Sunday, April 25, 2021

हनुमान 60



 हनुमान

माय अजनी को लाला, बजरंग बाला,
लाली लंगोटी वाला, नाव बजरंग बाला।

ओठ पर जेको राम सिया राम
श्रीराम को वु दुलारा,
रामजी का वोय सबल् प्यारा
रूद्र अंश पवनसुत,नाव बजरंग बाला।

लहानसो उमरमा बी काम मोठा भारी
साधु संत का आती रखवाला,
सुरज ला घिट्किस, दानव पर भारी
ऋषि मुनि का प्यारा, नाव बजरंग बाला।

मारके छलांग वोन् लंकाला पार करिस
पुरो लंका दहन करने वाला,
रावन को अहं् ला चुर-चुर करिस
सिताला् ढुंढन् वाला, नाव बजरंग बाला।

भक्त मा भक्त हनुमान जी मोरो
सियाराम छाती मा देखावन वाला,
हनुमानजी को बिना रामजी अर्धो
श्रीरामजी बिना अर्धो, बजरंग बाला।

          रोशन राहांगडाले
           रा.पिपरिया ता.सालेकसा
           जि.गोंदिया,


हनुमान

पवनपुत्र हनुमान की कथा
रामभक्त हनुमान की या गाथा
शास्र पंडित वू जगत मा
मात् अंजनी को चरना मा वोको माथा

जनम भयेव हनुमान को 
बचपन पासुन डुबेव भक्ती मा राम को 
किशोरावस्था मा विक्रम करिस वोन
लंका विध्वंस करिस जयघोस करत प्रभु राम को

महाबली हनुमान की कथा बहौत महान
जिवनभर राम नाम जपिस,पाईस अमरदान
ब्रम्हचर्य को पालन करिस, धर्म को करिस बचाव
कलयुग मा भी अमर रहे असो पाईस वोन वरदान

काल भी भयभीत होय जासे वू नाम हनुमान
शनी भी हट जाये, जब नाम स्मरन करो हनुमान
कलयुग मा साक्षात से ईश्वर असो हनुमान
घर घर, गांव गांव पुजेव जासेत हनुमान

विरेंद्र कटरे


 हनुमान

माता अंजनीको पुत्र बडो बलवान
नाव येको पवनसुत विर हनुमान
रामजी को सफल करे सब काम
माता सीता को हृदय मा से वास

फल समझकर सूर्य ला घिटकाय
बालपणमा बल विस्मुर्ती मा जाय
सीता धुंढनला समुद्रपार लंका जाय
अशोक वाटिकामा हांहाकार मचाय

आदेश रावणको, पुस्टीला आंग लगाय
सारी लंका ला एकघन मा आग लागय
लक्ष्मणला तिर मारीस इंद्रजितन नागपास
संजिवनी बुटी साती पर्वत आणीस उठाय

संकटमोचन , अंजनिसुत, केशरिनंदन
पवनसुत,असा नाम अनेका पावन
जो हनुमान चालीसा गावसे हरदिन
परम सुख पावसे जीवन होसे पावन
    
                       - सोनु भगत


 हनुमान जी की आरती

जय जय हनुमान गोसाई
कृपा करो महाबली योगी
जो करे तोरो अनुसरण
वू बन जाय सदा निरोगी

महाकाल को रुद्र अवतार
अष्टांग योग को रखवाला
भक्ति शक्ति को अनुपम योग
राम रसायन पाजने वाला

इडा, पिंगला, सरस्वती
प्राण की तोरी बहती गंगा
भक्ती योगी, हे हनुमाना
हर युग मा तू सेस जागा

कपालभाती तेज ललाट
छाती से पहाड समान
प्रत्याहारी इंद्रीय जेता
नाम जप को सदा ध्यान

राम नाम की समाधी
अष्टांग योग को भोगी
अष्ट सिद्धी नौ निधी
प्रेम,ममता को फिरतो जोगी

जय जय हे हनुमंता
योगी व्रत मा करु सेवा
जो भी करे शक्ति साधना
सदा प्रिय बनसे देवा

शेषराव येळेकर


हनुमान

त्याग सेवा अना् शक्ति को
प्रतीक से हनुमान
मर्यादा पुरुषोत्तम रामजीक्
सेनाकि वु शान।।

जितेंद्रिय वु ब्रम्हचारी वु
आज्ञाकारी सुत
अंजनी माँ को होतो लाडलो
श्रीराम को दुत।।

शक्ति भक्ती अना् ज्ञान को
संगम पवनकुमार
कालनेमीला धुल चटाइस
राक्षस केत्ताक ठार।।

तु शंकरको सेस अवतार
चिरंजीव तु कलियुगमा्
मनोभावलक् भक्ती करसेजन
दे बल आमर् तनमनमा्।।

मोठा राक्षस तोरो कालमा्
आमर् कालमा सेत सुक्ष्म
आयोव आब् यव कोरोना
नजर चुकावसे तिक्ष्ण।।

अहिरावन को समान यवबि
संख्या आपली बढावसे
एक मरसे दुसरो जगसे
तरास मोठो देसे।।

सांग आब तु इलाज वको
कोणतो चलावबि तीर 
व्हँक्सिनलक् आमी आब् लढसेजन
आवना सरसे धिर।।

पालिकचंद बिसने



हनुमान

पुंजिकस्थला स्वर्ग की अप्सरा
रूपवान सुंदरी, चालमा चंचला।
ऋषी को संग करिस अभद्रता 
वदेव ऋषि, श्राप देसु टुरी तोला।।

पुंजिकस्थला घबराई बड़ी मनमा
लेजो वानर जन्म जब पृथ्वीपरा।
तब तेजस्वी पुत्र हरे,  ताप तोरा
ऋषिन उष्शाप देईस मंग अप्सरा।।

वनमा केसरी अंजना को मिलाप
रूद्रको ग्यारावो रूप वीर हनुमान।
सूर्य, अग्नि,सोनो को समान तेज
वेद-वेदांगको मर्मज्ञ महाबुद्धिमान।।

राम सीता को सफल करे काज
विक्राल रूप धरके, जराईस लंका।
संजीवन बुटीलक लक्ष्मनकी रक्षा
चहू ओर हनुमंता को बजेव डंका।।

रुद्रावतार, पवनसुत केशरीनंदन
संकटमोचन, जब नाम सुमिरत।
भूत पिशाच्च निकट नहीं आवत
जो हनुमान चालीसा नित्य गावत।।
 
सौ छाया सुरेंद्र पारधी
सिहोरा,तुमसर

                   हनूमान

होतो।गा लंकापति । राजा एक रावन ।।
अहंकार का गुन । होता देवा,,,,,।।

स्वर्णजडीत लंका । होती गा बंदवडी ।।
मरेवपर ना गोंडी। देवराया ,,,,,,,,,।।

सीतामाई हरन । विनाशकारी मन । 
रावन को मरन । स्त्री द्रोह ,,,,,,,,,,।।

धर्म ना अधर्म की । भयी होती लड़ाई ।।
पराजय वा भयी । अधर्म की,,,,,।।

बल बुद्धि का दाता । ब्रम्हचारी गा होता ।।
अंजना जेकी माता । पांडुरंग ,,,,,,,,।।

रामचन्द्र को दास । लक्ष्मण को श्वास।।
सत्यपर विश्वास । हनूमान ,,,,,,,,,,।।

ठेयीस गा कदम । रावन को लंकामा ।।
जनता गा शंकामा । पडगयी ,,,,,,,,।।

जराईस गा लंका । बजाईस गा डंका।।
रावन लघुशंका । सुटगयी ,,,,,,,,,,,।।

             
कु,रक्षा हिरदीलालजी ठाकरे नागपुर
पोवार समाज एकता मंच परिवार

                      हनुमान
                  
पुत्र  प्राप्तीसाठी दशरथ न यज्ञ करीस  ।
ओन्ज्यालका निकलेव पिंड को गोला ।।
दशरथ की तीन रानी,उनला बाटनसाती।
तीन भाग करशांन  देईस रानी हीनला।।

कैकई क हातमाको ,झळपिस घार न ।
ऋशीमुख पर्वत परा अन्जनी तप कर।।
घार जवर को गोला,हवा क बल लका।
पळेव जायशान अंजनी क आंजुर पर।।

ग्रहण करीस पिंडको गोला अंजनीन।
पोट आयेव ऋद्रवतार विर हनुमान  ।।
भक्त असो अवतरेव  अकराओ ऋद्र।
हृदय मा समाय गयेवश्री राम भगवान।।

 सीता शोध करनसाती करीस उडाण।
 गएव लंका मा,कर सात समुदर पार ।।
आग   लगाईस सोनो क लंका  मा   ।
मारे गयेव रावण, उतरेव धरती को भार।।

कोणी कसेती हनुमान,पवनसुत,मारोती।
गाव गाव मा जेकी बसापत,मंदिर सेती।।
हर दुख मा सहाय,ना रवसे सबपर छाया।
मणुन गावो हनुमान चालीसा ना आरती।।
                   
डी पी राहांगडाले 
    गोंदिया
 हनुमान

शुभ घडी आयी चैत्र पुनवाला
केसरी नंदन अंजनी लाला
रुद्रावतार जगमा आयेव जनमला 
जो बाळा जो जो रे जो

जन्मेव बुद्धी सामर्थ्य को पुतला
खुशी भयी किष्किंधा नगरीला
गाऊसू पाळणा अष्टसिद्धीको दाताला
जो बाळा जो जो रे जो

मुखमा गिळीस भास्करला
बजरंगी की अगणित लीला
नवविधा भक्तीको झोका देव पाळणाला
जो बाळा जो जो रे जो


शक्ती लगी लक्ष्मण भयेव मूर्च्छित
शीघ्र आणीस पवनसुतनं द्रोण पर्वत
संकटमोचन तपस्वी वीर हनुमंत
जो बाळा जो जो रे जो

विक्राल रूप धरके हुंकार भरं
ब्रम्हांड पाताल धरा डगमग करं
भाग खडा होती भूत निशाचर
जो बाळा जो जो रे जो


स्वामिनिष्ठ राम को परमभक्त
जारीस लंका को सोनेरी तख्त
रावण कैदलक करीस सीताला मुक्त
जो बाळा जो जो रे जो

                              शारदा चौधरी 
                                   भंडारा

     हनुमान

अंजनी को पुत्र,
केसरी को लाल,
वानर जातीसे सेना ईनकी,
श्रीराम जी को भक्त आय।।

अमरता को से वरदान मिल्यो,
सब भक्त एवं धर्म की रक्षा करत,
अपार बलशाली अना विर सेत वय,
भगवान हनुमान वुनला कवत।।

दिवारी मनावसेत श्रीराम को नाव लक,
येनच काल मा शिवन हनुमान को अवतार लेईन,
रहस्यमई से जिवन इनको,
पानी मालक महाबली की उत्त्पति भई।।

त्रेतायुग मा केसरीनंदन रूप मा जनम लेईन,
बनकर रामभक्त छाया बनकर चलीन,
वाल्मीकि रामायण मा उल्लेख से इनको,
हनुमान जी को संपूर्ण चित्रण वाल्मीकि न करींन।।

द्वापर युग मा भीम की लेईन परीक्षा,
महाभारत को प्रसंग मा पूछ ला मार्ग मा ठेईन,
कवत हनुमान मार्ग लक उठावो येला,
भीम न आपरी पुरी ताकत लगाय देईन।।

कलयुग मा भी सेत हनुमान जी जीवित,
राम भक्त की रक्षा करसेत,
अनेक रहस्य लक भरी से इनकी गाथा,
मिलकर हनुमानजी ला भक्त भजन गाव सेत।।

      कु.कल्याणी पटले
       दिघोरी,नागपुर

 हनुमान
  

अंजनीपुत्र केसरी नंदन 
आय पवनपुत्र हनुमान, 
बल-बुद्धी विद्या को दाता 
सब लोकईनला से अनुमान. 

बचपन मा सुर्यला निगलिस 
तीनही लोकमा भयो हाहाकार, 
सब देवईनन् करीन विनंती 
तब दूर भयो जग को अंधकार. 

राम ना सुग्रीव की दोस्ती कराईस 
सिताजी क् खोजसाती गयेव लंका, 
सिताजी की खोज करके लंका जराईस 
वहॉ राम नाम को बजाईस डंका. 

राम रावण युद्ध मा कई राक्षस मारीस 
संजीवनी आनकर लक्ष्मणका बचाईस प्राण, 
राम क् सेवामा हमेशा होतो तत्पर 
रामला बहुत प्यारो होतो हनुमान. 

पाताल ल् राम-लक्ष्मणला आणीस
अहिरावण को करीस सर्वनाश, 
भक्तईनका सब दुख दुर करसे 
ठेवसेत वोक् पर जे पूरो बिश्वास.


                      - चिरंजीव बिसेन
                                  गोंदिया

संकट मोचन हनुमान
          (वर्ण संख्या -12)

जय  हनुमान  महाबली  प्रभू
संकट  मोचन  नाव  से  तोरो ।
आयीसे  संकट   येन  धरापर
कष्ट हरो प्रभू  सब दुख  टारो ।।1।।

शक्ती लगी  जब  लछमन पर
आन संजीवनी बचायेस जान ।
तसोच बचाव कोरोनाग्रस्तला
देयके उनला  जीवन को दान ।।2।।

अंजनी  पुत्र   पवन  सुत  प्रभू
राम  काजसाती  राक्षस मारेस ।
तसोच अदृश्य  कोरोनाला मार
आपलो भक्तकी जिंदगी तारेस ।।3।।

जित देखो उत कोरोनाको डर
असो  बेरापर   तोरोच आधार ।
जय  महावीर   संकट  मोचन
तुच  भयमुक्त   करजो  संसार ।।4।।

कोरोना ग्रसित  मोरा टुरा टुरी
जल्दीच करजो  तू इनला बरो ।
येन संकटमा  आमला दे  धिर
तोरो चमत्कार देखावजो खरो ।।5।।

सुरक्षा  कवच  देय  महाप्रभू
वैरीलक रक्षा  आमरी करजो ।
बिनंती करसे  तोला गोवर्धन 
आया  संकट  लवकर हरजो ।।6।।
शब्दार्थ:
धरापर = पृथ्वीपर
टारो = दुर करो
डर = भय, भेव
बरो = चांगलो
धिर = हिंमत

    इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया
          मो. 9422832941
            दि. 25 एप्रील 2021

Saturday, April 17, 2021

निसर्ग 58



माानव
सूर्य नारायण।उगलसे आग्।।
आता तरी जाग्।मानव तु,,,,।।

झाड़ तु काटेस्।बनेस् खुदगर्ज।।
मानवको फर्ज ।भुल् जासे,,,,,।।

मुका पशू पक्षी।काहा रे जायेती।।
कसा बचायेती। परिवार,,,,,,,।।।

आपलोला दुःख।आवसे सांगता।।
मुका ला बोलता।आव् नही,,,,,,।।

आपलो समान।समजो सबला।।
देखो समस्याला। सबकीच,,,,,।।

बच्चा साती देखो।मनमा झुरसे।।
सावली गा देसे। झाड़ पाना,,,,,।।

जंगल का झाड़।प्राणी को रक्षन।।
मानव तु जान्।प्राणी दुःख,,,,,,,।।

बचेती रे झाड़।बचे गा वनराज।।
लगावों गा रोज। एक झाड़,,,,,,।।

सांगसे गा रक्षा।करो काही दया।।
देहे माहामाया।सुख शांति,,,,,,।।

             !!!!कवी!!!
कु   रक्षा  हिरदीलालजी  ठाकरे
पोवार समाज एकता मंच परिवार

पृथ्वी

पृथ्वी आक्षाद्दित होती झाड लका
पृथ्वी को कोना कोना मा होती हरियाली
बाद मा जनमेव मनष्य नाव को प्राणी
वोको बाद मा श्रृष्टि की दशाच बदली

विकास को नाव पर तोडिस जंगल
मनुष्य न् नही करिस बिचार
तोडत् गयेव वु हिवरा हिवरा झाड
ग्लोबल वार्मिंग लका तापमान को भयो संचार

मानुस पायी प्रदुषन बढन लगेव धरती पर 
फाटन लगेव ओझोन को स्तर 
निलरहित किरन करन लगी तांडव
बिचार आयेव, आता कसो लगे अस्तर?

कागद, फर्निचर साती काटिन मोठा झाड
टकली असी भयी आमरी धरती
विकास यव् नव्होय, आय विनाश
मनुष्य को पाप लका बदली पृथ्वी की आकृती

हात करो आता पुढो मोरो बंधुओ 
कविता रचन् की नाहाती आमला
एक कदम बढावनो सृष्टि को समृद्धी कन
बचाओ या सृष्टि, देव स्वच्छ वातावरन  भविष्यला

 विरेंद्र कटरे

प्रदूषण

देखो कसा बहुगुणी सब तरुवर
कटकर बिछ गया सेती धरतीपर।
भास्कर ओकसे आगगोला भयंकर
झुरमुराय गया पशुपक्षी अना नर।।

नदी रोकिस अना काटीस जंगल
बनाइस ऊंची ऊंची मोठी इमारत।
जहरीलो धुंगा निंगेव कारखानाको
फाट गई सुरक्षा की ओझोन परत।।

अतिनील किरण पहुची धरतीपर
त्वचा कॅन्सरको धोको बहुत बढेव।
गरमी लक सब करसेत त्राहिमाम
धरती को तापमान को पारा चढेव।।

देखो कसी माय की ममता निर्मळ
पिल्लु को बचावन साती जीवन।
पाना धरीस चोंचमा,साऊली करन
आब तरी दया मनमा देजो आवन।।

जन्मदिवसको अवसर पर हरसाल
लगावबिन, जगावबिन एक  झाळ।
धरती होये समृद्ध हिरवी हिरवीगार
तबच रहे स्वस्थ नवो पिढीको काळ।।

सौ छाया सुरेंद्र पारधी
 


प्रकृति को विनाश
  

जंगल भय गई से साफ 
कही बी नाहाय सावली, 
बच्चाईन ला सावलीसाती
तोंड मा पान धरकर माऊली. 

आदमी काट रही से झाड 
वोला नाहाय भविष्य की चिंता, 
झाड् इनकी करके कत्तल 
रच रही से आपलीच चिता. 

कट गया सेत सब झाड 
उजाड भय गई से जंगल, 
जंगल उजाड करस्यारी 
नही होनको कभी मंगल. 

मुहून जंगल तोड ला रोकनो ना
नवा झाड लगावनो से जरूरी, 
नही त् भविष्य बहुत बिकट से 
समझो निसर्ग की चेतावनी भारी. 

सूरज की गर्मी होय जाहे असह्य 
पिवनला नही मिलन को पानी, 
यदि आदमी नही सुधरेव अना 
करत् रहेव आपलीच मनमानी. 

                      - चिरंजीव बिसेन
                                  गोंदिया

               पर्यावरण

घनदाट जंगल होतो, हीरवो हीरवो रान
जेला देखकर हरपत होती भुक तहान
सावलीमा आराम करत होता पशु पक्षी
आंबा की अमराई ना मोहुको मोह-यान  //१//

चार,ना चारोळी टेंभरुन भी भेटत होता 
शरीर ला पौष्टिक होता,चव न्यारी न्यारी
मोठ चवलक खानला भेट मस्त रानमेवा
आक्‌सीजन भेट ना बरसात पळ भारी //२//

पर माणुस क डोस्काला का भएवत
जंगल काटीस ना लगाईस कारखाना
उजाळ कर देईस जंगल, धरती सारी
आपलो बिंध से  भलतोच तानाबाना //३//

बरसात मा आता बारीस आव नही
उन्हारो की तपन भी  तपसे भरमार
 अलगलग रंग की आवसेत बीमारी
ना जीवन सबको होसे मोठो बेजार  //४//

मनून एक झाळ काटोत दस लगाओ 
पर्यावरण राखण मदतभी होय मोठी
सुखी रहे जिवन,जगाओ देश  प्रेम 
झाळ जगाओ,पर्यावरण रक्षण साठी //५//
                   
डी पी राहांगडाले 
  गोंदिया


टंगोलीको घाव 
    (अष्टाक्षरी काव्यलेखन)

   नष्ट    भयेव   जंगल 
   खाय टंगोलीको घाव ।
   मुर्ख   मानुसला  येन
   आता   देवच  बचाव ।।1।।

   भयी    धरती   गरम
   ओक   दिनकर आग ।
   मर   रह्या   पशुप्राणी 
   देखो  प्रकृतिको  राग ।।2।।

   पक्षी   पान  धर  चोच
   देसे  पिलाला  वु छाव ।
   देखो मायको वात्सल्य
   खुद   लगायके   दाव ।।3।।

   बुध्दिमान  मानुस की
   आय   विकृत  करनी ।
   मुका  पशुपक्षी ईन्ला
   आयी  नसीब  भरनी ।।4।।

   झाड लगाओ सप्पाई 
   करो   प्रकृति  श्रृंगार ।
   सांग   गोवर्धन   सब
   करो   जीवन  उध्दार ।।5।।

   इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया
          मो. 9422832941
            दि. 11 एप्रील 2021
धरती

माय आमरी धरती
वका् पुत्र  जीव सारा
सप्पाइ झाड वस्त्रवका्
आब फाटसेत टराटरा।।

सुर्यकि आग झाडच झेलसेत
देसेत  प्राणवायू सावली
आधार पशुपक्षीइनला
झाडयलकाच 'हरयाली'।।

धरतीमायको पुत्र मानव
से सबदुन श्रेष्ठ
वुच वस्त्रहरन करसे
बनेव आब भ्रष्ट।।

कसे मी विकासपुरुष
काइकाइ झाड फालतुका
फायदाकाच झाड ठेऊ खेतमा्
बाकिका् बिनकामका।।

एकतर्फो विकास भयोव पुत्रको
रोवसे माय धरती।
कसा होयेत हाल सबका
मिट्टिमा् मिल जाय् कीर्ती।।

बच्याकुच्या पुत्र मोरा
आयको मोरी बात
बचाओ सारा पेडपौधायला
नइत् होये घात।।

पालिकचंद बिसने


            पक्षिनी 

देखो गहिवर दाटेव पक्षिनिला
दुही नेत्रमा गंगा जमुना की धारा।
मरेव पड़ीसे सामने दिलको टुकड़ा
सूर्य नारायण करसे आगको मारा।।

नहीं सावली दिस कही यहांन
मोरो मैना ला लिजाऊ कहान।
मृतदेह सामने पड़ीसे नाहान
लीजाऊ इनला, कोनसो जहान।।

पानी नहीं, नही झाड़की सावली
तहानलका जीव जानकी से पारी।
स्वार्थ साती आमरो घर लूटिन
असोच रयेव त प्रलय आये भारी।।

कसो दुश्मन भयेव येव मनुष्य
रोज करसे झाड़ इनकी कत्तल।
धरतिको हिरवो सिंगार साजरो
हिसककर हाससे खूब बेक्कल।।

जसी पशू पक्षी की भई बेदस्या
झाड काटके नोको करू अवदस्या।
लगावो झाड ,करो धरणीला हिरवी
रहेती पशू पक्षी सावलिमा येको बस्या।।

                  - सोनू भगत


ऱ्हास प्रक्रूतीको

डोरा मा आसु चोच मा पान
कसी भगाऊ बेटा तोरी तहान
प्रक्रूतीको ऱ्हास करन लगीसे
माणुस समजसे खुदला महान

मरणयातना निसर्ग की 
का? मरन जवळ आयेव मनु को
तप्त झळ सहन नही होय
येव प्रकोप आय दिनु को

अगणित खोळ बांडा
दिस रह्यासेत जीतन उतन
असोच चलत रहे त मंग
जीवन को कसो होये जतन?

निरबिना तळपके देह टाकेस भू पर बेटा
नश्वर आत्मा तोरी कहा गयी छोडकर
देख मोरो दुःख मानवबंधु आता तरी
कदम तोरा ठेव जरा संभलकर

सौ.वर्षा पटले रहांगडाले
बिरसी (आमगांव)
जि.गोंदिया

सड़ाक्षरी काव्य

जैवविविधता

संजीव या सृष्टी, 
प्राणी झाड़ झुड़
नवलाई छान
धरती को गुड़।।

झाड़ देसे वायु
प्राणी ला जीवन
जगनला सब
योव संजीवन।।

काहे काट सेव
जग्या मोठा झाड़
मिड़ेत का सांगो
पिक्या आंबा पाड़।।

जगावो झाड़ला
प्राणवायू मिडे़
झाड़ संग जगो
तब नाड़ जुड़े।।

जन्म क पासुन
उपयोगी अस्त्र
बनसेती सखा
घर अन्न वस्त्र।।

सृष्टी को नियम
निसर्ग यो देव
जैवविविधता
वृक्ष मानो देव।।

""जय राजा भोज जय माँ गड़काली""
वाय सी चौधरी
गोंदिया


नहीं फेड सीकज उपकार
   

धरती आमरी माय से,
वोकी संतान आम्ही,
प्रकृति को सौन्दर्यला,
मिलकर करिया सेजन कमी।।

नष्ट करिया जंगल,
से स्वार्थ वोकोमा,
प्राणी जात ला दुःख देया,
सोचो ज़रा मनमा।।

पंछी भया बेघर,
नहीं मील छाया,
विकास को अंधाधुंध मा,
इंसान न बदलीस धरती की काया।।

जंगल झाडी तोडीस,
ना देईस कोई जीव ला माया,
प्रदुषण बढ़ावनो मा रही,
इंसान की मोठी काया।।

उपकार नहीं फेडसीक,
मनुष्य धरती माय को,
प्रकृति को सौन्दर्य ला,
दुबारा निखरके आनन को।।

     कु.कल्याणी पटले
      दिघोरी,नागपुर

 तरुसंवर्धन

हे मानव प्राणी झाड काटके
दुखाऊस नोको मोरो मनला
तोरो हत्यार को वार लक
अगणित घाव पडसेत तनला

ओकंसे आग ग्रीष्ममा रविराज
अवनी को जल रहिसे चोला
उभो हर हाल मी ऋषीसम
देसू शीतल छाया फल तोला
  
प्राणवायू दाता सहचर मी
रोकू धरा धूप वृष्टीला
धरती करसे सिंगार मोरो
नवचैतन्य भेटसे सृष्टीला

वृक्षतोड लक बेघर वू पक्षी
धरणीपर लगेव लुढकनला
करंसे माता पिल्लुपर पर्णछाया
लग्या नयननिर बवनला

सोड कुबुद्धी कर तरूसंवर्धन
समतोल राखुसू पर्यावरणला
बहुगुणी दाता कल्पतरू मी
आधार संसारकर्म करनला


                    शारदा चौधरी
                        भंडारा

दिनांक: ११.०४.२०२१
 जीवन डाली डाली

हिवरा हिवरा झाड
सृष्टीको वरदान
जीवजंतू को आधार
निसर्गकी जान ||१||

झाड आय बादर
हर जीवनकी छत
रोटी कपडा घर होये
पुरी सप्पा जरुरत ||२||

झाडकी छाया माया
जासो मायको आंचल
खुद भुकी रयके देसे
हर बच्चाला अन जल ||३||

नोको काटो झाडला
हर जीव को मकान रे
आये अकाली मरण भी
धरती बने स्मशान रे ||४||

झाड लगावो जहां वहां
पसरावो हरयाली
महके सृष्टी भरे घर
जीवन डाली डाली ||५||

डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७

घाव (शेलकाव्य)

नोको करु वज्राघात 
वज्राघात टंगोलीको
नोको करु इंतजाम 
इंतजाम सकोलीको

कलेजापर रे घाव
घाव तू केता करजो
जसी गा तोरी करणी
करणी सम भरजो  

बोळकी भयी धरती
धरती बने बंजर 
भोगो गलत कर्मको
कर्मको यव मंजर

तोरी करणीकी सजा
सजा आमलाच कशी
तू रोवजो एकदिन
एकदिन भिजे उशी

तोरो पापलका अज
अज पडी यहा गाज
सावली केती धरु मी
मी भयी बेबस आज

महेंद्रकुमार ईश्वरलाल पटले(ऋतुराज)
ता. ११/०४/२०२०

मानव की तीन गरज

अन्न,वस्त्र, निवारा
पण खरी गरज मानव की
प्राणवायू को बहतो वारा

झाड झुडूप वनराई
निसर्ग की संतान
वितभर को पोट को
लाकूड तोड्या सैतान

हवा, पाणी,शितलता 
झाडं को वरदान
पशू पक्षी जीव जंतू को
घर जंगल रान

कागद, निवारा ,जलावू
ना ना प्रकार का काम
देनो पेक्षा लेनो जमसे
नहीं मानव करणी मा राम

जंगल काटकन मानवन्
मारिस पायपर कुऱ्हाड
नैसर्गिक आपदा को संकट
गिरेव दुःख को पहाड

झाड सखा मित्र
झाड आय जीवन
जंगल बचावो,झाड लगावो
जपो निसर्ग धन

शेषराव येळेकर
दि ११/०४/२१

 मोरो डोरामा कंकर 

मोरो साज शृंगार को 
कसो भयेव रे अंत
काहे मानु मी मानवा 
तोला सच्चो साधुसंत ||

केता सजीव खेलती 
मोरो येन् मांडीपरा 
झाड झडुला तोडके 
काहे करेस जर्जरा ||

रान हिरवो बंजर 
गया बरसाती ढग 
तोरो कर्म को प्रताप 
रवी ओकसे ना आग ||

माया अना वात्सल्य की 
पक्षी देखाव् प्रचिती 
'माय 'मानसेव मोला 
मंग काहे उचापती ||

गयी साओली की रया 
चारी आंग से संगर 
तोरो स्वार्थ लक् भर्या 
मोरो डोरामा कंकर ||

वंदना कटरे  "राम-कमल "

सौ शारदा चौधरी रहांगडाले




शारदा चौधरी
माय वत्सला, बाबुजी श्यामराव
पती चंद्रशेखर सर
नाव शारदा ,छंद से वाचन
लेखन तुमरो भरभर।।

पंचायत समिती मोहाडीमा
विषयत्ज्ञ पदपरा
माय पोवारी, प्रितच भारी
बागमा् पोवारी झरा।।

बाच्या आमी, तुमरी कविता
अकाळी,व्याकूळ राधा
बेलपाती अना् तिरंगा
मधूर साहित्यसंपदा।।

उच्च शिक्षित सेव तुमी
समाजसाठी से प्रेम
जगावो शिक्षणक्षेत्र तुमी
भाषापरा धरो नेम।।

गुणीजन सेत मोहाडीमा
मीबि होतो दवडीपारमा्
सेती आशीर्वाद मान्यवरका
करो सृजन सुख, भेटे मनमा्।।

शारदामायको नावसे तुमला
करो साहित्य साधना
शिक्षण संस्कृती साथमा् धरबिन
होये पुरी कामना।।

पालिकचंद बिसने स.शि.
सिंदीपार(लाखनी)


          सौ.शारदा चौधरी /राहांगडाले
                    
टुरी अशी जन्म । पोवारीकी नाक।
तिन्ही लोक धाक। रव्हो ज़सो ।। १।।

माय  बाप घर ।   ठेव शुध्द मन।
पती नारायण ।   सासु-यामा ।। २।।

अशी एक टुरी । नाव बाई शारदा।
पोवारीको हिरदा।  वास रव्ह।। ३।।

अजी शामरावजी। वत्सला बाई माय।
मंग  भार्या आय । चंद्रशेखरजीकी।।४।।

चौधरी की बेटी। राहांगडाले भयीं।
कूळ उध्दार दुही।  भय गया ।। ५।।

लहानपन पासून। पोवारी को छंद।
भेटसे  आनंद  । पोवारी  मा।। ६।।

पोवारी मा काव्य। पोवारी लेख ही।
लिख  लवलाही। पोवारी मा ।। ७।।

पोवारीच ध्यानी । पोवारीच मनी।
पोवारीच जनी । सांग बाप्पा ।। ८।।

असोच चलओ ।पोवारीको तीर।
हात डोईपर । कालीका को ।। ९।।
                
डी पी राहांगडाले 
     गोंदिया



शारदा चौधरी रहांगडाले

शारदा को कसो करू बखान
अामरो समूह की बाई से शान।
सरस्वतीन देइस वोला वरदान
बढ़ाइस पोवारी बोली को मान।।

बेलाटी गांव बोवसे भक्तीकी धार
जन्म भयेव, मायको वत्सला नाव।
संस्कारमा पली, माय बाप की माया
केंद्र प्रमुख होता बाबुजी शामराव।।

नक्षत्र वाणी बढिं टूरी दिवसरात
चंद्रशेखर भरतार जीवको आधार।
फुल बेलपरा *प्रीत* ओकों नाव
विषयतज्ञ दीदी लेखनिमा से धार।।

सोनो को अलंकार शोभ सेती कान
गरोमा मंगळसूत्र सौभाग्य की खान।
दुही नेत्रमा झलकसे पोवारी की शान
माय बोली को दिदीला बड़ो अभिमान।।

कविता,  कहाणी लिखसे भरधाव
सजावसे उणला जसी पोवारी नार।
कसे मी पोवारी बोली की वारकरी
नही भुलनको समाज तोरो उपकार।।

सौ छाया सुरेंद्र पारधी


श्रीमती सौ.शारदा चौधरी


माँ वाग्देवी की कृपा
शारदा बाई धन्यवान
वा पोवार की शान
से माँ गड़काली को वरदान

चौधरी घरको दिवो
देसे राहांगडाले घर प्रकाश
कर्मरथी या माई
करत गई विकास

माय बाप की लाडली
चंद्रशेखर सर को अर्ध रुप
दुय घरं प्रकाश देसे
जीवन अविरत चलतो तप

विषय तज्ञ इतिहास,मराठी
घर की से अर्थतज्ञ
पोवारी, हिंदी, मराठी
साहित्यिक भाषातज्ज्ञ

भात की कोठार मा
शारदाबाई को ज्ञानभंडार
वोको हातमाकी लेखनी
करसे भाषा को शृंगार

कवयित्री शारदाबाई
ज्ञानगंगा की भागिरथी
मायबोली को उत्थानसाठी
बनी शब्द रथ की सारथी

स्त्री जन्म तपस्वी
संघर्ष से ओकी गाथा
ज्ञान,सेवा,काम,नाम,
शारदाबाई को ललाटी माथा

कवयत्रि शारदाबाई
तोरा सेती उपकार
असीच ज्ञान साधना ठेव
या माँ भारती की पुकार

शेषराव येळेकर
दि.१५/०४/२१
 
 कवयित्री सौ.शारदाबाई चौधरी 

बाई शारदाका । शामराव पिता ।
वत्सला वा माता । गुणवान ।।1।।

बेलाटीमा जन्मी । वा प्रतिभावान 
चौधरीको मान । बढ़ाईस ।।2।।

करीस शिक्षण । पोस्ट ग्रेजुएट ।
काममा भी नेट । या शारदा ।।3।।

संजय ना राजू । सेत दुय भाई ।
पुनामा कमाई । करसेत ।।4।।

चंद्रशेखरजी । शिक्षक सद्गुणी ।
भेट्या घरधनी । बाईसाती ।।5।।

बाई भी आमरी । जानकार सुज्ञ ।
से विषय तज्ञ । मराठीमा ।।6।।

कविता लिखनो । पुस्तक बाचनो ।
व्यंजन करनो । छंद ओको ।।7।।

पोवारी, मराठी । हिंदी की कविता ।
ज्ञान की सरिता । लिखसे वा ।।8।।

सन्मान भेटीसे । तिनही भाषामा ।
कयी समुहमा । काव्य साती ।।9।।

बाईकी से इच्छा । पोवारी प्रसार ।
भाषाको प्रचार । सबसाती ।।10।।

बाईकी कविता । कसे गोवर्धन । 
करे संवर्धन । पोवारीको ।।11।।

    इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया
          मो. 9422832941
            दि. 15 एप्रील 2021

 नाव तोरो शारदा
काम शिक्षा दान
समाज अना बोलीको
सेवाको वरदान ||१||

संस्कार मायबापका
मनमिळाऊ स्वभाव
पोवारी संस्कारको
लेखनमा प्रभाव ||२||

मराठी हिंदी अना
पोवारीकी जाणकार
साहित्य निर्माण करे
तोरो लेखणीकी धार ||३||

जीवनसंगी ला 
लगाये हातभार
समाज धुरा संभाले
संग संग परिवार ||४||

ज्ञान भंडार भरत जाय
याच आमरी सदिच्छा
उज्ज्वल भविष्य साती
मंगलमय शुभेच्छा ||५||

डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७

पोवारी धुरकरी- शारदाबाई
नाव मां से शारदा
अर्थ बी सरीखोच
शब्द साधक तूमी
पोवार घर तूमरी पोच ||१||

शिक्षण क्षेत्र मां रत
प्रशासन मां मशगूल
घर संसार संभालकन्
बजावसेव् साहित्य बिगूल ||२||

पोवारी की धुरकरी
पोवारी मां से प्राण
रचस्यानी रचना बुहु
पोवारीमां आनिन् जान||३||

पोवारी टुरी बहू माय
इनको से स्वाभिमान
घर संसार मां बी दिसे
पोवारी आन बान स्यान ||४||

विज्ञान क्षेत्र का पती
साहित्य मराठी की तूमी
कसो जुडायात मेळ
टुरा बी सेती तुमरा गुणी ||५||

लिखत रव्हो छापत रव्हो
पोवारी माय को महिमा
फयले समाज जीवनमां
सद्गुणी पोवारी कन्या ||६||


रणदीप बिसने


 शारदा चौधरी /रहांगडाले
  
नाव मा जेको से शारदादेवी, 
पोवारी भाषा मा करसे कविता, 
माहेर वोको बेलाटी बुजरूक 
वत्सला माता ना शामराव पिता. 

चौधरी की बेटी, ससुराल रहांगडाले 
सालेभाटा मूल गाव, भंडारा निवास, 
विषयतज्ज्ञ क् पदपर से आसीन 
शिक्षाक्षेत्र मा योगदान से खास. 

पोवारी, हिंदी, मराठी साहित्य मासे 
विशेष रूची ना सक्रिय योगदान, 
भविष्य मा बी होयेत उनक् हातल्
शिक्षा ना साहित्य क्षेत्र मा कार्य महान. 

                      - चिरंजीव बिसेन
                                  गोंदिया

माय-अजी कि पुण्याई 
विठ्ठल रूखमाई रूपा 
तोरो हातमा बिराजे 
लेखणी सद्गुरू कृपा ||

हिंदी, मराठी, पोवारी 
साहित्य कि साधिका 
ताल-स्वरी गीत गायन 
"शारदा " कि तू उपासिका ||

कला,सगुण, बुद्धिलक् 
मोरी सखी भयी देखणी 
भविष्य कि हार्दिक सुबेच्छा 
गगन भरारी लेयं लेखणी |

वंदना कटरे

 कवयित्री सौ.शारदा चौधरी

स्त्री या एक महान शक्ती से.आपलो गुण,रुप लका संसार अना संस्कार फुलावसे.कवयित्री सौ.शारदा चौधरी या बेलाटी गाव मा जन्मी एक स्त्री मराठी, हिंदी, पोवारी रचना लिखकन जेकी फक्त बेलाटी ते भंडारा असी पहचान होती वा आता आपलो साहित्य लका संपूर्ण महाराष्ट्र भर मा आपलो नाव को झेंडा रोवसे.

दुय घरमा प्रकाश देनेवाली एक महिला संपूर्ण समाज ला भी दिशा देखाय सकसे येको उदा.कवयित्री शारदा चौधरी आपलो विषय तज्ञ की सेवा, समाज सेवा अना घर संभालनो असा अनेक काम पुरो जबाबदारी लका पार पाडसे.
उच्च शिक्षीत शारदाबाई मनमिळाऊ ,मितभाषी, कर्मरथी अना सेवाव्रती सेती. घरको वातावरण सुंदर अना शिक्षीत से.उनका पती शिक्षक चंद्रशेखर अना टुरा प्रीत असो सुंदर परिवार से.

झाडीबोली अना माय पोवारी को आचल मा पली फूली कवयित्री शारदाबाई को शब्द ज्ञान प्रगल्भ से प्रमाण भाषा मराठी मा लिखतांना मायबोली को ज्ञान उनको रचना ला अधिक प्रगल्भ बनायकन चमकावसे.

वैनगंगा तटपर रवनेवाली कवयित्री शारदाबाई की रचना माँ गंगा सारखी सुंदर,स्वच्छ, निर्मल बहती सरिता से.दुय कुल को नाव उजागर करने वाली कवयित्री शारदाबाई चौधरी इनला शतशत नमन.

बहती रव सरिता
तुमरो शब्द ज्ञान की
पोवारी की धुरकरी
कृपा रहे भगवान की

शेषराव येळेकर

Friday, April 9, 2021

श्री लखनसिंगजी कटरेे


अँड. लखनसिंह कटरे.

गोंदिया जिल्हो तालुको आमगाव
जन्मगाव  बोरकन्हार।
वर्ग एकमा जिल्हा प्रमुख
क्षेत्र होतो सहकार।।

साहित्य गणितपरा प्रेम होतो
हुशार होता इस्कुलमा्
चमकतच रह्या तारोघाई
आजबि सेती माउलमा्।।

थाट पोवारी बाज केसरी
गांधीवादी उनको मन
लेख, कविता ,अविरत लिकसेत
समिक्षक कसेती सारा जन।।

 कवितासंग्रह सय भया 
कथासंग्रह एक।                         
माय पोवारी झाडीसाठी
लेसेत सबकि भेट।।

पोवार समाजका आदर्श सेती
प्रेरणा लेबिन सप्पाइ
उनकोसारखोच वाचन लेखन
करबिन आब् घाइ।।

धन्य भयोव बोरकन्हार
धन्य भयोव परिवार
संस्कृती मंडलका सदस्यबि वय
धन्य धन्य पोवार।।


पालिकचंद बिसने 
सिंदीपार (लाखनी)

 ब्रम्हनिष्ठ वरिष्ठ साहित्यकार
आदरणीय श्री लखनसींगजी 

बोरक्हार गांव।पुन्यभूमी पवित्र।।
जन्मेव ब्रम्हपुत्र।लखनसींग,,,,,।।

नित्य ब्रम्हज्ञान।सदा प्रखरप्रज्ञा ।।
नित्य गुरूआज्ञा।ह्रुदयमा,,,,,,,,।।

झाडीपट्टी बोली। साहित्यकी धारा।
लगेव जयकारा । माहा राष्ट्र,,,,,,।।

सेती जानकार। राजभाषा हिन्दी।।
आकाश बुलंदी।लखनजी,,,,,,,,।।

पोवारी भाषा का।जेष्ठ साहित्यिक।
समाज कौतिक।लखनजी,,,,,,,,।।

आदर्श पुरुष ।स्वभाव सात्त्विक।।
सत्य ना विवेक। निष्ठावान,,,,,,,।।

डोंगरल् ऊच्चो।समाज मा मान् ।।
मोरो स्वाभिमान। लखनजी,,,,,,।।

शुद्ध आचरन् । सेती कर्मयोगी।।
बनगया जोगी । समाजका,,,,,,।।

जानसे का कोनी। कसा अपराधी।।
जाऊ आता आधी।चरनोमा ,,,,,,,।।

लखनलाल जी । उदारवादी  गुरु।।
नमन मी करु । गुरुराया,,,,,,,,,।।

              !!!कवी!!!
श्री हिरदीलाल नेतरामजी ठाकरे
पोवार समाज एकता मंच परिवार

कटरेजी

 देखेव नही कोनी महर्षी जीवनमां
या मोडपरा कटरेजी भेट्या पथमां

अभ्यास चिंतन मंथन रत चिरंतर
खंडन मंडन मां हरायात धुरंधर

संदर्भ सप्रमाण शाश्वत अधिष्ठान 
उभार्यात नवानवा जीवन प्रतिष्ठान

जो प्रकाशित साहित्य प्रसवार्चन
नेमकवानी मन जीवन को सृजन

पोवारी झाडी संस्कृती को पुनरूत्थान
जीवन उत्तरार्ध को नवा अनुसंधान

ज्ञानमय जीवन सत्य की खोज
नहीं कोनतो धारा प्रवाह को बोज

नवागत सृजनकारला मार्गदर्शन 
मार्मिक मंथन हेरसेव पथदर्शन..

सत्यवचन प्रत्यक्ष रचना को सर्जन
निराला साहित्यऋषी करू मी अर्चन

चीर प्रवास साहित्य जगत मां नीत
गाव जिला प्रांत देश संग नव प्रीत

शाश्वत प्रशासन को कर्यात संवर्धन 
पेल्यात सामान्यहित साठी वु गोवर्धन....

शाश्वत जीवन साकार कर रह्या निर्मळ
पथदर्शक सिद्ध सेव् जसो शुद्ध जल.....

रहो निरामय सतेज जीवनभर
देनं दिशा असंख्य नवपथकर....


रणदीप बिसने
सिंदीपार

       

श्री:-लखनसिंह कटरे

महाकाय वटवृक्ष
छाया से गरद
माहामाया गडकालीका
माँ वाग्देवी को वरद

सेवाव्रती वटवृक्ष
अपराधी से नाव
भू मा का अनंत उपकार
देत जासेत छाव

अॅड लखनसिंह कटरे
गाव बोरकन्हार
महाराष्ट्र को माती का
सेत साहित्य का कनार

झाडीबोली का ऋषी
जीवन से योगी
वाचन लेखन आवड मोठी
भागिरथी वैरागी

तपोवन को भूमि मा
मा पोवारी,मराठी को तप
चीर प्रवास साहित्य जगत को
सत्य भाव को निरंतर जप

कडू गोड अनुभव का
एक मोठी चट्टान
सुख दुःख का वारा सोसे
कर्मयोगी को वरदान

पोवारों का शान
मा पोवारी का सृजनहार
संस्थापक, संचालक
करसेत नवा नवा शृंगार

तलावोंको जिल्हामा
साहित्य का समुद्र
झाडीबोली का २७ आयोजन
मिटी बोलीभाषा की काळी रात्र

गुरु,प्रशासक, महर्षी
प्रवास चालू निरंतर
वटवृक्ष को छाव मा
अज्ञान होये छूमंतर

आठ मराठी, एक हिंदी
पोवारी मा एक किताब
अकरा पुस्तक,अनेक लेख
जय हो साहित्य का नवाब

प्रमेय,जाणिवेतले कर्कदंश
शब्दार्थाचे आधार निष्फळ, कवितासंग्रह
एकोणिसावा अध्याय
गाजेव कथासंग्रह

लेक नि विवेक ( संकीर्ण संग्रह)
आखिर बचता तो अंधेरा ही है
पोवारी साहित्य मंजूषा,इति.दृष्टीगत नहीं
दिर्घ कविता को हिंदी मा अनुवाद है

अक्षरयात्रा,थिंक महाराष्ट्र
महा.टाईम्स,प्रतिष्ठान,खेळ
माँ पोवारी का कविता लेख
जमाईन महाराष्ट्र भरमा मेळ

इतिहास आढळत नाही
ईनकी दिर्घ कविता
सरकते आहे वाळू
या आवनेवाली सरिता

आय रही से धारा
औरस चौरस लेख संग्रह
अवरुद्धलेल्या रुंद वाटा
सुंदर कविता संग्रह

दिर्घ निरंतर प्रवासी
साहित्य सृजन अभिलाषी
समाज शिक्षक ' *अपराधी*'
सेवा धर्मी अभ्यासी

जय जय माँ भारती
तोरो पुत्र महान
हर जन्म मा गुरु रुप मा भेटे
दे मा यन शेशू ला वरदान


शेषराव वासुदेव येळेकर
सिंदीपार
दि. ०८/०४/२१


आदरणीय कटरे सर
ग्रंथप्रिय व्यक्तीत्व
कर्तव्य कठोर स्वभाव उनको
शब्द शब्दमा् सत्व।।

घरमा् से पुस्तकालय
केत्ताक मासिकका वाचक!
उनक् पुस्तकक् शीर्षकमा से
गहन तत्वचिंतक।।

इतिहास आढळत नाही कि
भइ बउ चर्चा।
एकोणिसावो अध्याय, प्रमेय
मौनला फुटसे वाचा।।

'आखिर बचता तो अंधेरा ही है'
'आदिम प्रकाशचित्रे' न्यारो
'जाणिवेतले कर्कदंश ' वय
उद्बोधक साहित्य सारो।।

कीर्ती अमर साहित्यलक्
कदर बेहन् होये
वाचन लेखन चिंतन संगसंग
उनकि प्रेरणा भाय्।।

पालिकचंद बिसने


ऋण साहित्यिक गण को

ज्येष्ठ साहित्यिक . लखनसिंह कटरे मंजे मराठी, पोवारी, झाडीबोली, हिंदी साहित्य क्षेत्रका अजातशत्रू व्यक्तिमत्व. येनं व्यक्तिमत्वनं आपलं प्रतिभाकं जोरपर साहित्य क्षेत्रमा आपलो खुदकी असी एक अलग पहचान बनायीसेन. आपलं निजी जीवनमा एकपर एक संकट झेलस्यानबी अज पहाळ सरीको अडिग रवनेवालो साहित्यीक आपलं पोवार समाजसाती भूषण सेती.

अॅड. लखनसिंह कटरेजी इनकी कविता लिखनकं शैलीका साहित्य क्षेत्रमा अनगीनत दिवाना सेती. उनकी कविता हर बाचकला खुदको अर्थ देनको स्वातंत्र्य देसेती. बाचक आपलं क्षमता अनुसार कविताको अर्थ हेळसे. येनं कारणलका उनकी एकच कविता हर बाचककं अंगलका अलग अलग अर्थानुवर्ती होसे.

आ. कटरेजी मराठी साहित्य जगतमा एक आदरणीय साहित्यिक सेती. वय जसा मराठीमा रमसेत. तसाच वय हिंदीमाबी मूक्त विहार करंसेती. झाडीबोलीकं संगच मायबोली पोवारीको उनला अधिकच लळा लगीसे. उनकं मार्गदर्शनमा अज साहित्यिक प्रेरणा लेयस्यान पोवारी साहित्यकं सृजनमा लग्या सेती. झाडीबोली साहित्य संमेलनका अध्यक्षपद, झाडीबोली साहित्य संमेलनको यशस्वी आयोजन, पोवारी साहित्य संमेलनको आयोजन असो संघटनात्मकं उनकं कार्यकी अलग छाप पळी से. उनकं हातलका साहित्यको सर्जन असोच होत रहो या मनोकामना......गुलाब बिसेन


 ऋण साहित्यिक गण को

समाज का सेव ,प्रेरणास्त्रोत तुम्ही,
महामाया गढकालिका को, वरदान,
लखनसिंह कटरे से,नाव उनको,
मन मा बसी से,पुस्तक को ग्यान।।

भूत भविष्य की, होसे पहचान,
सत्य की रेखा,चमकसे,
हिंदी,मराठी, पोवारी मायबोली,
अनेक भाषा मा, ग्यान देसे।।

कविता ,कथा संग्रह,सेत प्रसिद्ध,
चित्र, काव्य को ग्यान होसे,
लेखनी से,तुमरी अद्धभुत,
मन को भावला,मान देसे।।

साहित्य की सेव ,पहचान तुम्हीं,
अनेक काव्यसंग्रह,सेत प्रसिद्ध,
बनो सब, प्रतिभाशाली,
असी तुमरी लेखनी,करसे व्यक्त।।

 कु.कल्याणी पटले
 दिघोरी,नागपुर

              ऋण साहित्यिक को
आदरणीय ॲड. लखनसिहजी कटरे पर अष्टाक्षरी काव्य
       लख लख भरी खणी

सदोदित लेखणी ज्या
लेखनकी धार धरे
साहित्यका जाणकार
लखनसिंह कटरे ||१||

तज्ञ तूमरी लेखणी
लख लख भरी 'खणी'
खन खन अगाजंसे
शेष मुकुटको मणी ||२||

खुद सरसोती माय
जिभपर बिराजंसे
शब्द शब्दमा अमृत
गंगा ज्ञानकी बव्हंसे ||३||

धर्म अध्यात्म विज्ञान
रूढी रीती परंपरा
मूर्त रूप विश्लेषण 
ज्ञान विवेकको झरा ||४||

अविरत बाचनको
छंद तुमला भलता
कलमकी शाई भरं 
बोली भाषाका खलता ||५||

भूत वर्तमान भावी
विचारको समीक्षण
गद्य पद्य विडंबन
सत्य को रेखा चित्रण ||६||

विदर्भको साहित्यकी
होये पायजे पैचान
वोको साती सबकूछ
तीव्र मनमा तहान ||७||

झाडीबोली परंपरा
हिंदी मराठी पोवारी
डझनभरकी पुंजी
तरी लेखन से जारी ||८||

लिपी बिना पोवारी ज्या
बोली मिठी अना शुद्ध
मंशा तुमरी पवित्र
करो बोली लीपिबद्ध ||९||

तुम्ही आलराऊंडर
उच्च विद्याविभूषित
जसो बोली जतनला
अवतरी से प्रेषित ||१०||

कई क्षेत्र पारंगत
कई पद विभूषित
गझेटेड ऑफिसर
कई माती परिचित ||११||

ज्येष्ठ तज्ञ साहित्यिक 
कई सत्कार सन्मान
तरी पाय जमीनमा
नहीं तिरको गुमान ||१२||

घर रोजीको कर्तव्य
संग मित्र रिस्तेदार
समन्वय साधक्यारी
तेज कलमकी धार ||१३||

झेलकन एकहाती
कट क्रूर प्रकृतीको
बन ध्यानयोगी साध्य
संवर्धन संस्कृतिको ||१४||

कट टरेव हारेव
तूमी तं कुशलक्षेम
धन्य तुमरी तपस्या
धन्य वू निर्व्याज प्रेम ||१५||

एक लक्ष्यमा अडिग
दीर्घ कर्मकी परिधी
नम्र ऐटदार सिंह 
कहलावं "अपराधी" ||१६||

नहीं मती मोरी सिद्ध
केत्तो करू गुणगान
पामर मी नासमझ
करो मोला क्षमा दान ||१७||

डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
श्रणी साहित्य गण का आम्रो

तुम्ही सेव अम्हरो
 समाज को साहित्य ला वरदान,
कहु कसी करु कसो तुम्हरो उपकार को बखान,
आदर सहीत चरण वंदन करु स्वीकारो अम्हरो प्रणाम,
वोन गांव की माटी ला से वंदन जहा जन्म भयो आदरणीय जी
तुम्हरो ,
वोन माय ला नमन करु जेका सेव तुम्ही लाल 

कसी व्यक्त करु मन की दसा   कौन सो शब्द जोड कर बोलु 
बस दुही कर जोड करू सु शत शत चरण वंदन नमस्कार,

 मोरो राम राम आदरणीय लखन जी कटरे 
साहित्य का तुम्ही सिपे सालार
विद्या बिसेन 


आमरण आमी ऋणी 

स्वाभिमानी ज्ञानवंत 
सरोसती कृपावंत 
सद् विवेकी धारमा 
वैचारिक आसमंत//

लेखनीको धारपरा 
साहित्यकी सृजनता 
शब्द पल्लवी सुगंध 
चैतन्यकी फलश्रृता//

हिंदी,मराठी,पोवारी 
झाडीबोली शब्द लता 
साहित्यिक प्रांगनमा 
कलाकृती सांग गीता//

कर्म, कर्तव्य का धनी 
साहित्यका महामुनी 
दंडवत चरणमा 
आमरण आमी ऋणी//

वंदना कटरे "राम-कमल "
[

           ऋण साहित्यिक गण को

श्री.लखनसिंह कटरे (अपराधी)

साहित्य का भगिरथ
मोरो झाडी का कवी
कला सृजन तपस्वी
सकारात्मक उर्जा का रवी

सेवाव्रती अपराधी
अहंकार को तोडन बंध
साहित्य सृजन, समाजसेवा
निर्मल,निरामय बहतो गंध

शेषराव येळेकर
दि. ०८/०४/२१
साहित्यिक श्री लखनसिंहजी कटरे इनको हिंदी लेख मै, मेरा गुस्सा और बदलाव को पोवारी अनुवाद 

               मी, मोरो गुस्सा अना बदलाव ...!

     मोरो बिह्या को पयले मी, लखनसिंह बहुतच गुस्सेबाज, terror, अना शीघ्रकोपी होतो. मोरा अजी (बाबूजी), माय, भाऊ-बहिन, रिश्तेदार, नौकर-चाकर, दोस्त-संगी, गाव का लोक, सपाईजन मोरो येन स्वभाव को कारण मोरोपासुन हमेशा कतरात होता.

       जब मोरो बिह्या जुळेव तब मोरो पक्को संगी कमलसिंह पटले को गाव-पुतण्या मोरो होनेवालो स्यागील खापा को तिलकसिंह पारधी इनको घरच रव्हत होतो, ओन कमलसिंह को तोंडलक मोरो यव "परीचय" आयककन होतो. ओन खापा मा तिलकभाऊ अना लक्ष्मीदिदी ला मोरो यव "परीचय" देईस अना लक्ष्मीदिदी न् मोरो यव "परीचय" मोरी होनेवाली पत्नी उषा ला देईस अना संभालकर बर्ताव करनसाती सल्ला देईस. येन प्रकारलक मोरी पयचान होत रही अना येकोमा कायी अतिशयोक्ति भी नोहोती.

         जून 1982 मा मोरो बिह्या भयेव. मी बिलकुल बेरापर मांडो मा पोहच गयेव. संगमाच इंद्रादिदी को बिह्या भी होनेवालो होतो, उनको नवरदेव रविन्द्रभाऊ, जेव थोडो टाईम लगावत होता, उनलाबी लवकरच बिह्या को मांडो मा आवनो पडेव. आखिर बेरापरच बिह्या लग्या. दुसरो दिवस सकारीच मी कारलक सौ.उषा को संग (करोली भी संग होती) वापस जात होता. उषा ला उंदोको कारणलक झोप लग गयी अना ओको मस्तक झोपमाच मोरो खांदापर टिक गयेव. मोरोसाती यव एक अद्भुत, अद्वितीय अना एकदम नविन/अनबुझ अनुभव होतो.  अचानक मोला मोरो स्वभाव मा बदलाव महसूस होन लगेव. येन वाक्यमा अंशमात्र भी अतिशयोक्ती या झुठोपन नाहाय. 

     धीरु धीरु मोरो स्वभाव मा बदलाव आवन लगेव. एक टुरी ज्या आपलो माय-बाप, परिवार की लाडकी रव्हसे, अचानक एक दिवस "आपलो सबकुछ" त्यागकर/सोड़कर एक बिलकुल नवो माहौल अना परिसर मा आय जासे. तब ओको "थोडोसो साथी" सिर्फ ओको पतीच रव्हसे. सासु-सुसरा, देवर-नणंद, दुसरा परिवार का सदस्य ओकोसाती एकदम "पराया" रव्हसेत, येन व्यावहारिक सत्य ला कई-बार वर-पक्ष समझ नही सक. गंभीरतालक सोचनो पर या सब परिस्थिती अना नवरी की मानसिक स्थिती समझनो मा आमी सफल होय सकसेजन. जेव व्यक्ती अना परिवार येन स्वाभाविक, natural वस्तुस्थिती ला समझ अना झेल नहीं सक, उनला "बिह्या" करन को अधिकारच नहीं रव्ह, या मोरी postulate (मान्यता) से. असो व्यक्ति अना परिवार न् बिना बिह्याकोच आपलो मनमर्जी लक आपलो जीवन बितायेव पाहिजे, उनला कोनी टुरी अना ओको परिवार ला संकट मा टाकनको अना उनको जीवन बर्बाद करनको काही अधिकार नाहाय. यव #BitterReality (कटु-सत्य) से; येकोसाती टोचे जरूर!!

       बिह्या को बाद टुरा या टुरी को आपलो माय-बाप को प्रति प्रेम अना आपलोपन कमी नही होय, पण उनको प्राथम्य-क्रम मात्र अवश्य बदल जासे अना बदले भी पाहिजे. बिह्या को बाद टुरा ला आपलो पत्नी को प्रति अना टुरी ला आपलो पती को प्रति प्राथमिकता देयेवच पाहिजे, नहीं त् ओन टुरा/टुरी न् बिह्या नहीं करेव पाहिजे, येन बिह्या सारखो पवित्र दस्तुर ला बदनाम करनको उनला अधिकार नही रव्ह/नही रहेव पाहिजे. जिनन भी मानसशास्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनितीशास्त्र (उदा.Every thing personal is political), मानुस को जीवशास्त्र आदि को जरासो भी अभ्यास नहीं करीसेन, वय अज्ञानवश येन निसर्ग-सत्य ला समझनो मा स्वयं मा असमर्थच रव्हसेत, यव दुर्भाग्यवश अना मुर्खतावश #BitterReality (कटु-सत्य) च आय. 

      त् मी मुख्य विषय लक भटक गयेव का? जी नही! मी मुख्य विषय परच सेव. जसो मीन् येको पयले लिखीसेव, जून 1982 को बाद मी धीरुधीरु मोरो अत्यधिक गुस्सेबाज स्वभाव मा बदलाव आनन को प्रयास मा जुट गयेव. What is constant in the world is only "CHANGE". येन निसर्ग सत्य ला अपनायशान मी आपलो स्वभाव ला बदलनको प्रयास करत रहेव. डिसेंबर 1983 मा मोरो पयली टुरी को आगमन भयेव, मी अनखी तेजी लक बदलन लगेव. सप्टेंबर 1985 मा मोरो दुसरो टुरा को आगमन भयेव, मी अनखी भी तेजी लक बदलने लगेव. आता मोरा सब प्राथम्य-क्रम पत्नी-टुरा-टुरी भय गया, जेव पुरो तरिकालक Natural होतो/से! पण मोरा माय-बाप, भाऊ-बहिन, आदि परिवारको सदस्यको प्रति मोरो कर्तव्य अना आपलोपन/प्रेम कम नही भयेव, यदि असो भयेव रव्हतो त् मी मानुस कव्हनलाईक नहीं रव्हतो! परंतु उनको प्राथम्य-क्रम आता बिलकुल Natural तरीका लक बदल गयेव, जेव मोरो द्विदल-बहुदल-कर्तव्य ला अनखी अधिक दृढ करत गयेव. 

      येन संदर्भ मा एक बात अवश्य कहुन/दोहरावून की, "बागवान" या "नटसम्राट" मा संतान परच जेव पुरो "दोष" थोपनो की जबरदस्ती(!) करी गयी से, वा सत्य नाहाय, परंतु सत्य को एक पहलू मात्र से. आपलो जीवन जगन को बाद भी यदि मी आपलो संतान ला आपली Property (धन-संपती) मानकर उनको जीवन मा अनावश्यक दखलअंदाजी अना मनमानी(!) करन लगून, तरी भी संतानलाच दोषी मानन को वर्तमान प्रचलन भविष्य मा भयानक/भयावह रूप लेय सकसे, यला भूलेव नहीं पाहिजे!

           समय अना परिस्थिती तथा वास्तविक वस्तुस्थिती को साथ जेव व्यक्ती, माय-बाप, भाऊ-बहिन, पती-पत्नी, देवर-नणंद, या कोनी भी परिवारको सदस्य आपलो अंदर बदलाव स्वीकार नही कर सक, आपलो स्वभाव तथा बिचारमा बदलाव नहीं आन सक, वु निसर्ग को व्याख्या को हिसाबलक "मानुस" नही होयकर "जानवर" मात्र रयजासे! वु जानवर की व्याख्या ला चरितार्थ करन लगसे!
     I know it is very very Bitter, but it is very very True also. And hence I called it as #BitterReality. (मोला मालूम से की यव बहुत कटु से, पण यव सत्य भी से. अना येकोसाती येला कटु-सत्य कसेत.)
@लखनसिंह कटरे, बोरकन्हार(झाडीपट्टी)-441902.
 पोवारी अनुवाद:- इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया 
 मो. 9422832941

 ऋण साहित्यिक गण को

गोंदिया जिल्हा तालुकाआमगाव
वहा सें बोरकन्हार गाव
मोहन कमलाको संसारमा फुलेव
कुसुम वोको लखनसिंह नाव
हो जी जी रं जी जी जी

रूप राजबिंडा बुद्धिमा चतुर
भर होतो साहित्य गणितपर
प्रथम श्रेणी जिल्हाप्रमुख पदपर
आरूढ भया क्षेत्र पणन सहकार
मोठो आदर्शवादी उषाबाईको भ्रतार
हो जी जी रं जी जी जी

काव्य कथासंग्रह का रचनाकार
चलसे बडी तेज लेखणी की धार 
झाडीबोली साहित्य संमेलनकार
वाचन ग्रहण वृत्ती सें भयंकर
उनला सें सरस्वती को वरद वर
हो जी जी रं जी जी जी

विद्याविभूषित सृजनकार
अभ्यासक ना समीक्षक धुरंधर
अपराधी नाव धारण कर करं 
करंसेती  उपदेश मार्गदर्शनपर
पोवार समाजका आभूषण थोर
 सें धन्य धन्य कटरे परिवार 
हो जी जी रं जी जी जी
                       शारदा चौधरी
                            भंडारा

Thursday, April 8, 2021

साहित्यिक सौ छाया सुरेंद्र पारधी


        

सौ छाया सुरेंद्र पारधी
संभालके घरकी जबाबदारी
दुय टुरीनला हुशार बनाईस
निस्वार्थ मनलका मोरो सखीन
पुरा कार्य लीलया पेलीस

वाचन की आवड जपके
साहित्य की धुरा संभालीस
आईपण उत्तम तरीकालका पेलके
लेखणीकी चुनुक देखाईस

सोज्वळ, निर्मल मन वोको
हासरो चेहरा सदैव रव्हसे
भुरळ टाकसे चतुराईलका
लोभसवानो रूप दिससे

सखी लाभीसे साहित्य क्षेत्रमा
आपुलकीको रीस्तो से
ऋणानुबंध असोच रव्हनदे
यवच गढकालीका चरणमा मांगनो से

मैत्री फुली पोवारी साहित्य उत्कर्ष मा
बहर आयेव नातो मा आमरो
असाच मीलन दे रीस्ता नाता
साहित्यक वारी मा मोरो

सौ.वर्षा पटले रहांगडाले
बिरसी आमगांव
जि. गोंदिया

ऋण साहित्यिक गण को
सौ.छाया सुरेंद्र पारधी

साहित्यिक - श्री मती छाया सुरेंद्र जी पारधी
इनको नाव माच से छाया
आपलो लेखणी लक पोवारी
 बोली ला देसेत काव्य रुपी छाया
 शिक्षिका का इन को व्यवसाय
ज्ञान रुपी तेल देयकर असंख्य ज्योती 
घर घर प्रकाशमान कर
कर सबला ज्ञानी बनाव सेती
ऋणी से इनको पोवार समाज
असंख्य कविता पोवारी मा लिखिन
 ऋणी से पोवार इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष  समूह
 Chandrakumar sharnagat
 साहित्य अना उत्कर्ष द्वारा आयोजित
बस्तरवारीय उपक्रम
सौ. छाया सुरेंद्र पारधी पर चारोळी

                   ऋण साहित्य गणको 
 पोवार इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष द्वारा आयोजित बस्तरवारीय उपक्रम
दिनांक: ०१.०४.२०२१
सौ. छाया सुरेंद्र पारधी पर अष्टाक्षरी काव्य

सबकीच बडीबाई

सबकीच बडीबाई
पुण्यवान छायाबाई
माया देनेवाली आई
जसी वैनगंगा माई ||१||

सदा लगं जेको मन
परंपरा संवर्धन
करं साहित्य सृजन
अना संस्कृती जतन ||२||

पोवारी शब्द भंडार
तीन भाषाको आगार
प्रपंचको तू आधार
माय बापका संस्कार ||३||

तोरो जीवन संघर्ष
सब झेलीस सहर्ष
तरी मनमा प्रकर्ष
भयो घरको उत्कर्ष ||४||

मृदू भाषाकी भूषणा
सुस्वभावी तू सुगुणा
भरी मनमा करुणा
यव पोवारीको बाणा ||५||

नीज समाजको मणी
रूप गुणमा देखणी
तोरो हातकी लेखणी
बने आमला पर्वणी ||६||

डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७

सौ. छायाबाई पारधी
  

मी का करू बखान 
सब गुणईनकी खान, 
छायाबाई पारधी ला 
हात जोडकर प्रणाम. 

बरबसपुरा को माहेर 
ससुराल सिहोरा की, 
सुसंस्कारी, गुणी शिक्षिका 
कवियित्री तीन भाषा की. 

रहांगडाले की टुरी 
बहू पारधी परिवार की, 
सुरेन्द्र भाऊ की नवरी 
माय सृष्टी, समृद्धी की. 

पोवारी, मराठी, हिंदी 
मा लिखसे कविता, 
जसी पोवारी बोली की 
निर्मल, चंचल सरिता. 

                      - चिरंजीव बिसेन
                                  गोंदिया


मुक्तायन काव्यप्रकार मा

कवयित्री सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

मोहक प्रसन्न, आनंदी
सुगंध दरवळत होतो नभी
मी कहेव फूल ला का योव तोरो?
नही बापा ,देख साहित्य निशिगंधा
वा छाया बाई तुमरं सामने से उभी

खेलता बागळता स्वछंदी पशू पक्षी
सांगत होता पुरुषार्थ इतिहास कहानी
जायकन बिचारेव कसो बडेव येतरो ज्ञान?
राहांगडाले परिवार की कन्यारत्न
वा काव्य सरिता समाज शिक्षक कल्यानी

काव्य जतरा की भागीरथी
राहांगडाले परिवार की शान
मी कहेव,फैलेव प्रकाश कसो?
दुय घरं प्रकाश देने वाली
१९९९पासून बनी पारधी घर को मान


काव्य लेखन, ललित ,स्फूट लेख
प्रभुत्व से मराठी,हिंदी,पोवारी
प्रतिभा का वलय उमट्या कसा?
तब भूमिका दिसी भाषा उत्थान को परिस
तेजःपुंज छायाबाई प्रतिभा धन की वारिस


शेषराव येळेकर
दि.०१/०४/२१

कवयित्री--छायाताई पारधी
 टपोरा डोरा गौर वर्ण 
पुनवा को चांद सम मुखचंद्र
रहांगडाले परिवार की कन्या
भ्रतार शोभंसें सुरेंद्र
 
छाया मोठी सद्गुणी 
साहित्य सृजनकार
पोवारी साहित्य जत्रा की
निर्माती रचनाकार

मिलनसार स्वभाव ना
 वानी मा सें मधुर
परिवार ग्रुप मा छलकावं सें
माया ममता को पूर

आय एक अनमोल हिरा
आमरो त्रिवेणी मा को
चमकाये नाव एक दिन
पोवार उत्कर्ष ग्रुप को

         शारदा चौधरी 
              भंडारा
 ऋण साहित्यिक गणको

 कवयित्री--छायाताई पारधी


पोवार समाज से, सबदून न्यारो
संस्कृती वत्सल माई।
असिच आमरी से कवियत्री
गुणीच छायाताई।।

से शिक्षिका ,छंद वू लेखन
वाचन मनन चिंतन
यको परिणाम आमी करसेजन
पोवारी जत्राको मंथन।
अल्पकालमा् उडान भरीस ,पोवारी गगन भरारी।।१।।असिच---

पहचान होसे, हर व्यक्तीकि
वक् साहित्य परलका्
अंतरमनबि साफ दिखसे
प्रेमबि बोलिपरका्
धडधड वा पोवारी बोली,हिंदी मराठी गाई।।२।।असिच --

उज्वल भविष्यकि,से कामना
भेटे ससुरको छत्र
होय सेवा दिव्य संस्कृतीकि
निखरे शिक्षणक्षेत्र।
साथमा् सेजन आमी साराजण,
करो सृजन नवो कायी!।।३।।
असिच आमरी से कवयित्री
गुणीच छायाताई
गुणीच छायाताई

पालिकचंद बिसने सिंदिपार(लाखनी)

छाया
रात आवनेवाली से ,सूर्य रंग बदलावत होतो
भावना को मंच ,कातरवेळ मा सतावत होतो

सुरज सात रंग बिखारके, धरती सोनेरी भयी
भीष्म प्रतीज्ञा तोडकन मिलन ला बुलावत होतो

पालतो घागर मा पाणी भरकन् थकेव मणूष्य
अहंभाव को अंधकार ला रोज सजावत होतो

नाव को झेंडा गाडन झेंडा रंग ढुढकन भयोव
अहंभावी लतपत नाव की पुंगी बजावत होतो

मी रहू या ना रहू सात पिढी पुरे येतरी कमावू 
मुर्दा को टाळू परकी लोणी खानो वू शिकावत होतो

शेषराव येळेकर
दि ०२/०४/२१
 चारोळी 
माय-अजी की पुण्याई 
घरं जनमी बाई 'छाया '
हातकं लेखनी मा प्रगटी 
भाषिक साहित्य की माया  //

वंदना कटरे "राम-कमल "

एक एक शब्द अनमोल ढुंढके
बाई रोज सजावसे या पोवारी
प्रेमभावलक गणगोत जोडके
बडीबाई मनावसे दसरा दिवारी

ऋतुराज

पोवारी को अलख जगाव
लेख साहित्य की शृजनकार
अशी सुसंस्कृत छायाताई 
लेखणी चले जसी सरीताकी धार
             
डी पी राहांगडाले 
     गोंदिया

छायाबाई का उपकार

गयेव मी छायाबाई घर चाय पिवन
पोवारी जत्रा फेसबुक पर देखशान ।
मोरो अंदर को सुप्त कवी जगाईस 
पोवार इतिहास समुह मा जोडशान ।।
इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया
       मो. 9422832941
         
पोवारी अलक जागृत
 छायाबाई सृजनकार
 सुसंस्कृत बाणा उनको
 भाषा संस्कृती जाणकार

     रणदीप बिसने

 लाजवाब तोरी हसरत
प्रपंच अना रोजीरोटी
तार परकी कसरत
दूही संग साहित्य सृजन
लाजवाब तोरी हसरत

डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी"
उलवे, नवी मुंबई
पोवरी साहित्य सरिता
असी आमरी छाया बाई
मराठी,पोवारी, हिंदी मा लिखसे
या समाज शिक्षक साहित्यिक माई

शेषराव येळेकर

 पेशा उनको शिक्षा को 
ममत्व हृदय मा उनको 
शब्द कम पड जासेती
जिवन दर्शन साती उनको

                  - सोनू भगत

श्रावण बाळ 57






श्रावण बाळ

अंध माता पिताकि
करिस सेवा भक्ती
श्रावणबाळ नाव वको
वु आदर्शकि मुर्ती।।

काशीतिर्थला नेत होतो
कावळमा उनला
जंगल होतो भयान
तरी बिवत नोहोतो रातला।।

बाळ होतो श्रद्धावान
मातृपितृ भक्त
कर्तव्यलाच धर्म कव्
त्याग सेवाच फक्त।।

तहान लगी मायबापला               
गयोव पाणीसाठी।
दशरथ राजाबि आयोव होतो
शिकारकरणसाठी।।

बुडबुड आवाज गयोव दशरथला
सोडिस बाण लगेव श्रावणला
पछतायोव दशरथ पिठे मस्तकला
श्रावण कसे देवो पाणी मातापिताला।।

आजबि से आदर्श श्रावण 
लेबि गुण वका
ईश्वरबि मंग प्रसन्न होय
बिना पुजापाठलका।।

पालिकचंद बिसने
सिंदिपार (लाखनी)

पोवारी इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष द्वारा आयोजित
 काव्य स्पर्धा  क्र. ५७
 तारीख :- ४/४/२०२१                 
रोज :- इतवार
   श्रावण बाळ (चाल-मेरे मन डोले)
                        
शशांतनु पिता, ज्ञानेश्वरी माता। बेटा श्रावण कुमार रे,
माय बाप क चरण मा  //धृ //

रात दिन उनकी सेवा कर, मानकर भगवान
आज्ञाकारी बेटा श्रावण,का करु ओको बखान
तिरथ करावन मायबापला, भयगयेव तयार रे //१//

दुय सेनोळी की कावळ बनाईस,बांधीस गाठण गाठी
ओन्ज्या बसाईस मायबाप ला,तीरथ करावंन साठी 
खांदपर कावळ,चले तिरथला तपन भरमार रे//२//

फिरतफिरत तिरथ करावत, चलेव श्रावण बाळ
मायबापला तहान लगी, जसो आयगयेव काळ
कावळ ठेईस झाळ खाल्या,चले तराक पार रे //३//

झारी बुळाईस पाणी मा, वा आवाज बुळबुळ कर
टपेव होतो राजा दशरथ, तब  ओन चलाईस तीर
हायबाप करशान तळफळ बाळ श्रावण कुमार रे //४//

सांगीस हकीगत दशरथ राजाला सोळ देईस प्राण 
मालुम भएव मायबापला त्यागीन उननभी ज्यान
मातृ पितृ की सेवा करशांन भयेव वु अमर रे  //५//

 माता पिता की सेवा करो भेट जाए गा  मेवा
नहीत बादमा पस्तानो पळे मंग करो देवा देवा
नोको दुराओ मायबाप ला सुखी होय संसार रे //६//
                       
डी पी राहांगडाले 
      गोंदिया


 श्रावन बाळ

ले बांधकन कावळ चलेव श्रावन बाळ
माँ बाप की सेवा करे,ना जपे कोनती माळ

अंधा होता माय बाप श्रावन बाळ बनेव दृष्टी
तिर्थ यात्रा मा सांगसे माय बाप ला सृष्टी

तहान लगी गरा सुखेव बेटा पाणी पाज
बाळ श्रावन निकलेव पाणी ला न करता आवाज

बुळ बुळ करे घागर धारन करत होती पाणी
काळ को तिर निकलेव संपी जीवन कहाणी

पाप भयोव दशरथ हात, पाणी पाजन बनेव बाळ
अंध माय बाप समज गया नोहे आपलो श्रावन बाळ

दशरथ वानी सांगता सत्य,माय बापन् सोडीन प्राण
श्रावन बाळ सारखो पुत्र भेटे असो दशरथ मांगे दान

हिंदू संस्कृती से संस्कारी शिक्षक
जो यन संस्कृतीला अपनाये वू बने रक्षक

शेषराव येळेकर
दि ०४/०४/२१
श्रावन बाळ

याद आवसे अज भी वा रात
गणपती उत्सव को आयोजन
राती लगी होती वहां फिलम
आतुर होतो श्रावण बाळ साती मन

राती लगी श्रावण बाळ की फिलम
मोहल्ला भर का देखन आया सब जन
लगी वा चित्रपट होती बहूत सुंदर 
देखता देखता आंसु टपकावत होता नयन

देखेव मी वु पुर्ण चित्रपट 
श्रवाण बाळ हृदय बसेव
झझकोर कर ठेयिस मोरो मण
मात पिता सेवा का होसे मी जानेव

यव कलयुग आय, यहान कोनी श्रावन नहाय
देखेव मी वृद्धाश्रम, भऱ्या पड्या होता
जिनको साती जिवण को रान करिन
वयच् आता वृद्धाश्रम मा रोवत होता।

 विरेंद्र कटरे

श्रवण बाळ

 संतान होय त अशी होय
श्रवण कुमार जशी होय||

जेकी चमक चंद्र - सूर्य जशी होय
अंध माता - पिता की सेवा देखकर
भगवान परशुराम भी नतमस्तक होय
संतान होय त अशी होय
श्रावण कुमार जशी होय||१

प्रवाशी होय त असो होय
माता - पिता की भक्ती देखकर
नाव को चालक मलाह भी
आपलो ला धन्य समझ
संतान होय त अशी होय
श्रावण कुमार जशी होय||२

मन मा संतान को चित्र होय
त अशो होय
आप लो कंधा पर माय बाप ला
कावळ मा काशी को यात्रा को चित्र होय
संतान होय त अशी होय
श्रवण कुमार जशी होय||३

मुर्तिव हो त अशो होय
श्रावण कुमार जसो होय
प्रजा को राजा ला भी
पच्छ तावा होय
संतान होय त अशी होय
श्रावण कुमार जशी होय||४

 चंद्रकुमार शरणागत

      
श्रावण बाल

तीर घुसेव सातामा 
तळफळं वू श्रावण 
मोठो पाप भूपती को 
जरी नवतो रावण//

जबं डोरा देखं सत्य 
नृप दशरथ दुखी 
विधी लिखित घटना 
कसो कोण होय सुखी//

मातृ-पितृ भक्त पुत्र 
सांगं अंतिम कहानी 
कंठ सोक्या माय बाप 
सेती झाडखाल्या रानी//

देखं तालाब जवर 
झारी भरेव सुजली 
जात होतो त् वापीस 
आयी भेटनं या 'कली '//

यात्रा, तिरथ कासीला 
लिजानकी रही ईच्छा 
पाणी पिलावं उनला 
करो पूरी या सदिच्छा//

याद करके मायला 
प्राण सोडसे श्रावण 
धन्य करतव्य भक्ती 
माय भारती पावन//

वंदना कटरे "राम-कमल "
 

 श्रावन बाळ
 काव्य प्रकार  --अभंग

         सेवा
श्रावन बाळकी,मातृपितृ सेवा
नोहोय देखावा संसार मा॥

आपला देव,माय बाप आती 
सेवा दिन राती, करोसब।

बुळगा व्यक्तीला,नाहि रव्ह शक्ती
देवकीच भक्ती, करसेती।।

श्रावनकी सेवा,संसार मा मान्य
धरतीपर अन्य, एक भयो।।

बनो असो बाळ,लेयत सकळ
बदलेव काळ,व‌द्धाश्रम।।

डोराका हे आसू ,हेच सांगसेती
सुख दुःख सेंती , जीवन मा।।

दशरध राजा, चार पुत्र को बाप
ख़रो भयो श्राप,वधकोच।।

काशीकी यात्रा,. अधुरीच रही
श्रावन की भयी,मृत्यु वहा।।

करो सेवा आता,  जगमा अमर
पुंडलिक  कर ,पितृसेवा।।


वाय सी चौधरी
गोंदिया
श्रावण बाळ

आदर्श वान वु बेटा
नाव होतो श्रावण बाळ
वोको करू मी गुणगान
तिन्ही लोकं मा होतो आदर्शवाण !१!

सेवा कर माता पिता की
देख श्यान ईर्षा करत भगवान
पुरी कर हर इच्छा माता पिता की
सुख लेत  होतो स्वर्ग समान !२!

अंध माता पिता की इच्छा
करण की होती पुरी
बनाई के टोपला की कावळ
निकल पळेव काशी दर्शन साठी !३!

धन्य रे वु  बेटा जाय पाणी आननला
लग से छाती  मा महाराजा को तीर
अंत समय मा बी दिसत माता पिता
होता वोयच वोका परमेश्वर !४!

नही देईस श्राप राजाला 
कइस पाणी पीवाय दे माता पिता ला
राजा कोबी डोरा मा आवत आसु
नमन कर राजा पितृभक्तिला!५!

भयव श्रावण बाळ अजरामर
करके सेवाभक्ती मायबाप की
आजही से योजना श्रावण बाळ
मिलसे अनाथ वृद्ध इनला आधार!६!

समाज बंधु बी मोरा आदर्श
श्रावण बाळ को जप सेती
सेवा माय बाप की मनोभाव
अंत समय वरी कर सेती !७!

 अजयकुमार लीलाधर बिसेन




श्रावण बाळ
  

श्रावण बाळ माता पिता ला, 
बसायकर कावडमा, चलेव तीर्थयात्राला. 

लगी तहान पानी नोहोतो जवर, 
कावड मडायकर झाडखाल्या, चलेव पानी आननला. 

झारी डुबाईस पानीमा, बुड बुड
भयेव आवाज, रात को समय 
राजा दशरथ समझेव प्राणी आय. 

सोडीस शब्दभेदी बाण, लगेव छातीवर, 
जोरल् किंचाळके पडेव श्रावणबाळ. 

राजाला ला धक्का बसेव, समझेव धोको भयेव, 
धावत गयेव जवर, अंतिम अवस्था श्रावणकी. 

सांगीस आपली कहानी, माय बाप की अवस्था 
ना सोडीस श्रावणन् आपलो प्राण. 
राजा दशरथ गयेव पानी धरस्यार, 
माय बाप दुही अंधरा, आवाजल् पहिचानीन् श्रावण नोहोय. 

देईन राजाला श्राप, आमर् वानी तुबी 
पुत्र वियोग मा तडपकर मरजो, सोडीन आपला प्राण. 

श्राप फलीभूत भयेव, दशरथ राजा, 
पुत्रवियोग मा स्वर्गवासी भयेव, कर्म की गति महान से 
कर्मफल अज नही त् कल जरूर मिलसे. 


                      - चिरंजीव बिसेन
                                   गोंदिया 


श्रावण बाळ मृत्यू प्रसंग
       (अष्टाक्षरी काव्यलेखन)

बाण   आयेव  आयेव
ओको  बनशान काळ ।
टाह  फोळ 'माय माय'
रोव  श्रावण  वु  बाळ ।।1।।

आयी  राजाला आयकू
ओकी करुण वा वाणी ।
जाय   जवळ,   भयेव 
ओको हृदय को पाणी ।।2।।

देख श्रावण बाळ ला 
शोकाकुल     दशरथ ।
बोल, तोला मारनला 
पापी  सेत मोरा हाथ ।।3।।

मंग    मरता     मरता
कसे राजाला  वु बाळ ।
माय बाप   बुड्ढा सेती
बस्या   बनमा  जवळ ।।4।।

होतो  लिजात  उनला
काशी  धरके  कावळ ।
तीर्थ यात्रा जात होता
वारी   करन   निर्मळ ।।5।।

पाणी आणन आयेतो
झारी   धर     तरापर ।
ओतरोमा  तोरो बाण
छेद  गयो    छातीपर ।।6।।

बाट     देखत   रहेती 
प्यासा वय प॔छीवाणी ।
सेत   अंधरा,   उनला
तुमी पिवावोना पाणी ।।7।।

सांगो नोको  दुर्घटना
जावो वांहा बन बाळ ।
मोरो  बादमा  उनको
करो  तुमीच सांभाळ ।।8।।

धरो झारी, आता जासु
ओको आखरीको बोल ।
पंछी   पिंजरा  सोडीस 
प्राणज्योत  गयी खोल ।।9।।

बाळ    भयेव   अमर
कर  माय  बाप  सेवा ।
करो ओको सम भक्ती
भेटे  आशिर्वाद   मेवा ।।10।।

 इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया
       मो. 9422832941
         दि. 04 एप्रील 2021

   श्रावण बाळ
                        
शांतनु को पोट 
बाळ श्रावण जन्मेव
माता ज्ञानेश्वरी को 
संस्कार मा पलेव

बाळ होतो आज्ञाकारी, 
सेवा मा सदा तत्पर
रातदिन कर सेवा
देख मायबाप मा ईश्वर

मातापिता दुहि अंध
करावजो काशी की वारी
कसो लिजाऊ काशीला
बिचार पडेव वोला भारी

करीस दुय ओळगाकी कावड
देख मायबाप की आवळ
बसाईस माय अना बापला
चलेव तीरथला श्रावण बाळ

तहान लगी ऊनला वाहान
झारी धरके श्रावण गयेव
बुड बुड झारी को आवाज
छातिमा अनामिक बाण धसेव

माय माय की आर्त देइस् हाक
तब दशरथ आयेव्, फेकिस बाण
मोरो बान न लेईस निष्पाप जान
संभाळजो कयकर, सोडिस पऱ्यान

हकीकत जानकर सब
विलाप मा डूब्या वृद्ध
मस्तक पिट पिट रोवती
भया राजा पर वय क्रुद्ध

देईन राजाला उनन श्राप
नाहाय श्रावण आमरो
अग्नी देनला आमला
तसो नाश होये तुमरो

तोरो चीता ला अग्नी देनला
प्रिय पुत्र नहीं रवणको जवर
दुहिन त्यागिन आपलो पंच प्राण
चल्या दूहि स्वर्ग को मार्ग पर

सौ छाया सुरेंद्र पारधी
             श्रावण बाळ
(चाल- मनी धीर धरी शोक आवरी जननी। भेटेन नऊ महिन्यांनी)

तीर आयेव रे आयेव देखो बनके काळ
लगेव छातीमा मूर्च्छित भयेव श्रावणबाळ।।

ज्ञानेश्वरी शांतनु पुत्र।जन्मदाता का अंधनेत्र
ईच्छा उनकी तीर्थक्षेत्र।सेवाभावी वृत्ती पवित्र
          श्रावण बाळ आज्ञाकारी
          मायबापला बसायस्यारी
           निकालीस पैदल वारी
खांदपर धरिस कावळ।मूर्च्छित भयेव श्रावणबाळ

जनकला लगी तहान।खाल्या कावड ठेयस्यान
गयेव पाणी आणन।शरयू नदी काठकन
         पाणीमा डुबाईस झारी
       बुळबुळ स्वरआयकस्यारी
       शर मारीस दशरथनं भारी
लगेव श्रावनला भई तळफळ।मूर्च्छित भयेव
श्रावणबाळ

समजेव मी कोणी हरीण। मुन मारेव बाण
राजा बसेव कवन।माफ कर मोला श्रवण
         तहान्या सेती बापमाय
         जल्दी तू पाणी लिजाय
          तहान दे उनकी बुझाय
कयके देसे प्राण सोळ।मूर्च्छित भयेव श्रावणबाळ

सब हकीकत आयकस्यान।राजाला श्राप देयकन पुत्रवियोगमा सोडजो प्राण।सोडीन मायबापनं जान

              मातापिताच आत भगवान
               करो उनकी सेवासम्मान
               चरणमा उनको स्वर्गस्थान
धन्यधन्य तू लडिवाळ।मूर्च्छित भयेव श्रावणबाळ


                               शारदा चौधरी 
                                     भंडारा

कृष्ण अना गोपी

मी बी राधा बन जाऊ बंसी बजय्या, रास रचय्या गोकुलको कन्हैया लाडको नटखट नंदलाल देखो माखनचोर नाव से यको!!१!! मधुर तोरो बंसीकी तान भू...