Friday, June 25, 2021

साहित्यिक डॉ. प्रल्हाद रघुनाथ हरीणखेडे



नाव: डॉ. प्रल्हाद रघुनाथ हरीणखेडे "प्रहरी"
मूल निवासी:
मु+पो. डोंगरगांव
ता.+जि. गोंदिया 

हाल मुक्काम: 
३०५, साई ऑरा, सेक्टर-१७, उलवे 
नवी मुंबई-४१०२०६
मो. ९८६९९९३९०७/ ९३२६५१९८२८

शिक्षण: एम.एस.सी., बी.एड., एम.फील., पी.एच.डी., सेट   
१० वी वरी - डोंगरगांव
११ वी ते बी. एड. - गोंदिया 
एम.फील.- अमरावती (महा.)
पी.एच.डी.- मुंबई

व्यवसाय: 
१. अधिव्याख्याता प्राणिशास्त्र विभाग (महाराष्ट्र शिक्षण सेवा गट-ब, राजपत्रित अधिकारी, २०१२ पासून) 
२. समन्वयक (Co-ordinator) संगणक शास्त्र 
महाराष्ट्र शासनाचे इस्माईल युसूफ महाविद्यालय, जोगेश्वरी, मुंबई-६०

आवड/छंद: गिर्यारोहण, निसर्ग निरीक्षण, संगीत, हार्मोनिका, ढोलक वादन, गायन, लेखन 

पुरस्कार: शिक्षण क्षेत्रमा
१. शिक्षक होनो विश्वको सर्वोच्च पुरस्कार आय जेको मोला सार्थ अभिमान से, बशरते व्यसन व्यभिचार अवगुण रहित आचरण हो. येनं बातमा मोरो बडभाऊ (स्व. पी. आर. हरीणखेडे) अना मायबाप (सौ. रायाबाई रघुनाथजी हरीणखेडे) इनको संस्कारइनको मी आजन्म ऋणी सेव.
शिक्षकी पेशा को अलावा
* दूय आंतरराष्ट्रीय आंतरविषय परिसंवादको आयोजन (मुंबई)
* परिसंवादमा शोध निबंध अना संपादन कार्य लाई पुरस्कृत (२००९) 
* पाच आंतरराष्ट्रीय नियतकालिकमा शोध प्रबंध 
* ११ राष्ट्रीय नियतकालिकमा शोध प्रबंध 
सहयोग/ सहभाग:
१. सत्यनाम सांस्कृतिक मंडळ (१९९४) 
२. सद्गुरू कबीर बहुउद्देशीय कृती समिती स्थापना (१९९६) 
३. उपाध्यक्ष: राष्ट्रीय पोवारी साहित्य, सामाजिक उत्कर्ष संस्था 
४. पोवार इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष समूहमा काव्य परीक्षण, काव्यतरंग समूहमा काव्यस्पर्धा संयोजन, शब्दरजनी समूहमा काव्य परीक्षण
  
जीवनपट:
१. गावमा खेतीका पूर्ण काम करता करता शिक्षण 
२. १० वी को बाद शिक्षण संग उनारोमा प्याऊ, नर्सरी, शासकीय वनीकरणको काम असा काम 
३. खाजगी शिकवणी, दूध डेअरी अना पीसीओमा काम करके बी.एस.सी.अना बी.एड. संपादन 
४. अध्यापन:
                २०००- २००५ गुजराती शाळा/ विज्ञान महाविद्यालय गोंदिया 
                २००५-२०१० महाराष्ट्र शासनाचे एल्फिन्स्टन महाविद्यालय, मुंबई-३२ 
                २०१०-२०१२ महाराष्ट्र शासनाचे शासकीय महाविद्यालय, कसनसुर, गडचिरोली 
                २०१२-२०१५ महाराष्ट्र शासनाचे एल्फिन्स्टन महाविद्यालय, मुंबई-३२ 
                २०१५- आजतागायत महाराष्ट्र शासनाचे इस्माईल युसूफ महाविद्यालय, जोगेश्वरी, मुंबई-६०

रचना संग्रह:  
१. शालेय सांस्कृतिक कार्यक्रमलाई १२ नाटकं लेखन (पैकी "प्रितिप्रेम" "पक्या इमानी सुक्या बेईमानी" अना "परमानेंट सुख पाहिजे" पुरस्कृत)    
२. 'अबोली' (मराठी), 'स्वर संस्कृती' (मराठी/हिंदी/पोवारी) अप्रकाशित कविता संग्रह (१९९१-१९९६) 
३. आगामी दूय पोवारी कविता संग्रह अना एक पोवारी कथा संग्रह प्रकाशनलाई तयार सेत (नाव/ शीर्षक गुलदस्तामा).
४. लॉकडाऊन कालमा २०० पोवारी कविता, ९७ मराठी कविता, २५ हिंदी कविता, ४५ बोधकथा/बालकथा, २० अलक, ३५ लेख/निबंध/पत्र इत्यादी रचना संग्रह.  
५. हायस्कुल पासनाच सिनेमाको गानाको चालपर कविता, भजन, गाना बनावनों अना गायनको सऊक. 

उच्च शिक्षण संपादन कालमा विज्ञानको क्षेत्र रहेलक २०१९ वरी लेखन, साहित्य/ रचना सर्जनकी सऊक/काम मंघ पड गयेव. २००५ पासना मुंबईमा क्षत्रिय पोवार समाज संगठन लोक जुडेव रहेवको कारण २०२० मा व्हाट्सअप समूह नामे "पोवार इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष" को माध्यमलक पुन्हा साहित्य सर्जनको कामला गती मिली अना निज क्षत्रिय पोवार समाजको उत्थान करनको पावन काममा, अल्पसो काही नोको होय, योगदान देनको सौभाग्य प्राप्त भयेंव. सध्या विविध हिंदी, मराठी अना पोवारी साहित्य समूहमा सदस्यता. 

वैयक्तिक मत:
समाज सर्वोपरी

(मोरो शिक्षण क्षेत्रको थोडासोय योगदान यहां प्रेषित करी सेव काहेका यहां साहित्य क्षेत्रको योगदान ज्यादा अपेक्षित से जो की मोरो जवर अल्पसो से. मी खुदला साहित्यिक नहीं मानू अना असलमा मी खरो साहित्यिक नोहोव. काहेका साहित्यिकको साहित्य क्षेत्रमा भरीव योगदान अना साहित्यको यथायोग्य ज्ञान रवनो जरुरी से जो मोरो जवर नहीं को बराबर से. साहित्य क्षेत्रका जेष्ठ, अनुभवी अना नामवंत साहित्यिकइनको कृपादृष्टी अना आशीर्वादलक येनं क्षेत्रमा थोडी जाणकारी जमा करता करता ज्ञान अर्जित करनको मोरो प्रयत्न चालू से.)

अजका साहित्यिक
श्री प्रल्हाद हरिणखेडे

डोंगरगाव का सुपुत्र आती 
'प्रहरी' हरिणखेडे प्रल्हाद, 
उनको नाव आयककन् 
आवसे भक्त प्रल्हादकी याद. 

एम. एस. सी, बी. एड्. 
सेट, एम.फील, पी. एच. डी, 
हासिल करीसेन उनन् असी 
जीवनमा मोठ् मोठी डिग्री. 

अधिव्याख्याता सेती वोय 
प्राणी शास्त्र विभाग मा, 
अना समन्वयक सेती वोय 
संगणकशास्त्र विभाग मा. 

हार्मोनियम, ढोलक वादन 
अना गिर्यारोहण, संगीत, 
छंदसे निसर्गनिरीक्षण, गायन
अना लिखनो कविता गीत. 

अनेक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार 
नियतकालिक मा शोध प्रबंध, 
काव्यस्पर्धा संयोजन, परीक्षण 
अनेक समूह मा उनको संबंध. 

चिरंजीव बिसेन
गोंदिया

आदरणीय साहित्यिक
 प्रल्हाद रघुनाथ हरीनखेडे

रसिक साहित्यिक प्रहरी पोवारीका 
कथा, कहानी, नाटकका रचियता
कविता को झरझर नित बोहसे झरना
डॉ.प्रल्हाद सुपुत्र सुजाण, रघुनाथ पिता

अधिव्याख्याता प्राणिशास्त्र विभागमा सेती
शासन समन्वयक संगणक क्षेत्रमा विचरण
शिक्षकला विश्वको सर्वोच्च पुरस्कार मानती
व्यसन, व्यभिचार, अवगुणरहित आचरण 

दूय आंतरराष्ट्रीय  परिसंवादका आयोजक 
शोध निबंध अना संपादन कार्य लाई पुरस्कृत 
पाच आंतरराष्ट्रीय नियतकालिकमा शोध प्रबंध 
११ राष्ट्रीय नियतकालिकमा शोध प्रबंध वृत

परीक्षक काव्यस्पर्धाका काव्यतरंगमा संयोजक, 
संघर्षमय जीवन हसतमुख स्वभाव निष्कपट
जीवनकी कठीण धुरा पती पत्नी संभाळत
प्रेरणादायी से उनको जीवन को यशोपट

"प्रितिप्रेम" "पक्या इमानी सुक्या बेईमानी" 
"परमानेंट सुख पाहिजे" पुरस्कृत सेती कृति
पोवारी  कवितासंग्रह होये प्रकाशित आशा
गढ़कालिका आशीर्वाद, आमरो स्नेह रहे प्रति

सौ छाया सुरेंद्र पारधी

ऋण साहित्यिक गणको :- 
श्री प्रल्हादजी हरीनखेडे 
                        
पोवारीको उत्थान साठी,जीवन समर्पित 
श्री प्रल्हादजी  हरीनखेडे,सेती  कार्यरत।।

गोंदिया   तहसील मा  एक गाव डोंगरगाव
माय सौ.राधाबाई,अजीको रघुनाथजी नाव।।

सुखी समृध्द परिवार, ना होतो कास्तकार 
जन्म भएव प्रल्हादजी को,सुंदर संस्कार।।

एम.ए. बी.एड्‌. एम.फिल.,पी.एच.डी करीन
पोवारीको उत्थान साती,उच्च भरारी भरीन।।

कार्यरत ,राष्ट्रीय पोवारी संस्था का उपाध्यक्ष 
पोवारी समाज, की मनमा तळमळ की साक्ष।।

मुंबई मा स्थायिक भया,राजपत्रीत अधिकारी 
शोध निबंध,नियतकालिक,कविता संग्रह भारी।।

महाराष्ट्र  शासन महाविद्‌यालयमा अध्यापन 
छंद से संगीत,गिर्यारोहन,ना निसर्ग परीक्षण।।

हार्मोनियम,ढोलक का वादक ना  गायन गीत
कई नाटक लिखीन ना देईन कवीताला संगीत।।

अनमोल पोवारीको ठेवा जिनन जपीन निर्विवाद
माय गडकालीकाको उनला सदा मिलेआशीर्वाद।।
                  
डी पी राहांगडाले 
     गोंदिया


   डाॅ. प्रल्हादजी हरिणखेडे (प्रहरी)

डोंगरगाव गावका सुपुत्र प्राध्यापक डाॅ. प्रल्हादजी हरिणखेडे गावखेळामा सिकस्यान डाॅक्टरेट बननेवाला (phd) सर्वसाधारण घरका एक सर्वसाधारण परीस्थितीमा निपज्या एक हिरा कवनो लगे असो व्यक्तित्व. ग्रामिण भागमा सुविधाकं अभावमा माणूसकी काही अलग कर देखावनकी इच्छाच मर जासे. पर मनमा रातदिन मेहनत करनकी दृढ ईच्छा रही त् कोणतीच परिस्थिती प्रगतीमा आळवी नही आय सकं येको जितो जागतो उदाहरण मंजे आमरा प्रा. डाॅ. प्रल्हादजी हरिणखेडे. अज शासकीय अध्यापन क्षेत्रमा आपलो अलग ठसा उमटायस्यान साहित्य क्षेत्रमाबी आपली अलग छाप उमटाय रह्या सेत. 

प्रा. डाॅ. प्रल्हादजी हरिणखेडे येव उच्च विद्या विभूषीत व्यक्तित्व येतरो सिधो साधो से का इनकंसंगं घळीभरमाच कोणीकीबी दोस्ती जम जाये. साधो रवनेवालो येव हिरा पोवारी साहित्यकं माध्यमलक सबला सुपरीचित भयेव. अध्यापन क्षेत्रकं संग संग डाॅ. प्रल्हादजी हरिणखेडे आपल् लेखुन प्रतिभालक पोवारी अना मराठी साहित्य समृद्ध कर रह्या सेत. प्रहरी नावलक लिखनेवाला डाॅ. प्रल्हादजी पोवारीमा अलग अलग काव्य प्रकारमा लेखन कर आपली अलग पहचान बनायीसेन.

शिक्षकी पेशाला सर्वोच्च पुरस्कार समजनेवाला डाॅ. प्रल्हाद हरिणखेडेजी राष्ट्रिय अना आंतरराष्ट्रिय परीसंवादयीनको सफल आयोजन करस्यान आपली नेतृत्व कलाबी देखायीसेन. अनेक परीसंवादमा भाय लेयस्यान आपलो संशोधन कार्य सबवरी पोवचायीसेन. अध्यापन, साहित्य अना संशोधनकं बराबर गिर्यारोहण, निसर्ग निरीक्षण, संगीत, हार्मोनिका, ढोलक वादन, गायन असा छंदकी जोपासना करनेवाला एक उच्च प्रतिभाका धनी डाॅ. प्रल्हादजी आपलं सबकं बीच सेत याच आपलंलायी भाग्यगी बात से.

पोवार समाजमा प्रतिभाकी कमी कहींच नहाय ना नोहती. आपलं समशेरलक युद्धभूमी गजबजाय टाकनेवाला पोवार अज खेतीकं बराबर उद्योग, व्यापार, कला, शिक्षण, आयटी, मेडिकल अना अन्य बहुतसारं क्षेत्रमा आपली कर्तबगारी देखायरह्या सेत. या कर्तबगारी देखावनकं बेरा आपली मायभूमी, आपलो समाज, आपली मायबोली इनकं सेवाको भाव मनमा ठेवनेवालो सुसंस्कत समाज बंधूईनमालक डाॅ. प्रल्हादजी एक सेती. उच्ची उडाण लेयकनबी पाय जमीनपर ठेवनेवालो उच्च संस्कारीत व्यक्तीत्व उनकं अंदर विराजमान से. आपलं समाजलायी जेतरो जमे वोतरो योगदान देनको भाव वूनमा सदा चोवसे. येवच भाव उनला अन्य लोकयीनमालक अलग करंसे.

माता सरस्वतीको आशिर्वाद मिलेव येव कवी, हाळाको शिक्षक, सुसंस्कारको धनी व्यक्ती पोवार समाजला सदा प्रेरणादायी से. उनकं प्रतिभालक मायबोली पोवारीको साहित्य क्षेत्र अधिक समृद्ध होये. वूनको शिक्षण, साहित्यक्षेत्रमाको योगदानको आलेख रोजकं रोज बढतो रहे असी माय गढकालीकाला मी प्रार्थना करूसु. 

लेखन - गुलाब रमेश बिसेन
मु. सितेपार , ता. तिरोडा , जि. गोंदिया. 441911
मो. नं. 9404235191
ई मेल - gulab0506@gmail.com


डॉ. प्रल्हादजी हरीणखेडे "प्रहरी"

पोवारी को भाव, मनक् अंदर
कविता सुंदर, लिखसेती।। १।। 

काव्यमा चोवसे, सृजन भरारी
भया वारकरी, पोवारी का।। २।। 

बढायात तुमी, पोवारी को मान
काव्यरुपी धन, देयकन।। ३।। 

प्रल्हाद भाऊसे, गुण को सागर
सात्त्विक बिचार, शोभा देसे।। ४।। 

पोवारी सजावो, लगावसे नारा
पोवारी को हिरा, प्रल्हाद भाऊ।। ५।। 

मौलिक बिचार, काव्यमा लिखसे
शब्द सजावसे, काव्य रुपी।। ६।। 

विद्या विभूषित, बहु मेहनती
काव्य रुपी मोती, सजावसे।। ७।। 

असा बहुगुणी, प्रल्हादजी भाऊ
तुमरा गुणगावु, कवितामा।। ८।। 

डॉ. शेखराम परसरामजी येळेकर
२४/६/२०२१


 डॉ. प्रल्हाद रघुनाथ हरीणखेडे "प्रहरी"
वारकरी पोवारीको
      (अष्टाक्षरी रचना)

वारकरी पोवारीको
नाव "प्रहरी" रतन |
कथा कविता लिखसे
बोली पोवारी जतन ||१||

रघुनाथजीको टुरा
वकी रायाबाई माय |
जन्म सुखदेवटोली
डोंगरगांवको आय ||२||

भेटी जीवन संगीनी
वला डिलेश्वरी बाई |
पुत्र सात्विक भयेव
कुल बढ़ावन लाई ||३||

शिक्षणमा सेट वरी
ओनं बढ़ाईस कद |
नौकरीमा प्राणीशास्त्र
अधिव्याख्याताको पद ||४||

वला शिक्षकी पेशाको
मोठो सार्थ अभिमान |
शुध्द आचरण संग
करसेती शिक्षादान ||५||

सोळा पत्रिकामा वनं
शोध निबंध लिखीस |
पुरुस्कृत होयशानी
स्वप्न सुंदर देखीस ||६||

बारा नाटक लिखीस
सांस्कृतिक खेललाई |
'प्रितप्रेम' अना दुय
श्रेष्ठ पुरस्कृत भयी ||७||

हिंदी मराठीका काव्य
'स्वर संस्कृती' 'अबोली' |
संग पोवारी कविता
भरी साहित्यकी ढोली ||८||

कोरोनाको समयमा
सवा तीनसौ कविता |
हिंदी मराठी पोवारी
बनी ज्ञानकी सरिता ||९||

पोवारीमा एक कथा,
दुय कविता संग्रह |
भविष्यमा प्रकाशित
करनको से आग्रह ||१०||

छंद पहाड़ी चड़नो
निसर्गको निरिक्षण |
हार्मोनिका, ढोलक ना
गीत गायन लेखन ||११||

सत्यनाम, कबीरका
बिचारको से आधार |
उचो उठनलाई भेट्या
मायबाप का संस्कार ||१२||

माय गडकाली संग
वाग्देवीको से आशिष |
लेखनीलं समाजमा 
उंचो उठे वको शिष ||१३||

शब्द रजनी पोवारी
गृप काव्य परिक्षण |
शिक्षालाई रवसेती
बहुमोल मुल्यांकन ||१४||

कथा कविता इनकी
ठाम सांग गोवर्धन |
मायबोली पोवारीको
करे खरो संवर्धन ||१५||

इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया
      मो. ९४२२८३२९४१
      दि. २४ जून २०२१

Saturday, June 19, 2021

साहित्यिक सौ.ज्योति पटले




नाव:-ओमलता कृष्णकुमार 
             पटले.
 टोपन नाव:- ज्योती
  
 गाव:-  बोदलबोडी पो:धानोली 
         ता:सालेकसा जि:गोंदिया
   जन्म ता:- १८/११/१९१४
 जन्म गाव:-*वळद (कटंगटोला)
                पो:अंजोरा 
           ता:आमगाव जि:गोंदिया
  बाबुजी को नाव:- देवाजी 
               तुळशीरामजी परिहार
    धंदा:-  खेती/कपडा दुकान
 आई को नाव :-लक्ष्मी/देवांगणा
  शिक्षण:- १ली ते ७वी पयॅत 
                वरिष्ठ प्राथमिक शाळा वळद
   ८वी ते १० semi-english  साठी आदर्श वि. आमगाव.
 ११वा ते १२ IT sci (full english)  आ. वि. आमगाव.
  B.Sc.:-D.B.Science  college  Gondia
   msc:back
  

 नौकरी:-  मी जास्त मोठी नाहाव अना ज्यादा सिकी नही. पर नौकरी साठी प्रयत्न करेव .प्रायवेट मा Shanti Niketan Convent मा ४ साल लका जाॅब करेव. SBSC ला narsary to 4th standard पर्यंत होती. D.ed नही करेव पण आपलो अनुभवल अना्  हुसारी लका जाॅब करेव. अना सोबत पा्वेट लका  Y.C.M लका final भयव.   आब History  मा M.A. 1'st year चालू से .
  पण सध्या कोरोना को कारण घर से.

   मग ५/५/२०१९ मा बिह्या भयव. 
  कृष्णकुमार पटले संग. 
  

 एक टुरी :_ वेदांशी १५ महीना की से . ९ महीना पासूनच चलसे  अना् बोलभी से.
   
  पुरस्कार:-  मी जास्त मोठी नाहाव पर आठवन से की जब मी४ वी अना् ७वी स्कालरशिप की परिक्षा होयत ७वी मा तालुका  माल पहिली आयी त ८ ते १० पर्यंत हर साल ५००० हजार रू मिल्या म्हणजे पूरा १५हजार
  मग मी १२वी मा होती, तब .
 *सामाजिक वनिकरण*  येन निबंध परिक्षा मा जिल्हा मा पहिली आयी तब ५०००रू को बक्षीस भेटेव.
  ता:१५/०९/२०१२ ला नंबर आयव अना मोरो गोंदिया मा सत्कार होतो वनच दिवस मोरो भाऊ की गणेश विसर्जन मा मृत्यू भयी. *२९/०९/२०१२ ला*  
   

 आवड छंद :- भजन कवनो,  डाॅन्स/नृत्य करनो. भाषण देनो जब convent मा जाॅब करत होती तब मीच संचालन करत होती. 


  लेखन कार्य/पुस्तक इनको काही अनुभव नाहाय जी.
        


 जीवनपट:-  
                       आम्ही तीन बहीन भाऊ होता. मोठी बहीन *शारदा.* मग मोरो भाऊ *महेश* जिनकी गणेश विसर्जनमा मृत्यु भयी. तब पासून मी येन भगवानला त्याग देयव. मी प्रसाद भी नही खाव येन भगवान  की . 
 आपलो जन्म दिवस को दिनही /२१ साल मा स्वर्गवास भया.
 मग मी सबसे लहान *ज्योती*  
 परिवार  मोठो से बाबुजी तिन भाऊ सेत. अना तिन आत्या.
   सध्यामा ४ भाऊ सेत ब्रम्हा भाऊ :- महा. पोलिस.
 विश्वा भाऊ:- वनरक्षक कर्मचारी
  शिवसागर भाऊ:-कपडा दुकान सभांल सेत 
 रामसागर :-विडीओ सुटींग को काम करसे.  काही भाऊ की कमी नही करत. असा मोरा पाचपांडव भाऊ होता . *ब्रम्हा-विष्णू-महेश-राम-शिव* 
 बहीन *:-शारदा-दुर्गा-ज्योती*  .
  सब भगवान की अवतार.

    सौ. ओमलता बाई पटले

बहूदा सन्मानित
पोवार की बेटी
ओमलता बाई ला
पहले शुभेच्छा कोटी

पोवारी कवयित्री
समाज की ज्योती
आपलो प्रतिभा लक
बाटसे मोती

कृष्णकुमार पटले की
ज्योती से सन्मान
परिहार परिवार की बेटी
प्रतिभावान गुणवान

देवाजी,देवांगणा की
अनमोल मोती
पटले परिवार मा आयी
दुय परिवार की ज्योती

देवांशी अनमोल रत्न
कच्ची मटका पकावसे
ओमलता सृजनकार
शिक्षा दान करसे

भजन,नृत्य मा पारंगत
भाषण, संप्रेषण लाजवाब
कष्टमय जीवन तरी
खिलतो महकतो गुलाब

अष्टपैलू व्यक्तिमत्त्व
जसी साक्षात सरस्वती
बालपण पासून अज वरी
शब्द कमी सांगन् महती

भगवान संग विद्रोह
मोला लगी मुक्ताई
उच्च कोटी वैचारिक प्रगल्भता
सगुण निर्गुण की माई

शतदा नमन करु
तुमी पूरो देश को गौरव
पोवार की बेटी
पराक्रमी शौर्यवान

शेषराव येळेकर
 सिंदीपार जिल्हा भंडारा
दि. १७/०६/२१

   
    ऋण साहित्यिक गणको :- सौ. ओमलता पटले
              (चाल:- श्रावण का महिना)
                          
साहित्यिक का ऋण, केतरा  आमरं पर
उत्थान करण पोवारीको,लेखणीला धार //धृ //

गाव वळद /कटंगटोला, तहसील आमगाव
सुखी समृध्द परिवार,माय लक्ष्मी बाई नाव
बाप देवाजी परिहार, दुकानदार/ कास्तकार//१//

तिन होता बहीनभाई, मा  मोठी शारदा बाई 
लहान ओमलता, ना स्वर्ग गएव महेश भाई
दुयच बहिणी रहि,पर से उनको मोठो परिवार//२//

बी.एस.सी.वरी शिक्षण,पुळ शिकनकी आस
५/५/१९ला बीह्या भएव, बोदलबोडी  निवास
पती   भेटेव  कृष्ण कुमार,से  पटले परिवार //३//

कुलमा सुंदर सुशील टुरी  वेदांशी ओको नाव
होतो जोँधरा पानपर दिस, असो ओको भाव
खुशालीको जिवन जग,उनको सुखको संसार//४//

ओमलता/ज्योती बाई ला छंद कविता को
सुंदर कर गीतगायन,झेंडा गाळ पोवारीको
छंद भजन गायन को सुसंस्कृत  संस्कार  //५//

उभरती   कवीयत्री,लेखिका,गायन गीत
रहे शीशपर सदा माय कालीकाको हात
याच रहे शुभकामना ,दे पोवारीला आधार //६//

              
डी पी राहांगडाले
      गोंदिया


सौ. ज्योती पटले

ज्योती जगमगाय रही से
आमरो समूह की जान
कृष्ण की राधा मनभावन
पटले परिवारकी से शान

स्वभाव इनको खडखड नदी
बहुमुखी प्रतिभा की धनी
मनको भाव नहीं लुकावत
भजन, नृत्य मा पारंगत बनी

सदा हासतो मुखमंडल
लाजवाब भाषण, संचालन 
घरदार की धुरा संभालसे
खिन नही लग चित्र बनावन

पाच भाई की बहनाई लाडकी
माहेर ईनको से भरेव पुरेव
पोवारी मा लेख लिखाण
भरभर आवसेत मनको बाहेर

असिच सदा हासत खेलत रहो
पोवारी की धूरकोरी बनो
गढकलिका को आशीर्वाद लक
पोवारी को खेतमा नित रमो

सौ छाया सुरेंद्र पारधी


अज की साहित्यिक
ओमलता कृष्णकुमार पटले
.  
ओमलता कृष्णा पटले 
ज्योती से टोपण नाव, 
वळद को आय माहेर 
बोदलबोडी से गाव. 

लक्ष्मीबाई ना देवाजी भाऊ 
आती माय ना बाप उनका, 
मोठी बहीण शारदा, दुर्गा 
सेती चार भाई बी उनका. 

वळद आमगाव गोंदिया मा 
भयी से उनकी पूरी पढाई, 
मन क् लगन लका उनन् 
बी. एस्सी. की डिग्री पाई. 

अनेक पुरस्कार मिल्या 
शिष्यवृत्ती मा भई सफल,
मेहनत मा से विश्वास 
वोको भेटसे उनला फल. 

भजन, डान्स को से छंद 
भाषण, संचालन मा अग्रेसर, 
वेदांशी की माय कहलावसे 
कविता बी करसेती सुंदर. 

. . . . . . . . . . . - चिरंजीव बिसेन
. . . . . . . . . . . . . . . . . गोंदिया


ज्योती पटले

मावशी मोरी ज्योती बाई
खासे चटणी को भेद्रा
मंझली माय उनकी लाडकी
नाव से उनको शुभद्रा

ब्रम्हा,विष्णु,महेश,शिव की
बहीण या बडी लाडकी
गुणी अना कर्तृत्ववान
चित्रकार से मोठी हाड की

माय को वाडा पुढं
महाबीर को मोठो मंदिर
किर्तन, भजन ,आरती
मोरो मावशीला आवसे सुंदर

सदा रवसे हसतमुख
भळभळ्या से स्वभाव
वेदांशी बेटी होनहार
नाहाय कोणतोच अभाव

सौ.वर्षा पटले रहांंगडाले
गोंदिया

ज्योती पटले
जगमग करती ज्योति 
बनी कृष्ण कि राधा
बहु गुनी बाई हे 
हुशार अति ज्यादा

तीन भाई कि लाडली
हसमुख से स्वभाव
भजन मा रमसे
ओमलता से नाव

पिता देवाजी परिहार
माय लक्ष्मी बाई
वळदकी टुरी गांव
बोदलबोडी बहु बनके आयी

नर्सरी को टूराइनला
करसेत शिक्षा को दान 
मायबाप कि गुनी बेटी
से बड़ी कर्तुत्वान

वेदांशि टुरी भयी 
से मोठी गुनवान
लहानसो उमर मा
होसे गुणगान

हासरो स्वभाव तुमरो 
सदा रहो खुश
वाघ्देवी कृपा कर
हासत रव मुख

स्वप्नाली दुर्गेश ठाकरे

 ओमलता पटले

लक्ष्मी देवाजी को घरं
प्रज्वलीत भई ज्योती
चांद सो सुंदर मुखडा
बहुगुणी  सें  अति

शारदा ओमलता महेश 
मायाप्रीत का बहिणभाई तीन
भाई को गम मा बहीण नं
धरिस अबोला भगवान सीन

वळद की कन्या
बी.एस.सी. भई
कृष्णकुमार की नैनूला
वेदांशी की आई

भजन गायनको
छंद सें तोला 
दे साहित्य को वारसा
पुढ्को पिढीला

पोवार की बेटी तू
लगावं पोवारी को नारा
पोवार समाजमा चमकजो
बनके उभरतो तारा

                 शारदा चौधरी 
                     भंडारा


ज्योती पटले


साहित्यकी जगमग ज्योती
तनया देवांगणा अन् देवाजीकी
बनी कृष्णकुमार की भार्या
आई कहलाई वेदांशिकी

बाल्यकाल पासून से गुणवान
कलागुनकी से वा खान
विद्याको  भेटेव असो   वरदान
स्कालरशिपमा मिळाईस मान

विद्यादान से सबसे मोठो दान
लहान बालक करीन सुजाण
सदा हसतमुख चेहरा तोरो
दुर करसे बाच्चाईनको ताण

माता गढकालिकी कृपा
सदा सर्वदा बनी रहो
पोवारिको उत्थान की
अशीच कास धरती रहो

सौ उषाताई रहांगडाले

Tuesday, June 15, 2021

बहावा/अमलतास६७


पोवार इतिहास, साहित्य अना उत्कर्ष समूह द्वारा आयोजित काव्यस्पर्धा

 बहावा/बाहा
  

बहावा को झाड 
मध्यम ऊंचाई को, 
हिवरा हिवरा पाना 
पिवर पिवर फूल को. 

फूल को रंग गर्द पिवरो 
शेंग वोकी लम्बी लम्बी, 
मोटी फल्ली मुंगना की 
होसेत जसी लम्बी लम्बी. 

फल्ली क् गिदा की चाय 
पिवसेती पोटदर्द वाला, 
फूल का भजिया बी 
बनसेती बहुत निराला. 

साप किटूरला आवन साती 
रोकसेती बहावा की शेंग, 
मुहून छपरी क् बरन मा 
लगावसेती वोकी शेंग. 

                   - चिरंजीव बिसेन
                               गोंदिया

           बाहा  /  अमलताश
                   
खेत क धुरोपर बाहा को झाळ।
लंबा लंबा लग्‌या तुरा………।।
पिवरा पिवरा फुल लग्‌या सेत ।
दिससेत मोठा साजरा……...।। १।।

फुलकी बनाओ भाजी ना भजिया।
ओको हयता भी होयजासे…….।।
लकडी चांगली वारगयी त।
इंधन क काम मा आयजासे ।। २।।

बाहा को झाळ से बहुगुणी ।
बहु उपयोगी रव्हसे……...।।
जळ,खोळ,पान,फुल,शेंग  ।
सब काम मा आवसे………।। ३।।

आयुर्वेद की दिव्य दवाई.. ।
टॉनिक को काम करसे... ।।
पानाको रस ना पेस्ट भी...।
जलन सुजन काम आवसे ।। ४।।

जळी जलायकर धुव्वा लेवो।
सर्दी,खासी परायजासे…...।।
जळी  को काढा  पिवाओ।
बुखार भी उतर जासे…….।। ५।।

असो बाहा को झाळ उपयोगी।
ना से मोठो वु गुणकारी…...।।
मानव जिवन सुखी करनला ।
झाळ  लगाओ नरनारी…….।। ६।।
            
डी पी राहांगडाले
     गोंदिया
 बहावा

बसंतको कोवरो सोनेरी तपनमा
कंचनसम सुंदर बहावा फुलेवं
पिवरा धम्मक फुलं देखके
मन मोरो मयुरवानी झुलेवं

हिरवीकंच पर्णसाडी नेसके
बोहलापर चढसे  नवरी नार
हल्दीलक माखिसे फुल पिवरो
नटीसें जणू देखो करके शृंगार

पंचपाकळी फुल झुकेव भूपर
लटकीसे जसो पिवरो झुंबर
फुलंसे झाड दरी कपारमा
लंबी शेगमा सें सुगंधी गर

बहावाको झुकाव देखके
होसे संत महात्मा को भास
राजवृक्ष फुलेपर साठ दिसमा
बारीश आवंसें हमखास

फुल का गुच्छा लगसेत
दिवारी का आकाश कंदील
सें औषधी गुणी झाड येव
फुल भजीया मोकर काबिल

                   शारदा चौधरी
                       भंडारा

बहावा/ वाहवा/ अमलतास
शिर्षक: बिह्याकी बाशिंग
(षडाक्षरी काव्य)

गुच्छा बहावाको
बिह्याकी बाशिंग
सोनोका डोरला
नथनीकी रिंग ||१||

तूर्रा ओलंबती
पाकळीमालका
जसा इंद्रधनू
अनादी कालका ||२||

खोड मजबूत
डेरी फाटालाई
तलवार शेंग
रोगमा दवाई ||३||

पशु मानवकी
पंचांग औषधी
रस धुंगा फकी
दूर करे व्याधी ||४||

बहावाको बिना
अधुरो बसंत
रंगीन सिरटी
होसे शोभिवंत ||५||

फुलका आयता
भाजी अना भज्या
किडा पाखरूभी
मारं सेती मज्या||६||

डॉ. प्रल्हाद हरीणखेडे "प्रहरी"
डोंगरगांव/ उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
बहावा
   (अष्टाक्षरी)

ग्रीष्म ऋतूमा फुलसे
देसे  मनला ओलावा |
मस्त  पिवरा सोनुला
मन   मोहसे  बहावा ||१||

कर्णफुल  डुल  वानी
कानमाका  अलंकार |
गुच्छा फुलका सोनेरी
जसा   नवलखा  हार ||२||

आव  वाराकी झुळूक
कर   मंत्रमुग्ध   बास |
रस   पिवनला   गर्दी
किट पाखरुंकी खास ||३||

फुल मोठा बहुगुणी
करसेती    तरकारी |
भज्या तेलमा तरके
खानलाई गुणकारी ||४||

पान  हिवरा  कोवरा
आयासेत    फुलसंग |
बिच बिचमा झाड़को
दिस   मनोहारी   रंग ||५||

जरे  पर    जखम ला
पान   मोठो  गुणकारी |
दुर   कर    ताप  अना
सुखी खाँसीको विकारी ||६||

लंबी  लंबी  गोल शेंग
पोटसाती    गुणकारी |
बारतीन    टुरु   अना
प्राणीसाती  हितकारी ||७||

बहावाकी साल जड़ी
आव  दवाईको काम |
धुंगी काढ़ा भी करसे
ताप  सर्दीला  तमाम ||८||

बनसेती  खोड़लका
खेतीमाका अवजार |
जरावन आय जासे
काम लकड़ी बेकार ||९||

असो बहुगुणी झाड़
लगावोना   एकतरी |
देख  हिरवो  श्रंगार
तृप्त   होये  धरतरी ||१०||

इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया
      मो. ९४२२८३२९४१
      दि. ०६ जून २०२१

 

बहावा,अमलतास

उजळी सेत रान मा,लक्ष लक्ष कांचनज्योती
आरगवध,राजव्रूक्ष,सुवर्णक नाव तोरा केता सेती

रंगरूप साजीरो भेटीसे सुंगध को मोठो वसा
अस्सल देशी व्रूक्ष तु,जप यूगयुगको वारसा

निसर्गको वसंतोत्सव मा शोभसेस दिमाखदार
सोनपुष्पको अलंकार लेयके ऋतुको साक्षीदार

दिर्घफल तोरो औषधी गुणलका भरीसे ओतप्रोत
रोग व्याधी भांजसे जल्दी असो गुणकारी तत्त्व

कसो करीस बहाल निसर्गन तोला सारो काही
बहावा तोला देखु केती मोरा डोरा थकत नही

 सौ.वर्षा पटले रहांंगडाले
मु.बिरसी ता.आमगांव
जि.गोंदिया

साहित्यिक पालिकचंद बिसने




पालिकचंद लक्ष्मण बिसने
         मु.सिंदीपार पो.सालेभाटा ता.लाखनी जि.भंडारा

*शिक्षण*-बी.ए.डी एड

*नौकरी*-स.शिक्षक जि.प.उच्च प्रा.शाळा मिरेगांव पं स.लाखनी जि.भंडारा 

*पुरस्कार*--१)साहित्य साधना पुरस्कार २०१८ (राष्ट्रसंत विचार साहित्य परिषद चंद्रपूर)

२)साहित्य लेखन प्रेरणा पुरस्कार २०२०(जीवन गौरव परिवार भंडारा प्रा.शिक्षक विभाग ता.लाखनी)

३) डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम वाचन प्रेरणा पुरस्कार  २०२०(मदत संस्था नागपूर)

४)प्रेरणादायी जीवन सत्कार सोहळ्यात स्थान २०१९ (शिवतीर्थ मानव कल्याणकारी संस्था खराशी)

५) केंद्र स्तरीय आदर्श शिक्षक पुरस्कार 
    पं सं गोरेगांव जि. गोंदिया २०१३

६)  म .फुले आदर्श शिक्षक राष्ट्रीय पुरस्कार २०२०  (शब्दगंध समूह व ग्रंथमित्र युवा मंडळ औरंगाबाद)


आवड
१) बासरी
२)हार्मोनियम
३)काव्यलेखन
४)निसर्ग पर्यटन
६) नैसर्गिक शेतीवर प्रयोग
 
*लेखन कार्य*

१) 'बन तूच आता देव 'काव्यसंग्रह प्रकाशित

२)संभलकर रवनं 'पोवारी नाटिका

३)वलो वलो भयोव मी! पोवारी नाटिका

४) बिबट्या आला रे! (झाडीबोलीत)
   एकांकिका

५)  झाडीबोलीत, प्रमाण मराठीत, पोवारीत काव्यलेखन.

६)झाडीबोली फेसबुक पेजवर    *अमराई* विषयावर स्थंबलेखन

७)   वृक्षारोपण गावच्या स्मशानभूमीत 
टिमसह लावणे.(सा.कार्य)

८) गुणवंतयको सत्कार सहभाग

९) झाड़ी बोली साहित्य शाखा सिंदीपार (अध्यक्ष)

१०) स्वातंत्र्य वीर सावरकर वाचनालय को संस्थापक सदस्य 

झाडीबोली साहित्य शाखा सिंदीपार, स्वातंत्र्य वीर सावरकर वाचनालय अना प्रतिभादर्शन समूह द्वारा गावमा प्रतिभावंत,गुणवंत,उत्तम शेतकरी ला प्रोत्सहानपर सन्मान अना प्रोत्साहन को समारंभ

११) मुलांना कलेची आवड लावणे
  इ.
१२)  विवेकानंदावर काव्यलेखन(अप्रकाशित)
      खुदको जीवनपट

पिताजी-लक्ष्मण दाजी बिसने
भाऊ--कंठीलाल बिसने (गायक ड्रामा)
बहिण--१)मिलन कृष्णा बोपचे (सालेभाटा 
           २)रेखा सत्यवान रहांगडाले(सातलवाडा)

पुतण्या--रणदिप बिसने भोसला मिल्ट्री स्कूल नागपूर मा शिक्षक से ।

पत्नी--सौ .प्रिती /बबिता बिसने  C. B.S. C. little flower  pri. school lakhani

    टुरो--पियूष (गिटार सिकसे)
टुरी --तेजश्री (हार्मोनियम सिकसे)
 आहार-शुद्ध शाकाहारी
प्रेरणास्रोत--स्वामी विवेकानंद

लाखनी तालुकामा उत्तर दिस्यामा बाराक किमी अंतरमा् आमरो सिंदीपार गाव से लोकसंख्या ७००-८०० क् आसपास.
     सिंदीपार एक सांस्कृतिक गाव से .मोरो अजी(वडील) शाहीर होता.ढोलक सुंदर बजावत होता ,पहाडी आवाज होतो ,वय कवीबी होता.वय पहिली सिक्या होता.पर वाचनको ध्यास होतो.
 गावमा् दिवारीमा दंडार ,नाटक होसे.
आमी मनोरंजन मुहून यन् कलाप्रकारयला देखत होता. एक वारसा मोला भेटेव.

मोला बासरी प्रिय होती .खेतमा् इतवूत जायकन् बासरी एकलव्य स्टाईललक् थोडी सिकेव .आब् काही गाणा बजायता आव सेत .हार्मोनियमकि एकदूय परीक्षा देयेव प्राथ.ज्ञान लेयेव.


     आमर् सिंदीपार गावका एक गुणवंत ,शीलवंत पोवार को टुरो डॉ. शेखरामजी येळेकर सर इनको प्रभाव पुरो यरीमा् होतो . गावसाठी वय आबबी मोठा आदर्श सेती .शिक्षण क्षेत्रमा् नाव कमावनो जरुरी से मोलाबी लगेव .मंग मी अना् आमरं वर्गका विद्यार्थी जब वय गाव आवत तबनी गणित साठी अना् मार्गदर्शन साठी उनक् घर् आमी जात होता .आमला प्रेरणा भेटी .चांगला मित्र भेटत गया मंग मी १९९८ला भजेपार (सालेकसा ता.) जि.प.मा शिक्षक लगेव.

    आमर् सिंदीपार गावमा् शेषराव वासुदेवजी येळेकर एक नाव से .वला आमी एक्सप्रेस कसेजन .यन् उपक्रम का वय आयोजन करसेती .आमरंसाठी खुशीकी बात से .

डॉ. शेखरामजी येळेकर सर ,मी ,ररणदिप,शेषराव येळेकर माय पोवारी क जमे वतरी सेवामा् सेजन ।

बाकी तुमर् आशीर्वाद लक चांगलोच से.

बहोत काम बाकी से माय गडकाली,माता सरोसती क् कृपालक अना् कडी मेहनत लक कार्य होत रहे.

        ।।जय राजा भोज।।

~~~~~~~~~~~~
सन्माननिय कवी श्री पालिकचंदजी बिसने

उठायकर लेखनी करबिन लिखान
साहित्यिक महोदयला मोरो प्रणाम
बहु पुरस्कार का गुरूजी धनी
सम्पूर्ण समूह से तुमरो ऋणी


नैसर्गिक शेतीमा प्रयोग अना
हार्मोनियम,बासुरीको नाद 
काव्यलेखन,निसर्गमा फिरनकी
गुरुजिला साद

दुय बहिनी दुय भाई
चरित्र गुरूजीको बहुआयामी
बाबूजी लक्ष्मन बिसने नाव
सिन्दिपार गांव बडो नामी

डॉ शेखरामजी येलेकर आदर्श
स्वामी विवेकानंद प्रेरणास्त्रोत
शुद्ध शाकाहारी आहार 
गुरूजी बहुत गुणवंत

मन मा आस पोवारी को उत्थान
गडकाली मायको सदा आशीर्वाद
निरंतर कार्य करनसाठी तत्पर
पूरी होयेत मन कि हर मुराद

स्वप्नाली दुर्गेश ठाकरे

         कवी श्री पालिकचंद लक्ष्मण बिसने.
                     चाल:-मेरे मन डोले

लाखनी तालुका मा, भंडारा जिल्हा मा
जहां साहित्यिक की बहे धार रे
असो से एक गाव सिंदीपार ।। धृ।।

पिता लक्ष्मनजी बिसने,होतो सुखी कास्तकार
दुय   टुरा ना  दुय टुरी   सुख   को  गा संसार
जन्मेव पालीकचंद ,पोवारीको से छंद
सुखी समृध्द परिवार रे  ।। १।।

बी. ए. डी. एड्‌ वरी शिक्षण,शिक्षकी को पेसा
पीयुष,तेजिश्वरी,टुरा टुरी,लावण्य पुतळा जसा
पत्नी प्रीतीबाई, गुण ला कमी नही
लगे संसारला हातभार  रे ।। २।।

2018 साहित्य साधना,2019 जीवन सत्कार
2020 ला लेखन प्रेरणा,अब्दुल कलाम पुरस्कार
जीवन को सँघर्स, सन तेरा ना बिस 
आदर्श शिक्षक पुरस्कार रे.।। ३।।

बांसरीवादन,हार्मोनीयम,काव्यलेखन करसेती. 
छंद से उनला पर्यावरण को,ना नैसर्गिक खेती.
कर वृक्षारोपण,मीलकर सब जन
कर पर्यावरण उध्दार रे.।। ४।।

सिंदीपार की पावन भूमी जेव से पोवारी गाव
जन्म भएव शेखरामजी,रनदीप,ना शेषराव
पालीकचंद जी वाहा, पोवारीकी जहां
बहत रहे नित धार रे ।। ५।।

उ-थान होय मायबोलीको,शान बळे पोवारी की
मायबोलीला उच्चो उठावन कोरकसर नही बाकी
गडकालीकाको साथ, रहे मस्तक पर हात
कर भवसागर पार  रे।। ६।।
       
डी पी राहांगडाले 
   गोंदिया 
१०/०६/२०२१


अज का साहित्यिक - श्री पालिकचंद बिसने


सिंदीपार गाव से रतन की खान, 
वहॉ निवास करसेती लक्ष्मणजी किसान. 
उनक् पोट् उपजेव पुत्र पालिकचंद, 
आपल् कार्यल् से लोकइन को मनपसंद. 

शिक्षक गोंदिया जिल्हा मा भजेपार, गोरेगाव, 
आब सेती लाखनी तहसील मा मिरेगाव. 
कला प्रिय कई कला इनका ज्ञाता, 
बांसुरी, हार्मोनियम वादन सीन नाता. 

पशु पक्षी क् आवाज की करसेती नकल, 
हात मा लेयेव कामला करसेती सफल. 
कई पुरस्कार इनका सेती मानकरी, 
पोवारी साहित्य लिखकर भया धुरकोरी. 

'बन आता तूच देव' काव्यसंग्रह प्रकाशित, 
नाटीका, एकांकिका, कविता सेत रचित. 
झाडीबोली मा अमराई विषयपर स्तंभलेखन, 
श्मशान भूमी मा बी करसेती वृक्षारोपण. 

झाडीबोली साहित्य मंडल सिंदीपार का अध्यक्ष, 
स्वातंत्र्यवीर सावरकर वाचनालय का संस्थापक. 
पियुष, तेजश्री टुरा टुरी, कंठीलाल भाई, 
प्रीति बाई का पति, दांडेगाव का जवाई. 

                      - चिरंजीव बिसेन
                                  गोंदिया


सर पालिकचंदजी बिसने

कलाकारको बेटा,  उनक् घरं  कला नांद
कलाक्षेत्रमा परविन भयेव, सर पालिकचंद

खेलनमा बाचनमा सदा गायनमा धुंद
नम्रताको धनीसे, सर पालिकचंद

संगीतको प्रेमीसे, बासूरीको छंद
टुरूपोटु को लाडलो से, सर पालिकचंद

लेत रवसेउपक्रम, पुरो होयकन धुंद
नाटकको बी दिवानो से, सर पालिकचंद

पोवारी प्रसार करनो, प्रिय वको  छंद
संस्कार रुजावसे,सर पालिकचंद

 सेत उनका आदर्श, स्वामी विवेकानंद
समाज जगावसे, सर पालिकचंद

उनको सहवास आमला, लग् आनंदी आनंद
सिंदिपारको हिरा से, सर पालिकचंद

डॉ. शेखराम परसरामजी येळेकर नागपूर 
१०/६/२०२१

पालिकचंदजी बिसने

संगीत को झिरा
(अष्टाक्षरी रचना)

काव्य लेख पर्यटन
नाना कलाको मालिक
गीत मधुर संगीत
असो बिसने पालिक ||१||

झाडीबोली मराठीमा
पोवारीमा काव्यछंद
मिठो बासुरीको नाद
देसे सबला आनंद ||२||

स्वामी विवेकानंदजी
प्रेरणाको मुख्य स्थान
शुद्ध शाकाहारी वृत्ती
उच्च से जीवनमान ||३||

प्रकाशित साहित्यलं
होसे समाज उत्थान
असो आदर्श शिक्षक
करं पोवारी सन्मान ||४||

चार सिंदीपार रत्न
इनमालं एक हिरा
बहावत रहो असो
भाऊ संगीतको झिरा ||५||

डॉ. प्रल्हाद हरीणखेडे "प्रहरी"
डोंगरगांव/ उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
[6/11, 8:43 AM] Sheshrav Yedekar: अजका सन्माननीय साहित्यिकःपालिकचंदजी बिसने

हरहुन्नरी दादा आमरा
बासरी वादन आवडतो छंद
सुमधुर संगीत पडताच
कान होसेत मस्त धुंद

कविता रवसेत सरस
बोधप्रद अना प्रेरणादायी
देसेत आमलाबी प्रेरणा
असा आमरा प्रेमळ भाई

सिंदीपार जन्मगांव
करीन प्रसिद्ध साहित्यलका
प्रगतीको रस्तापर
झेप लेईन काव्यलका

क्रूतीशील उपक्रम राबावसेत
इश्कुल मा आपलो हमेशा
विद्यार्थी प्रिय गुणवंत शिक्षक
भेटीसे गावको उनला वारसा

सौ.वर्षा पटले रहांंगडाले
गोंदिया


आदरणीय साहित्यिक:- कवी पालिकचंद बिसने
पोवाडा

आदी वंदू गढ़कालिका
दुजा स्मरु श्री गणेश
महाकाल शिव महेश
            हो जी जी रं जी जी

गाव सिंदीपार
पालिकचंद शूर वीर
बाप लक्ष्मण शाहिर
कला को बहार
मानसू आभार.    .....
हो जी जी रं जी जी

कला का पूजारी
दिल से पोवारी
ओठपर मधूर बासरी
काया हासरी
हातमा विद्या कुसरी
केता गाऊ गुणगान,बात साजरी ..... हो जी जी रं जी जी

पालिकचंद नेमबाज
उत्तम शिक्षकी ताज
संगीत मा तरबेज
विवेकानंद सरताज
पूरी तरुणाई करसे नाज..
हो जी जी रं जी जी

बन तूच आता देव
झलकसे माटी अना गाव
वृक्षारोपण की देसेत छाव
झाडीबोली का कवी असो नाव
संस्कारीत भयोव सिंदीपार गाव....
हो जी जी रं जी जी

उनकी भार्या सौ.प्रिती
टुरा टूरी दूय मोती
प्रेमको पारिवारीक नाती
विद्यादान की तेवसे ज्योती..

हो जी जी रं जी जी

साहित्य साधना पुरस्कार
साहित्य लेखन प्रेरणा पुरस्कार
डॉ ए.पी.जे अब्दुल कलाम वाचन प्रेरणा पुरस्कार
प्रेरणादायी जीवन सत्कार
केंद्र स्तरीय आदर्श शिक्षक पुरस्कार
म. फुले आदर्श शिक्षक राष्ट्रीय पुरस्कार
असो बहू गुणी,आयामी पोवार...
हो जी जी रं जी जी

कवी पालिकचंद समाज शिक्षक
वय आदर्श शिक्षक
कलाका जाणता रक्षक...
हो जी जी रं जी जी

उनकी काया से चंदण
उनको सहवास नंदनवन
भारत माता का अमुल्य धन
आध्यात्मिक पुरुष महान
उनला करुसू त्रीवार वंदन..
          हो जी जी रं जी जी

शेषराव येळेकर
 सिंदीपार
दि.10/06/21


   प्रतिभावान काकाजी

जिल्हा भंडारा लाखनी वहान
सिंदीपार ग्राम की माती महान

शिक्षण कृषी धुरीण की खाण
समाज संस्कृती राष्ट्र की से जाण

लक्ष्मण शाहिर गुणी कलाकार
संतान पालिकजी निकल्या हुस्यार

घर् नोहोती कोन् अनोखी प्रेरणा
डाँ.शेखरामजी मंग भेट्या गावमा

प्रभाव पडेव स्वामीजी को खास
डाँ.शेखरामजी की रही संग आस

शिक्षक बनस्यार् बढी मनः चेतना
विद्यार्थी विकास की जगी संवेदना

लेखन भयेव् सुरू संग ग्रामचेतना
वर्ग बनेव प्रयोगशाला शारदा वंदना

गुणी ज्ञानी दुई भाई जी विशेष
गुंज रव्हसे श्रम भक्ती ना स्वदेश

शाळा मां उपक्रम की से रेलचेल
छात्र अना पालकसंग जमसे मेल

ग्राम सिंदीपार मां बी चहलपहल
नाटक-कला-दंडार-साहसी सहल

कलागुण को भय रही से सम्मान
सिंदीपारला लगसे बुहू अभिमान

एकलव्य सरिखो बिनगुरू शिक्षण 
बासरी साहित्य को लेईन प्रशिक्षण 

घर मां गचगच भरी से विवेकानंद
वाचक होय जाये देखकन गदगद

ग्राम विकास की प्रेरणा राष्ट्रसंत
डाँ.शेखरजी संग आनसेती रंगत

"बन तुच आता देव" या कृती
प्रकट करिन उननं मनःसंस्कृती

साहित्य संस्कृती शिक्षण साधना
जीवन भय रही से गुण संवर्धना

शाश्वत कृषी शाश्वत ग्राम चिंतन
प्रयोग चालू करिन वावर मां मंथन

धन्य भयेव् ग्राम धन्य बिसेन कुल
पीढी दर पीढी मां दिशा रहे अनुकूल 

मी रणदीप,पुतण्या उनको एक
मांडेव विचार सत्य अना नेक

अजी माय धन्य भया आमरा 
स्वर्ग लक् देखसेत् यशस्वी टुरा...


रणदीप कंठीलाल बिसने


 सन्माननीय साहित्यिक,कवी श्री पालिकचंद लक्ष्मण बिसने

साहित्य को वारसा
शाहिर घराना
कवी पालिकचंद बिसने
चरित्र सुहाना

संगीत मा पारंगत
बासरी का दिवाना
माटीला आकार दे
कलाकार सुहाना

झाडीबोली का ऋषी
मन मा तराना
निसर्ग प्रेमी
दिल से सुहाना

बहूआयामी चरित्र
पुरस्कार का खजिना
व्यक्तिविकास का धनी
योद्धा से सुहाना

गाव माती दैवत
विज्ञान को जमाना
आध्यात्मिक पुरुष
पुरुषार्थ सुहाना

शेषराव येळेकर
सिंदीपार जिल्हा भंडारा
दि.10/06/21

Thursday, June 3, 2021

अहंकार ६५


अहंकार

नको करू मानव
अहंकार रे खुदपर
काया से मातीमोल
जाय नही धरकर 

मी अन बस मी
काहे करसे मानव
मी को अहंकारलक
डुबसे आपलो जीवन
 
जीवन पथ से
बडो कठीण रे
जप तू अहंकार
नहित गडे काटा रे

मोरो कोणीसिन
अड नही काई
कोनिकी नहाय परवा
मोरो मीच सब काई

समझले तू बातला
अहंकारी को सर
एक ना एक दिवस
झुकसे सच समोर

अहंकार का पहलू दुय्
एकलक झुकसे सर
एकलक उठसे सर
आस सचकी तू धर

सौ.उषाताई रहांगडाले

अहंकार

प्रेम कि बोली अना नम्रता
आती स्वाभाविक अलंकार
पतन होसे मनुष्य को अगर
भयेव ज़रा भी अहंकार।

काहीं काल को अहंकार
करसे ज्ञानी को भी विनाश
रिश्ता नाता मा भी आवसे
अभिमानलक खटास।

अंत विवेकको होसे
जब अपनाया येव अवगुण
घमंड भयेव तब नहीं समझती
मानवता अना सद्गुण।

प्रतिभा अना पैसाको 
नको करो अभिमान
सदुपयोग करो वित्त विद्या को
बनो महान अना किर्तिवान।

"मि"सब दून श्रेष्ट सेव
या भावना जेको मनमा
एकटोच रह जाए
उ व्यक्ति आपलो जिवनमा।
 
" मी" बलशालि येन घमंड लका
भयेतो रावन को भी विध्वंश
महाग्यानि रहकर भी दशानन
बचाय नहीं सकेव आपलो वंश।

त्याग करो "अहंकार"को
करो दया ना परोपकार
मदत करो जरूरतमंदकी
बाटत चलो ख़ुशी अना प्यार।

स्वप्नाली दुर्गेश ठाकरे


 अहंकार
  

अहंकार आदमी को 
सबसे मोठो दुश्मन, 
सबला आपल् जवर ठेवन् 
पर अहंकाराला दूर गाडन्. 

अहंकार लका मोठा मोठा 
साम्राज्य भय गया नष्ट, 
अहंकारल् आदमी की
बुद्धि होय जासे भ्रष्ट. 

येव काम मी कर सिकुसू 
या आय काबिलियत, 
पर मीच् कर सिकुसू 
या अहंकार की नियत. 

रावण, कंस, दुर्योधन को 
अहंकार नच करीस घात, 
मनला बस मा ठेवो 
करो अहंकार पर मात. 

आपल् शक्तिपर ठेवो 
हमेशा अतूट विश्वास, 
पर आपल् कमी को बी 
रव्हन् देव आभास. 

राम कृष्णला होतो 
आपल् शक्तिपर विश्वास, 
आपल् कार्यल् संसार मा 
बन गया सबसे खास. 

                      - चिरंजीव बिसेन
                                  गोंदिया


विषय:- अहंकार

सबदून अनमोल
मोरो अहंकार
राजा भोज को वंशज
बार बार एक पुकार

धाकड को सिनो
शेर की दहाड
देवू मुछ पर ताव
भागे कवै गिधाड

माँ गड़काली कुलदेवी
खून क्षत्रिय 
भूजा देसे ललकार
नहाय मनमा भय

अहंकार से मोला
मोरो पोवारी भाषा को
जन जन की मुख मा सजे
असी अभिलाषा को

अहंकार मोरो
स्वाभिमान परिपूर्ण
समाज साठी जगू
तब जीवन होये पूर्ण


शेषराव येळेकर
सिंदीपार जिल्हा भंडारा


                   अहंकार
                
काम,क्रोध,मद,मत्सर,
लोभ,माया सय बैरी आती
बैरी जास्तच बढेलका
होसे अहंकार की उत्पत्ती।। १।।

अहंकार का अनेक रुप
कोनीला सुंदरता को अहंकार
कोनीला धनदौलत को
कोनी मोजण बस्या उपकार।। २।।

रावण होतो बुध्दीमान
होती ओकोजवर सोनोकी लंका 
अहंकार लक नाश भएव
जब चोरकर लेगीस सीतामाता।। ३।।

कंस ना दुर्योधन तसाच म-या
जब अहंकार ना घेरीस उनला 
नास भयगयेव उनको
शांती नही भेटी उनक मनला।। ४।।

दुय दिवस की जीन्दगानी 
सब् झूट से मोहमाया 
बोली भाषा शुध्द ठेवो 
बसमा ठेवो मनको धावा ।। ५।।

अहंकार ला बेसन टाकोको 
शुध्द ठेवो आचारबिचार
सुखी होयजाए जिवन ना
नैया होय्जाए भवसागर पार.।। ६।।
           

डी पी राहांगडाले 
   गोंदिया 


                        
 छोडो अहंकार
(षडाक्षरी)

अहंकार सदा
आव "मीच" कसे
होयके अंधरा
डोरा मीचकंसे ||१|

लुभाय सबला
प्रशंसा चाव्हंसे
उठ नहीं सको
असोच पाडंसे ||२||

सबमा मी श्रेष्ठ
अहंकार वृत्ती
जासे मती अना
होसे अधोगती ||३||

भूल पड जासे
इंसानियतकी
पडंसे आदत
बुरी नियतकी ||४||

खुद परीवार
समाजको नाश
अहंकार होसे
गरोमाको पाश ||५||

छोडो अहंकार
कमावो प्रतिभा
आये जीवनला
सुंदरशी शोभा ||६||

डॉ. प्रल्हाद हरीणखेडे "प्रहरी"
डोंगरगाव/ उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७


मातीमाच जगनो सें
मातीमाच सें मरण
मिथ्या अहंकार करके मानव
अंतमा पछतान की धन

अहंम भाव तं खोटो
भ्रम आय मनको
होसे माणुसकी खतम
पतन विवेक ज्ञान को

माणुसला डुबावंसें अहंकार
अति मीपण कि सफलता
अहंकार बिगाडसे रिश्ता 
सें पाप दुःख को निर्माता

छोड संपत्ती सत्ता को मोह
नही काम आवं अंतसमय मा
नोको करू जीवन मातीमोल
गर्व का घर भया खाली जगमा

अहंकार पर कोमलता भारी
बनो करुणामय उपकारी
रहो सबजन मिलजुलकर 
दुबारा नही मिलं या जिंदगी प्यारी

                              शारदा चौधरी 
                                   भंडारा



.   अभंग
      विनास

नोको देऊ देवा, योव अहंकार
जीवन उद्धार,होय? मग।।

अहंकारी होतो, लंकाको रावण
भयव हनन, अहंकार।‌।

वेद शास्त्र देसे, येकीया गवाही
गर्व की वाहवाही, होऊनही।।

हिरन्यकश्यप,मीच कव्ह देव
विष्णुच भयोव,नरसिंह।।

अहंकारी वृत्ती,विनास करसे
विनाश आनसे,जीवनमा।।

मी मी को उच्चार,संबंच करुसु
सबला पालुसु, अहंकार।।

नही चलं काही,रावका रंकंही
भया हे सपाही,गतीहिन।।

नहि कोनी मोठो,संबंच समान
नहीं अपमान, जीवनमा।।

समाज की सेवा, दिनरात करो
जीवन उद्धरो,समाजमा।।

नावगा लौकीक, प्रेम लं भेटसे
तन अमरहोसे, सेवाकरो।‌।


वाय सी चौधरी
गोंदिया

धन को, रूप को, गुन को 
कायको का आय अहंकार,
एन भरम मा नोको जिओ,
एवत आय मोठो विकार.

काजक आय या माया,
मेहनत की बस छाया.
येन जगत मा आइन,
कई-कई बहादुर राया.
येव इंधारो आय मन को, 
कई सेत एका परकार.

गत देखो  रावण- कंस की,
अगाज़ होती इनको दंश की.
समय की बलिहारी त देखो,
गति बिलायी इनको वंश की.
डखरत होतींन टोंड जिनका,
उनको लच उठी चित्कार.

काही करे वहम नहीं मर्,
मगज को भरम नहीं मर्.
हामी त कई बार मरया,
काही करें अहम नहीं मर्.
बेमउत मारनो से येला त,
बस नाम जपो ओंकार.

तुमेश पटले "सारथी"
केशलेवाड़ा (बालाघाट)

आमराई की मजा ३







आमराई की मज्या          

     आमरो माहेर को मोठो परिवार...सब समवयस्क चिल्लर पार्टी. आंबा की घात आव तब पासून नाहन नाहण आंबा बेचन साती मन लालाईत रव.
मोहुं बेचन की घातमा झुणझुरका माय संग आमी बी नहानसी चुरकी धरके जाजन. पक्षी की किलबिल, थंडी थंडी हवा, हवा को तालपर नाचता झाड, मनमा नवी ऊर्जा भर देत होतो. धुरो पर धावत धावत चढनो अना माय को मंग लक आवाज देनो,"बेटी, पडजाजो त टोंगरा फूट जाये धीरू लक चल" असो कवता कवता मारबत वाली बांधि को मोहुं खाल्या आमरी सवारी आव. आसपास मोहुच मोहुं,,,ना आंबा का झाड , मनला मोहित करत. आंबा को झाडपरका लहान लहान आंबा आमला बुलावत. जसो काही वय भी आमरों जवर आवन साती इशारा करत. आमी आपसूकच उतन धाव लेजन.
       मोहुं बेचनो कम ना जवरको आंबा खाल्या झोडपा अना गोटा जमा होत. एक आंबा पाळण साती झोळपा मारनी चालू होय. मोरी काकबहिन को नेम अचूक लग ,अना मी,,,,एक आंबा ला मारण जाऊ त गोटा कोनांग को कोणांग पराय जाय..अना युद्ध हारेव राजा वाणी मोरी गत. दस पाच आंबा तोडके चूरकी मा मोहुं को डोंबरा को जागा पर आमरा आंबा विराजमान होती. तब वरी माय मोहुं बेचकर तयार रव...ना आमरी सवारी घर की बाट धर, रस्ता मा आंबा को स्वाद संग

   आब त केतरा तरी साल भय गया वू आंबा से का नहीं येव भी मालुंम नहाय,,,ना ही ममतामयी माय से.
सौ छाया सुरेंद्र पारधी



अमराई की मज्या

मामा को गाव बडद..पर मोरो बडद को बाबुजी को मूळ गाव चिंदुटोला.वहा मोरो आईका काकाजी छगनजी पारधी रव्हत. मंग गीम का दिवस आया रे भयी म्हणजे मोरी पारी रव्ह आंबा खानसाठी चिंदूटोला जानकी.वहा पयलेच मोरो आईकी दुय फुफबहिणी अना चिंदुटोला को मोठो मामु की दुय टुरी मोरी बाटच देखती रव्हत.
  चिंदुटोला को खेतमा काऱ्या,भुऱ्या,सेंदऱ्या,घोटी,आंबीन,अना अदीक असा दसक बुळ हातमा कवरत नोहोता असा मोठा मोठा बुळ होता.दिवसभर आमरी बच्चा पार्टी खेतमा आंबा याख अना कोयर पादया आंबा खाय. आंबा उतरावनको दिवस झाड चगनेवाला चांगला मातब्बर इनला बुलावा धाळेव जाय.सीतोरी,पाणी को डब्बा,मोठी चर्हाट,लंबो बास,बांबुळा परा झोकनसाठी थैलाभर चुलोकी राखळ चुलोमाकी असो लवाजमा धरके लहान बीडार खेतमा आमरी पदयात्रा निकलं.खेतमाका आंबा पयले झाडपय चगके रदरद हलावत जेतरा बी पीक्या ,गदराया आंबा रवत ऊनको सडा पड.मंग आंबा उतरावतलका वय खाल्या पड्या आंबा आमी आमरो पोटमा ठेवजन. पुरो दिवस सर जाय तरी रायतो अना माच साठी एक दुयच बुळ का आंबा उतरायके होत. घरमा लहानांग पासुन त मोठांगवरी अना पोटखोली पासु त पाटनवरी तनीस बीछायके आंबा  आपलो जागापर विराजमान होत.
वन समय मा अगर कहींका पाहुणा आया त चाय को जागापर उनको साठी बाल्टीभर मोंठाग आंबाच आवत.दिवसभर आंबा खाय खाय के कपडा पीवरा होय जात अना केतातरी आंबा टोंडपर भी फर जात.पर आंबा खान को शौक काही कम नही होत होतो.
  एक साल की बात आय मी वोनसाल चिंदुटोला नही गयी होती.गीम का दिवस होता.मोरा चिंदुटोला का मोठा मामु तिलकचंदजी पारधी म्हणजे माणिकचंद जी पारधी इनका मोठा भाई.उनकी दुय टुरी अना शेजायका उनकोच उमरका दुय बहिण भाई दसक बजे खेतमा गया. काऱ्या,भुऱ्या आंबा को झाडखाल्या बस्या अना हवारका पीक्या आंबा पडनकी बाट देखन बस्या.अना उल्लु बनावनसाठी एकजन कसे ऊ" देख कोयर पाद्या आंबा."वरती देखीन त झाड को खांदापर काही बसेव दिसेव.एक कसे पप्पी देखना झाडपर बिलु बसीसे,एक कसे बिलु नोहोय कोल्ह्या आय.अना असोच चर्चासत्र रंगेव पर लहान रह्यके बी कोणतोच भेव नही.घडीभर मा ऊ गुरगूर करन बसेव.अना जरासो खाल्या उतरेव वानी भयेव.त जरा देबी घबराई.बाजूकोच खेतमा एक आदमी आपलो खेतमा खात बगरावत होतो.पप्पी कसे" बाबाजी आमरो भुऱ्या आंबा पर मोठीडगर बिलु चगी से."
मोठी डगर बिलु आयकके बाबाजी को डोस्का मा पाल चुकचुकाई.वय धावतच आंबाखाल्या आया.अना वरती देखीन त हक्काबक्काच रह्य गया.झाडपरा मोठोडगर बाग बसेव होतो.मंग उनन प्रसंग सावधान ठेयके लहानको बखोटीला धरीन अना मोठो लेकरूनला कयीन जेतरो जोरलका पराय सकसेव वोतरो जोरलका घर चलो.अना गावमा धुम ठोकीन.गावमा उनला घर सोडके पुरो गावला सांगीन.पुरो गाव अना आसपडोस का गाव ,पत्रकार, फाँरेस्ट वाला सब जमा भय गया.पर बाघ कायी झाड सोळत नोहोतो.
   पप्पी बाई अना मोनुला जब पता चलेव की ऊ बाग होतो.त उनकी देबीच घबराय गयी होती.रात्री झोपमालका बी महिनाभर वय भेडसाय भेडसाय के उठण होती.
  बाघदेव बाबाजीन वन दिवस वन दिवस बी तारीस.🙏


सो.वर्षा पटले रहांगडाले
मु.बिरसी( आमगांव)
जि.गोंदिया
दिं.२५/०५/२०२२

  
     आंबा को अंबराईमाकी मज्या



                

 "  मीआपलो अनुभवलका बचपनमाकी आंबा की अंबराईमाकी मज्या कसी होतीत या आपलो स्वरचीत सांगूसू.
मोरो माहेर वळद को आय. तुमला माहीत रहेकी वळद मा मोठोवाडा की म्हणजे राहांगडाले की ननसरी से त.जर  या ननसरी यू -ट्यूब पर सचॅ करो त सब माहीती भेटे.
येनच अंबराई जवळ मोरो बाबूजींगी को खेत से.बिचमा नाला से मग लगवच अंबराई से. येनच खेतला नालावाली या ढोढीवाली खेत कसेत.
आमरी माय म्हणजे "झामाबाई" अजभी नाव अजनामर से आबा आता स्वगाॅवास भयगयी. गाव की पटलीन नोहय तरी गावमा झामबाई को धबधबा से.पुढारी होती.
आनरो मोहल्ला मा २३ टूरा अना् ८ टूटी .टूरी अजभी बहोत कम सेत येन ग्यांग मालका मी सबसे लहान होती. उदा:- शारदा,दूगाॅ,सिमा,ज्योती,रिंकी,मंजू ,अना् आमरी वषाॅरानी ,व मी.
ताई को मामा को दूसरो गल्ली मा से तरी आमरो घरकरच खेलनला आवत.उनको आई का मामा म्हणजे मोरा बाबूजी.तसोच उनकी मावसी घर जवाई आत त इतनिच खेलनला आवत. 
एक दिन इतवार की बात आय.कहाको अभ्यास,उन्हाळो का छुट्टी का दिन.कहा को गावतरला जायेती सब तोंडबजावन घरच रवत. मग माय झामाबाई मग गारी दे.चिल्लाव. जाव आंबा खानला दिनभर आपलो तोंड नोको देखावो कवत .मग आमला बात लग गयी. सचमे आमरी बदमास पाटीॅकोणी पयदल त कोणी साईकललका मग आंबा खानला झोरया /थयला पकड्या अना् आमरो नालावालो खेत आया. आमरो खेतमा १२-१५ आंबा का झाड सेत . घोटी,कलमी आंबा सेत .मग आमरो खेतला लगेव राहांगडाले को बगीजा/अ़ंबराई से.जलदी-जलदी मा ताव-तावलका निकल्यात पिवनको पाणी च नही पकड्या.
कोनी झाडपर येंग्या/चढ्या ,कोनी झोडपा मारके आंबा तोडजन.मी सबमा लहान होती त आंबा तोडकन खाल्या फेकती.
आता का भयेव राहांगडाले की अंबराई आमरो खेतलका चिपकीच से. वहालका बंदर को भूप-भूप असो आवाज आयव.मग आमरी ग्यांग  सब बगीजामा गया. वहा हर प्कारका आंबाका झाड सेत चांगलाच पोटभर  अना् ओकत-बोकतलका पिक्या आंबा खाय्या. मग आंबा देखके लालच सुटी. घरसाठी असीभी झामाबाई की पोटभर गारी खायके आयात होता. वय बंदर का उसटा आंबा खाया अना् मिठू/पोपट का कतर्या आंबा .आमरात थयला भरगया .तसोच आमरा ओटा भी .मग आमरो त खेत जवळच होतो. आन-आनके ठेवजन. काही जन नाला मा बारूमा लूकावजन . ओळखीसाठी निशानी ठेवजन.
येन बगीजा मा २०-३०प्कारका आंबाका झाड सेत . बंदर येन झाडलका वोनझाडपर कुदत अन् वय होर्या -पाखरू आंबा कुतरत वय पुरा आंबा बेचजन.तसोच परो बगीजा भर आंबा की घुई पडी रवत . वय भी बेचजन कारन वाडा नवकर मग आंबाको घुईपर जसो १००घुईपर १की.लो. पिक्या आंबा देत. अजून वहाका नवकर आंबाकी पोतडी भरत त मग वयभी लेनला आवत त मग आम्ही घुई बिकसारी मग आमला पैसा मिलत.असो आमरो लालच पना होतो.  झामाबाई चिल्लाई होतीत आम्ही सकाळ का ७बजे पासून त संध्याकाळ का ४ बज गया . पन आम्ही काही घर गया नोहोता पिक्या आंबा खायके पोट सुरायव गयव होतो. आम्हीनत गुस्स् -गुस्सा लका पिवन को पाणी भी नही पकड्या होता. त बगीजा मा आंबाको झाड खाल्या पाईप लाईन से  मग आम्ही वहा कोच पाणी पिया . काही मोरो भाऊन त नाला माको बहतो धारकोच पाणी पिहीन. वू जमानो होतो तरी काही रोग-राई नही होत होता. आतात बाबा "कोरोना" या कहाकी बिमारी आयत पता नही. मग घरको लोकईनला चिंता भयी अना आमला बुलावनला अजी आया. खेतमा देखसेत त आंबाको वू ढेर अना् आमरो काही अता-पता नही मग अजी ढुंडत-ढुंडत अंबराईमा आया. मन आम्ही घरकी रस्सता धर्ा... असो होतो आमरो बचपनको आ़ंबा की अंबराईमाकी मोठी मज्या......
 अना् आमरो येव यादगार पल.

 तसोच एक बार तरी जावो मोरो मायकाको वळद येन गाव अना् आमरो किशोर महेंद् राहांगडाले को आबा को अंबराई ला भेट देन . तसाच आमरा मामाजी दयाळू व पे्मळ सेत . नही चिलावत .कसेत केतराक आंबा खायेत ,पोटको बाहर त नही खात ना बस....
 
 असी होती आमरी बदमास कंपनी/ग्यांग!!! 

 मोरो माय झामाबाई न एक गाना सिखाईन होतीन!!

" आंबा की अंबराई,बाबूल का घर !
   
नको मारो पिताजी ,चली आपलो परायव घर!! 

सहीमा अज मोरो माय की पल-पल आठवन आवसे .बिह्या/शादी को बाद मयका सहीमे परायव होयजासे....
   
 सौ:- ओमलता परिहार/पटले


अमराई की मज्या

      दुपार भयी.आई बाबुजी घरमां पंखा क् हवा मां सोया होता.मी मोरो आतोभाऊला कहेव्,"चल ना जाबीन का जनू क् अमराईमां..? पाड पड्या रहेत."
वोन् भी "हो" कहीस.दुपार का दुई बज्या रहेत.आमी संडास को गडू धर्या अना दुईजन निकल्या.

जनू कं अमराई कं वोन आंग्या कोनकोच घर नोहोतो.तपन लाही लाही करत होती.आग ओकतो सूर्य ला देखकन कोनी उतन भटक्या नही दिस्या.जनू क् अमराई मां दस प्रकारक् आंबाईनकी सरईच होती.पहिले डुबर्या आंबा,मंग चिपी,सेंदर्या,नाकाळ्या असा बुहू रंग का आंबा वंज्यान् होता.हर आंबा की चवच न्यारी होती.आंबा जागनसाटी लकाबाआजी आवत होतो पर सकारी बारा बजेवरीच.बादमा तपन तपेव कं बादमां फिरकत नोहोतो.गावक् आमरं संगीईनला या टाईम मालूम होतो.

आमी मामभाई-फुफभाई निकल्या अना संडास क् मिसलका वंज्या गया.त् पयलेच मोरो मोहल्ला क् संगी इंग्या अना वको मामभाई दुईजन नं पयलेच आपला खिसा भर टाकी होतीस.आमी गयेवपरा दस आंबा अना च्यर जन होता.आंबा को पाड कभी वनं आंबा को पडत होतो त् कभी दुसरं त कभी तिसरो को पडत होतो.जसो खळका भयेव् वनं दिशा मां परनको असो खेळ आमरो चालू होतो.मी बी मोट्टो खिसोवलो पँट टाकेव होतो.सेंदर्या आंबाला मोट्टो तेल होतो.वोनं तेललक् मोरो पँट डागेल डागेल भयेव् होतो.

आंबा क् पाडईननं मोरा दुई पँट का अना सर्ट को एक खिसा फुल भारेव होतो.अना होर्या का कातरेव वाला आंबा आमी वंज्यानच खात होता.च्यारईजन का खिसा पुरा भर्या होता.तरी आमरी लालच काही कम नोहोती होत.मुहून मी टमरेल को पानी फेकेव अना वनं गडू मा बी आंबा को पाड टाक देयेव्.

वनं अमराई मा का पाड आमरां मोहल्ला क् सबजन का तुरूप्त करदेनवाली अमराई होती.लकाबाबाजी जब् महातनीबेरा आवत् होता तब् वोला पुरो अंदाज आवत होतो का  संडास ला आवनोवाला लोकईननं  पाड बेची रहे.तरी कोनी पाडला गोटा मारन की ज्यास्त हिंमत करत नोहोता.

 असी वा जनू की अमराई आब् दिस नही का चोवं नही.वन अमराई क् जागा पर आब् लकाबाबाजी क् तीनई टुराईनकी घर की सरई से से.

जनू की अमराईच नहीबकी बी आमराई  आब् नही रही.अना ना रही वु मज्या पाड खानकी.


रणदीप बिसने

अंबराई की मज्या 

बचपन का वय दिवस मन गद गद    करसेती. उन्हालो की सुट्टी लगी का मामा, मावशी को गाव की ओढ लगत होती.मी सुट्टी मा मावशी को गाव सुरकुडा गई होती.मोरो मावशी को गाव आंबा की मोठी आंबराई होती.
   "आंबा की अंबराई मोठी
    कई किसम का आंबा
   काऱ्या, गोल्या, सेंदऱ्या असा
   गोड, गोड खाओ आंबा"
आम्ही दुपारी खेळत होता अन् चार बजेकी बाट देखत होता. तपन से आब असि कव अन् जान नही देत होती.चार बजे जाओ अशी कव.मग चार बज्या ,रे बज्या
का मी, मोरी मावस बहीण गुड्डी अन् प्रगती आंबा साठी जाजन.आंबा धरण साठी एक झोरा धरत होता. अंबराई मा आंबा को झाडनकी लाईन च लाईन रव.अन् वय झाडला लदा लद फऱ्या  आंबा... मनला असा मोहावत आता का सांगू.वाहा काऱ्या ,गोल्या , सें दऱ्या असा तरा तरा का आंबा होता.हे सब आंबा का नाव मोला गुड्डी न सांगिस. आमी धावत झाड जवळ गया, वहा पाड का आंबा पड्या होता.आमी उचलज अन् खात होता , आता तुम ला का सांगू ..वय पाड असा गोड लगत जसो काई अमृत आय.पाड खानकी वा मजा अन् उ आपलो एक अलगच जग होतो.पाड खायस्यान आम रो काई मन दावत नव्हतो.मग आम्ही झोडपा मारत होता.काई काई झोडपा आंबाला लग तर आंबा पडत अन् आमाला मजा आव.काई काई झोडपा हुकत भी होता पर झोडपा बडो  ताव ताव म मारत होता.अन् कोणको झोडपा लगसेअन् कोनलककेतरा आंबा पडसेती अशी जसी काई आमरो मा शर्यत लगि रव.मावस्याजी अन् भाऊ खुळी आणत अन् वोकोलक आंबा उतरावत .आमी आमरा पड्या आंबा बेचजन अन् आप आपलो झोरामा धरस्यान सब घर आवज.मावशी वन आंबई नको माचं टाक अन् आमरा झोड्या आंबा की खुल टाक.आंबा पिक्या का आमी मस्त मनसोक्त आंबा चोकत होता.मावशी रस अन् घि वारी बनाव. अजभि बचपन का वय दिवस मन ला खुशी देसेत.
    अज भी वय आंबा की आम्बराई कऱ्या , गोल्या, सेंदऱ्या आंबा याद आवसेती.पर रस अन् घि वारी बनायस्यान ज्या मावशी चरावत होती, यण कोरोनान मोरो मावशीला गिळ टाकी स.अज वाहा आंबाराई सेका नाहाय माहीत नही.पर बचपन की आंब राई मन मा अज भी  मज्या देसे.

सौ उषाताई रहांगडाले

आमराई की मज्या
आता लगावोना झाड़
‌     मी पाचवी मा शिकत होतो.शनिवार ला सकाळ की शाळा रव्ह  , आम्हि संगी भायी दप्तर घरं ठेया का .जरासो जेवन करीस .ना एक दुय  झोडपा ,अना नोन मिरचाकी चटनी खिसामा धरके ,अमराई मा जात होता.या आमराई जेन खेळत्या होती. ओला घरकोंढर कवत होता.आंबाभी वाशी वानीका,के-या,भु-या, ढेकल्या. कारि चिप, सेंद-या,डोबन्या,नाकाळ्या,हे नाव आंबाकं गुणपरलं ठेया होता, ख-यान जवळको रायत्या.सब जन आंबाको रायतो टाकत होता.दस दस आंबा एक झोकळामा रव्हती ,बंडी बंडी निकलत होतो. एकच झोळपामा बहुत आंबा पळत होता.खावरे खाव दात आंबतवरी खात होता.काही संगी चुनो आणत होता चुनो लगायीस तर आंबट पना कमी होसे योव  विज्ञान मालुम होतो  , येन सब आंबामा के-या आंबा कचो भी गोड़ लगत होतो. सब हो-या येऊनच झाड़का आंबा खाती.झाड़भी उचो होतो. बुळ भी मोटो होतो,चंगन जमत नोहोतो.मुहुन झोपा मारके आंबा पाळनकी मज्जा काही अलगच होती. नेम धरश्यानी झोळपा मारनो आंबा पळ्या  नहीत झोळपा झाड़पर हिलगत होतो .मग झोळपा पाळणसाठी प्रयत्न करनो .हात थक जाय 
‌. पर आंबा पाळनको काम थांबत नोहोतो.
‌           कभी आंबा खिसा मा भरत होता.ना बचगया तर बनीयानकी थैली बनायश्यानी आनत होता .घरं आयपरा माय की ना शाहानीमायकी गोष्टी आयकत होता.आता नही रही अमराई ना नही रह्या वय आंबा सब अमराई कट गयी.बंदर को  बसेरा गयोव .आता गावक घर परा कुदसेती ना कवत रहेती ,आता लगावोना आंबा का झाड़.
‌अशी आवं मजा आंबा खानकी.

वाय  सी चौधरी
गोंदिया


  अमराई की मज्या
           

             आंबा की घात आयी म्हणजे बचपन की याद आवसे. मन ४० - ४५ साल पहले क् माहौल मा खोय जासे. आमी आपल् गाव रव्हज या मामा क् गाव आंबा दुही जागा भरपूर होता. तीज भई म्हणजे आंबा को घात सुरू होय वु पुरो एक - देड महिना चल्. मनमाफिक आंबा खानला मिलत पर इच्छा पूरी नही होत होती. 

                आमर् गाव टेमनी मा ८-१० आंबा का झाड होता. उनमा बी एक सेंदरा आंबा होतो. बहुत मोठो बुड ना बहुत झाल-या. एकच झाड का २० - २५ हजार आंबा निकलत. आमरा बाबूजी ३ भाई होता. उतारनेवालो ला शेकडा २५ आंबा देयेव क् बाद मा बी एक एक घर एकच झाडका ६-७ हजार आंबा आवत. दुसरो झाडका अलग आंबा आवत. एक देड महिना आंबा कीच मेजवानी रव्ह. आमरा फूफ भाई, फूफ बहिणी मा आमी मनसोक्त आंबा खाजन. 

               मामा क् गाव सोनी मा रह्या त् वहा बी आंबा की कमी नोहोती. आमी, आमरा मावस् भाई, मावस् बहिणी, माय का काक् बहिणी, काक् भाई जे आमर् बरोबरी काच होता. मस्त आंबा खात होता. सकार को नाश्ता आंबाईन कोच रव्ह. हप्ता मा २-३ बार रस - रोटी, रस - घिवारी जरूर खानला भेटत. 

                वोन् जमानो मा इतल् खात की पेटी भरकर जात होती ना उतनल् आंबा भरकर आवत् होती. घर माच काआंबा मिलत ना, खेत मा अमराई मा पाड का आंबा मिलत. कलमी आंबा (तोता फल्ली, बैगन फल्ली) नजर ल् नही दिसत होता. पर आता देशी आंबा नही क् बराबर रह्य गया. फसल जादा लेन क् चक्कर मा बहुत सा आंबा का झाड कट गया. आता आंबा खान की शौक कलमी आंबा खायकर मिटावनो पडसे. अना दूध की प्यास ताक पर भगावनो पडसे. 

         
                 चिरंजीव बिसेन
                                   गोंदिया
 अंबराईमाकी मज्या

अंबराईमा कोयार
कुहू कुहू गावंसें
रय रय के मोला
बचपन याद आवसे

बचपन का वय दिन भी केतरा सुंदर होता . खेल, मस्ती, खेतमा जानो, अमराईमा का आंबा पाळनो. कोयार को मधुर मनभावन सूर आयकनो,आबं भी वय दिवस याद आवंसेत
मस्त मज्जाच मज्जा !
बड्डापर मरखट जवर मोरो आजा परदादा को हात की लगाई भरेव घर की अमराई होती..वहा जांभुर,मोहू ना आंबा का झाड होता.वहा रायत्या,दगड्या,सेंदऱ्या मिठी घोटी असा तेरा आंबा का बुड होता.मोहू बेचन की आमरी एक दिन को आड पारी रवं. सकारी भूमसार भूमसार मी मोरो आईसंग कभी कभी मोहू बेचनला जात होती.अंधारो को परदा सुर्यप्रभा लक धीरूधीरु फाकत जात होतो.कोयार की कुक भी मनमा हुरूप जगावत होती. मोहू बेचन को पयले मी सब आंबा को झाडखाल्या आंबा पड्या सेत का मुन देखन जात होती.आंबाला एक दुय गोटा मारू तं आई दाटत होती.मुन एक दिन आईला  बिना सांगे मीं मोरी सखी ललिता को संगमा महातनी बेरा को संजला अंबराई मा गई. आमी झोडपा मारकर अरधो झोरा आंबा पाड्या.बांबुडा नं चाबकर आंग की आग कर देई होतींन.
अचानक मौसम बदलेव.धुंदाळ आवंनला बसी.सुss सूss करत वारा सुटेव. आंबा पळेत
मुन आमी अंबराईमाच रह्य. आंबा बेचन बस्या.वोतरोमाच बिजली चमकन बसी अना धो धो पाणी आवन बसेव. आमी दुहीजनींआंबा को बुडखाल्या बस्या रह्य. मार ओलीगीद  भय गया होता.थंडीलक दातकुळी कटरत होता.अंधारो पडे वानी चोवत होतो.आमला मरखट कनलक कोणी तरी आवताना दिसेव.आमी भेवको माऱ्या दुहीजनी पानी पानी वहालक भरमुंडा परान्या ना गाव को रस्ता धऱ्या.तं थेट घरं पहूच्या. घरं.वोनं दिन आईको तोंडकी गारी खानी पडी.आबं बी वू दिन मोला याद आवं सें.
पर आज को जमानो ना अंबराई दिसत ना असी बचपन की मज्या !

                                       शारदा चौधरी 
                                          भंडारा 


अंबराईमाकी मज्या

अंबराईमा कोयार
कुहू कुहू गावंसें
रय रय के मोला
बचपन याद आवसे

बचपन का वय दिन भी केतरा सुंदर होता . खेल, मस्ती, खेतमा जानो, अमराईमा का आंबा पाळनो. कोयार को मधुर मनभावन सूर आयकनो,आबं भी वय दिवस याद आवंसेत
मस्त मज्जाच मज्जा !
बड्डापर मरखट जवर मोरो आजा परदादा को हात की लगाई भरेव घर की अमराई होती..वहा जांभुर,मोहू ना आंबा का झाड होता.वहा रायत्या,दगड्या,सेंदऱ्या मिठी घोटी असा तेरा आंबा का बुड होता.मोहू बेचन की आमरी एक दिन को आड पारी रवं. सकारी भूमसार भूमसार मी मोरो आईसंग कभी कभी मोहू बेचनला जात होती.अंधारो को परदा सुर्यप्रभा लक धीरूधीरु फाकत जात होतो.कोयार की कुक भी मनमा हुरूप जगावत होती. मोहू बेचन को पयले मी सब आंबा को झाडखाल्या आंबा पड्या सेत का मुन देखन जात होती.आंबाला एक दुय गोटा मारू तं आई दाटत होती.मुन एक दिन आईला  बिना सांगे मीं मोरी सखी ललिता को संगमा महातनी बेरा को संजला अंबराई मा गई. आमी झोडपा मारकर अरधो झोरा आंबा पाड्या.बांबुडा नं चाबकर आंग की आग कर देई होतींन.
अचानक मौसम बदलेव.धुंदाळ आवंनला बसी.सुss सूss करत वारा सुटेव. आंबा पळेत
मुन आमी अंबराईमाच रह्य. आंबा बेचन बस्या.वोतरोमाच बिजली चमकन बसी अना धो धो पाणी आवन बसेव. आमी दुहीजनींआंबा को बुडखाल्या बस्या रह्य. मार ओलीगीद  भय गया होता.थंडीलक दातकुळी कटरत होता.अंधारो पडे वानी चोवत होतो.आमला मरखट कनलक कोणी तरी आवताना दिसेव.आमी भेवको माऱ्या दुहीजनी पानी पानी वहालक भरमुंडा परान्या ना गाव को रस्ता धऱ्या.तं थेट घरं पहूच्या. घरं.वोनं दिन आईको तोंडकी गारी खानी पडी.आबं बी वू दिन मोला याद आवं सें.
पर आज को जमानो ना अंबराई दिसत ना असी बचपन की मज्या !

                                       शारदा चौधरी 
                                          भंडारा 


अंबराई की मज्या

 सिंदीपार की अंबराई

आंबा को अंबराई मा
बहु होता झाड
पाच दस मिनिट मा
भेटत होता पाड


सिंदीपार गाव् आंबा,जांभूर,चिच,बोर,चार, सिताफळ,बेल ,मोवु,टेंभरुन,बिबा,जोंदूरली,तरामा कचुरकांदा असा रानमेवा वनसंपदा लका परिपूर्ण गाव.यन गाव मा सात आठ, मोठ म़ोठी आंबाकी अंबराई अना रस्ता को दुय काठ ला बहूत सारा आंबा होता.नागझिरा को गोदमा बसेव आमरो गाव अन्नपूर्णा होतो पशू पक्षी,मानूस कोणीच अतृप्त नव्हता.उन्हारोमा आंबा, जांभूळ खान साठी रिस्तेदार आमरो गाव मा बस्ठान मांडत.यन कारण लका गाव मा उन्हारो को सिजन मा दिवारी दसरा सारखो लगत होतो.

लहान पासून मोठा यन वृक्षवल्ली गाव मा सब मज्जा मा रवत होता.कोणी भी व्यक्तीजवर हातमा काही ना काही खानको रानमेवा दिसत होतो.
नांगर को मंग फिरने वालो नांगऱ्याला कभी सिदोरी की गरज पडत नव्हती.

कृषी क्षेत्र मा बहूतसारी क्रांती भयी अना गावको निसर्ग ला ग्रहण लगेव.अधिक उत्पादन साठी खेतमाका झाड काटनो चालू भया,रस्ता का बाजूका मोठ मोठा झाड काटकन सरकारनं सप्तपर्णी, सुबाभूळ,गुलमोर,लिंब का झाड लगाईस.

गाव अना देशी वनसंपदा कन सौतेला व्यव्हार ठेय कारण लका यन वनसंपदा ला शहर मा किंमत नव्हती."घरकी मुर्गी दाल बरोबर" बस येवढोच फायदा यन वनसंपदा को गाववालो ला होतो म्हणून गावकरी लोकईंन यन वनसंपदा कन दुर्लक्ष करकन मोठो प्रमाण मा वृक्ष तोड करीन.वनसंपदा लका परिपूर्ण गाव मा अज सरकारी आंबा लका समाधान माननो पडसे.आंबाकी अंबराई की मज्जा लका नव पिढी आता परिपूर्ण अनजान भय गयी से.

वनसंपदा जपन साठी अज देशी झाडंन् ला ज्यादा से ज्यादा बळावा देनो बहूत जरुरी से.
नवो संकल्प को साथ हर झाड ला बचावनो आता नागरिक म्हणून आपलो सबको कर्तव्य बनी से.

शेषराव येळेकर
सिंदीपार जिल्हा भंडारा


 अंबराई की मज्या

दिगूला वोको आजा 'बुल्या' मुन हाक मारं अना गाववाला 'पेंद्या' मुन हाक मारत. आजाला सोडके दुसरोनं 'बुल्या' अथवा 'पेंद्या' हाक मारिस तं वू चिळं. पर वू मोरो पक्को दोस्त. इसकूल जानो, खेलनो, गंमत गंमतको डरामा खेलनो, अभ्यास करनो, मोहू, टोरी, परसा/ करंजी बिजी, ढिक, आंबा ढोर चरावनो असा सब काम आमी संगमाच करत होता. 

चार पाच बांधी आळ, गावखारीको अमराईमा, सखाराम बाबाजीको गोल्या आंबाकी कोयारपादी बडी गोड अना प्रसिद्ध होती. झाळला एक्का दुक्का सगीम आंबा रवत बाकी कोयारपादीच. मुहून सखाराम बाबाजीनं वोनं झाळला टुरुपोटू अना जनताको हवाले सोड देईतीस. मुहून आमीनंच वोकोपर कब्जा जमाया होता. 

एकघन दिगू, बाब्या, गंग्या अना मी कोयारपादी खानको प्लान बनाया. दिगूको आजानं दिगूला खातको आखरी पेटीपर आपलो संग खेतं आवनला सांगीस. दिगू आपलो आजाकी बात टालत नोहोतो मुहून वोनं आमरो संग आवनला बेमनलकाच नही कहीस. आपलो मनला सांत्वन म्हणून वोनं आमला उलटो ललचावत जरावनकी कोशिश करिस, यव कयके की वोको आजा संग वू खेतमा पाळ, जांभुर अना पिकी सेलवट भी खाये. आमी थोडा ललचाया, पर आमरी योजना भी भारीच होती. ओला आमी यव नही सांग्या का आमी नोन हिरोतीकी बुकनी, पावसी अना पानी धरके जाय रह्या सेजन. वोनं समयपर असो प्लान म्हणजे स्वर्गको आनंद, तालेवार पाहुणचार, वू भी दोस्तइनसंगमा ! घरं आयेव पर जेवनो सोडके वू जरूर आमला ढुंढत गोल्या आंबा खाल्या आये येको आमला अजम (यकीन/ विश्वास) होतो. अना भयेव भी तसोच. घरं आयेव पर धावतच वू बाब्या घरं गयेव. वोको आईला खबर लेईस तं बाब्याको आईनं सांगीस का तीनही जन बुकनी, पावसी अना पानी धरके गया. बुकनीको नाव आयकके वोको तोंडमालक लारच बही. आता कहां ढुढनं ! पर वोला पुरो अजम होतो का आमी गोल्या आंबा खाल्याच भेटबीन.
'आमी वोकी बँक लूट डाक्या' असो आविर्भावमा दिगू गावखारीका धुरापारी रहूऱ्यान करत धुंधाळवानी सनान आमरो जवर आयके हाजर भयेव. आमला वोनं बुकनी संग कोयारपादी आंबा खाताच धरीस. वोको शिकायत दर्शक चेहरा काही कव्हनकी कोशिश करत होतो पर तोंडमाकी लारनं वोला तसो करनच नहीं देईस. आमी वोको लारुंग्या भऱेव तोंडकन देखके हासनला फाट्या. आमी समज गया का येला ना पाळ भेटया ना जांभुर ना ही पिकी सेलवट. वोतरोमाच वोको आजा अना आई 'बिना जेयेव मोरो नाती कहां गयेव' मनून बाब्याको आईको सांगेव हिसाबलक गोल्या आंबा खाल्या पोहोच्या. दिगूनं आव देखींस ना ताव, ना ही वोनं आमला खबर लेईस अना काटीस आंबा अना बुकनी भरके फोडी खान बसेव. आमरो एक तं वोका तीन, येनं स्पीडमा. सब देखतंच रय गया. येव देख वोको आजा वोकोपर बफरेव, "अय 'बुकनी', चल पयले घरं. जेवनलाई मी तोरी बाट देख रही सेव अना तू यहां बुकनी संग आंबा खान आयेस!? बुकनीको भुक्कड सेस का?" आमरो पर भी दिगूको आजानं 'हकालन'लाई नसलोच आपलो हात उठाईस, "चलो रे तुमी भी. घरं खावो बाकीका आंबा. चलो कयेव तं !" 

वोला वोको आजानं 'बुकनी' कयके हाक मारीस तं आमरो हासा अधीक बढेव. बाब्या तं 'वोको आजा मारे' मनून फकळ फकळ हासतच घरकन सूटमुंडा भयेंव. आमरो हासा भी काही बंदच नोहोतो होत. तरीभी आमी सप्पा आपलो 'सट्टा दुपट्टा' आवऱ्या अना घरकी रस्ता धऱ्या. दिगूनं मात्र बुकनीकी पुडी अना आंबाइनकी फोडी आपलो हातमा धरके खात खात आपली सवारी आपलो आजा अना आई को पुढो पुढो घरकन हकालीस. 

अमराईकी वा मजा अजभी, भेट होयेव पर कभी दिगू, कभी गंग्या, कभी बाब्या तं कभी मी, याद करके असून जातवरी हासं सेजन. आता आमी एकमेकला 'बुकनी', 'बुल्या' अना 'पेंद्या' मुन हाक मारं सेजन तं सब दोस्तइनकी बायका आमरोकन अचंभालक हासतच देखं सेत. 

डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी"
डोंगरगांव /उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७

अमराई की मज्या

अजी को हातका आंबा

         कचेखनी एक रिठी गाव, पयलेको जमानोमा शायद वहा गाव रही रये. आब वहान एकही घर नाहात. वहा आमरो कुटुंबकी सामलाटवाली १८-२० बुड़ईनकी आंबाकी अमराई होती. पर आमरो बड़ेगाव लका ४-५ किलोमीटर दुर रहेवलका घरका/कुटुंबका लोक आमी नहान सेजन मुन आंबा उतरावन संग लिजात नोहता. आमरो नहान टुराईनला असो येको पयलेको अनुभव होतो. सकारी आंबा उतरावन कचेखनीपर जानकी चर्चा आमी आयक्या. दुसरो दिवस तसोच भयेव. आमी संग जान लाई मोठोईनको मंग् लग्या पर आमरी काही चली नही.
    आमरी बच्चा पार्टी दुपारको बेरा कोठामा रेसटीम/लुकाछुपी खेलन जम्या होता. वहां आमरो बाल संसदमा, "अज कोनतोही हालतमा कचेखनीको अमराईमा जानको." असो प्रस्ताव ठेईस मोरोदुन एक सालको लहान मोरो टानीक काकान् अना येला अनुमोदन देईस मोहलाकोच रमस्या/रमेशन्. मीन् ठराव पास करेव. आमरी जानकी प्लानींग भयी. घर स्यायनोजीकी नजर चुकायशान मंग आमी बाहेर निकल्या. आमला कचेखनी माहीत नोहती. गावमाच आखरीको घर वालोला खबर लेया, "बाबाजी, कचेखनीको रस्ता कोनतो आय?" बाबाजी उलटो आमला खबर लेसे,"तुमी कायलाई कचेखनी जासेव."  आमी सांग्या,"बाबाजी, आमरो अजीन् आमला आवन सांगीसेस." ओन काही टेंशन न लेता मारेगांवको रस्तालका जान सांगीस. 
           आमी दुय किलोमीटर को बाद मारेगांव पोहच्या पर आमला काही कचेखनी दिसीच नही. मारेगांव पार करस्यान आमी जंगलको रस्तालक सामने बढ़न लग्या. जसो जसो जंगलको अंदर जान लग्या तसो तसो आमला भेव लगन बसेव पर काही कचेखनी दिसतच नोहती. आमला का मालुम कचेखनी रिठी गांव आय अना वहान एकही घर नाहात. रस्ता सोड़शान आमी जंगलमा भटक्या. आमी कही आंबाका झाड़ सेत का मुन इत को उत फिरन बस्या. रमस्या कवन बसेव, "बाबा (मोला गावमा बाबा कसेती), आमला चकवान् भुलाईस. आता कसो करबीन." अना आमी तीनही जन रोवन बस्या. ओतरोमाच एक मानुस डोस्कीपर लकडाईनकी मोरी धरशान आवताना दिसेव. ओन भी आमला रोवता देख लकड़ाकी मोरी डोस्कीपर लका उतरायशान जवळकोच झाड़ला टेकीस. अना आमला कोन आव मुन बिचारपुस करीस. आमी आपलो नाव अना अजीको नाव सांग्या. ओन ओको संग चलन सांगीस. आमी ओको मंग मंग चलन लग्या.
            ओन मानुसन् मारेगांवमा मोरो मोठो भाईको सुसरो गोविंदा पटील घर पोहचाय देईस. मामाजीन् आमला बड़ेगाव सोड़ देईस. आमला कचेखनीको अमराई का आंबा त नही भेट्या पर अजीको हातका मोठा मोठा मोठा आंबा खानला जरुर भेट्या.

 इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया
          मो. ९४२२८३२९४१

बचपन के खेल








नहानपनको यादगार खेल
कागजको डफरीको बाजा
                          
*खेल     लहानपनका*
*होता  मोठा फलदायी |*
*वय  नोहोता  खर्चिक*
*स्वास्थ रव्ह सुखदायी ||*

     मी नहान होतो तब कयी खेल खेलत होता. जसा  लगोरी, कबड्डी, खोखो, लंगडी, बिट्टीदांडू, काचकी गोली, सुरसुर काड़ी, नदी का पहाळ, लुकाछिपी, टायरको चक्का फिरावनो, सापसिळी, बालको दानालक चंगास्टा, घानमाकडी, कुची. असा खेल खेलता खेलता कब दिवस बुड़त होतो यको पत्ताच लगत नोहोतो. 

          पर मोरो नहानपनको सबदुन यादगार खेल म्हणजे कागजकी डफरीको बाजा. उनारोको सुट्टीमा मोरा फुपेभाई बड़ेगाव आवत. उनको संग फुटेव  घड़ाको तोंडपर कागजला भातलक चिपकावत होता. वनं डफरीला ताव आवनसाती पंतुनाको खाल्या चुलोपर सेक देत होता. मोरा फुपभाई अना मोहल्लाका दुयच्यार संगी मिलकर नवरदेव नवरीको खेल सुरु होय. आमरो बालमनन् सामाजिक कार्यक्रममा बाजा देखी होतीन असा कार्यक्रमकी प्रतीकृती प्रत्यक्ष खेलको माध्यमलक  साकार करनको प्रयत्न सुरु होय. येन खेलमा कपड़ाका नवरदेव नवरी बनावत होता अना मंग सुरु होय डफरी बजावनसाती खिचातानी. यकोमाच कभी कभी डफरी फुट जात होती अना खेल तितीरबीतीर होयशान खतम होय जाय.
    
    असो खेललक टुराईनमा तत्परता, चपळाई, नेतृत्व करनकी क्षमता, एकाग्रता, संघभावना बढ़ अना स्वास्थ भी तंदुरुस्त रव्ह. विशेष म्हणजे हे खेल अजिबात खर्चिक नोहोता. पण काळको ओघमा घरदारको सामनेका आंगन गायब भय गया. आता घरघरमा टीव्ही अना हातहातमा मोबाइल विराजमान भय गया. असा केतरा तरी खेल येन दुनिया लक आता गायब भय गया.



इंजि. गोवर्धन बिसेन, गोंदिया 
       मो. ९४२२८३२९४१

  कवललकी बंडी
 (नहानपनको खेल)

 गुलाब बिसेन 

नहानपन येव जीवनको बहुतही सुनहरो काल रवसे. खेलो, कुदो, मस्ती करो येकंमा दिवस कसो सरजासे पताच नही चलं. सुट्टिक् रोज दिवसभर खेल बिगर काही नही सूचं येन् उमरमा. घरमक् टुरूपोटुनको खेल देखस्यान सबलाच आपल् आपल् बचपनकी याद आवसे. आबक् टुरूपोटका खेल अना वूनका खिलोना अलग सेती. वर्तमान कालमा बजारमा येकदून एक खिलोनाईनकी रेलचे चोवसे. नहान मोठा, रंगना रंगका खिलोना टूरूपोटुयीनला ललचावसेत अना मंग मायबाप खिलोना लेय देसेत.

आमर् नहानपनमा झाककर देखीसत् दुकानपरक् खिलोनाइनको वू जमानो नोयतो. कवलकी बंडी बनावनो , मातीका चाक बनावनो, लाकूळको भोवरा खेलनो, गाडुर्ली फिरावनो, सायकलको चक्का फिरावनो, कुचकाळी खेलनो, झाळपरा "डाबी" को खेल खेलन् असा आमरा खेल. येन् खेलयीनसाती लगनेवालो सामान घरमाच मिल्. कबी कबी भोवरासारखो खिलोना खातीकनलक बनावनो पळ्. नहीत् सब हॅंडमेड खिलोना रवत आमरा.

येन् सब खेलको मजा अलग अलग रव्. मोरो पसंदीदा खेल होतो कवलक् बैल बंडीको. येन् बंडीका बेरूका बैल आमीच बनावजं. बंडीका चाक आमी मातीका बनावजं. येन् चाक बनावनकी प्रक्रियाबी बळी मजेदार होती. बंडीक् चाकसाती आमी सब संगीभाई एकरोज पटीलक् गावखारीकी माती आनज्. मंग् वा माती फिजायस्यान वोका चाक बनावज्. चाक दुय तपनी वारायस्यान होतवरी आमी कामथमा सेरी चरावता चरावता सेनी जमा करज्.

दुय तपन वार्‍या चाकयीनकी सेनक् सेनीमा भट्टी लगावज्. मंग भट्टीमाका पक्या चाक बंडीला लगावज्. या बंडी आमरा तपनबेरा बाळीमाक् झाळखाल्या खेलनला मज्या आव्. तपन उतरेपर आमी या बंडी धरस्यान बाळीमाक् कांदा लसूनक् वाफामा खेलज्. वाफाला खांड पाळस्यान येक वाफामालक दुसर् वाफामा बंडी कुदावनोमा मोठी मज्या आव्.

येव कवलक् बंडीको खेल बिन पैसाको होतो. खेळापाळाक् टुरूनको उनारोको येव मुख्य खेल आता बहुत कम खेलेव जासे. येव ग्रामिन खेल आता गाव खेळामाबी बहुत कम चोवसे. ये खेल ग्रामिन संस्कतीका अस्सल खेल आती. इनको जतन होये पायेजे......तं चलो मंग.....घरकं टुरूपोटुनला कवलकी बंडी बनावनला सिखावो अना टुरूपोटुयीनसंग् येनं खेलको मज्या लेव.

गुलाब बिसेन (दि.११/०५/२०२१)
नहानपणको यादगार खेल


हिरवोगार सडा टाकेव आंगण, आंगण मा आई सुंदर रांगोळी टाकत होती. ओंन रांगोळी को आसपास मोलाच जसी काही सुंदर रांगोळी टाकता आवसे असो समजत आडवी तिळवी रांगोळी को खेल चल मोरो.. अर्धी रांगोळी नास इदवास करकर मंग मोरो खेल मिटकत होतो.. दुपारी सब सोया का मुन देखे को बाद मोरी सखी आवती अना आमी काक माहल्प बयनी भात भाजी बनावन को खेल मंडावत होता. इटांगुर को चुरा को तिखट , माठ की भाजी पोई को रायतो ,,अना सिसी ला धागा बांधकर पाटी को बिहिर को पाणी ओलनो..भाजी बिकणे वाली साती डब्बा को झाकण की तागडी,  खेल दिनभर रमकत होतो. मोरी माय आमरो साती नहान नहान माती का दूय अवली,तीन अवलि चुल्हा बनाय देत होती ओको पर एकघण आमी ससार को भात भाजी बनायता.अज भी याद से. कोणी चीड चिडी सयेली कभी कभी खेल मिटकाव अना पराय जाय

सौ छाया पारधी
सिहोरा

 नहानपनको यादगार खेल 

नहानपन् आम्ही बहुत खेल खेल्या जसा काड़ी ढोपासनी,लगोरी,धावनी,लप्पन् छ्प्पन्,गोची,एक बकरी खाऊंगा, अजुन बहुत सारा ।पर मोरो सबसे प्यारो खेल होतो भांडा-भात।मोरी आई (मायआजी)मोरो साथी माती कि चुलोली  बनाय देत होती,ना मी ओकोपर सैपाक करत होती मजाक को।पर एकबार सच कि लेपसी बनावनको इरादा करेव्।आपलो सखी यिन संग पाटंग पर खेलत होती कभी कभी। पाटंग पर दुय् कमरा सारखा होता बीच मा लका पायरी चढणसाठी। वोन दिवस मि पाटंग पर चुल्होली लिजायेव ना लहान् लहान काड़ी बनायेतो ज़रावन् साथी।साखर,कनीक ना कटोरी लपायकर लिजायेतो।पाटंग आय त कोनीला पत्ता नहीं चल असो पुरो विश्वास होतो।पर बास जाये येतरी सोचनकि अकल् नोहोति।मोरी सखी होती दुय् ना मी।चुलो पेटाया,मिन कटोरी मा पानी टाकेव साखर ना कनीक ना वा सप्पा डिकी।बास फैली ना मी चुलो बुजायेव।पर मोरी सिटि पिटि गुल भयी।तसिच मोरी लहान मामीजी आयित्।ना बहुत चिल्लाइत् येन भेव् लका कि आग लग जाती त  कसो होतो,काहेकि आम्ही बहुत लहान होता ना आमरो  खरी को सैपाक मंजे गोड लेपसी अधूरी रही।पर आज भी वय गोड याद बहुत मीठी सेती।अज को बच्चु इनला शायद हे खेल कभी नहि समजनका।

स्वप्नाली दुर्गेश ठाकरे

तारीख =११/५/२०२१
लहानपणको यादगार खेल 

    
      खेल भांडा 


     खेल भांडा को खेल म्हणजे  आमरो खुप आवडतो खेल होतो!  उन्हाळो मा आम्ही शाळाला सुट्टी होयव परा घर आयके नुस्ता खेल भांडा काढके खेलत होता. इटईनला उघरके तिखट बनावत होता,अना बाळी मा लका कचरा काळी नहीत मम्मीनं लगायव वापा मालका भाजीको बनाव होता, अना वापा का पाना तोड्या मुन गारी बी खाजन,  रेती को भात बनायके लहान सो मातीको चुलो पर ठेवजन , जाम्ब को पानाला तोडजन अना दवाईको टोकर लका काट शारी उनकी रोटी बनावजन, असोच नकली को सुंदर जेवन बनायके मज्याक लका खाजन। कधी काही की दुकान, त कधी मस्त बाहुली सजावजन.दिवस भर खेलसेव मुन घरका लोक खूप चिल्लात तरी आम्ही काही कोनीकी आयकत नव्हता . कधी कधी मोरी आई आमरा खेलभांडा टिन टप्पर मा बिकनसाती जमायके एक जाग लपायके ठेव. मंग आम्ही दिवसं  आई सोई म्हणजे चुपचाप वय भांडा ढुंढके खेलत होता . लहानपण को खेलईन की मज्याच अलग होती . लहान लहान गोष्टींऩ परलक आपलो सैली संग झगडा करत होता. पर आब त पहले सारखा कोनीच नही खेलत सब मोबाईल अना टिव्ही परा दिवसभर लग्या रवसेती. पहले घरोन घर लहान  टुरींकी आई आपलो चुलो संग एक लहानशी चुलोली आपलो नातीन सातीबी  बनायदेत होती.  आब त कोनीकिच नातीन तपनमा बाहेर खेलता नही दिसं. आम्हीत आम्हरो लहानपण  खुब खेल्या, खुब मस्ती बी करत होता अना शाळाको अभ्यास भी करजन. 

 रानु राहांगडाले
तारीख:-११/५/२०२१      
                    
                 लहानपनको यादगार खेल
                             कुची 
                        
एव खेल कदाचित नामशेष भय गएव.एन खेलमा आमी लहानपण यव खेल खेलत होता. एक हातभर चिंधी ना ओको लहानसो चेंडू बनावत होता. चांदा क उजाळो मा आखरपर सब संगी जमा होजन. मंग उनका दुय थुम्ब मनजे टिम बनावत होता. दुय टिमका  दुय कपतान धळीपर बस्या रव्ह्त ना मंग ग कुची झाळक अँधारौमा फेकत होता. ना दुही टिमका टुरा कुची धुंडत होता। एखादला कुची भेटी त सबजन कुची हिसकन साती भिळ पळत. ना आखीर मा जेकजवर कुची रव वु आपल कपतान जवर देत होतो. एन खेलमा आमरा टेंगरा फुटत ना हातका कोहंगा उकसत जात होता. यव खेल बहतघन खेल्या सीजन पर आता यव नामशेष भय गयी से.  तसोच खेळामाका कोहरोको खेल. आटीपाटी नामशेष भया कारण आता सिंमेट डांबर का रोळ होयलक जागा नही रही. 
                    
डी पी राहांगडाले 
    गोंदिया


 लहानपनको खेल


लहानपण का खेल अमरा बहुत होता जसा कि भोवरा , टिपलं दांडू , रेस ट्रिप ,चळी-चंपा , आबी-लाबी , कांच कि गोली असा बहुत होता .कांच कि गोली मा त मी एक नंबर होतो मोला मोरो बरोबरी का कोणीच खेळणं नही देत  होता त मी मोरो पेक्षा मोठो टुरुपोटु संग खेळत होतो. पर मी जब बहुत लहान होतो तसो मा मोला जास्त समज नही आई होती त मोरो खेल होतो लकडी का बयील.
आमरो घर एक लाल रंग को बयील होतो वकॊ नाव होतो मेंडक्या . मेंडक्या नाव सारकोच लहान सो होतो पर बडो मारखोंडया  होतो. घर को गाय को गोरा आय अना माणूस सारको घोरत होतो अना बडो गुणी होतो म्हणून आमरो बाबूजींन वला बिकिन नही घरच मरत वरी रहेव.
आता मोरो खेल को बारो मा सांगूंसू  मोला लकडी का  बयील बहुत पसंद होता. बोट भर पासून त हातभर वरी लंबा मोरो जवड वडगा भर बयील होता. तरीपण बाबूजी कहीं भी जात बाहेर गाव, बजार , या घर को बाहेर कहीं भी त मोरो एकच सांगणो रॅव्ह मोरो साठी मेंडक्या बयील आणो . बाबूजी घर आयो पर खबर लेत होतो त बाबूजी को कवणो रॅव्ह बटा दुकानदार च मर गया होता दुकानच चालू नही करिन सकाळी जाऊ त पक्को आणू . आता मोला थोडी मालुम कि बयील दुकान मा नही भेटत.
असो होतो मोरो बालपण को खेल.

देवराज भुरकन पारधी 
मुळगाव - वडद, हालमुक्काम (नागपूर )

लहानपनकाे खेल
बेंडवागोली
--- *शेखराम परसराम येळेकर* --
इतवार को दिवस होतो. माय सरकारपासूनच सयपाक ना धुनोपानीक् काममा लगी होती. पाच सय दिवस भया होता मायन् धुरा की तोर् काटस्यानी वकी नहान नहान पेंडी बांधकन खऱ्यानपर ठेयी होतीस. शेरी पाटरु ना ढोर बासरुको तोर् खानको भेव मनुन जल्दीच  तोर पीटनसाती मायन् सखुबाई ना फेकुबाई अशी दुय वन्यारनी बनायी होतीस. पन सखुबाई क् मामसुसरोला खाल्या उतराइन कसेत अशी खबर आयी मनुन वा आयीच नही. मोर् मायला बहुतच बिचार आयेव, मनुन माय मोला कवन बसी, "चल ना रे बाब्या, तोर पीटनला, लवकर होये त् घर् आय जाजो." मी कयेव, "माय मी आवुसु जरुर पन मोला खाजो खानला आठाना देजोत् आवु." माय न् हो कयीस. मी हाशीखुशीलका माय संगा खेत् गयेव, माय संगा उमस झोडप्या समान मोला जसी जमे तसी एक पारुगवरी मनमाने तोर पीटन लगेव. माय मोरी खुश भयी ना आपल् पीवशीमालक आठाना काहाडीस ना मोला देईस. काही नोको लेजो खाजोच लेजो, असो मायन दुयघन सांगीस. मी बहुतच खुश भयोव ना यन् आठानाको का करु ना का नही असो मोला लगत होतो. मी सीदो दुकानपर गयेव. मोरी खेलनकी काच की गोली फुटफाट भयी होती, काही गोली त् चेचरानी होती मनुन बेंडवागोली खेलनसाती नई नई गोली लेनको बिचार करेव. आठानाकी दस गोली लेयेव. मी बहुतच खुश होतो. मोर् जवर नवी नवी गोली देखस्सान मोरा संगी बी मोर् जवर हिंडन् फिरन लग्या. गोलीको कोणतो खेल खेलनको यकपरा बिचार चालू भयेव. रमेश कव् टोचपाच खेलबिन, सोटु कव् बदगोली  नही त् राजारानी खेलबिन. बंडू राजारानीक् खेलमा हमेशा रानीच बनत होतो मनुन बंडू कवन बसेव, तुमी काहीच कवो पन आपुन बेंडवागोलीच खेलबिन. सबजनको बेंडवागोली खेलनपर एकमत भयेव. मंग सुरजलाल भाऊक् कोटाक् डहलमा बेंडवागोली खेलनको बिचार कऱ्या.  सय जन होता, यव पायजे का वु पायजे  असो करकन तीन गडी एकआंग ना तीन गडी दुसर् आंग असो खेल जमाया. मोला गोली बढीया खेलता आवत् होती ना नई गोली मोरच् जवरकी होती मनुन मोला हिरो सारखोच लगत होतो. आमरो खेल बढीया रमेव होतो. यतरोमा कोनीतरी चिल्लायेव का गुरुजी आया रे. गावमा गिरेपुंजे गुरुजी को मोठो दरारा होतो. आमी घबराया कोटाक् कोन्टामा लुकान्या. सप्पाई चिडीचिप, बोलनको  नावच नही. मी खाल्या ना मोर् पर पाचजन असी गत होती. जीव जासे का का? असो लगत होतो. घडीभरमा आमी कोटाक् बाहर् आया. गुरूजी गया होता पन मोरी बेंडवामा अना वक् अगलबगलमाच होती वा सप्पाई गोली कोनीतरी उचलकन लिजाई होतीस. मोरी गोली गयी मनुन मी रोवत होतो. मी आसु पुसेव ना नहानसोच टोंड करस्यानी घर् जान बसेव. काही खायेव सारखो टोंड हलायेव ना मायक् सामनेलका गयेव. माय न् कयीस का, बाब्या, का करेस रे आठानाको, मी कयेव, " पीपरमेंट लेयेव ना व माय." असो झुठमुठको सांग देयेव. मोरा बाबुजीबी माय जवरच उभा होता. मायन् अना बाबूजीन् मोला काहीच नही कयीस मनुन मी उगोमुगोच होतो. एक पारुग तोर् पीटन लगेव मनुन काहीच नही कयीन.पन मी मोरी गोली गयी मनुन मनक् मनमा रोवत् होतो. बादमा जेन् गोली लिजाइस वोला मालुम भयोवका बाब्या की गोली आत, मनुन वु इमानदारीलक् आमर् घर् आयेव. मी नही चोयेव मनुन मोर् बाबुजीजवर गोली देईस ना चली गयेव ना बेंडवागोलीवाली बात सांग देइस. मी लहान्यांगक् सपरीमा उगोमुगोच बसेव होतो. "बाब्या अ बाब्या" असो जोरलका मोर् बाबुजीको आवाज आयेव. मी धावतच बाबुजीजवर गयेव.ना कयेव, बाबुजी का भयेवजी.  बाबुजी कवन बस्या, "तोर् मायन् आठाना देयी होतीसत् का करेस रे वन् आठानाको." मी कयेव "खाजो लेयेव ना जी बाबुजी". बाबुजीन् दोबारा बिचारीस तरी मी उच् आवाजमा कयेव का केतक घन सांगु जी बाबुजी, का मी खाजोच लेयेव मनुन. मोरा बाबुजी जवर आया ना दुय गालपर दुय थापड जोरलका मारीन, थापड अशी मारीन का मोला लगेवका भुकंपच आयेव. "बट्टाला यक् मायन् येला खाजो लेनला पैसा देईस ना यन् गोली लेईस. ना यव कोटाक् डहलमा संगीभाईसंग बेंडवागोली खेलसे." गोली लेईस त् लेईस झुठ बी बोलसे. मनुन अकीन दुय चार देय देईन. मोला कायी दान नही सुदरी त् मी सीधो मायक् कोऱ्यामा लप गयेव. आब् असो नही करु ना व् माय. मनुन मनमाने रोवन बसेव. आब् रातमा जेवन नही करनको, असो मी ठयराय टाकेव. मायन् जेवनला बुलाईस, बाब्या जेवनला आवरे, मी कयेव, मोला भुक नाहाय मी नही जेवु. माय लाडलकाच चल बेटा जेवनला बारबार कवत होती ना मी नही आवु कवत होतो. मंग मोरा बाबुजीको दिमाक सनकेव ना  कवन बस्या, "या काय की रे तोरी उपाद." मंग अकीन जोरलकाच चिल्लाया, "अबे आवसेस का नही जेवनला, का कहाडु तोरी बेंडवागोली."  मोरी बेंडवागोली फेमस भयी होती. बाबुजीको राग देखस्यान मोरीत् फटारगयी होती. दुसर् भुकंपक् लाटकी बाट देखनो खतरा से असो सोचकन मी चुपचाप जेवनला बसेव. मंग दुयक् महिनावरी मी बेंडवागोलीच नही खेलेव.  इमानदारीलका आपलो अभ्यास करेव. दुय तीन दिवसवरी मोला सपनमा बी बेंडवागोलीच चोवत होती. अशी होती भाऊ मोरी बेंडवागोली की कहानी

डॉ शेखराम परसराम येळेकर
१२/५/२०२१


 खरोखर मा लहानपनको बचपन कभिच वापस नही आव . मोठो होयपरा याद आवसे . खेल असा होता की, ल़.ंगडी,गोटा खेलाई,बेंदा,लुका झाप्पन,टीक-टीक रंग आमाले पाहीजे कोनसा रंग, नद का पाहाड,पत्ता खेलाई(तास पत्ता) घसरन पट्टी ईत्यादी.  
 पण मोरो आवडतो खेल घसरन पट्टी .मोरो मयका मा आईगी को घर को मंग मस्त मोठी पि.डी.राहांगडाले को लहान वाडा म्हणून से वा वूनकी बोडी आय. 
वहा मस्त नहेर से वेकी मोठी ऊची -लंबी पार से वहा आम्ही खेलजन  . वहा आसपास परसा का झाड सेत ,वोकी डार तोडजन वहा बसकन घूसरजन. मग गाडी का टायर रव वोकोपर २-३ जन बसजन ना मस्त घूसरजन .आबभी तसीत पार से .मन आमरा बम्हाभाऊ से जे आब मा.पोलीस शिपाईसेत ,उनका संगी देवभाऊ पारधी सेत इनको बडो भेव  ये धावत मंग सिधा आम्ही हनूमान मंदीर मा लुकाजन.मोरो आईगिंको घर को आमोर सामने से वहा लकाजन .घडीभर थांबत नोहता ना वहाच मंदीर को हाॅलमा कोंटा खेलाई खेलजन. मंदीर को आमोर सामोर जि.प.शाळा से वहा जाजन वहा मोठो मैदान से वहा मन चाहे खेलजन. असा होतो मोरो बचपन बडा झगडा करजन . रोंटी कवजन चिडावजन त ४-५दिवस एकमेक संग बोलत नोहता. अना आता साल ना महीना आपलो सहेली ला डोरालका दिसजन नही.  संगमा
 अभ्यास भी करजन . 
 म्हणून कसू कास बचपन कभी वापस आवतोत!!!

बित्या दिवस वापस नही आवत .





     सौ:ओमलता के पटले

लहानपनको खेल
(काळी घुसराई)

लहानपण देगा देवा
मुंगी साखरको रवा
ऐरावत रत्न थोर
वोला अंकुशको मार

असो एक कवी न कयी सेस. वा बात एकदम बरोबर से. ना त लहानपण वापस आव ना वय लहानपनका खेल. मोठो होयेपरा लहानपनका खेल बी खेलता आवत नही. लहानपण की मज्या काही अलगच रव्हसे. 
     मोरो बचपण अना दसवी वरी शिक्षण मामा गाव म्हणजे बडद माच गयेव. तसी खेल मा मी तरबेज. दिवसभर उदमस्यान पणा करनो मा माहिर. घडीभरच यहा त घडीभरच वहा. मोरी आजी बुलाय  बुलाय के थक जाय पर घर आवन को नाव नही. खेलमा मस्त धुम. जबवरी मोरो लहान मामु को भेव देखावत नोहोती तबवरी खेल चालूच रव्ह.
कयी प्रकार का खेल खेल्या आमी. लंगडी,आबी देवाई,गोटी(पाच गोटी,पंधरा गोटी) दप्तर मा गोटी अना लंगडी खेलन की बील्ली हमेशा रव. इश्कुल मा पुस्तक लीजानो भूल जाज पर गोटी अना बिल्ली नही. कयी बार त दप्तर चेकींग मा मार बी खायेव. पर दप्तर मा उनको ठेवा रवच.
नद का पहाळ,लगोरी,टीक टीक रंग ,धावा पीटी,उठा बसी,रेसटीप,(लुकाछपी), पर इन सबमा मोरो आवडतो खेल होतो .काडी घुसराई. उतार परलका काडी घुसरावनको जेकी काडी सबसे मंग रव्ह वोको पर दाम आव. आबी देवाई को खेल खेलनसाठी लवचीक अना लंबी काडी की जरूरत रव्ह. एकबार त बाबुजी की तुतारी खेलन लीजायेव होतो. अना तुतारी भूल के घर आयेपरा मस्त पाठ बी सेकी होती. जानदेव तुमला सांगु त तुमी अखीन हासो बाबा. 
 खेल मा जेकी काळी सबसे मंग रव्ह वोको पर दाम आव. मंग जेकैपर दाम आव वोका दूही हात वरती करधको अना हात परा काळी ठेवनको अना एकजन आपलो आबी को काळी लका जोरलका वा काळी दुर फेकनको. अना दुरवरी बाकी जन फेकत रव्हत होता. असो करता करता वोकी दाम ढोढी को वोनांग राहांगडाले को अमराई वरी जाय. कभी आऊट होत होता नही त मंग दया आयके दाम माफ कर देज. येन खेलमा रंनीग की मस्त प्रँक्टिस होय जाय. मंग अमराई माका गोळ आंबा पहारेदार ला हुलकावणी देयके चोरनको अना खात खात घर आवनको.
तुमला खरी सांगु यव खेल खेल खेलके मी १०० मीटर अना ४००  मीटर रनींग मा हमेशा पयलो नंबर लेयी सेव. लाँग जम्प अना हाय जम्प मा ट्राफी भेटी सेत मोला.
त असा आमरा बया खेल होता.बयाच कवनो पडे ना.तहान भूक भूलके खेलत होता.कभी कभी रोंटी बी खेलत होता.झगडा बी होत पर घडीभरच. 
आबसारखो मोबाईल अना टी.व्ही बी नोहोतो.खाल्या मान टाकके आबसारखो बसनला.

सौ.वर्षा पटले रहांगडाले
गोंदिया

कृष्ण अना गोपी

मी बी राधा बन जाऊ बंसी बजय्या, रास रचय्या गोकुलको कन्हैया लाडको नटखट नंदलाल देखो माखनचोर नाव से यको!!१!! मधुर तोरो बंसीकी तान भू...