Sunday, May 31, 2020

सांसद केशोराव पारधी

        स्व. श्री केशोराव पारधी आपका जन्म २१ अगस्त १९२९ को तुमसर शहर मे सामान्य कृषक परिवार मे हूआ। आपकी शिक्षा तुमसर मे ४थी कक्षा तक हूयी। आपके माता पिता की आर्थिक स्थिती कमजोर होने से आप आगे की पढ़ाई नही कर पाये। आपने खेती के कामों मे माता पिता को बचपन मे मदत किया करते थे। बाद मे आपने तुमसर के बडे व्यापारी श्री. दुर्गादास श्राफ के यहां नौकरी चालू की। आपकी ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठा देख आप दुर्गादासजी के विश्वासु बन गये। दुर्गादासजी आपको अपने बेटे जैसा मानते थे। आपकी ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठा देख कर आपको वर्ष १९५९ मे दुर्गादासजी ने नगरपरिषद तुमसर का पार्षद का चुनाव लढ़वाया। आपको उस चुनाव मे भारी मतों से सफलता प्राप्त हूयी। पांच वर्ष का कार्यकाल खत्म होने के बाद १९६४ मे फिर से नगरपरिषद तुमसर का चुनाव आप भारी मतों से जिते एवं आप पहली बार नगरपरिषद तुमसर के नगराध्यक्ष बने। आप १९६४ से १९७२ तक नगराध्यक्ष पद पर रहे। इस कार्यकाल मे आपने वैनगंगा पेयजल योजना से तुमसर को समृद्ध किया। इस बिच आपने शिक्षा क्षेत्र मे उल्लेखनीय कार्य किये एवं सड़के, एवं विकासकार्य को गती दी।

             आप अल्पायु से ही भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस से संबधीत रहे थे। आपको वर्ष १९६७ मे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस से महाराष्ट्र विधानसभा तुमसर विधानसभा से उतारा गया एवं आपने इस चुनाव मे भारी मतों से जीतकर विपक्ष की जमानत जप्त कर दी थी। आप १९७२ मे फिर से तुमसर विधानसभा से भारी मतों से विजयी हूये। १९६७ से १९७७ तक आप महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य रहे इस बीच आपने महत्वकांक्षी "बावनथडी सिंचाई योजना" को स्विकृती दिलाकर एक लाख एकड़ सिंचाइ वाले इस योजना से हरितक्रांती लायी। वही आपने इस काल मे अनेक कार्य विकासकार्य किये जिसका वर्णन बहूत लंबा है।

        १९७७-७८ मे जनता पार्टी के शासनकाल मे प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया गया। उस समय देश मे अशांती की लहर फैल गयी थी। गिरफ्तारी के विरुद्ध हूये जनांदोलन का नगर नेतृत्व कर आपने स्वत: को गिरफ्तार करवा लिया था। आपकी पार्टी के प्रती निष्ठा देख आपको वर्ष १९८० के लोकसभा चुनाव मे भंडारा लोकसभा सिट से भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस ने उमेदवारी दी एवं आप भारी मतो से चुनकर संसद पहूंचे। आप महाराष्ट्र पोवार समाज से पहले व्यक्ती थे जो संसद पहूंचे थे।

            आप सांसद बनते ही छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस, को तुमसर, तिरोडा, आमगाव मे स्टॉपेज् दिलवाया। वही आपने वरठी (भंडारा) ओव्हरब्रिज बनवाकर यातायात सुलभ बनाया। आपका रेल्वे क्षेत्र मे उल्लेखनीय कार्य गोंदिया जबलपुर रेलमार्ग को बडी़ लाईन मे तब्दील करना रहा। आपके कार्यकाल मे यह कार्य बालाघाट तक ही हो सका। आपने इस कार्यकाल मे चिखला मे तांत्रिक महाविद्यालय तथा भंडारा मे टेक्निकल स्कूल की स्थापना करायी। गोंदिया का दुरदर्शन केंद्र एंवम इंजिनियरिंग कॉलेज आपके प्रयासो की ही देन है।

              आप वर्ष १९८४ मे पुन: भंडारा लोकसभा से चुनाव जीतकर संसद पहूंचे एवं आपने इस कार्यकाल मे शिक्षा के साथ बेरोजगारी दुर करने हेतू सदैव प्रयत्नशिल रहे है। क्षेत्र मे कृषी उद्योग जल के अभाव मे लोगों को आर्थिक राहत नही दे पाता था। शिक्षित बेरोजगारो की बढती संख्या देख आपने उद्योगो को अपने क्षेत्र लाने के लिए भरपुर प्रयास किये। आपके प्रयासो से युनिव्हर्सल फेरो अलाईज् खंबाटा तुमसर, सनफ्लॅग, ऐलोरा पेपर मिल, वैनगंगा सहकारी शक्कर मिल जैसे बडें उद्योग क्षेत्र मे ले आये। 

          आपने शिक्षा क्षेत्र पर भी विशेष ध्यान दिया है, आप सुदामा एज्युकेशन सोसाइटी तुमसर अध्यक्ष थे। एंव सहकार क्षेत्र मे भी आप BDCC बँक के अध्यक्ष रहे है। धार्मिक क्षेत्र मे आप हनुमान मंदिर ट्रस्ट चांदपुर के १९७० से फाउंडर ट्रस्टी रहे।

           श्री केशोरावजी पारधी आप मृदुभाषी एंवम मिलनसार व्यक्ती थे। आपसे परिचित लोग बताते है जो आपके पास रोता हूआ आता था वह हंसता हूआ वापिस जाता था। आप जिले समस्या सुलझाने मे हमेशा अग्रस्थान पर रहते थे। आपका नम्र व्यक्तित्व तथा निष्ठा ने आपको जनता के हृदयो पर राज करते थे। आप वर्ष १९५९ से १९८९ तक निरंतर ३० वर्षो तक राजनिती मे सफलता प्राप्त करते रहे। आप १ बार नगरपरिषद तुमसर के सदस्य, २ बार नगराध्यक्ष, २ बार विधायक, एंव २ बार सांसद रहे है। आप वर्ष १९८९ मे जिवन का पहला चुनाव श्री खुशालचंद्रजी बोपचे से अल्प मतो से हार गये। उसके बाद आपको भारतिय राष्ट्रिय कांग्रेस ने विधानपरिषद की उमेद्वारी दी लेकिन वहां भी आपको सफलता प्राप्त नही हो सकी। इसके बाद आप सामाजिक संस्थाओ से जुड कर एंव व्यक्तिगत रुप से समाजसेवा मे लग गये। दि. २९/०७/२०१८ को हृदयघात से आपका ८९ की उम्र मे स्वर्गवास हूआ। आप वैनगंगा नदी को प्रानदाईनी मां मानते थे इसलिए आपकी अंतिम इच्छा के अनुसार आपका अंतिम संस्कार मां वैनगंगा के किनारे माडगी मे किया गया। आपका अपनी भुमी से प्रेम ने आपको हमेशा के लिए क्षेत्र के इतिहास मे अमर कर दिया।
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                        - सोनू भगत
             powarihistory.blogspot.com
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Friday, May 29, 2020

वैनगंगा पंवारो का विस्तार

Laws applicable on powars

पोवारी कथापुष्प

Powari culture

The powars

पोवार प्रतिभाएँ

चक्रवर्ती राजा भोज

पोवार इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष उपक्रम

उपक्रम पोवारी इतिहास साहित्य अना उत्कर्ष

उपक्रम महिला विषेश

महासभा के ७५ वर्ष

महासभा के १०० वर्ष

Thursday, May 28, 2020

बुद्धिमान कौन? Dhanraj bhagat 001


जब् आम्ही लहान - लहान  तब्  घर का बुजुर्ग बोधात्मक कहानी (दंतकथा)सांगत होता ना वोको बदला मा उनका पाय दबावनों पड़, ना पाठ खजावनो पडत होतो।

         बुद्धिमानी कोन

      एक गावमा मा एक बनिया रव्हत होतो, वोकि ख्याति दूर दूर वरी फैली होती।
एक दिवस वहाँ को राजा न् गप्पा गोष्टी करन बनिया ला बुलाईस, बहुत डाव वरी ईत् उत् की चर्चा भयी  राजा न् बनिया ला कहिस.....
अरे बनिया महाशय तुम्ही त् बहुत हुशार ना मोठा धनीसेठ सेव,एवड़ो मोठो कारोबार से पर तुम्हरो बेटा एतरो मूर्ख काहे से? ओला भी काही सिखाओ।
    ओला त् सोनो चांदी मा मूल्यवान का से ,एव भी पता नहाय कहेकर राजा जोरजोर ल् हासन बसेव....
      बनिया - राजा को कहेंव बुरो लगेव, घर आयकर टुरा पूछन लगेव...
बेटा सोनो ना चांदी मा अधिक मूल्यवान का से?
       *बेटा - सोनो बिना समय गमाये कहिस ।
        तोरो उत्तर त् ठीक से मंग राजा न् असो  कसो कहिस? ना मोरी मजाक काहे उड़ाईस ?
         बेटा को समझ मा आएव होतो की राजा गांव को जवळ  एक  खुलो दरबार लगाव से।
        जेकोमा दरबार  मा सब प्रतिष्ठित व्यक्ति सामिल होसेत।येव दरबार मोरो गुरुकुल  जानको मार्ग पड़त होतो।
         मोला देखकर बुलावत होता । आपलो एक हात मा सोनो  को ना दूसरों हात मा चांदी को सिक्का ठेयकर, जो अधिक मूल्यवान से वू सिक्का धरन कव्हत होता.....
         पर मी चांदी कोच् धरत होतो।सबजन मोला ठहाका लगाय लगाय हासत होता,ना मोरी मजा लेत होता। येव प्रकार हर दूय दिवस मा होत होतो।
          बनिया - मंग तू सोनो को सिक्का काहे नही उठावस,च्यार लोकहिन को सामने आपली फजीती काहे कर् सेस आपलो बरोबर मोरी भी काहे करसेस कसु?
          बेटा -हासत .... हासत.......!!!!
आपलो पिता ला हात धरकर अंदर को कमरा लिजायकर एक पेटी निकालकर देखाइस जेकोमा पेटी  मा चांदी को सिक्का इनल् भरी होती।
     भरी पेटी देखकर बनिया हतप्रभ भय गयेव।
      बेटा - जेन् दिवस मी सोनो को उठावू  वोन् दिवस येव  खेल बंद होय जाये।वोय मोला मूर्ख समझकर मजा लेसेती त् लेन देव ,अगर  बुद्धिमानी देखाउ त् काहीच नहीं भेट्न को। बनिया को बेटा आव ,अक्कल लक काम लेसु।मूर्ख होनो अलग बात से ना मूर्ख समजनो अलग .....
स्वर्णिम मौका को फायदा उठावनो पेक्षा हर मौका ला स्वर्णिम ला तब्दील करनो।
          जसो समुद्र सब साठी समान से, काही लोक पानी को अंदर टहलकर आव सेत.... काही लोक मछली ढूंढकर धरकर आवसेत ....ना काही लोक मोती चुनकर आवसेत।
         बुद्धि पर कभीच शक् करनो गलत से।

 तात्पर्य - बुद्धिमानी दृष्टिकोन पर निर्भर कर् से।

   धनराज भगत 
बाम्हणी /आमगांव

संगत mahen patle 001



नगर को बाहर बगीचा को पास एक मोठो सुंदर तलाव होतो । राजपरिवार का सदस्य वहान पोहन ला आवत होता ।

वोन तलाव को किनारा परा एक मोठो झाड़ होतो । वोको ढोली मा एक नांग सरफ रव्हत होतो । स्वभाव लका बड़ो सीधो होतो । वोन क्षेत्र मा एक कोल्ह्या भी रव्हत होतो । सरफ अन  कोल्ह्या की मुलाकात भयी । धीरे धीरे संगी बन गया । झाड़ परा एक हंस रव्हत होतो । वोन हंस न  सरफ ला समझाइस की कोल्ह्या को संग नही रहे पायजे करके । कोल्ह्या को स्वभाव  धूर्त अन दुष्ट होतो । पर उनको संगी पना काई कम नही आयी । 

एक दिवस राजकुमारी तलाव परा पोहन ला पहुची । राजकुमारी न आपला सारा जेवर काढ़ कर किनारों परा ठेय देइस । अन राजकुमारी तलाव मा आपलो सखी संग पोहन ला चली गयी । कोल्ह्या कि नजर पड़ी जेवर परा । वोको दिमाग मा खुरापात सूझी । वु कोल्ह्या जेवर तोंड मा धरकर इतन उतन परान लग्योव । 

दूर उभा सैनिक लोगिईनन  देखीन की कोल्ह्या को तोंड मा त् राजकुमारी का जेवर सेत । वय कोल्ह्या को मंग धाया । कोल्ह्या न सैनिक लोगिईनला देखिस त् वु घबराय गयोव । वोला लगयव आब काई वोकी  खैर नही । वोला लग्योव जेवर वोको संगी सरफ को ढोली मा सुरक्षित रहेती । मून वोन वय जेवर सरफ को ढोली मा  डाक देइस । अन जंगल मा पराय गयोव । 
सैनिक लोगहीनन देख लईन की जेवर कोल्ह्या न ढोली मा फेंकी सेस त् उनन् ढोली ला फोड़नो सुरु कर देइण । उनला ढोली मा सरफ सोयव दिस्यो त् उनन् वोला भाला लका मार देइण । अन जेवर काढ़ कर राजकुमारी ला सुपुर्द कर देइण । 
सरफ को अस्तित्व बेमतलब खत्म भय गयोव । 
संगत को जीवन मा बड़ो महत्व से ।

- इंजी महेन पटले

राजा भोजदेव, भोजपुरी बिरहा chhaya pardhi 001


     राजा भोजदेव एक बार आपलो दरबार मा् बस्या होता. तब एक साधु महात्मा हरिद्वार लक दरबार मा आयेव्.   राजा भोज देव न बड़ों आदर सत्कार करीन. आदर सत्कार लक साधु बडो प्रसन्न भयेव्. अन् राजाला कवन लगेव "राजन,तुमरो सेवा लक मी बहुत प्रसन्न सेव्, काहि भी वरदान मांगो"  राजा बिचार करीस "महात्मन ,धनधान्य लक मी सम्पन्न सेव,सब से मोरो जवड,देनोच रहे त ज्ञान की दुय गोष्टी सांग देव" महात्मन खुश भय् गया  ज्ञान किं बात बोल्या,                                                         पहली बात  -  "सोयात त खोयात, जाग्यात त् पायात्* "
दूसरी बात -.   " "अतिथि देवो भव्"
महात्मा आशीर्वाद देयकर चलो गयेव.
          राजा भोजदेव बड़ा ही प्रजावत्सल होता एक दिवस वय प्रजा की खुशहाली जानन साठी अर्ध रात्रि को समय मा भेस बदलकर निकल पड़या. फिरता फिरता उनला एक आवाज आई एक बूढ़ी स्त्री बड़ को झाड़ खाल्या  जोर -जोर लक रोवत होती. राजा भोज शिपाई को भेष मा ओन स्त्री जवड़ गया अन् रोवन को कारण बिचारिंन. बहुत बिचारेपर ओन सांगिस,"राजा भोज ला सकारी येन ढोलिमा जो नागराज रवसे ,ओको दंश लक राजा की मृत्यु होए"येत्तो आयकश्यान राजा भोज वहां लक आपलो माहाल मा वापस आया. तब साधु की बात याद आयी,"अतिथि देवो भवं"

 ‌‌          आता राजा न् साक्षात आपलो काल को स्वागत करण साठी सेवकला आज्ञा देईस की महाल पासुंन त् ओनं बड़ को झाड़ वरी रस्ता फूल लक सजाओ अन दूध भी ठेवो. सेवक न् आज्ञा को पालन करीन. रात्रि को समय मा कारो नागराज आप लो ढोली मा लक निकलेव्, राजा को प्राण हरण, राजा को महल मा पोहचेव .नागराजला राजा न जसो देखिस, तसो दंडवत प्रणाम करिस. नागराज आदर तिथ्य लक प्रसन्न भयेव् अन राजा भोज ला वर देइस की " हे राजन,तू हर प्राणी की भाषा समझ सकजो "असो कहकर नाग राज निकल गएव.
असो होता आमरा महान प्रतापी प्रजा वत्सल अतिथि को सम्मान करने वाला।जय राजा भोज
बोध:अतिथी देवो भव। घर आयेव अतिथी चाहे दुश्मन काहे नहीं रव उनको सन्मान करनो मंजे भगवान को सन्मान आय.

✍️ सौ छाया सुरेंद्र पारधी

अऴाणी बायको dhanlal rahanagdale 001


रामूको लहानपनच बिहया भयेतो- ओक बायको को 
नाव गंगू , वा तिसरी शिकी होती 
बिहयाक बादमा रामु खूप शिकेव ना मंग साहेब बनेव
सब साहेब मिलशानी एक समारंभ आयोजित करीन
ना सबला कूंटूम सहीत बलाईन तब _____
रामू :-  आमला आँफीसमा जानको से, तूभी चल
           पर वाहा तोला बिचारेत का कोण संग आईस
           त का सांगजो
गंगू:-    आपल नवरा संग आयी कहूंन, 
रामू:-     अना तू ऊनकी कोण आस कहेती त का
           कवजो
गंगू:-     मी ऊनकी बायको आव कहूंन 
रामू:-    हं बही, तसो नही कवन,  ऊ मोरो हजबड
           मी ऊनकी वाईफ आव कवन
गंगू:-    हं तशीच सांगून (मवमा पाठ करन लगी)
 
मंग ओय समारंभ।मा गया- वाहां  गंगू ला बिचारीन,
तू कोणसंग आइस, ऊ तोरो कोण आय तू उनकी
कोण आस, गंगू पाठ करैव बिसर गयी पर ओला 
घरक सामनेको हेंडपंप की आठवन आयी वन
पटनारी कहीस ,मी जिनक संग आयी ऊ मोरो
हेडपंप| न मी उनकी पाईप आव ------------

(खांदपरको कूत्रा शिकार नही कर)

डी-पी-राहांगडाले
      गोंदिया

पैसा को झाड hirdilal thakre 001


     !! पोवारी इतिहास साहित्य एंव उत्कर्ष!! 
    !! दि  26-05-2020- दिवस मगंळवार!! 
      !! बोधकथा लेखन प्रतियोगिता साती !!
                    ( पैसा को झाड)  
स्नेही श्री आदरणीय जी सबला हिरदीलाल ठाकरे को सादर प्रणाम जय राजा भोज,,,, अज की बोधकथा,,,  कुण्डलपुर नगर मा एक सत्यनारायण नाव को एक सावकार रव्हत होतो,,,, सर्वसामान्य परिवार लक होतो,,,, नीत नेम भगवान को भजन करन्,,,, साथु संत माहात्मा की पुजा करन्,,,, आनंद लक आपलो जिवन व्यापण करन्,,,,,, सत्यनारायण की एक धर्मपत्नी होती,,,,, पती को कहेव अनुसार चलने वाली,,, भगवान को भजन करने वाली ,,,,सत्य मर्यादा संस्कृति को पालन करने वाली,,, सत्यपतीवर्ता होती,,,,,, सत्यनारायण को वंश मा एकुल्तो एक पुत्र होतो,,, बहुत गुणवान बुद्धिमान शीलवाण होतो,,,, पर वोको मा एक कमी होती,,,, उ बहुत जिद्धी होतो!!
           सत्यनारायण को टुरा बहुत ही जिद्धी होतो,,, हर समय काही ना काही खिलोना साती हट्ट धरत होतो,,  पुत्रमोह मा आयकर,, सत्यनारायण आपलो टुरा की जिद पुरी करत होतो,,, पर एक दिवस त सत्यनारायण को टुरा न हदच कर देईस,,,, वोन ससार को हेल्लिकाँपटर ( विमान)  की मागं करीस,, मोला विमान पायजे म्हणजे पायजे ,,,,असो वोन बिलकुल हट्ट धरके कोहोराम मच गयेव,,,, सत्यनारायण ला बहुत खराब लगेव,,,,बहुत समजाइस,,, बेटा तु या मागं करी सेस या पुरी नही होय सक्,,,, पैसा को झाड नाहाय की झाड हलाईस ना पैसा पड गया? आता येव सागों पैसा को झाड काहा होसे,,,, मोला पैसा को झाड पायजे,,, वोन आपलो बेटा ला दुय थापड मारीस,,, टुरा नाराज होय कर दरवाजो पर बस गयेव!! 
         सब जागा पर व्यापक परमात्मा येव सब द्रुश्य देखत होता,,,, वोत्रोमाच एक साधु महात्मा,, जिनको बगल मा झोली,,, हात मा बिना,,, मस्तिष्क पर तिलक,,, भगवा वस्त्र,, अलख निरंजन कवत कवत सामने आया,,  सत्यनारायण को टुरा ला रोवन को कारण खबर लेईन,,, नाराजगी को कारण खबर लेईन,,, टुरा न माहात्मा सागींस ,,,मोला पैसा को झाड पायजे,,, साधु महात्मा न आपलो झोली मा हात टाकीस,,, झोली लक काही ऊपयोगी बिजा निकालीस ,,,,बेटा ये पैसा को झाड का बिजा आती,,, इनला जगावनो पडे,,, येव झाड मोठो होये तब पैसा देहे,,,,वोको बाद तुम्ही आपलो मनपसंद का विमान या अन्य चीज लेय सक् सेव!! 
       सत्यनारायण को टुरा बहुत ही खुश भयेव,,, वोय बिजा धरके तुरंत बगीजा मा गयेव,,,,खुब मेहनत करके झाड लगाईन,,, रोज रोज वोन झाड की मशागत करनो,, पाणी टाकनो,, आपलो मन मा खुश होतो,  ,पैसा को झाड मोठो होये तब पैसा देहे,,,असो करता करता झाड बहुत ही सुदंर,,,, बहुत ही मोठो फलदार झाड भयेव,,,, झाड को सगं सगंमा सत्यनारायण को टुरा बी मोठो भयेव समजदार भयेव,,, वोन झाड ला बहुत फल व फुल लग्या,,, वोय फल फुल तोडकर बजार मा बिककर बहुत सारा पैसा आया,,,, तब सत्यनारायण को टुरा ला समज मा आयेव की,, ,येतरा पैसा कमावन साती बहुत महत्वपूर्ण मेहनत करनो पडसे,,, वोला मालुम भयेव की पैसा को झाड नही होय,, पर वोको मेहनत लक,,, वोको लगन लक,,, वोको कार्य लक,,,वोन फलदार झाड लक बहुत सारा पैसा आया,,,अना वोन पैसा लक आपलो मनपसंद का सामान लेन लगेव!!
        येन बोधकथा लक येव बोध होसे,,,,,की आपली ऊध्योगप्रियता बुद्धिमता , ,,अना आपलो काम को प्रती आपुलकी लगाव ,,,,येको लक आपलोला कीरती अना सौभाग्य प्राप्त होसे,,, असी अज की बोधकथा!!मोरो लीखनो मा समजावनो मा काही गलती भयगयी रहे त मोला लाहान भाई समजकर माफ करो जी याच मोरी नतमस्तक विनंती से जय राजा भोज जय माहामाया गडकालीका!!
                 !!! लेखक  !!!
       श्री हिरदीलाल नेतरामजी ठाकरे 
      मु, भजियापार, पो, चिरचाळबांध, 
       ता आमगाँव जिल्हा गोदिया माहाराषट्र

नाव की कहानी chiranjiv bisen 001


       तीन गांव की मिलस्यार एक गट ग्रामपंचायत होती.काही साल क् बाद मा मोठो गांव की ग्रामपंचायत अलग भयी.बचेव दुय गांव की एक ग्रामपंचायत मंजूर भयी. वोन् गांव इनका नाव होता *बडनगर*अना *नगारा.*
           ग्रामपंचायत को नाव का रहे मून चर्चा सुरू भयी.नगारा गाव मोठो होतो मून ग्रामपंचायत को नाव नगारा पाहिजे असो नगारा वालों को कव्हनो होतो. बडनगर वालो को कव्हनो होतो नगारा नाव अच्छो नाहाय मून ग्रामपंचायत को नाव बडनगर पाहिजे.दुही आपल् जिद पर अड्या होता.
           बाद नगारा वालों इनन् प्रस्ताव ठेईन की आमर गांव को सरपंच पाहिजे.अना ग्रामपंचायत को नाव नगारा अच्छो नहीं लगत् बडनगर नहीं सिर्फ *नगर* ठेवनो मा आहे.प्रस्ताव दुही गाववालो इनला पसंद आयेव आना मंजूर भयेव.
          असो प्रकारल् पदसाठी नगारावालो ईनन अना अच्छो लगन साती बडनगर वालों इनन आपली पुरानी पहचान खोय देईन. पद क् लोभल् कभी-कभी नुकसान भी होसे.मून कोणतोबी बात को अति लोभ नहीं करण्.

                     चिरंजीव बिसेन
                          गोंदिया
                      दि.२६/५/२०

मोरो अजी bindu bisen 001


मोरो दादाजी ला आमी अजी कहत होता. उनको जनम ग्राम छिंदीटोला( बालाघाट) मा भयो होतो,उनको पिताजी किसान होता पर अजी को सपन तो काई और होता. नहान पन लक उनला पढ़ाई को जूनून होतो. इनका सब भाई गिन अच्छो लक किसानी को काम सिख गईन पर अजी को मन खेती मा कम अना पढाई मा ज्यादा होतो . आपरो सपन ला पूरा करन को जूनून होतो एको लाई वोय आपरो घर ला छोड़ कर फुफा को घर धारापुरी चली गयीन जहा स्कुल होतो अना आपरी पढ़ाई लिखाई पूरी करिन. एको बाद पटवारी लाइ उनको चयन भयों. ओनो जमानो मा यो भी बड़ी पोस्ट होती अना सहायक भूमि आलेखन अधिकारी को पद लक रिटायर भया.ग़ाव मा आय के खेती संभालीन, जागा , जमीन बड़ाइन, बड़ी इज्जत कमाईन. 
मोरो अजी आता एनो दुनिया मा नाहत पर उनकी शिक्षा हमरो लाई प्रेरणादायी से.

✍🏼- बिंदु बिसेन , बालाघाट

तनिस का बेट ना टीव्ही की बाट nareshkumar gautam 001


       नरेश ओन साल 2 री मा होतो ना योगेश 4 थी मा ।
रामायण टीव्ही पर आवनेवाली होती न देखन की बहुत हाउस मन मा होती।
पर घर टीव्ही नोहती पर साद बहुत होती, म्हणून दुयी घर लका चुपचाप दूर सूर्योधन काकाजी घर रामायण देखन जात होता ना खालत्या बस कण बहुत आनंद लेत होता। आता काही दिवस को बाद मा वा सीरियल खत्म भय गई पर टीव्ही देखन की आदत पड़ गई। बीच मा च मग मोगली सीरियल चालू भय गई ती ।
आता घर को जवर को दूसरों गली मा नंदकिशोर काकाजी घर टीव्ही आय गई होती, पर बटा यन्जया उपाद च भय गई होती। काकाजी न हुशारी लका वा टीव्ही बीच को कमरा मा ठेईं देइस ना दुसरो हीन ला बेडरूम मा जानो अचप को होतो, म्हणूनच बाहर लका मजबूरी मा छपरी लका डोरा फाड़-फाड़ सारी देखनो पडत होतो।
कई बार काकाजी की गारी भी खानों पडत होती।
एक दिवस दुयी न बिचार करीन ना अजी ला पूछन की हिम्मत करसारी आपरो मन की बात सांगिन।
अजी तुम्ही घर टीव्ही काय नाही आनलेव?  बिचारता च अजी को पारा सातवो आसमान पर चढ़ गयो ना मग दुयी की भई बोली लका साजरिच सुताई।
बैल को बाप हीन ला सांग देव् टीव्ही देखन ला काम धंधा ना पढ़ाई गई भाड़ मा, बटा हो पढ़ो नही त डुकर चराओ।
दुई सट-पटाय गया ना चुप चाप आपला पाय सरकाय सारी गोबर को टोपला धर कन आप-आपलो काम मा लग गया।
आता ओय दूसरा-दूसरा घर बदलन लग्या की कोनीला असो नोको लग की इनको त रोजकोच नाटक आय टीवी देखन को।
धन भगवान की करनी ना एकसाल चुरनो साठी मानुस च नही भेट रह्या होता, बड़ो मुश्किल लका भरत बाबाजी तैयार भयेव पर ओला संग साठी कोणी नोव्हता।
अजी न आपलो तीक्ष्ण बुद्धि को वापर कर सारी दुयी पर एक डॉव अजमाइस दुयी भाई जरा सा डगर भी भय गया होता।
अजी न बुलाईस न बिचारिस तुमला टीव्ही पाहिजे का ? आयकता बरोबर च दुयी को खुशी को ठिकानों नही समाय रहे तो न लहानँग मोठागण परान लग्या।
मग अजी न रोक्सारी आपली शर्त दुयी जवड ठेय देइस की अवन्दा आदमी की दिक्कत पड़ रही से त तुमला भरत बाबाजी की मदद करनो पड़े।
आता असली मोड़ सुरु भयों न मोड़ा की बारी आई, अजी न सांगिस तुमला बाबाजी संग चुरनो पर जानो पड़े, गाड़ो हकालनो पड़े, मोड़ा सड़कनो पड़े ना बेट भी मारनो पड़े।
टीव्ही को हाउस पाई दुयी न बिना सोचेव समझेव अजी ला हव कहय देईन काहे की टीव्ही डोरा मा चोय रही होती।
आता शुरू भयेव असली खेल न ऊ झुंझुरक च ठंडी ठंडी मा चुरनो पर जानो साजरी झोप मा लक उठनो बईल ना गाड़ो की तैयारी कर सारी घर सोडनो।
इच्छा त जरा सी भी नही होय रही होती पर टीव्ही डोरा मा चोय रही होती।
असाच रोज पुरो चुरनो भर तैयार होय सारी भूमसारी जान लग्या ना जमत पावत आपरो काम करना लग्या।
गाड़ो हकालनो वरी त साजरो होतो पर आता बारी आई होती खेत को खरहयांन मा जमा तनिस को ढग का बेट मारन की बहुत मोड़ा की जमा जो भय गई होती।
बेट को खेल शुरू भयो न दाल आटा को भाव मालूम पड़न लग्यो, योगेश त मोठो होतो कसोबसो आपलो डंडा फिराय लेत होतो पंचायत होत होती नरेश की जरा सो हल्को पडत होतो।
दूय तीन बार त साजरी च दातकुड़ी सूज गई ती पर हिम्मत नही हारी तीस काहे की डोरा को सामने टीव्ही चोय रहिति।
दुहि जसा आपली कसम खाय सारी घर लका रोज हिटत ना मेहनत करअती।
आखिर मा उनको अथक प्रयास ला रंग चढ़ेव ना अजी न नवोत्री कि फसल बिक सारी घर मा टीव्ही आन देइस ना दुयी को डोरा लक पानी आय गयेव।
घर मा इनकी कलाकारी देखसारी सबको चेहरा पर बहुत खुशी समाई होती न उनको प्रयास सफल भयो एकी उनला खुशी होती।


(आखिर जहाँ चाह वंहा राँह या सिद्ध भई।)

Er Naresh kumar Gautam
Dt. 26/05/2020

मुंगुस (नेवला) rajesh rane 001


एक घरमा एक मुंगूस पाली होतीन. वोनं घरकी बाईला तीन महिना को बच्चा होतो.मुंगूस घर भर हिंडत रव. एक रोज बाई आपलो टुराला माच घर मा दोरी को पारणा (झूला)  पर सोवाय कर पितर को गुंड धर के बिहिर (कुआ) पर पानी आणन जा से. बाई जबं भरेव गुंड धर के वापस आवसे त देखसे, मुंगूस को टोंड रकत लं लहु लुहान से.(बाईला लगेव मुंगूस न वोको टुरा ला मार टाकिस) बाई न भरेव गुंड मुंगूस पर कचळ देईस.  मुंगूस न केक नारी करिस ना मर गयेव. बाई माच घरमा परानी पारणा जवर. टुरा किलकारी मार कर खेलत होतो. पर वोको पारणा जवर एक मोठो नांग सरप का टुकळा टुकळा पळ्या होता. बाईला समझ मा आय गयो होतो का जेणं सरप पासुन मुंगूस न वोको टुरा की रक्षा करीस वोनच मुंगूस पर बाई नं भरेव गुंड कचळी सेस. बाई छपरी पर धायी जहां वोनं मुंगूस पर गुंड कचळी होतीस. मरेव मुंगूस ला देखकर बाई धळधळा रोवन लगी. 
रात भय गयी बाई न ना सयपाक बनाईस ना ढोर बासरू बांधिस. परसुभाऊ तिरूळा ल घर आवनो पर देखसे, अवार भर ढोर मोकाट फिर रह्या सेती. लेहळी चांदी भस को टापरू को आवाज आयेव, जाय कर देखीस त भस न बाळी मा लाल भाजी चर कर वाफा हिन ला खुंद रवंद कर के डेहेन कर टाकी सेस. वोला लिजाय कर कोठा मा बांधिस ना  सपरी पर आयकर लाइट पेटावनो पर देखं से त गुनवंती कोणटो मा उगीमुगी बसी से. परसुभाऊ न वोला पचारीस (पुछिस) का भयेव? गुनवंती धळधळा अठावन लगी ना परसुभाऊला लपट गयी. गुनवंती : धनी मोरो मुंगूस, मोरो मुंगूस. 
परसुभाऊ : अरे बाबा का भयेव, काही सांगजो बी का? 
गुणवंती :मी पापीन आव. मीनच मोरो मुंगस्या को जीव लेय टाकेव. मोरो मुंगस्या. 
(गुणवंती को डोरा हिन ल सतत आसु बव्हत होता)थोळी शांत होनो पर पुरी काहानी परसुभाऊला सांगीस. आता परसुभाऊ गुणवंतीला समझावन लगेव. आता रोवन को का फायदा जेव भयेव वू भयेव. पर एक बात को ध्यान ठेव. कबी बी हरबळी मा निर्णय नही लेये पायजे. तुनं हरबळी मा तसी हरकत करी नवतीस त आपलो मुंगूस मरेव नही रवतो. वू बी वू मुंगूस जेनं आपलो टुरा की रक्षा साठी वोनं भुजंग (बड़ा सांप) का टुकळा टुकळा कर टाकीस. 
वोनं रोज मी तोला सांगेव का, वोनं हरयाणा को जालमसिंग परमार को एक्सीडेंट भयेव त तू का कहीस, अं, आमला का करनो से, आमरो जात को ना पात को. 
वोनं रोज वोनं "सुखवाळा "को वल्लभ डोंग-या ला मीनं 1000 रूपया चंदा देयेव त तु कारा पिवरा डोरा करके बोलन लगीस वोनं भोयर पोवार ला चंदा देनं को का फायदा?  
देख गुणवंती तु भले ही तालेवर (रईस) बाप की बेटी रवजो, तोरा भाई भले ही मोठा अफसर रहेत पर मी अर्जूणी जसो लहान सो खेळा को किरसान (किसान) आव. मोरो जीव जालमसिंग परमार साती बी झुरंसे. वल्लभ डोंगरे को "सुखवाळा" समाज को उन्नति की किरण दिस से. मानुसू आमी 36 कु-या पोवारच आजन ना आपली पोवारी बोलीच आपलो बाणा से परंतु पोवार भोयर पवार परमार सबको एकच ताणाबाना से. 
आखरी मा तोला एकच बात समझाय कन सांगू सू गुणवंती समाज मा लेहळा लेहळी बहुत भेट जायेत पर आपलो समाज रुपी टुरा ना बोली रुपी टुरी हिन की रक्षा करनेवाला मुंगुस बहुत कमी सेत उन पर गुंड कचळो नोको. पछतावन की गन आनो नोको. 🙏

राजेश राणे 
खाडीपार/गोंदिया
26.05.2020
7774045036,7620488498

ताज्या कुत्रा varsha patle rahangdale 001


 आमरो घर मोरो आत्या को टुरा रव्हत होतो म्हणजे आपलो मामा घर इश्कुल शीकत होतो.आम्ही तब बहुत लहान होता.मोरो भाऊ जेमतेम एक साल को होतो अना मी चार साल की होती.आत्या को टुरा को नाव राजू होतो पर वोला सब राज्या कवत होता.राजूभाऊ बडो हुशार अना मेहनती होतो.घर सबजन को लाडलो.
     एक दिवस असोच ऊ बाहेर गयेव अना एक नवजात कुत्रा खो पील्ला आनीस.कुत्रा को पीला दुय च्यार दिवस कोच होतो.सबको मर्जीलका वन कुत्रा ला पालन को निर्णय लेयेव गयेव.पर कुत्रा को पील्ला आनीस राज्या न म्हणून वन पील्ला को नाव ताज्या ठेईन.
   धीरू धीरू ऊ पील्ला मोठो होन लगेव.आई मोरो भाऊ ला जसो गाय को दुध दे तसोच वोन कुत्रा लाबी देत होती.काहीच दिवस मा कुत्रा सबको लाडलो भय गयो.घर ओळखीका पाहुना आया म्हणजे उनगो मंगमंग जाय.जबवरी वय वोला खाजो नही देत होता तबवरी.पर रांधनखोली मा कभी जात नोहोतो अना वसरी पर भी जात नोहोतो.मोठांग रव्ह .वोला लहानांग जानो रहेव त सांदोळी मा लका जाय.
   अनोळखी पाहूणा घर आया त उनला घरमा आवनच देत नोहोतो.जब आमी वोला सांगजन कि,ताज्या आवन दे घरमा वय पाहुणा आत.तबच घरमा आवन दे.जसो जसो मोठो भयेव तसो उ अजीसंगमा खेतमा जान लगेव.खेतमा चना ,तोर,बटरा,लाखोरी जब लगावजन तब उ खेतमा अजीसंगच रव्ह अना खेत की रखवाली कर.खेतमा कोनीला भटकन बी देत नोहोतो.पक्षी बी नही आवन देत होतो.
  एकबार की बात असी भयी सकाळी चाय पाणी करके ताज्या अना अजी झुंझुरकाच खेतमा गया.खेतमा पाणी पलावनो होतो.खेतमा जायके अजीन पाणी पलाईस अना देखरेख करत होतो कि,कोनतो बांधी  मा पाणी भयेव.यन गळबळीमा अजी को पाय धुरोपरलका घसरेव अना लचक गयेव .अजी को उठनो मुश्किल होतो.बहुत कोशीश करीन फर ऊठच नही सकत होता.आता का करु येन बिचारमा अजी पड गया.पाय को दुख भी सहन होत नोहोतो.ताज्या मनमानीभुकत होतो पर काही कर नही सकत होतो.पर वोला का सुचेव पता नही.ताज्या नघर कर कुच करीस अना घर जायके मायजवळ मनमानी भुकन बसेव.माय वोला खबर ले कि,ताज्या कायला भूक रही सेस .अना चील्लान बसी फर बिचारो सांगु जाय ना मांगु जाय.माय ताज्या ला  कवन बसी तू एकटोच आयेस अना तोरो अजी कहा से.ताज्या ला आमी जो काही कवज सब समज.तसो वोन माय को सेव ला तोंड मा धरीस .माय वोला चील्लान बसी तरी सोडनला खाली नही.अना खेत कोबाट ला लगेव.मंग माय बी खेतमा वोको संग संग गयी.
   खेतमा पोहोची अना देखसे त वा दंगच भय गयी अजी आबबी बांधीमा बसेव होता.उठ सकत नोहोता.माय न मंग अजी ला वाहान ल धुरो परा बसाईस आना पाणी पीवन देईस .अजी को पाय बहुत लचक गयेव होतो.मंग उनला डॉक्टर कर लीजाईन.पर अज ताज्या को कारण अजी को जीव बचेव होतो.नही त भूक तहान ल अजी बेजार भय गया रव्हता.
     तब पासना ताज्या  को आमरो घरमा लाड जास्तच होन बसेव.
जब वोकी उमर भयी तब ऊ जास्त बाहेर जातच नोहोतो पर आपलो जागा पर बसके सबला सतर्क कर.
  जब ऊ मरेव तब घरका सबझन बहुत रोया होता.अना घास भर भात बी आयी नोहोतीन.आमरी माम खूद उपाशी रह्य जाय पर ताज्या ला कभी काही कमी नही होन देईन.
   आबबी कभी ताज्या की यादद आवसे त डोरा मा पाणी आय जासे

- वर्षा पटले रहांगडाले

बोधः प्राणी परा अगर तुम्ही प्रेम करो त वय भी कभी उपकार भूलत नही.अना कुत्रा पक्षा वफादार.ईमानदार कोणीच नही रव्ह.

प्रेरणा sekhram yelekar 001


सकारी सकारीच बयनबाई उठी, उमेश वो दादा उमेश, उठ बेटा, अज तोरो अजी घर नाहाय त् ढोरबासरु कोटामालका बाहेर काहाडले बेटा अना चारा पानी करले मोर् सोन्या. उमेश सपरीमा कुलर लगायकन ढाराढुर सोयेव होतो. उनारोमा बेहरमा ज्यादा पानी नही रव मनुन बयनबाई पहाट पहाटलाच घगरा गुंड बाल्टी धरस्यानी बेहरपरा पानी भरनसाती गयी. जानक् भारी बी उमेशला हाका मारस्यानी गयी होती. बयनबाई को पानी बिनी भरस्यानी भयोव होतो तरी उमेश को उठनको नावच नोहोतो. वोला आबवरी कुलरक् हवामा सोयेव देखस्यानी बयनबाई को पारा सनकेव. आंगणमा खराटालका जोरजोरलका झाडता झाडता अना शेणको सडा झटकालका मारता मारता वको टोंडको बाजा चालू भयेव त रुकनको नावच नोहोतो. दिवस निकलीसे तरी पसरेवच से यव घोडम्या, यला दळका मारेव का त मालुम नही, आयी से मोर पोट् यव कुंभकरण.
सकारी सकारी गारीको प्रसाद भेटेव मनुन उमेश बी फनफन करतच उठेव. उमेश की ११वी की परीक्षा भयी होती. १२वी क् अभ्यास को भुत वक् आंगमा सिरेवच नोहतो. मायला ना काममा मदत करनो, ना अभ्यास करनो असो उमेश को चालू होतो. घडीघडी आपलला आरसामा देखत रवन्, बारबार कंगी करत रवन्, मायबाप क् संगा चिडचिड करन् , रातमा १२ बजेवरी मोबाइल देखत रवन्. संगीभाईक् संगा हिंडत रवन् असो उमेश को उपक्रम चालू होतो. उमेश क् यन् रवैयालका बयनबाई बहुत परेशान होती. इतवारको दिवस होतो. उमेश क् संगीको जनमदिवस होतो. उनन बढीया पार्टी को बेत करीन. चारपाच झन मिलस्यारी गोंदिया क् एक हॉटेल मा पहुच्या. वहानी माहोलाच बनाइन. जसो लगत होतो का अज इन सप्पाइनन लाज सरम रस्तापरच ठेयी सेन.
वनच बेरा सुदनाम गुरुजी वहानी आया. हॉटेलवालो सुदनाम गुरुजी को साजरो वरकीको होतो. गुरुजीन हॉटेलवालला बहुतघन  मदत करी होतीन वु गुरुजीला बहुत मानत होतो. एक साजरो व्यक्तीमत्व मनुन सुदनाम गुरुजी की ख्याती होती. अजवरी गुरुजी उमेशला साजरो टुरा मनुन समजत होता. दसवी वरी उमेश हुशारच होतो. एक दुयघन गुरुजी न् उमेशला मदत बी करी होतीन. पयले
गुरुजीला लगेव का इनला डाटे पाहिजे पन यन बेरा डाटनोक बजाय गुरुजीन अलग सकल लगाइन. हॉटेलवालला सांगीनका इनला जो लगसे वु दे पन पैसा मी देउ. इनक् संग पैसा लेनको नही. कोणी तरी आयेव ना पैसा देयकन गयेव असो कवनो. गुरुजीन एक चिट्ठी लिखीन वा उमेशला देनसाती सांगीन.

मोरो प्यारो दोस्त उमेश,
तू आब् मोठो भयेस मोला आबच मालूम भयेव. मनुन मी तोला दोस्तक् नावलका लिखेव, बुरो नोको मानुस. मी अजवरी तोला बहुत साजरो मानत होतो, मोला मोठो झटका लगेव. तोला आर्टी पार्टी की इच्छा होते त् मोला सांगत जाजो. पन पयले मेहनत कर सफल  इन्सान बन, मंग जसो तोला लगे तसोच कर. 
तोरोच, 
पयलेको गुरुजी
आबको दोस्त
सुदनाम

हॉटेलवालन् देयीस वा चिट्ठी उमेशन घर जायकन  बाचीस ना बहुत रोवन बसेव. वोला आपल् रवैया को बहुत घुस्सा आयेव. गुरुजीक मनमालका मी उतरगयेव यको वोला बारबार पश्चात्ताप होत होतो. उमेशन वन चिट्ठी लाच नमन करीस अना जवरीक मी सफल इन्सान नही बननको तवरीक गुरुजीला तोंड नही देखवनको असो संकल्प करीस. 
उमेश आब बदल गयेव होतो. सकारीच काम ना दिवसभर अभ्यास मनजे अभ्यास. १२वी मा उमेशला बहुत साजरा मार्क भेट्या. वक् मेहनतको पयलो निकाल साजरो आयेव होतो. वोला साजर इंजीनियरिंग कॉलेजमा प्रवेश मिलेव. यन् क्षेत्र मा बी बहुत स्पर्धा से या बात उमेशन वरकी होतीस. मेहनतक् बलबुते बहुत साजरो मार्कलका  इंजीनियरिंग पास भयेव. बीई फायनलमाच एक मोठ् कंपनीमा नोकरीपर लगेव. वकी मेहनत अना लगन देखस्यानी कंपनीन् वको एक सालमाच मोठ् हुद्दा पर प्रमोशन करीस. 
दुय सालक् बादमा सुदनाम गुरुजीक घर एक चमचमाती
कार आयी. अकाडीको दिवस होतो. गुरुजी आंगनमाच हिंडत होता. कारमालक एकजन उतरेव अना गुरुजी मी तुमरो उमेश कयकन गुरुजीका पायाच पडेव. गुरुजी साती ना मॅडमसाती सुटकेस भरस्यानी सप्रेम भेट आनी होतीस. उनक्  घरवालीक् समजमाच नही आयेव का यव का होय रही से. उमेशन आपली सारी हकीकत बयान करीस ना गुरुजी तुमर् मार्गदर्शन पासूनच मी आब् एक मोठ् कंपनीमा मुख्य इंजीनियर सेव. गुरुजीका अना उमेश का डोरा खुशीलका वला भया होता. 
यव प्रसंग देखस्यानी गुरुजीकी  घरवाली बी डोरामा पानी आनस्यानी आपल् पदरलका आपला डोरा पुसत होती.
****
✍ डॉ. शेखराम परसरामजी येळेकर नागपूर
मो- 9423054160
दि. 26/5/2020

अजी की पैदल यात्रा hargovind tembhre 001


आज मोला मोरो बी अजी/दादाजी की याद आय गयी, मी बहुत लहान रही राहू दुसरी या तिसरी कक्षा मा  गांव को स्कुल मा शिकत होतो मोरा अजी नांव स्व.श्री. महादु धोंडू जी टेंभरे मोला  स्कुल मा आपरो संग लिजाय देत होता अजी कव की आमरो गांव को लिल्लहारे गुरूजी अना इंदूबाई बिसेन शिक्षक साजरा शिकावनो मा मास्तर/मास्तरीन सेत, गांव मा सबला सांगत होता की मोरो नाती बी एक दिवस बहुत कागज सिके मोरो अजी ला सायकल चालावता नही आवत होती, अजी फुपाबाई को गांव सोनेगाव आमरो गांव लक करीबन तीस पस्तीस किलोमीटर रहे वाहा पैदल जात होता वोन समय मा येतरा साधन बी नही रया रहेत, अजी जहाँ बी जात होता रस्ता मा अगर गांव की टूरीपोटी जेन गांव मा बी से त अजी व्हा तैयार होय जाय , आपरो गांव की बेटी-बहु को घर जात होता वाह की खबर बातमी, तबियात पानी, हालचाल बिचारत बिचारंत गांव मा वोन टुरी को  घर जाय स्यारी, कहान ग्यात  बहुबैदी सेती की नहाती ,आवो मामाजी आजी आवो बसो उतलक आवाज आव अरे भाऊ तोरो मोटो अजी महादु बाबाजी आयी से दुय कप चाय मंडावो,मामाजी सकारीच, सकरीच नही बेटी /बहु तुमरो माय घर ग्येव होतो काल सब बाका से काजी माजी माय/बाबूजी गिन की तबियत ठीक से ना....आं.. गये होतो बाटा सोनेगाव अमरायान बाई को गांव क्येव की रस्ता मा तुमरो माय को गांव गोंडमोहाडी भेटेव त लवट ग्येव बेटी सब ठीक से तुमरो अजी की पाय ला लग गयी से जरासो.. अवो माय कस कस जी मामाजी ,भाऊ सांग की लमढिको बाटा आजन की डगाल तोंडात तोडता झाड परलक पाय घसर गयेव जी ..आराम होय  जाये चिंता नोको करो बेटी भगवान सब ठिक कर देये ...एखाद दिवस खासर लक भाऊ संग चाली जाजो बेटी मुलाखत होय जाये l आता जसु बेटी काल आवता आवता नवेगाव मा बाई घर जेय लेयव होतो एक दिवस खाजो लिजाय देऊ कसू भाऊ मंग खरी दोरी पेरण की सेत...हो जी मामाजी  जसु भाऊ अता राम राम जी l अजी गांव मा कोनी घर  मयत भय गयी रहे त अजी ला बुलावा पयले, बावस्या देन/खबर देन साठी अजी जात होता अजी काहे की अजी ला नांव मूपाट याद होता l अजी ला बाडकाम बी आवत होतो एक गण को किस्सा सांगूंसू तब टीव्ही पर शुक्रवार शनिवार दिवस शाम ला ४बजे पासून पिक्चर आवत होती आमी कामत मा जनवर/गाय भसी चरावन जात होता, बावनकर बाबू घर टीव्ही देखत होता संगी साथी वोन दिवस आमला बहुत टाईम भय गयी टीबी देखता देखता अजी ला चिंता भारी मोरो नाती आबवरी घर नही आयी से अजी कामत कामत खेत बाडी ढुढता बानकर बाबू घर आया ना देखीन .....आमरो घर को बाबल्या से का बाटा दुर्गाबाई आहे बाबाजी...अजीन मोला देखीस ना.... अजी  को पार गरम भयव ....एक कांडी मारू बाटाला केतरो डाव का जनावर घर आय गया सेती .....तो ला टीबी काम आहे टीबी.....मी भाग परात परात घर आयेव मोर बाबूजींन एक कान पर तड न्यारी मरिस पाचयी बोट गाल पर उतर गया l
आई कसे जान देव आता अजच गयी रहे चल बेटा...घास भर भात खायले इंधारो पड गयी से !
अज बी गांव मा लोक कसेती की महादु महाजन की बात निराली होती,मोरो बाबुजी ला बी उनकी पदवी भेटी.....! असा होता मोरा अजी....अजी तुमरो बेटा अना नाती तुमरो सिखायेव/ देयव मार्ग पर चल स्यारी समाज व गांव परिवार को नाव उंचाई पर लिजावंबींन तुमाला मोरो सादर प्रणाम स्वीकार करो.....!
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प्रा. डाँ. हरगोविंद चिखलु टेंभरे

दान दाता रघु पटील ajaykumar bisen 001


   रघु पटील को गाव मा बळो मान -पान होतो, वोला कारण भी तसोच होतो पटील घर कोनी गयव न वोला मदत नही मीली असो कभी नही भयतो.रघु पटील ला दुई टुरा होता .उनको शिक्षण साठी न गाव को टुराईन को शिक्षण साठी पटील न आपलो ओळखी पाळखी लाक 7 वी वरी शाळा आणीतीन.पटील जसा दान करत होता तसीच शिक्षण मा उनकी बळी रुची होती.आपलो गाव मा सब शिके पायजे असो उनला लग ,आपला टुरा त हुशार सेती आपलो जवळ जमीन जायजाद पैसा से टुरा शिक्षण पुरा करेती पन गाव का गरीब कास्तकार,सोनार,बरठी,ढिवर,कलार,भाली ईनका भी टुरा शिकेत पायजेअसो उनला लगत होतो आपलो जवळ को पैसा  गाव को टुरा ईनला शिक्षण साठी पटील चुपचाप पैसा देत रवत पन टुरा ईनला सांगत बेटा तु शिककन मोठो भयव पर तु भी कमसे कम दुई  टुराईन को शिक्षण पुरो करो असी शपथच उनको सीन लेत होता.असो करता करता पटील को गाव मा मास्तर,तयसिलदार,पटवारी,फाॕरेष्ट अधिकारी ,पुलीस काही त मोठा साहेब भी बन गया होता.या बात पटील न आपलो बेटाईनला नही सांगीतीन न जीनला मदत करत होता उनला भी मी मदत करु असो कोनीला नोको सांगो असो सांगस्यान ठेईतिन.काही दिवस मा पटील की तबियत खराब भई न जादा खराब होनो पर उनला देवआज्ञा भई या बात जसी गाव मा पता चली तसीच चार कोष ,बारा गाव न बारा जिल्ह्या मा फैल गई .पटील को अंतीम दर्शन साठी गाव मा सकाळ पासुनच चार चाकी, दुई चाकी गाळी की गाळी आवन लगी सुट बुट मा आया साहेब लोकहीन ला देखकर गाव का लोग आपलो आपलो मा बोलत होता.ना कोनी ओळखी का ,ना जात का ना पात का पर जे आया होता पुरा साहेब लोक पटील ला खांदा देन ला लाईन लाक लग्या होता न सब को डोरा ईन लाक आसु रुकत नोहोता.या सब देखकर पटील को बेटाईन न आईला खबर लेईन आई ये कोन आत न कहा का आत.पती काही करे न केतो भी छुपायकर ठेये तरी पत्नी ला मालुम होय जासेच आई न रवत रवत  सांगीस बेटा जसो बाबुजी न तुमला शिकाई सेन तसोच ईनला सबला मदत करी सेन येको साठीच आपलो देव को आखरी दर्शन करन साठी आया सेत.

(तात्पर्य -आपलो जवळ को पैसा ला असो काम मा लगावो वोको लाक दुसरो को भी भलो होये )

- अजयकुमार बिसेन तलाठी अर्जुनी

मोरो मावसी की कहानी kalyani patle 001


या कहानी आय मोरो मावसी की पहिले को जमानो मा कम उमर माच टुरा- टुरी इनका बिया होती। उनला तब समजत भी नव्हतो का घर गृहस्थी कसी संभाल्यो जासे, परिवार का होसे। तरी उनको बीया कर देंत होता। अन वय खुशीलक जिंदगी बितावती। अन आपरो जीवन पार पाड़ती। तसीच मोरो मावसी की भी जिंदगी बीती।
पंधरा साल को उमर मा मोरो मावसी को बीया भयो कसेत। सासू होती, सुसरो नवतो, दुुय भासरा होता एक ननद होती है। सासू अच्छी होती कसेती, सब तुमसर मा किराया लक रवत होता। पर मोरो मावसी का भासरा मोठा खराब, बेवड्या। ना मोवस्या भी तसोच होतो। वोन जमानों मा एक साइकील सुदरावन को दुकान होतो अन एक चाय की टपरी होती।साइकील को दुकान दुय भाई चलावत होता अन मोरो मोवस्या चाय की टपरी चलाव। पर तीनयी भाई बेवड़ा रवनो को कारन उनन साइकील को दुकान को सामान दारू पीवनसाठी बिक-बिकके सारों दुकान डुबाय डाकिन।
मंग बची चाय की टपरी वा पहिले पासुन मोरो मोवस्या को हात मा होती। आता भयो असो का मोरो मोवस्या को दुई भाई इनकी बायका असी होतीन का नवराला भगवान मानती, बडी आज्ञाकारी। नवरा को सामने बोलत भी नवतीन अन नवरा काही गलत कर त रोकत भी नवतीन। असो करता करता दुई भाई जवर काहीच नहीं बच्यो होतो, बची होतीत मोरो मोवस्या की टपरी। पर इनको मा मोरी मावसी जरा हुशारच होती, वा हमेशा मोरो मोवस्या ला गलत कामसाथी रोकत होती, अन चाय को टपरी पर खुद जात होती, येको कारन मोरो मोवस्या की टपरी बची रही। मोरो मोवस्या दिन भर की कमाई दारू मा उड़ावसे कयके खुद मोवस्या संग चाय को टपरी पर जात होती, अन दिन भर संग रवत होती। दिन भर को कमाई मा लक काहीं पैसा बचावत होती अन आपरो टुरू पोटु को लिखाई पढ़ाई कना ध्यान देत होती।
            मोरो मावसी ला दूय टुरा न एक टुरी से। असो करता करता उनको बीया ला पंधरा साल बित गया, पर मोरो मोवस्या की दारू सुट नको। मोरो मोवस्या की दारू सोड़ावन लाई मोरो मावसी न खूब प्रयतन करीस, खुब दुःख झेलीस, मार खाईस । कभी कभी त मोरो मोवस्या रस्ता लक गलंड्या गडू सरखो गलंडत गलंडत चल त मोरी मावसी धर पकड़कर घरतक आन असी बहुत सारी तकलीफ मोरो मावसी न सहीस पर हिम्मत नहीं हारिस। अन आपरो टूरू-पोटू इनला अच्छा संस्कार देयिस, उनको बिया करिस, अन उनकी घर गृहस्थी बसायिस। अज तुमसर मा उनको दुय मजली खुद को घर से, चाय की अन डेली नीड्स की खुद की दुकान से।नहान बेटा अन मावसी-मोवस्या दुकान चलावसेत , मोठो बेटा गैस गोदाम मा बाबू से, मिल्ट्री वालो जवाई से। एक बहु टीचर से अन एक घर गृहणी से। अज उनको परिवार एक सूखी परिवार से।
        येतो तकलीफ मा मोरो मावसी न दिवस निकलीस , आपरो बेटा बेटी ला लिखाय- पढाय कर कहीं तरी अच्छो करन को काबिल बनाईस। अगर मोरी मावसी मोवस्या को हव मा हव मिलावती अन हिम्मत हारती त गाव सोडके आज यीतउत भटकनो पड़तो।
      असी से मोरो मावसी की कहानी। या कहानी एक सत्य घटना आय एक बार मोरो मावसी संग बस्या होता त बात बात मा मोरो मावसी न आपबीती सांगी होतीस येको पर मीन या कहानी लिखी सेव।
     
  येको बोध असो से - 
    परिस्थिति को डटके सामना करो (कसी भी परिस्थिति रव बुद्धि लक अन हिम्मत लक काम करो जरूर यश मिलसे)

            -कु.कल्याणी पटले
            दिघोरी ,नागपुर

संस्कार munnilal rahangdale 001


           आमर समाज को गौरव शाली इतिहास आमर पीढी ला पुरो मालुम से,राजा भोजकी जानकारी सबला से,असो दिस नही.एव मालुम से,आम्ही राजा भोज का वंशज आजन्,धारानगरी को राजा होतो. 
          इसकुल मा,इतिहास की बरोबर जानकारी भी नही मिल.आमला इतिहास मा मुसलमान कालखंड, मुगल कालखंड, ब्रिटिश कालखंड शिक सेजन. आपलो गौरव की जानकारी देनकी जवाबदारी आपलो पर से. समाज क् विविध संगठण, संस्था द्वारा समाज जागृती आय रही से,एव उत्साह, जोम,लगन कायम ठेवन की जवाबदारी भी जेष्ठ समाज बंधु की से. *झारीतील शुक्राचार्य* नही होये पायजे.
         आवने वाली बिरादरी,पिढ़ी, टुरा टुरी पर संस्कार देनकी जबाबदारी भी आमरीच से.
                संगत को बाल मन परा पडनेवाला संस्कार जीवन भर रव्ह सेती.कारण लहान टुरा टुरी को मन ओल माती सारखो रव्ह से,जसो आकार देवो,संस्कार देवो तसा ग्रहण कर सेती. 
                एक कथा  मोठी  मार्मिक,उद्बबोधक से.
           एक मीठू/पोपट/राघू/तोता/हो-या,बिकने वालो  (सौदागर)  राजा क् दरबार मा  आयेव.
ओक जवळ दुय मीठू होता.तारीफ करत होतो,किंमती, मुल्यवान सेती, सौदागर सांगत होतो, ये मीठू जो भी आयक् सेती, एक बार आयकेव परा कंठस्थ/तोंडपाठ होय जासे वय्  माणुस की बोली बोल सेती .राजा न् दुयी मीठू लेईस. एक मीठू ला राजद्वार परा,त् दुसरो ला मंदिर क् दरवाजो पर ठेय देइस. 
                          काही  महिना भयेव परा राजाला मीठू की याद आयी. राजद्वार जवळ क् ,मीठू जवळ गयेव, मीठू खराब,खराब गारी देत होतो. राजाला दुःख भयेव. मंग मंदिर क् दरवाजो वालो मीठू जवळ गयेव,सुन्दर सुन्दर गीत,संस्कृत बोलन बसेव.राजाला आनंद भयेव. 
  राजा न मीठू ला खबर देयीस,तुम्ही दुयी जनला संगच लेयेव,पर दुयी मा फरक कसो आयेव?
           मीठू समजदार होतो. राजाला सांगीस ,राजद्वार पर का चौकीदार ज्या भाषा, /बोली बोल सेती, वाच भाषा मोरो संगी बोल से. मंदिर क् दरवाजो पर मी सेव,त् मोला रामायण, महाभारत का प्रवचन, सुसंस्कृत बोली पाठ भय गयी. 
          दोष वोन् मोरो संगी को नाहाय,वोको परा भयेव कुसंस्कार को दोष आय.
            लहान पण पासून सुसंकार,आपलो गौरव पूर्ण इतिहास, मातृभाषा, मातृ-पितृ भक्ती, आत्मनिर्भरता की चिंता/फिकर आमला करन की से.
             भविष्य मा टुरा टुरी विपरीत व्यवहार करेती, त् दोष टुरा टुरी को नाहाय, या जवाबदारी आमरी से.

- मुन्निलाल रहांगडाले

Monday, May 25, 2020

प्रा. डॉ. शेखरामजी येळेकर इनका पत्र


मी मोर् बाबुजीला लिखेव होतो वु एक पुरानो पत्र- १९९६ को खेतीबाडीलक जुडी से)
(वु पत्र मराठीमा होतो वको पोवारी अनुवाद करेव )

आदरणीय बाबूजी
तुमरो बेटा शेखर करलका
सा. न. वि.वि.

यन् उनारोमा मी सिंदीपारला आवु कयोव होतो पन मोरो आवनो नही जमनको. 
मोरी परीक्षा होनलाच से. परीक्षा की मोला तयारी करनकी से. मनुन मी नही आवनको.
तुमरो करसा भरस्यानी भयीच रहे. आंबाको पना, पापड, कुरुडी ना शेवयी खानकी बहुत आस होती पन आस अासच रय गयी. 
बाबुजी, मोला मालुम भयेव का  आमर् गावमा नवा नवा घर बन रह्या सेती.
 तुमला बाडकाम साजरो आवसे मनुन गावमा आडा फाटा ठोकनसाती तुमरोच नंबर लगसे, मनुन तुमी वन् काममा व्यस्त सेव असो मालुम भयेव.
ज्यादा तपनमा काम करसेव पन तपनमा आपलो खयाल रखनोबी बहुत जरुरी से. तुमी बीडी मनमाने पीवसेव जरा कमी पियात त् मोला बहुत साजरो लगे. 
एक पानी पडेपरा खातकी डॉली बांधिनकी कोशिस करो. खातकडी वंगन्या(नरा) कोटामाच सेती. मोंगाळवाल परखनमा ज्यादा मुरखात टाकनकी कोशिस करो. 
नांगर,फण, पट्टा, बखर, जुवाडी ना बारती सुधरायकन ठेय देवो, तसो तुमीच बढयीको काम बढीया करसेव मनुन मोला वकी चिंता नही. 
कोनला घडी भरसाती सामान देनको रहे त् ध्यानमा ठेवत जाव, कोनी सामान लिजासेत अना आनच् नही देत. कोन् काेनतो सामान लिजाईस यव मायला(आईला) सांगस्यानी ठेवत जाव. 
पानी आवनक् पयलेच धुरा पार पेटायकन भया पायजेत. वाकडी मोवुरली वालो धुरा अना बोर वालो धुरा मायला साजरो पेटावनला सांग देवो. परा लगावनक् भारी बोर वाल बांदीका काटा कोनला नही त् कोनला गडसेतच मनुन मोरी माय दुसर् बांदीको कचरा ना वारेव मोवु को पाला टाकस्यानी बांदीका काटा पेटाय टाके. तसोच धुरापरका ताेरका ठाटा आबच् मोडस्यानी ठेय देये. ठाटा कोनला लिजान नोको देवो. बरसातमा पानी गरम करनला बेस होसेत.
यन साल पहिलेच खारी नोको भरो, कचरा वापनदेव. मंग खारी भरो.
गयेसाल् खऱ्यानवाल् परखनमा मनमाने सावा ना कचरा वापेव होतो. तुमला लगेत् खऱ्यानवाली परखन बदलाय टाको.
परा लगावनक् घनी बन्यारनी भेटत नही फटेतक रोजी रवसे मनुन आबच सुरेकांता भोवजीला सांगकन ठेय देवो. जमेत् कोनक् आंगपर पैसा देयकन ठयराव टाकन्.
मायला भर तपनमा खेत नोको पटावो. महातीनबेरा गयी त चले. 
माय धुरापरा तोर लगावनसाती धुरा को कोडका साजरो करे. दुयक बन्यारनी बनाय लेये. तुमी बांदीमा साजरा तास टाककन देवो. धुरापर माती टाकनसाती साजरो होसे.
बाबूजी तुमी गावक् सोसायटीलका कर्ज लेय लेवो.
वन् पैसा मा युरीया, कृषी उद्योग खात की चुंगडी आनस्यानी ठेय देवो. 
बइलला चारा पानी साती तनीसका बेट मारस्यानी ठेवो. तनीस कम जायेत् आबच कोनीबी जवरको तनीसको सौदा करस्यानी ठेवो. नही त् मालुटोलामा मामाजीक् गाव सस्ती तनीस भेटसे कसेत, वक् साती बडेगाव मालुटोलाला एकान चक्कर मार लेवो. 
मी परा लगावनक् घनी (रोवनामा)पेंडी फेकनसाती जरुर आवनकी कोशिस करु. गये साल् इला भोवजी अना अनुसया भोवजी इनक् खेत् पेंडी फेकनसाती गयेव होतो ना मंग बन्यारनी नही भेटी मनुन दिवसभर १६ रुपये रोजीलका परा लगावनसाती(रोवना रोवनसाती) मदत करेव होतो. यन साल उनला सांग देवो का अगर मी आवु त् मी दुय रुपया रोजी ज्यादा लेवु. 
बाबूजी मोरी ज्यादा चिंता करनकी नही. इत् सब ठीक ठाक से. 
दुय रुपया ज्यादा रोजी वाली बात इला ना अनुसया भोवजीला सांग देवो. 

मायला ना तुमला दंडवत प्रणाम
सबला मोरो नमस्कार सांग देवो

तुमरो बेटा, 
शेखराम परसरामजी येळेकर
शेखर
(टीप:- अजक् तारीख ला (२५/५/२०२०ला )मोरा बाबूजी, मोरी माय ना इला भोवजी नाहाती. अनुसया ना सुर्यकांता भोवजी सेती)
अनुवाद दि. २५/५/२०२०

अहंकार (hargovind tembhre) 11


अहम की दीवार 

मानव जीवन नही आव बार बार,
त्याग करो अहम की दीवार ll

यातना सहन करनो पड़ी से माय
माय-बाप ला अपार, कायलाईक बनायात अहम की दीवार ll

बर्बाद होय जये समाज मा तुमरो संसार, काहे बिछायात अहम को जाल ll

सबला पड़ी से मोठो बिचारं, कोण बनावसे से अहंम की दीवार ll

काहे से अहंम लक येतरो प्यार,
एक दिवस नाश करेत असा बिचार ll

बच्या नही येकोलक इंद्र का राज दरबार, त्याग करो अहंम का बिचारं ll

धन- दवलत रहे जरी अपार, सबला जानो से त्याग कर मोह माया को संसार ll

अगर नही त्यागो अहंम  बिचारं,
समाज नही धावन को सोडस्यार
आपरो संसार ll

अगर त्यागो अहंम का बिचारं,
मान सन्मान भेटे तुमला अपार ll

सुकुन भेटे परिवार समाज ला
अपार होय जाये कुल को उद्धार ll

सुख दुःख से जिवन को आधार,
पार लगावबिन आमी आजन पोवार ll

सब चलावबिन लेखनी का बाण,
बंद होय जाये भाषा अपमान ll
**********************
प्रा.डाँ. हरगोविंद चिखलु टेंभरे
मु.पो. दासगांव ता. जि. गोंदिया
९६७३१७८४२४

अहंकार (chhaya surendra pardhi) 11


परम शिवभक्त, महा बलशाली
सुंदर सोनो की लंका को अधिपती।
लंका की नहीं बची महालमाळी
अहंकार लक् मारी गई ओकी मती।।

अहंकार को मणमा धससे भूत
माणूस की होसेत भाऊ बडी गती।
चार लोक नहीं रवत सकोली जवर
पैसा की गरमी होसे आगमा सती।।

जब सत्ता आयजासे एकबार हातमा 
अहंकार को पिल्लू होयजासे साथमा।
स्वार्थ साती देसे समाजको बलिदान
नहीं रव ईमानदारी नेता को बातमा।।

कायला येत्तो अहंकार से मानव तोला
कब काया को पक्षि पिंजरा तोड़ उडाये
पंच तत्व की बनी या नश्वर नर काया
एक दिवस येन माटी मा मिल  जाये

अच्छो काम कर समाजसाती काही
समाजका आमी सेजन शतशत ऋणी।
अहंकार को जारवा तोड होय तय्यार
पोवारी साती बन तू वाल्मिकी  मुनी।।

✍️सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

अहंकार (dr. Sekhram yelekar) 11


♟️ चुकेव तोरो गांधारी♟️

तू हस्तिनापुरकी महाराणी होतीस
राजा धृतराष्ट्र की होतीस प्यारी
संभाल न सकीस घरवालला
चुकेव तोरो गांधारी, 
चुकेव तोरो गांधारी।। १।। 

पट्टी बांधेस आपलच डोराला
तोला दुपारबी लग् अंधारी
अहंकार को तून्  करेस समर्थन
चुकेव तोरो गांधारी, 
चुकेव तोरो गांधारी।। २।। 

धर्म मनुन पट्टी बांधेस डोराला
तोरी शिव भक्ती बी होती न्यारी
पुत्र मोहमाच साधना व्यर्थ
चुकेव तोरो गांधारी, 
चुकेव तोरो गांधारी।।३।। 

वऱ्या वऱ्या की तोरी आत्मीयता
तोर् अंतर मन मा खुन्नस भारी
भगवान कृष्णला बी सराप देयेस
चुकेव तोरो गांधारी, 
चुकेव तोरो गांधारी ।।४।। 

कायला नही देखेस तू खुल् डोरालक्?
भाई भाई की मारामारी
मुकी रयकन चूप रहीस
चुकेव तोरो गांधारी, 
चुकेव तोरो गांधारी।। ५।। 

डोरा खोलस्यानी देखी रवतीस
तोरा पुत्र केताक अहंकारी
कान खाल्या दुय देनको होतो
चुकेव तोरो गांधारी, 
चुकेव तोरो गांधारी।। ६।। 

विवशता मनुन लाभ उठायेस
तोरो घरवालो बी अहंकारी
विवश विवश मनुन रोवत रहीस
चुकेव तोरो गांधारी, 
चुकेव तोरो गांधारी।। ७।। 

कपटी भाईला बढावा देयेस
वला काय नही टोचेस तुतारी? 
महायुद्धला तू बी जबाबदार सेस
चुकेव तोरो गांधारी, 
चुकेव तोरो गांधारी।। ८।। 

कुटनिती का फासा पडत दरबारमा
पुरी रोवत होती हस्तिनापुरी
मुकी रयकन समर्थन करेस
चुकेव तोरो गांधारी, 
चुकेव तोरो गांधारी।। ९।। 

युग बीत गयोव महाभारतला
आब् बी सेत यहान अहंकारी
अहंकारी ला जो समर्थन देसे
चुकसे वको बी गांधारी, 
चुकेव तोरो बी गांधारी । ।१०।। 
***
डॉ. शेखराम परसरामजी येळेकर नागपूर २४/५/२०२०

अहंकार (kalyani patle) 11

अहंकार मनुष्य को शत्रु

अहंकार से मनुष्य को शत्रु बडो,
येला त जीवन लक दुर ठेयकेच काम करो।।

अहंकार मा आदमी नहीं होय सीक कोनीको,
धर्मी,अधर्मी सबलाच काम पडसे पानी को।।

अहंकार लक रावन की लंका भी जर गई,
आखिरकार रावन की आत्मा राम की शरणार्थी भय गई।।

हर मनुष्य को आत्मा मा से अहंकार,
पर येला आत्मसात कर्योलकाच होसेत दुर घर-दार।।

अहंकारी आत्मा मा नही रव वास भगवान को,
पर मरन को बेरा रावन न लेईतीस नाव भगवान श्री राम को।।

पहचान करन की से जरूरत आपरो गुनी स्वभाव की,
खुद खुश रहो, सबला खुश ठेवो पहचान होये तुमरो हाव-भाव की।।

हिवारो की ठंडी मारसे उन्हरों को तपन ला,
निसर्ग मा हरियाली आनसे फायदा होसे सारो जन ला।।

धरती को हर मनुष्य मा से अहंकार,
पर ईमानदारी को सागर मा नही होय सीक येकि नैया पार।।

आमरो पूर्वज की जन्मभूमि आय धार,
आम्ही आज क्षत्रिय पोवार।।
       
       - कल्याणी पटले
          दिघोरी, नागपुर

अहंकार (palikchand bisne) 11


परमात्माको पुत्र मानव
वकि मयमा न्यारी।
अहंकार यव् दुर्गुन आवताच
नाससे बुद्धी सारी ।।

रावन, बाली  शक्तिशाली
अहंकारमा चुर भया ।
सिदोसाधो मानवलका
यमपुरी चला गया।।

चार वेद ,सय शास्त्र
अठरा पुराण ,सारो पसारा
अहंकारला मिटावनसाठी
होसे आजबि ,लेखन सारा।।

एकता संयम त्याग पराक्रम
हारे अहंकार यकलका
भरो ह्दयमा ऊर्जा आध्यात्मिक
हरेती दुर्गुन, चुटकिलका।।

राजाभोजक् वंशज आजन्
बनबि योद्धा, योगीबि
जितेंद्रिय बनबि आमी
हरेती सारा दुश्मनबि! ।।

पालिकचंद बिसने
सिंदीपार (लाखनी)

अहंकार (vandana katre) 11


कोनी कसे अहंकार म्हणजे गर्व
कोनी कसे गर्व नहि ,आत्मसम्मान
एक शब्द का जरी सेती दुय मान्यता
तरी दुही देसेत जीवन मा अपमान ।।

तन बि रवसे इंद्रिय पर पुरो निर्भर
अन यव जीवन से दुय घडी को खेल
अहंकार करसे शरीर ला पुरो दूषित
मंग इंद्रिय को बि कसो रहे शरीर मा मेल ।।


जरा देखो त येन हरीभरी प्रकृती ला
केतरी से सत्वशील अन परम उदार
सतत मन मा करसे दान को च जतन
नहाय ओकोमा जरासो बि अहंकार।।


येन धरतीपर कोनी नाहाती नहान मोठा
सब सेती एक दुसरो पर जीवनभर निर्भर
हे मानव!समझाय ले तू या संकल्पना
तो तोरो जीवन नहि होनको असो जर्जर।।


येन जीवन मा कमाओ चांगली कीर्ती
अन पिरम, शांती को करो अनुष्ठान
जरा अहंकार को नाश करकन देखो
"मनुष्यता"को बस जाये साजरो प्रतिष्ठान ।।


मानवी मुल्य च करसे नर को नारायण
"राम-कृष्ण"धरतीपर भया पतित पावन
आता जार डाको 'मी"पन कि भावना
मंग जरुर,....
तुमरो जीवन मा बरसे हिवरो सरावन
तुमरो जीवन मा बरसे हिवरो सरावन ।।

वंदना कटरे  "राम-कमल"
गोंदिया
२४/०५/२०२०

अहंकार (chiranjiv bisen) 11


अहंकार आय आदमी को सबसे मोठो दुश्मन,
सबला आपल् जवर् ठेवो पर अहंकारला दूर ठेवण्.

अहंकार लका मोठा मोठा साम्राज्य भया नष्ट,
अहंकार लका आदमी की बुद्धी होय जासे भ्रष्ट.

रावण,कंस,दुर्योधनको अहंकार नच् करीस् घात,
मनला बस मा ठेवो करो अहंकार पर मात.

येव काम मी कर सकुसू या आय काबलियत,
पर मीच कर सकुसू या आय अहंकार की नियत.

आपल् शक्ति पर ठेवो हमेशा विश्वास,
पर आपल् कमी को भी रव्हन् देव आभास.

राम, कृष्ण ला होतो आपल् शक्ति पर विश्वास,
आपल् कार्य ल् संसार मा बन गया वोय खास.

              रचना- चिरंजीव बिसेन
                          गोंदिया.
               मो.नं.९५२७२८५४६४

अहंकार (mukund rahangdale) 11

     
नको करू तू अहंकार, जगमा सेस तू काही दिवस को पाहुणा, 
रहेव ना रावण सारखो अहंकारी हिरण्यकशप सारखो वरदानी, श्रण मा छुट जाये प्राण नको करू तू अहंकार!!१!!


भया अर्जून सारखा धनुर्धारी, धर्मराज सारखा धर्माचारी, दानी कर्ण सारखा जगमा काही दिवस का पाहुणा नको करुस तू अहंकार!!२!!

आयक्या होता सिकंदर दारा की कहानी, आयक्या  सम्राट राजा भोज की  सुंदर कहानी विक्रमादित्य सारखा विर जगमा काही दिवस का पाहुना मानव नको करू तू अहंकार!!३!!

तोरो सारखा लाखो आया लाखो यन माती मा गया
रहेवं ना नामो निशाण मानव नको करू तू अहंकार!!४!!

  ✍️  मुकुंद दिगंबर रहांगडाले
                              (दत्त वाडी नागपूर २३)
             मो.नं.७७९८०८३२८१

अहंकार (hirdilal thakre) 11


   !! पोवारी इतिहास साहित्य एंव उत्कर्ष  !!
    !! दि, 24-05-2020- दिवस रविवार!! 
             !!  काव्यस्पर्धी साती !!
               विषय == अहंकार 
लहरलक घबरायके कभी नौका पार नही होय, 
कोशिश करेवलक त कभी भी हार नही होय!! 
जो मनुष्य खुद समाजशिरोमणि समजत रहे, 
वोकोलक कभी समाज को ऊत्थान नही होय!!

करके वदंन मायबोलीला कसुमी दिलकी बात, 
आयगयी आँसू डोरामा जी दिल रोवसे दिनरात!! 
नतमस्तक वदंन करुसु वोन समाजशिरोमणिला 
जेव माणुस खुदको प्रशंसा साती रोवसे दिनरात!!

अभिमान त नोको करु येकोमा नाहाय भलाई ,
जरा सोचबिचरकर चल वाये नहीजाय कमाई!! 
अगर समाजको अहित करजो त मगं समजजाय, 
च्यारही आगं फैलत फैलत जाहेत तोरीच बुराई!! 

अहकांर होतो रावणला त हार वोकी भयगयी, 
सत्यमार्गपर नही चलेव त सारीबात फसगयी!! 
जेव खुदला समाजको अनुयायी समजत होतो ,
सांगो आबआता वोकी खुद्दारी कहा चलीगयी !!

समाज ऊत्थान करनसाती कसो मान अपमान  
एक कदम सामने बढाओ कोटी यज्ञ को समान!
होये हमेशा जनजाग्ग्रुती येन साहित्य मंडलमा ,
आम्ही करबी पोवारीसाहित्य मंडल का गुणगान!

                     !!  कवी  !!
         श्री हिरदीलाल नेतरामजी ठाकरे 
          भ्रमणध्वनी 7020144588
       मु, भजियापार, पो, चिरचाळबांध! 
      ता आमगाँव जिल्हा गोदिया माहाराषट्र 
पोवार समाज एकता मंच परिवार पुर्व नागपुर 

अहंकार (y.c. Choaudhari) 11


अहंकार को अवगुन,करसे कंगाल
जीवनमा देखो उनका होसेती बेहाल।।ध्रु।।

महाभारत भयोव व्रुती अहंकार की
सर्व नाश भय गयो ,हानी भयीसब कुलकी
सुर विर योद्धा युद्ध मा भया हाला हाल।।१।।

कोनिला अहंकार शक्तीना रूपकी
कोनीला धन, विद्या,कला,ना सत्ताकी
पल भरकी या जिनगानी सुधरावो आपली चाल।।२।।

अहंकारकं गुनलं नही होय कोनी राजा
जशी करनी तशी भरनी ,होसे ओकी हाशी
गर्वका घर खाली  ,या बात सत्य त्रिकाल।।३।।

वाय सी चौधरी
गोंदिया

अहंकार (varsha patle rahangdale) 11


अहंकार बनावसे माणूस ला हैवान
पेहरावसे मुखोटा अमानुषपणा को
नकळत घड जासेत वाईट गोष्टी हातलका
करनो  पडसे पश्चाताप मंग जीवनभरको।।

अहंकार लका रावण भी गयेव वाया
करीस वीर पुत्रइनको आपलो हातल संहार
मती मारी गयी होती दशानन की पूरी
झेलनो पडेव मर्यादापुरुषोत्तम राम को वार।।

स्वर्गा को राजा देवाधिदेव इंद्र को अहंकार
करीस इंद्रसभाला बी वोन तार तार
दैत्य,असूरनबी करीन आपलो आराधना लका
इंद्र को अहंकार परा करीन अजस्त्र वार।।

माणूस करू नको गर्व अना अहंकार
आपलो बुद्धी को प्रयोग लका निसर्ग परा वार
देख कोरोना को सामने भयी कसी से
सारो मानवजातीकी पछाडेववानी हार।।

क्षणिक अहंकार करसे अगाध विनास
अहंकार छोडके धरो सत्य अना प्रेम की कास
जरा ध्यान ठेवो आपलो जीवन मा भविष्यको
तबच होय जाये पूरी मानवजात पास।।

✍वर्षा पटले रहांगडाले

अहंकार (dhanlal rahangdale) 11


अहंकारका  दुय सेती नाव ।
मी ना मोरो यवच मोरो भाव ।।
अहंकारलकाच भयव रावनको नास ।
कायला मरमर करसेस आये यमको पाश ।।
नाशवान कायासे घडि्को भरोसो नाहाय ।
छोड् अहंकारला भगवानका धर पाय ।।
अहकार, अभिमान मानुसको धरमकी बात नही ।
सब यंजाच रहे संगमा कोणी आव नही ।।
मणुनच कसेती-----अभंग
कोणी नाही बाबा जिवाचा संगाती----

- डी. पी. राहांगडाले
गोंदिया

मध्यभारत के पँवार क्षत्रियों की कुलदेवी

      
उज्जैनी नगरी पँवार शासक महाराज विक्रमसेन विक्रमादित्य की नगरी थी और उनकी माँ हरसिद्धि देवी तथा माँ कालिका देवी उनकी आराध्य थी। कहा जाता हैं की कुलदेवी माँ हरसिद्धि भवानी के सम्मुख महाराज विक्रमादित्य ने अपना शीश अर्पण किया था। 

महाराजा भोजदेव ने अपनी राजधानी उज्जैन से धार स्थान्तरित की थी और वहां माँ गढ़कालिका का मंदिर बनवाया था। पौराणिक कथाओ के अनुसार महाराज जगदेव पँवार ने १०९५ ईशवी में सात बार अपना शीर्ष माता गढ़कालिका के चरणों में अर्पण का प्रयास किया और हर बार माता ने राजा को बचा लिया।  भाटो के अनुसार आठवीं बार में माता ने उनका शीश स्वीकार कर अपने चरणों में स्थान प्रदान किया और यह घटना दिन रविवार को ११५१ विक्रम संवत, माह चैत्र को हुई थी। 

मध्यभारत के पँवार, मालवा से आकर इन क्षेत्रों में बसे थे और आज भी ये अपने पूर्वजों की कुलदेवी माँ गढ़कालिका को अपनी कुलदेवी मानते है।  इन क्षेत्रों में हर सामाजिक कार्य माँ गढ़कालिका की आरती के साथ ही आरम्भ होते हैं। 

जय माँ गढ़कालिका, जय माँ हरसिद्धि भवानी 
जय अग्निवंशीय पँवार(परमार) क्षत्रिय

✍ ऋषि बिसेन , नागपुर

पोवारी शब्दावली, खेती से जुडे शब्द

जैसे इंसानों के नाम होते है वैसे ही जो हमारी खेती है।वहा जो बंधिया होती है उनके भी कुछ विशिष्ट नाम होते है।
सरई = नाहनी बांधी
बड़ी बंधी =  मुंडा
लम्बी बंधी = सराळ
छोटी बंधी = टोकी
हिवरवाली बांधी
बांधी, डोबन, टोकी, 
खेदयावालो टुकड़ा, 
भालीवालो टेकरा, सरई,
 किसान पाटिल वाली बाँधी, 
गोटा वाली बाँधी, कामत,
गावखारि, परशा वाली बाँधी,
मोहतूर वाली बाँधी, खऱ्यान वाली बाँधी,

दंड की बंधी = बडी और गहरी बंधी
रीठ = गीरे हुए मकान की जगह (खुला प्लाट)
गावखारी = गांव से लगी भुमी
डिबर = मध्यम उपज वाली भुमी
कन्हार = भारी उपज वाली भुमी 
बड्डा = रेत का प्रमाण ज्यादा वाली भुमी
मोरंडी = खरिप उपज वाली जमिन

मेर = धुरो जवर की जमीन
खांड = बांधील को पानी बाहेर भगावन की जागा
मोंघाड = तरा को पानी निकलन की जागा
पाट = गल्ली को पानी जान की नाली 
खर्यान, मेळ,बंध,

जंगलों के नाम
परसाको जंगल-परसाळी
मोहुको जंगल- मोहर्यान

खेती के अवजार
हल = नागर, 
कुदाल = कुदरी,
 सब्बल = साबर
घमेला, बोरा, गाड़ा, 
बखर, तुतारी , इरा, पाठा,
सुतली, दाबन, सूपा, सितवा,
ईरोली = लहान इरा.टंग्या  टंगोली,
कुर्हाळ, बखर, खुरपसनी,
चीप, खिल्ली, कोहपर, दतार, धुर,
धुरा पावटन पावळा, कासरो, बेसन
नरा, नरोली, आरी, पात, कुदळ, कुळो, पायली

धान की गहानी से संबंधित शब्द
पुंजनो, भारो, सुरकुळा, दावन, मोळा, 
बेठ, तनीस, गुतो, लोंब, पोटरा, पोचा,
दुधभरेव, एक दांडी, भुळुक, पाझरा,
झिरपन, झिरपे, खांड, मोंगाळ, उढार,
संलगं, मुरमोंगाळ, गाळदान, पायदान, पेंडी
खेत  मे रहते का स्थान = खोपळी 
चर्हाट = लंबी रस्सी, बोरू पासून बनावत होता. गाडो मा तनीस का बेठ, धानका बोजा गाळो मा रचेव परा पडे नही पायजे म्हणून बांधन क काममा आव से. चर्हाट का बोहुत उपयोग सेती.
 ट्रक पर सामान भरेव पर पडे नही पायजे म्हणून बांधन क काममा आव से, सुतरी, तपड.

जानवरों के लिए उपयोग में लाई जाने वाली वस्तुएं

खूड़ी, बेसन, कासरा, दावा, कानदोर
सोपल कीखुळी, बैल खुर - नाल
पोराला बैलक सिंग ला बांधसेत - चौरंग
माढ़ी बईल की जोड़ी, सिंगरया बईल की जोड़ी
डोंगा = जानवरो को पानी पिलाने का लंबा साधन, जो सिमेंट,पत्थर या लकडे का बना होता है

संकलन: सौ छाया सुरेंद्र पारधी.
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नक्षत्र, बरसात संग संग संबंध

1) रोहिणी-रोयनी यन नक्षत्र मा पानी आवन की कमी संभावना रवसे .रोयनी बरसी त बळीयाच.
2)।मृग-मीरुग येन नक्षत्र मा जादा तर खार बोयर होय जात सेत बिच को मीरुग न उतरतो मीरुग मा बरसात अच्छी रहे पायजे.
3) आदा़-अरदळा यन नक्षत्र मा बरसात जोरदार रहे पायजे तरा ,बोळी भरेव लाक सामने येव पानी फसल को काम मा आवसे.
4) पुनर्वसु-यन नक्षत्र मा बरसात थोळी कमी पन बिच बिच मा आये पायजे .
5) पुष्प-फुसपुंडरा यन नक्षत्र मा बरसात चढतो न उतरतो घनी अच्छीच पायजे.
6) आश्लेषा-यन नक्षत्र मा सही मा बरसात की जरुरत रवसे फसल तकरीबन लगायकर होय जासे.
7) मघा-यन नक्षत्र मा बरसात आई त समज लेव फसल रोग राई पासुन मुक्त.
8) पुर्वा-पुर्वा बरसेव न धान पाचरन लगेव कवसेत.
9) उत्तरा-उतरा यन नक्षत्र मा बरसात जादा जोर की नही पायजे नही त कमायव धमायव सपा वाया.
10) हस्त-हत्ती ,चढतो हत्ती मा न उतरतो हत्ती नक्षत्र मा बरसात पाहिजे पन बहुत जोरदार नही.
- प्रस्तुती: श्री अजयकुमार बिसेन
 संकलन: सौ. छाया सुरेंद्र पारधी 
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Sunday, May 24, 2020

पँवार(परमार) राजवंश: विदर्भ/मध्यभारत महाराज लक्ष्मण देव पँवार


महाराज उदयादित्य परमार के पुत्र और महाराजा भोजदेव  के भतीजे, राजा लक्ष्मण देव पँवार सन १०८६ में धार के राजा बने. उनके और उनके भाइयो राजा जगदेव पँवार और राजा नरवर्मन् देव के बीच धार के उत्तराधिकार के लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था. इसी विवाद में समझौते के प्रतिफल के रूप में राजा नरवर्मनदेव को धार की जबकि राजा लक्ष्मण देव को नगरधन/नंदिवर्धन (विदर्भ) की रियासत सौंपी गयी.

शन १०९४ में राजा लक्ष्मण देव पँवार को नगरधन का राजा बनाया गया. उस समय नगरधन, विदर्भ की राजधानी थी जो वर्तमान नागपुर के पास थी. राजा लक्ष्मण देव ने विदर्भ और आसपास के कई क्षेत्रो को जीत लिया था.

राजा लक्ष्मण देव पँवार ने राजा भोज के वैभव और पराकष्ठा को मध्यभारत में पूरी तरह से प्रचारित  कर आर्यन संस्कृति का इन क्षेत्रो में प्रचार किया. पँवार क्षत्रिय राजवंश की विदर्भ में पूरी तरह से उन्होंने नींव रख दी थी. यंही वजह थी की उनके भाई महाराजा जगदेव पँवार भी विदर्भ के चंद्रपुर जिले के गढचांदूर नामक किले से दक्षिणी भारत और मध्यभारत पर राज्य किया.

लक्ष्मण देव ने शन ११२६ तक विदर्भ पर शाशन किया और उनके बाद राजा जगदेव पँवार ने उत्तर भारत के साथ ही इन क्षेत्रो पर शाशन किया.

आज भी महाराजा भोज, राजा लक्ष्मण देव पँवार के वंशज बहुत बड़ी संख्या में महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के इन क्षेत्रो में निवास कर परमार/पँवार वंश की विजय पताका को लहरा रहे है .

- ऋषी बिसेन नागपुर

झाडीपट्टी, परमार(पोवारां)चे राज्य आणि राजा भोज : एक टिपण


>> 'विवेकसिंधु' या आद्य मराठी ग्रंथाची रचनाच मुळी झाडीपट्टीतील 'अंभोरा' या तीर्थक्षेत्री झाली. (अंभोरा येथे लहान-मोठ्या पाच नद्यांचा संगम होतो.) विवेकसिंधु मधील झाडीबोलीचा शब्दवापर वरील संशोधनाला पुष्टी देतात. यावर डाॅ.हरिश्चंद्र बोरकर यांनी एक संशोधनात्मक ग्रंथ, विवेकसिंधु ची संशोधित प्रत, सिद्ध केला असून तो ग्रंथ अक्षय प्रकाशन, पुणे यांनी प्रकाशित केला आहे. या ग्रंथाच्या नागपूर येथील लोकार्पण सोहळ्यात डाॅ.श्री.पंकज चांदे, डाॅ.श्री.म.रा.जोशी, प्रा.श्री.श्री.मा.कुलकर्णी, प्रा.श्री.राम शेवाळकर यांनी त्यांच्या विद्वत्तापूर्ण व संशोधनमूल्ये असलेल्या भाषणांतून बोरकरांच्या या संशोधन कार्याला अधोरेखित केले आहे. 

>> डाॅ.श्री.म.रा.जोशी यांनी त्यांच्या सविस्तर व संशोधनमूल्ये असलेल्या भाषणांतून नमूद केल्याप्रमाणे, "झाडीमंडळाचा अभ्यास करीत असतांना आणि इतिहास पाहत असतांना 'विवेकसिंधु'च्या संदर्भात काही घटनांचा मागोवा घेणे आवश्यक आहे.  ... 'विवेकसिंधु'च्या लेखनाचा काळ शके 1110 हा आहे. याच शके 1110 मध्ये मध्यप्रदेशात *परमारांचे* राज्य होते. देवगिरीचे सिंघल यादव हे शके 1132 नंतर विदर्भात आलेले आहेत. यवतमाळ आणि अचलपूरपर्यंतच्या प्रदेशाला हेमाद्रीने व सिंघल तथा त्यानंतरच्या राजांनी पुढे आपल्या राज्याला जोडलेला आहे. ती घटना शके 1132 नंतरची आहे. म्हणजेच मुकुंदराजांचा 'विवेकसिंधु' त्या घटनेच्या अगोदर 20--22 वर्षांपूर्वी तयार झालेला होता. त्यावेळी मात्र विदर्भावर *परमारांचे* राज्य होते. परमारांच्या राजवटीत जे ग्रंथ निर्माण झाले आहेत त्यांच्यापैकी दोन ग्रंथ अतिशय महत्त्वाचे आहेत. ... एक भोजाने लिहिलेला 'शृंगारप्रकाश' हा ग्रंथ आहे आणि दुसरा धनिकाचा 'दशरुपक' हा ग्रंथ आहे. यांच्यापैकी भोजाने आपल्या 'शृंगारप्रकाश' या ग्रंथात विशिष्ट शब्द किंवा संज्ञा वापरल्या आहेत. ... ग्रंथाच्या शब्दांचा अभ्यास करण्याच्या शास्त्राला 'व्हर्बाटियल इंडेक्स' असे नाव दिले जाते. त्या ग्रंथकाराचे वाङ्मयीन व्यक्तिमत्व त्या ग्रंथातील शब्दाशब्दांत प्रकट होत असते. ग्रंथकाराने वापरलेले शब्द, त्या शब्दांचे वजन, त्याची वेगवेगळी अर्थप्रकृती, त्याची वलये, .... हे सारे पाहिल्यानंतर तो ग्रंथकार कोणत्या ताकतीचा आहे हे आपल्या लक्षात येत असते. मुकुंदराज हे त्यांच्यापैकी एक आहेत. ... अशा ग्रंथकारांना आपण 'बीज ग्रंथकार' या नावाने संबोधत असतो. त्यांची शब्दसंपदा अतिशय विलक्षण अशा स्वरुपाची असते. ... जेव्हा 'शृंगारप्रकाश' हा *भोजाचा ग्रंथ वाचनात आला तेव्हा असे दिसून आले की 'गति' हा एक काव्यरचनेचा प्रकार आहे. तात्काळ केलेली काव्यरचना, रसालंकारांनी युक्त अशी काव्यरचना, आशयाने व आकाराने सुटसुटीत अशी काव्यरचना, अशा रचना प्रकाराला 'गति' हे नाव आहे. डाॅ.राघवन यांनी 'शृंगारप्रकाश' या ग्रंथाचे नव्याने संपादन करून ते प्रकाशित केले आहे. त्यात भोजाची ही सर्व वैशिष्ट्ये अगदी स्पष्टपणे त्यांनी दाखवून दिले आहेत. तर 'गति' हा भोजाने वापरलेला शब्द महाराष्ट्रातील आहे; विशेषतः विदर्भातील आहे. परमारांनी विदर्भावर फार मोठ्या प्रमाणावर राज्य केले होते. याशिवाय *परमारांची अनेक घराणीदेखील विदर्भात वसली होती. त्यांचे अनेक लोक होते. भंडारा (आता गोंदिया-भंडारा) जिल्ह्यातील पोवार नावाची जी आजची जमात आहे ती सारी परमारांचीच शाखा होय. ते तिकडून (मालव्यातून?) आलेले आहेत. त्यांच्या चालीरिती जर तपासल्या तर कितीतरी गोष्टींचा उलगडा होतो. या परमारांच्या कालखंडात निर्माण झालेले मराठी, संस्कृत किंवा हिंदी ग्रंथ जर तपासले तर मराठीच्या अध्ययनाला त्याचा फार मोठा उपयोग होतो. त्यामुळे आपण एका वेगळ्या क्षेत्रामध्ये प्रवेश करतो. ....." हा एवढा दीर्घ उतारा उद्घृत कारण हे की, झाडीबोलीचे अध्ययन व संशोधन हे एकूणच वैदर्भीय इतिहासाभ्यासाच्या दृष्टीनेही किती विविधांगी आणि सर्वसमावेशक आहे, याची प्रचिती यावी. आणि पर्यायाने या क्षेत्रात नवनवीन संशोधक, पुरातत्त्ववेत्ते, विद्वान महानुभावांनी शिरकाव करून या भागात दडलेले असंख्य माणिक, मोती, हिरे शोधून काढावेत, अशी स्वाभाविक अपेक्षा आहे. 

संकलक:- @ॲड.लखनसिंह कटरे 
बोरकन्हार-441902, जि.गोंदिया 

पोवारी बोली अना मी : एक पुनरावलोकन

>> मी फरवरी 2013 मा रिटायर भयेव् अना कोनतोच शहर मा स्थायी नही होयस्यार आपलो जन्मगाव/खेडेगाव बोरकन्हार मा पुनर्स्थायी होन् साठी मार्च 2013 पासना आमरो गावमा रव्हन् ला आयेव् सपरिवार। 

>> च्यालीस-पैंतालीस साल शिक्षण अना नवकरी को कारन लका बाहेर-बाहेर रव्हेव् होतो मुनस्यारी बचपनकी पोवारी बोली ठीक लका बोलता आवत् नोहोती। अटक-अटकस्यारी बोलत होतो.

>> पर आमरो घर् गावमा एक नवकर होतो, वोको नाव देवाजी रहांगडाले। येन् देवाजीला पोवारी को सिवाय दुसरी कोनतीच भास्या बोलता आवतच् नोहोती। वोकोसंग् पोवारी मा बोलता बोलता मी धीरू धीरू पहलेवानीच धाराप्रवाह पोवारी बोलन् लगेव्। 

>> मी झाडीबोली को चळवळ मा 1979-80 पासना कार्यरत सेव्. झाडीबोली साहित्य मंडळ को संस्थापक/आजीव सभासद भी सेव्. तसोच महाराष्ट्र मा बोली जानेवाली सप्पाई बोलीईनको एक अखिल महाराष्ट्र बोली साहित्य महामंडळ को भी मी संस्थापक/आजीव सभासद सेव्. 

>> येको कारणलका मी पोवारी बोली की एक लहानशी पोस्ट 2014 -15 मा फेसबुक परा सहजच टाक देयेव्. 

>> अना मोला आश्चर्य का धक्का-पर-धक्काच बसन् लग्या. 
करीब हजारेक बिन-पोवार अना काही पोवार लोकईनन् येन् पोवारी बोली ला सिरफ लाईकच नही करीन, मोला अनखी पोस्ट टाकन साठी प्रोत्साहीत भी करीन. बड़ी मिठी, लयदार बोली लग् से मूनस्यारी बिन-पोवार लोकईनन् बड़ी तारीफ करीन. मी त् दंग रह्य् गयेव् येव् रिस्पान्स देखस्यानी! 

>> अना असो मंग मी धीरू-धीरू पोवारी बोली चळवळ संग् जुळ गयेव्.  

>> अजको येन् पोवारी बोली को पुनरुत्थान देखस्यानी एक बोली-अभ्यासक मूनस्यारी मोला बोहुत बोहुत खुशी होय् रही से. मोला भी सबन् आपलो संग् जोड़ लेईन येकोसाठी मी सबको आभारी सेव्.

@ॲड.लखनसिंह कटरे  
बोरकन्हार, जि.गोंदिया 
(20.05.2020)

नवतपा

लग रही से नव तपा, होय जावो तैंयार आता ll
आग बरसे सूर्य लक आता,बांध लेवो अपरो माथा ll
घर लक बहेर जाता जाता, ठेय लेवो जवर एक कांदा आता ll
आजी माय को नुकसा अजमावॊ आता,काम लगे तपन की झाव आता ll
बनाय लेवो पेज सब घर आता,
माजा लेवो आंबा को रस संग सेवई कॊ आता ll
लहान लेकरूबार ला सांगो आता, नही खेलेत तपन गागरा मा
आता ll
जब वरी नही जाय नवतपा आता,
घर माच रहो सबजन आता ll
बाट देखो बरसात को दिवस की आता, तैयार ठेवो छत्ता आता ll
कम होय जाये सूर्य देव को प्रकोप आता, रोहनी नक्षत्र मा जाता जाता ll
************************
प्रा. डाँ. हरगोविंद चिखलु टेंभरे
मु.पो. दासगांव ता. जि. गोंदिया
मो.९६७३१७८४२४

Wednesday, May 20, 2020

क्षत्रिय पँवार और खेती किसानी

         पँवार क्षत्रिय हैं और उनका मूल कर्तव्य क्षत्रिय धर्म का पालन करना है. क्षत्रिय धर्म के कर्तव्य शासन के साथ सभी की सुरक्षा और प्रकृति का सरंक्षण भी हैं. पँवार राजवंश के बिखराव के बाद इन क्षत्रियों ने आश्रयदाता राजाओं के साथ रक्षाभागीदारी की और कृषि कार्य आरंभ कर दिए. 

नगरधन/नागपुर के पँवार योद्धाओं को वैनगंगा घाटियों के क्षेत्र दिए गए थे जहां उन्होंने उन्नत कृषि कार्य कर इस क्षेत्र को धान का कटोरा बना दिया और आज भी विश्वप्रसिद्ध किस्म का धान्य उत्पादन कर रहे हैं जिसमे चिन्नोर, जिराशंकर, लुचई आदि प्रसिद्ध हैं. इसके साथ ही उन्होंने रबी की उन्नत खेती की है.

आज का पँवार/पोवार, खेती मेँ पारम्परिक और आधुनिक दोनों ही तरीकों को अपना रहा है. जनसँख्या बढ़ने के साथ खेती की जोत का आकर छोटा होने और मजदूरों के न मिलने से अब पारम्परिक खेती थोड़ी मुश्किल जरूर हुयी है पर अपने पँवार/पोवार भाइयों ने भी आधुनिक कृषि की ओर रुख कर दिया हैं. गहानी के लिए आधुनिक मशीनों का उपयोग कर मजदूरों की समस्या का समाधान खोज लिया हैं. और पँवार भाई कृषि की हर चुनैतियों से निपट रहें हैं.
 
जय पंवार जय किसान
- ऋषी बिसेन नागपुर

Tuesday, May 19, 2020

हमारे महापुरुष पुस्तिका

त्योहारो और नवविवाहितो संबंधी

 
        हिंदु संस्कृति यह उत्सवप्रिय संस्कृति है.इसमें अनेक प्रकार के उत्सव और त्योहार मनाये जाते है.पोवार समाज मी हिंदू धर्म को माननेवाला समाज है.इसलिए वह भी हिंदू धर्म के सभी त्योहार मनाता है.लेकिन अन्य जाति पोवार समाज के त्योहार को मनाने के तरीकों में कुछ फर्क है।और सभी के साथ त्योहार मनाने के बावजूद पोवार समाज अपनी अलग पहचान बनाने में सफल रहा है.
           पोवार समाज द्वारा मनाये जानेवाले मुख्य त्योहार निम्न लिखित है।साथ ही कुछ त्योहारो में नवविवाहित जोडे से संबंधित जो नेंग (दस्तुर) होते हैं वह भी संक्षिप्त में बताने का प्रयास किया गया है।
१)मकर सक्रांत- इसे तिल सक्रांत भी कहते हैं।इस दिन सुबह स्नान करके सूर्य की पूजा की जाती है।तथा तिल और गुड़ का नैवैद्य चढ़ाकर "तिल गुड़ घ्या,गोड बोला" कहते हुए तिल और गुड़ का प्रसाद बाटा जाता है।तिल और मुरमुरे के लड्डू तथा पोहे का चिवडा नास्ते के लिए बनाया जाता है।कई लोग सक्रांत नहाने तीर्थस्थल, नदी या यात्रा स्थल पर भी जाते हैं।
             महिलाओंका यह खास त्योहार बन गया है।संक्रांति से लेकर अगले ८-१० दिन तक वे वान बांटने  और लेने का कार्य करती है।नवविवाहिता भी उसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती है।

२)महाशिवरात्री- महाशिवरात्री यह शिव भगवान के आराधना का त्योहार है।इस दिन मंदिरों में शिवजी की पूजा अर्चना की जाती है।महिलायें इस दिन उपवास भी रखती है।तथा साबुदाना की खीर और उबले या गुड़ में पकाये सकरकंद का नास्ता किया जाता है।अनेक जगह भजन किर्तन का भी आयोजन किया जाता है।शिव आराधना में नवविवाहित जोड़े भी हिस्सा लेते हैं।

३) होली- होली पोवार समाज का एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है।होली के दिन करंजी,पापडी,बडे़,सुकुड़े आदि पकवान बनाये जाते हैं।खासकर करंजी इस त्योहार का मुख्य पकवान है।
             होली के दिन रात को होली की पूजा करके उसे जलाया जाता है।पूजा में घरमे बनाये गये पकवान, गाठीमाला तथा नारीयल होली को चढाये जाते हैं।
             नवविवाहित लड़की तथा दामाद को इस त्योहार में घर बुलाया जाता है ,उनकी मेहमानी की जाती है तथा नये कपड़े भी लिये जाते हैं।
             होली का दुसरा दिन धुलीवंदन एक दूसरे को रंग गुलाल लगाके मनाया जाता है।बच्चे इस दिन खूब आनंद मनाते हैं।पिचकारी भर भरकर एक दूसरे पर रंग डालते हैं।

४)हनुमान जयंती- हनुमान जयंती के दिन शक्ती के प्रतिक हनुमानजी की पुजा की जाती है।इस दिन महिलायें और बच्चे मोहल्ले में जोगवा(भिक्षा)मांगकर लाते हैं। उसको पिसकर रोटीयां बनाई जाती है तथा रोटीयोंमें गुड मिलाया जाता है और उसे खाया जाता है।इसे रोट-मल्लेदा कहते हैं।लेकिन यह प्रथा धीरे-धीरे बंद हो रही है।

५)अक्षय तृतिया(तीज)- तीज यह पोवार समाज का महत्त्वपूर्ण त्योहार है।इस दिन पकवानों में सेवई, आम का पन्हा, सुवारी,पानबडे की सब्जी,कढी आदि प्रमुख होते हैं।इस दिन पूर्वजो को नैवैदय(बिरानी) दिया जाता है तथा कलसा भरा जाता है।
            पहला कलसा हो तो रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों को भी निमंत्रण दिया जाता है।

६)अखाडी(गुरू पौर्णिमा)- यह भी पोवार समाज को खास त्योहार है।पहले बचपन में विवाह होने के कारण गवना साथ में नहीं होता था।ऐसे में नई बहू को अखाडी के लिए लाने का दस्तूर था।साल भर भले ही बहू मायके में रहती थी लेकिन अखाडी के पहले उसे अखाडी के दस्तूर के लिए ससुराल में लाया जाता था।शायद प-हा लगाने में मदद करने के लिये लाया जाता हो।
            अखाडी के पकवानों में कुसुम प्रमुख होता था।इसके अलावा बडे़,सुवारी आदि पकवान बनाते जाते थे।अखाडी के दिन शाम को पोवार समाज की महिलायें आरती सजाकर तथा उसमें पकवान रखकर मातामाय के पास पूजा करने जाती थी। नई बहूओं कोें खासकर लेजाया जाता था शायद अन्य महिलाओं से परिचय कराने के लिए।साथ में ले ग्रे पकवान आयकरी अर्थात नाई,धोबी,कोतवाल को दिये
 जाते थे।

७) जीवती- जीवती के दिन सुवारी और पानबडे की सब्जी बनाई जाती है।तथा पुरखों को नैवैद्य (कागुर) दिया जाता है।इस दिन खेती के काम बंद रखे जाते हैं तथा बैलो के कांधों को हल्दी लगाई जाती है।
            इस दिन सुबह सुबह ढिमर आकर जाल सिर पर रखता है और उसे धान दिये जाते हैं।लोहार दरवाजे को खिला ठोकता है तथा सोनार दरवाजे पर जीवती लगाता है।लोहार और सोनार को शिधा( चावल,दाल,भट्टे,आलू,मिर्ची,हल्दी,नमक) दिया जाता था।

८) राखी(रक्षाबंधन)- रक्षाबंधन मूल रूप से राजपूत और ब्राम्हणो तथा लोधीयों का त्योहार होना चाहिये।क्योंकि वे इसे धूमधाम से मनाते हैं।बुझली बोते हैं और उसे विसर्जन करते हैं।
           पोवार समाज का रक्षाबंधन से संबंध बहन द्वारा भाई को राखी बांधने तक सिमित लगता है।लेकिन अब यह त्योहार भी पकवान(पाहुणचार) बनाकर मनाना सुरू हो गया है।
 
९)कान्हूबा- भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव लगभग सभी पोवारो के यहां मनाया जाता है।कृष्ण की मुर्ति की स्थापना करके उसकी रात में पुजा की जाती है।तथा  दुसरे दिन शाम को सामुहिक रूप से उसका विसर्जन किया जाता है।
           कान्हूबा के लिए लायी चने की प्रसाद बनाई जाती है।तथा पानबडा,तेलबडा,सुवारी का उसका पाहुणचार किया जाता है।

१०)पोला- पोवार समाज कृषीप्रधान है तथा पोला उसको खेती में मदत करनेवाले बैलो का त्योहार है इसलिए उसे वे धुमधाम से मनाते हैं।इस दिन बैलों को धोकर उनकी पूजा की जाती है।इस दिन उनसे कोई काम नहीं लिया जाता।शाम को उनको गांव के आखरपर या मैदान में तोरण में ले जाया जाता है।तथा गांव के दो चार घरों में पकवान खाने घुमाया जाता है तथा घरमालक से बोझारा लिया जाता है।
           पोले के दिन आयकरी और छोटे बच्चों को भी बोझारा दिया जाता है।पोले के एक दिन पहले मोहबईल और एक दिन बाद मोरबोद का त्योहार मनाया जाता है।
              पोले के दिन पकवानो में करंजी,पापडी प्रमुख होते हैं।इनके अलावा बड़े और कढी भी बनाई जाती है।

१०)काजलतीज- यह खासकर महिलाओं का त्योहार है।इस दिन महिलायें भगवान शंकर का उपवास करती है।यह उपवास सबसे कठिन माना जाता है।क्योंकि यह एक दिन एक रात निराहार करके किया जाता है।रात में भगवान शंकर की पूजा और आराधना की जाती है।
            कुमारी लड़कियां अच्छे पति के प्राप्ति के लिए यह व्रत करती है साथ में विवाहित महिलाएं भी करती है।इसे हरतालिका व्रत भी कहते हैं।

११)दसरा- दसरा पोवार समाज का महत्त्वपूर्ण त्योहार है।राम की रावण पर विजय तथा दुर्गा की महिषासुर पर विजय के यादगार के रूप में यह मनाया जाता है।
             इस दिन पोवार समाज के यहां मयरी और कोचई के पत्तों की बड़ी बनाई जाती है।खाने के पहले शाम को मयरी और बड़ी की पूजा की जाती है साथ ही खेती के अवतारों और घरेलू अवतारों की पूजा की जाती है।
इस दिन शमी(आपटा)के पत्ते सोना समझकर एक दूसरे को दिये जाते हैं।

१२)दिवाली- दिवाली यह हिंदुओंका उसी प्रकार पोवार समाज का भी सबसे बड़ा त्योहार है।यह त्योहार पांच दिनों तक मनाया जाता है।धनत्रयोदशी,नरक चतुर्दशी,लक्ष्मीपूजन,बलीप्रतिपदा, भाईदूज।
             धनत्रयोदशी भगवान धनवंतरी के जयंती के रूप में मनाया जाता है।नरक चतुर्दशी भगवान कृष्ण के नरकासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है।
            लक्ष्मीपूजन यह दिवाली का सबसे महत्त्वपूर्ण दिन है।इस दिन हर घर में धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है।घर को रांगोली डालकर  सजाया जाता है।पूरे घर में दिये जलाकर रोशनाई की जाती है।और खूब फटाके फोड़े जाते हैं।
          इस दिन बनाये जानेवाले पकवानों में खीर प्रमुख होती है।इसके अलावा मीठे पकवान जैसे-बूंदी,जलेबी,बर्फी आदि बनाते जाते हैं।
           दिवाली का चौथा दिन बलीप्रतिपदा है।इस दिन बलीराजा तथा गोवर्धन पूजा की जाती है।गांव का पूरा गोधन आखरपर लाकर गाय खेलाई जाती है।गावो में मंडई की सुरवात इसी दिन से होती है।
            पोवार समाज में इस दिन सुरण की सब्जी और लसूण के पत्ते के चिल्हे(अकस्या) बनाते जाते हैं।
            दिवाली त्योहार का आखरी दिन  भाईदूज है।इस दिन बहन भाई की आरती उतारती है।तथा उसके लंबी उम्र की कामना करती है भाई भी उसकी रक्षा का आश्वासन देता है।

१३)पांड-- पोवारी का एक और त्योहार है जिसे पांड कहते हैं। यह मार्गशिर्ष पौर्णिमा को मनाया जाता है।
             इस  त्योहार का मुख्य पकवान गुंजा(गुंजे)होता है।नयी फसल निकलने के बाद का यह पहला त्योहार होता है।नये चावल का आटा,गुड और तिल्ली से बना यह व्यंजन लाजवाब होता है।
           इस त्योहार तक धान कटाई पूरी हो जाती है।बहूयें इस त्योहार के बाद ससुराल से मायके जाती है।

            इस प्रकार पोवार समाज में मुख्यरूप से उपरोक्त त्योहार मनाते जाते हैं।इनके अलावा रामनवमी,गणेश उत्सव,नवरात्री,तुलसी विवाह आदि त्योहार भी मनाये जाते हैं।

            लेखक - चिरंजीव बिसेन
                        गोंदिया(टेमनी)
                      दि.१४/०५/२०२०

नवविवाहित जोडी का पोवारी दस्तूर

आंधी को राजमा आमरो पोवार मा बिहया लहानपण होत होता. नवरदेव नवरी की उमर लहान रवत होती मून काही दस्तुर करत होता. हर दस्तूर साती सुसरो बहुला खास खासर लका आननला  जात होतो.
 
वय दस्तूर असा उपरोक्त प्रकार

नवरचुडा :-  नवीन नवरीला कचार बुलायकर नवीन बगडी हातभर भर देनको दस्तूर.आठ पंधरा दिवस को बाद मा नवरी को अजी आननला आवत होतो.ना नवरी मायघर जात होती

गौर :- मायघर येव दस्तूर होत होतो.येला गौर उमजवनो कवत होता.

शिवरात्री मा "जोड़वा को नेंग साती नव विवाहिताला आनेव जात होतो.

अखाडी :-  येन दस्तूर को बेरा नवीन नवरीला सुसरो घर अानेव जात होतो. मातामाय जवर सुवारी (पूरी) नवीन नवरी बाटत होती.

दसवी :-  दिवारी मा दसवीं को नेंंग होत होतो.घर भर का सब बहुका पैसा लका पाय लगत.

चौमास :- उन्हारो मा बहू चौमास की आनलला जात होता. नवीन बहू आपलो संग संदूक , खाजों (चिवड़ा,लाडू, अनरसा,सेव) आनत होती.नवीन बहू का सब पैसा लक पाय लगत. बहू मायघरल आनेव ख़ाजो सबला बाटत होती. हात लका बनाया बिजना,धागा का बनाया झोरा देयकर सासू सुसरो अना अन्य मानवाईक ला बाटत होती.सब नवं जीवन साती आशिर्वाद 
देत होता.

लेखिका: सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

Monday, May 18, 2020

प्रार्थना

मातृ-पितृ

प्रार्थना मोरी मातृ चरणोमा
नव महीना ठेइस उदरमा।
यातना कठिन झेलिस
फुकिस प्राण मोरो शरीरमा।।

दुनिया देखाइस मोला
मोती संस्कार का देइस।।
माया को पदर झाककर
मोठो मोला करीस।।

प्रार्थना मोरी पितृ चरणोमा
धिर खंबीर ओकों बाणा।
वरर्या लका कडक नारेन
अंदर पीरम को खजाना।।

दुनिया मा जगन साती
शिक्षा पिता की कड़क।
मारेत भी वय कभी मोला
पाठपर मोरो उमटत नहीं बर।।

प्रार्थना मोरी गुरु चरनोमा
ज्ञान की बाराखड़ीको दाता।
हरिदुन येकी महिमा अपार
नमाओ गुरु चरणोंमा माथा।।

सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

Sunday, May 17, 2020

नारी तू नारायनी (varsha patle rahangdale)


नारी तू नारायणी झेप ले आकाशमा
तडजोड करू नोको आपलो सपनाको
तू दुर्गा,तू काली,तूअंबिका,अना सरस्वती
तुनच लेईस का ठेका ,पुरो त्याग करनको।।

समाज की  परंपरा अना कलूषित रूढींको
तोलाच कायला से उनको  बंधनकारक घेरा
कायला तूच उचलजो संसार को भारो
समय भयेव आता देखाव स्त्रीशक्ती को तोरा।।

लेय ले तू आता गरूड की झेप संसारमा
दुय हात करके पुरूष को संग संगमा
स्पष्टीकरण देनकी काही गरज नाहाय तोला
भले ही रव्ह पुरुषप्रधान संस्कृती येन देशमा।।

तु कमजोर अबला नाहास,कोमल सबला सेस
तू जगकी माता,माऊली अना जगतजननी 
घबरावू नोको आता यन समाजला  कभी
संकट को सामना करनो मा तू आता अग्रणी।।

जसी भाषा मा से पोवारी भाषा महान
नारी मी तोरा केतरा करू मी गुणगान
कभी बहिण, कभी बायको,कभी बेटी होयके
समाज मा बढावसेस नारी तू सबकी शान
समाज मा उची करसेस तू सबकी मान।।

✍ वर्षा पटले रहांगडाले

नारी तू नारायनी (chhaya surendra pardhi)


नारी तू नारायणी, विश्व जन्मदायनी माय।
देवी रुप सकल नारी,नारायणी रूप आय।।

गर्भ मा ज्योति तू नव महीना जगावसेस।
मरणककर सहस्यानी नवजीवन तू देसेस।।

सुंदर तू, नाजुक तू ओजस्वीता की मूर्ति।
कुटुंब आधार तू ,त्याग की अमर कीर्ति।।

बहिन तू ,माय तू, रिस्ता को तू आधार ।
येन रिश्ता बिना आदमी अधुरो लाचार।।

समय आये पर धारण कर चंडी अवतार।
नहीं घबराय नारायणी करसे दस पर वार।।

आदि शक्ति माय, शिवकी प्रिया पारबती ।
दुर्गा रूप शक्ति, सरस्वती ग्यान बरसावती।।

महिमा तोरी वेद पुराण मा सकल वर्णी।
अनुसया तू त्रिदेवला दुग्धपान करावती।।

सावित्री तू सत्यवान की, सिया तू रामकी ।
जानकी बन उद्धारीस दुही कुलको मानकी।।

माय गढ़कालिका को रुपमा तू कल्याणी।
आशीर्वाद तोरो माय पोवार की पोवारी ।।

दुनिया येरिच नहीं कव तोला नारी नारायणी ।
हर सफल आदमी को मंग रवसे एक नारी।।

✍️सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

नारी तू नारायनी (D. P. Rahangdale)


निंदा  नोको  करु नारीकी नारी रतनकी खान ।
नारी पासुनच पैदा भया राम लखन हनूमान ।।
नारी ममताकी मुरत से नारी माया को आगर ।
काली,दुरगा,पारबती से नारी ममताको सागर ।।
नारीच से माय,टूरी,बहीन से घरकी रानी  ।
घरमा ओको सनमान करो वाच आय नारायणी ।।

डी-पी- राहांगडाले
गोंदिया
९०२१८९६५४०

नारी तू नारायनी (chiranjiv bisen)


जग निर्माती,सब सुख निर्माती,
नारी तू परम प्रतापी बलीदानी।
हर क्षेत्र मा हुनर देखायकर,
सामने सेस, नारी तू नारायणी।

राम कृष्ण ला जनम देयकर
उनको लालन पालन करीस।
वीर शिवाजी,राणा प्रतापला
तूनच् बलवान करीस।

भर्तृहरि, विक्रमादित्य,राजा भोज
जगदेव सब तोरीच संतान।
गांधी महात्मा, लालबहादुर सब
तोरच् कारण बनाया महान।

जीवन कर हर क्षेत्र मा
तू सामने अग्रेसर सेस।
घर का सारा काम काज बी
तोरच् माथो पर रव्हसेत।

तूच अबला, तूच सबला,
तूच जगत कल्याणी सेस।
तूच दुर्गा, तूच काली
तूच आदिशक्ति भवानी सेस।

घर ला स्वर्ग बनावनो,
तोर करम का शामिल से।
टुरू पोटू साती तूच
नैय्या अना साहिल सेस।

तूच अहिल्या,तूच सावित्री
तूच झांसी की रानी सेस।
तोर् बीना पुरूष से अधूरो
तू वोकी अर्धांगिनी सेस।

             रचना- चिरंजीव बिसेन
                             गोंदिया.

नारी तू नारायनी (Y. C. Chaudhari)

कुलवंत नारी

नर-नारी हे जीवनरूपी रथका चाक।
समकार्यलं योव रथ चलसे बिनधाक।।

नारी पुजनिय जगमा सेती देविको रुप।।
लक्ष्मी काली सरस्वती दुर्गा भयी कार्य अनुरूप।।

सब कार्य मा कार्य दक्ष सब नारी सेती।
माय मावशी काकी फुपा सब हे नारीच आती।।

घर आवसे लक्ष्मी रूपमा घरला करसे स्वर्ग।।
आपलं प्रेम भावलं देखावसे सुखी प्रगत मार्ग।

भारतमा सीता सावित्री देवी रनमा झासीकी रानी।
हात मा  होती तलवार असी सुरविरांगनी।।

नारी तू नारायनी अशी भयी सेव भारतमा।
चरीत्र कुलवंत नारी तब विकास से जीवनमा।।

वाय सी चौधरी
गोंदिया

नारी तू नारायनी (hirdilal thakre)


हमेशा कसेती बेटी बचाओ बेटी पढाओ, 
येव कायला लगावसेव भाऊ तुम्ही नारा! !
एक बेटीला बेआब्रु करके साला अज, 
बाइज्जत बरी होयजासेत सब हत्यारा!!

सत्य मर्यादा संस्कृति को से देश आमरो ,
याहा महिला को काहे होयरहीसे अपमान !
याद करो जी  झाँसी की राणी लक्षमीबाईला 
भाऊ भयगयी आपलो भारत देशपर कुर्बान!!

बेटी चाहे हिन्दू की होय या होय मुस्लिम की, 
चाहे होय कोणी ख्रीष्चण या होय ईसाई!! 
सबको शरीर मा खुन धावसे मानवता को, 
साधु महात्मा सन्याशी सब देसेती गव्हाई!!

भाऊ एक बेटी को दुख देखकर रुहु कापसे, 
सदमा मा पडगयी से भारतदेश की जनता !!
भासी पर लटकायदेव वोन बल्तकारी ला, 
खुशी लक गद गद होयजाहे जी भारतमाता!!

भारत देश की नारी तुम्ही बनो नारायणी ,
सबजन न धरो आपलो हातमा तलवार !!
बिच चौराहा पर काटो सीर पापी दरिदां को, 
जे करसेती आमरो महिला पर अत्याचार !!

                    !!! कवी  !!!
              दास हिरदीलाल ठाकरे 
         भ्रमणध्वनी 7020144588
       मु, भजियापार , पो, चिरचाळबांध 
    ता आमगाँव जिल्हा गोदिया माहाराषट्र 

कृष्ण अना गोपी

मी बी राधा बन जाऊ बंसी बजय्या, रास रचय्या गोकुलको कन्हैया लाडको नटखट नंदलाल देखो माखनचोर नाव से यको!!१!! मधुर तोरो बंसीकी तान भू...