

कथडी ना धुस्या की थप्पी लग गई

घरकी देहरी बी बाटनला कम पड गई


बहीनी भाटवाला बुलाया बटवारामा

एकएक बहिणी आई भाई हिस्सामा

माय बाप को बटवारा की बारी आई 

बहूबेटा की बोलती बंदच भय गई


बटवारा लक होसें अति नुकसान

एकोपा लक बढंसे कुटुंब की शान

टिकावो खून को रिश्ता की गहराई

बटवारा मा कोणी की नहाय भलाई


                             शारदा चौधरी

                                  भंडारा


      बेगरचार


बटवारा कहू येला, कहू बेगरचार

घर फुटेव, रिस्ता नाता को दुराचार


समझो येला, यव बहूत बेकार

भरेव घरच् आपरो सबको परिवार


एक कोख मा लका जन्म्या भाई

एक रह्या हमेशा जब आई कठिनाई


दुख भयोव लाहनो ला त् धायेव भाई

जब रोया दूही भाई त् धाई उनकी आई


एक सुत्र मा बांधस्यानी ठेईस बाप न परिवार

माय न् वोला आपरो ममता लका देयीस आधार


भया जवान बेटा, कर देयिस उनका चार हात

दूही बहू आयी घर मा, करिन घर फोडन को घात


बायकोईनको झगडा लका भयो बेगरचार

भाई भाई अलग भया, आयो उनमा दुराचार


खुन का रिस्ता तुट्या, अलग भया परिवार

परिस्थीती असी आयी, काम ना आया संस्कार


   ✍️✍️ सौ छाया सुरेंद्र पारधी


बेगरचार 


भरेव फुलेव परिवार मा आयी कालीरात 

बेगरचार होनो या अचछी नहाय बात//धृ


माय अजीला रवसेत बेटा बेटी समान 

उज्वल भविष्य फुलावन कससेत कमान 

एकताको सागरमा काहे सुनामी प्रघात//1


बरतन भांडा टकराया जाऊ जिठानी मरीज 

अगाजमा भाईभाई  को प्यार भयेव खारीज 

तुफानी तांडव करं कुटुम परा  आघात//2


आपलोच होय जासेत एक दिन पराया 

दुख घोलनोवालो यव कौन से हत्यारा 

गयरो रिशता तोडनला नको देओ सात//3


आमरी हिन्दू संस्कृती एकात्मता मिसाल 

प्रगती को संख बजावसे दिगंतमा खुशाल 

मानव्य ला अपनायकर संगमा खाओ भात//4


वंदना कटरे "राम-कमल "

गोंदिया

28/02/2021



   बेगरचार


सब करो आता बिचार,

काहे भयव बेगरचार ll


एकमा होता सब संगी,

आता बेगरा भया संगी ll


खेलत होता बोलत होता,

संकट मा सब संग होता ll


लोग कहवत भाई आती,

कहा मर गयी इनकी मती ll


जो करे जास्ती की अती,

बेगरचार की आवसे मती ll


परिवार अना समाज की बात,

बेगरचार मोठो बिचार की बात ll


जोड़न की करो आता बात,

साहित्य-समाज की से बात ll


करो तुमी आत्मा लक बात,

सही से का बेगरचार की बात ll


आता करो एकच सबजन बिचार,

कसो भयव आमरो बेगरचार ll

************************

प्रा.डॉ.हरगोविंद चिखलु टेंभरे

मु.पो.दासगाँव ता.जि.गोंदिया

मो.९६७३१७८४२४


बेगरचार


मान गयो, रुतबा गयो, गयी घर की बहार,

गांव को महाजन घर, जब भयो बेगरचार.


तीन बेटा भीम घाई, होतीन महाजन का बख्खा,

तिन्ही होतीन धुनका, अना काम का बड़ा पक्का.

खूब बढ़ी खेती-बाड़ी, अना पनपीन धन-ढोर,

देखन लायक बनयो, महल जसो  मोठो अवार.


भाई-भाई मा साठ-गाँठ, बाप ला चोवत होती,

घर का ढोला मा अन्नपूर्णा, हरपल सोवत होती.

देखत-देखत बेटा भईन आता बिहया जोपता,

दस गाँव की रिश्तेदारी मा फैल्यो एव समाचार.


मोठो बेटा को रिश्ता भयो, तगड़ो महाजन घर,

बहू को पाय संग मा आई, शुभ छण भर-भर.

महकन लग्यो जीवन सबको, वोन आँगन-घरमा,

समृद्दि अना संपन्नता मा, चमक्यो सब संसार.


चल्यो समय हांसत-हांसत, जीवन की चली गाड़ी,

काँटा भी फूल जसा, इंधारो भी लग उजाड़ो,

नाहना दुहि बेटा को, करिस महाजन न बिहया,

नाती-नतरु को घर भयो, ब बनिन सब संस्कार.


भाई-भाई को हेम येव, कब तक चलतो राम,

उजाड़ो कबतक रहवतो, का नहीं होती शाम.

कारी डोसकी हिनको मंतर, करन लग्यो काम,

सुगढ़ता का बोल हिनमा, उठन लगी चित्कार.


गृहस्थी को सूर मा, कसो होन लग्यो हल्ला,

रान्धनखोली की खटपट, देख रहयो मोहल्ला.

आपरो-तुपरो की भय गयी, घर मा आता रीत,

सुख को येन संसार मा, पनपीन आता विकार.


जरा-जरा सी बात पर, लगन लगी पंचायत,

आपरा हिनला जलील करनो, बन गयी रवायत.

सबकी हांडी ला आता, करनो से अलग-अलग,

बिट्टयसार महाजन साब न, असो करिस विचार.


वोन महल की वोतरहि, सामान बट गइन,

मान-सम्मान, हेम, दिल मा ल हट गइन.

हेवा-हिस्का की रेखा न, खिचीस एक लकीर,

वोन घर को परदा हिन की, बन गइन दीवार.


सबको न्याय करन वालों, खाल्या देख से आता,

मुछि को ताव गयो, नहीं कर वू चार मा बाता,

सोच-सोचकर घूरन लग्यो, तीन बेटा को बाप,

चेहरा पर पानी नहीं रहयो, दिख से वू लाचार.


नोट टूटनो दुनिया मा, खुदरा का आत निशान,

अगाज्या महाजन का बेटा बनिन

नाहन किसान.

एकता की ताकत ला, पहचानो गा  भाउ पोवार,

सुख-दुःख मा साथ रहो, नोको करो बेगरचार.


मान गयो, रुतबा गयो, गयी घर की बहार,

गांव को महाजन घर, जब भयो बेगरचार.


तुमेश पटले "सारथी"

केशलेवाड़ा (बालाघाट)


          नोको करो बेगरचार


उजड गया कजाने केतरा

कुटूम येनं संसारमा

आपलो खून नही रहेव आपलो

येनं बेगरचारमा ||१||


चुल्हो बट गयेव भीत बट गयी

बट गया माय बाप

भाई बहीन भोवजाई बट गयी

रिस्ता आपोआप ||२||


भाई भाई दुश्मन भय गया

दरार आय गयी नातोमा

पिसन साती अनाज रोये

कांडी उखर जातोमा ||३||


मायबाप तमाशा बन गया

पंच भय गया हैरान

मर्यादा कुलकी बट गयी

गयी कुटूम की शान ||४||


लंबो बालको चमत्कार लक

टुट्या खूनका रिस्ता

खेती किसानी बेगरचारमा

भय गयी सप्पा खस्ता ||५||


एक दिवार लक बनी दुय दुय

खोली एकच खंड की

कथडी बिस्तर बिसरो बाडी

टुट गयी जुनी मंडकी ||६||


दुखी होय जाये दिल मायको

अना बाप लाचार

फलेव फुलेव अना भरेव घरमा 

नोको करो बेगरचार ||७||

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डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी"

उलवे, नवी मुंबई

मो. ९८६९९९३९०७


विषय - बेगरचार


सुख को मंदिर आय घर

अना परिवार से वोकी डोर

सबजन रहेत प्रेमलक

त स्वर्गदुन सुंदर होसे घर


सबला मालूम से परिवार

की शक्ती एकता मा रव्हसे

पर जब होसेत बिचार मा मतभेद

तब जनम लेसे बेगरचार


जागा को बेगरचार भयव

तरी प्रेम को नोको करो बेगरचार

अलग भयात तरी

एकसंग मा साजरो करो सण त्योहार

सुखदुःख मा भी रहो एकसंग

यवच से सुखी परिवार को सार



✍️ सौ. श्रुती टेंभरे बघेले


बेगरचार


मोरो अहम मा

वहम होतो

आपलोच ताल मा

मी चलत होतो


एकदिवस मनमा

भयोव बेगरचार

अहम को वहम तुटकर

शिकेव शिष्टाचार


तब मोरो दिलमा

उठी आनंद लहर

सुख अना समाधान को

आयोव बहर


आपला दूर होता

वय जवर आया

मोरा अहम का साथा

देखता दूर भया


जीवन की परिभाषा

तब समज आयी

मन की गरिबी

देखता गायब भयी


मन को बेगरचार लका

दिलको बटवारा बचेव

अज एक अज्ञान

पूर्ण ज्ञान शिकेव


दुर्गुण संग बेगरचार

शिकावसे शिष्टाचार

जीवन सफल होये

जब ज्ञान संवर्धक आचार


शेषराव वासुदेव येळेकर

दि 28/02/21

Tuesday, February 16, 2021

खुर्ची/खुरची 25



खुर्ची 

चार पाय दुय हात खुर्ची मोरी प्यारी
बाप दादा की आठवन या बहूत हे न्यारी

खुर्ची लाकूड की विद्युत रोधक 
शरीर उर्जा बचावने वाली साधक
खुर्ची पर बसता कंबर रवसे सिधी ताट
सुखदायक, आरामदायक ठेवसे पाठ

यन खुर्ची पर बसता बहूत मिलसे आराम
काम करनो मा तरतरी निंद होसे हराम

लाकूड की खुर्ची तोरा बहू उपकार
सबला आराम देनेवाली तू निराकार

 शेषराव वासुदेव येलेकर
दि१५/०२/२१


लाकूड की खुर्ची

लाकुड को बनेव येको ठाचा
रव्हत होती बडी मजबुत 
नव्हती ओतरी नरम 
लेकिन बसन साती होती साबूत

घर घर की होती शान 
रव्हत होती लानांग मोठांग
पावनाईन साती होती सोफा
परमानंट होती यकी याद की गाठ

देखेव फोटू मा यला मीन् 
याद आयेव चवधरी नाना को घर
जाऊ लानपन मा पेपर बाचन
राजा घायी पाय ठेवु बसु ओको पर

खिल्ला पाटी की बनी रव्ह खुरची
बसु ओको पर त् हल् जितन उतन
कभी कभी वहान खिल्ला निकल उपर
उठू खुरची पर लक त् पँट फाट टरकन

 विरेंद्र (भिमु) कटरे


लकडा की कुर्ची


का सांगू भाऊ पहले 
मोरो बहुत होतो थाट, 
बैठक क् कमरा मा मी 
दादाजी की देखत होती बाट. 

दादाजी रोज मोरपरच
आयकर होता बसत, 
सबपर नजर ठेवत ना 
काम होता समझावत. 

अजी ना काकाजी 
बेंचपर होता बसत, 
टुरू पोटू बसनसाती 
चटई आनकर बिछावत. 

पर आता दिवान ना सोफा
आय गई से बैठक मा, 
मोरी हकालपट्टी भय गई 
बेकार समझकर आंगन मा. 

बडो बुरो लगसे आपली 
अशी हालत देखकर, 
रोवन की इच्छा होसे 
पुराना दिन याद करकर. 

पर आता आपलो दुखडा 
सांगेवल् का फायदा, 
चढतो सुरज बी ढल जासे 
येवच जगको से कायदा. 

   
                      - चिरंजीव बिसेन
                                  गोंदिया.
 

खुरची/ खुर्ची

मोरो आईकि से देवा कंबर लचकी
फदीसा होसे सेनलक सरावनकी।
देवा दे ना मोला जादू की खुरची
जादू लक लगाय देऊ मी फरची।।

बाबूजी मोरा खेतमा दिनभर राबसेत
घामचरचरा थक्या खेतलक आवसेत।
जादूको खुरचीपरा बाबूजीला बसावतो
दिनभर को थकवा खिनभरमा जातो।।

जादू को खुरचीला अगर पंख रवता
मस्त मामाजिको गाव उड़कर जाता।
मामा मामी देखता मोला डोरा फाड़कर
माय अजीला लिजातो मी मेला देखन।।

इस्कुलमा सब खुरची देखकर होता दंग
बसनसाती उबड़ा उताना होता सब मंग।
गुरुजी भी भाव देता जसो राजकुमार
नहीं देता मोला कभी छडी को मार।।

असी मोरी खुरची रवती बडी गुणवान
चार पाय ओका बडा रवता दमदार।
दुय हाथलक करती सबको सुखीसंसार
खुशी बाटतो सबला होतो सबको कल्याण।।

सौ. छाया सुरेंद्र पारधी
सिहोरा

 खुर्ची
दादाजी की खुर्ची होती बडी मस्त
चार पाय अन् दुय हात|
 याच येकी वोळखअन् ऐकी ताकत|
सब घर मा एकच खुर्ची
बसत होता सब ब हिन -  भाई आरी - पारी|
बदल ग ये व जमाना, बदल गयी खुर्ची|
सब घर मा चार - चार प्लास्टिक की खुर्ची|
भूल गया आम्ही वय आपला संस्कार,
 आरी - पारी बसन का संस्कार|
बाट्टनो भूल गया दुःख - सुख आम्ही,
खुर्ची पर बसत होता त
अशो लगत होतो दादा जी को शहारा से|
जब ढे उ हात खुर्ची पर त 
अशो लग दादाजी को हात मा हात से|
आता एक खुर्ची रय गी सत्ता को बजारमा
खीचा - खाची रय गई सत्ता को बजारमा|
पर मोरो दादाजी की खुर्ची होती अनोखी समर्पण,त्याग ,दुसरो की खुशी शिकवत होती|

 चंद्रकुमार शरणागत बीरशी
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हिरो होंडा

खुरची/ कुरची

मोरो मास्तर नाना की या खुरची
शान होती पाटन कवेलु को घर की
नव्हती मोरो घरमा या खुरची
लेकिन शान होती मोरो नाना घरकी

हात तुटेव त् रिपेयर होय जात होती
पाय तुटेव पर इट पर भी उभी रव्हत होती
घर घर मा राज करत होती
बसन जाऊ त् शाहीपन दर्शावत होती

बालपन मा सिढी सारखो चंघत होतो
होती वा बडी बजनदार भारी 
बसेव ओको पर त् लग घोडा स्वारी
बहूत काम की होती  खुरची आमरी

आता सोफ़ा सेट को जमानो आयेव
लकड़ा को जाग स्टील को भयेव
देखारो मोठो टिकाऊपणा गयेव
असली माल गयेव कमसल आयेवं

देखु वोला मी आता, नही दिस कही
आता सोफा, प्लास्टिक की दुनिया रही
गाव भी आता भया मुक्त खुरची पायी
याद वा तब की आता फोटोमाच् रही

- सोनू भगत

            खुर्ची 
           
चार  पायकी खुर्ची दिससे छान
आएव बीह्याई त ओकोच मान

जसा सुखी संसारका चार काम 
धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष, परमधाम 

खुर्ची परा बसो त एकदम ताठ
मंग  नही  दुखनकी तुमरी पाठ 

खुर्ची पर बसो,आरामच आराम
दुय सेत हात उनको मोठो काम 

हात  ठेवो  सिद्धा नही लग नस
खुर्ची कसे घळीभर मोर संग बस

खुर्ची पर बसो ना मान टिकाओ
शांति लका बसो ,आराम पाओ

वजन देख बसो नही लळखळे
जास्त वजन होए पटन्यारी मुळे 

एक पाय मुळेव त भयीं लंगळी
बसनेवालोकी खिचनबसी तंगळी

एकमेककी तंगळी नोको खिचो
मिलकर चलो जादा नोको सोचो 

सलोखालक रहोनोको खीचो टांग
समयला ओळखो ओकीचसे मांग
               
डी पी राहांगडाले 
   गोंदिया
[2/16, 6:31 AM] सौ छाया पारधी: चित्रकाव्य
दिनांक- 15.2.2021

 नेता की खुर्ची
 
सब क्षेत्र मा अज,
से वा बहुत खास।
ओला मिळावन साठी,
सबला लगी से आस ॥
 
ओकोसाठी अज लोक,
झगड सेती खुप ।
कोनला रहे माहीत,
कसो रहे ओको रुप ॥
 
ओकोसाठी मानुष अज,
देसे खुप आश्वासन।
वा मिळताच मानुष कसो,
जासे सब बिसरशान  ॥
 
वा जेको जवळ जासे,
ओकीच रवसे मजा।
ओको जीवपर मानुष,
अज होय जासे राजा ॥
 
वा रवत वरी सबला,
लग जासे मिर्ची ।
वा म्हणजे कोन त,
आय नेता की खुर्ची ।।
 
*- इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया (बडेगांव)*

कुरसी
दि. १५.०२.२०२१ (सोम्मार)
            
         सिंहासन बत्तीसी

खूरची कहो या कुरसी
आय घरबार की शान
देवता पासना मानुस वरी
येकी किरती महान ||१||

मोठांग नहानांग ओसरी परा
लग्या लकडा का आसन
शोभं राज दरबार जसो
चलं घर को प्रशासन ||२||

आरामखुर्ची अथवा सादी
हर घर को रुबाब
मंग वा बदली सोफामा
खुरची बन गयी ख्वाब ||३||

बदलेव जमानोमा आया
चेयर मा बदलाव
प्लास्टिक फायबर लोहा टीन
नाना आकार अना भाव ||४||

थक हार कर घर आवो
बसो करो आराम
व्हीलचेअर पारना खुरची
चैन देन को काम ||५||

खुरची पर बसनो रव्हं
आसन प्राणायाम
धरती को इस्पर्श बिना
मिलं पूरो आराम ||६||

गुरू श्रोता राजा वरिष्ठ
पुढारी आफिसर
इनकी कुरसी माननीय
देवताइन की सर ||७||

एक दुय अना तीन चार
कुरसी गिनती बताय
एक टेका दुय हात अना 
तीन पाटी चार पाय ||८||

चार पाय की खुरची
बैठक पेंदा पर
मृत्यू बाद सकोली समान
चार को खांदापर ||९||

निर्जीव खुरची रुबाबदार
दिसं से सजीव सरीख
घमंडी लालची ना बनो
देसे सबला सिख ||१०||

खुरची बनाये अभिमानी
लालची हवामा उडाय
या दूरदर्शी कर्मशील
वंदनीय भोजराय ||११||

आखरी मा सूनलो मोरी
बात एक एत्तीसी
कुरसी वंदनीय भोज की
सिंहासन बत्तीसी ||१२||

डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई 
मो. ९८६९९९३९०७

 खुर्ची

दुय हात चार पाय बिचमा बैठक साजरी
मोठागं  दिससे खुर्ची शोभस्यारी

दादाजी रवत या पाहुणा पई
खुर्चीपर बसंसेत आयकर सप्पाई
येनं खुर्चीला सें मान चं भारी
लहान मोठोमा येकी लालच भरी

एक दिन शाळांमा गदरिंग लेईन
गोल बिचमा सारी खुर्ची ठेईन
संगीत बंद होयेपर बसजं बारीबारी
दिल खुश भयेव बक्षीस जितस्यारी

वर्गमा सें लाकूड की टेबलखुर्ची
वोकोपर बसं सेत आमरा गुरुजी
खुर्चीपर बसके देसेंत जानकारी
खुर्ची टेबल को नातो मोठो भारी

एक दिन सोचन बसेव मी घडीभर
कसो बस सकून जमीनपासून उचोपर
खुर्ची कवन बसी सें मोरी तयारी।  
बसेव वोको गोदमा ईच्छा भयी पुरी

मोठो होयकर मी आदर्श गुरुजी बनून
खुर्चीपर बसके देशको भविष्य घडावून
नवनिर्मिती का गुण रहेत मोरोमा जरी
ठेऊन पुरानी चीज मी संभालस्यारी

                                          शारदा चौधरी
                                              भंडारा

Sunday, February 14, 2021

झोरा

पिरम को झोरा

बाई मोरो माहेर माहेर 
सुख समृद्धी को झोरा
भाई भोवजाई रामुसिता
माता पिता अनमोल मोरा

झोरामा लहानपणकी याद
भाईसंग रमकेव चौसरको खेल
नहीं झगडा भयेव् आमरों बाई
भाई संग से जीवनभर को मेल

माहेरको झोरामासे भक्ती भाव
पिता मोरा संत किरतनमा दंग
माय माउली मोरी सादीभोळी
पदरमा ओको सुख का सब रंग

माहेरको झोराला भाऊक किनार
भजा भजी लक भरेव से पंढरपूर
दुय दिवस महेरका भेट विठ्ठलकी
प्रेम भाव लक भर जासे मोरो उर

सागरला भेटन नदी रूप लेयकर
टुटेव मोहपाश सोड आयी माहेर 
तरी मन मोरो पाखरू बनकर
भाप बनकर उड जासे मायघर

✍️✍️सौ छाया सुरेंद्र पारधी

झोऱ्या

मन उडत उडत 
जासे किडनगीपार गाव
अजी को हातमा
बजार को झोरया देखकन
मोरो तोंडमा पानी आव

मोरो इस्कुल को झोरया मा
रव्ह पाटी ना कलम
गुरुजीन लिखनला सांगिस
त मोरी सरसर कलम चल

कोणी पाहुना आया
त मी टुकुर टुकुर 
देखु उनको झोरया कण
अन खाजो भेट्यव खानला
त मंग बडी मजा आव

✍️ सौ. श्रुती टेंभरे बघेले

झोरा

झोरा मोरो खाली
मी मांगसू दान
आपलो परी देओ
राखो ऐको मान

पहले घर आयोव
वू प्रहरी को घर
पोवारी सरिता लक
भाऊ यन झोराला भर

दुसरो घर गयोव
भेटी वर्षाबाई,छाया माई
ज्योत पोवारी की या
पेटाव बडी बाई

तिसरो मोहलामा
सोनु भाऊ, दिपक भाऊ
समाज संघटन ला
कही नोको जान देऊ

उभा देवेंद्र भाऊ
तुम्ही गजल सम्राट
कर्मरथी तुमी
बढाव यन झोरा को थाट

सुफडा भरकन आयी
वंदनाबाई अना बिंदु बाई
पोवारी की स्वर्ण माटी
कहे धर मोरो भाई

ऋषी भाऊ, नरेश भाऊ,विशाल भाऊ
देईन पोवार की मशाल
राजा भोज का वंशज
जा उची ठेव पोवारी ढाल

गुलाब भाऊ डि.पी.राहांगडाले सर
पोवार भगिर्थी
ले पोवारी गंगा
सुजलाम सुफलाम कर धरती

महेंद्रभाऊ ओ सी पटले सर
देईन पोवारी धर्म पताका
जगाव जन जन
नोको डुबन देव पोवारी नौका

हिरदीलाल भाऊ, सी. चौधरी सर
पोवारी का वारकरी
झोरा मा देयकन दान
बण्या मोरा साथकरी

गोवर्धन भाऊ, डी. राहांगडाले भाऊ
देईन पोवारी गीता
होये धर्म को जीत
साक्षी गडकाली माता

रंदिप,पालिक सर,शेखराम सर
आयोव सिंदीपार गाव
देईन पोवारी परिस
बने पोवार की छाव

धन्य मोरो झोरा
फिरेव गाव गाव
सब पोवार भाई बहन न्
बनाईन यला देव

शेषराव वासुदेव येळेकर
दि १४/०२/२१

 झोरा

बहूत लहान होतो मी पयली मा
धरस्यानी जाऊ पुस्तकी झोरा मा
लोकर लका सीव् मोठी बहिन वोला
विद्या को साठा रव्ह झोरा मा

माय मोरी शिदोरी लिजाय वोकोमा
फाटेव, थेगुर लगेव रव्ह वोला
भाजी पालो साती देखेव वोला बजार मा
थैला को आसपास रहेव किशोरपणमा

युवा भयेव देखेव मी डोरामा
जवानी मोरी दिसी झोरामा
संकुचित भयेव आता घर मा
गृहस्थी बसायेव, व्याप्त भयेव झोरामा

अधेड भयेव देखेव आता रातमा
दिसेव आकाश प्रदिर्घ तारामा
जिवन मोरो आकाश नही 
समायेव मी व्याप्त आकार को झोरामा

झोरा देखव बचपन मा 
वोला समझेव जवानी मा
लाडू चिवडा साती झोरा बचेव बुढापामा
जाऊ मी बेटी घर, सुख का आसु रोये बेटी मोरी देख झोरामा...

~ विरेंद्र (भिमु) कटरे

झोरा 

पोता को रस्सी को झोरा मोला याद से
वोको मा वस्तु आनन लिजान को काम पडसे

कपडा को झोरा बजार मा जान साती रव्हसे
वोका मा आलु, बगन, भेदरा माय मोरी आनसे

भर स्यानी सिदोरी माय झोराला लिजासे
बहूत काम की चिज या, बहूत काम मा आवसे

आजा मोरो जब खाजो आन् वोकोमा 
मी बडो आस लेका देखु झोरामा

जिवन मा बहू महत्व झोराको
वोको बिन सामुग्री कसी साठाओ?

रंग रंग का झोरा देखेव 
लेकिन बस्तावालो झोरा मोला अज याद आयेव

                            - सोनू भगत


                  झो-या (झोरा,थैला)
                  ***************
झो-या रे झो-या  काय  तोरो तोरा
लहान ना मोठा रूप सेती  केतरा

कपळा का झोरा अलग अलग रंग
लटकावु, झोका देसेत हवाक संग

तोर बिना  दिवस नही जाय कोरो
बजार  जाऊन  त तूच संगी मोरो

तोर बिना बजारको ओझो आव नही
कान वाणी दीससेती कस्सा तोरा दुही

किराणो रव्ह या रव्ह भाजीपाला 
ठुसशान भरसेती,तकलिफ तोला

दुकान पर जाऊन तरी तोरोच काम 
मणुन का चढ्‌ गयेव तोरोच रे दाम

तोर बिना माहेरको खाजो नही आव 
जीन्दगी मा तोरो से रे भलतोच भाव 

झिल्‌ली का झो-या सप्पा बंद भया 
मणुनच सब कर सेती तोरीच माया.

पर्यावरण ला नाहाय धोको तोरलका 
जनताकी सेवा कर फळ भेटे बाका.
                 ******
डी पी राहांगडाले
     गोंदिया

पोता को रस्सी को झोरा मोला याद से
वोको मा वस्तु आनन लिजान को काम पडसे

कपडा को झोरा बजार मा जान साती रव्हसे
वोका मा आलु, बगन, भेदरा माय मोरी आनसे

भर स्यानी सिदोरी माय झोराला लिजासे
बहूत काम की चिज या, बहूत काम मा आवसे

आजा मोरो जब खाजो आन् वोकोमा 
मी बडो आस लेका देखु झोरामा

जिवन मा बहू महत्व झोराको
वोको बिन सामुग्री कसी साठाओ?

रंग रंग का झोरा देखेव 
लेकिन बस्तावालो झोरा मोला अज याद आयेव

                            - सोनू भगत

झोरा

लहानपन मा अजी, 
धरशान हातमा झोरा।
दुकान लका आन, 
नविन कपडा मोरा ॥

नविन कपडा देखशान, 
खुशी होय मनमा।
टाकशान देखु कपडा, 
पयले आपलो तनमा ॥

मामाजी आन झोरामा, 
चिवळा अना लाळू।
मायला चिपकेव रव, 
खानला आमरो बाळू  ॥

शाळा जाजन धरशान, 
पाटी पुस्तकको झोरा।
सब टुराईन को सामने, 
अभ्यास मा मोरो तोरा ॥

भाजी पालो आन माय, 
झोरामा जायशान हाट ।
बजारको खाजो साठी, 
देखजन आमी बाट ॥

झोरा धरशान पिवळो, 
पोस्टमेन जब आव। 
बाट देखजन चिठ्ठीकी, 
आवाज दे सबका नाव ॥

उपयोगी असो झोरा, 
आवसे सबको कामला ।
फाट जाये तरी आवसे, 
झाडू पोछा को कामला  ॥

इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया (बडेगांव)


          विषय - झोरा
          ***********

टुरा क् लहानपण बाळतपण 
को सामान आवसे झोरा मा, 
खाजो खजकुलो बी आवसे 
बजार लक हर बार झोरा मा. 

स्कूल जानोपर दप्तर बी झोराच, 
कपडा लत्ता भरन को बॅग बी झोराच. 

दुकानल् किराना आनन साती झोराच, 
बजारल् सब्जी आनन साती बी झोराच. 

चक्कीपर आटा पिसन लिजान साती झोराच, 
खेतल् आंबा, टोरूंबा आननसाती झोराच. 

बॅग, सूटकेस बी एक प्रकार का झोराच, 
बोरा, बोरी, गोना बी मोठावाला झोराच. 

टुरी साती खाजो पठायेव जासे झोरा मा,
बहूसाती मायघरल् खाजो बी आवसे झोरामा. 

जेको मा कोणतोबी सामान आवसे वु झोराच, 
प्लास्टिक की पोतळी बी एक झोराच. 

बिह्या को सामान आननसाती झोराच, 
खाजो मा का झोलना, खलता बी झोराच. 

आखिर मा मय्यत को सामान बी आवसे झोरामा, 
मरघट मा खानका पोहा बी जासेती झोरामा. 


                      - चिरंजीव बिसेन
                                  गोंदिया.

पोवारी इतिहास साहित्य अन उत्कर्ष द्वारा आयोजित

  विषय: झोरा

बड़ो काम की चीज़ से बाई,
लाख काम मा आवसे,
कपड़ा लता भर बाई,
झोरा यो मोला कवसे।।

बचपन को संगी ,
होतो मोरो झोरा,
पाटी-पुस्तक धरस्यान,
जात होती शाळा।।

माय लिजाय ,
बाप की शिदोरी,
चटनी भाकर की,
रव वा जोड़ी।।

रहो पोता को,
या रव दोरी को,
उपयोग मा से,
बड़ो यों झोरा।।

    कु .कल्याणी पटले
   दिघोरी,नागपुर

झोरा 
वू कपडा ज्यूट को झोरा 
भूल गयात का गा?
आमरो जिगरी दोस्त
बांधीस जिनगी को धागा ||१||

बजार हाट जान साती
चौकोण्या बुड वालो
बटन चैन वालो 
नायलॉन को कसा वालो ||२||

झोरा का कई रूप सेती 
नहान अना मोठा
खलता झोलना पिवसी पोता
भिक्षू पांगुर को ओटा ||३||

फाटेव फुलपँटको झोऱ्यामा
लिजाया पिसावन
खेतमा लीजाया मोहू
टोरी तोर संगरावन ||४||

माहेरको खाजो को झोऱ्या
बाट देखं टुरी
खायके पिरेम का दाना
काया तिरपत पूरी ||५||

गरोमा हिलगेव लंबो
कसावालो झोरा
ऑफिस वरी टवसं वोला
कंबर को करदोरा ||६||

पाटी कलम पुस्तक भरेव
कपडा सुत को झोरा
इस्कूल म गायाता मटकात
इटकात छोरी छोरा ||७||

पोस्टमन झोरामा भरके
आनत होतो लेटर
झोरा बिणा सबको 
अड जात होतो खेटर ||८||

आता आया नवा नवा
रंगंरंग का थैला
काही फायबर का अना
प्लास्टिक का विषैला ||९||

हानिकारक प्लास्टिक कन
करके काना डोरा
अपनाओ पर्यावरण पूरक
कपडा ज्यूट का झोरा ||१०||
________________________________
डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७

                झोरा

झोलना खलता की राज पुरानी भई
बदलेव जमानो झोरा की चलन आई

झोरा बन्या रंग नं रंग को कपडा का
टिकाऊ बडा खादी को धागा का
कभी हातकी तं कभी सिपीकी सिलाई

सूत को झोरा मोठो दिसनला सुंदर
कपडाको अस्तर लगावत वोको अंदर
कलाकुसर नक्षी की सें वोकी बुनाई

वायर को झोरा की चलन आयी बादमा
बजार-किराणा आणन लिजाती साथमा
झोरामा भरजन पाटी-पुस्तकं दौत शाई

झोराभर आवंसें माहेरको खाजो-खजुला
माय को ममता को अंश रवंसें वोला
खाजो आण सें बेटी घरं बाप-भाई

कपडा कागज को आता झोरा वापरो
पर्यावरण बचावनो सें फर्ज आमरो
झिल्ली लक कॅन्सर की बिमारी आई

                                    शारदा चौधरी 
                                         भंडारा

(झोरा/झोला/थैला)

पोतड़ी को सायनो अजी को झोरा,
वोको मा रहवत होतीन सपन मोरा.

मी होतो घरको एखलो नाती बाड़ू,
अजी आनत होतो कुटकी का लाड़ू.
मोरा सब सपन तब टूट जात होतीन,
आवत जब घर मोरी फूफू का टुरी-टुरा.

अजी जब भी हाट ल आवत होतीन,
झोरा ततरत होतीन सब नाती-नातिन,
मन ललच जात होतो झोरा ला देख,
सबला दिखत होतो अजी को कोरा.

अजी की आलमारी मा, कपड़ा को झोरा,
वोको मा कहानी-किस्सा हिनको पुड़ा.
सबकी जन्मतिथि, अंकसूची का कागज,
जमीन-जायजाद हिनका दस्तावेज़ पूरा.

पोतड़ी को सायनो अजी को झोरा,
वोको मा रहवत होतीन सपन मोरा.

तुमेश पटले "सारथी"
केशलेवाड़ा (बालाघाट)
दिनांक-14/02/2021

झोरा /झोला /थैला

मी सेऊ इक रंग बिरंगों कपड़ा को झोला,
अज को युग न जहर मोरी जिंदगी मा घोला l

सब मोला भूल गई सेत पालस्टिक की चमक मा,
यो साजरो नहाय मानुष तुम सबको  हक मा l
घुट घुट कर रहयो मी अब लक काही नहीं बोला l

मी सेऊ इक रंग बिरंगों कपड़ा को झोला,
अज को युग न जहर मोरी जिंदगी मा घोला l

समय बदलसे अन घुरा का भी दिन फिरसे,
अज प्रकृति तुम सबला सबक सिखाइरहिसे l 
केतरी  बिमारियों मा डूबी से तोरो या चोला 

मी सेऊ इक रंग बिरंगों कपड़ा को झोला,
अज को युग न जहर मोरी जिंदगी मा घोला l

आता  तुम सबला मोरी याद आय रही से,
मी खुश भी सेऊ बुराई की ईमारत ढही से l
घर मा बनाय लो तुम सब संगी साथी मोला l

मी सेऊ इक रंग बिरंगों कपड़ा को झोला,
अज को युग न जहर मोरी जिंदगी मा घोला l

इक बात कसू मी इक वादा तुम सब कर ल्यो,
तुम्ही सब पिलास्टिक ला बाय बाय कर ल्यो l 
प्रदुषण लक भी बचाऊ कह देसू मानुष तोला l

मी सेऊ इक रंग बिरंगों कपड़ा को झोला,
अज को युग न जहर मोरी जिंदगी मा घोला l
                अलका चौधरी
                  बालाघाट

    मेहनत को झोरा

भय गयी से बजार की बेरा,
देवो मोला आता मोठो झोरा ll

आनू आलु भट्टा अना भेदरा,
ज्यादा वजन होये टँगवू झोरा ll

पीठको आवसे पिसावन झोरा मा,
गावतर का कपड़ा  झोरा मा ll

फुफाबाई को खाजो झोरा मा,
किरानो सामान आवसे झोरा मा ll

पर्यावरण पुरक से आमरो झोरा,
बिसरो नोको बाजार को झोरा ll

सबको को डब्ब्बा लिजासे झोरा,
काम आवसे मेहनत को झोरा ll
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डॉ.हरगोविंद चिखलु टेंभरे
मु.पो.दासगाँव ता.जि.गोंदिया
मो.९६७३१७८४२४

विषय:- झोरा
शिर्षक:- आता एक झोऱ्या देय दे माय.....
******************************
आये बुढापा, थक जायेत हात पाय 
आता एक झोऱ्या, देय दे माय....||धृ||

आणू कसू बजारलक, लेयके बाली पोलका
जुता आननो सेत, चमडाको सोलका 
बजारलक आयेवपर, देजो दूधपरकी साय 
आता एक झोऱ्या, देय दे माय....||१||

झोऱ्या मोठा रंगीबेरंगी, या  पांढराफटक
कपडाका भया जुना, लगी प्लास्टीक चटक
फाट्या झोऱ्या खायके, मर जासेत गाय
आता एक झोऱ्या, देय दे माय....||२||

कपडालत्ता, पाटीपुस्तक, सब संभाल लेसे झोऱ्या
खाजोकी आस रव्हसे, भले रव्ह पायली सोऱ्या
प्रेमभाव को नातालक, पिलाय देवो चाय
आता एक झोऱ्या, देय दे माय....||३||

एक झोऱ्या असो देजो, जेकोमा संभालू नाता 
माणूस समजके सबको, चलावत जावू खाता 
समाधानी नेटवर्कको सबला देवू वायफाय
आता एक झोऱ्या देय दे माय....||४||
******************************
✍महेंद्रकुमार ईश्वरलाल पटले(ऋतुराज)
ता. १४/०२/२०२१


विषय-झो-या(दोरा ,थैला)
    काव्य प्रकार-अभंग

  विकास को झो-या

थैलायो कामको,बरसात मा मो-या
बजारमा झो-या, उपयोगी।।

लहान ना मोठा, अनेक आकार
निराड़ा प्रकार,दिससेती।।

बिह्यामा भी काम,तांदुळ भरनो
दस्तुर  करनो,खलताको।।

शाहानी मायकी,लहान पिवशी
शान बटवाकी, देखोजरा।।

बदल्या दिवस,झो-याभी बदल्या
बॅगरुप भया,सुटकेश।।

कपडा़ की जागा, लेदर दिससे
विकास भयीसे, कलाकारी।।

असो उपयोगी,झो-या यो सबला
सामान ठेवनला,बजारमा।।

""जय राजा भोज,जय माँ गड़काली""
वाय सी चौधरी
गोंदिया

Saturday, February 13, 2021

बसंत ऋतू


प्रस्तावना
भारत मा बसंत ऋतु मार्च, एप्रिल अना मे महिना को बिच थंडी अना गरमी को बिच मा आवसे. यन ऋतू ला सब ऋतु को राजा को रुप मा मानेव जासे अना युवाइनको की प्रकृती को रुप मा प्रसिद्ध से. 

हिवरो भरो बसंत ऋतू
बसंत ऋतू को मोसम मा तापमान सामान्य रव्हसे, न थंडी सारखो बहुत थंडो ना गरमी सारखो बहूत गरम नही लग. लेकिन बाद मा धिरु धिरु गरम लगनो चालू होय जासे. यन ऋतू मा राती मोसम अखिन भी अधिक सुहावनो अना आरामदायक होय जासे. बसंत ऋतू बहूत प्रभावशाली होय जासे:  जब यव आवसे त प्रकृती मा सबकुछ जाग्रत कर देसे. जसो झाड, गवत" फुल, फसल, पशु, मनुष्य ला मोसम की लंबी झोप मा लक जगावसे. मानुस नविन अना हलका कपडा वापरसेती, झाडईन परा नविन पत्ती अना शाखा आवसेती. फुल तरोताजा अना रंगिन होय जासेती. मैदान पुरो गवत लका भर जासे अना प्रकृती हिवरी भरी दिससे. 

बसंत ऋतू का लाभ
बसंत ऋतू चांगली भावना अच्छो स्वास्थ अना झाडईनला नविन जिवन देसे. यव यव सबसे अधिक सुंदर अना आकर्षक मौसम से. मधुमक्खि अना फिपोली कोवरी फुल को कलीईन को जवर पास मंडराव सेती. अना स्वादिष जुस (फुल की सुगंध) ला चुसन को आनंद लेसेती, अना शहद बनावसेती. यन मोसम मा लोक फलईनको राजा आंबा ला खान को आनंद लेसेती. कोयल दाट फांदी को झाड पर बसस्यानी गाना गावसे अना सबका दिल जित लेसे. दक्षिन को दिशा मा बहूत प्यारी अना ठंडी हवा चलसे अना आमरो दिल ला छुय जासे. यव लगभग सप्पायी धर्म को त्योहार को मोसम से. जेको दौरान लोक आपलो परिवार को सदस्य, सेजारी, रिस्तेदार संग मिलस्यानी चांगली तैयारी कर सेती. यव कास्तकार को भी मोसम से,  जब वय आपली फसल घर आनसेती अना काही राहत महसुस कर सेती. कविईन ला नविन नविन रचना करन साती नविन कल्पना भेटसेती; अना चांगली प्यारी कविताईनकी रचना करसेती. यन् मोसम मा मस्तिस्क बहूत अधिक कलात्मक ना चांगलो विचार लका भरेव रव्हसे. 

बसंत ऋतू को मोसम का नुकसान
बसंत ऋतू मा काही हानी भी सेती. जसा कि, मोसम ठंडि को मोसम मा को अंत मा सुरु होसे. अना गर्मी को सुरु होन को पयले आवसे. जेको कारन बहूत अधिक संवेदनशिल मोसम होसे. बहूत सी महामारी (छुत का रोग) वाला रोग जसा सामान्य सरदी, चेचक, चिकनपॉक्स, खसरा आदी रोग होसेती. येको साती आपरो स्वास्थ साती अतिरिक्त तैयारी करनो पडसेती. 

निष्कर्ष
बसंत ऋतू को मोसम सब ऋतृ को राजा रवसे. बसंत ऋतू को दवरान प्रकृती आपरो सबसे सुंदर रुप मा प्रकट होसे अना आमरो हृदय ला आनंद लका भर देसे. बसंत ऋतू को पुरो आनंद लेन साती आपरो स्वास्थ की देखभाल पयले पासुन करे पायजे. जेको साती आमला भिन्न छुत वाली बिमारी लका प्रतिरक्षा की व्हॅक्सिन लगाये पायजे.

~ लेखक >> भिमेंद्र कटरे

बसंत ऋतू chhaya pardhi 01


       ऋतुओं को राजा ‘वसंत आय।’ वसंत ऋतु थंडी को बाद मा आवसे। भारत मा फरवरी अना मार्च मा येन ऋतु को आगमन होसे। वसंत बहुत सुहावनो ऋतु से। येन ऋतु मा सम जलवायु रवसे। सर्दी अन् गरमी को मोसम को सुंदर मिलाप मंजे वसंत ऋतु आय। येन ऋतु मा प्रकृती मा अनेक बदलाव होसेतं मुन येन ऋतु ला ऋतु को राजा कसेत।

वसंत ऋतु आई बसंत ऋतु आई।
छमछम करती बसंत ऋतु आई।।                           अमराई मा  सुगंध मोहोर की छायी।
कुहू कुहू करत कारी कोयल आयी।।
बदलेव रंग प्रकृति को गुलाबी ठंडी न्यारी।
मनभावन रंगों लक सजी से  फुलवारी।।

  वसंत ऋतु बड़ी मनमोहक ऋतु से। गुलाब सेवंती, गोंदा सरसो सरीखा फूल फूल सेती। हवा मा सुगंध अन मादकता रवसे। पानझडी को येवच मोसम आय जुना पान झडकर नवी पालवी फुटसे आंबला बार अावसे। कारी कोकिला " कुहू कुहू" की रट लगावसे। नवी पालवी मन मा नवी आशा जगावसे वनस्पती जगत च नहीं त प्राणी, पक्षी मा भी नवी ऊर्मी रवसे। 

  येनच ऋतु मा आमरा आराध्य ,चौसष्ट कला का धनी, चौऱ्यांसी ग्रंथ का रचीयाता, जिनं एक रात मा चंपू रामायण की रचना करीन असो महाराजा भोज देव की जयंती गावं गावं मा साजरी होसे। वसंत ऋतु मा फागुन मंजे होरी को सन आवसे। सात रंग लक धरती आकाश झूम उठसे।

      गीता मा भगवान कृष्ण न कइतीस -ऋतुओं मा मी वसंत ऋतु आव । येन ऋतु मा वय ब्रजधाम मा गोपियों को संग नाचत रह्या रहेत । येन ऋतु म राधा शृंगार करकर  कृष्ण को संग रास करत रही रहे।
    
अज की शहरी संस्कृति मा प्रकृती का ये बदलाव नहीं देखन मिलत। शहर मा बिल्डिंग का जंगल ,काम काज की आपाधापी ,प्रदूषित वातावरण को कारण लोक ईनला वसंत ऋतु की शोभा देखन नहीं मिल। पर कभी समय मिले त प्रकृति को येन अनुपम रूप को आनंद जरूर लेव। वसंत सौंदर्य, उन्नति अना नवयौवन को ऋतू आय ।


✍️✍️सौ छाया सुरेंद्र पारधी

बसंत ऋतू D.P. Rahangdale 01


         एक सालका बारा महीना. ना बारा महीना का सय ऋतु.बसन्त, ग्रीस्म, वर्षा, शरद, हेमंत ना शीशीर. बसंत ऋतु   मार्च - एप्रील   मा आवसे. २२ मार्च ला 
दिवस ना रात   बराबर होसेती. मनजे  ओक  बादमा
दिवस मोठो ना रात लाहान होत ज़ासे.यन महीना मा ठंडी ना गरमी को  संगम  रव्हसे  मनजे ना गरमी ना ठंडी. मणजे गुलाबी ठंडी रव्हसे. वातावरण एकदम साफसुथरो प्रफुलीत् सुहानो होसे. वातावरण मा बदल होसे यको परिणाम आपल शरीर परभी होसे. यनच
 ऋतु मा होऴी. रामनवमी ना हनुमान जयंती सारखा सण आवसेती.
            बसंत ऋतु मा झाऴी जंगल मा  नवीनवीन पालवी  फुटसे. आंबाक  झाळला  बार आवसे ना
 जितन उत्तन वातावरण मा  सुगंध निर्माण होसे. 
कोयार पक्षी भी सुंदर गीत गाआवसे ना खुशीलका झाऴईन परा ईतउत चहकसे.यनच ऋतु मा परसाक झाळला रंगी बिरंगी फूल आवसेती. ओन फुलको होलीमा ठुड्‌डी  क दिवस रंग बनायशानी रंगपंचमी 
को त्योहार मनाव सेती.
                बसंत ऋतु मा कास्तकार क खेतमा 
खरीब की फसल लह-या मारसे. पोपट को फूल,चना,सम्बार की फसल ना ओला ठंडो हवाको झोका. खेतमा चना,लाखोरी को हुरडा भुजनकी,ना गरमगरम हुरडा खानकी मज्याच न्यारी से. मनुनच
 यन बसंत ऋतुला सब ऋतु को राजा कसेती.
                                *****
डी पी राहांगडाले
       गोंदिया

बसंत ऋतू varsha patle 01


चैत्र महिना म्हणजे वसंत ऋतू को आगमन. ऋतु म्हणजे *लावण्य महोत्सव*.
स्रूष्टीको रंग.रूप,गंध,रस,इनको लावण्यको महोत्सव.
     लेखीका दुर्गा भागवत इनं त् हर महिना ला एक एक विशेषण देई सेन. जसो चैत्र ला वसंतह्रूदय, वैशाख ला चैत्र सखा.
   वसंत उत्सव म्हणजे निसर्गको उत्सव .मराठी महिनो को पयलो महिना म्हणजे चैत्र महिना.वसंत को ऋतु .वसंत ऋतु मा निसर्ग को सौंदर्य मा च्यार चांद लग जासेत. जीत देखो उत हिरवी पिवरी लाली पसर जासे. निसर्ग रंग को उत्सव मा रंग जासे. हर झाड आपली जुनी कात झाड के एक नवो रंग रूप लका सुसज्ज होय जासे. येन ऋतु माच निसर्ग सौंदर्य डोरा भरके देखन मिलसे. असो लगसे स्रूष्टीको पाठपरा निसर्ग बडो प्रार लका हात फेरसे. आपुलकी अना मायालका. अना आपलो जीवन मा बी असोच वसंत ऋतु को आगमन होसे. निसर्ग सौंदर्य, रंग,रूप,गंध येको संगमाच आपलोला कोकीळ को मधूर स्वर आयकनला भेटसे. कोकीळ को मधूर गूंजन आयकके कान त्रुप्त होय जासेत. 
    वसंत ऋतु मा बीना बरसात झाड ला पालवी फुटसे.म्हणजे येव बी निसर्ग को एक चमत्कार आय. निसर्ग असो अनेक चमत्कार लका भरीसे. फक्त आपला डोरा वोला देखेत पायजे.
      गावको जंगल मा बाहा का पीवरा फुल अना गुलमोहर का लाल फुल देखके असो लगसे जसो निसर्ग मा हल्दी कुमकुम को कार्यक्रम च से. फल,फुल,की रेलचेल वसंत ऋतु मा रव्हसे म्हणून यन ऋतु ला मधुमास कसेत.
वसंत ऋतु मा मधुमालती का फुल बडा सुंदर दिससेत. वसंत ऋतुला सब ऋतु को राजा ऋतुराज कसेत. 
   येन ऋतु को लावण्य देख काही ओळी सुचसेत.

से कोणतो उत्सव
कायको सोहळा चलसे
नाना रंग मा नाहायके
आसमंत बहरसे

कोण पीवाईस अम्रूत
म्रूत झाडको खोडला
चराचर इतउत
हिवरा हिवरा सेत पाला

शीळ घालसे कोकीळ
रान मा पलास फुलेव
बाहावा अना गुलमोहर
बडो शान ल डोलेव


✍सौ.वर्षा पटले रहांगडाले
बिरसी आमगांंव
जि. गोंदिया

बंसंत ऋतू seshrao yelekar 01


वसंत ऋतू सृजन अना आकर्षण को ऋतू आय। फ़रवरी ते ऐफ्रिल तक चलनेवालो योव ऋतू राजा ऋतू आय।यन ऋतू ला भगवान क्रिष्ण भी कहे जासे। निसर्ग मा मनमोहक सुंदरता,हरा भरा फूल फल यन ऋतू की विशेषता आय।

वसंत ऋतू की सुरवात गुलाबी थंडी पासून होसे यन ऋतू मा प्रणय क्रिडा को आकर्षण प्राणी,पक्षी अना वनस्पति मा दिससे म्हणूण यन ऋतू ला कामदेव को पुत्र कहे जासे।

वसंत ऋतू को पहले पंचमी बहूत विशेषता पूर्ण से। वसंत पंचमी ला मा शारदा को जन्म दिवस मनाया जासे,वाग्देवी यन दिवस प्रगट होयकन पूरो सृष्टि मा सृजन शक्ति को संचार करसे।
वसंत पंचमी ला महाराजा भोज को जन्म दिवस को रुप मा मनायोव जासे।तसोच महाराष्ट्र पंढरपुर मा यन दिवस विठ्ठल रुक्मिणी को बाह्या लगायोव जासे।

वसंत ऋतू मा चैत्र नवरात्र की भी सुरवात होसे,होली शिवरात्रि सारखा महत्त्वपूर्ण त्योहार यन ऋतू राज मा मनाया जासे।
यन प्रकार वसंत ऋतू सुंगार,सृजन अना आकर्षण बरोबर भक्ति भाव लका मनायोव जासे।


शेषराव वासुदेव येलेकर

दि। १२/०२/२१

Tuesday, February 9, 2021

खराड़ी 24


खार(खाड्‌डी)
 तारीख:- 8/2/2021 
                       
खाड्‌डी कहु का कहु खारु ताई 
काहां ज़ासेसत  तु  घाई  घाई 

झाऴपरा बसेरा खालत्या वरत्या 
थकस नही का तु आवताजाता 

सरसर झाऴपर परात ज़ासेस 
पटन्यारी तु खालत्या आवसेस

दुय पायपर तु  उभी रव्हसेस 
ईतन उत्तन टुकटूक देखसेस

लहान लहान सेती तोरा ङोरा
लहानसा कान देखावसेस तोरा

आंबा टोरूंबा चावलक खासेस
कोणी आवसेका कानोसा लेसेस

लहानसो जिवसे पर  चतुर दिससे
तोरोमा भी भगवानको वास से
               
डी पी राहांगडाले
        गोंदिया


खाड्डी

नटखट बडी अलबेली 
छुईमुई की मुरत खराड़ी
पल मा छिप छिप जासे
फिरसे कुपाटी बाड़ी बाड़ी

चंचलता वा सतर्क नजर
कान टवकार कर देखसे
झुब्बेदार रेशमी लंबी पुसटी
नानाजी की मिशी लगसे

ठहर ठहर वा मज्या लक्
नाचत ठुमकत मस्त चलसे
फ़िरफिर देखसे इतनउतन
जसी नवरी सुसरो घरं जासे

खारू बाई तू आव ना इतन
खेल खेलबिन टाळी चटकाय
झाड़पर चंगके जाम तोड़जो
खाबिन तोंड मटकाय मटकाय

होये तोरो बीह्या तब मी आऊन
नवरानवरी साती अंगुर संतरा आणु
रहो सुखी समाधानी मोरो बगीचामा
तोरी मोरी दोस्ती जन्मभर की जानू

- सोनू भगत


खाडी

दाना,चना कुटुकुटुर
पटपट दात ल खासे
अजी को खोकला आयके
पटन्यारी झाडपर चग जासे

सुंदर सुंदर डोरालका
मुटुरमुटुर खाडी देखसे
घरपर वाराई माय की कुरोडी
चवलका मस्त खासे

जोडी लका फीरसे
झुपका वाली पुस्टी उठावदार
लहान टुरुपोटु करसेत
खाडी बाईको बडो लाड प्यार

फुदुक फुदुक छलांग मारसे
घडीभर यहा त घडीभर वहा
मोठो झाड को ढोली मा
खाडी बाई को बसेरा जहां वहां

फुर्ताई से काम मा बडी
समय की बडी पाबंद
कभी झाडपर कभी खालती
करो घडीभर डोरा बंद

सौ. वर्षा पटले रहांगडाले
बिरसी आमगांव
जि. गोंदिया

खाड्डी

सुंदर सलोनी प्यारी खाड्डी
आंगणमा मोरो खेल रही से
टुकुर् टूकुर् देखसे मोरोकन
जसो जनमो को मेल रही से

मखमली रेशमी पुसटी ओकि
जब् जब् मोरपंखसी फुलावसे
सुंदर रूप मनोहर लहानसो
घुंघट नवरी बाई जसो लगसे

झाड का कच्चा पक्का फल
जाम अनार तोडकर आणसे
भिर भिर नजर ओकी बावरी
इठलाय इठलाय फल खासे


चिरप चीरप की मधुर आवाज 
घर बगिया मा गुंजन करसे
बड़ी लाजरी अना भिवकुडी
झट झुडूप मा लुकाय जासे

झाड़ को कोठरमा घर लहानसो
चिंदि, पट्टा, धागा लक सजावसे
तीन सुंदर उभा पट्टा तनपर येको
पुसटी सुंदरता की खान बनावसे

रामसेतु बनावन हातभार लगावसे
अापलो नहानसो बाटा उचलसे
रामप्रेम प्रतीक की तनपर निशानी 
रामनाम संग जेकों, जगमा अमर होसेत
  
सौ छाया सुरेंद्र पारधी



खाड्डी

सर सर झाडपर, सर सर खाल्या।
देखशान खाड्डी, हास खुब बाल्या ॥1॥

सोनेरी सेत केस, टपोरा ओका डोळा।
चिटुकलो पिटुकलो, मन साधो भोळा ॥2॥

मऊ मऊ आंग, जसो मखमली पान।
झुबकेदार पुस्टीलक, झाळसे पुरो रान ॥3॥

मुंगफल्ली का फोल, सोलं कडकडम।
चटकन खाय दाना, करं गुटगुटम ॥4॥

टुक टुक न्याहारशान, देखतच वा रव्हसे।
टवकारसे टिल्ला कान, आवाजलक परासे ॥5॥

रामसेतु बांधणो मा, होतो येको हिस्सा। 
म्हणुन रामायण मा, आयीसे येको किस्सा॥6॥

उचो उचो झाडपर, रव्हसे इनकी बस्ती ।
सेंग देसे बाल्या मणुन, से ओकी दोस्ती ॥7॥

*- इंजि. गोवर्धन बिसेन, बडेगांव (गोंदिया)*

      
   खाड़ी (खारु बाई)


एक होती चिमनी बाई,
एक होती खारु बाई,
अज सकारी उठ्यो पर,
इनकी मोला याद आयी।।

तुरु-तुरु धाव से,
चिऊ-चिऊ गावसे,
इनला देखके सबला,
मज़ा मोठी आवसे।।

कारो-पांढरो रंग से,
झुपकेदार से पुस्टि,
चिमनी बाई संग मिलके,
दुई करसेत मोठी मस्ती।।

खारु बाई झाड़ परा,
फुदुक-फुदुक नाचसे,
चिमनी बाई संग मिलके,
पकड़म- पकड़ाई खेल से।।

संगी सेती एक दूसरी की,
मिलकर मज़ा करसेत,
आवसेत घर आंगन मा
चुल-बुल ये मचावसेत।।


          कु. कल्याणी पटले
            दिघोरी,नागपुर


    :खाड़ी

खाड़ी बाई खाड़ी बाई ,
कहा जासेस घाई घाईं,
जाम को बगीचामा , 
का आंबा की अमराई।।

येन झाड को वोन झाड़,
कूद सेस तु मोठी ,
तुरू तुरु धावसेस, 
कद लका सेस छोटी।।

मोटो मोटो झाड परा, 
तोरी रवसे बस्ती, 
खानला भेट्यो त,
खाड़ी बाईकरसे मस्ती।।
       
 हुशार मोठी सेस बाई, 
नजर तोरी दुर दूर      
दिस्या कोनी पराय जसेस,
आवाज आयकके सुर सुर।।

कोमल नाजुक तोरो शरीर ,
झुपके दार पुस्टि से,
दुय हात,दुय पाय,
आंबा की अमराई बस्ती से।।

कारो-पांढरो पट्टा लका, 
दिससेस मोठी साजरी,
आवजोस मोरो घर बाई ,
देऊ मी खानला तोला बाजरी।।
    
      सौ.लता पटले
       दिघोरी, नागपुर

      खाडी
        

येन झाडपरल् वोन् झाडपर 
फिरत रव्हसे दिवस भर, 
खाल्याल् वो-ह्या, वो-ह्याल् खाल्या
आत जात रव्हसे सर सर. 

आंबा ना जांब खासे शौकल् 
कणीस का दाना बी खासे, 
थोडो से खटका भेटेव पर 
धूम ठोकस्यार पराय जासे. 

हल्का कारा, पांढरा पट्टा 
रव्हसेती खाडी क् शरीरपर, 
झुपकावानी मोटी पुस्टी 
ना नरम नरम बाल बी सुंदर. 

लहान लहान बारीक डोरा 
ना उंदारावानी वोका कान, 
दुय हात मा धरकर फल 
खात रव्हसे मस्त आलीशान. 


                  चिरंजीव बिसेन
                             गोंदिया


खाडी

फूंदक फुदक करे इतन उतन,
घड़ी भर इतन घड़ीभर उतन ll

सुंदर प्यारी रुप निराली खाडी,
सबकी प्यारी दुलारी से खाडी ll

तूरु पोटु ला मज्या बहुत चखाये,
खाडी रानी जब जवर आये ll

बालक मन ला बहुत भाये,
खाडी रानी आपरो खेल देखाये ll

फुदक फुदक आंगन मा आये,
बड़ो चाव लक दाना खाये ll

जल्दी लक झाड पर चग जाये,
खाडी रानी कन कोणी धाये ll

खाडी का मिलकर गुण सब गावो,
मिलकर येको जीवन बचावो ll

प्रा.डॉ.हरगोविंद चिखलु टेंभरे
मु.पो.दासगाँव ता.जि.गोंदिया
मो.९६७३१७८४२४

दि. ०८.०२.२०२१ (सोम्मार)
               खाड्डी

खरगोश की मावस्ं बहिण
देख लेव खाड्डीमा
हर जागं दिसे, जंगल 
गाव खेतबाड़ीमा ॥१॥

झाड़पर लका सरसर 
फुदकंसे लगायके छलांग
रुबाबदार बैठक देखो
मोडके लंबी टांग ॥२॥

आबं चंघी आबं उतरी
कितं गयी कजाने
थकवा नही आवं का?
येला राम जाने ॥३॥

टपो-या डोरामा काजर
टवकार्ं से कान 
टुकूर टुकूर चौकन्नी
इत्ं उत्ं वोको ध्यान ॥४॥

मखमली आंग सुंदर
झुबकेदार पुसटी
चिरिप चिरिप अवाजमा
करं इरभर गोस्टी ॥५॥

पाठ परा रामजीको
उंगलीकी निशाणी
झाड़की कोठरीमा 
घर बनाव्ंसे शाहानी ॥६॥

बसक्यारी दाणा खासेत
छोटा छोटा हात
कड़कड़ फोडं सेत फल
लंबा टणक दात ॥७॥

नाजुक शर्मिली भोलीकी
मिशी उंदरावानी
टूणटूण उड़ी मारं से
झाड़परा बंदरावानी ॥८॥

चपल चंचल खाड्डी ला
धरनो तार की कसरत
नटखट कोमल शरारतीला
कुरवाडू, मोरी हसरत ॥९॥

डॉ. प्रल्हाद र. हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई 
मो. ९८६९९९३९०७

 खराडी

खराडी से मालकीन
जंगलकी ,खेतकि 
खराडी से शान
आमर् बाडीकी//

कोमल मऊ,आंग वको
शेपुट वकि झुपकेदार
रामजीको आशिष वला
पाट कशी पट्टेदार//

लहान शेकरुच से खाड्डी मोरी
रवसे भुरकट लाल
छलांग मारसे झाडलका
धाव वकि कमाल!//

झाडपरा डेरा वको
लपसे धुराक् गड्डामा
कुतरायला थकाय देसे
आखिर जासे झोरामा्//

फासा मांडसेती झाडपरा
लगावसेती भात
कोमल खारूताईको 
शिकारी करसेत घात//

सायकलमा् गाडीमा्बि आयजासे
खाड्डी चंचल नार
दाणासाठी आंगण घरमा्
चबावसे दार//

जगन देव वलाबि
वलाबि से अधिकार
हर जीवला जगन देवो
समय कि से पुकार//

पालिकचंद बिसने
सिंदीपार (लाखनी)

                खाड्डी 

खाड्डी बाई खाडी चोवंसेस बडी सुंदर
झाडपर चंघसेस तू बडी  सरसर

कोमल कांती जसी रेशमी लोकरको दोरा
झुपकेदार पुस्टी हलायकर देखावंसेस तोरा

सोनेरी केस तोरा टपोरी कारा डोरा
भिरभिर नजर फिरावंसे टकमक देखकरा

दुय पायपर बसकर कुरतळसेस दाना
मौज मस्ती करंसेस फुदक-फुदक कना

आंगपर दिसंसेत तीन कारा पांढरा पट्टा
खिराडीबाई खासे ताजा फल मिठा मिठा

गोजिरवाणी भिवक्कड खाड्डी जासे दूरदूर
खेलंसें संग मोरो लाजरी परासे तूरतूर

सांगसे आमला गोष्टी चिरीप चिरीप बोलकर
संसार थाटसें कोठरी मा झाड-झडूला पर

रामसेतू बांधन मा सें तोरो कार्य महान
रामहस्त प्रतीक का सेत पाठ पर निशाण

                                      शारदा चौधरी 
                                          भंडारा
आयोजक: सौ छाया सुरेंद्र पारधी

कृष्ण अना गोपी

मी बी राधा बन जाऊ बंसी बजय्या, रास रचय्या गोकुलको कन्हैया लाडको नटखट नंदलाल देखो माखनचोर नाव से यको!!१!! मधुर तोरो बंसीकी तान भू...