Monday, March 30, 2020

काव्यस्पर्धा क्र. 3 "जातो"-तुमेश पटले "सारथी" बालघाट (म. प्र.)

               जातो

चल बाई बहुत सो आब काम करनो से,
पायली भर मोला आब चाउर दरनो से!!

गुडया को बाबूजी, अना चार मुख्तयार,
उनको लाई सिदोरी करनो से तैयार,
नाहन्नागन मोठागन को झाड़ बोहर,
अना बईल लाई डोंगा मा पानी भरनो से!!
पायली भर मोला आब चाउर दरनो से!!

मांदी बसन ला गयी से आब सासु माय,
सुसरों मोरो बड़ी कर से सब हाय हाय!
टुरु पोरट्टू की स्कूल ल भई आवन की बेरा,
अना संध्याकाड़ी को सैपाक करनो से!!
पायली भर मोला आब चाउर दरनो से!!

बाहेर कमावनला जासे बाई तोरो नौरा,
घरभर का सबझन तोरो डोलावसेत चौरा,
आक डाक की बाई हामरी या जिंदगानी,
यहांच हामला जीवनों ना यहांच मरनो से!!

चल बाई बहुत सो आब काम करनो से,
पायली भर मोला आब चाउर दरनो से!!

तुमेश पटले "सारथी"
बालघाट (म. प्र.)

काव्यस्पर्धा क्र. 3 "जातो"- सौ. छाया सुरेंद्र पारधी


        जीवन जातो

झुंनझुरका‌ भयी आब् करूसू घाई
रोटी बनाऊंन् कसी, पीठ् नहाय् घर् ।
उठ् मोरी मैना बेटी, कोंबडा देईस् बांग्
दुई माय् बेटी दरबिन्  पीठ जातो पर्  ।१।

आव् जलदी बेटी, संग् चाऊर की ताटी
धर बोहरी हाथमा ,जातो झाडझुड कर् ।
बसं आता यहान, चाऊर टाकजो थोडका
रामनाम  लेयकर, जातो फिरावबिन् गरगर् ।२।

फिरसे् जातो गरगर्, सांगसे तत्वज्ञान
मेहनत् करो तुमि, नोको बसो घरपर् ।
चावुरको एकएक कन्, पीस् जासे जातोमा
पांढरो पांढरो पीठ कसे, मेहनतला नई सर्  ।३।

जसो जातो फिरं गरगर् पीठ सरसर पड्
मेहनत को रोटीला आये अमृत कि सर् ।
नाेको करो चोरी चाटी राख होये जीवन
सदाचारी ,शाकाहारी, ठेवो शुद्ध आचर ।४।

जातो को दांड ठसेव् रवसे पाटा पर नई हल्
अडिग रहो तुमि, नोको भिओ कबी कणभर् ।
फिरसे जातो जसो गरागर् तसो से जीवन्
सुख दुख को चक्की मा दुख सेत् मनभर  ।५।

मती नोको ठेवो गहाण् करो मेहनत् को पीठ
जातो सांगसे आमला रस्ता मेहनत् को धर् ।
जपो राम नाम सब् ओला पूर्वजो को आशिर्वाद
जातो फिरावसे पांडुरंग जनी संग  दरण दर्।६।


     - सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

काव्यस्पर्धा क्र. 3 "जातो"-पालिकचंद बिसने सिंदीपार(लाखनी)

      जातो

जातो रव् घरघर्,
जातो दळनकि मशीन
यंत्र बनेव सहाय्यक
नयि बिसरे विज्ञान मन//

जातो फिर् गरगर्
ओवी कव् मोरी माय्
कर् साहित्य सृजन
वन् काळमा् मन जाय्//

केतरा कष्ट ,केतरी शक्ति
झुंझुरकापासुन माय दर्
नोवती लाईट वन् काळी
तरी पिठ झरझर झर्//

पाटो फिर् धुरीपर्
जसो धरतीको चक्कर
दांड शक्तिको प्ररतिक्
सांड् पिठ दिशा चार//

दार बन् वा चनाकि
होय चुन सत्वगुणी
नोवती पिठमा् गुणकि कमी
जातो होतो बहुगुणी//

समय गयोव विज्ञान आयोव
सलवार आयोव साडी गयि
काळ बदलेव क्रांति भयि
जातो गयोव चक्कि आयि//

जो भुले इतिहास
वको होये पक्को नाश
समाज करे वला नापास
मायको जातो होतो खास//

पालिकचंद बिसने
सिंदीपार(लाखनी)

काव्यस्पर्धा क्र. 3 "जातो"- वंदना कटरे "राम-कमल" गोंदिया


विषय- जातो

मानव बुद्धी को चमत्कार
भयव जातो को जनम
एक गोल चपटो गोटा
रवसे दुसरो पर मगन ।।

वरतो गोटाला एक दांड
अन मंझारमा रव छेद
महिन पीठ दरनसाठी
नहि समज उ काहि भेद ।।

घरोघरकि  बहु  बैदी
रात-दिवस राबत
झुंझुरकाच उठस्यान
जातो परा दरण दरत ।।

हिरदामाकि भावनाला
गानो मा पिरावत
मेहनत, विश्वास लक
जातो कि खुटी घुमावत ।।

गरगर आवाज लक
सुगम संगीत सुरू
"भगवान "चोव जातोमा
हिरदा को मोठो गुरू ।।

आई-माई को कष्टला बि
जातो देत होतो मान
दार, गहु, चाउर दरन
जातो च समालत कमान ।।

आता चक्की ला महत्व
विज्ञान को आय करम
निःस्वार्थ सेवा करनो
जातो को आय धरम ।।


वंदना कटरे "राम-कमल"
गोंदिया
29/03/2020

काव्यस्पर्धा क्र. 3 "जातो"- चिरंजीव बिसेन गोंदिया


      चित्र देखकर कविता
      ***************
पहले पहाट् पासून जातोपर,
पिसावनो होय जाय सुरू.
जातोपर की ओवी आयककन्
झोप माल् उठत होता टुरू.

पुरान् जमानो को पिसन् को,
एकमात्र साधन होतो जातो.
चाऊर,गहूॅ,दार पिसावन क्,
काम मा आवत होतो जातो.

हर घर मा रव्हत होतो,
पहले जरूरी जातो.
आब् की आटा चक्की को,
काम करत् होतो जातो.

बाई लोग घर क् जरूरत की,
चीज् जातोपरच् पिसत्.
जातो फिरायवल् होत् होती,
मेहनत म्हणून स्वस्थ रव्हत.

पिसावन को जादा रहेव त्,
जाऊ-जिठानी,सासू-बहू पिसत्,
एकटीच बाई घर रही त् ,
मोहल्ला की बाई हात बटावत.

येन् जमानों मा आटा चक्की,
नहीं त् रेडीमेड मिलसे पिसान.
जातो भय गयेव निकामी,
जेव होतो घर को स्यान.

              रचना- चिरंजीव बिसेन 
                           गोंदिया.

काव्यस्पर्धा क्र. 3 "जातो"-मुकुंद रहांगडाले (हरी ओम सोसायटी दत्ता वाडी नागपूर )

      जातो 

सकार को दरन ,
रवसे कोन को घरपर,
माय बेटी दर सेति 
सात खंड को माडी पर,

  जातो परबसी मी ,
संग मोरो सासूबाई ,
करो तुम्ही लगबग 
कहाडो घाम सासूबाई ,

सुंदर मोरो जातो से,
फिरसे गरगर,
पिठ दरुसू ओकोमा ,
लगसे बहुत चवदार,

बाई दरन दरेव ,
जसो चंदन पीसेव,
आई बहीण ला पुसेव
कसो समय कटेव,

पुरानो जमानो मा दरन
को काम आव जातो,
किसान रव या रव जमीनदार
जातो पर दरेवं च पीठ खात होतो,
        

              मुकुंद रहांगडाले
(हरी ओम सोसायटी दत्ता वाडी नागपूर )

काव्यस्पर्धा क्र. 3 "जातो"- ज्योत्सना पटले " कौमुदी " (मुंबई)

             जातो

मोरो घर की मोठी खोली मा,
 मंडयो रव्ह से गोटा को जातो,
घर की आई-माई संग् 
जुड़यो से येको मोठोच् नातो।।

लकड़ी की खूटी गड़ी से एकांगन,
बन्यो से छेद येको मंझार,
खाल्या की तरी न आपरो डोई पर
धरी सेस ऊपर को संपूर्ण भार,

एन् जातो पर टिकयो से घर अन् संसार..

आव सेत् शेजार की बहू अन् बेटी,
धर धर कर टुकना मा चाऊर अन् दार,
वय गाव सेत गाना दरन को बेरा,
जातो लक झर् से पीठ् की धार,

एन् जातो पर टिकयो से घर अन् संसार...

बीतयो जमानो की बात भयो जातो,
पर आब् बी से येको  महत्त्व बरकरार,
बेटी को बीहा की हरद दरन साती,
ढूंढ् से माय जातो वारो को द्वार,

एन् जातो पर टिकयो से घर अन् संसार..

- ज्योत्सना पटले " कौमुदी "
       (मुंबई)

काव्यस्पर्धा क्र. 3 "जातो"-डॉ. शेखराम परसरामजी येळेकर नागपूर

       माय दरन दरसे

सकारी उठसे, घरकाम करसे । 
घरक् जातामा, माय दरन दरसे।। 

खुटाला धरसे, जातो गरगर फिरसे। 
घरक् जातामा, माय दरन दरसे।। 

हातका चाऊर, जरा जातामा टाकसे। 
घरक् जातामा, माय दरन दरसे।। 

जाताको अवाज, घर घर आवसे। 
घरक् जातामा, माय दरन दरसे।। 

दरन दरसे, माय गाना बी कवसे। 
घरक् जातामा, माय दरन दरसे।। 

चाऊर दरसे, पीठ अक्स्या को करसे। 
घरक् जातामा, माय दरन दरसे।। 

फिराव् जाताला, वकी बंगळी बजसे। 
घरक् जातामा, माय दरन दरसे।। 

कामबी करसे, वला योगाबी लाजसे। 
घरक् जातामा, माय दरन दरसे।। 

-डॉ. शेखराम परसरामजी येळेकर नागपूर
२९/३/२०२०

काव्यस्पर्धा क्र. 3 "जातो" -वर्षा पटले रहांगडाले बिरसी (आमगांव) जिल्हा गोंदिया

      जातो पर की ओवी

सुंदर मोरो जातो गा,फीरसे बहुत
ओवी गाऊ मी कौतुक, आव गा विठ्ठल।।

जीव शिव दुही खुटा,परपंच को गोता गा
लगावनला पाच बोट,तु आव ना विठ्ठल।।

सासु अना सुसरो,देवर यव तिसरो
ओवी गाऊसु मी भरतार,तु आव ना विठ्ठल।।

सकार की बेरा से,तान्हो मोरो लेकरू
कसी करू बाई मी,तु आव ना विठ्ठल।।

सासु को जाच से,परिवार की आच से
कामको बोझो से,तु आव ना विठ्ठल।।

परपंच को दरन,जातो परा दरूसु
सासुपुढ ठेऊसु,तु आव ना विठ्ठल।।

सत्त्व को अंधन,पुण्य मी ओरेव
पाप सप्पा उभाय गयेव,तु आव ना विठ्ठल।।

गाऊसु मी ओवी,जातोपरा बसके
पीठ आवसे भुरभुर,तु आव ना विठ्ठल।।

- वर्षा पटले रहांगडाले
बिरसी (आमगांव)
जिल्हा गोंदिया

Thursday, March 26, 2020

कापूर

                       !! कापूर !!
                ________________

थोडोसो विषय से अज मोरो अलग थलग
करबिन ज्ञान विज्ञान पर बात तब् तलक.

कापुर काहे जरावसेत सब हिन्दू घरमा? 
कापूर जलायेलक मच्छर दड़ासेत दरमा.

बड़ों गुणकारी कीटाणु मारक से कापूर,
नोको समझो  येला  तुमी थातुर  मातुर.

हर जागमा सकारात्मक ऊर्जा जगावसे
मन मंदिरमा आमरो श्रध्दा आनंद भरावसे.

आरती को कपूर जब भी कभी लेओ,
हाथ को हतोरिला नाक को जवर ठेओ.

घुटना को दर्द मा कपूर की मालिश करो
या जुव ला मारनसाठी डोसकी मा मलो.

              - सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

कोरोनाकी लाट

               कोरोनाकी लाट

कसी आयी से भयानक आब कोरोनाकी लाट।।

पाणी बरसेव,दिवस बी आता रुक्या
रस्ता भया सामसुम अना यंत्र बी रूक्या
कशी आय गयी से आब या पहाट......

आसुबी आयके अटाया अना वार गया
मरन को दरवाजा मा यमराज सेत उभा
स्मशान शांतता पसरीसे विश्व मा घनदाट.......

कयी तऱ्हा का रोग आय के गया
पर सडा देह का नही पड्या अजवरी
पूरी शक्ती लगावसेत डॉक्टर अना देशभक्त विराट........

दुखी अना केवीलवानी भयी जनता विश्वकी
देश बचावनसाठी लगावसे सरकार पुरी शक्ती
घरमा बसके लढो सबजन यन युद्ध की वाट.......


✍ वर्षा पटले रहांगडाले
बिरसी (आमगांव)
गोंदिया

Wednesday, March 25, 2020

बैहर - परसवाडा क्षेत्र के पंवार

सतपुड़ा की घनी वादिओं में बसा बैहर क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों और सौंदर्य से परिपूर्ण हैं. ब्रिटिश सरकार ने सतपुड़ा की पहाड़ियों को चीरती हुयी सड़कों का विकास किया ताकि वें इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग कर सके. पूर्व में ये क्षेत्र गोंड राजाओं के अधीन थे और बाद में मराठाओं ने इन पर नियंत्रण किया. मराठाओं ने राजपूत पंवारो को कटंगी, बालाघाट, वारासिवनी और लांजी क्षेत्रों में बसाया था. मराठाओं के बाद इन क्षेत्रों पर ब्रिटिश नियंत्रण हो गया और उन्होंने बैहर क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए राजपूत पंवारो को बैहर क्षेत्र में बसने के लिए प्रेरित किया.

बालाघाट जिले के उपायुक्त कर्नल ब्लूमफील्ड ने 1870 के आसपास पंवार राजपूतों को बैहर क्षेत्र में बसने के लिए प्रेरित किया और सर्वप्रथम श्री लक्ष्मण पंवार परसवाड़ा क्षेत्र में बसे. इसक बाद  बैहर क्षेत्र में पंवारो को कई गाँवो की पटेली/ मुक्कदमी/ जमींदारी दी गयी जो कृषि प्रधान ग्राम थे. 

बैहर मुलत: मुस्लिम बस्ती थी जहां पर मुस्लिम पटेल थे. परन्तु आज यह पंवारो की तीर्थस्थली है और आसपास के बहुत से पंवारो ने बैहर को अपना मूल निवास बना लिया हैं.

25 जनवरी  1910 को सिहारपाठ बैहर,जिला-बालाघाट में श्री गोपाल पटेल ने पंवार  समाज की बैठक बुलाई थी जहां इस पहाड़ी पर समाज के द्वारा राममंदिर बनाने का निश्चय किया गया और इस पँवार संघ के नेतृत्व में 1913 में  सिहारपाठ पहाड़ी, बैहर पर राममंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ.

बैहर नगर के आसपास करेली, खोलवा, गुराखारी, नेवरगांव,जत्ता, शेरपार, कोहका, केवलारी, गोवारी, गोहरा, भंडेरी आदि गाँवो में पंवार निवास करते है. बैहर से पूर्व की और बढ़ने पर मोहगांव, मलाजखंड से लेकर दमोह, सालटेकरी तक कई पंवार बस्तिया है जंहा बहुत बड़ी संख्या में पंवार निवास करते है जिनमे दूधी,बिरसा, बाहकल, पल्हेरा, सारसडोल,सुंदरवाही,टिन्गीपुर,बिसतवाही,बोदा,चक्रवही,भटलाई,जैटपुरी,करमसरा, पौनी,रेहँगी,शाखा,सरसडोल,चारटोला आदि हैं. बैहर से गढ़ी की तरफ पंवारो का बसाव कम हैं.

परसवाड़ा क्षेत्र सबसे ज्यादा कृषि प्रधान क्षेत्र है इसिलए परसवाड़ा से लेकर लामता, चरेगांव तक वैनगंगा नदी के पूर्वी क्षेत्रों में पंवारो का विस्तार होता गया. वैनगंगा नदी के पश्चिमी क्षेत्रों में पंवारो का बसाव मराठा काल में ही हो चुका था जो कटंगी और बरघाट के पंवारो का विस्तार था. लामता से परसवाड़ा के बीच सतपुड़ा की पहाड़िया है और पुन: परसवाड़ा का पठार है जो समतल है इसीलिए परसवाड़ा के आसपास बहुत से पंवार बहुल गॉव बसे जिसमे लिंगा, पोंडी, बघोली, चीनी,भीड़ी,भोरवाही आदि प्रमुख है. परसवाड़ा विकास खंड में डोरा के आसपास भी कुछ पँवारो के गांव हैं जिसमे अमवाई, केशा, डोहरा,फंडकी आदि प्रमुख हैं.

अरंडिया,बड़गाव,भादुकोटा,भमोड़ी,भीकेवाड़ा,चनई,चंदना,दलवाड़ा,धुरवा,दिनाटोला,जगनटोला,जैतपुरी,झिरिया,कलेगाव,कतलबोडी,लत्ता,लीलामेटा,मजगाव,मानपुर,मोहगाव,पिंडकापार,सलघट,सरेखा,सिंघई,सुकड़ी,खापा,खर्रा,खुरमुण्डी,कोसमी,कुमनगांव आदि परसवाड़ा क्षेत्र के गावों में भी बहुत बड़ी संख्या में पंवार जाति के लोग निवास कर रहे हैं.

बालाघाट की सतपुड़ा की घाटियों को पार करते ही सर्वप्रथम उकवा क्षेत्र आता है जिसके आसपास कई बड़ी पंवारो की बस्तिया है जिसमे समनापुर,रूपझर, पोंडी, सोनपुरी, दलदला आदि प्रमुख है. 

बैहर तहसील में पंवारो के बसाव के बाद यहां सर्वप्रथम उन्हें आदिवासिओं के साथ सामजस्य करना पड़ा और धीरे धीरे बैहर तहसील की छत्तीसगढ़ी-गोंडी संस्कृति के साथ घुल मिल गए. पंवारो की बोली में छतीसगढ़ी बोली के कई शब्दो का मिश्रण होता गया जिससे बैहर क्षेत्र की पोवारी बोली का स्वरुप अन्य क्षेत्रों से थोड़ा भिन्न होता गया. 

समय के साथ सतपुड़ा पर्वत ने बैहर और बालाघाट क्षेत्र के पंवारो के मध्य कुछ दूरिया भी बढ़ा दी है परन्तु सामाजिक एकीकरण के दौर और क्षत्रिय पँवार तीर्थ स्थल बैहर ने सबको फिर से एकीकरण की ओर अग्रसर किया हैं.

                       प्रस्तुती- ऋषि बिसेन 
                                 नागपुर

बिरानी

                       बिरानी

अग्निवंशीय पोवार आमी,राजा भोज की कड़ी।
रीति रिवाज चलत आय रहया सेति पेढ़नपेढी।।
                                                             
देवीदेवता का प्रकार सेती तेत्तिस कोटि।               
कण कणमा आमला सब देव दिस सेती।।

गुरु दून महान आपला वाडवडील आती।
मनमा आमरो उनको प्रति श्रद्धा से मोठी।।

मरे पर स्वर्ग मा जासेती असो से ज्ञान।
उनकी इच्छा पुराव् सेत वंसज याहान।।

चवरी परा वाडवडिल रवसेत विराजमान।
सणदिनला चवरी परा बीरानी टाकसेत पोवार।।

बिरानी त उत्तम से बात पूर्वज ला करणों याद।
पर कान खोलकर आयकलो मोरी सब बात।।

माता पिता की सेवा उनको जितो परा करो।
मरे पर उनको, तुमि सोंग धतूरा नोकों करो।।

पर याद मा उनकी चवरी की मानता करो।
साल भरमा पांचबार कागुर बिरानि तुमि करो।।

संस्कार असा तुमि आपलो  बेटा बेटी पर करो।
पूर्वज ला याद करन की अनमोल गठोड़ी सोडो।।

             - सौ छाया सुरेंद्र पारधी

Sunday, March 22, 2020

काव्यस्पर्धा क्र. 2 "अदरक"-पालिकचंद बिसने,सिंदीपार(लाखनी)

      अदरक

अदरक से रोप गुणी
बांदी बाडीमा शोभसे
भाजी अना् चायला 
वु चवदार बनावसे//

अदरको पाला कसो
सुगंध सबला देसे
खोकलो परा सयदसंग
वु आरामच देसे//

सर्दी भयि बंड्याला!
चटावो सयदसंग अदरकला
अदरकलकाच सुंठ बनसे
वको चुराबि पोटदुःखीला//

आदरकबि खेती करो
बेकार नोको रवो
देये आमदानी खनखन
हातला काममा ठेवो//

पोवार अना् अदरकको
नातो बडो जुनो से
अदरकको रसबि 
तापपरा काम आवसे//

पोवारघर् से खजानो झाडंयको
खेत वको कृषिविद्यालय
देशी अदरककि जरुरत से आब्
घरघर होये शोधको आगर//

  पालिकचंद बिसने
सिंदीपार(लाखनी)

काव्यस्पर्धा क्र. 2 "अदरक"- सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

काव्य स्पर्धा क्रमांक २
दिनांक  २२/०३/२०२०
विषय :   अदरक

जिंजीबरेसी कुल को आय
आयको अदरक येको नांव। 
माती को अंदर पालन होसे
अदरक वंश को विस्तार गा।।

सबको रांधन खोलिमा मिलजासे
लसुनसंग संग, मंग पिसी जासे।
भाजी को जब तड़का लगसे
बढ़ाय देसे भाजी को स्वाद गा।।

बडी गुणकारी, तीक्ष्ण उष्णविर्य 
अग्नि प्रदीपक , कटुस रस बड़ो।                                    
लगाय लेव तुमि अदरक को रस
हरदकपारीमा देसे बड़ो आराम गा।।

सर्दी, खासी अना पोटदुखी मा
बडी तकलीफ नाक अन पेटमा।
लेयलेव शहद संग अदरक को रस
दूर पराए सर्दी,  खासी जाओ भुल गा।।

कैंसर की कोशिकाको नास करसे
दमा , वात,पाचन मा से मददगार ।
तुरसी अदरक शहेद को रस एकमा 
पेट को सफाईमा नहीं धर कोनी हात गा।।

सुंदर कांति साती मुख पर लगाओ
तुरसी, अदरक, शहेद को रस ला।
गोरो मुखड़ा चमक उठे साजरो
तेजोमई होये, तजेली रहे काया गा।।

वारायकर बनायलेव येकी सुठ
बढायलेव चाय को मस्त स्वाद ।।
अदरक सरिखो बहुगुणी बनो
सिक लेव अदरक का गुण गा।।

- सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

काव्यस्पर्धा क्र. 2 "अदरक"-वर्षा पटले रहांगडाले बिरसी (आमगांव) जिल्हा गोंदिया

काव्यस्पर्धा क्रं. ०२
विषय-अदरक
दिं . २२-०३-२०२०

गुणकारी से बडी अदरक
रांधनखोली मा बडो महत्त्व
हर व्याधी दुर भगावसे
येवच से अदरक को तत्व

सर्दी ,जुकाम मा फायदेशीर
मसाला मा से अव्वल दर्जा
बजार मा बी सस्ती से उपलब्ध
लेनो नही पड लेनसाठी कर्जा

आयुर्वेद मा से महत्त्व खास
परदेश वरी पोहोच गयी से
अमेरिका, जपान सारखो देश को
खानपान अना दवाई मा पोहोची से

लाभकारी से शरीर साठी
कफ दुर भगावसे जल्दी
प्रतिकार शक्ती बढावसे
अगर संग रव्हसे हल्दी

चाय को स्वाद ला बढावसे
मसाला वाली चाय को दर्जा देसे
ओली रव्ह वा वारी रव्ह
दुही रूप मा गुणकारी से

पोट को रोग मा लाभकारी
भुक बढावसे अगर पयले खायेत
खावेव अनाज पचावसे
अदरक बादमा खायेत

पाच हजार साल पयलेपासून
अदरक पायी जासे भारतमा
फायदा अनगीनत सांगीसेन
आमरो ऋषी -मुनीनं शास्त्रमा

अदरक फक्त एक मसाला नाहाय
अदरक देसे निरोगी -सुंदर काया
अदरक से एक साधी जडी
पर फायदा अनेक देखेव गया

वर्षा पटले रहांगडाले
बिरसी (आमगांव)
जिल्हा गोंदिया

काव्यस्पर्धा क्र. 2 "अदरक"-श्रीमती वंदना कटरे "राम-कमल" गोंदिया

काव्यस्पर्धा-2
विषय-अदरक

नहि रव अदरक को बीज
रवसे फक्त येको कंद
जमीन को अंदर को
पिवसे येव मकरंद ।।

हिवरो हिवरो पान इन का
बनसेती ताइ परा अक्सया
सर्दी-जुकाम मा करसे
अदरक सबकि रक्सया।।

टूुकडा-टूकडा वारायकन
तयार होसे महिन सोट
पक्वान मा सोडन त
मिठा -मिठा होसेत होट ।।

साक मा सोडो अदरक
बढ जासे सुंदर स्वाद
पाचन इकार ला करसे
शरीर मा लका बाद ।।

आयुर्वेद मा मोठो से
अदरक को गुणी मंत्र
कइ मोठी बेमारी को
सुदार देसे येव तंत्र ।।

पोवार बाडी मा रवसेती
अदरक कि हिवरी सारणी
सद्कर्तव्य को मार्ग पर
अदरक देसे खुसी दिन दुनी ।।

श्रीमती वंदना कटरे "राम-कमल"
गोंदिया
दि. २२/०३/२०२०

काव्यस्पर्धा क्र. 2 "अदरक"-रचना- चिरंजीव बिसेन परमात्मा एक नगर,गोंदिया

पोवारी साहित्य कला व उत्कर्ष द्वारा आयोजित काव्यस्पर्धा क्र.२

                 विषय- अदरक
                  ***********
अदरक सयपाक घर की मसाला की चीज,
प्याज लसून संग देसे स्वाद लजीज.
चाय मा बी अदरक बढावसे स्वाद,
पिवने वालो पियकर कसे 'वाह ताज'.

अदरक की खेती होसे,बाडी माबी लगावसेत,
जमीन क् अंदर जड क् रूप मा लगसेत.
अदरक का पाना बी आवसेत काम मा,
अकस्या बनसेत उनका अच्छा स्वाद मा.

अदरक दवा क् बी आवसे चांगलो काम,
होय जासे जब् सर्दी, खॉसी जुकाम.
अदरक को रस, चाय ल् मिलसे आराम,
अदरक गरम होसे थंडील् बचावन को आवसे काम.

वारेव शहद की बुकनी शहद संग् खाव,
हाजमा ठीक होसे, गैस को नही रव्ह नाव.
अशी या अदरक से बहुत काम की चीज,
हमेशा घर ठेवो,कभी भी नही होय नाचीज.

               रचना- चिरंजीव बिसेन
         परमात्मा एक नगर,गोंदिया.
                 दि.२२/३/२०२०

काव्यस्पर्धा क्र. 2 "अदरक"- अलका चौधरी

काव्य स्पर्धा क्रमांक 2

22/03/2020 रविवार

खान पिवन को बढ़ावसे सवाद अदरक गुणकारी होवसे, 
वरदान मिल जासे जीवन मा बड़ो हितकारी होवसे ll

खून करके साफ वा आमरी दूर बीमारी कर देसे, 
दरद कोनि भी हो आमला आराम भी वा दे देसे l
काम करन की बढ़ावसे हिम्मत कैंसर लक भी लड़ जासे, 
गठिया रोग हो या थायराइड प्रभावकारी होवसे ll

खान पिवन को बढ़ावसे सवाद अदरक गुणकारी होवसे, 
वरदान मिल जासे जीवन मा बड़ो हितकारी होवसे ll

खासी खोखला को दुश्मन से,  पल मा मार भागवसे, 
चाय को मजा भी अदरक मा,  कड़क चाय बनावसे l
जूस भी अदरक को पी ल्यो तुमि,  करो दरद ला राम राम, 
विटामिन की खान से भाऊ लाभकारी होवसे ll

खान पिवन को बढ़ावसे सवाद अदरक गुणकारी होवसे, 
वरदान मिल जासे जीवन मा बड़ो हितकारी होवसे ll

झुर्रि मिटा देसे चेहरा की कसावट भी लावसे, 
आयुर्वेद को घरेलु नुस्खा बच्चा बच्चा  जानसे l
"बन्दर का जाने अदरक को सवाद", आमि तुमि ला मालूम से, 
मुहावरा या भी सुन ल्यो सब पर भारी होवसे ll

खान पिवन को बढ़ावसे सवाद अदरक गुणकारी होवसे, 
वरदान मिल जासे जीवन मा बड़ो हितकारी होवसे ll

                   - अलका चौधरी

काव्यस्पर्धा क्र. 2 "अदरक"-पंकज 'जुगनू' परसवाड़ा ,बालाघाट

काव्यस्पर्धा क्र. ०२
दिनांक - २२-०३-२०२०

विषय -अदरक

विधा - दोहा छंद  ,(५ दोहे ) 
पहलो तीसरो  चरण - १३,१३ मात्रा 
दूसरो और चौथो  चरण - ११,११ मात्रा

.
माह  जून  मा  होवसे ,अदरक की बुवाई
नौ माह मा भयी  फसल,मारच  मा कटाई ।।

२.
अदरक  जड़  को  रूप से,लाभकार  से जात
जुकाम सर्दीअन कफ मा,पिस पिस रस ला खात।।

३. 
अदरक की चाय करसे,पाहुना लक सम्मान
बेटी को बिहाव मा भि, बढ़ावसे यो मान।।

४.
अदरक पिस लगाय लव, होवसे रोग नाश 
खाज खुजली त्वचा रोग,अना हाजमा खास ।

५.
स्वाद लक अंजान होव ,छूटयो गर खाद्य
बंदरा नही जानसे,यो अदरक को स्वाद ।।

स्वरचित
पंकज 'जुगनू'
परसवाड़ा ,बालाघाट

काव्यस्पर्धा क्र. 2 "अदरक"-श्री हिरदीलाल ठाकरे मु, भजियापार पो, चिरचाळबांध ता गोरेगाँव जील्हा गोदिया महाराष्ट्र राज्य

स्पर्धासाती 
विषय,,, अदरक 
दि, २२-०३-२०२०- रोज रविवार 

अदरक कसेती वोला, पोवारी म कसेती सोट, 
घरगुती दवाईपर चलसे, बात मा नाहाय खोट! 

अदरकपाना चायमा, करसेती काँफी को काम, 
अकश्या बी बडा सुदंर, बनावने वालोला सलाम

अदरकपान की रोटी, खानो मा लगत मजेदार 
याद आवसे बचपण की ,सागुंसु आपलो बिचार!

अदरक भुंजकर खावोत, जासेत खाँसी खोकला ,
अर्थी बिमारी कमहोसे, सागुंसु भाऊ मी तुमला! 

अदरक को सेवन करो, जीवन सबको बाहाल, 
ये आती गावरानी नुक्सा, दास कसे हिरदीलाल!

                   कवि 
               =======
        श्री हिरदीलाल ठाकरे 
  मु, भजियापार पो, चिरचाळबांध
ता गोरेगाँव जील्हा गोदिया महाराष्ट्र राज्य 

काव्यस्पर्धा क्र. 2 "अदरक"-डॉ शेखराम परसरामजी येळेकर नागपूर

                      अदरक

अदरक से मोठो गुणी, वु से आरोग्य को धनी
सब्जीला चवदार बनावसे, या से वकी कहानी

अदरकका कोवरा पान, चायमा टाको दुयचार
सुगंध वको  मोहक लगसे, चाय बनसे चवदार

अदरक भेली को काढा, बहु से गुणकारी
दवाई मुहुन पीवो, खॉशीपर पडसे भारी

पान लसुन अदरक का, देखो सीलपर बाटस्यानी
बनाव बढीया अक्स्या, होये मेजवानकी मेजवानी

नही रहे घरमा मसाला, नोको पडोजी झुरनी
अदरक मसाला को राजा, लसुन वकी रानी

✍ डॉ शेखराम परसरामजी येळेकर नागपूर

पोवारी प्रथाएं

1. भोजन पंगत 

 "पंगत "अर्थात् भोजन करने हेतु लोगों का कतार से बैठना।

हमारे पोवारी समाज में विवाह प्रसंग , कथा - पूजन, मृत्यु भोज  इत्यादि अन्य समारोहों पर बड़ी संख्या में लोगों को एक साथ भोजन कराया जाता था ।

पंगत में  भोजन शुरू करने से पहले  ये संस्कृत/ हिंदी  श्लोक बोले जाते थे :-

 " भोजन नहीं यज्ञ है,कर ब्रम्ह अग्नि में आहुती,
नर शुद्ध चित्त सेवन करें तब ब्रम्ह ही होवे मति "


" ऐसी किया कर भावना अर्पण किया कर ब्रम्ह को,
कर फिर भोजन प्रेमसे सद्बुद्धि पावे धर्म को"

       " अन्न हे पूर्ण ब्रम्ह.
उदर भरण नोहे जाणिजे पुण्यकर्म
"

उसके बाद ज्यादातर बुजुर्ग पुरखे लोग  थाली/ पत्तल  के पास अग्नि पर नैवेद्य देते थे, पोवारी में जिसे " निंगरा " कहते हैं । अगरबत्ती भी लगाई जाती थी । फिर ईश्वर को हाथ जोड़कर प्रणाम करने के बाद ही अन्न ग्रहण किया जाता था ।

पंगत में भोजन करते समय भोज शिष्टाचार का पालन किया जाता था, जैसे कि जब तक पंगत में बैठे सभी लोगों का भोजन पूर्ण न हो जाए तब तक सभी लोग बैठे रहते, अंत में सभी लोग साथ में उठते थे ।

 भोजन पंगत में  परोसने वाला व्यक्ति  "और खाना दूं या नहीं " ऐसा नहीं पूछता था खाने वाला व्यक्ति थाली /पत्तल पर हाथ अड़ाकर "नहीं चाहिए" ऐसा दर्शाता था, संपूर्ण भोजन मौन अवस्था में खाया जाता था ।

कोई भी चप्पल जूते पहन कर पंगत वाली जगह नही जा सकता था ।
           

  -साभार
   (पोवारी इतिहास, साहित्य एवं उत्कर्ष ग्रुप )
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2.  नारबोद 

पोले के दूसरे दिन कर पर होने वाला उद्घोष -"खांसी खोखला घेउन जाय नारबोद" , समाज की सुरक्षा के प्रति सामाजिक प्रतिबद्धता और संवेदनशीलता का प्रतीक हैै।

 जब हम अच्छा सोचते हैं तो अच्छा होता भी है , प्रकृति भी सकारात्मक सहयोग करने लगती हैं।

समाज में युगों से चली आ रही परंपराएं धर्म से भले ही जोड़ दी गई हों, पर वे वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक आधार लिए हुए हैं। सामूहिक प्रार्थना की भांति सामूहिक आशीर्वाद समारोह हो या सामूहिक उद्घोष वातावरण में सकारात्मक तरंगें और कंपन उत्पन्न करते हैं जिसके संपर्क में आने पर वृहद स्तर पर विषाणु और नकारात्मक शक्तियां नष्ट होती है।

होली के दूसरे दिन कर पर्व की भोर में गांव के सदस्य मिलजुल कर डिंडी निकालते हैं या "खासी खोखला घेउन जाय नारबोद" का उद्घोष करते हैं जिससे समाज और गांव का बीमारियों से बचे रहने का भाव प्रबल रूप से मन में जागृत होता है। मन में उत्पन्न यह जागृति प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और हम रोगमुक्त बने रहते हैं।

आशा है आधुनिक युवा पीढ़ी जो हमारी परम्पराओं और प्रथाओं से दूर हो चली थी संभवतः फिर से इनसे जुड़ने लगेगी।

-  " सुखवाड़ा " ई-दैनिक और मासिक भारत (पोवारी इतिहास, साहित्य एवं उत्कर्ष ग्रुप )
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Friday, March 20, 2020

मनहरण घनाक्षरी छंद

शेरों जैसे अड़ते थे, 
नहीं कभी झुकते थे।
किस्से राजा भोज के मैं 
सबको सुनाती हूँ ।

          भागीरथ जैसा तप,
          शिवजी का किया जप।
          इतिहास के पन्नों पे,
          उनसे मिलाती हूँ ।

दान दया और धर्म, 
जीवन का यही कर्म।
सिन्धुराज के सपूत की 
बात मैं बताती हूँ ।

            सौ सौ को अकेले मारे,
            संकट में भी ना हारे।
            मातृ भूमि पे जो मिटे,
            बलि बलि जाती हूँ ।

राजा थे महाप्रतापी,
दुश्मनों की फौज नापी।
अलौकिक ज्ञानपुंज,
झाँकी मैं सजाती हूँ ।

          ऐसे कवि ज्ञानी दानी,
          ओज की रही है वाणी।
          चक्रवर्ती राजा के मैं, 
          गीत रोज गाती हूँ ।

अमर है परचम,
चारों दिशि चमचम।
पंवार कुल के लाल,
शीश मैं नवाती हूँ ।

           कालजयी शूरवीर,
           धीर भी रहे गंभीर।
           वीर गाथाओं से सोये,
           राष्ट्र को जगाती हूँ ।

                      कवयीत्री - अलका चौधरी

Thursday, March 19, 2020

जतरा

पोवार की पोवारी आमरी जसि से प्रसिद्ध।
तसीच आमरी गढ़कालिका माय से सिद्ध।।

जतरा लग् से वहां नवरात्रि मा बड़ी विशिष्ट।
धारा नगरी की महारानी से बड़ी फलिष्ट।।

जीवन का सब दुःख होयेती तुमरा नष्ट।
थोडोसो देवो खुदला तुमि भाऊ कष्ट।।

एक बार माता को दर्शन लेनला जावो मस्त
आमरो महाराजा भोज की रौनक से जास्त

देखो आमरो राजा भोज की आन बान शान।
धारा नगरी बड़ी पवित्र आमरों पोवार की शान।

शानदार से उज्जैन की धरती पवित्रता की खान
महाकालेश्वर भगवान शंकर सेत विराजमान

जगाओ आता पोवारी को अलख घरघर।
करो आपलो जीवन की नैय्या भव पार।।

             - सौ.छाया सुरेन्द्र पारधी

मंहगाई लक कविता

अवो माय वो माय  गजब की से महंगाई 
अवो माय वो माय  गजब की से महंगाई  ।।

गाइ - बइल को भाव मा अता 
बिकन  लगिन बकरा-  छेरी 
चाह  माहंगी  भेली  माहंगी 
माहंगी  पान, अना  सुपारी 
पुस्तक माहंगी ,पाटी माहंगी 
अता कसो  ले  होये  पढ़ाई ।।

अवो माय वो माय  गजब की से महंगाई 
अवो माय वो माय  गजब की से महंगाई  ।। 

- पंकज टेंभरे "जुगनू" 

रेहका

देखो नोकों मोरो कन दया लका येत्तो।
तुमला का मालूम मी दुःख मा सेव केत्तो।।

होतो पयले गरीब अमीर सबकी मी शान।
हर बरात मा  मोला होतो मोठो मानपान।।

मोरो शिवाय डोलत नोहतो कोनी को पान।
मोटरगाड़ीला आवनजानसाठी नोहती तब दान।।

वोन दौर मा मोरो परा सबको होतो विश्वास।
आननला बेटिला गुडुरलका जात होतो बाप।।

जोड़ी रव खिल्लारी ओला घोलर झुली को साज।
जानको पहले ओंगणलक माखत खाचर की आस

तनिस को बिछाना ओको परा हतरायेव गोणपाट।
मंग पुढ़ पडदा अना धुरकोरी भाउला बड़ों मान।।

आब कोनी हूंगत ना पुसत नहीं कोनी मोला।
काहे की मोटरगाडी न दिखाईन आपलो तोरा।।

आता भाऊ चित्र मा सिर्फ दिसुसू मी तुमला।
असो होतो रेहका  सांगों आपलो बेटाबेटिला।।

                - सौ, छाया सुरेंद्र पारधी

पोवारी ओवी

                        ओवी

पहिली मोरी  ओवी बाई मातापिता को चरणों मा 
सेवा करो तुमि उनकी बाई धावरे बाळ विठ्ठला।

दूसरी मोरी ओवी बाई, पूजनीय गुरूजनला
दूर करिन अज्ञान ला ,धावरे बाळ विठ्ठाला।।

तिसरी मोरी ओवी बाई, पंढरी को पांडुरंगला
जनी संग दरण दरीस ,धावरे बाळ विठ्ठला।।

चवथी मोरी ओवी बाई, राम लक्षुमनला
आज्ञाकारी भाई बनो धावरे बाळ विठ्ठला।।

पाचवी मोरी ओवी बाई अंजनी को सुतला
लंकादहन करिस वोन धावरे बाळ विठ्ठला।।

सहावि मोरी ओवी बाई तुलसी वृन्दावनला
दिओ लगाओ रोज बाई धावरे बाळ विठ्ठला।।

सातवी मोरी ओवी बाई गढ़कालिका माताला
कुलदेवी आय आमरी धावरे बाळ विठ्ठला।।

आठवी मोरी ओवी बाई राजा विक्रमादित्यला
न्यायप्रिय राजा बाई धावरे बाळ विठ्ठला।।

नववी मोरी ओवी बाई आमरो राजा भोजला
ग्रंथ लिखिन चौऱ्यांसी  धावरे बाळ विठ्ठला।।

दहावी मोरी ओवी बाई निसर्ग माताला
झाड़ लगाओ आता बाई धावरे बाळ विठ्ठला।।

                 - सौ.छाया सुरेंद्र पारधी

मातृ शक्ति

                      मातृ शक्ति

हर घर मा सबको जवर  नहीं रय सक ईश्वर।
मनूंन ईश्वर न सबला देईसेस माय नाव को वर।।

जेकी महती गाता थक जायेत् दुनिया का शब्द।
मायकी शक्तिको सामने जुड़ जासेत् सबका कर ।।

बच्चा साती उतरसे  हिरकनी उचो बुरूज लक पर।
मातृशक्ति पर नतमस्तक होसेत हर नारी अना नर।।

याद आवसे आमला माता जिजाऊ  को शिक्षण।
घडेव शिवबा संस्कारित माताला नई दुजी सर।।

झासी की रानी लक्ष्मीबाई  लढी वा खूब मर्दानी।
शत्रुको करीस मुकाबला पुत्रला पाठ पर बांधकर ।

सिंधुताई सपकाळ त से मातृत्व को निर्मल झरा।
शेकडो बेटा इनला देईस माय को अनमोल घर।।

मदर टेरेसा जिनकी महती गावं से देशविदेश।
तारणहार बन गई गरीब, अनाथ, बिमारकी हर।।

महती गावता गावता माय की कम पड़ गया शब्द।
हर मायला नमन जेको अस्तित्वलक चलसे जग।।

                 - सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

गठबंधन


          इतन उतन  चहलपहल.कोनी सरबत बनावत होती ,कोनी पान बनावत. बिहया को मांडो सजेव होतो. नवरदेव आवनकी बेरा भईती. दूर लकच  बॅडबाजा की आवाज दुर्गा को कान् मा पड़त होती. तसोतसो वा अधिकच कावरी बावरी होत होती .दुर्गा को मनमा भावनाओ़ को तूफान अधिकच उबलत होतो. आपलोच  तांद्री मा गतकाल को चित्र झर झर डोरा को सामने आयेव्.                                                                        ……….देखनला  दुर्गा गोरीपान ,  शिक्षण बारवी पास, शिकन    कि  इच्छा, राघव सारखो चांगलो टुरा को रिश्ता आयेव मुन अाईबापन दुर्गा कों बिहया मोठो धूमधाम लका करीन.
……...नवो नवलाई का दिवस पंख लगायकर उड़ गया. आता दुर्गा मातृ स्पर्श लक भर गई .दुय महीना को गर्भ आेको गर्भ मा पलत होतो. सब सुंदर सपन सारखो दुर्गाला भासत होतो. राघव भी सरल स्वभाव को होंतो. दुर्गा की लहान मोठी सब इच्छा पुरावत होतो.
……..एक दिवस दुर्गा को संसार ला नजर लगी.  होतो को नोहतो भयेव .राघव ला चक्कर आयेवं.डॉक्टर कर लेगेव परा मालूम भयेवं की ओला रक्त कर्करोग से .दुर्गा को पाय खालत्या की जमीनच सरकी…...
तीन महिना माच राघव गयेव….दुर्गा एकटी पडी.  येत्तो मोठो दुनिया मा आता आंसू बहावत गुमसुम सी पड़ी रव दिन दुनिया की काई खबर नोहती.  
…….सासू सुसरो भी चिंतित होता की आखिर पहाड़ सरीखी जिंदगी दुर्गा कसी काटे. आता दुर्गा साठी काही तरी करे पाहिजे दुर्गाला बहू बनायकर आन्या, आता बेटी बनायकर बिदा करके आपलो फर्ज पुरो करे पाहिजे. असो बिचार करके टूरा देखन सुरु करीन, पर योग्य टूरा भेटेव नहीं. कोनी उमर मा जादा त कोनी दुर्गा को पोटमा को अंश सहित अपनावन तयार नोहता. बड़ों मुश्किल लक येव चांगलों टूरा भेेटेव अना दुर्गा का जसी से तसी अपणावन तयार भयेव्.
…"दुर्गा ,चल बेटा आता"आवाज न दुर्गा की तंद्रि भंग करिस. दुर्गा भरेव मन लका मंडप कन निकल पड़ी येन सोच मा की,"आपलो टूरा को दुःख भुलायकर फक्त मोरो जीनगी साठी ये मोरा सासू सुसरा केत्तो त्याग कर रह्या सेत "दुर्गा दुख भुलयकर नवों दिशा कर चली,नवजीवन मा पदार्पण करन,,,

   - सौ. छाया सुरेंद्र पारधी 

प्रेमविवाह

                              प्रेमविवाह
    राती का बारा एक बजे को समय रहे.संगीता को घर का सब लोग सोया होता. दिनभर को काम को थकान लक संगीता ढार- ढुर सोईती. जवड़च ओकी बीस साल की बेटी काव्या सोईती . अनिल भी आपलो खाट पर सोये होतो…..एक मध्यमवर्गीय परिवार जो सुखी दिसत होतो……

      काव्या को बिहया जुडेतो... टुरा बँक मा निबंधक होतो..मार्च महिना को दस तारीख ला बिहया निश्र्चित भयेव...घर भर का सब खुश होता. बिह्या को काममा दिनभर सब व्यस्त होता. मुनच सब गहरो झोप मा होता…..

रात का दुय बज्या रहेत. ...एकदम कुत्रा को भुकन को आवाज आयेव..पर अनिल अन् संगीता घोर निंद्रा मा होता…. वय " टस का मस "नहीं भया……….
झुंनझुरका की बेरा, कोंबड़ा आरायेव तसोच संगीता ला जाग आई. डोरा कुस्करत वा उठी जवड देखिस, काव्या नोहोती ..संगीता ला लगेव इतन उतन रहे….पर बहुत बेरा भई काव्या कहिच  दिसिच नहीं संगीता को ' पाय खालत्या की जमिनच सरकी"......चारही आंग् धुंडिन तब एक चिट्ठी हाथ मा लगी….."आई ,मी घर सोडकर जाय रही सेव,मी तुमला केत्तो बार सांगेव ,मी अंकित संग बिह्या करून, पर तुमि ,अंकित दीगर जात को आय ,गरीब से मुन मान्यात  नहीं... मुन मी अंकित संग बिह्या कर रही सेव".....घड़ी भर माच संसार की घड़ी बिखर गई खुशी की घड़ी दुख मा बदल गई .सब आंग ढूंढेव पर भी काव्या नहीं भेटी . येत्तो साल की कमाई इज्जत पानी मा मिल गई…………….धिरू धिरु समय बितन लगेव….बेटी की याद काई कमी होत नोहोती.

     दुय साल बाद  संगीता काम साती जवड को शहर नागपूर मा आई.. पैदल जाता जाता एकखट्टे वोकी एक भाजीवाली को टोपला ला जोरदार टक्कर लगी, ना टोपला को भाजीपाला बिखर गयेव.जल्दी जल्दी मा 
भाजी वाली आपलो भाजी पाला उठावन लगी ,संगीता ला वा भाजीवाली पहचान की लगी. जसी उठी वा तसी 
संगीता ला आश्चर्य को धक्काच बसेव वा काव्या….. वोकी बेटी…..

"पुत्र कुपुत्र होय सकसे पर माता कुमाता नहीं होय सक"... दूही का आंसू झरन लग्या. काव्या न सांगीस की तीन चार दिवस त मज्यामा गया .अंकित को घर सब काम पर जानेवाला मजदूर होता. पर आमरी जात का ना उनकी जात का सब परंपरा अलग अलग. अंकित दारू पिवत होतो…. रोज मारनो पिटनो एक दिवस मोला घर को बाहेर काहडीस ...गाव वापस त् आय नहीं सकु... मुन भाजीपाला बिककर आपलो गुजारा करूसु..दुही को नयन की धारा रुकत नोहोती……...काव्या बिचार करत होती "अब पछताये क्या होत जब चिडिया चुग गई खेत"

               ✍️सौ छाया सुरेंद्र पारधी✍️

भुली बिसरी याद

                       भूली बिसरी याद

अज बसे बसे याद आई मोरी माय, मंजे मोरो आजी की. उन्हाळो को छुट्टी मा आमी गावं जाजन् सब का घर जवड़ जवड़…. काका ,काकी माहलपा, महालपी, बड़ीमाय, बडोजी, मोरा बहिन, भाई सबजन् रवजन् . बड़ी मज़ा आव्

       तब टीवी नोहतों, होता मस्त मस्त खेल, …..चौरस ,चोर पुलिस, कनचा, बिट्टी दांडू ...एक खेल बड़ों अनोखो होतो. होळी होयेपरा परसा को झाडला शेंग लगत् . शेंग परिपक्व होत्.. वय् शेंग जमा करनों, उनला फोड़नो, आंबा को गुईला फोड़कन बिजी निकालनो,नहीं त मगं मोहू की टोरी फोडनो मा मज़ा आवं…… दुपारी बरफ वालो को आवाज आयेव , तसोच  सबजन फोड़ी बिजी बरफ वालों ला देयकर बरफ लेजन ,मेहनत को पैसा को बरफ खानला बड़ी मज़ा आव्……..
         दुपारी सबजन लेटपेट होतं, तबं मोरी माय कथडी शिवत होती. कथडीला चारही बाजूला सुंदर कपड़ा की रंगबिरंगी फुली लगावं. बडो प्रेम  लक एक एक धागा लका , कथडी को येळा भर्.

        एकबार असोच दुपारी आमी बस्या होता, मी मायला बिचारेव,. "माय तोरो संदुकमा का- का सेत, देखावना मोला" मोरी उत्सुकता देखकर मायनं आपलो चाबी को झोक़ आनीस अना संदूक खोलिस. संदूक देखस्यानी मी त दंगच भय गई.संदूक को पल्ला परा बाबूजी,फुफू‌ की जन्म तारीख लिखी होती... संदूकमा  मी कभी देखे नोहतो असो भी सामान होतो... एक सुंदर चौकोनी थैला सारखो, ओला सुंदर दोरी, आटी वाली…. माय ला मोरी उत्सुकता दिसी अन मग सांगण बसी,,,,,"बेटी, येला झोलना अन येव लहान वालोला खलता कसेती,जब् नवरदेव बीह्या लगावन साठी सार होत होतो, तब झोलना मा चाउर पठावत होता. दवडी, बिवडा मा झोलना ठेवत होता. "   …...मग मोला बिजना दिसेव गोल गोल, वोला बेरू की दांडी, उत्तम धागा की नक्काशी होती. माय न सांगीस पहले आमी खाजो मा बाटत होता. खजिना मा अदीक अत्तर दानी, सिंगार पेटी, कासो की भानी, टमान,पितर को गंगार, कासो की बटकी, भरता किंवा गिलास,  तांबो को गडू, पहले का चांदी का सिक्का ,एक पैसा , दुए पैसा, पांच पैसा, दस पैसा की एक पिवसी, जवड़च पोहरा का लाल मणी अन जापता लक ठेये होतो,... हिड्डा ना पिट कवड़ी….

                  - सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

Sunday, March 15, 2020

काव्यस्पर्धा क्र. 1 "माय वाग्देवी सरस्वती वंदना"-महेंद्रकुमार ईश्वरलाल पटले (ऋतुराज) मु. किडंगीपार पो. ता. आमगाव जि. गोंदिया

माय वाग्देवी(माय सरस्वती)
सरस्वती वंदना
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विनावादिनी माय सरस्वती, करूसू तोला नमन|
भरदे झोली ज्ञानलक मोरी, जीवन होये चमन||धृ||
हंसवाहिनी विद्याकी देवी, नेक मार्गपर करन् दे गमन|
अनिती, लोभ, दुराचारको, तू आता करदे दमन||१||
श्वेतवस्त्रधारिनी ज्ञानकी सागर, अज्ञान दे आता थमन|
बालविवाह, मजुरी बहुत भयी, शिक्षामा होनदे रमन||२||
कमलासिनी माता वाग्देवी, चातुर्यमा बनाव वामन|
मोरो सब भाईबहिणला, कलयुगको बनाव रामन||३||
ज्ञानदायिनी ब्रम्हाकी बेटी, मिटाव भेद अस्पृश्य बामन|
नारीशक्ती होन दे उजागर, सोप नवयुगको दामन||४||
*****************************
महेंद्रकुमार ईश्वरलाल पटले (ऋतुराज)
मु. किडंगीपार पो. ता. आमगाव जि. गोंदिया
ता. १५/०३/२०२०

काव्यस्पर्धा क्र. 1 "माय वाग्देवी सरस्वती वंदना"-आशिष अंबुले,तिरोड़ा (गोंदिया)


    माय सरस्वती
=================
माय सरस्वती तू सेस
विद्या की कुलदेवी,
तोरो जवर से माय
ग्यान की भरमार ठेवी....
तोरो वीणा को हरेक
तार मा से विद्या को सागर,
एकी नय्या जेन करिस पार
वोको जिनगी की भरे घागर...
माय तोला से तीन लोग को
देवता ब्रम्हा को वरदान,
तोरो हर भक्त विद्या मा डूबी से
तोरो आशीर्वाद लक बढाय दे वोकी शान..
माय तू कमलासिनी तोरी
लिला से अपरंपार,
ग्यान को युद्ध मा बिना तीर
चलाये भक्त को कर तू उद्धार...
कला, संस्कृती हरेक कुल की
माय तू सेस सबकी देवता,
हर ग्यानी पंडित, तिन्ही युग
सब मानसेत माय तोला विधाता...
=================
आशिष अंबुले
       तिरोड़ा (गोंदिया)
    8007676902

काव्यस्पर्धा क्र. 1 "माय वाग्देवी सरस्वती वंदना"-कवि श्री हिरदीलाल ठाकरे मु, भजियापार ,पो, चिरचाळबांध ता,आमगाँव जिल्हा गोदिया

"माय  सरस्वती "
पहली वदंना मोरो मायबाप ला,
मोरा जन्मदाता जीवनकरतार! !
दुसरी वदंना  सदगुरु गुरुराया ला
सत्य मार्गपर मार्ग पर देईस आधार
तीसरी वदंना माय सरस्वती ला,
ज्ञान को बडो भरेव से जी भडांर !
चौथी वदंना वागंदेवी मातामाय ला,
पोवार समाज की नया लगायदे पार!!
पांचवी वदंना मोरो राजा भोज ला,
चक्रवर्ती कुलश्रेष्ठ क्षत्रिय राजाभोज!
छटवी वदंना से मार्गदर्शक इनला ,
पोवार समाज को इतिहास करसेती खोज
जय जय माता गडकालीका नगरी तुमरी धार,
राजा भोज की वंसावली या जाति आय पोवार!
आम्ही आया शरण मा तुमरो नया लगायदे पार,
पोवार समाज को इतिहास खोज करसेती,
येन समुह का साहित्यिक ना इतिहासकार!
                 कवि
      श्री हिरदीलाल ठाकरे
          मु, भजियापार ,
        पो, चिरचाळबांध
  ता, आमगाँव जिल्हा गोदिया

काव्यस्पर्धा क्र. 1 "माय वाग्देवी सरस्वती वंदना"-अलका चौधरी ,बालाघाट

       माय सरस्वती (माय वाग्देवी)
हे वाग्देवी माई प्यार को संसार हमला दे l
साफ सुथरो  रहे ये मन संस्कार हमला दे ll
राग अन मा रागिनी हर साज मा सेव तुम्ही,
सेव गीत मा संगीत मा आवाज मा सेव तुम्ही l
वीणा की माय तार की झनकार हमला दे l
हे वाग्देवी माई प्यार को संसार हमला दे l
साफ सुथरो  रहे ये मन संस्कार हमला दे ll
अज्ञान लक  हम सबला माय दूर राखजो,
नेकी ही कलम हमरी लिखे रक्षा भी करजो ll
क़दमों मा ही तुमरो मी रहूँ  दुलार हमला दे l
हे वाग्देवी माई प्यार को संसार हमला दे l
साफ सुथरो  रहे ये मन संस्कार हमला दे ll
सेवा करुँ मी तुम्हरी रोज साधना करुँ,
ज्यो भी लिखूं सच मी  लिखूं साधना करुँ ll
इन्धारो ला को मिटाकर दीपहार हमला दे l
हे वाग्देवी माई प्यार को संसार हमला दे l
साफ सुथरो  रहे ये मन संस्कार हमला दे ll
                 अलका चौधरी
                     बालाघाट

काव्यस्पर्धा क्र. 1 "माय वाग्देवी सरस्वती वंदना"- मनोज देशमुख पांढुर्णा

               माय सरस्वती
हरले मोरो अज्ञान ल, थोड़ो सो सहारा दे।
माय सरस्वती मला, ज्ञान को उजारा दे।।
तोरो संग साथ ले , ब्रह्मा न ज्ञान बढ़ायो।
चार वेद क लिख, जग सी अज्ञान हरायो।।
तीन लोक म तोरी, महिमा महान  हय।
ऋषि,मुनि गुणगावय, करय बखान हय।।
अँधारा म हय मु , हाथ थाम क साथ दे।
माय शारदा मला, बुध्दि को वरदान दे।।
- मनोज देशमुख
पांढुर्णा

काव्यस्पर्धा क्र. 1 "माय वाग्देवी सरस्वती वंदना"- मनोज देशमुख पांढुर्णा

               माय सरस्वती
हरले मोरो अज्ञान ल, थोड़ो सो सहारा दे।
माय सरस्वती मला, ज्ञान को उजारा दे।।
तोरो संग साथ ले , ब्रह्मा न ज्ञान बढ़ायो।
चार वेद क लिख, जग सी अज्ञान हरायो।।
तीन लोक म तोरी, महिमा महान  हय।
ऋषि,मुनि गुणगावय, करय बखान हय।।
अँधारा म हय मु , हाथ थाम क साथ दे।
माय शारदा मला, बुध्दि को वरदान दे।।
- मनोज देशमुख
पांढुर्णा

काव्यस्पर्धा क्र. 1 "माय वाग्देवी सरस्वती वंदना"- सौ छाया सुरेंद्र पारधी


                      वाग्देवी
ब्रह्मा पुत्री तू कमंडलू से उपजी स्वरों की देवी।
श्वेत वस्त्र धारी वीणा हात धरी हंसवाहिनी माई।।
                                                                             माय वांगदेवी  राजाभोज पर असीम तोरी कृपा।
चौरांसी ग्रंथ रचियता असो महान आमरो नृपा।।
संस्कृत को ज्ञानगाता सरस्वतीवंदना को रचिता।
महान चक्रवती राजा को वाणीमा  वास माता।।
तसिच देयदे मोरो वाणी मा माय मिश्रीसी मधुरता।
मिट जाए सबको मन को अहंकार,  द्वेष, कटुता।।
                                                                                श्वेतवर्णी, हंसवाहिनी सरस्वती कमल पर विराजे।
चौसठकला स्वरो की देवी  वाणीमा संगीत साजे।।
अज्ञानता मा ज्ञान की रोशनी  मिटायदे अंदियारो
तोरी शरणमा‌ सब आमी विद्या को वरदान देयदे।।
सबला दे सद्बुद्धि, नहीं सुचे कोनीला  दुर्बुद्धी।
जीवनला  आमरो नवी दिशा, नवो विचार दे माय।
- सौ छाया सुरेंद्र पारधी

काव्यस्पर्धा क्र. 1 "माय वाग्देवी सरस्वती वंदना"-वंदना कटरे "राम-कमल" गोंदिया

माय सरसोती
कमलासिनी माय सरसोती ब्रह्मा को वरदान
तीन लोक का शब्द तोरो कारन धनवान।।
श्वेत वस्त्र बिराजसे शुद्ध विचार को ध्यान
सप्तसुर झंकारसेती वीणा रुपी म्यान।।
मोर, हंस कि तोरी संगत भूतदया को भान
चौसट कला धारिनी ब्रह्माड को अभिमान।।
दीन, दुकि अन अमिरी नहाय भेद ला स्थान
वसुंधरा को हर जीव तोला से कुटूम समान।।
तोरो कारणही सदधर्म को खुलो भयी से दालन
चराचर मा तोरो वास सूक्ष्म रुप मा स्थापन।।
सुहास्य, सुंदर ज्ञानयोगिनी कर सद्बुद्धी को दान
ताल, सूर मा फडकाय दे तू मानवता को निशाण।।
संगीत मा से शील, करुणा, सत्य-अहिंसा को गायन
प्रणाम तोला सरसोती माय मोरो शत शत नमन।।
वंदना कटरे "राम-कमल"
गोंदिया
15/03/2020

काव्यस्पर्धा क्र. 1 "माय वाग्देवी सरस्वती वंदना"-सुरेश महादेवराव देशमुख , नागपूर


⚜ म्हारी माय सरोसती ⚜
म्हारी माय सरोसती
धऱ्या रूप अवतार
दिनं बसंत पंचमी
कऱ्या माय उपकार
     
          म्हारी माय सरोसती
          माया सं अपरंपार
          बानी देईस मुकाला
          करी वोकी नैय्या पार
म्हारी माय सरोसती
भाव भावना इचार
सांगनला दिखाडीस
जबानला रस्ता चार
          म्हारी माय सरोसती
          तोरी अमरीत बोली
          देया मानुसला बोल
          ग्यान भंडारला खोली
म्हारी माय सरोसती
हर कला तोरं पायी
विना ला बजायकन्
सबुदना निपजायी
          म्हारी माय सरोसती
          राजा भोज संग बाता
          ग्यान दियो सनातन
          वेद पुरान की गाथा
म्हारी माय सरोसती
मोर हंस को वाहन
काल अकाल सिमरु
नित दिन तोरो ध्यान
©✒ सुरेश महादेवराव
           देशमुख , नागपूर

काव्यस्पर्धा क्र. 1 "माय वाग्देवी सरस्वती वंदना"-वर्षा पटले रहांगडाले बिरसी (आमगांव) जील्हा -गोंदिया


माय वाग्देवी (माय सरस्वती)
नमो सरस्वती माय तोरी धन्य किर्ती
काया,वाचा,मन नही थकत कभी
लीला सेत माय तोरी अपरंपार सारी
तोरो शरण मा माय मी सेव दासी उभी।।
वंदन करूसु माय सरस्वती मी तोला
कला अना विद्या तु देसेस सबला
तोरीच मूर्ती मोरो मनमा बसीसे
तोरो चरण मा मस्तक ठेवसे या अबला।।
आम्ही सेजन तोरा बालक आब लहान
तोरोच क्रूपालका ग्यान जरा शीकबीन
ज्ञानदिप माय तु लगायेस धरतीपर
तोरो दयालका शिकके लायक होबीन।।
सदा प्रसन्न रव्ह तु देवी सरस्वती
करू मी माय तोरी भक्ती सदासर्वदा
करसेस पूरी आमरी हर मनोकामना
जवळ करसेस तु आमला माय सदा।।
तोरीच शक्ती,तोरीच भावभक्ती
तोरोच से गायन,तोरीच से ओठपर बोली
माय मोरी सरस्वती आशिर्वाद दे आमला
सदा भरी रव्हन दे आमरी खाली झोली।।
तोरो मंदिर मा सप्पा भक्तजनको
भरसे मेला यहा सुख अना शांतीको
भेद भाव नाहाय गरीब अना अमीरको
खुलो हमेशा से यहा दरवाजा विद्याको।।
✍ वर्षा पटले रहांगडाले
बिरसी (आमगांव)
जील्हा -गोंदिया

काव्यस्पर्धा क्र. 1 "माय वाग्देवी सरस्वती वंदना" - पालिकचंद बिसने

माय सरोसती
माय मोरी सरोसती
से विद्याकि देवता
भोजशालामा शोभसे
भयि सबकिच वा माता।।
वकसंग से निसर्ग
सेती पशुपक्षी सारा
देसे संदेश आमला
जपो निसर्ग तुमरा।।
एक स्त्रिला केतरो मान
मोरो भारत देशमा
माता कसे बाचो ग्रंथ
रुचि ठेवो संगीतमा।।
एक हातमा से फुल
ठेवो कोमलता मनमा
साडी पांढरी सांगसे
शुद्ध भाव आचरनमा।।
कमल आसन से वको
निष्कलंक  मन ठेवो
मोर सांगे रवो निट
हंस कसे सत्यच लेवो।।
जहान माताको पुजन
आये मातृभाव वंज्यान
आये प्रेमभाव विद्या
बढे संस्कृतीको मान।।
     - पालिकचंद बिसने

Saturday, March 14, 2020

पोवारईन को परिचय


               !! पोवारईन को परिचय !!
               ! पोवार जाती को इतिहास !
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लेखक अधिवक्ता आर. के. ठाकुर जबलपुर
पोवारी अनुवाद - सोनू भगत, अर्जुनी (तिरोडा)
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             वू दिवस याद आवसे जब मी मेंढा अधिवेशन मा अखिल भारतिय पंवार क्षत्रिय महासभा को "पोवार जाती को इतिहास" लिख कर "पंवार परिचय" पुस्तक दान देयेव होतो, बात १९६४ की आय. वहान का काही अंश यन लेख मा पाठक समक्ष प्रस्तुत सेत.
        पवित्र, पावन, पावनी वैनगंगा नदी को क्षेत्र मा रव्हने वाला महान  परमार उर्फ पोवार/पवार/पंवार बंधु जान शानी भी अनजान सेती की आमी कौन आजन ?
           इतिहास मा जगविख्यात अनेक राजवंश भया जो आपलो अद्वितियता ला खंडहर मा प्रतिपादित कर लुप्त भय गया. येकोमा मालवा को परमार वंश (जो भिन्न भिन्न क्षेत्र वैनगंगा घाटी मा बसी से) आपलो समय मा (ई. ८०० से ई. १३०० तक) उच्चता को अग्रिम शिखर पर विद्यमान होतो. उनकी राजधानी पहले उजैन अना बाद मा धार रही. चक्रवर्ती महाराजधिराज विक्रमादित्य जिनन विक्रम संवत चलाय शानी यन पोवार वंश ला सुशोभित कर अमर भय गया.  राजर्षी भर्तहरी, महाराज मुंज ( वाक्पति मुंज ),  सुविख्यात, शिक्षाविद महाराजा भोज, जगदेव आदी यन पोवार वंश मा पलीत भया, अना भारत वर्ष ला वोन समय दिव्य प्रकाश को मार्ग देखाईन. पोवारईन न मौत को मरुस्थल राजस्थान मा राज्य करिन. सिंध पासुन अरावली पर्वत तक, महाखारी झील (great salt lake) तक पोवारईन को साम्राज्य होतो. १०१८ मा राजा भोज न आपली राजधानी उज्जैन लका धार स्थलांतरित करिस. तब पासुन "जहां धार वहां पंवार", "धार बिन नही पंवार" अना "नही पंवार बिन धार" असी किंद्वती प्रसिद्ध भयी.
       *आमी पोवार कुलोत्पती पर आवसेजन*. क्षत्रियो का ३६ प्रकार का राजपुत-सुर्यवंशी, चंद्रवंशी, रघुवंशी(शिसोदिया), यदूवंशी (भारी), परमार उर्फ पोवार, तोमर, ऱाठौड, कच्छवाह, चौहान, सोलंकी, परिहार, चावरा (चौरा), नागवंशी, हून, बाला, जाला, गोहिल, सिलाट, बुंदेला, सेंगर, सिकरवाल, बसिस, दहिया, जाहिया, निकुंभ, गजपती, अना दाहिमा मा ६ इतिहास प्रसिद्ध भया जेकोमा पोवारईन को स्थान महत्वपुर्ण रहेव. पोवार जाती की कुलोत्पती दुर्लभ ताम्रपत्र, शिलालेख,  पद्मगुप्त, परिमल कवी को अनुसार निन्म प्रकार लका बनाई गयी से।  भारत मा जब शांतीप्रिय जीवन दुष्कर भय गयोव तब की बात आय, विश्वामित्र अना वशिष्ठ मुनी की गाय अना ग्रंथ अपहरण दुष्ट  लोगईन न करिन तब उनला प्राप्त करन हेतू आबु पर्वत पर गंगाजल द्वारा मंत्रोच्चारण कर 'दुब' नामक गवत ला चार भागईन मा विभक्त कर  संजिवन मंत्र द्वारा यज्ञ को अग्णिकुंड लका एक महाविर तेजस्वी पुरुष को आव्हान करिन, जेन मार- मार की गर्जना कर दुष्टईनको संहार करिस. दूष्टो लोगिइनको संहार करेव पर वन तेजस्वी पुरुष को नाव 'परमार' पडेव. यन प्रकार परमार/पोवार वंश की कुलोत्पती भई. अग्णिकुंड लका उत्पत्ती भयोव लका अग्णिवंशी कहलाया, अना कुल को नाव परमार उर्फ पंवार/पोवार भयोव. उत्पती को मुल कारण वशिष्ठ मुनी रहेव लका गौत्र वशिष्ठ भयोव. गद्दी धार को नाव लका प्रशिद्ध भयी. जेला लाल कपडा पर पवनपुत्र हनुमान को चिन्ह, अना मंत्र "ॐ नम: शिवाय:" देयेव गयोव. केसरिया रंग को कपडा पर सुर्य अना गरुड को ध्वजा रही से। आमरो समाज अज केसरिया रंग पर ढाल तलवार अंकित करसे।
        _बालाघाट जिला को शासकिय पत्र दि. १८/११/१९०६-६३-९९ पर पोवारईन की उत्पत्ती को संदर्भ मा लिखी से की एक पुजारी न देवी को सन्मुख आपलो शिश काटिस वोको कृत्य लका चार प्रकार की क्षत्रिय जातिया उत्पन्न भयी, धड लका धाकड, शिश लका पोवार, रक्त बुंद लका "बुंदेला, अना रक्त लका चौहान. आबु पर्वत लका उत्पन्न पोवारईन की कई उपजातिया/कुर (सरनेम)  बन गयी. भाष्कर पुराण को अनुसार पोवारईन की ४१ (सरनेम) सेती. गौतम, पारधी, बिसेन, ठाकुर, पटल्या(पटले), चौधरी, डाला, पुंड, चौहान, राणा, बघेल, बोपच्या (बोपचे), सेंड्या(कटरे), जान, रहमत, हनवत, टेंम्बया(टेंभरे), सिरसागर, परिहार, अम्मुल्या(अंबुले) सहाया(सहारे), पहिहण, भैरम(भोयर), भगत, तुर्क(तुरकर), जैतवार, रंक्षार, रेतवार, रंदौबार, भान, राहंगडाल्या(राहांगडाले), शरनागत, सोनेवाणे, ज्ञानबोले, उदकुर, बखाम, हरिणखेडे, कोल्हे(कोरकु) यन प्रकार की ४१ उपजाती होती. ठाकुर, चौधरी गाव का मुखिया कहलावत होता, पटल्या(पटले) महाजन होता, सोनेवाने पोवारईन की अग्णिशुद्धी करत होता. बोपचे, कोल्हे, भोयर कृषक अना पारधी शिकारी वर्ग का होता.
           विभिन्न शिलालेख प्रशस्तिया ऐतिहासीक ग्रंथ जसो नागपुर शिलालेख, तिरोडी प्रशिस्ती को सुम्बाग्राम (ई. ५२५), सुमांधता ताम्रपत्र (१२२३), गांधवानी ताम्रपत्र (ई. ९७४), संबलपुर ताम्रपत्र (ई. ९७९), कधुवारुपी पत्र(ई. १३२६) भांडकपत्र को अनुसार पोवार जाती नर्मदा अना वैनगंगा को तराई(घाटी) मा अपलो उद्भव काल ई. ८०० से ११०० पासुन विद्यमान होती. औरंगजेब बादशाह को शासनकाल मा आमी रामटेक, नगरधन, नागपुर, आंबागढ, चांदा(चंद्रपुर), भंडारा, बालाघाट, शिवनी जिलाईन मा बस्या. वन समय को नागपुर को शासक रघुजी भोसला न पोवारईन न कटक युद्ध मा अद्वितिय पराक्रम, शुरविरता देखाईन अना लढाई मा जित दर्ज करिन. राजा प्रसन्न भयोव अना वैनगंगा घाटी क्षेत्र पोवारईन ला भेट स्वरुप देईस. वन समय मा सातपुडा का भयंकर जंगल होतो. आमी पोवारईन न बाहूबल लका यन क्षेत्र ला आबाद कऱ्या; अना देश को श्रेष्ठ चावल (धान) प्रदेश बनाया.
           आधुनिक काल ईस. १८८०-८१ तक शताब्दी मा समाज को एक महासभा को गठन भयोव होतो जेको कार्यो को लेखा जोखा बहूत ही आंशिक रुप मा लिख रही सेव.
• १८८०-१८९२  श्री लखाराम तुरकर प्रथम आधुनिक लेखक
• १९०९ स्व. टुंडिलाल पोवार को प्रथम सामाजिक भाषण, स्व. जिवणा पटेल इनको अध्यक्षता मा.
• १९१३- बैहर मा पोवार समाज द्वारा राम मंदिर की स्थापना अना महासभा को अधिवेशन
• १९१८ - बालाघाट डिस्ट्रिक्ट बोर्ड समाज को प्रतिनिधित्व स्व. श्री सि. डी. गौतम द्वारा
• १९२१- सामाजिक उत्थान, विवाद आदी पर महासभा को प्रस्ताव अना नियम.
• १९२३- ग्राम काटी (गोंदिया जवळ) मा महासभा को अधिवेशन
• १९२५- वाराशिवनी मा महासभा को अधिवेशन
• १९२७ - ग्राम बेलाटी (तिरोडा समिप) महासभा को अधिवेशन
• १९२६ - समाज मा कोनी वकिल नव्हतो
• १९२७- स्व. बि. एम. पटेल गोंदिया, पोवार समाज लका प्रथम वकिल भया.
• १९३१- चिंतामन राम गौतम वकिल बन्या.
• १९२६ - डिस्ट्रिक्ट बोर्ड बालाघाट मा स्व. रा. ब. टूंडिलाल पंवार अध्यक्ष अना स्व. सि. डी. गौतम सचिव बन्या.
• १९३१ पासुन १९४१ पर्यंत महासभा को कार्य सुप्त रहेव्ह.
          • १९४१ से १९४९ तक  ऐकोडी, जेवनारा, जामखैरी की सभाईन मा शिक्षा पर बल देयोव गयोव, स्वराज प्राप्त भयोव को पश्च्यात महासभा १९४९ पासुन १९६१ तक सुप्त रही.
• १९६१- ग्राम अतरी मा स्व. गोपाल पटेल कजई को अध्यक्षता मा स्व भोलाराम पारधी को सहयोग मा महासभा की बैठक भयी जेकोमा अध्यक्ष न ओजस्वी भाषन देईस.
• १९६२- ग्राम सातोना मा महासभा को अधिवेशन स्व. ओझी राहांगडाले को स्वागत, समाज मा एकता को आव्हान.
• १९६३ - महासभा को अधिवेशन मा शिक्षा पर जोर.
• १९६४ - ग्राम मेंढा (तिरोडा) को अधिवेशन मा तत्कालिन महासभा का अध्यक्ष स्व. आर. के. ठाकुर न आपली हस्तलिखित पांडूलिपी "पंवार परिचय" समाज ला प्रदान करीस.
• १९६९ - बैहर मा सभागृह को निर्मान, स्व. तेजलाल टेंभरे की निर्मान कमीटी को अध्यक्षता मा संपन्न.
• १९७१- गंगाराम पटेल खपडिया, राम मंदिर कमेटी बैहर, अध्यक्ष को रुप मा सहयोग सराहनिय रहेव्ह.
• १९८४ - श्री मुन्नालाल चौहान इनको अध्यक्षता मा आमगाव मा महासभा को अधिवेशन.
• १९९२ - श्री देवीसिंह ठाकुर शिवनी को अध्यक्षता मा बरघाट मा महासभा को अधिवेशन.
लेखक को समाज ला संदेश :- याद ठेवो पोवारी संस्कृती आपली धरोहर आय जो आमला पवित्र ठेवसे, वला समय को थपेड मा विकृत नोको करो, वला बढाओ, विकसित करो, यन शब्द को संग आपलो सबको धन्यवाद करुसु अना आपलोला निवेदन करुसु की आपली गरिमा कायम ठेयशानी गर्व लका जिओ अना जिवन देव. जय हिंद...!!!
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                        - सोनू भगत
   niteshbhagatpawar.blogspot.com
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कृष्ण अना गोपी

मी बी राधा बन जाऊ बंसी बजय्या, रास रचय्या गोकुलको कन्हैया लाडको नटखट नंदलाल देखो माखनचोर नाव से यको!!१!! मधुर तोरो बंसीकी तान भू...