Wednesday, April 29, 2020

पंवारी


बहुत दिन बादमा आयेव उनको फोन
मी क़येव उनला तुमि बोल सेव कोन

नाव आयेक कर दूर भयेव भ्रम
विदेशमा से मुन मोला भूल गयेव

विदेश वालो की छोडो भाऊ बात
देश वालो न भी सोडीन मोरो साथ

पहले त दरारा होतो मोरो खास
आब  खेडामा से थोडो मोरो नाव

बची सेव थोडी सी मी आता
बोली जासेव खेडा मा  खास

दुसरी तिसरी कोणी नोहोव मी
पोवरी भाषा तुमरी मी आव 

जगाओ मोला बोलो घरघरमा 
तबच फुलुन फलुन समाजमा

तबच बढ़े मोरो मान सम्मान
करो नवो नवों साहित्य निर्माण

तुमि पोवार मोरा पुत्र खास
मोरो मान बढ़े असो करो प्रयास

- सौ छाया सुरेंद्र पारधी 

Monday, April 27, 2020

तिज


बैशाख  को शुक्ल पक्ष मा,
आपरो पितृ की याद मा ll

करसा भरसेती तीज मा,
उपवास, करो दान करो ll

 पूजा करो माता लक्ष्मी की,
आराधना करो विष्णु की ll

पोवारी त्यौहार की शान,
करसा भरण को पुण्य महान ll

पितृ दोष ला मिटावन अना, माय बाप ला वंदन तीज को से बंधन ll

जिम्मेदारी को भार याद आवसे हर बार, वोला कसेती तीज को त्यौहार ll

सपरी सारावो,वोसरी सरावों,
चवरी ला आता सजावो ll

आंबा आनो परसा का पान आनो,
करसा संग  लहान करई लेवो ll

पनो बनावो सेवई बनावो,
पानबड़ा की भाजी बनावो ll

कगुर डाको, बिरानी डाको,
अपर्ण करो बिनती तुमरी ll

पनीलक भरेव से गागर,
प्रतीक आय परिवार को सागर ll

पूर्वजो की याद मा, 
अक्षय रहे बाद मा  ll

पोवारी की जित आय,  
संस्कृति आमरी तीज आय ll

पूर्वजों को शांन मा, 
करसा भरो मान मा ll

अक्षय तृतीया को जग मा मान से
क्षत्रिय पोवार आमरी शान से ll

प्रा. डॉ. हरगोविंद चिखलु टेंभरे
मु.पो.दासगांव ता. जि. गोंदिया
मो.९६७३१७८४२४ 🙏🙏

तिज (अक्षय तृतिया)


वैशाख शुक्ल तृतिया ला कसेत अक्षय तृतिया,
साडे तीन मुहुर्त पैकी एक आय अक्षय तृतिया.
पोवार समाज को त्योहार आय अक्षय तृतिया,
पूर्वज की पूजा को त्योहार आय अक्षय तृतिया.

तीज क् दिवस पूर्वज इनला देई जासे बिरानी,
सेवई,सुवारी,बडा,आंबा क् पन्हा की मेहमानी.
तीज कर दिन बहुतेक घर क-यो जासे मोहतुर,
खरीप फसल की सुरुवात की तैयारी मोहतुर.

तीज कर दिन भ-यो जासे नवो करसा,
गरीब घर को फ्रीजच् आय येव करसा.
तीज क् बाद मा बढसे गर्मी वोकी व्यवस्था करसा,
पशु पक्षी ला बी पानी देहे पाहिजे वोकी याद करसा.

भगवान परशुराम की जयंती आय तीज,
शुभ कार्य क् सुरुवात की तिथी आय तीज.
आंबा क् रस रोटी की यादगार आय तीज,
बाहुला-बाहुली को बिह्या की तिथी आय तीज.

               रचना- चिरंजीव बिसेन
                               गोंदिया.
                       दि.२६/४/२०२०

तिज


आयेव तीज को यव सण
बेटी आयी मायघर
ओटी भरो माया लका
डोरा आया पाणी भर।।

सकाळी सडा सारवन
कर बीऱ्यानी की तैयारी
पूर्वज आमरा पायेत
नही करता कोणती वारी।।

लाल रंग को करसा
भरो थंडोगार पाणी
तीन आंबा अंदर टाको
घरकी राजा अना राणी।।

कच्चो आंबा को पन्हो गोड
संगमा पसाई सेवयी
माया पीरीत लका खासे
नंणद संगमा भोवजाई।।

पानबडा की भाजी संगमा 
गोल गोल सुवारी सुंदर
नीवद देखावो पूर्वजला
अना ठेवो उनको आदर।।

भाशा भाशी अना नणंदला
लेवो कपडालत्ता नवा
आईबापशिवाय बेटी ला
देजो बंधु ओला प्रेमकी छाया।।

✍वर्षा पटले रहांगडाले
बिरसी आमगांव

तिज

वैशाख को भरेव तपन मा आवसे तीज।
पूर्वजों को मानपान को सन आय तीज।।

सकार पासुन रवसे गड़बड़ घाईं सबला।
किसान मंग बखर धरकर जासे खेतमा।।

अजपासुन होसे खेतिको काम की मोहतूर।
बखर फिरावसेती धान टाकसेत पांच मुठ।।

कोयार पक्षी भी अज़ आवसे सुसरो घरं।
सांगसेत बुढा अखाढीला जासे वा माहेरं।।

सब पोवार घरं भरसेत तिजला लाल करसा।
चवरी जवर शेण को बेठ पर ठेवसेत करसा।।

कासो को भानीमा परसा को पान की पत्राली।।
सुवारी ,सेवई,पनो, बड़ा की पुर्वजला बिरानि।।

बड़ो भक्ति लका पांच आंबाको करसामा घड़।
कागुर मंग टाकेव जासे जोड़ीलं बरण को ऊपर।।

पूजापाठ होएपरा लेसेत मोठो को आशीर्वाद।
सब मिलकर लेसेत पनों, सेवई को आस्वाद।।

असो अामरो पोवार को तीज को त्योहार।
नवीन पीढ़ीला भी देबिन चांगला संस्कार।।

✍️- सौ छाया सुरेंद्र पारधी

तिज


सेत माय अजि पाच प्रान की ठेवा 
अक्षय तृतीया को दिवस लेजो से सेवा. 
कलयुगमा लेयात जनम कष्टघाम मा रयात
जगमा तारन साती टुराला कस्तुरी बनायात. 
बिह्या भयेंव वर नाता गोता तोड देयेव 
जब जगमा होता तब उपासी ठेयदेयेव. 
जगला सोड्यात फुल मुरजाय गयेव 
चवरीको रुपमा देव घरमा  बसाय देयेव. 
फुल को बाग मा आवसे फुल की याद 
तुमी होत त घर संसार की चिंता नही. 
मानव जीवन को खेल अजब से येव 
रंगीबी रंग रिस्ताला तीजमा बुलाव से येव. 
हिरवो हिरवो दोना पतरारी पूजा की पात 
तिजमा घडाला करसा मानकर पूर्वज पूजा करसेत. 
आंबरस सेवइ बडाकी भाजी मोठो मान तिजमा 
साजरो साजरो विविध पक्वान कर सेत तिजमा. 
अजब कलाकार सेत संकट मा धाव सेत 
मनमा जसो भाव तसो भेटे तिजमा आसीर्वाद. 
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छगनलाल राहांगडाले,, खापरखेडा 
9158552860,, दि 26/4/2020
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तिज (अक्षय तृतिया)


तिसरो दिवस तिथी को
वैशाख को महिना
करसाक् पुजा साती
बढीया बनायेव दोना

या संस्कृती निराली
यला नोको भुलोना
पूर्वजक् याद साती
से तीज को बहाना

 पूर्वज देयेत तुमला
आशीर्वादको खजाना 
श्रध्दा सुमन से प्याराे
नही लग् उनला सोना

तुमी करो बडा सुवारी
बढीया बनावो खाना
तुमर् सातीच भोजन
से तीज को बहाना

शुभ मुहूर्त कसेत येला
शुभ घडी को खजाना
स्वर्गीय क् स्मरणला
से  तीज को बहाना

यन् संस्कृती ला बढावो
चलो येको प्रसार करोना
सण त्यौहार मा लपी से
पुरो संस्कार को खजाना
****
डॉ. शेखराम परसरामजी येळेकर नागपूर २६/४/२०२०

तिज


पलसकि पतराई
पानको दोनो
माटिको घडो
अना् पना पिनो//

पुर्वजकि याद
वंसजयको कर्तव्य
करो पुजा बिस्नुकि
भेटे आशिष दिव्य//

पवारी थाटलका
साजरी तिज
पुर्वज देयेत आशिर्वाद
बुद्धी को बिज//

सतयुग त्रेतायुग 
सुरुवात को येव दिन
गंगा आयि धरतीपरा
मोठोच शुभदिन//

कालगनना से आमरी
सबदुन सटिक
संस्कृती जपो आपली
देबि जगला सिक//

परंपरा क् मंग 
रवसे इतिहास
अंधःश्रद्धा नोय
नोको करो उपहास//

साधिच करो तिज
कोरोनाको माउलसे
पर मनावो हर त्यौहार
वकोमाच पोवार कि स्यान से//

पालिकचंद बिसने

तिज


हंगाम की याद तिज करदेसे।
कास्तकार  कामला लगजासे।।

नवं सालकी पेरनी करसे।
खेतिमा खात  डालील फेकसे।।

मोसमी वारा पाणी आणसेती।
समुद्रक वाफका ढग बनसेती।।

बरसात की पशु-पक्षी बाट देखसेती।
रवहन साठी आपलो बसेरा करसेती।।

करसा भरो जपो आपली संक्रती।
सेवईना रस रोटि पीवो ठंडो पाणी।।

निसर्ग से देव समजो या बात।
टाईमपर  पाणी या पेरनीकी घात।।

वाय सी चौधरी
गोंदिया

Saturday, April 25, 2020

काव्य प्रकार: हायकू


रामनवमी
आज्ञापालक जन्म
सुखदायक

राम को नाम
समंदर गहरो
मोक्ष को रस्ता

सत्य  पालन
रामजी को चरित्र
सुखदायक

दुर्गुण  वध
जीवन को कल्याण
नहीं दूसरो

मन को भाव
दशानन अंदर
करे बर्बाद

✍️सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

लॉकडाऊन को असर


कोरोनामुळ् लॉकडाऊन भय गईसे देशभर,
बंद से जानो आवनो सब सेती आपल् घर्।
कमावनला जे गया होता रह्य गया लटकस्यार,
घरवाला करसेत चिंता आपल् घर बसस्यार्।

रेल,बस,हवाई जहाज सब सेती आब् बंद,
घरमाच् रव्हनो पडसे गयेव घुमन फिरन को आनंद।
जरूरत पड़ी त् भेव भेव लच् पडसे जानो,
पुलीसवाला नहीं भेट्या तरी भेट सकसे कोरोनो।

मिलनो-जुलनो, पाहुणापई भी भय गया बंद,
आपुन बी घरमाच् सेज कोनीघर जानको से प्रतिबंध।
खेती बाड़ी क् कामसाती नहीं भेटत मंजूर,
सब काम आपल् लाच करनो पडसे हुजूर।

सब दून जादा बिह्या वालों इनपर पडीसे असर,
बिह्या की तारीख काढेव क् बादमा नहीं करत अमल।
बिह्या कब होये येको नाहाय अता पता,
लाॅकडाऊन खुलन की देख रह्या सेत रस्ता।

जीनका बिह्या जम्या नाहात उनन कर देईन कैंसल,
सामने साल् करबीन भाऊ नाहाय काही टेंशन।
टुरा- टुरी परेशान अनखी एक साल इंतजार,
का करेती कोरोना न् सबला कर देईस लाचार।

               रचना- चिरंजीव बिसेन
                              गोंदिया
                       दि.२५/४/२०

मराठा पंवार


पँवार(परमार) वंश की एक शाखा राजस्थान से जाकर पश्चिमी महाराष्ट्र में बस गयी थी और ये बाद में शिवाजी की सेना में शामिल हो गए थे. ये लोग आज मराठा पँवार के नाम से जाने जाते हैं. कुछ लेखों में यह भी पता चलता हैं की कुछ पँवार बाद में मालवा से भी इन क्षेत्रों में विस्थापित हुए थे. 

मराठों के साथ इन पंवारों ने अनेक युद्ध लड़े और इन्हें धार और देवास रियासते उन्हें दी गयी थी. ये लोग 96 कुलीन क्षत्रिय समूह मराठा में शामिल हो गए थे. बाद में इनके और अन्य पँवार समूहों से कोई सांस्कृतिक सम्बन्ध नहीं रहे. 

विदर्भ में पँवारो ने मराठों के साथ कई युद्धों में सहयोग किया था जिसमे निश्चित ही कई पश्चिमी महाराष्ट्र पँवार सरदार/सैनिक शामिल रहे होंगे और इस पर शोध चल रहा है कि विदर्भ के पँवार कुल में कौनसे कुर/समूह मराठा सेना में शामिल पूर्वी मराठा पँवार/पवार हो सकते हैं. सैकड़ो वर्ष पूर्व का इतिहास बिखरा हुआ हैं और कई लोग इस पर शोध कर रहे हैं.

अलग अलग क्षेत्रों में निवासरत अग्निवंशीय पंवारों में आज वैवाहिक सम्बन्ध नहीं होते  परन्तु वे अनेक सामाजिक मंचो/ कार्यकर्मों में मिलते और वैचारिक आदान प्रदान करके हैं.

- ऋषि बिसेन, नागपुर

Thursday, April 23, 2020

भानी


                                                                           यादसे मोला सायनी मायकी भानी।
भानी सिवाय जेवत नोहती वा कबी।

भानी की याद आब बी से ताजी।
एकच भानी मा जेवत होता आमी।।

अजी बी आलनी परा मंडावत भानी।
निगरा परा जनावत अग्नि पहलो मानी।।

बीह्यामा बेटी को पायधोवन कासो की भानी।
पूर्वाजला बिरणी टाकणं कासोकी बटकी।।

कासो पितर की भानी अना टमान भारी।
भरता की गिलास ना रवत होती अत्तरदानी।।

आता सब कसार को दुकान की भई शान।
मोड़ मा गई भानी अना मोठा मोठा गंगार।।
 
- सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

Wednesday, April 22, 2020

गंगार

पोवार को गंगार मा
साक्षात गंगा समाई से
जेन हात न बनाइस गंगार
वोको हातकी भी वाहवाही से

माती को बनेव गंगार 
शीतलता वोको गुन से
उन्हारो मा मस्त ठंडो पानी
हातपाय धोवनोमा सुख से

बड़ो काम को येव गंगार
धोवो ऐको पाणी लक आंग
आंदी की बाई पानिमा देखकर
भरत होती लाल कुकु की भांग 

पोवार को बिह्यामा मान गंगारला 
मथनी, गंगार रवसे कुंभार को बानमा
नवरी सार होसे,ना बहु घर आवसे
नांदळ को दिवो ठंडो करसेती गंगारमा

आता ईट सीमेंट को जंगलमा 
गंगार भी कही  दवड़ गयेव
पक्षी को पानी पिवन को साधन
आता भूतकाल किं याद भयेव

✍️-सौ. छाया सुरेंद्र पारधी.

व्यसनमुक्ती

कसो सांगु तोला? शरम् आवसे मोला
पोटमा से गोला, तोरो मोरो            ।। ध्रु।।

नोको रोऊ असी? का कहेत सकी
जिनगी से कसी, मोरी सोना            ।।१।।

रोज पिवसेव् दारू?आता कसी करू
रोज काहे मरू,  तुमरो साती             ।।२।।

दारू की लत्, करसे गत्
गयेव आता थक, मोरी सोना            ।।३।।

आता फुट्या करम् ,कायको धरम्
दूर भयेव भरम् , मनमा को              ।।४।।

आऊ तोरो संग् , व्यसनमुक्ती डंग्
सुटे दारू मंग्, मोरी सोना               ।।५।।

मन् भयेव् खुश,  बित जायेत दिस्
नई रवनकी टिस् , भविष्य की।         ।।६।।

✍️- सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

Tuesday, April 21, 2020

तपन


आयोव उनारो उनारो
सोळा काड्यायकि तपन
सावलीमा रवनसाठी
धडपड्सेती सारा जन//

गाय भस बैल शेरी
मोउखाल्या घेसेत धाव
लगी तपन आंगला
मुहून बलकिबि ,वंज्यान सोव्//

मोरो कवलको घर
उभि तपन झेलसे
नयि लग् ए. सी.वंज्यान
पंखोलक काम होसे//

आब् लगावो वा अंबराई
गार सावली गावला देये
आंबा मोऊ कट्या खेतका
तपन कायेनयि पऱ्यान लेये!//

नोको बिवो तपनला
तपन तपावसे तनला
वंज्यान मरसे कोरोना
तपन मारसे जंतुयला//

करो पापळ,सेवया,कुरोळी
सुकावो चना गऊ दार
तपनलका बनाओ ऊर्जा
तपन कसे कचरो जार//

या तपन तपन 
देसे सूर्यनारायण
लगावो पिपर बड आब्
हासे धरती पर्यावरण//

थंडी तपन बरसात
आये कोणतोइ हवामान
कष्ट करबि खुशीलक्
बढे समाजमा् मान//

पालिकचंद बिसने

तपन


सूर्य देखो सोनो को रथपर सवार
उतर रही से धरती को आंगन मा।
कण कण जाग रही से धरती पर
देखो नवसंजीवन को स्वागत मा।।

चिमनी पाखरू  की मधुर ध्वनि 
बगीचा मा फूलकी हासती कमान।
दुनिया होती आबवरी शांत निशब्द
सब तिरीप को संग भया सजुमान।।

धीरू धीरू आता दुनिया गतिमान
समय चक्का फिरेव तिरीप भई जवान।।
तेज चांदी को आयेव तिरिप को तोंडपरा
झवराय गया धरती का सब वान।।

गाय, बैईल सब सुस्तान आया कोठामा
तपनको झर्राटा फूलइनं सोडिस आंग।।
पशु पक्षी की दमछाक भई तपन लका 
पाणी नहीं मिल कही, गरोमा लगी आग।।

माणूस लुकायेव आपलो आपलो घरमा
परसा,गुलमोहर सजी से तपनमा लाल।
सबला आता से बीरानी बेरा की आस
तपन होए थोड़ी बूढ़ी सावोली बने ढाल।।

✍️✍️सौ. छाया सुरेंद्र पारधी.

तपन

चिलचिलाती या तपन से
सूर्य आग वऱ्यालका ओकसे
तरी न थकता खेतमा राबसे
असो आमरो बंधु कास्तकार से

सारो जगको पालनकर्ता
नाहाय वोला तपन की वरवा
धान  रबी को काटसे खेतमा
मायं बेचन जासे दुपारी सरवा

सब घरमा बस्या सेती आबं
कोरोना विषाणू को भेव लका
सबकी फिकर से वोला म्हणून
खेतमा राबसेती हात कास्तकारका

बारा महिना राबसे खेतमा
तरी खासे खुद चटनी भात
तरी भाव नही आव अनाज को
फीरसे वनवन दुखतलका लात

✍वर्षा पटले रहांगडाले
बिरसी आमगांव
गोंदिया

तपन


चंद्र को ठंडो छपरी मा
सोयी होती निसर्ग सृष्टी
सूर्य कि हिटी  से तपन
त् चराचर परा भयी वृष्टी ।।

तपन लक भेटसे ऊर्जा
विकसित होसे नवो जिवन
कर्तव्य ला देयकन महत्व
सूर्य करसे नवसृजन ।।

जिवन मा बि आवसे तपन
देखावसे दुक को खेल
हिम्मत लक जगनो त्
सुक को आवसे नवो मेल

नको घबरावो तपनला
देखो वोकोमाकि सुंदरता
तपन आवसे मुन  रवसे
सावोली संग आमरो रिस्ता ।।

तीन प्रहर को तपन को
मानवता लक लेवो फायदा
सूर्य कि होये मोठी कृपा
एकता को होये वायदा ।।

वंदना कटरे "राम-कमल"
गोंदिया
१९/०४/२०२०

तपन


उनारो क् दिवसमा, कशी तपन तपसे भारी
वन् तपनमा आनत होता आमी मोवुकी टोरी

एक हातमा रव डांडु, रव दुसर् हातमा झोरी
टोरुंबा फोडत होता, आमी करत होता टोरी

तपनको भेव नोहतो, आमरीच सीना जोरी
भुकनी रव पुळीमा खानला आंबाकी कैरी

पाय  लासत मनमाने, मंग ढुंडत होता गवतोरी
परसाका पान बांधजन पायला  तपन रव भारी

गिल्ली डांडु खेलत होता, जरी तपन रव भारी
पानी साती बाटली नही, लगत नोहोती शिदोरी

तपनत् तप मनमाने, झकार लगत होती भारी
माय कव बेटा सकारी खेल, नोको खेलु दुपारी

आब् पंखा संग कुलर आयी, तरी गरमी लगसे भारी
तपनमा का गया जरासा, आमला झाव लगसे भारी
******
✍ डॉ. शेखराम परसरामजी येळेकर नागपूर १९/४/२०२०

तपन


धूप छॉव आदमी क् ,जीवन को से अंग।
जब ओरी सावली से,तपन बी से संग।
धूप छॉव ला देयो जासे,सुख दुख की उपमा।
जब ओरी सुख से, दुख भी रव्हसे संगमा।

तपन म्हणजे सूर्य को प्रकाश,
वोक् लक् होसे हमखास विकास।
जीवन मा सावली को जो से स्थान,
तपन बी ओतरीच जरूरी से श्रीमान।

तपन मुळ् धरतीपर जीवन से सुरक्षित।
तपन नहीं रहे जीवन होय जाहे विपरीत।
तपन तपसे मून रोगजंतू को होसे नाश।
गर्मी भी मिलसे अना फैलसे प्रकाश।

तपन तपेव ल् पानी की होसे भाप।
आसमान मा जायस्यार बनसे बादल आप।
पानी बरसाय स्यार येन धरतीपर।
नदी, नाला, तलाव, बोडीला देसे भर।

सावली मा आदमी ला आवसे बहुत आनंद।
पर तपन करसे आदमी क् जीवन को संरक्षण।
जीवन साती तपन जरूरी से, वोको नोको करो त्रास।
प्रगति पथपर जानसाती,तपन को संगसे खास।

तपन मा विटामिन डी बनसे,
जो प्राणी इन साती से जरूरी।
झाड झळुला बी तपन माच् ,
आपलो भोजन तयार करसेती।

               रचना- चिरंजीव बिसेन
                                गोंदिया.
                         दि.१९/४/२०२०

तपन


कर ले रे मानवा एक जपन,
मेहनत से जेको नांव तपन ll

सुरज किरण आये, जीवन मा एक बार बनके तपन करले मानव एक  जपन ll

कर्म मा से जेको तपन, मेहनत भी बन जासे जीवन की लगन ll

बन जावो एक सितारा,मेहनत की तपन लक नोको करो किनारा ll

देश से भारत जगमा प्यारो, विश्व मा बनावनो ओला न्यारो ll

पोवार की  से बात न्यारी, करो बदलावं की नवीन तयारी ll

चल्या सेती मेहनत की तपन को संग वरी, फल भेटे जिवन वरी ll

मेहनत की तपन की बात से न्यारी, पोवार सपुत करो स्पर्धा की तयारी ll

डाँक्टर होवो, इजिनियर होवो या  कलेक्टर, मेहनत की तपन को आता लिखो पेपर ll

शिक्षक भया बाबू भया अना आता भया प्राध्यापक, आता बाजी मारो, वैज्ञानिक बनो ll

जहाज चलावो विमान उडावो, उद्योग धंदा मा समाज की पताका लहरावो ll

प्रा.डाँ. हरगोविंद चिखलु टेंभरे
मु.पो.दासगांव ता. जि. गोंदिया
मो.९६७३१७८४२४ 🙏🙏

तपन


सकार भई,दिन निकल्यो,कच्ची तपन न डाक दईस आंगन मा डेरा
उठ रे बेटा, उठ रे बेटा,भय गई आता राम राम की बेरा।।

तिरिप तपन की देख कशी,मार से डोरा
महू सूख से कड़क यको मा, भर भर कर बोरा।।

मोठांगन लक नाहनांगन तक,तपन चढ़ गई भारी
कपड़ा लत्ता भर झोला मा
कर मामा गांव की तैयारी।।

आयक ले परख ले तपन अना साहोली की गाथा
तपन याच तपोवन आय जीवन की, समझावसे जाता जाता।।



✍️ सौ.ज्योत्सना पटले टेंभरे
               मुंबई

तपन


ब्रम्हाण्ड माको देखो चमत्कार
नवग्रह,धरती फिरसे गोलाकार।।
३६०दिनमा प्रदक्षिणा करेपर
नक्षत्रकी निर्मिती होसे धरतीपर।।

परीनाम येको तीन त्रुतू होसेती
चैत्र ना वैशाख तपन देसेती।।
 सुर्यकी तपन देखो नवतपामा 
थंडीकी याद आवसे उन्हारोमा।।

 अमराईमा आंबाकी महकआवसे
कोकीळा ही मंजुड़ गाना गावसे।
सबला शितल ठंडी छाया मिलसे
पशु पक्षी सबको जीवन पलसे।।

ग्रुहिनी आपलो काम करसेती
पापड़ कुरोड़ी ,बड़ी बनावसेती
आलु चिप्स, मिरची तपनमा वारसे
सालभरकी सामा सबक घर होसे।।

परसाला देखो मोठा मोठा पान
पाणी नहि तपनमा अलगच शान।
निसर्गमा झाड हे उलटा चलसेती
समुद्रलं पाणी धरती पर आणसेती।।

वाय सी चौधरी
गोंदिया

तपन


रकत नहीं, घामच निकले, एको मा कोई बात नहीं,
मोरो जोर को सामने, तपन की काई औकात नहीं!

भुजबल, मनोबल अना आपरो पर भरोसा से मोला,
भोज को वंशज आव मी, असी-वसी मोरी जात नहीं!

पुरखा गिन ल मिली सेती धीरज का वोतरहि गुन,
भरोसा से सूरज निकले, सदा रहे यहाँ या रात नहीं!!

मांगू नहीं कभी कोई ला, दुसरो ला देन की चाह से,
स्वाभिमान रग-रग मा से, ये कोरा जज़्बात नहीं!!

येन तपन ला दिन-दिन भर झेलूँ सु आपरो पर,
आराम की छांव मा रहस्यार, मिलअ भात नहीं!

उजालों सबको जीवन को सारो, येन तपनलच मिल से,
बिना जरयो त दीपक भी यहां करअ कोई प्रकाश नहीं!!

तुमेश पटले "सारथी"
केशलेवाड़ा, बालाघाट(म. प्र.)
दिनांक- १९/०४/२०२०

तपन


२२ मार्च ला दिवस रात भया बराबर
मंग दिवस मोठो होसे उन्हारो भर।

उन्हारों मंजे तपन की होसे भरमार
आंगभर पसीना पानी की मारामार।

सकाळ पासुन होसे तपन को सर्राटा सुरु
बाप कसे बेटा ला तपनमा नोकों फिरू।

कूलर पंखा लगायशान घरमा सोव
आब कोराना को सबलाच से भेव।

तपनलका आहत भया पशुपक्षी नरनारी
कबी तपन कबी सावली धन्य प्रभु माया तोरी।

✍️श्री. धनलाल रहांगडाले 
           गोंदिया

तपन


उन्हारो  मा   भग   गयी  तेज  तपन 
जरन   लगयो   भाऊ   मोरो  बदन
सावली   मा   बसके   लव   आनंद
मिल्हे    राहत अना खिल्हे   तन - मन ।।

भरी   तपन  मा  गँहू, अरसी ,  चना 
मूरनो  से  राई ,लखौरी   अना  धना
सकारी  डोसका दर्द को मिसा बना 
दादा मोरो चिन् गयो, कसो करू मना।।

कूलर,पंखा ,ए.सी. को दिवस आयो 
ठंडो  पाणी  लक   खूबच  नहाओ 
परसा  को  पान  मा  जामुर खाओ 
सुट्टी  लगसे   मामा  को  घर  जाओ ।।

तपन मा धरती को सीना जर  जासे 
पाणी  सुखाय उड़  भाप  बन  जासे 
दुपहरिया की तिरीप इस्तो जसी लसे 
आम्बा को तिख्खो खावन‌ मा भासे ।।

जीवन मा दुख सरिखी तपन आवसे 
धीरज ले  जिओ  यो  मान बड़ावसे
अपरो  परायो की  पहचान करावसे  
सुख  पायके  मानुष  जग   रचावसे ।। 

✍🏻 रचना- पंकज टेम्भरे 'जुगनू'

तपन


मायमाता खवावसे घास ! बाप देखावसे बाट!! 
शिकावसेत चघनला घाट!  येन संसार को !!

घरमा कष्टकरसे माय  ! बाप झिझासे खेतमा !! 
ऊनला झोप बी रातमा  ! काही लगनही  !!

टुरुपोटुसाती मायबाप  ! खुनको पाणी करसेती! 
चागंलोच भविष्य देसेती  ! आपलो जीवनभर  !!

माय घडावसे संस्कार  ! बाप शिकावसे कर्म  !!
आय मानवताको धर्म  ! सेवा मायबापकी !!

माय जन्मकी शिदोरी  ! बाप आय आधार  !!
जन्मदाता का उपकार  ! तुम्ही भुलोनोको  !!

आमरा मायबाप आती  !  केवळ ना काशी  !!
तुम्ही मायबाप ऊपाशी  !  भाऊ ठेवोनोको  !!

तपनलक आमरी सुरक्षा  ! करसेती झाड  !!
मायबाप संकटमा आड  ! सदा आवसेती  !!

सेवा करबिन मायबाप की  ! जिवन बाहाल !!
दास को दास हिरदीलाल  ! रहे चरणोमा  !!

                   !! कवि !!
           श्री हिरदीलाल ठाकरे 
  मु, भजियापार पो, चिरचाळबांध
ता आमगाँव जिल्हा गोदिया माहाराषट्र 

भारत को वर्तमान पोवार समाज की सद्यस्थिती

         पोवार समाज मुख्य रूपलं गोंदिया, भंडारा, नागपूर व वर्धा जिल्हा तसोच मध्यप्रदेश कं बालाघाट, शिवणी, छिंदवाड़ा व बैतुल जिल्हा मा स्थाथी रूपलं रव्हसे.
         तसो कामधंदा अना नौकरी चाकरी कं उद्देश्य लं पोवार समाज भारत कं मुंबई, पुणे, हैद्राबाद, भोपाल अना छतीसगढ़ मी भी स्थायी भय गई से.
        
         
          पोवार समाज कं सद्यस्थिती कं बाराला जब आम्ही बिचार करसेज तं सरसकट बिचार करेलक समाज की स्थिती की सही जानकारी नही मिल सक. ओकसाठी पोवार समाजला मुख्यरूपलं तीन भाग मा बाटनो पडे़.         -------
(१) उन्नत गट-  येन गट मा मुख्य रुपलं मोठा वकील, डॉक्टर, जुना इंजिनियर ,प्रोफेसर ,मोठा पटील, डबल नौकरी वाला ये लोक आवसेती. इनकं जवड़ पैसा भरपूर से येन कारणलं इनक जवड़ सुख सुविधा की सब चीजं सेती. इनका टुरूपोटू बी चांगलो शिक्षण लेयस्यान चांगलं नौकरी मा लग रह्या सेती.असा लोग आपलं समाज मा ५ - ७ % रहेती.

(२)मध्यम गट- येन गट मा सिंगल नौकरीवाला, नविन इंजिनियर, मोठं शहर मा कंपनी मा चांगलं पोस्ट पर काम करनेवाला, ठेकेदार, लहान राजकारणी इनको समावेश होय सकसे. इनक जवड़ भरपूर पैसातं नाहाय पर कुल  मिलाय स्यान खुशहाल जिंदगी जीवसेती. टुरू पोटू भी आपलं हैसियत क मानलं ठीकठाक शिकसेती. इनकी संख्या १५-२०% रह्य सकसे.

(३)कनिष्ठ गट- येन गट मा लहान किसान, शहर मा कपडा दुकान, दवा दुकान, किराना दुकान मा काम करनेवाला, दवाखाना का कम्पाऊंडर इनको समावेश होय सकसे. ये आपलं जिंदगी की गाडी जोडजंतर लका चलावं सेती. टुरू पोटू इन ला आपल हैसियत क हिशाब लं शिकावसेती. इनकी संख्या समाज मा ६० - ७०% होय सकसे.

      इनकं अलावा भी एक गट से.
(४)निम्न गट- येन गट मा गरीब किसान, भूमिहीन खेत मजूर, रोजगार हमी मा काम करनेवालो लोग इनला ठेयो जाय सकसे. ये लोग जसो तसो आपलं रोजी रोटी कमावसेती. इनकी संख्या समाज मा ५- १० % रह्य सकसे.
         ये गट मोटं तौरपर करनो मा आया सेती. येक मा का पहला दुय गट विकास कं रस्ता मा सामने सेती. म्हणजे २५-३०% समाज को विकास ठीक ठाक से.
बाकी जवड़पास ७०% लोग विकास कं प्रतिक्षा मा सेती.
          पोवार समाज का बहुतेक लोग खेतीको धंदा मा सेती. येन जमानो मा खेती घाटो को धंदा से पर बाप दादा को जमानो पासून सुरू से म्हणून करनो पड़से.
          पोवार समाज परंपरा निभावनेवालो समाज से. पुरानं जमानो पासून सुरू परंपरा आबं भी निभाई जासे.
         पोवार समाज शिक्षक, बाबू, पटवारी, ग्रामसेवक असं नौकरी मा सेती. आता इंजिनियर, डॉक्टर, वकील बी बन रह्यासेती. ग्रा. प., पं. स., जि. प. का मेंबर भी सेती. पर मोठी पोस्ट खासदार, आमदार ,तहसीलदार, कलेक्टर नही क बराबर बन्या सेती.येन बात पर ध्यान देन की जरूरत से. सब शिकणेवालो टुरू पोटू इनला निवेदन से की उनन चांगली पढाई करके मोठो पद मिलावन की कोशिश करे पाहिजे.
             आमारो पोवार समाज ७०% गाव खेडा मा रव्हसे अना खेतीकं भरोस परसे. पोवार समाज रूढी पंरपराला माननेवालो समाज से. तसोच मेहनती से. आपलं मेहनतलं आपली तरक्की करनो मा भरासो ठेवसे.
       आता समाज धिरू धिरू तरक्की कर रहीसे.आमरं समाज की तरक्की ला काही बातं मारक सेती. जसो- खर्चिला बिह्या, मृत्युभोज, देवी देवता अना नशीबपर भरसो.येन बात इनपर जास्त खर्च न करके बचत करनं की आदत लगाये पाहिजे.
          टुरू पोटू इन कं पढाईपर जास्त ध्यान देयस्यान उनका काबिल बनाये पाहिजे. सिर्फ खेती कं भरोसं पर रव्हनं कं बाटा दुसरो जोडधंदा करे पाहिजे. अना आपली तरक्की करे पायजे.

       लेखक-  चिरंजीव बिसेन
       परमात्मा एक नगर, गोंदिया.
       मो. नं.९५२७२८५४६४
           दि.११/९/२०१९

Thursday, April 16, 2020

भारुड


विषय:- घरमाच रवुसु बाई
(चाल:- मला दादला नको ग बाई..) 

मी घरमाच रवुसु बाई
तू घरमाच रवनाव बाई ।। धृ।। 

चायना देशलका, आयेव कोरोना
मोला धक धक लगसे बाई
मी घरमाच रवुसु बाई।। १।। 

जोर को वारा,  नाकमा कचरा
कशी शिकाई देवु व बाई
मी घरमाच रवुसु बाई।। २।। 

कोरोना से लागुटी, दाबसे मानगुटी
कोंज्यान हिंडनकी उजागरी नही
मी घरमाच रवुसु बाई।। ३।। 

कोरोनाको पाश, जीवनको नाश
मनुन संबलकर रवो व् बाई
मी घरमाच रवुसु बाई।। ४।। 

झटसे डॉक्टर, पुलिस सरकार
वकी कदर करनाव् बाई
मी घरमाच रवुसु बाई।। ५।। 

सांगसे शेखर, या बिमारी बेकार
यको फैलाव रोकोव् बाई
मी घरमाच रवुसु बाई।। ६।। 
****
डॉ. शेखराम परसरामजी येळेकर नागपूर
१६/४/२०२०

Wednesday, April 15, 2020

विषानू

अरे! कहान गयात तुमि सब भारतवाशी।
 एकटो यहांन बडो फड़फड़ाय रही सेव।।

अज् रस्ता परा हिडंता काहे नहीं दिसत।
सजधज कर तुमरोसाती तैयार भई सेव।।

मोला नई ओरख्यात अज्ञानी लोक  तुमि।
आव कोरोणा विषाणु मजा लेय रही सेव।।

सबको मनमा बसेव मोरो केत्तो मोठो भेव।
तबाई मचाएकर हाहाकार खुब मचाई सेव।।

मोरा अदिक सेत लगीत रंगींला भाई बन्धु।
जिनला तुमरो मणमा लुकायकर ठेई सेव।।

व्देष, अहंकार, ईर्षा, जलनखोरी लालच।
इनला सदा सदा साठी धरती पर ठेई सेव।।

जसो आब कर रहया सेव तुमि मोरो खात्मा।
अहंकार को विषाणु ला काहे ठेय रह्या सेव।।

सैईतान बनकर दूसरो को जिनगी संग।
काहे तुमि हर जाग् खेल,खेल रह्या सेव।

गलि गलिमा बनकर बहिन बेटी को  क़ाल।
काहे तुमि नरभक्षी बन्या फिर रह्या सेव।।

मी विषाणू कोरोना अज़ सेव सकारी नहाव।
पर तुमि काहे विषाणू बनकर फिर रह्या सेव।।

-सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

Tuesday, April 14, 2020

आमरो समधी


आमरं समधीनं बहुत कमाइस
दूधकं धंदा मा.
वोकी सेत भशी, खासेती चोभरा,
बससेत डोबरा मा. ॥धृ॥
   
     गावमाको दूध, करसे जमा
     मोठं-मोठं डब्बा मा
     करसे मेहनत, नाहाय वोला फुरसत
जानला जत्रा मा॥१॥

दूध जासे कमी, मिलावसे पानी
दूधकं डब्बा मा
फटफटीलं जासे, घरोघर बॉटसे
शहर कं एरिया मा॥२॥

आमरं समधी को से कव्हणो,
खूब कमाओ तुम्ही आपलं धंदामा
का ठेयेव से तीर्थ पानी मा,
ना मंदीर कं पथरा मा ॥३॥
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  रचनाकार- चिरंजीव बिसेन
परमात्मा एक नगर, सूर्याटोला वार्ड, गोंदिया .४४१६१४
मो. नं.९५२७२८५४६४

जवाई कर से खेती


का सांगू बाई, आमरो जवाई,
से बहुत खासं.
घर सेत ओकं, नौकर चाकर,
 करीसेस बी. ए. पास॥धृ॥
     नौकरी कं मघं नही धायेव
      करसे आपली खेती,
    चलावसे ट्रेक्टर, करसे मेहनत
    पिकावसे माणिक मोती.
१० एकर मा धान लगावसे,
पाच एकर मा ऊस॥१॥ का सांगू-

खेत से मोटर-पंप,बोरींग,
पाणी की नाहाय कमी.
समय-समयपर खात दवाई
फसल की से हमी.
देखकर कारभार, भरेवसे दरबार,
टुरी मोरी से खुश॥२॥ का सांगू--

नौकरीवाला रव्हसेत पुना मुंबई मा
खाय पीय स्यार सुखी,
माहागाई कं मारे नही बचं काही
हात मा बाकी
घरचं रव्हसे, पैसा बी बचसे,
होसे बहुत विकास॥३॥का सांगू--

सासू-सुसरा, देवर भासरा ,
रव्हसेत सब संग,
अणखी का पाहिजे एकपेक्षा,
खुश रव्हनं ला मगं.
एक मा रव्हनो, सबदून चांगलो,
ठेवो तुम्ही विश्वास॥४॥ का सांगू--

        रचना - चिरंजीव बिसेन
  परमात्मा एक नगर, गोंदिया
मो. नं.९५२७२८५४६४

काल न अज


पच्चीस साल पहले,
गावको माहोल होतो अलग.
घर होता माती का,
अना कोठा होता सलग.

गली मा फाटक सबकी अलग,
पर कोठा को आड़ो एक
आबं सारखी धावपड़ नव्हती
आदमी होता नेक.

लोक इन जवड़ काम होतो
पर फुरसत होती बहुत.
फुरसत मा संग बसस्यार
बाटतं आपला सुख-दुख.

सुख-दुख मा धायस्यार
देत एक दुसरोला साथ,
पाहणा इनकं पाहुणचारसाठी
चार दिवस बी कम जातं.

आता गाव मा भी सिमेंटका,
घर बन गया पक्का
आदमी आदमी लं दूर भया,
रिश्ता रह गया कच्चा.

पाहुणाबी आता आवसेती,
घड़ी दुय घडी साती
मघानीचं आया होता
आता जाय रह्या सेती.

           रचना- चिरंजीव बिसेन
     परमात्मा एक नगर, गोंदिया.
     मो. नं.९५२७२८५४६४
         दि.२४/९/२०१९

जिंदगी


या जिंदगी असीच गुजर जाहे
ना तू समझ सकसेस, ना मोला समझ आवसे.

जिंदगी असीच बीत रही से सोचनो मा
ना तू काही करसेस, ना मोला काही आवसे.

मिली से जिंदगी हासकर बितावन साठी
ना तू हास सकसेस, ना मोला हासी आवसे.

आता तं हर रोज असो होसे
ना तू काही कव्हसेस, ना मोला कव्हता आवसे.

असोच रव्हनो से तं फायदा का से
तू आपलं रस्ता लं जाय, मी आपलं रस्ता लं जाय रही सेव.

      रचना- चिरंजीव बिसेन
    परमात्मा एक नगर, गोंदिया.

भजन


प्रभुजी, तोरं दर्शन की से आस। धृ।

तोला कहाँ कहाँ मी ढूंढू,
कौनसो करू प्रयास॥१॥

मंदीर मा तं पैसा चलसे,
नही होय तोरो भास॥२॥

तीर्थ कं जागापर लूट मचीसे,
नही बुझ मोरी प्यास॥३॥

साधु संत भी करसेती धंदा,
नही होय मोला विश्वास॥४॥

मोला लगसे उचं ईश्वर,
भूखो ला भरवसे जो घास॥५॥

माय बाप सेती सबदून मोठा,
वोयचं मोरं साठी खास॥६॥
              
            रचना- चिरंजीव बिसेन
      परमात्मा एक नगर, गोंदिया.

दादाजी


आमरं दादाजी को 
होतो बहुत थाट,
मोठांग छपरीपर
रव्ह उनकी खाट.

कुर्चीपर बसनो पर
दिसं उनला गल्ली,
गल्लीपरलं जानेवाला
मिलन आवत डेली.

पांढरी धोती, पांढरो कुर्ता
अना पांढरीच रव्ह टोपी,
फतई कं खिसा मा
रव्ह तम्बाकु की कुपी.(डब्बी)

बाहर जात तं हातमा
ठेव बेत की छड़ी,
आम्ही कव्हत होता
दादाजी की काड़ी.

पायमा चंभार घरका जूता
खट खट बजत होता,
रस्ता लं जानेवाला बी
बाजूला होत होता.

ढिवरीन जवड़ का
लेत होता लाडू ना चना,
आम्ही कव्हज तुमी खावो
तं आमला बी होना.

खेत मा धुरोपर बसस्यानी
ठेवत सबपर निगरानी,
नांगर,कोहपर, बन्ह्यार
काम करत मिलस्यानी.

चना कं घात मा
दिवसभर खेतमा रव्ह,
आफुनबी खाय चना
लोकइन ला बी देत रव्ह.

असो आमरो दादाजी
सोडस्यान गयेव जब,
आमला ना मोहल्लाला
बहुत दुख भयेव तब.

       रचना- चिरंजीव बिसेन
     परमात्मा एक नगर, गोंदिया.
               दि.१२/१०/२०१९

चंदा सुख दुख को साथी

चांदापर केतरो भी लिखो कम से. काल मी एक गीत लिखकर पठायेव पर मोरो पुरो समाधान नही भयेव.म्हणून मीनं अज एक कविता लिखेव.

चांदा सुख-दुख को साथी
*******************
जीवन कं सफर मा रव्हसे,
कभी खुशी ,कभी गम.
येकलका उच लढ सकसे,
जेव ठेवसे भाव सम.॥१॥

सुख मा नाचनेवाला,
रोवसेती आयेवतं दुख.
रोवनो बी जरूरी से पर,
हार मानकर होव नोको विमुख॥२॥

सुख-दुख समझावन साठी,
सामनेसे चांदा को उदाहरण.
पंधरा दिवस मोठो होसे,
पंधरा दिवस होत जासे लहान॥३॥

येतरो चढाव उतार कोणीकं,
जिंदगी मा नही आव.
तरी लोक सुख मा उडासेती,
अना दुख मा खासेती हाय.॥४॥

पुराण कं अनुसार चांदाला,
राहू भी लेसे ग्रस.
वोक मालं भी वू सलामत,
निकलसे होय नही टस मस॥५॥

म्हणून भारत मा चांदा को,
से बहुत महत्व.
भारत कं सब त्योहार इनको,
चांदा कं कलालं से अस्तित्व॥६॥

चांदा कं तिथी पर आधारीत,
सेती भारत का सब त्योहार.
चांदा सांगसे आमला लढ़त रहो,
तुम्ही नोको मानो हार॥७॥

        रचना - चिरंजीव बिसेन
     परमात्मा एक नगर, गोंदिया.
                दि.२१/१०/२०१९

मायबाप सरकार


सब किसान भय गया लम्बा
पानी को देखकर अचंभा,
दिवारी भय गई तबी काही
पानी सोड नही भाऊ पिछा.

हलको धान की भय गई माती
किसानला परेशानीसे पैसा साती,
दिवारी बी रही बहुत थंडी थंडी
टुरू पोटू ला फटाका मिल्या, ना चिंधी.

 सरकार करे का आमरसाठी काही
नुकसान भरपाई भेटे का भाई,
याच चिंता मनमा लं जाय नही
टुरी को बिह्या चिंता बी बढ गई.

सरकार तं आता आपलच मासे मस्त
किसान मेहनत करस्यार भय गया पस्त,
कोनका आमदार केतरा येकमा सेत नेता व्यस्त.
कौन मंत्री,कौन मुख्यमंत्री येतरीच चर्चा से फक्त.
 
किसानी आता भय गई घाटो को सौदा
करेच नही पाहिजे असो लगसे अवंदा.
नागपूर मुंबई मा देखे पायजे काम धंदा
फसल नही होनो लं जी होय जासे शर्मिंदा.

           रचना- चिरंजीव बिसेन
      परमात्मा एक नगर, गोंदिया.

जतरा


माणूस को जीवनच से एक जतरा,
पैदा होये पासून मरत ओरी भरसे जतरा.

पैदा होयेपर लोक देखनला आवसेती
पड़ोसी ना रिश्तेदार वा एक जतरा.

बारसोला लोक जमा हो सेती,
नामकरण होसे वा एक जतरा.

जन्म दिन मनावनसाती लोक जमा होसेती,
केक काटेव जासे,वा बी एक जतरा.

स्कूल मा नाव भरती होसे,
संगी साथी मिल् सेती,वा एक जतरा.

बिह्या मा मोठो उत्सव होसे,
लोक आशिर्वाद देसेती,वा एक जतरा.

विविध प्रकार का कार्यक्रम होसेती,
लोक मिलसेती,सुख दुख सांगसेती,वा बी एक जतरा.

आखिर मा आदमी खतम होसे,
अंत संस्कार होसे,वा बी एक जतरा.

रुढ़ी परंपरा ल् तेरवी क-यो जासे,
मृत्यु भोज देयो जासे,वा बी एक जतरा.

                     - चिरंजीव बिसेन
                              गोंदिया.

मामा को गाव


मामाकं गावं छुट्टी मा 
जात होता लहानपणं,
अभ्यास व्यभ्यास काही नही
नुसतो खाणं ना खेलणं.

उन्हारो मा स्कूलला
रव्हत होती छुट्टी,
पढाई की फिकर नही
मारनं भेट पुरी बुट्टी.

लुका झापी, तीर कमान
कवेलू को गाडो रव्ह खेलनला,
पाड का आंबा, माच का आंबा
रस,रोटी,सेवई भेट खानला.

पापड बनावत चार पायलीका
आंगनमा खाटपर ठेवत वारनसाती
आमी रव्हजं पाहरापर
कावरा भगावनसाती.

सब सोवत आंगणमा
गर्मीलं बचनसाती
राजा रानी की कहानी सांगत
मन बहलावनसाती.

आता काही तसो
माहौल नही रहेव
नवो जमानोमा मामाको
गांव दूर भयेव.

आता छुट्टी मा भी
टुरू पोटू ईनला नाहाय फुरसत,
कई प्रकार का कोर्स, टी. वी.
मोबाईल मुड़ं मामा भयेव रुखसत.

          रचना- चिरंजीव बिसेन
      परमात्मा एक नगर, गोंदिया.
                 दि.१८/१०/२०१९

चंदामामा


मी चांदापर लिखू तं का लिखू ,
चांदा मोरो बचपन को संगी.
चांदा बीना अधूरी से भाऊ,
मोरी बचपन की जिंदगी॥ धृ॥

लहानपणं मा मायनं सांगीस,
चांदा आमरो मामा आय.
चांदाला देख देख स्यार,
खुश होत होता माय.
चांदा वानी आमी बी,
लहानका मोठा भया माय.
आमी देखतच रय गया,
चांदापर पोहच गया फिरंगी॥१॥

रामजीनं बी चांदा संगं,
खेलन की जीद करीस माय.
आरसा मा देखकर चांदाला,
रामजी खुश भया माय.
सत्यनारायण की कलावती बी,
चांदा वानी बढी माय.
अमेरीका कं अपोलो ११ लं
चांदापर पोहच गयो निलंगी॥२॥
(निलंगी- निल आर्मस्ट्रांग)

जवान भयातं प्रेयसीला,
देखन लग्या चांदा मा.
करवा चौथ ला बायको,
नवराला देखसे चांदा मा.
रिश्ता असा बदलत गया,
पर मन लगेव रहेव चांदा मा.
चांदापर फिल्मका गाना भी,
बन गया नवरंगी ॥३॥

भारतनं भी चंद्रयान आता,
पठाय देईस चांदापर.
वाहाँ जायस्यार चंद्रयान,
संशोधन करे चांदापर.
लैंडर विक्रम फोटो,
खिचकर पठाये चांदापर(लं).
चांदापर भी आता भारत को,
निशान फड़क गयो तिरंगी॥४॥

          रचना- चिरंजीव बिसेन
    परमात्मा एक नगर, गोंदिया.
                 दि.२०/१०/२०१९

देखता देखता


देखता देखता जमानो बहुत बदल गयो,
सब नवो भय गयोव,पुरानो नही रहेव.।धृ।

गाव का रस्ता भी भय गया सिमेंटका,
पहले वानी धुल वाली गल्ली नही रही,
बाईक,कार,टेक्टर,मॅटाडोर आय गया,
पहले का रेहका,गाडा,बंडी नही रही।१।

धान क् बाद मा धान की च् फसल लेसेत,
गहू,चना,लाखोरी लगावनो बंद भय गयेव,
ना हुड्डा पार्टी ना उबडहांडी आता रही,
केवल धान ही धान खेत मा रहय गयेव।२।

लेटर,चिठ्ठी की खबरबात बंद भय गयी,
मोबाईल,व्हाट्स अप पर बात भय गयी,
पडोसी बी आता नही जात एक मेक क् घर,
खतम पहले की मुलाकात भय भयी।३।

बाप बी बाबूजी क् जागा पापा बन गयेव,
माता बी माय क् जागा मम्मी बन गयी,
जिंस टी शर्ट मा आता फिर से पापा,
मम्मी बी सलवार कुर्ती की शौकीन भय गयी।४।

ना दादा की धोती रही ना टोपी रही,
दादी की पातल ना वायल बदल गयी,
नाना बी आता पेंट शर्ट मा रव्हसे,
नानी बी साड़ी मा सजी धजी से ।५।

               रचना- चिरंजीव बिसेन
                          गोंदिया
                  दि.०४/०२/२०२०

घर


महल,हवेली,कोठी,बंगला,वाडा, मकान,
ये सब एकच चीज आती,घर वोको नाव.

महल,कोठी,बंगला ये सब प्रतिष्ठा दर्शक नाव,
पर सबसे चांगलो से,घर शब्द को भाव.

महल, हवेली,मकान, ईटा,मिट्टी, गारा ल् बन सेती,
पर घर बनावन ला प्यार, मोहब्बत
पाहिजे जी.

जहाॅ आपस मा प्यार,भाईचारा रव्हसे वू घर मंदीर बने जासे,
नहीं त् मोठी हवेली बी भूत बंगला
बनके रह् जासे.

म्हणून त् आफून बंगला,कोठी, मकान ल् आवुसू जासू नही कव्हज्,
महल ल् आवो नही त् झोपडी ल् घरल् आवुसू जासू कव्हसेज्.

            रचना- चिरंजीव बिसेन,
      परमात्मा एक नगर, गोंदिया.
                 दि.२९/०२/२०२०

जय श्रिराम

 हायकू 

जय श्रीराम
दशरथ को राम
अयोध्या धाम.

कैकयी माता
मांगीस वरदान
भरत राज.

चौदा बरस
रामला वनवास
सन्यासी भेस.

लक्ष्मण भ्राता
जनकपुत्री सिता
वन को वास.

जानकी चोरी
सेवक हनुमान
करीस खोज.

लंका दहन
रावण को विनाश
राक्षस सेना.

घर वापसी
चौदा बरस बाद
अयोध्या राज.
    
        -चिरंजीव बिसेन
               गोंदिया.

तिरंगा

तीन रंगों को रंग रंगीला  वस्त्र नको समजो येला
भारत की आंगन बान  भारतवासियों को अभिमान

खादी को येव बनेव तिरंगा तीन रंग मा रंगेव तिरंगा
एक किसान वैक्काया पिंगली न करिस अभिकल्पना

देखो येको तीन रंग की तुम्ही सब भारतवासी महिमा
सबसे वरत्या बलिदान को प्रतीक रंग सुंदर  केसरिया

श्वेत शुभ्र रंग से सच्चाई पवित्रता शांती को रंगमा
अखंड भारत मा शांती को संदेश देसे संगमा

बीच मा शोभसे चोवीस आरी को अशोक चक्र संगमा
आत्मरक्षा शांती समृद्धी  विकास को संदेश देसे आमला

समृद्धी को हिरवाे रंग समृद्धी दर्शावसे भारतमा
सम्मानलका लहर लहर लहरावसे तिरंगा अंबरमा

देश को मान सन्मान तिरंगा सबसे प्यारो तिरंगा
भारत की आन बान भारतवाशियो को अभिमान

- सौ.छाया सुरेंद्र पारधी

खेल

याद आवसे मोला गम्मत गुम्मत की कट्टी।
घड़ी भर मा मंग होय जात होता बट्टी।

लगोरी को खेल मा रोनटी बी खाजन।
गण देन को घनी खेल बिचकावजन।।

चंगा अस्टा को खेल मा नजर चुकावजन।
एक पर एक बिजी ठेयश्यार अष्टा आंनजन।।

बावला बावली को खेल खेलजन मिलकर।
नवरा बायको को खेलमा जाजन घुलकर।।

गम्मत गुम्मत को नवरा मंग बजारला जात होतो।
कहा गइस सोन्या कि माय चिल्लात आवत होतो।।

खेल होतो आमरो गंमत गम्मंत को बाई।
पर ससारखो खेलला भी वोत्ती मज़ा नहीं।।

आब त सोनों ना पित्तर वोतोंच चमकसे।
ससार  को माणूस ओरखन फजिती होसे।।

वरत्या वरत्या मानुस मिठो बोल बोलसे ।
अंदर लक मनामा  कपट ,अहंकार रवसे।।

मनुष्य वरत्या लका ससार को दिससे।
पर अंदर लक मन कारो कुचकुचो रवसे।।

मनुन सब चमकीली चीज सोनो नहीं रव्।
गम्मत गुम्मतला ससार की सर नहीं आव।।

✍️ सौ.छाया सुरेंद्र पारधी

सावधान

सावधान सब होय् जाओ तुमि
पोवारी मी भाषा सेव् खतरा मा।
शहर वालो न भुलाय देईन मोला
सिर्फ बोली जासु आता खेड़ामा।।

हिंदी, अंग्रेजी बोलसेत् फर्राटालका
लाज लगसे उनला पोवारी बोलनला। 
बोल्या कोनी उनको संग पोवारी मा
देखसेत एकमेक करा टकामका ।।
  
येत्ती का लाज लगसे तूमला बोलनला 
लग्यासेव मोरो अस्तित्व मिटावनला।
मी सेव त् तुमरी से पहचान समाजमा
मी मिट गई त् कसो सांगो नवो पिढीला।।

गल्ड्या गडू, सळ गयेव् ना पेट गयेव्
लुप्त होय जायेत् समय को पेट मा।।
झुंझुरका,माहतनी बेरा,भानी, बटकी
सुंदर शब्द सब् उडाय जायेत गतकालमा।।

आपलो अस्तित्व बचावनो रहे, होंवो तैय्यार
देव मोला नवनवो साहित्य लक जीवन दान।
नवी नवी रचना की रक्तसंजीवनी बूटी लक
देय देवरे आपलो माय पोवारीला जीवनदान।।

- सौ.छाया सुरेंद्र पारधी

नवनिर्मान


शिक्षित नई सुशिक्षित  बनो
माय का संस्कारी सपूत बनो
देखो जब भी असहाय् टुरी
भाई बनकर तुमि रक्षा करो
 नवो नवनिर्माण की मेढ़ बनो।।   
               
रोज मारी जासेत गर्भ मा टुरी
रोज मरसेती दहेज साठी टुरी
बदल जाय इंसान तू आता
जननी को सम्मान करो
आदर्श समाज नवनिर्माण की मेढ़ बनो।।

बारही मास् पानी  पडसे
ठंडी मा भी बरसात से
वातावरण को चक्र बदलेव
झाड़ लगाओ झाड़ जगाओ
जनजागृति की मेढ़ बनो ।।  
       
सांगों नोकों दूसरोला 
पोवारी बोले पाहिजे
पोवारी बोलन् की सुरुवात
घर पासुंन तुमि करो
पोवारी नवनिर्माण की मेढ़ बनो।।

- सौ छाया सुरेंद्र पारधी

रांधनखोली


कोंनटो मा पडेव् पारोला,हांडी कव् 
काहे बसेस् असो  चुपचाप
पारो रोयेव्  सिसक सिसकर
देखकर आपलो कारो रूप

सांगु तोला पहले को राजमा
आपली जोड़ी होती अटूट
आता दुरलकच तोला देखकर.
झुरसे मोरो लहानसो जीव

याद से का तोला पयले की 
पोवार की रांधन खोली
रांधनखोली मा दिमाखदार 
माती को चूल्हों तीन अवली 

मी अना तू ,चाटू,ताई, रई, सरूता
मलोकी, मलोका संगमा जगरा 
सिल बट्टा त् आपलो तोरामा रव् 
काम नोहोतो वोला आरामच कर्

दही, दूध, मही , घीव की 
काही रवत नोहति कमी
जगरा भर दूध की साय पड़् 
पीठ को हातोडी रोटी वानी

   - सौ छाया सुरेंद्र पारधी

हिरोती


आयेकलेव भाऊ तुमि सब गुणीजन
मी करूसु हिरोती को गुणगान गा ।
बड़ी गुणकारी वा पिवरी धमक
रूप सुंदरी सोनो की खान गा ।।

पहले माता मायला चढ़ावसेत् हिरोती
पोवार को बिह्यामा येला बड़ो मान गा ।
मग् नवरी बाईला लगावसेत् हिरोती
तबच चमकसे रूप की खाण गा ।।

पाचगाठी लगिंनडेरला नेंगदस्तूर को आगाज
लगींन लगन् को पहले पलटावसेत गाठ गा ।
नवरा नवरी पर पडे करस को पानी  
 बन जायेत पिरम की खाण गा ।।

सर्दी मा पियो ओवा हिरोती को हरारा
लगायलेव  चंदन हिरोति को लेप गा ।
निखर जाए येव गोरो सुंदर मुखड़ा
कांति सोनो की बन जाए ख़ाण गा ।।

आमरो भाजीमा जादा हिरोती को तड़का
मनुनंच से पवार की कांति गोरी पान गा ।
रोज चाय, दूध बनाओ, टाको हिरोती
पराये मुख को ‌मुरूम की खाण गा ।।

- सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

लहानपण


आमरो लहानपण की बातच न्यारी
धान भरणला धान की रव कोथरी

दस पैसा को बरफ, पिपरमिंट की गोली
आंबाको माचला पाटणपर की खोली

थंडीमा पांघरनसाती कपड़ा की कथडी
तापनसाती रवत होती माती की सगडी

चुरनी मा झुंनझुरका खेतमा जाजन
बंडीको चाक संग गोलगोल फिरजन

लहानांग को आंगनमा तीन औवली चूल्हों
चटनी गाकड़ की याद कबी नहीं भूलं

मलोकामा रव आंबाको मस्त रायतो
बिना तेलको बी लग स्वादिष्ट भलतो

गली पर सबजन लपाछुपी खेलजन
रेस लगावन साती कोंटोमा लूकावजन

आब् बस याद लहानपन की रय गई
समय को जातोमा याद बी पीस गई

✍️ सौ.छाया सुरेंद्र पारधी

Sunday, April 12, 2020

मामा को गाव


मायकी जन्मभुमी माहेरको गाव
मामा को गाव,अजभी याद आवसे।।

वहाकी मोठी आंबाकी अंबराई।
बहु गोड़ आंबाकी गोड़ी,अजभी याद आवसे।।

घुंगुर झलमकी जोड़ी ना उ रेहका।
जंगलमा करप कोटरीका, अजभी याद आवसे।।

गाळदानमा रेहकाको दळदळ आवाज।
 झुनझुन घलर घलर नाद, अजभी याद आवसे।।

जंगलको रस्ता मोठा उचा उचा झाड़
टेंभरून आवरा़लं फर्या झाड़ अजभी याद आवसे।।

नदिको मोठो कलवट्या घाट 
भोवरिभर पाणी की बाट,अजभी याद आवसे।

बाड़ीमा बिहिर मोटकी कीरकीराट
पाणी भरकन जातो उपाट,अजभी याद आवसे।।

आता नाहाती गावमा मामा ना मामी  
वय दिवस गया ? तबकी ,अजभी याद आवसे।।

वाय सी चौधरी
गोंदिया

मामा को गाव


लहानपण बितेव मामाघर
बडो सुंदर मामा को गाव
उन्हाळो मा रव्ह आमला
आंबा खानकी हाव.....

मी लहान होती तब
बहुत होती खोडकर
इत उत फिरणसाठी
लात खात होती पोटभर

मामा को गावमा मोठो जंगल
चार भेलावू खानला जाज
घर माहीत पड सबला त
काळी काळील मार खाज

मामी की होती बडी लाडली
सखीसारखी रव्हत होता
सुख दुख मा हरसमय
साथ साथ मा रव्हत होता

बाजुको घरकी जाम चोरके
खानोमा बहुत आव मजा
चोरी करतांनी सपड्या म्हणजे
भेटी आमला मोठी सजा

रंगरगका खेल खेलजन
काडी घुसराई, आबी देवाई
दाम आई आंगपर त आमरो
दाम जाय आंबाकी अमराई

लहानपण सरेव आता
याद आवसे मामा गाव की
देखभाल संसार को करनोमा
फुरसत नही भेट घडीभरकी

✍वर्षा पटले रहांगडाले

मामा को गाव


मोरो माय को माहेर होतो बहुत दूर।
मामा को गावं जानकी लगी हुरहूर।।

स्कुलला सुट्टी लगीं धावत धावत घर आई।।
मायला कयेव मामागावं जानकी कर घाई।।

बस लका जल्दी मामा को गावं जबिन।
आंबा को रस ना पातर रोटी खाबिन।।

सेवाई की खीर ना गहू की गरम रोटी।
भाजीला आलूबगन, गवारशेंग, बरबट्टी।।

मामा मामी साजरा जसा राणी राजा।
उन्हारो को सुट्टीभर मस्त करबिन मजा।।

✍️श्री. धनलाल रहांगडाले
           गोंदिया

मामा को गाव


मामा क् गांव छुट्टी मा
जात होता लहानपण् ,
अभ्यास वभ्यास काही नहीं
नुसतो खाण् ना खेलण्.

उन्हारो मा स्कूलला
रव्हत होती छुट्टी,
पढ़ाई की फिकर नहीं
मारन् भेंट पुरी बुट्टी.

लुका झापी,तीर कमान,
कवेलू को गाड़ो रव्ह खेलनला,
पाड का आंबा,माच का आंबा
रस,रोटी,सेवई भेट खानला.

पापड़ बनावत चार पायलीका,
आंगनमा ठेवत वारनसाती
आमी रव्हज् पाहारापर
कावरा भगावन साती.

सब सोवत आंगणमा
गर्मील् बचन साती,
राजा रानी की कहानी सांगत,
मन बहलावन साती.

आता तसो काही
माहौल नहीं रहेव,
नवो जमानों मा मामाको
गांव दूर भय गयेव.

आता छुट्टी मा भी
टुरू पोटू इनला नाहाय फुरसत,
कई प्रकार का कोर्स, टी.वी.,
मोबाईल गुन् मामा भयेव रुखसत.

               रचना- चिरंजीव बिसेन
                            गोंदिया
                          दि.१२/४/२०

मामा को गाव


जंगललका घेरेव होतो, 
एक नहानसो गाव
हिवर्  झाडीमा शोभत होतो, 
मोर् मामाजी को गाव

मोवु को मोवरान होतो
लग प्रसन्नताको भाव
नहानपनपासूनच बेस लग्
मोर् मामाजी को गाव

खाबडखुबड को रस्ता होतो
गाडदान वको नाव
अस् रस्तापरच शोभत होतो
मोर् मामाजी को गाव

गाव क् जवरच परसोडी
बहुत दूर लग् बडेगाव
मालुटोला धरकन तीन होता
मोर् मामाजी का गाव

परीक्षा भयी शाळाला सुट्टी
भुलत होता अभ्यास को नाव
याद मोला आवत रव
मोर् मामाजी को गाव

मामाजी आननला आवत
मोर् मनमा खुशी को भाव
रेहकालक जात रवबीन
मोर् मामाजी को गाव

बहुत घन त् पैदलच गया
तरी दुखत नोहता पाव
माया ममताको सागर लग्
मोर् मामाजी को गाव

भास्याजी आया कवत होता
मोला भेटत रव बहुत भाव
मनुन मोला साजरो लग्
मोर् मामाजी को गाव

रेहकालक उतरनक् बादमा
मामीजी धोव् मोरा पाव
मानपान को भंडार होतो
मोर् मामाजी को गाव

खेल खेलजन दिवसभर
रव् हाशी खुशीको भाव
मनुन मोला साजरो लग्
मोर् मामाजी को गाव

बेरा होत होती जेवनकी
आयतोच भेटत रव् ठाव
मान सन्मान को भंडार होतो
मोर् मामाजीको गाव

आब् गाव से, पर मामा नाहात
तरी से आपलो पन को भाव
मामाजी बिना सुनो लगसे
मोर् मामाजी को गाव
***
✍ *डॉ. शेखराम परसरामजी येळेकर नागपूर* १२/४/२०२०

मामा को गाव

उन्हारो को सुट्टी मा,आजा मोरो खाचर लका आणण आव,सुट्टी लागी का जात होता आम्ही मामा को गाव, तपन मा फिरज मस्ती कर्ज त आजा आमरो मग धाव //१//

माम भाई अना मावसो भाई सब जन जमा होज 
आगण मा, कंची ,लुका - छुपी सब रंग का खेल खेलज आम्ही//२//

मामा को घर होती मोठी-मोठी भशी गायी, चारावन ला लिजनाकी आमला रवत होती घाई//३//

मामा को घर को बाजू वालो घर होतो आंबा को झाडं आंबा चोरन ला जाज पर होती मोठी बिहिर आड//४//

आब को टूरू पोटून का पाहिले सारका दिवस नही रया लहान पासून मोठा सब मोबाईल मा व्यस्त भया//५//  

✍️ मुकुंद दिगंबर रहांगडाले..(हरी ओम सोसायटी दत्त वाडी नागपूर २३) १२/०४/२०२०

मामा को गाव


मामाको गाव,भास्याला भाव
हक्कच रवसे ,लगी सुट्टी धाव!!//

मामाको गाव,आंबा ना् जांबुर
नवोनवो कपडापरा,नाकभर शेंबुळ।।

मामाको गाव, वावरभर खेलनो
गावखारीमा् लपनो,ना तनसिपरा कुदनो।।

मामाको गाव,घरभर राज
भिती नयि कोनकिच,गावभर नाच।।

मामाको गाव, आजबिसे आस।
यंत्रयुग आयोव आब्,प्रेमको भयोव नास।।

पवारी खुन से,प्रेम रहे तसोच।
युग आयेत जायेत,मामाको गाव प्यारोच।।

पालिकचंद बिसने

मामा को गाव

काव्य  स्पर्धा क्रमांक-०५
विषय:- मामा को गांव
दिनांक १२/०४/२०२०

हेत  आवसे  ओन  दिन  की मीठ-मीठ  बात 
जावत   होता  माय  अना  भाऊ  संग  साथ
गर्मी  की  सुट्टी मा जात होता मामा को गांव 
नानी अना  नाना  जवर होवत  होतो  ठांव ।

सकारी होव् अज्जी तैयार करत होतो खाचर 
बईल ला नहाय धोय  के, बांधत  होता झालर 
कासरा ढिल्लो होय , बईल जोड़ पल्ला दौड़त 
नाना नानी,मामा  देख आवत  होतिन भागत ।

मामी  मोरी  पाय धुआवा ,करत  होती  सतकार 
जाअनो ले मोरो,खुशियां लक भर जाय घर- बार
संध्या होव्  दीपक बाती ,होवा प्रभू को जयकार 
भजिआ अक्सया  घिवारी  को होवा  पाहुनचार ।।

अपली तपली गिल्ली डंडा, टूरू फुटू संग खेलजन
मांडो खाल्या खट्या बिछाय मिल सब झन सोवजन 
नानी मोरी चंदा अना परी को कहानी सुनावत होती 
कह्य रही सव  सच  मी ,बड़ो  मजा आवत  होती ।।

 ✍️ रचना - पंकज जुगनू
परसवाड़ा बालाघाट (म.प्र.)
स्वरचित, मौलिक

मामा को गाव

स्पर्धा -५ वि
विषय- मामा को गाव

गावखारी को रस्ता पर को उ मोठो शेंदऱ्या आंबा
याद आवसे मोला वय बगिचा कि पिकी जांबा ।।

उनारो मा घिवारी संग आंबा को मिठो मिठो रस
बडी डाकत होती परसा को पान पर फक्त दस ।।

रोटी पापड को उंडीला तेलसंग खूप खाजन
दुय चार पापड बेलस्यान इत उत हिंडजन ।।

मावसी ला आनन साती रेहका पर जान साती तयार
बुदुक बुदुक पड वा घोटी आंबा खेल जन चार ।।

जगरी पर को दुध कि साय सांगत होती कहानी
मोरो माम माय को हिरदा होतो पिरती वानी।।

मोठो मिठो लग मामी को हात को उ पाहुणचार
बटकी भर पेज घुगरी रायतो संग करजन आरपार ।।

दिवारी को मंडई ला मामाजी आनती खूप खाजो
कवत होता ....इस्कुल चालू होये परा गाव जाजो ।।

मान सन्मान लक झल्लारसे मोरो मामा को गाव
इनसानियत लक देसेत वय नौकर ला बि भाव ।।

नहि भुली सेव मामा को गाव कि येक येक याद
हिरदा मा भरी सेव उनला आता करुसू याद ।।

श्रीमती वंदना कटरे "राम-कमल"
गोंदिया
१२/०४/२०२०

मामा को गाव


गिम की छुट्टी की, वोन चाव की याद आय गयी,
अज मोला मोरो मामा गाँव की याद आय गयी!!

मोठो मोरी माय को कुनबा,
चार गाँव मा होतो रुतबा,
मामा मोरा बड़ा शेर घानी,
अना शेर घानी अजी बुड़गा!
सायनी माय को लाड़ को भाव की याद आया गयी!
अज मोला मोरो मामा गाँव की याद आय गयी!!

संगी जसा वोतरही मामभाई,
बनकर रहिन मोरी परछाई,
आपरो निवालों मोला दे स्यार,
खान स्यारी करत होतीन घाई!!
बचपना का संगी गिन को लगाव
की याद आय गई!
अज मोला मोरो मामा गाँव की याद आय गयी!!

दिनभर रहवत वोता अमराई मा,
मजाक, मस्ती खेल लड़ाई मा,
थक स्यार दुपहरी सोवत होता,
आम्बा को झाड़ की परछाई मा!!
अमराई को झाड़ गिन की छांव की याद आय गई!!
अज मोला मोरो मामा गाँव की याद आय गयी!!

जात होता खेत महुँ बेचन ला,
अना लाखोरी अरसी मिसन ला,
गहुँ अना चना कटाई को समय,
जात होता हामी होरा भुजन ला!
मामा को खेत की वोन अलाव की याद आया गई!!
अज मोला मोरो मामा गाँव की याद आय गयी!!

जाने कसो कसो छुट्टी बीत गइन,
बचपन का खट्टा मीठा दिन गइन,
हाथ मा रहि सब धुंधली सी याद,
अना रिश्तों नातों का धागा महीन!
जीवन सागर मा बचपन की नाव की याद आय गई!
अज मोला मोरो मामा गाँव की याद आय गयी!!

गिम की छुट्टी की, वोन चाव की याद आय गयी,
अज मोला मोरो मामा गाँव की याद आय गयी!!

तुमेश पटले "सारथी"
बालाघाट (म. प्र.)
दि.- १२/०४/२०२०

मामा को गाव


     दि, 12-04-2020- दिवस रविवार 
                स्पर्धासाती 
         विषय : मामा को गाँव 
                    अभगं 
               ========
गोदिया जिल्हा मा !खोलगड़ से गाँव! 
ऊमाप्रसादजी से नाव! मामाजी को,,,!!

गाव को मंज्यार ! बनीसे हनुमान मंदिर! 
शोभा दिससे सुदंर! गाव खोलगड़ की ,,,!!

गाँव कोच बाहार! आबां की अमराई!! 
कसी फुलसेत वनराई! भाऊ निसर्ग की ,,,!!

गाँव कोच बाजुला! सेत जगंल पाहांडी!! 
शेर चित्ता डरकाडी! भाऊ मारसेती,,!! 

जगंल को मंज्यार! तर्रा बनीसे गगांसागर!! 
से स्वर्गलक सुदंर! दिससे शोभा वाहांकी,,!!

आय मोरो सौभाग्य! जनम वाहा भयेव!! 
अज मगंलमय भयेव !भाऊ जीवन मोरो ,,!!

याद आवसेती मोला! मोरा आजी आजा!! 
घनगडी को बाजा! आम्ही बनावजन,,!!

भाऊ गाँव को बाहार! बनीसे प्राथमिक स्कुल !!
वाहा दास हिरदीलाल! वाहा शिकत होतो,,,!!
                     कवि 
         श्री हिरदीलाल ठाकरे 
  मु, भजियापार पो, चिरचाळबांध 
ता, आमगाँव जिल्हा गोदिया माहाराष्ट्र

मामा को गाव

काव्य स्पर्धा ५
दिनांक:१२/०४/२०२०
विषय: मामा को गाव

उन्हारो को सुट्टिमा जाजन मामाको गांव।
गुडुरलका अजी आमला आनला आव।।

आखर लकाच घोलर को अगाज कानमा आव्
मोठो मोठो बैलइनला घोलर झुली को साज रव्।।

बिहाई की आवभगत होय नमस्कार चमत्कार।
पाय धोवन पानी ना चाय नास्ता लका सत्कार।।

रातवा आंबा को रस, घिवारी को  पाहुणचार।
दूसरो दिस खुसीखुसी गूडुरपर होजन सवार।।

गुड़गुड़ गूडुरकी भोवरी चलत गाळदान की बाट।
बेसकड़को नंगरदरूजा दिसत होतो मामा थाट।।

चाट्या बाट्या कनार को शेंदर्या आंबाला जाजन।
पेज रायतो खायकर आंबा खालत्या खेलजन।।

खेतमा मोट को झुर झुर पानीमा लोरजन।
बाबुर को ढीक, चार  की बिजी फोड़जन।।

रातवा दिवोको उजाडो मा मज्या लक जेवजन।
आंगन माको मांडो खाल्या ओरिलऽ सोवजन।।
 
अजी नवहाथ करुला की लंबी कहानी सांगत ।
दूर ढोड़ी परा धुंदुर ,वरत्या चांदाचांदनी दिसत।।

अज बी याद आवसेत मामा को गाव का दिवस।                  नई मिलत आब् बेटाबेटीला तसा छुट्टीका दिवस।।

                     - सौ.छाया सुरेंद्र पारधी

Saturday, April 11, 2020

माय

काव्य प्रकार : मुक्त छंद

मोरो तोरो पर केत्तो से पिरम
कसो मी सांगु तोला

काटा गड्से तोरो पायला
दुख लगसे मोला

तबेत होसे तोरी खराब
रातभर जागूसू मी

तोरो पोट भरणसाती
अर्धी रोटी खासू मी

दुनिया मा जगनसाती
तोला संस्कार चांगला देसू 

तोरोच साती बेटा मी
काळी सरिखी झीजुसु 

तोरो भविष्य बने पायजे मून
एक एक पैसा जोडूसू

मोठो होएकर सहारा देजो
दूध को करजा कबी नोकों भूलजो

माय को बुढ़ापा को सहारा तू बनजो
नहीं बनेस काहि चले पर चांगलो इंसान बनजो

✍️ सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

Tuesday, April 7, 2020

महाराष्ट्र का जिल्हा


झाडी पट्टी का जिल्हा,
गोंदिया,भंडारा,गडचिरोली, चंद्रपूर.
धान क् खेती साती,
प्रसिद्ध सेती सर्व दूर.

वर्धा,अमरावती अना नागपूर,
पिकसेत वाहॉ संतरा मधुर.
पश्चिम विदर्भ मा आवसेत,
यवतमाल,बुलढाणा,वाशिम, अकोला,
कापूस साती प्रसिद्ध सेती,
चारही बाजूला. 

मराठवाडा मा ज्वारी पिकावसेत,
जालना,परभणी,औरंगाबाद,
तसोच नांदेड, हिंगोली अना,
बीड,लातूर, उस्मानाबाद.

उत्तर महाराष्ट्र मा सेती,
नाशिक,धुळे, जळगांव, नंदुरबार,
वहॉ पिकसेत मस्त,
केरा, अंगूर अना अनार.

पश्चिम महाराष्ट्र से समृद्ध,
होसे वहाॅ गन्ना की खेती.
पुणे, अहमदनगर,सोलापूर,सातारा,
कोल्हापुर,सांगली वोका जिल्हा आती.

कोकण मा पडसे पानी भरपूर,
जिल्हा वहॉका ठाणे,पालघर,
रायगड,रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग,
मुंबई अना मुंबई उपनगर.

                चिरंजीव बिसेन
                       गोंदिया.

Monday, April 6, 2020

मोरी माय


पहाटला लवकर होती उठत,
झाडस्यार साफ कर घर आंगन.
वोक बादमा चुल्हो पेटायस्यार,
दार, भात, भाजी बस रांधन.

शाहणी माय ला दे तोंड धोवन पानी,
तब ओरी शाहणो अजी मांग चाय.
सबका उनकी जरूरत की चीज,
समयपर देत होती मोरी माय.

सयपाक होये क बाद मा जल्दी-जल्दी जेव,
बाद मा शिदोरी धरस्यार जाय खेत.
दिवस भर प-हा लगायेव क बादमा,
घर आवनला दिवस बुडता वोला भेट.

दिवस बुडता सयपाक बनायस्यार,
सबला दे राती जेवण खानला.
बर्तन भांडा धोयेव क बादमा,
सबदून बादमाच भेट वोला सोवनला.

टुरू पोटू इन की स्कुल की तैयारी,
पाहुणा पयीन को जेवन खान को काम.
सबकी जरूरत का काम करता करता,
वोला नहीं भेटत होतो बिलकुल आराम.

               रचना- चिरंजीव बिसेन
        परमात्मा एक नगर, गोंदिया
                   दि.०६/०४/२०२०

Sunday, April 5, 2020

भारत का राज्य


भारत क् पश्चिम मा से
राज्य महाराष्ट्र,राजधानी वोकी मुंबई.
प्रसिद्ध स्थल सेती अजंता,वेरूळ, नागपुर,
पुणे ना सबसे उचो शिखर कळसुबाई.

देश क् बीच मा से राज्य मध्यप्रदेश,
राजधानी वोकी से भोपाल.प्रसिद्ध स्थल सेती पचमढी,खजुराहो
अना उज्जैन को महाकाल.

सबसे पश्चिम मा से राज्य गुजरात,
राजधानी वोकी से गांधीनगर.
जहाॅ गांधीजी को जनम भयेव,
वोन् शहर को नाव पोरबंदर.

सबसे मोठो राज्य से राजस्थान,
राजधानी वोकी से जयपुर.
रजपूत क् गाथासाती प्रसिद्ध सेती
चित्तोड, जोधपुर अना उदयपुर.

भारत क् उत्तर भाग मा राज्य सेती,
पंजाब अना हरियाना.
राजधानी उनकी चंदीगड,
मोठा शहर गुडगांव,अमृतसर ना लुधियाना.

जम्मू काश्मिर आता बन 
गयेव केंद्रशासित प्रदेश.
राजधानी से वोकी श्रीनगर,
जम्मू काश्मिर ना लद्दाख दुय प्रदेश.

हिमाचल प्रदेश की राजधानी से शिमला,
वहाॅ प्रसिद्ध सेती कुल्लू,मनाली ना धर्मशाला.

उत्तराखंड से राज्य लहान,
राजधानी वोकी देहरादून.
मोठा मोठा तिर्थ सेती,
बद्रीनाथ,केदारनाथ,ऋषिकेश,हरिद्वार.

जनसंख्या मा मोठो राज्य से उत्तर प्रदेश,
राजधानी लखनऊ,ठाट वोको राजशी.
तिर्थक्षेत्र सेती वहाॅ का,
अयोध्या,प्रयागराज अना काशी.

बिहार की राजधानी से पटना,
वहाॅ पूर लका होसे बडी दुर्घटना.
रांची से राजधानी झारखंड की,
जमशेदपूर,बोकारो सेती स्टील सिटी.

पूर्व को राज्य पश्चिम बंगाल,
राजधानी से वोकी कलकत्ता.
वहॉ प्रसिद्ध सेती दार्जिलिंग,
सिलीगुड़ी ना गंगासागर यात्रा.

उड़िसा की राजधानी से भुवनेश्वर,
मुख्य सेती पूरी,कोणार्क ना कटक.

आपलो पडोसी राज्य छत्तीसगड,
की राजधानी से रायपुर.
प्रसिद्ध सेती डोंगरगड,भिलाई,
अना हायकोर्ट को शहर बिलासपुर.

तेलंगाना की राजधानी से हैदराबाद,
वोको जुडवा शहर से सिकंदराबाद.
आंध्रप्रदेश की राजधानी से अमरावती,
आंध्र मा प्रसिद्ध से बालाजी तिरूपति.

कर्नाटक की राजधानी से बंगलुरू,
प्रसिद्ध शहर सेती मैसूर ना मंगलुरू.
तामिलनाडू की राजधानी से चैन्नई
प्रसिद्ध सेती रामेश्वरम,कन्याकुमारी ना मदुराई.

केरल की राजधानी से तिरूवनंतपुरम,
मुख्य शहर सेती कोच्ची ना एर्नाकुलम.
खूबसूरत गोवा की राजधानी से पणजी,
लहानशो से पर देखनलायक सेजी.


पूर्वोत्तर मा राज्य सेती आसाम,सिक्किम,
अरूणाचल प्रदेश,मेघालय,मणिपुर
मिजोरम, नागालैंड अना त्रिपुरा.
राजधानी उनकी क्रमलक दिसपुर,गंगटोक,
ईटानगर,शिलांग,इम्फाल,
आइजोल,कोहिमा अना अगरतला.

केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली,चंदीगड,पांडेचरी,
अंदमाम- निकोबार,लक्षद्वीप अना
दादरा नगर हवेली-दीव-दमण.
राजधानी उनकी दिल्ली,चंदीगड,पांडेचरी,
पोर्ट ब्लेअर,कवरत्ती अना दमण.

           रचना- चिरंजीव बिसेन
       परमात्मा एक नगर,गोंदिया.
                 दि.२०/०२/२०२०
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काव्य स्पर्धा क्र.4 "आंदन"

काव्य स्पर्धा क्र.४
स्पर्धा साठी
विषय: आंदन (दहेज)
    (एक टुरी की व्यथा)


नहानसो आम्हरो परिवार,
दुय बहिन एक भाई
संग आम्हरा पालन हारा,
मोरा बाबूजी अना आई

एक दिवस बात हिन् को,
जमेव असो रंग
आई बाबूजी कव्हन लग्या,
मोठी बाई नहीं रव्हन की आम्हरो संग

आयकताच हृदय मोरो,असो भरेव
मीन असो कोनतो,पाप करेव

मोला रोवता देख,जवर आयी आई
गलती तोरी काही नहीं, तोरो बाबूजी ला से बिह्या की घाई

गरीबी मा कसो होये बिह्या,येवच् सोचत जासु
मामाजी को फोन आयेव, पाहुणा धर के आऊसू

पाहुणा आया बिह्या जुड़ेव,करन लग्या बीह्या की तैयारी
मोरो आई बाबूजी ला,चिंता पड़ गई भारी

बाबूजी कव्हत,जमानो को मानलक चलनो पड़े
टीव्ही,फ्रिज,कूलर, बर्तन भांडा, आंदन देनो पड़े

नवरदेव का कपड़ा,अंगूठी देन को, निभाईन फर्ज
कपड़ा लत्ता आंदन साठी निकालिन कर्ज

कसो होए बिह्या,बाबूजी न हाय खाय डाकिन
बिह्या सजरो करन साठी,अर्धो एकड़ बिक डाकिन

अगर आंदन की,या कुप्रथा नहीं रव्हती
मोरो बाबूजी की,आर्धो एकड़ नहीं बिकाती
टुरी पैदा भई ये मोठो पाप
मोरो कारण दुःखी भया माय बाप


__________________________
 ✍🏻 संतोष (सोनू) हनसलाल बिसेन
मु. पो. दासगांव खुर्द
त.जि. गोंदिया

माय

सकारी आपलों बासरू ला
सोडस्यानी कोठा मा, जासे गाय।

गोहनमा लका पलट पलटकर
तीन तीन बार देखसे वा माय।।
                                          
दिवसभर चरसे गाय रानमा।
चलता फिरता वोकों ध्यानमा।

भई गोधूलि बेला,दिवस पिलपिलाय 
भुखो रहे लेकरु मुन मनमा घबरावऽ।

गावजवड आयेपरा हंबरत होती माय
देखश्यान बासरुला पन्हाव वोला आवऽ।।

मायला देखशान बासरू इटकात आवऽ
दुधकी की धारा मा बासरू आंनद पावऽ

जगमा को सबसे सुंदर चित्र ला 
मोरो मन को गहराई मा उतरऽ

✍️सौ.छाया सुरेंद्र पारधी.

काव्य स्पर्धा क्र.4 "आंदन"

काव्य स्पर्धा क्र: ०४
विषय: आंदन(दहेज)
दिं:०५/०४/२०२०

  🌹🌹 आंदन 🌹🌹

बिहया की तारीख जवळ आयी।
आंदन लेनकी भयी बापला घाईं।।

लंबी चौड़ी यादी भयी एक नहीं सुटेव।
यादी देखश्यानी बापला पसीना फुटेव।।

सागुन को सोफ़ा ना सागुन  की  खाट।
फोम को गद्दा लेबिन तब दिसे थाट बाट।।

साजसिंगार करणला ड्रेसिंग को टेबल।
मनोरंजन करनला टीव्ही ना केबल।।

हवा लेनला कूलर अना सिलिंग को पंखा।
सब प्रकारका बर्तन भांडा तब बजे डंका।।

पैसा को हिसाब करिस लगेव वोला धक्का।
दवाखानोंमा भरती भयेव कसे सपन होतो बाका।।

✍️ श्री.डी.पी. रहांगडाले.
           गोंदिया

काव्य स्पर्धा क्र.4 "आंदन"

काव्यस्पर्धा ४

विषय - आंदन

बिया से दुय परीवारको मिलन
टुरीलि भेटसे आनंदलका आंदन//

घरको आंदन अलग रवसे
रिस्तेदार दोस्तयकरलक् आंदन आवसे//

टुरीको बाप कन्यादान करसे
कुटुंब को यव पायवाच रवसे//

आंदनपर रवसे रिस्तेदारयको नाव
याद आवसे मंग होसे मनपरा घाव।।

आंदन देसे सुकुन टुरीला रवसे वहान बालपण
दुय घर् प्रकाश देसे से टुरीको जन्म महान।।

नोको करो जबरदस्ती आंदनसाठी कबच
राजाभोजको नाव डुबे विरोध करो तबच।।

खुशीलक् जो भेटे स्विकारसे आमरो पोवार
चरित्र देखकन् जोडो बिया,बिया समाज को आधार।।

पालिकचंद बिसने
सिंदीपार(लाखनी)

काव्य स्पर्धा क्र.4 "आंदन"

काव्यस्पर्धा क्रमांक ४ दिनांक ०५/०४/२०२० स्पर्धा साठी

  विषय: आंदन (दहेज) 

जसो जसो जवर आये लगिंन बेरा,
 थर थर  कापसेती हाथ मोरा ll
  
महगाई ला देख रह्या सेती मामा मोरा,
फुफ़ाबाई ला चिंता भारी कसो करू इच्छा पूरी ll

मावसीबाई कसे बहिन बेटी से एकच मोरी,
मौस्या जी कसे सयगिल बेटी कसे इच्छा करदेवो मोरी पूरी ll

 टीवी लेवो कूलर लेवो , 
लेनो पड़े फिरिज भारी ll 

आंदन लाईक होसे जी भारी तैयारी, 
कर्जा होय जाये माय बाप् ला लगी से चिंता बहुत भारीll 

 सोफा बनावो ,दिवान बनावो ,बनावोजी आलमारी प्यारी,
जीजाजी कसे एकच से सारी मोरी ,होय जाये खर्चा मोरो भी भारी।।

लेय लेसु दहेज जरासो भारी 
काहेकी सारी से आता एकच कुँवारीll 

कोई कसेत नही लेये पायजे जी दहेज़ भारी,
 मोला याद आई से कविता की लाइन प्यारी ll

 समाज की चिंता से आता मोला भारी,
 समाज कसे की दहेज़ लये पायजे भारी ll

 नोकों करो जी मोठो दहेज़ की आता तैयारी,
चवुक चांदन अना बटकी आंदन पोवारी की या लाईन भारी ll 

समाज बंधुला विनंती एकच जारी,
 नोकों करो आता मोठो आंदन की तैयारी ll 

पहलेच भय गयी से जी कर्जा अमरो पर भारी, 
दहेज प्रथा ला करो दूर भगावन की तैयारी ll 

कम ज्यादा आंदन की चर्चा नोकों करो जी आता तरी, 
दहेज प्रथा ला करो दूर भगावान की तैयारी ll 

एको लक मीट जये जी सारी चिंता आमरी , 
आता करो दहेज़ प्रथा ला कम करन की तैयारी ll 

 डॉ. हरगोविंद चिखलु टेंभरे मु. दासगॉंव जि.गोंदिया 🙏🙏संपर्क 9673178424

काव्य स्पर्धा क्र.4 "आंदन"

काव्य स्पर्धा साती

शीर्षक :- आंदन

(तर्ज़- आमरो गाव को आखर पर )

जुड़ी से बिह्या टुरी को
आनंदा माई
माय ना बाप ला
आंदन लेन की घाई

अवंदा को साल मा
बरस्यो नहीं पानी
धान की फसल आमरी
नहीं भई पयले वानी

का लेंव का लेंव,बडी बाई
बढ़ गई, महंगाई 
जुड़ी से बिह्या टुरी को
आनंदा माई......

आमरोच का 
पोवार जात की
एक गोष्ठी मन ला भायी
आपलो तोंड लक
दहेज की 
मांग नई कर बिहायी

बीह्या को मांडो सज्यो
आंदन बेरा भई
आओ आओ मामा मामी
आव व फूपा बाई

आंदन असो देवो आमला 
कवसे नवतो जवाई

कासो की बटकी देवो
दस्तूर को गुंड
रामायण की प्रती देवो
देवो यज्ञ कुंड

दिवो अना बाती धरकर 
पठाओ नवरी बाई
ज्ञान को भरन लक
पाटो दहेज की खाई

जुड़ी से बीह्या टुरी को
आनंदा माई.....


✍️ज्योत्सना पटले टेंभरे "कौमुदी"
                  ( मुंबई )

काव्यस्पर्धा क्र.4 "आंदन"

काव्यस्पर्धा क्र.४
--------------------
                विषय- आंदन
                 ***********
पुरानो जमानो पासून टुरीला
बिह्या मा देयो जासे आंदन,
पहले भर जात होतो आंदनल्
बिह्या को मांडो ना आंगन.

मामा,मावशी,फूपा बिह्या,
जुडेवपासून करत जोड़ तोड़,
भासी, बेटी,भजी ला बिहृया मा
का देहे पायजे आंदन.

लगीन क् बादमा गोत गोवत
होतो नवरदेव को भाई,
आंदन देनो सुरू करत,
सब रिश्तेदार ना आई-माई.

आंदन क बेरा गावत
मस्त पोवारी गाना,
एक एक झन आयकर
देत बर्तन नहीं त नाना.

आंदन क बेरा का गाना
१)रामू पूछ सीता ला,
    तोरच का मामान कायको दायजो देईस.
मोरच का मामान गुंड दायजो देईस.
गुंड सरीखो दायजो पायेव
सोयरो संतोषी भयेय,असो जवाई
पिरमबाज,मनमा खुशाल भयेव.
२)छोटी बाई पूछ से आपल भाटवाला,
   जीजाजी कायको आंदन लेयातजी.
चऊक चांदन टमान आंदन,
या सारी देया बाई कन्यादान.

आता क जमानों मा
बर्तन ना गाना भया बंद,
पैसा लिखायस्यार सब
लोक मनावसेत आनंद.

               रचना- चिरंजीव बिसेन
        परमात्मा एक नगर, गोंदिया
                       दि.०५/०४/२०

काव्यस्पर्धा क्र.4 "आंदन"

काव्यस्पर्धा क्रं ०४

विषय-आंदन (दहेज)

दुष्काळ की मार से लगातार मोरो खेतमा
टुरी को आंदनसाठी ,पैसा नाहात मोरो हातमा।।

कोमल,सुकुमार से मोरी सोनी टुरी  की काया
घरमा खेल कुदसे शोभा बढावसे अना करसे माया
उमर बढ रही पर वोकी कण कण लका
म्हणून रूची नही लग मोला नोन मिरची रोटीमा ।।१।।
टुरी को आंदनसाठी पैसा,नाहात मोरो हातमा......

हरसाल को दुष्काळ पूरी खेती उजाड देसे
सावकर,बँक को कर्जखाल्या कंबर टुट जासे
कराप लोन को बोझोबी से डोस्कीपर मोरो
आता रातरात झोप नही आव मोला यन डोरामा।।२।।
टुरी को आंदनसाठी ,पैसा नाहात मोरो हातमा........

बेटी मोरी रूपवंती अना बडी से इमानदार
गरीब सेजन आम्ही म्हणून मांगत नही तालेवार
का फक्त सेव कागज परा नर नारी समानता
 सांगुसु तुमला भेदभाव नोको ठेवो पोवारी जातमा  ।।३।।
टुरी को आंदनसाठी ,पैसा नाहात मोरो हातमा.....

हमेशा टुरीच कायला पूरो त्याग जीवनमा करसे
बाप  को घर सोळके टुरीलाच कायला जानो पळसे
कभी माय,कभी बायको त कभी बहीन बनसे
आता तरी भेदभाव नोको ठेवो टुरा अना टुरीमा।।४।।
टुरी को आंदनसाठी पैसा,नाहात मोरो हातमा......

जमानो बडो बदल गयी से यन कारी रातमा
ध्यान देव जी समाज बंधु आता मोरो बातमा
समय जाये तब देरी होय जाये यन जगमा
बदलाव जरूरी से काही धरेव नाहाय भेदभावमा।।५।।
टुरी को आंदनसाठी पैसा,नाहात मोरो हातमा....

- वर्षा पटले राहांगडाले

काव्यस्पर्धा क्र.4 "आंदन"

( कव्यास्पर्धा  क्रमांक - ४)
         
                     !!आंदन!!

एक बेटी को बाप की जिंदगी पैसा जोडण मा गुजर जासे,या आंदन की प्रथा उनला अंदर लक तोड देसे!!१!!

आंदन को आग लका  जरसे जिंदगी, आंदन को सहारा लका काहा बससे जिंदगी,अगर कोनी कर ले माग आंदन की त जैल मा डोरा मलसे ओकी जिंदगी!!२!! 

आज कलम चलन लगी से बेटी को अधिकार मा,काहेका हार जमानो की  से बेटी को हार मा !!३!!

सात फेरा को यव बंधन जो वचन लका बन से,
अना दुय आत्मा को मिलन लक जीवन मा रंग भरसे ,नवरा बायको मा प्रेम रवनो उन्ला जवळ आणसे,तरी बी यण मौका पर नवरा ताना आंदण को मारसे,!!४!!

मी सांगनो चाहुसू आमरो सामाजिक दर्पण ल, भेव भेव कर जग रही से वो न
बेटी को समर्पण ला!!५!!

उठ रही से आवाज आता आंदन को प्रथा ला, आये आब खुशी की पारी आता नही लगेती बेटी कोनी बाप ला भारी,!!६!!


               मुकुंद रहांगडाले 
(हरी ओम सोसायटी दत्ता वाडी नागपूर २३) दी -५/४ /२०२०

काव्यस्पर्धा क्र.4 "आंदन"

              【दहेज】

बिक जा सेती घर की कुर्सी अना मेज,
गरीब बाप देसे जब टूरी हीन ला दहेज!!

नहांसी पूंजी अना पुराव से चोटी ला,
नयो जमानों मा पढ़ावअ से बेटी ला,
पढावनों भी जरूरी से कायिच करके,
बेटी से वोकि पढनो मा बड़ीच तेज!!

जनम पासून वोको लाई सोचअ से बापअ,
असो लगअ से जसो करदी रहेस पापअ!
एक-एक पैसा जोड़स्यार, चलसे जुगुत ल,
नोन मिर्चा की बघरणी मा, पिव से पेज!!

समय को हिसाब ल देये आंदन महीन,
फ़्रिज़, कूलर, टीवी, अना वाशिंग मशीन,
मोठो घर जाए टूरी एको लायी बापअ,
बिक देसे आपरो एक दुइ-एकड़ खेत,

टूरी, बाप की आन-बान-शान आय,
दान मा मोठों दान, कन्यादान आय!!
देनों से त टूरी ला आशीर्वाद ही देवो,
आंदन को लेनदेन ल करो सब परहेज़!!

बिक जा सेती घर की कुर्सी अना मेज,
गरीब बाप देसे जब टूरी हीन ला दहेज!!

तुमेश पटले "सारथी"
केशलेवाड़ा (बालाघाट)

काव्यस्पर्धा क्र.4 "आंदन"

काव्य स्पर्धा: ०४
दिनांक:०५/०४/२०२०
विषय: आंदन
🌷🌷 आंदन 🌷🌷

सांगू का भाऊ तुमला एक बात।
आबं बीह्या की आईं से घातऽ।।

एक एक पैसा जमायकर ठेयेव।।
बेटी को बीह्या कर टाकुन कयेव।।

सोफ़ा, आलमारी, ड्रेसिंग लेयेव।।
आंदन गोंदन सब लेयकर ठेयेव।।

पत्रिका छपी गावोगाव न्यौवता गयेव।
मंडपवालों ,आचारी ठयरायकर भयेव।।

घरभर मा आता खुशी नोहती मावतऽ ।
सामान आनन सब खुशी लक धावतऽ ।।

पर आता वा खुशी भय गई गायब।
कोरोना को प्रताप बीह्या लंबायेव।।

जहा को आंदन वहा पड़ेव रयेवऽ ।
पत्रिका बीह्या की नदिमा बहायेव ।।

जब हटे संचारबंदी तब काहीं होये।
पर आब जेत्ती खुशी होती तब कहा रहे।।

कमी जास्त कसोच बेटी को बीह्या त होये।
मोरी लाड़ की बेटी आपलो सुसरो घरऽ जाये।।

✍️- सौ.छाया सुरेंद्र पारधी

काव्यस्पर्धा क्र.4 "आंदन"

काव्यस्पर्धा क्र.४

  विषय - आंदन
  --------------------

लगेपरा बिया,चर्चा होनलगी
केतरा आंदन केतरा पैसा गी !!

रिवाज साजरो भारतीय रीति
नोहोतो अहित अथवा दुर्गती !!

टुरी जासे घर परको कं घर
आंदन कं द्वारा गरजू आधार !!

गलत् प्रकार भयासेती बुहू
मुहून प्रचार भेटसेती पाहू !!

मोल रव्हसे आंदन को सुंदर
का दुर्दशा भयी समाज अंदर ?!!

हुंडाबली नं करीस नाश बुहू
मर्यादा मां सब् जन पायजे रहू !! 

===================
✍रणदीप बिसने

काव्यस्पर्धा क्र.4 "आंदन"


                   स्पर्धासाती 
          विषय = दहेज आदंन 
==================≠======
मानव को जन्म मीलेव तुमला, 
मानवताकी बचाओ जी शाँन ,,,!!
दहेज प्रथा से जी मोठी कुरीती ,
बहुला जरायकर  लेसेत जाँन,!!

अनाचारको अतं करो जी तुम्ही, 
अज दहेज प्रथा करो तुम्ही बंद ,,!!
जिवनसगींनी मीलीसे जी तुमला ,
दहेजसाती विनय नोको करो भंग,,!!

बिह्या भयेव को बादमा जी भाऊ, 
मुस्कराहट नही नवरी को ओठमा,,,!!
दहेज को आतंकलक बिचार करसे, 
काहे नही मरगयी मायको पोटमा,,!!

ज्यो बाप  सोपसे दिल को टुकडा, 
वोला दहेज मा मागंसेव टिव्ही कार,,!
वंशावली सामने वा बढाये तुमरी 
नोको करो तुम्ही असो अत्याचार ,,!!

मोह दहेज को तुम्ही करो नोको, 
जिवनमा रव्हो जी सदा खुशहाल ,,!!
नारी जगत की जननी से भाऊ, 
कसे दास को दास हिरदीलाल,,,!!

                कवि 
      श्री हिरदीलाल ठाकरे 
   मु, भजियापार पो, चिरचाळबांध 
ता आमगाँव जिल्हा गोदिया माहाराष्ट्र

काव्यस्पर्धा क्र.4 "आंदन"

काव्यस्पर्धा- ४
विषय-आंदन

मोठी भयी मोरी बडि बाई
धुंडुसू ओको साती टुरा
गरिबी से घर मा आता
कसो करबि बिह्या बेरा ।।1

गुणवान से मोरी बेटी
पर नहाय सुंदर सोरा
थक् गया मोरा हात पाय
मुस्किल ल भेटेव टुरा ।।2

करजा लेयव बिह्यासाती
पत्रिका बि बाटेव आता
गाडी को आंदण साती
टुरा संग दुय दुय बाता ।।3

साभिमानी बेटी न मोरो
कइस वोन नवरा टूराला
गाडी संगच करो बिह्या
नको तकलिफ मोरो जानला ।।4

कब आयेती वय दिवस
बहु लाच मानेती आंदन
भौतिक सुक ला सोडकन
कब फुले यव समाज जिवन ????

श्रीमती वंदना कटरे "राम-कमल"
गोंदिया
05/04/2020

काव्यस्पर्धा क्र.4 "आंदन"


                   स्पर्धासाती 
          विषय = दहेज आदंन 
==================≠======
मानव को जन्म मीलेव तुमला, 
मानवताकी बचाओ जी शाँन ,,,!!
दहेज प्रथा से जी मोठी कुरीती ,
बहुला जरायकर  लेसेत जाँन,!!

अनाचारको अतं करो जी तुम्ही, 
अज दहेज प्रथा करो तुम्ही बंद ,,!!
जिवनसगींनी मीलीसे जी तुमला ,
दहेजसाती विनय नोको करो भंग,,!!

बिह्या भयेव को बादमा जी भाऊ, 
मुस्कराहट नही नवरी को ओठमा,,,!!
दहेज को आतंकलक बिचार करसे, 
काहे नही मरगयी मायको पोटमा,,!!

ज्यो बाप  सोपसे दिल को टुकडा, 
वोला दहेज मा मागंसेव टिव्ही कार,,!
वंशावली सामने वा बढाये तुमरी 
नोको करो तुम्ही असो अत्याचार ,,!!

मोह दहेज को तुम्ही करो नोको, 
जिवनमा रव्हो जी सदा खुशहाल ,,!!
नारी जगत की जननी से भाऊ, 
कसे दास को दास हिरदीलाल,,,!!

                कवि 
      श्री हिरदीलाल ठाकरे 
   मु, भजियापार पो, चिरचाळबांध 
ता आमगाँव जिल्हा गोदिया माहाराष्ट्र

काव्यस्पर्धा क्र.4 "आंदन"

पोवारी काव्य स्पर्धा ४

विषय:- आंदन

भासी को रवसे जब् बिया
मामाक् हिरदयमा होसे स्पंदन
हर घडी मामाजी बिचार करसे
भासीला मी का लेवु आंदन

टुरीक् बियामा सजावट भारी
रस्तापर बी रवसे चऊक चांदन
बिया लगेपरको मोठो नेंगदस्तुर
पावना देसेत नवरीला आंदन

टुरीको संसार उभो करनसाती
टुरीक् बापलाच नही लगे चंदन
मनुन रिश्तेदार हातभार लगावन
भेटवस्तू देसेत, वला कसेत आंदन

पयले आलमारी संदुक पलंग रव्
गंज बर्तन रवत, सयपाक रांदन
केताक भया पैसा बर्तन पुकारत
जगजाहिर रव् बियाको आंदन

आंदन रवसे मदतसाती
वोला हुंडासंग नोको जोडो
जबरजस्ती क् मामलापायी
सजनहो रिश्ता नोको तोडो
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डॉ. शेखराम परसरामजी येळेकर नागपूर
५/४/२०२०

कृष्ण अना गोपी

मी बी राधा बन जाऊ बंसी बजय्या, रास रचय्या गोकुलको कन्हैया लाडको नटखट नंदलाल देखो माखनचोर नाव से यको!!१!! मधुर तोरो बंसीकी तान भू...